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48 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति वृक्ष लहलहाता, हराभरा नहीं होता है, उसी तरह से मोह के क्षय हो जाने पर पुन: कर्म उत्पन्न नहीं होते। जिस तरह दग्ध बीजों में से पुन: अंकुर उत्पन्न नहीं होते, उसी तरह कर्म रूपी बीजों के दग्ध हो जाने पर भव अर्थात् जनम-मरण के अंकुर उत्पन्न नहीं होते।
अत: इन कर्मों के अनुसार-फल देने की शक्ति को समझकर बुद्धिमान पुरुष नए कर्मों के संचय को रोकने का प्रयत्न तथा पुराने कर्मों के क्षय करने में सदा प्रयत्नशील रहे। जो अन्तर से राग द्वेषरूप भाव कर्म नहीं करता, उसे नए कर्म का बन्ध नहीं होता।2 सर्व कर्मों के क्षय से जीव सिद्ध मुक्त होकर सिद्धलोक में पहुंचता है। - निष्कर्षत: व्यक्ति स्वयं अपने कर्मों का उत्तरदायी है। कर्म के परिणाम उस पर थोपे नहीं जाते हैं। इसमें भाग्य जैसी किसी सत्ता का हस्तक्षेप नहीं है न ही ईश्वर का सहयोग है। व्यक्ति का पुरुषार्थ ही उसके भाग्य का नियन्ता है।
आत्मवादी विचारों का मूल-श्रमण संस्कृति
धर्म के सम्बन्ध में प्राचीनता एवं अर्वाचीनता का आग्रह एक धर्म व्यामोह का ही रूप माना जाना चाहिए। कोई विचार प्राचीन होने से ही गौरवशाली नहीं होता उसमें तेजस्विता भी होनी चाहिए। तेजस्विता, जीवनोपयोगिता, विचार को स्वयं ही गौरवमंडित बना देती है। तथापि, ऐतिहासिक अध्ययन के अन्तर्गत प्रायः पूर्वापर क्रम सम्बन्ध स्थापन किया जाता है और अध्येय विषय के प्रारम्भ बिन्दु के अनुसंधान की सहज जिज्ञासा होती है। जैकोबी के अनुसार बौद्ध और जैन धर्मों का विकास ब्राह्मण धर्म से हुआ है।4 धार्मिक जागरण से अकस्मात ही इनका जन्म नहीं हुआ है बल्कि लम्बे समय से चले आ रहे धार्मिक आन्दोलन ने इनका रास्ता तैयार किया है।
जैकोबी के मत का उल्लेख करते हुए दासगुप्त की मान्यता है कि इन दोनों नवीन धर्म व्यवस्थाओं के मार्गदर्शकों को सम्भवत: यज्ञ धर्म तथा उपनिषदों से सुझाव मिले हैं और इन्होंने अपनी प्रणालियों का निर्माण स्वतन्त्र रूप से अपने ही चिन्तन से किया है।
जैकोबी का यह मत कि जैन धर्म और बौद्धधर्म ब्राह्मण संन्यासाश्रम से निष्पन्न हैं तथा ब्राह्मणों व श्रमणों के व्रतों की समानता के आधार पर निष्पन्न हैं। जैकोबी का विचार है कि श्रमण सम्प्रदाय से ब्राह्मणों का चतुराश्रम प्राचीन है। यह भी विचार व्यक्त किया गया है कि जैनों और बौद्धों ने कालचक्र का विभाजन भी ब्राह्मण परम्परा के प्रभाव से ही किया है। उदाहरण के लिए चार महाकल्प और अस्सी लघुकल्प ब्राह्मणों के युगों एवं कल्पों के आधार पर बताये हैं। ब्रह्मा के