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पुनर्जन्म
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जो व्यक्ति बिना किसी हानि या लाभ के घर लौटता है वह उस व्यक्ति के समान है जिसका अगला जन्म मनुष्य रूप में ही होता है। "जो मनुष्य अपने सत्कार्यों से धर्मशील गृहस्थ बनता है, वह पुनः मनुष्ययोनि में पैदा होता है, क्योंकि सभी मनुष्यों को अपने कर्मों का फल मिलता है । परन्तु अपनी पूंजी बढ़ानेवाला व्यक्ति बड़े पुण्यकार्य करनेवाले व्यक्ति-जैसा होता है। पुण्यात्मा व्यक्ति बड़े सुख से देवत्व को प्राप्त होता है जो बुरे कार्य करता है और अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह नरक में जाता है। बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो पाप और पुण्य को समझता है । पापमार्ग का त्याग करने से बुद्धिमान व्यक्ति पुण्य का लाभ करता है।" ___ अत: यह स्पष्ट है कि जैन दार्शनिक का पुनर्जन्म सम्बन्धी मत न केवल मानवीय जीवात्मा की अनन्तता पर जोर देता है और इसलिए विकास तथा विपरीतगमन की संभावना को स्वीकार करता है, बल्कि चेतनता के सातत्य तथा उससे भी अधिक मानव की उत्तरदायी प्रकृति की ओर निर्देश करता है। इस अर्थ में पुनर्जन्म का यह सिद्धांत जैन नीतिशास्त्र के लिए भी आधार प्रदान करता है। आगे के एक प्रकरण में जब हम जैन नीतिशास्त्र की कुछ विशेषताओं पर विचार करेंगे, तो यह बात स्पष्ट हो जायगी।
10. वही, VII. 20-21; 28; 30