________________
अध्याय 1
जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं
सांस्कृतिक अध्ययन
जैन साहित्य के उद्गम की कथा का आरम्भ भगवान महावीर से होता है क्योंकि पार्श्वनाथ के समय में जैन साहित्य का कोई संकेत तक उपलब्ध नहीं है। जैन परम्परा के अनुसार, भगवान महावीर ने जिस दिन धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करना आरम्भ किया, उसी दिन पार्श्वनाथ का तीर्थकाल समाप्त हो गया और भगवान महावीर का तीर्थकाल आरम्भ हो गया। आज भी उन्हीं का तीर्थ प्रवर्तित है। अत: उपलब्ध समस्त जैन साहित्य के उद्गम का मूल भगवान महावीर की वह दिव्यवाणी है जो बारह वर्षों की कठोर साधना के पश्चात् केवल ज्ञान की प्राप्ति होने पर लगभग तैंतालीस वर्ष की अवस्था में ईस्वी सन् से पांच सौ सत्तावन वर्ष श्रावण कृष्ण प्रतिपदा' के दिन ब्राह्ममुहूर्त में राजगृह के बाहर स्थित विपुलांचल पर्वत पर प्रथम बार निःसृत हुई थी और तीस वर्ष तक नि:सृत होती रही थी।
उनकी उस वाणी को हृदयंगम करके उनके प्रधान शिष्य गौतम गणघर ने बारह अंगों में निबद्ध किया था। उस द्वादशांग में प्रतिपादित अर्थ को गौतम गणधर ने भगवान महावीर के मुख से श्रवण किया था, इससे उसे श्रुत नाम दिया गया
और भगवान महावीर उसके अर्थकर्ता कहलाये। गौतम गणधर ने उसे ग्रन्थ का रूप दिया, इसलिए वह ग्रन्थकर्ता कहलाये। भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् वही द्वादशांगरूप श्रुत गुरु-शिष्य परम्परा के रूप में मौखिक ही प्रवाहित होता रहा और श्रुतकेवली भद्रबाहु के समय तक अविच्छिन्न रहा।
जैनों के पवित्र आगम संस्कृत साहित्य से पुराने हैं। प्राचीनता की दृष्टि से जैन ग्रन्थ बौद्धों के प्राचीन ग्रन्थों से प्रतिस्पर्धा करते हैं।'
बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों की विषय सामग्री में साम्य होने के कारण बहुत से यूरोपीय विद्वानों को यह भ्रान्ति थी कि दोनों स्वतन्त्र धर्म नहीं हैं, एक-दूसरे की शाखा हैं किन्तु जैकोबी ने इस मत का सबल प्रत्याख्यान किया।
जो स्थान ब्राह्मण परम्परा में वेद और बौद्ध परम्परा में त्रिपिटक का है वही