Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ दौलत - जैनपदसंग्रह | चौक सुहाई । हाहा हू नारद तुम्वर, गावन श्रुति सुग्वदाई || चलि० ॥ २ ॥ तांडव नृत्य न हरिन तिन, नव नम्र गुर्गे नचाई | किन्नर कर घर बीन बजावत हगमनहर छवि छाई ॥ चलि० || ३ || ढोल तासु प्रभु ॥ ॥ महिमा सुर, गुरु पै कहिय न जाई । जाके जन्म समय नरमनमें, नारकि साना पाई || चलि० || १ || १२ जय श्री सुषम जिनेन्द्रा | नाम तो करो मी मेरे दुखदंदा || पातु मरुदेवी प्यारे, पिता नाभिके दुलारे, वंश तो ख्वा वैसे नमवीच चंदा ॥ जय श्री० ॥ १ ॥ कनक चरन तन; मोहन भविक जन, रनि शशि कोटि लार्जे, लाजै मकरन्दा || जय श्री० ॥ २ ॥ दोप तौं घठारा नासे, गुन छियालीम भासे, अष्टकर्म काट स्वामी, भये निरकं ॥ जा श्री० ॥ ३ ॥ चार ज्ञानधारी गनी, पार नाहि पाव सुनी, दौलन नपत सुख चाहत अमंदा || जय श्री० ॥ ४ ॥ १३ मत कीडयो जी यारी, ये भोग भुजग सप जानके, मत कीज्यों० ॥ टेक ॥ भुजप डमत उरुवार नसत है, ये अनंत मृतुकारी | तिमना पा वढै इन मे, ज्यों पीये जन १ सर्प | २ मृत्युके करने वाले । *

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