Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 155
________________ 'वन वारी बहु बाग प्रधान, बहै 'वितस्था' नदी प्रधान । च्यार रण तिहां चतुर सुजान, नगर 'मेहरा' श्री युगप्रधान ॥88।। बड़े बड़े पातिसाह नरिंदा, जाकी सेव करे जन कंदा । 'पातिसाह श्री ओरङ्ग गाजी, गये गनीम दसो दिस भाजी 189।। जाकै राज ग्रन्थ ए कीनै, संस्कृत शास्त्र सुगमकरि दीनै । 'संवत् सतरे से बावीसा', माघ कृष्ण पक्ष छठि जगीसा ।।90।। यह संस्कृत 'सामुद्रिक' ग्रंथ का भाषा में पद्यानुवाद है । ग्रन्थ के अन्त में गुरु-परंपरा दी गई है। इसमें कुल 211 पद्य और दो 'प्रकाश' हैं। प्रथम-प्रकाश में नरलक्षण 117 पद्यों में तथा द्वितीय प्रकाश में नारीलक्षण 94 पद्यों में बताये गए हैं। इसकी पूर्ण हस्तप्रति जिनहर्षसूरि भंडार बीकानेर में सुरक्षित है। ज्ञानमेरु (17वीं शती) यह खरतरगच्छीय 'महिमसुन्दर' के शिष्य थे। इनका काल वि. 17वीं शती है । इनका लिखा 'माधवनिदान' पर 'स्तबक' (टीका) प्राप्त है। इसकी हस्तप्रति दानसागर मंडार, बीकानेर में मौजूद है। नगराज (17वीं शती ई.) . इनका विशेष परिचय नहीं मिलता। संभवत: ये बीकानेर क्षेत्र के निवासी थे। इन्होंने 'सामुद्रिक शास्त्र भाषाबद्ध' ग्रन्थ की रचना की है। इसमें 188 पद्य हैं। इसे अजयराज को समझाने के लिए लिखा गया है । अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर में इसकी संवत् 1774 (1717 ई.) लिपिकाल वाली हस्तप्रति मौजूद है। अत: इसका रचनाकाल कुछ पूर्व का होना चाहिए। पहले 121 पद्यों में नर लक्षण और बाद में 67 पद्यों में नारीलक्षण दिये हैं। अन्त में लिखा है 'सुगुन सुलछन सुमति सुभ, सज्जन को सुख देत । भाषा 'सामुद्रिक' रचों, 'अजें राज' के हैत ।।66।' पीताम्बर (1702 ई.) यह विजय गच्छीम आचार्य विनयसागरसूरि के शिष्य थे। विनयसागर सूरि अच्छे (145)

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