________________
252 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
की अग्नि शरीर है, समिधा कर्म है, होम संयम है और योग शान्ति है, सरोवर धर्म है और
वास्तविक तीर्थ ब्रह्मचर्य है। 30. वही 25/29 तथा आचारांग आत्मारामजी प्रथम द्र० 9/4/17, पृ० 734-351
बौद्धसाक्ष्यों से तुलना के लिए द्र० दी एज आफ विनय, पृ० 163-641
धम्मपद 393 द्र० भारतीय नीति शास्त्र, पृ० 661 31. दी सोशल आर्गेनाइजेशन इन नार्थ ईस्ट इण्डिया इन बुद्धाज टाइम, पृ० 30-31।
हटन का विचार है कि बुद्ध ने जातिप्रथा को लगभग नष्ट कर दिया था। द्र० कास्ट इन इण्डिया, पृ० 1171 किन्तु इस विचार को अन्य विद्वानों ने अस्वीकृत किया है। उदाहरणार्थ ई० जे० थामस, हिस्ट्री आफ बुद्धिस्ट थॉट, पृ० 110, इलियट, हिन्दुइज्म
एण्ड बुद्धिज्म, 1, पृ० 22: द्र० दी एज आफ विनय, पृ० 15। 32. बौद्धों में भी अपने ही वंश में विवाह करके रक्त को शुद्ध रखने का प्रयत्न है। द्र० फिक,
पूर्वोक्त, पृ० 52। तु० घुर्ये, कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया, पृ० 661 33. द्र० घुर्ये, कास्ट फार क्लास एण्ड आक्यूपेशन, पृ० 70-71। 34. दी एज आफ विनय, पृ० 163।। 35. आचारांग चूर्णि जिनदास गणि पृ० 93 : तु० संयुक्तनिकाय, समण ब्राह्मण सुत्त 2
नालन्दा देशी पाठ ग्रन्थमाला, बनारस, 1959 पृ० आदि 4, पृ० 234 तथा 5 पृ० 1। 36. सूत्रकृतांग एस०बी०ई०, जि० 45,9/1 पृ० 301, तु० मिलिन्द प्रश्न हिन्दी अनु० पृ०
274 में बुद्ध को ब्राह्मण कहा गया है। महावग्ग ना० दे० ग्र० 1956 पृ० 4 तथा उदान एस०बी०ई० जि० 8 पृ० 5: आचारांग आत्माराम जी महाराज लुधियाना 193, प्रथम
श्रु० 9/4/17 पृ० 7351 37. उपासकदशांग, 7 पी० एल०बैद्य, पूना 1930 पृ० 551 38. निशीथ चूर्णि 13, 4423। सूत्रकृतांग एस० बी०ई०, जि० 45, पृ० 417 में उल्लेख है
कि वेदान्ती यह मानते थे कि स्नातकों को भोजन कराने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। तु०
हजारा, पुराणिक रिकार्ड्स ऑन हिन्दू राइट्स एण्ड कस्टम्स, पृ० 2581 39. उत्तराध्ययन. 25/2933 आदि। बौद्धों ने भी इस प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं। उनके
अनसार जन्म और जाति अहंकार पैदा करते हैं. गण ही सबसे श्रेष्ठ है। इस लोक में धर्माचरण करने पर सभी वर्ण देवताओं की दुनिया में एक हो जाते हैं। सुत्तनिपात, 1,7: 3,9 फिक, पूर्वोक्त, पृ० 29, मजूमदार, कारपोरेट लाइफ इन एन्शेन्ट इण्डिया, पृ०
354-631 उत्तराध्ययन, 25/11-451 40. उत्तराध्ययन एस० बी०ई० जि० 45, अ० 25, 20-29, पृ० 138-391 41. दी एज आफ विनय, पृ० 163। 42. निशीथभाष्य, 13,4423 तथा आचारांगचूर्णि, पृ० 182।
उत्तराध्ययन 25/6-8 में ब्राह्मणों को शकुनिपारग कहा गया है। शकुनी अर्थात् चौदह विद्यास्थान जो इस प्रकार हैं - चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद छ: अंग शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छंद और कल्प तथा मीमांसा, न्याय, पुराण और
धर्मशास्त्र। 43. कल्पसूत्र (एस०बी०ई०), जि० 22, पृ० 220-21। 44. फिक, पूर्वोक्त कलकत्ता 1920 पृ० 222: द्र० गोविन्द चन्द पाण्डे, बौद्ध धर्म के विकास
का इतिहास, पृ० 22। 45. उत्तराध्ययन के पच्चीसवें अध्ययन में उन्नीसवें श्लोक से बत्तीसवें श्लोक तक ब्राह्मणों के