Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 176
________________ 'नगर 'मुरादाबाद' को वासी 'द्विज जसवंत' । नगर 'सुधासर' आई कर ऐसे वचन कहंत ।। 'गंगयति' कवि वृन्द नृप ! 'माधव कठिन निदान'। ताके अब भाषा र चो जाने जान सुजान ।। 'गंगयति' कवि सुनत ही चित अनुकंपा. धार । थोड़े में बहुमत धरी भाषा करी सुधार ॥' (अध्याय 1) इसकी रचना अमृतसर में महाराजा रणजितसिंह के काल में वि. सं. 1878 (182 1ई.) वैशाख सुदि 2 गुरुवार को पूर्ण हुई थी। उस समय नानकशाही सं. 352 था । 'संवत् विक्रमराज को आठ सात वसु एक । राध मास थित दूज को सुठ गुरुवार विवेक ।। संवत् नानक शाहि का सहसवेद तत्वजान । नैन सु बहुत बखानिये गुनि ज न करहु ध्यान ।। ग्रन्य उदै तह दिन भयो पूपन जेम अमाश । देह भूमि को रोग तम सभ को करे प्रकाश ।।' इस ग्रन्थ का नाम लेखक ने 'यति-निदान' रखा है। इसमें सर्वत्र जैनधर्म के प्रति आस्था, निष्ठा और गुरु के प्रति सम्मान की भावना परिलक्षित होती है । इस ग्रंथ में पच्चीस अध्याय हैं। पहले चौबीस अध्यायों के प्रारम्भ में क्रमशः एक एक जैन तीर्थङ्कर को नमस्कार किया गया है और पच्चीसवें अध्याय में गुरु सूरतराम की स्तुति की गई है। चौबीस तीर्थङ्करों के नाम इस प्रकार हैं-1. ऋषभदेव या आदिनाथ, 2. अजितनाथ, 3. सम्भवनाथ, 4. अभिनन्दन, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभ, 7. सुपार्श्वनाथ, 8. चन्द्रप्रभ, 9. सुविधिनाथ, 10. शीतलनाथ, 11. श्रेयांसनाथ, 12. वसुपूज, 13. विमलनाथ, 14 अनन्तनाथ, 15. धर्मनाथ, 16. शान्तिनाथ, 17. कुन्तनाथ 18. अरनाथ, 19. मल्लिनाथ. . 0. मुनि सुव्रत, 21. न मिनाथ, 22. न मिनाथ, 23. पार्श्वनाथ, 24. महावीर । ग्रंथारम्भ में ऋषभदेव के बाद पार्श्वनाथ, गणपति, शारदा, धन्वन्तरि और शंकर की वंदना की गई है। गगाराम ने इस रचना से पहले चरक, धन्वन्तरि, सुश्रुत, वाग्भट, हारीत, भोज आदि के ग्रंथों व अन्यतंत्रों का अध्ययन किया था। यति निदान में माधवकर द्वारा विरचित 'माधवनिदान' के अनुसार रोग, भेद, साधासाध्यता, उपद्रव और अरिष्ट लक्षणों का विस्तार से वर्णन किया है । यह हिन्दी में दोहे और चौपाई छन्दों में लिखा गया है। भाषा पर पंजाबी प्रभाव दिखाई पड़ता है। अधिकारों या अध्यायों का विषयविभाजन इस प्रकार है-- 1. पंचनिदान और ज्वर, 2. अतिसार-प्रवाहिका, 3. संग्रहणी, 4. अश, 5. अजीर्ण, 6. क्रिमि रोग, पांडुरोग, 7. रक्तपित्त, राजयक्ष्मा, उरःक्षत, 8. कासरोग, हिक्का, श्वास रोग, 9. स्वरभेद-अरोचक-दि-तृष्णा, 10. मूर्छा-भ्रम-निद्रा-तंद्रा-सन्याप [16

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