Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 9
________________ टोलत-बैनपदसंग्रह। जिया तुम चालो अपने देश, शिवपुर यारो शुभ. थान । जिया० ॥ टेक ॥ लख चौरासीम बहु मटके, लयौ न सुखरो लेश ॥ जिय० ॥१॥मिध्यारूप घरे बहतेरे, भटके बहुत विदेश | जिया० ॥२॥ विषयाविक बहुत दुख पाये, भुगते बहुत कलेश ॥ जिया० ॥ ३॥ भयो तिरजच नारकी नर सुर, करि करि नाना मेप ।। जिया० ॥ ४ ॥ दौलत राम तोड जगनाता, सुनो सुगुरु उपदेश । जिया० ॥५॥ जय जय जग-भरम-तिमर, हरन जिन धुनी ॥ टेक ।। या विन समुझे अौं न, सौंज निज मुनी । यह लखि हम निजपर अवि-वेकता लुनी ।। जय जय० ॥ १ ॥ जाको गनराज अंग, पूर्वमय चुनी । सोई कही है कुन्द कुन्द, प्रमुख बहु मुनी !! जय जय० ॥२॥जे चर जड भये पीय, मोह वारुनी । तत्व पाय चेते जिन, यिर सुचित सुनी ॥ जय जय० ॥ ३ ॥ कमल पखारने. हि, विमल सुरधुनी । तज विलर भंव करो, दौल र पुनी।। जय जय० ॥४॥ अव मोहि जानि परी, भवोदधि तारनको है बैन ।

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