Book Title: Jain Darshan ki Ruprekha
Author(s): S Gopalan, Gunakar Mule
Publisher: Waili Eastern Ltd Delhi

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Page 162
________________ जैन दर्शन जिस व्यक्ति को सम्यक् ज्ञान नहीं है उसमें विभिन्न प्रकार के कसं विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाओं को जन्म देते हैं (ये उसे होनेवाले विभिन्न प्रकार के अनुभवों के अतिरिक्त होती हैं) । ये प्रतिक्रियाएं सुखदायी अनुभवों के प्रति स्पष्ट लगाव तथा दुःखदायी अनुभवों के प्रति विपरीत भाव अपनाने से पैदा होती हैं। न जानते हुए कि उसके विविध अनुभव आसक्ति तथा द्वेष से भरे पूर्वकर्मों के कारण हैं, वह उनमें डूब जाता है और बहने लगता है, और इस प्रकार जन्म-मृत्यु के दुष्ट चक्र में अधिकाधिक उलझ जाता है । परन्तु सम्यक् ज्ञान वाला व्यक्ति जानता है कि उसके विविध अनुभव वस्तुतः आत्मान्तर्गत नहीं होते इसलिए वह इनके प्रति अनासक्ति का भाव रखता है । इसीलिए सुख या दुःख से वह प्रभावित नहीं होता। बाह्य जगत के प्रति ऐसे भाव को अपनाकर वह कर्मों को फलित होने देता है, यानी वह संग्रहीत कर्मों को क्षीण होने देता है । इस प्रकार, अपने अच्छे और बुरे कर्मों को भोगते हुए, परन्तु उनसे किसी प्रकार प्रभावित हुए बिना, वह अपने संग्रहीत कर्मों को समाप्त कर देता है। यह भी मत देखने को मिलता है कि कर्मों के वस्तुतः फलित होने के पहले ही तपस्या से कर्मों को नष्ट करके प्रभावहीन बनाया जा सकता है। यहां यह कहा जा सकता है कि जैनों के कर्म सिद्धांत का यह स्वरूप ठीक उस हिन्दू सिद्धांत के समान है जिसके अनुसार ज्ञानप्राप्ति से संचित कर्म को प्रभावहीन बनाया जा सकता है। हिन्दू परम्परा में भी आत्मज्ञान की खोज में निकले हुए व्यक्ति को सुझाया गया है कि वह प्रारब्ध कर्म के प्रति अनासक्ति के भाव को बढ़ावा दे, ताकि वह कर्म चक्र में आगे अधिक न उलझ सके । मोक्ष : चूंकि हम कर्म सिद्धान्त तथा आठ नैतिक तत्त्वों का विवेचन कर 'चुके हैं, इसलिए मोक्ष के बारे में बताने के लिए बहुत थोड़ा रह जाता है। मोक्ष का अर्थ है मुक्ति, यानी जीव की अजीव से मुक्ति । जीव के अजीव से मुक्त होने के मार्ग का विवेचन किया जा चुका है, इसलिए यहां अब जैन नीतिशास्त्र के विरस्म के बारे में ही कुछ बताना बाकी रह जाता है। ये त्रिरत्न हैं: सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्वारिन । त्रिरत्न की इस धारणा में जैन मोक्ष सिद्धांत का सारतत्त्व निहित है । 160 सम्यग्दर्शन को मोक्ष का प्राथमिक कारण माना गया है, क्योंकि इसीसे सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का मार्ग प्रशस्त होता है । यशस्तिलक में कहा गया है : "जिस प्रकार नींव प्रासाद का मूलाधार है, और सुयश सुंदरता पर,.. जीवन सुख भोग पर, राजशक्ति विजय पर, संस्कृति श्र ेष्ठता पर और शासन राजनीति पर आधारित है, उसी प्रकार यह ( सम्यग्दर्शन) मोक्ष का प्राथमिक कारण है।" उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि के अभाव में 11. के० सी० सोगानी द्वारा उब त, पूर्वी० पृ० 60-61 ,

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