Book Title: Jain Aayurved Ka Itihas
Author(s): Rajendraprakash Bhatnagar
Publisher: Surya Prakashan Samsthan

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Page 190
________________ पद्मरस (1527 ई.) मैसूर नरेश चामराज के आदेश से 'पद्मण्ण पंडित' या 'पद्मरस' ने 1527 ई. में 'हयसारसमुच्चय' नामक ग्रन्थ को रचना की थी। इसमें घोडों की चिकित्सा का वर्णन है। पद्मरस भट्टाकलंक का शिष्य था। यह दिगम्बर जैन था । पद्मरस जैनशास्त्रों का उच्चकोटि का विद्वान् था। मंगराज या मंगरस (द्वितीय) इसका रचित 'मंगराजनिघण्टु' ग्रन्थ है। यह अप्रकाशित है । मंगराज या मंगरस (तृतीय) कन्नड़ साहित्य में विभिन्न कालों में होने वाले तीन मंगरस माने जाते हैं(1) मंगरस प्रथम-'खगेन्द्रमणिदर्पण' का कर्ता (2) मंगरस द्वितीय-'मंगराजनिघण्टु' का कर्ता (3) मंगरस तृतीय-'सूपशास्त्र' आदि ग्रन्थों का कर्ता ।। मंगरस तृतीय का काल 16वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है। यह क्षत्रिय था। इसका पिता चेंगाल्व सचिवकुलोद्भव कल्लहल्लिका विजयभूपाल था जो वीरमोघ भी था। माता का नाम देविले और गुरु का नाम चिक्कप्रभेन्दु दिया है। इसकी प्रभुराज, प्रभुकुल और रत्नदीप-उपाधियां थीं। सूपशास्त्र के अलावा इसके जलनृपकाव्य, नेमिजिनेशसंगति, श्रीपालचरिते, प्रभंजनचरिते और सम्यक्त्वकौमुदी ग्रन्थ हैं। 'सूपशास्त्र' पाकशास्त्र संबंधी ग्रन्थ है। यह कन्नड़ भाषा में 'वार्धक षट्पदि' नामक छंद में 356 पद्यों में पूर्ण हुआ है। यह पिष्टपाक, पानक, कलमन्नपाक, शाकपाक आदि पाकशास्त्र के संस्कृत ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है। इस ग्रन्थ में इन ग्रंथों का उल्लेख है। मंगरस के अनुसार पाकशास्त्र स्त्रियों के लिए अत्यन्त प्रिय और उपयोगी है । रसनेन्द्रियतुष्टि से ही लौकिक और परलौकिक सुख मिलता है । ___मंगरस का सूपशास्त्र ग्रंथ प्राच्य संशोधनालय, मानसगंगोत्री, मैसूर से प्रकाशित हो चुका है। साल्व (16वीं शती, उत्तरार्ध) यह बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न जैन कन्नड़ कवि था। इसके पिता का नाम धर्मचंद्र 1 ज. सा. वृ. इति., भाग 7, (1981) पृ. 87 [180]

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