Book Title: Chandanbala Author(s): Mishrilal Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 9
________________ माँ ! मैं बहुत दुखी हूं। यहां धर्म शाला कहां है ? 1 प्रौढ़ महिला उसे लेकर घर आई। प्यार स्नेह पूर्वक भोजन कराया और... ROUD (0) अरे! मेरे रहते मेरी बेटी धर्मशाला में रहेगी? चल बेटी ! क्या सोच रही है? मैं तुझे बेटी की तरह रखूंगी। "माता के समान व्यवहार । की आशा से वह उस महिला के साथ चल दी। Dire चन्दनबाला ! मैं तुझ से अब कुछ छिपाना नहीं चाहती। मैं गणिका हूं। तुझे नाचना, गाना पड़ेगा। यदि मेरा कहना नहीं मानेगी तो रूप की हाट में बेच दूंगी। मेरी बात मान ले । धर्म और आदर्श की बातें रहने दे| अब तुझे कोई नहीं बचा सकता । 30050 'बेटी | यह तेरे रहने का कमरा है। यहां सब सुविधाएं तुझे प्राप्त होंगी आराम से रह । COOOOOO 0000000 माँ | मैं नीच काम नहीं करूंगी। चाहे मुझे प्राण भी गंवाने पड़े। नारी का चरित्र ही उसकी सुन्दरता है | यह असम्भव हैPage Navigation
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