Book Title: Daulat Jain Pada Sangraha Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ श्रीवीतरागाय नमः दौलत-जैनपदसंग्रह। मंगलाचरण स्तुति। दोहा। मल-ज्ञा-बायक तदपि, निजानंदरसलीन । सो जिनेन्द्र जयवंत निन, अगिजरहम विहीन ॥१॥ पद्धरिकन्द । जय वीतराग विज्ञानपुर । जय मोहतिमिरको हरन र ॥ जय वान अनंतानंत पार । हगमुख वीरन-मंडित अपार ॥२॥ जय परप शानिमुद्रा समेत । भविजनको निज-अनुअतिहेत ।। भवि मागन-वश जोगे वशाय । तुम धुनि सुनि विभ्रम नसाय ॥३।। तुम गुण चिंतत निजपर-विवेक । मगरे, १चार पातिया कमाने रहित । २ अनन्तदर्शन, मनम्तन, मनन्त चौर्य । ३ मन्जनों भाग्यसे । मनपचनकायके गोगो कारण ।Page Navigation
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