Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन ज्ञात होता है कि तुंगिया नगरी के श्रमणोपासक वृद्धि के लिए धन को ब्याज पर देते थे।(2 ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि राजगृह नगरी में धन्य सार्थवाह पूँजी के लेन-देन का बड़े पैमाने पर व्यवसाय करता था । द्वारका नगरी में थावच्चा गाथापत्नी भी लेन-देन का व्यवसाय करती थी 104
शिल्प-कर्म
जैनागमों में शिल्पकर्म का उल्लेख विभिन्न स्थानों पर मिलता है। दशवैकालिक चूर्णि में शिल्पकर्म से अर्थोपार्जन का उल्लेख है ।" आवश्यक चूर्णि में कहा गया है कि जब भोगयुग के बाद कर्मयुग का प्रारम्भ हुआ तो ऋषभदेव ने अपनी प्रजा को विभिन्न प्रकार के शिल्प सिखाए। उन्होंने सर्वप्रथम कुम्भकार का कर्म सिखाया। उसके बाद पटकार - कर्म और वर्धकीकर्म (वास्तुशिल्प) सिखाया, तत्पश्चात् चित्रकर्म, फिर रोम, नख वृद्धि होने पर नापितकर्म आदि सिखाए।" कल्पसूत्र से ज्ञात होता है कि नगर उद्योगों के केन्द्र थे। राजा सिद्धार्थ के यहाँ नगरशिल्पियों द्वारा निर्मित सुन्दर और बहुमूल्य वस्तुओं का बाहुल्य था ।17 शिल्पकलाओं में निपुणता प्राप्त करने हेतु लोग शिल्पाचार्य के पास जाते थे । जातक कथा से ज्ञात होता है कि राजा ब्रह्मदत्त का पुत्र एक हजार मुद्रा लेकर गुरु के पास शिल्प सीखने गया था । 9 प्रायः सभी प्रकार के शिल्पी अपने-अपने व्यवसाय के संवर्धन के प्रति सचेष्ट थे । इसी कारण वे निगम, संघ, श्रेणी, पूरा जैसे संगठनों में संगठित थे 170
संरक्षण और
और निकाय
ज्ञाताधर्मकथांग में कुम्भकार आदि अट्ठारह श्रेणियों और उपश्रेणियों का उल्लेख मात्र हुआ है, लेकिन वे 18 श्रेणियाँ - उपश्रेणियाँ कौनसी हैं, इसका विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता। केवल यही उल्लेख मिलता है कि राजकीय उत्सवों पर राजा इन श्रेणियों का सम्मान किया करते थे । राजा श्रेणिक ने पुत्रजन्म के अवसर पर 18 श्रेणियों और उपश्रेणियों को आमंत्रित कर सम्मानित किया था ।" जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में शिल्पियों की 18 श्रेणियों का उल्लेख मिलता है/2
1.
कुम्भकार- (कुम्हार - मिट्टी के बर्तन बनाने वाले)
2.
पटइल्ला - (तंतुवाय, पटेला - रेशम बनाने वाले)
3.
सुवण्ण्कारा- (स्वर्णकार- सोने का काम करने वाले) सूवकारा- (रसोइया)
4.
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