Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
केवल व्यक्ति के आन्तरिक विकास को ही संस्कृति मान लेने से संस्कृति का क्षेत्र अत्यन्त संकुचित हो जाएगा, क्योंकि संस्कृति में तो व्यक्ति के बाह्य विकास को भी शामिल किया जाना चाहिए। मैलिनोवस्की के अनुसार
"संस्कृति में पैतृक निपुणताएं, श्रेष्ठताएं, कलागत प्रियता, विचार, आदतें और विशेषताएँ सम्मिलित रहती हैं, अतः संस्कृति का सम्बन्ध दर्शन और धर्म से लेकर सामाजिक संस्थाओं तथा रीति-रिवाजों तक मानव जीवन की समस्त महत्वपूर्ण विचार प्रणालियों से है। 15
संस्कृति सिर्फ पैतृक निपुणता या विशेषताओं का नाम नहीं है, क्योंकि संस्कृति समय, स्थान एवं परिस्थितियों के अनुरूप बदलती रहती है। डॉ. रामजी उपाध्याय के अनुसार
"संस्कृति वह प्रक्रिया है जिससे किसी देश के सर्वसाधारण का व्यक्तित्व निष्पन्न होता है। 16
संस्कृति एक व्यापक अवधारणा है इसे किसी देश विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता है। कन्हैयालाल मुंशी के अनुसार
"संस्कृति जीवन के उन सम तोलों का नाम है जो मनुष्य के अन्दर व्यवहार, ज्ञान और विवेक पैदा करते हैं।''17
___ यह परिभाषा एकपक्षीय है क्योंकि व्यक्ति के केवल आन्तरिक गुणों को ही नहीं अपितु उसके रहन-सहन, खान-पान तथा चाल-चलन आदि बाह्य तत्त्वों को भी संस्कृति का अविभाज्य अंग माना जाता है। अलबर्ट आइन्सटाइन के अनुसार
"संस्कृति वह है जो व्यक्ति की आत्मा को मांझकर दूसरों के उपकार के बदले (एवज) में उसे नम्र और विनीत बनाती है अर्थात् व्यक्ति का सांस्कृतिक महत्व इस बात पर निर्भर करता है कि उसने अपने अहम् से अपने को कितना बन्धन मुक्त कर लिया है।"18
आइन्सटाइन ने संस्कृति को मात्र आध्यात्मिकता के आइने में देखा है, उन्होंने संस्कृति में से भौतिकता को पूर्णतः दरकिनार कर दिया है, जो उपयुक्त
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