Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 182
________________ प्रतापसिंह के लिए की गई थी। रचनाकाल सं. 1856 (1799 ई.) वैशाख शुक्ल तीज दिया है, और रचनास्थल जयपुर नगर दिया है। 'प्रतिपों श्री 'परताप' हरि, 'माधवेस' नृपनंद' धर जंबू फुनि मेरु गिर, धूतारी रविचंद ।।172॥ 'रस6 सेर5 अरु गज8 इंदुl (1856) फुनि, माधव मास उदार, शुकल तीज तिथ तीज दिन, जयपुर नगर मझार ।। 17311' (ग्रंथांत) इस ग्रन्थ की रचना के संबंध में कवि ने लिखा है - 'ग्रन्थ करी षट रस भरो, वरनन 'मदन' अखंड, जसु माधुरि तातै जगति, खंड खंड भई खंड ।।। 75।। सुधरनि जन मत रस दिये, रस भोगवि सहकार । 'मदन उदीपन' ग्रंथ यह, रच्यो रुच्यो श्रीकार ।। 176।। जग करता करतार है, यह कवि वचन विलास, पैंया मति को खंड है, है हम ताके दास ।।177।। कवि ने जयपुर नरेश माधवसिंह के संबंध में ‘माधवसिंहवर्णन' (र. का. सं. 1899, भाद्र., वदि 11) और प्रतापसिंह के बारे में आशीर्वादात्मक गुणवर्णन परक 'समुद्रबद्धचित्र कवित' (सं. 1853 के लगभग) रचनाएं भी की थीं। ज्ञानसार की कृतियों का वर्णन 'जैन गुर्जर कविओ' भाग 3, खंड 1, पृ. 260 से 274. तथा 'हिन्दुस्तानी' वर्ष 1 अंक 2 में प्रकाशित 'नाहटा के' लेख 'श्रीमद ज्ञानसार और उनका साहित्य' में देखें। लक्ष्मीचन्द जैन (1880 ई.) यह पचारी नगर (?) के निवासी थे। इन्होंने अपनी गुरुपरम्परा के विषय में कृति (लक्ष्मीप्रकाश) के अन्त में निम्न पंक्तियों में परिचय दिया है "शहर पचारी' शुभ वसो जैनि जन को वास । ता बिच मंदिर जैन को भगवत को निज दास ।। निज सेवक हैं भक्तजन बुध 'कुशाल और चंद' । ता कुल को अरुमान है ताकै शिष्य 'नणचंद' ॥ ताकइ शिष्य 'मोतीराम है ताक शिष्य श्रीलाल । ताक शिष्य 'लक्ष्मीचंद' है ताकै शिष्य 'महिलाल' ।। 1 देखें मेरा लेख-'प्रायुर्वेद जगत को राजस्थान के जैन विद्वानों की देन - पं. चैनसुखदास स्मृति ग्रंथ (जयपुर, 1976), पृ. 294-295 [172]

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