Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
मिलता है।508 ये समाज सेवा में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे । नन्दमणियार श्रेष्ठी ने बहुत-सा धन व्यय करके पुष्करिणी, वनखण्डों, चित्रसभा, महानसशाला, चिकित्सा केन्द्र और अलंकार सभा का निर्माण करवाया, इनमें अनेक बेरोजगारों को रोजगार मिला 1509
शूद्र और उनका कर्म
तीन वर्णों और भिक्षुओं की सेवा शुश्रूषा करना एवं उनके आश्रय से आजीविका चलाना, बढ़ईगिरी आदि कार्य करना, नृत्य गान आदि करना एवं शिल्पकर्म ही इनके मुख्य कार्य हैं। 10
ज्ञाताधर्मकथांग में कुंभकार आदि अट्ठारह जातियाँ, नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विंडवक, कथाकार, प्लवक, नृत्यकर्ता, चित्रपट दिखाने वाले, तूण - वीणा बजाने वाले, तालियाँ पीटने वाले, तालाचार", प्रेक्षणकारि, पेषणकारिणी 2, नापित 13, मयूर पोषक 14, खिवैया (नौका चलाने वाले ) 15, सुवर्णकार 16, चित्रकार 17, कुब्जा आदि दासियाँ 18, वास्तुशास्त्र ( शिल्प) के ज्ञाता 19, करोटिका (कावड़ उठाने वाले), घसियारे, लकड़हारे 20 आदि शूद्र कर्म वाली जातियों का उल्लेख मिलता है ।
आश्रम व्यवस्था
वैदिक परम्परानुसार जैन आगमों में आश्रम व्यवस्था का उल्लेख तो नहीं मिलता लेकिन प्रकारान्तर से इन आश्रमों का महत्व जीवन के विराम स्थल तक उत्तरोत्तर अधिक विशुद्धि प्राप्त करने के रूप में परिलक्षित हो ही जाता है । ज्ञाताधर्मकथांग के विशेष संदर्भ में आश्रम व्यवस्था का निदर्शन इस प्रकार हैब्रह्मचर्य आश्रम
इस आश्रम में ज्ञान की उपासना की जाती है । ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार आठ वर्ष की अवस्था में राजकुमारों को जीवनोपयोगी कलाएँ सीखने के लिए आचार्य के पास भेजा जाता था । 521 आचार्य लेखन, गणित, अर्थ संबंधी ज्ञान, अन्नपान विधि, पशु-पक्षियों संबंधी ज्ञान, ज्योतिष, अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान, युद्ध, व्यूह रचना आदि के साथ-साथ ललित कलाओं का ज्ञान अपने शिष्य को रवा 1522
गृहस्थाश्रम
मनुस्मृति में सभी आश्रमों में इस आश्रम को श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि
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