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गृहस्थ विशेष देशना विधि : २४७ -~-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबका साधन शरीर ही है अतः पूर्वोक कार्योंद्वारा यत्नसे शरीरकी रक्षा करना चाहिये। बाललम, कसरतको अभाव तथा आरोग्य नियमोकी अनितासे हमारा शारीरिक बल बहुत घट गया है।
तथा तदुत्तरकार्यचिन्तेति ७ि८॥ (२११)
मृलार्थ-और (शरीर स्थितिके लिये) भविष्य के कार्योकी चिता करे ॥७८॥
विवेचन-तत्तरकार्य- शरीरकी स्थितिके लिये आवश्यक बादमें करनेके कार्य अर्थात् धनोपार्जन आदि, चिन्ता-विचार करना।
शरीरकी स्थिति के लिये अन्नपान आदि आवश्यक है तथा स्वजन परिवारका निर्वाह भी आवश्यक है, इसके लिये द्रव्यको आवश्यकता रहती है, अत. द्रव्य उपार्जन करने के लियें, धन कमानेके लिये व्यापार आदि उद्यम या कार्य करे। श्रावक निरुधमी न बैठे पर निर्वाहके लिये आवश्यक द्रव्यकी उत्पत्ति के लिये प्रयत्न करे। तथा-कुशलभावनायां प्रवन्ध इति ॥७९॥ (२१२)
मुलार्थ-शुभ भावनाओंमें चित्तको लगाना चाहिये॥७९॥ 'विवेचन-कुशल भावनाओं के बारेमे कहा है कि--
'सर्वेऽपि सन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् पापमाचरेत् " ॥१३२॥
--सर्व प्राणी सुखी हो, सब निरोगी हों, सर्व कल्याणको प्राप्त हों तथा कोई भी पापाचार न करे।