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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी.
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अथ माषकः ( उरद की बरी ) | माषाणां पिष्टिका हिंगुलवणादक संस्कृता । तया विरचिता वत्रे वटिकाः साधुशोषिताः ॥५७॥ भर्जितास्तप्ततैलैस्ता अथवाम्बुप्रयोगतः । वटकस्य गुणैर्युक्ता ज्ञातव्या रुचिदा भृशम् ॥५८॥
की पट्टी में हींग, लोन तथा अदरक मिलाकर कपडेपर बडी तोडपर स्खाले थे। यह बडी ते में डालकर अथवा पानी डालकर पकाये । यह बड़ी बडों के सदृश गुणदाली हैं और अत्यन्त रुविकारक हैं ॥५७॥५८॥ अथ कूष्मांड कवटी (पेठेकी बरी ।
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कूष्मांड कवटी ज्ञेया पूर्वोक्तवटिका गुणा । विशेषात्पित्तरक्तघ्नी लघ्वी च कथिता बुधैः ॥५९॥ पैकी बडी भी पूर्वोक्त बडीके सदृश गुणवाली है, विशेष करके रक्तपि मशक और दृष्ट की है ॥ ५९ ॥
अथ मुद्रवटी (मूंगकी बरी )
सुगानां वटिका तद्वदुचिता साधिता तथा । पारुच्या तथा लध्वीमुद्रमुपगुणास्मृता ॥ ६० ॥ उपरोक्त प्रकारही मूँग की बडी बनावे | यह बडी-रुचिकरी, हलकी और मूंग की दाल के समान गुणवाली है ॥ ६९ ॥
अलीकमत्स्य | माषपिष्टिकया लिप्तं नागवल्लीदलं महत् । तत्तु संस्वेदयेत्या स्थाहयामास्तारकोपरि । ततो निष्कास्य तत्खण्डचं ततस्तैलेन भर्जयेत् ॥ ६१॥ खण्डचं खंडेन योज्यमिति यावत् ।