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आग्में द्वीपे अठाई महोबव, करता भक्ति विशाल जी ॥ खीमाविजय जिनवरनी ठवणा, चोसठि सय. अडयाल जी॥४॥ इति ॥
॥ अथ एकादशानी स्तुति ॥ . नेमसिरने श्रीनारायण, प्रश्न करे पाय वंदी जी ॥ सकल पर्वमा जेह महाफल, ते मुज कहो आणंदी जी ॥ जिन कहे जे एक मौन एकादशी, वर्षो वर्ष आराधे जी ॥ चउविहार उपवास पोसहशु, ते शिव संपद साधेजी ॥ १ ॥ दश क्षेत्रे पांच पांच कल्याणक, सर्व मली पंचास जी ॥ त्रिहुं काळं ते त्रिगुणाकरता, थाये दोढसो विलास जी ॥ मागसिर शुदि एकादशीने दिने, ते जपमाली गणियें जी ॥ संपदा सघळी सन्मुख थाये, आपदा सवि अविगणियें जी ॥२॥ प्रतिमा ज्ञान पूजा उपगरणा, प्रत्येकें अगीयारजी ॥ फल पक्वान्न मेवा, बहु ढोवा, स्वामी वत्सल सार जी ॥ गुरु वचने एम मौन एकादशी, उजमगुंजे करशे जी ॥ सुव्रत श्रेष्टी तणी परे ते नर, शिवकमला सुख वरशे जी ॥ ३ ॥ देव देवी जे
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