Book Title: Dan Shasanam
Author(s): Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govindji Ravji Doshi

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ विषयानुक्रमणिका NAAMKAARoomsohnnnnnoon. AAAAAAAAAAAAA moromance2222000000000002020mmonom000000000000000000000000 - - - पृष्ठ श्लोक ९२ जिनोत्सवादिमें एकाग्रचित्तको आवश्यकता ४४ ५९ ९३ संयमियोंके हृदयमें क्रोधोद्रेक करनेवाला हिंसक है ४४ ९४ साधुओंके चित्तमें विकार उत्पन्न करने का निषेध १४ ९५ सज्जनोंकी वृत्ति कमल के समान है ९६ पापका पश्चात्ताप करनेसे जैनी बनते हैं ९७ गर्वादिको छोडकर देवगुरु आदिकी सेवा करें। ९८ लोकमें पुण्यात्मा और पापीयोंकी प्रवृत्ति ९९ अस्थिर चित्तवाले पुण्यसंचय नहीं करते ६६ १०० कोई अहंकारसे विघ्न डालते हैं ४७ ६७ १०१ उत्सवमें लोगोंकी प्रवृत्ति ४७६८-६९ १०२ जन्मसफल करनेका उपदेश ४८ ७०.७१ १०३ जिनपूजोत्सवमें क्रोध मत करो ४९ ७२ १०४ धार्मिकजनोंकी प्रवृत्ति ४९ ७३ १०५ धर्मार्थधनव्ययका उपदेश ५० ७४ १०६ मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टिका परिणाम ५० . ७५ १०७ देवार्चकके सत्कार करनेका उपदेश . ५१ ७७ १०८ जिनमंदिरमें वर्जनीय क्रियाएं ५१.५२ ७८-८० १०९ जिनालयमें सभ्यवृत्तिका उपदेश ११० जिनालयमें क्रोधादिक शांत करनेका उपदेश ५४ ८२ १११ आत्माको शुभकार्यमें ही प्रवृत्त करें ५४ ११२ जिनेंद्रचरणचर्चित पुष्पगंधोदकादिको धारण करनेका उपदेश ५४ ८४ ११३ धारण करने का प्रयोजन ५५ ८५ ११४ गंधोदकादिक भोगकी इच्छासे ग्रहण न करें ५५ ११५ शुद्धयादिके लिए गंधोदक लगानेका उपदेश । ५५

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 380