Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 65
________________ दोस्त- जैनपदसंह | # बाधा टारन करन रली रे || पति० ॥ १ ॥ वह कारी परसौ रवि ठानत, मानत नाहि न मीस भली रे । वह गोरी निईगुण सहवारिनि, रमत सदा स्वमाधि-लो रे ॥ कृपति० ॥ ॥ २ ॥ बा संग कुयल कुयोनियों निन, तहां महादुसबेल फली रे । या संग रसिक भक्निकी निजमें, पग्निवि दौल भई न चेली रे ॥ कुमति० ॥ ३ ॥ ९३ गुरु वहत सीख इमि पर वार, a farयनको टार टार || गुरु० ॥ टेक ॥। इन सेवत अनादि दुख पायो, जनम मरन वहु धार धार | गुरु० ॥ १ ॥ कर्माधित वाघाजुत फांसी, बन्त्र चढावन द्वंदकार | गुरु० ॥ २ ॥ ये न इन्द्रिके तृप्तिहेतु जिमि, तिसै न बुभावत सारेंवार | गुरु० ॥ ॥ ३ ॥ इनमें सुख कलपना अवुधके, चुवजन मानत दुख प्रचार | गुरु० ॥ ४ ॥ इन तमि ज्ञानपियूष चख्यौ दिन, बौल लदी भगवार पार गुरु० ॥ ५ ॥ ९४ घडि घटि पल पल छिन छिन निश्श दिन, प्रभुबीका सुमरन करले रे । घटि० ॥ टेक ॥ मधु सुमिरे पाप क हैं, जनममरनदुख हरले रे || घटि घडि ० ॥ १ ॥ मनवच १ ज्ञान गुण सहचारिणी । २ फिर चलायमान न हुई । ३षा | ४ बारा पानी |

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