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श्रीहर्षचंद्र रचित
हीरपद
(राग फरजकी । राग जोगीया) जिन गुरु चरणकमल चित दीना तिन जनम सफल कर लीना । सो नर सब तीरथ कर आयो जोग जग्य तप कीना ॥ जि० ॥ १ ॥ ताहीके घट प्रगट भयो है समकितसार षजीना ॥ जि० ॥ २ ॥ जग वेद पुराण पढ्यो ‘सोइ. शास्त्र सो नर परम प्रवीना । तिन ही तत्व ग्यांन मथ काढ्यो निज स्वरुप तिन चीणा ॥ जि० ॥ ३ ॥ जिन गुरु परमेश्वर गुरु ही पारस गुरु करुणा रस भीना ।। हरषचंद गुरुकी महिमा - मोपें जात कही ना ॥ जि० ॥ ४ ॥
इति हीरपदम्
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