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________________ (४०६ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. 1 अथ माषकः ( उरद की बरी ) | माषाणां पिष्टिका हिंगुलवणादक संस्कृता । तया विरचिता वत्रे वटिकाः साधुशोषिताः ॥५७॥ भर्जितास्तप्ततैलैस्ता अथवाम्बुप्रयोगतः । वटकस्य गुणैर्युक्ता ज्ञातव्या रुचिदा भृशम् ॥५८॥ की पट्टी में हींग, लोन तथा अदरक मिलाकर कपडेपर बडी तोडपर स्खाले थे। यह बडी ते में डालकर अथवा पानी डालकर पकाये । यह बड़ी बडों के सदृश गुणदाली हैं और अत्यन्त रुविकारक हैं ॥५७॥५८॥ अथ कूष्मांड कवटी (पेठेकी बरी । 7 1. कूष्मांड कवटी ज्ञेया पूर्वोक्तवटिका गुणा । विशेषात्पित्तरक्तघ्नी लघ्वी च कथिता बुधैः ॥५९॥ पैकी बडी भी पूर्वोक्त बडीके सदृश गुणवाली है, विशेष करके रक्तपि मशक और दृष्ट की है ॥ ५९ ॥ अथ मुद्रवटी (मूंगकी बरी ) सुगानां वटिका तद्वदुचिता साधिता तथा । पारुच्या तथा लध्वीमुद्रमुपगुणास्मृता ॥ ६० ॥ उपरोक्त प्रकारही मूँग की बडी बनावे | यह बडी-रुचिकरी, हलकी और मूंग की दाल के समान गुणवाली है ॥ ६९ ॥ अलीकमत्स्य | माषपिष्टिकया लिप्तं नागवल्लीदलं महत् । तत्तु संस्वेदयेत्या स्थाहयामास्तारकोपरि । ततो निष्कास्य तत्खण्डचं ततस्तैलेन भर्जयेत् ॥ ६१॥ खण्डचं खंडेन योज्यमिति यावत् ।
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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