Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Author(s): Purvacharya
Publisher: Master Umedchand Raichand
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीमान, पूर्वाचार्यकृत ॥ (॥श्री चैत्यवंदन स्तुति स्तवनादि॥संग्रह) चतुर्विध रांघने हमेश उपयोगमा लेवा निमित्ते तपगच्छना पुज्यपाद गुरुणीजी महाराजश्री श्री १००८ श्री गनश्रीजी तेमनी शिष्या ।। मानश्रीजी, चतुरश्रीजी, वीरश्रीजीना सदुपदेशथी |) ।। मारवाड देशना शिरोहि इलाकाना जाताल, पाडीव, भुतगाम विगेरे गामोना.सद्ग्रहस्थों अने सुश्राविकाओनी तरफथी मलेल द्रव्य सहायवहे छपावी प्रसिद्ध करनार-खंभातनिवासी मास्तर उमेदचंद रायचंद पांजरापोल--अमदावाद infliate timufthroom ANALESARIRELATEael आवृत्ति त्रीजी-प्रत १००० संवत १९८९-वीर संवत २४५९-सने १९१२ किंमत बार आना आ पुस्तकनी आवक ज्ञान खातामां वपराय छे. Rhes SHARE मुद्रक-मुळचंदभाइ त्रिकमलाल पटेल सूर्यप्रकाश प्रीन्टींग प्रेस पानकोर नाका-अमदावाद For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S ॥ श्रीमान् पूर्वाचार्यकृत ॥ (श्री चैत्यवंदनस्तुति स्तवनादि॥संग्रह) ( चतुर्विध संघने हमेश उपयोगमां लेवा निमित्ते तपगच्छना ( पुज्यपाद गुरुणीजी महाराजश्री श्री १००८ श्री मगनश्रीजी )) तेमनी शिष्या मानश्रीजी, चतुरश्रीजी, वीरश्रीजीना सदुपदेशथी ) मारवाड देशना शिरोहि इलाकाना जावाल, पाडीव, भुतगाम । विगेरे गामोना सदग्रहस्थो अने सुश्राविकाओनी तरफथी ___ मलेल द्रव्य सहायवडे छपावी प्रसिद्ध करनार-खंभातनिवासी मास्तर उमेदचंद स्यचंद पांजरापोल--अमदावाद र आवृत्ति रोजी-प्रत १२... संवत १९८९-वीर संवत २४५९-सने १९४१ किंमत बार आना आ पुस्तकनी आवक शान खातामां वपराय छे. मुद्रक-मुळचंदभाइ त्रिकमलाल पटेल सूर्यप्रकाश प्रीन्टींग प्रेस पानकोर नाका-अमदावाद NAMITICI PHATIT For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक छपाववाने द्रव्यनी सहाय आपनार सजनोना नामोनू लीस्ट ५०० बाइ पुरी जावालवाला नवलमलजी उमाजीनी भार्या १०० बाइ लाली जांवालवाला मनरुपजी गलाबचंदजीनी भायों १०० बाइ भुरी पाडीववाला ढुंगाजी हीन्दुजीनी भार्या १०१ बाइ कंकु पाडीववाला नवलमलजी पानाचंदजीनी भार्या ५० बाइ भीखी जावालवाला नवलमल हीराजीनी भार्या ५० बाइ चंपा जावालवाला भभुतमल केसरीमलजीनी भार्या २५ नता मोतीजी जाबालवाला २५ रासा शुराजी जावालवाला २५ कस्तुरनताजी भुतगामवाला ३० बाइ रंभा जावालवालानां उपर प्रमाणे सदग्रहथोनी मदद मलेली छे तेमनो आ स्थले आभार मानवामां आवे छे. For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Noooooooooooooooooooooooooooooooooood News opens in new win d owser શ્રીમાન મગનશ્રીજી મહારાજના શિખ્યા શ્રીમતી માનશ્રીજી મહારાજ જન્મ સંવત ૧૯૧૬ ના દિક્ષા સંવત ૧૯૩૯ ના કારતક સુદી ૧૧ અષાડ સુદી ૩ છે કે જે કોઈ | PછેT / W) STENYA JIGAT) ) ક ક કોણ છે ના કલાક કામ લ છે જાણો જ છો ન કરે છે. શee છે ડવાન્સ પ્રીન્ટરી, અમદાવાદ, For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar प्रस्तावना सुज्ञ जैन बंधुओ अने व्हेनो! ___ आ एक अति उत्तम अने हमेश मननीय करवा योग्य पुस्तक छे. कारण के आ पुस्तकनी अंदर अति उपयोगी-पूर्वाचार्यकृतचुंटी काढेला चैत्यवंदनो-स्तवनो-तथा स्तुतिओनो संग्रह छे. जो के गुजराती लिपिमा घणा पुस्तको छपाय छे. परंतु शास्त्री लिपिमांघणा ज ओछा पुस्तको छपाएला मले छे. आ पुस्तकना उत्पादक गुरुणीजी महाराज श्रीमान् मानश्रीजी चतुरश्रीजी तथा वीर श्रीजी महाराज साहेबजे तेओ विशेषे करीने मारवाड तरफज विचरे छे अने मारवाड देशना भाइ व्हेनोने गुजरातो लिपि करतां शास्त्री लिपि घणी उपकार करनारी निवडी छे कारण के ते देशमां गुजराती करतां शास्त्री लीपि वांचनारां घणां ज छे. जेथी ते सौने लाभकारी थाय तेवा हेतुथी आ पुस्तक शास्त्री लीपिमां प्रसिद्ध करवामां आव्यु छे. जो के आ पहेलां आ साध्वी महाराजाओना सदुपदेशथी आवा बे चार पुस्तको छपाइ गया छे पण अत्यारे तेमांनी एक पण नकल मळती नथी जेथी ते पूर्वना पुस्तकोमांथी तेमज बीजुं नवीन पण जे कंई उपयोगी लाग्युं तेनो आ साये समावेश करी आ पुस्तक बहार पाडवामां आव्युं छे. तेमां सज्झायो नाखवानी हती ते आ पुस्तक कदमां मोटुं थइ जाय तेने लीधे ते बाकी राखी ते बीजा भाग For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तरीके सज्झायमालानुं पुस्तक बहार पाडवामां आवशे आ कार्यनी अंदर जे जे ग्रहस्थोए मदद करी छे. तेमनो आ स्थले आभार मानवामां आवे छे. साथे आ पुस्तकनी कीमतमांथी जे उपज थशे ते बीजा पुस्तकमां बापरवामां आवशे. बंधुओ आ पुस्तक छपाववमां शुद्धि तरफ संपूर्ण काळजी राखवामां आवी छे छतां पण प्रेस दोष दृष्टिदोष केजिनाज्ञा विरुद्ध भूलचूक थइ होय तेनो मिच्छामिदुकडं देवा पूर्वक आ प्रस्तावना समाप्त करवामां आवे छे. आ पुस्तकमां जे जे विषयो नांखेला छे ते तेनी अनुक्रमणीका जोवाथी मालुम पडशे एज सुज्ञेशुं किंबहुनां. ली. प्रसिद्धकर्ता. Pak: AGES For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh विषय अनुक्रमणिका. २३ संखेश्वर पार्श्वनाथनु स्तोत्र S नंबर विषय पानु १ पंचपरमेष्टि नमस्कार २ चैत्यवन्द नो ३ सिद्धाचलजीनुं ४ सिद्धचक्रजी५ पर्युषण, ६ चोविसजीनलंछन७ एकसोसित्तेरजीननु ८ पंचमीनुं ९ अष्टमीन १० पर्युषणपर्वतुं ११ श्री सिद्धचक्रतुं १२ सर्वजिननुं १३ मौन एकादशीन १४ दोढसोकल्याणकर्नु १५ नेमनाथनु १६ आठमनु १७ सिद्धभगवाननु १८ आवती चोवीसीन १९ सिद्धचक्रजीतुं २० पार्श्वनाथन २१ आदिनाथर्नु २२ नेमिनाथनुं २४ पार्श्वनाथन २५ , २६ श्रीजीन२७ सिद्धाचलजीनुं २८ परमेष्टिस्तोत्र २९ पंचपरमेष्टि यंत्र ३० शांतिनाथनु ३१ नेमनाथर्नु ३२ ३३ अंतरीक पार्श्वनाथर्नु ३२ ३४ जयचिंतामणि पार्श्वनाथ-३४ ३५ चोविस तीर्थकरनुं ३४ ३६ वीस विहरमानन ३७ गौतम स्वामीन ३८ रोहिणीतपर्नु ३९ वीसस्थानकनुं ४० ,, काउसग्गर्नु ४१ तीर्थकरनी राशीनुं ४२ चौदसेबावन गणधरतुं ३९ ४३ जिनपूजा४४ पर्युषणर्नु मोटुं ४० ४५ शंखेश्वरपार्श्वनाथन ४२ २३ For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ ४६ पार्श्वनाथन ४४ ५९ चैत्यवंदन ४७ वर्धमानजीन ६० चौदसेबावन गणधरोनुं ६३ ४८ महावीरस्वामीनुं ६१ ऋषभदेवतुं ४९ श्रीमंधरस्वामीनू ६२ श्रीमंधरजीनन ५० , बीजूं ६३ सिद्धाचलजीनुं ५१ , त्रीजुं ६४ सिद्धचक्रजीन ५२ पंचतीर्थ ४८ ६५ रोहणीतपर्नु ५३ ,, बीजं ५४ सिद्धचक्रनु ६६ बोजनुं ५५ ,, बीजें ६७ पंचमीनुं ५६ पर्युषण ६८ अष्टमोनुं ५७ दीवालीन ६९ मौनएकादशीनुं ५८ चोवीशजीनेश्वरना छंद ५३ ७० पर्युषण स्तवनोनी अनुक्रमणिका १ सिद्धचक्रजीन ७७ १३ पांच कारणनु ढाल ६ १५७ २ अशापवजी १४ समकितनु ढाल ७ १६५ ३ दसपच्चखाणनु ढाल ३ ८३ १५ बारारानु ढाल १२ १७४ ४ अठावीस लब्धिनु ,,३ ८८ १६ आंतरानु स्तवन ढाल ४ १८४ ५ बीजनुं स्तवन ढाल २ ९२ १७ श्रीरोहिणी तप विधिनु ६ आठमनुंस्तवन ढाल ४ ९४ ढाल ४ १९२ ७ अष्टमीनु स्तवन ढाल २ ९८ १८ अक्षयनिधितपनु , ५ १९९ ८ कल्याणकनु ,, ,, ७ १०१ ९छ आवश्यकनु ,, ६१०८ १९ रुषभदेवस्वामीनु ,, ६ २०७ १० षटपर्वीनु ढाल ६११४ २० नेमनाथजीनु ढाल ५२१६ ११ चौद गुणस्थानकनु ७ १२६ २१ महावीर स्वामीना १२ ज्ञानदर्शन चारित्रनु ८ १४५ पंचकल्याणकनु ढाल ३ २२५ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ आंबिलं वर्धमान तपनु ४१ नवपद महिमा वर्णन ढाल ३२३३ श्री सिद्धचक्रजीनु ३२७ २३ ,, थोयो २३८ ४२ बीजुं ३२९ २४ ,, सझाय २३९ ४३ त्रीजं .. ३३० २५ अक्षयनिधितपनो विधि २४० ४४ मंधर स्वामीनु स्तवन २६ श्रीमंधरस्वामीनु स्तवन २५३ चोथु २७ सिद्धाच लजीनु स्तवन २५५ ४५ श्री पर्युषणनु स्तवन ३३२ २८ सुमतिनाथनु स्तवन २५७ ४६ जीनप्रतिमा उपरनु , ३३४ २९ श्री नवकारनो रास २५९ ।। ४७ समवसरणनु , ३३५ ३० श्री सिद्धाचलजीनु , २६४ ४८ सिद्धपद स्तवन ३३७ ३१ , बीजं स्तवन २६७ ४९ सिद्धभगवाननु स्तवन ३४० ३२ श्रीमंधर स्वामीनु , ५० एकादश गणधरनु ढालो ७ २७० प्रभातियु ३३ वीरस्तुतिरुप हुंडीनु ५१ अठाइनु स्तवन ढाल ९ ३४२ स्तवन ढालो ७ २७६ ५२ महावीर स्वामींना स३४ श्रीमद् यशोविजयजी त्तावीस भवनु पंचढालीयु ३५० कृत मंधर स्वामीनु नि- ५३ श्री महावीरस्वामीनु श्चय व्यवहारनु स्तवन पालj ढालो ४ २९६ ५४ महावीर :, हालरीसु ३६१ ३५ गोडी पार्श्वनाथ अधि- ५५ श्री पार्श्वनाथनु स्तवन ३६५ कारे मेघाशानु स्तवन ५६ श्री ज्ञानपंचमीनी ढालो १५ ३०२ ढालो ६ ३६ श्रीमंधर जीन स्तवन ३२१ ५७ अष्टमीनु स्तवन ३७ चो) ढालो २ ३७४ ३८ पांचमुं , ३२५ ५८ मौन एकादशीनु स्तवन ३९ सिद्धाचलजीनु ढाल ३ ३७६ ३२६ ५९ महावीर स्वामीना पंच ३६७ ३२३ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२९. कल्याणकनी ढाल १२नु ६४ पार्श्वनाथनु स्तवन ४२१ स्तवन , ६० दीवाली कल्पनुं स्तवन ६५ तिनाथनु स्तवन ४२२ ढाल १० ३९७ ६६ सिद्धदंडिका स्तवन ६१ महावीरस्वामीनु स्तवन ४१६ ढाल ४ ४२४ ६२ जीनपूजा स्तवन ४१७ ६३ पीस्तालीस आगमनु । ६७ नेमनाथनी लावणीनो स्तवन ४१९ चोक - स्तुतिओनी अनुक्रमणिका १ पन्नर तिथिनी थोयो ४३४ १६ श्री शीतलनाथजीनो ४८३ दरेक दिवसनी ४४८ सुधी १७ शांतीनाथजोनी २ मौन एकादशिनी ४४९ १८ बीजो थोय जोडो ३ सिद्धाचलजीनी ४६० १९ नेमनाथजीनी ४८५ ४ आठमनी ४५२ २० बीजो थोय जोडो ४८६ ५ पजुसणनी ४५३ २१ पार्श्वनाथजीनी ४८७ ६ नवपदजी ओळीनी २२ बीजो थोय जोडो ४८८ ७ पार्श्वनाथजीनी २३ श्री महावीर स्वामीनी ४८९ ८ मंदोश्वरद्धीपनी ४५८ २४ श्रीमंधरजोन स्तुति ४९० ९पार्श्वनाथजीनी २५ चैत्री पुनमनी १० महावीर स्वामीनी २६ अध्यात्म स्तुति ४९२ ११ नंदीश्वरजीनी २७ वीजनी स्तुति १२ श्री शोभनमुनिकृत २८ पंचमीनी स्तुति ४९४ चोवीस जीनेश्वरोनी २९ , बीजी स्तुतिओ. ४६१-४८० ३० अष्टमीनी स्तुति ४९७ १३ रुषभदेवजीनी स्तुति ४८० ३१ एकादशीनी ४९८ १४ बोजी थोय जोडो ४८१ ३२ रुषभदेवजीनी ४९९ १५ अजीतनाथजीनी ४८२ ३३ शांतिजीननी ४५६ ४९३ ५०० For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ नेमनाथजीनी ५०१ ४७ शंखेश्वरपार्श्वनाथ जीन ३५ पार्श्वनाथजीनी ५०२ स्तुति ३६ श्रीमहावीरस्वामीनी ५०३ ४८ श्रीमंधरजीन प्रमुख विच३७ श्रीमंधरस्वामीनी ५०३ रता जोनोनी स्तुति ५१६ ३८ श्रीसिद्धाचलजीनो ४९ वीजनी स्तुति ५१७ ३९ दीवालीनी ५०६ ५० पंचमीनी स्तुति ५१८ ४० सिद्धचक्रजीनी ५०७ ५१ अष्टमीनी स्तुति ५१९ ४१ पर्यषणनी ५०९ ५२ एकादशीनी स्तुति ५१९ ४२ रोहणीतपनी ५१० ५३ वीशस्थानकतपनीस्तुति ५२० ४३ शांतिजिननी ५११ ५४ दशत्रीकनो स्तुति ५२२ ४४ अरनाथजीनीं ५५ ज्ञानपंचमीनी स्तुति ५२३ ४५ नेमनाथजोनी स्तुति ५१३ ५६ मौनएकादशीनी स्तुति ५२४ ४६ बीजी ५१४ ५७ शानपंचमी स्तुति ५२४ समाप्त For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * आ पुस्तकनी उत्पतिना कारणरुप परमपूज्य प्रातःस्मरणीय गुरुणीजी महाराज श्री मगनश्रीजीतुं टुक वृत्तांत साथे तेमनी * मुख्य शिष्या श्रीमति मानश्रीजी महाराजनुं पण टुंक वृत्तांत * * तथा तेभनो फोटो आसाथे दाखल करवामां आव्यो छे. * आ पुस्तकनी उत्पतिना खास कारणरुप पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय गुरुणीजी महाराजश्री मगनश्रीजी छे तेओ साहेब महा प्रभाविक थइ गया छे. तेमन चरित्र जाणवा योग्य होवाथी तेओ साहेबर्नु टुंक वृत्तांत आ नीचे आपयामां आव्युं छे, आ पूज्यपाद गुरुणीजी महाराजश्री मगनश्रीजी मारवाड देशमां आवेला जावाल गामना रहेवाशी हता. तेओ साहेब बाल्य अवस्थाथीज धर्म उपर घणी प्रीति धरावता हता. योगानुयोग तेआ बाल्यावस्थामां विधवापणुं पाम्या. एवा अवसरमां अमदावादमां डहेलाना उपाश्रयमां बिराजता पन्यास रतनविजयजीना संघाडानी साध्वीओ सौभाग्यश्रीजी अने केसरश्रीजी जावालमां पधार्या तेमनो उपदेश सांभळी संपूर्ण वैराग्य थयो जेथी सौ संबंधीओनी संमत्ती लइ तेओ साहेबे पोतानी ३० वरसनी उमरे घणी धामधुम साथे दीक्षा अंगीकार करी अने बडी दीक्षा पंन्यासजी रतनविजयजी महाराज पासे पाटण शहेरमां मोटी धामधुमथी लीधी हती. पाये करीने मारवाडमां प्रथम दीक्षा लेनार आ पूज्यपाद मगनश्रीजीज थया छे तेओ साहेबे पछी गुजरात काठीयावाड मारवाड For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवाड विगेरे घणे ठेकाणे विचरी घणा श्रावक श्रावीकाओने बोध आपी धर्म मार्गमा जोडेला छे. तेमना शांत स्वभावथी तथा सचोट उपदेशथी तेमनी धणी शिष्याओ थयेली छे तेमना परीवारमा हाल विराजती मुख्य शिष्याओ प्रशिष्याओ गुरुणीजी महाराजश्रीमानश्रीजी रुपश्रीजी. प्रेमश्रीजी, चतुरश्रीजी. वीरश्रीजी. भावश्रीजी विगेरे ४०-५० ठाणा हाल विराजमान छे. तेओ साहेब १०-१५ वर्षथी आंखना रोगथी अपंग थया हता जेथी विशेष जावालमांज रहेता मारवाड देशमा खरो धर्मनो प्रचार को होय तो ते मोटो उपकार आ परम पूज्य मगनश्रीजी महाराजनोज छे. मारवाडी लोको धर्मना तदन अजाण होवाथी भक्षा भक्षने नहीं जाणनारा तेवाओने जावाल तेमज तेनो आजु बाजु पोते विचरीने सर्वेने उपदेश आपी घणा जीवोने धर्म मार्गमा जोडेला छे तेओ महा प्रभाविक शांतस्वभावी अने गुरुनी आज्ञामां विचरनारा हता तेओ तथा तेमनी संघाडानी बधी साध्वीओ हाल पण डेहेलाना उपाश्रयना हाल विचरता पंन्यासजी महाराजश्री धर्मविजयजीनी आज्ञामां विचरे छे आ पूज्यपाद गुरुणीजी महाराजना घणा भक्तो मारवाडमां होवाथी तेमना पगले चाली तेमनी शिष्याओमां मुख्य श्रीमान् श्रीमानश्रीजी, चतुरश्रीजी, वीरश्रीजी, प्रधानश्रीजी, चंदणश्रीजी, चंपाश्रीजी. मनोहरश्रीजी, माणक्यश्रीजी, सोहंश्रीजी, मंगलश्रीजी आदि हाल पण मारवाड तरफ विचरे छे तेमना सदुपदेशथी आ पुस्तक बहार पाडवामां आव्युं छे. तेमा मुख्य श्रीमान् मानश्रीजी महाराज ग्रह For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थावासमा पुनाना रहेवासी झाते वीसा पोरवाड छे. तेमनो जन्म संवत १९१६ना कारतक शुद११ अने दीक्षा संवत १९३९ अशाड शुद ३ एटले फक्त (२३) त्रेवीस वरसनी उमरे लीधेली छे अने अत्यारे मगनश्रीजी महाराजना संघाडाने साचवनारा तेमज तेमनी वृद्धि करनारा तथा सुमार्गे जोडनारा तेओ साहेवज छे. तेथी तेमना नाम स्मरण माटे सौ सद्ग्रहस्थोनी इच्छाथी आ साथे तेमनो फोटो आ बुकमां जोडवामां आव्यो छे. ते सौने विदित थाय. एज सुज्ञेशुं किंबहुना. संवत १९८९ ना वैशाख शुद १० शुक्रवार } ली० प्रसिद्ध कर्ता. ता० ५-५-१९३३ . . . MOPPOOOOOOPPOWwwwwwwww શ્રી જૈનધર્મ વિજય પુસ્તકાલય PAautela 2044 2011 உருகையாரையாறு 32 વિરમગામ முறைமாற்றமு மு முறுமுறுமுக ருமுறை For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री चैत्यवंदनस्तुति स्तवनादि संग्रह ॥ ॥ श्री पंच परमेष्टी नमस्कार स्तुति ॥ ॥ शार्दूलविक्रिडित ॥ अर्हन्तो भगवन्त इंद्र महिता, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः श्राचार्या जिन शासनोन्नति करा, पूज्या उपाध्यायका ॥ श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रया राधका ॥ पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ १ ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ सिद्धाचल शिखरे चढी, ध्यानधरो जगदीश ॥ मन वच काय एकाग्रशुं नाम जपो एकवीश ॥ १ ॥ (१) शत्रुंजय गिरि दीये, (२) बाहुबली गुणधाम ! (३) मरुदेवने (४) पुंडरिक गिरि, (५) रेवतगिरि (विराम ॥ २ ॥ ( ६ ) विमलाचल (७) सिद्धराजजी, ग्राम ( ८ ) भगीरथ सार ॥ ( ९ ) सिद्धक्षेत्रने (१०) For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ક્ सहस्र कमल ( ११ ) मुक्तिनिलय जयकार ॥३॥ ( १२ ) सिद्धाचल ( १३ ) शतकूटगिरि, (१४) ढंकने १५) कोडीनीवास ॥ (१६) कदंबगिरि ( १७ ) लोहित्यनमो, (१८) तालध्वज (१९) पुण्यराश || ॥ ४ ॥ ( २० ) महाबल ( २१ ) दृढशक्ति सही. ए एकवीशहनाम || साते शुद्धि समाचरी, करीए नित्य प्रणाम ॥ ५ ॥ दग्ध शून्य ने अविधि दोष, अति प्रवृत्ति जेह ॥ चार दोष, छंडी भजो, भक्तिभाव गुण गेह ॥ ६ ॥ माय जन्म पामी करीए, सद्गुरु तीरथ योग || श्री शुभवीरने शासने, शिवरमणी संयोग ॥७॥ ॥ अथ श्री सिद्धचक्रजीतुं चैत्यवन्दन || || श्री अरिहंत उदार कांति, अति सुंदर रूप ॥ सेवो सिद्ध अनंत शांत, आतम गुण भूप ॥ १ ॥ आचारज उवझाय साधु, समता रस धाम ॥ जिन भाषित सिद्धांत शुद्ध, अनुभव अभिराम ॥ २ ॥ बोध बीज गुण संपदाए, नाण चरण तव शुद्ध ॥ ध्यावो परमानंद पद, ए नवपद अविरुद्ध ॥ ३ ॥ इह परभव आनंद कंद, जगमांहि प्रसिद्ध | चिंतामणि सम For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जास जोग, बहु पुण्ये लहो ॥ ४ ॥ तिहुअण सार अपार एह, महिमा मन धारो, ॥ परिहर पर जंजाल जाल, नित्य एह संभारो ॥ ५ ॥ सिद्धचक्र पद सेवतां, सहजानंद स्वरूप || अमृतमय कल्याणनिधि. प्रगटे चेतन भूप ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ श्री पर्युषण चैत्यवंदन ॥ ॥ पर्व पर्युषण गुणनीलो, नवकल्पविहार; चार मासान्तर थीर रहे, एहीज अर्थ उदार ॥ १ ॥ आषाढ शुद्ध चउदश थकी, संवत्सरी पंचास; मुनिवर दिन सित्तेरमें, पडिक्कमतां चौमास ॥ २ ॥ श्रावक पण समता धरी, करे गुरुना बहुमान; कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभले थइ एक तान ॥ ३ ॥ जिनवर चैत्य जुहारीए, गुरु भक्ति विशाल; प्राये अष्ट भवांतरे, air शिव वरमाल ॥ ४ ॥ दर्पणथी निजरूपनो, जुवे सुदृष्टि रुप दर्पण अनुभव अर्पण, ज्ञान रमण मुनि भूप ॥ ५ ॥ आत्म स्वरुप विलोकतांए, प्रगट्यो मित्र स्वभाव, राय उदायी खामणां पर्वपर्युषणदाव For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६॥ नव वखाण पूजी सुणो, शुकल चतुर्थी सीमा; पंचमी दिन वाचे सुणे, होय विरोधी नीमा ॥ ७ ॥ ए नहीं पर्वे पंचमी, सर्व समाणी चौथे; भव भीरु मुनि मानसे, भाख्युं अरिहा नाथे ॥ ८॥ श्रुत केवली वयणा सुणी, लही मानव अवतार; श्री शुभवीरने शासने, पाम्या जय जयकार ॥ ९॥ ॥ श्री चोविश जिन लंछन चैत्यवंदन ॥ ॥ ऋषभलंछन ऋषभ देव, अजितलंछन हाथी; संभव लंछन घोडलो, शिवपुरनो साथी ॥१॥ अभिनंदन लंछन कपि, क्रौंच लंछन सुमति; पद्मलंछन पद्माभ, विश्वदेवा सुमति ॥ २ ॥ सुपार्श्वलंछन साथियो, चंद्रप्रभ लंछन चंद्र; मगर लंछन सुविधि प्रभु, श्रीवच्छ लंछन शीतलजिणंद ॥३॥ लंछन खड्गी श्रेयांसने, वासुपूज्यने महिष; सूवर लंछन पाये विमलदेव, भविया ते नामो शिष ॥ ४ ॥ सिंचाणो जिन अनंतने ए, वज्रलंछन श्रीधर्म; शांति. लंछन मरगलो, राखे धर्मनो मर्म ॥ ५॥ कुंथुनाथ जिन बोकडो, अरजिन नंदावर्त; मल्लि कुंभ वखाणीये, For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुव्रत कच्छप विख्यात ॥ ६॥ नमिजिनने नीलोकमल, पामीए पंकजमाहि; शंखलंछन प्रभु नेमजी, दीसे उंचे आंहि ॥ ७ ॥ पार्श्वनाथजीने चरण सर्प, नीलवरण शोभित; सिंहलंछन कंचन तणु, वर्द्धमान विख्यात॥८॥एणीपेरे लंछन चिंतवी ए,ओलखीए जिनराय ज्ञानविमल प्रभु सेवता,लक्ष्मीरतन सरिराय ॥९॥ ॥ एकसो सित्तेर जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ सोले जिनवर शामळा, राता त्रीश वखाणुं; लीला मरकत मणिसमा. आडत्रिश गुणखाणुं॥१॥ पीला कंचन वर्ण समा, छत्रीशे जिनचंद; शंख वरण सोहामएं, पचाशे सुखकंद ॥ २ ॥सीत्तेर सो जिन वंदीए ए, उत्कृष्टा समकाल; अजितनाथ वारे हुवा, वंदू थइ उजमाल ॥३॥ नाम जपतां जिनतj, दुरगति दुरे जाय; ध्यान ध्यातां परमात्मनु, परम महोदय थाय ॥ ४ ॥ जिनवर नामे जश भलो, सफल मनोरथ सार; शुद्ध प्रतिती जिनतणी, शिवसुख अनुभव धार ॥ ५॥ For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । सामान्य जिन चैत्यवंदन॥ जय जय तुं जिनराजआज, मळीओ मुज स्वामी; अविनाशी अकंलक रुप, जग अंतरजामी ॥ ॥ १॥ रुपारुपी धर्म देव, आतम आरामी; चिदानंद चेतन अचिंत्य, शिवलीला पानी ॥२॥ सिद्ध बुद्ध तुं वंदतां, सकळ सिद्धि वर बुद्ध; राम प्रभु ध्याने करी, प्रगटे आतम ऋद्ध ॥ ३॥ काळ बहु स्थावर गयो, भमीयो भवमांही; विकलेंद्रिय मांही वस्यो, स्थिरता नहीं क्यांही ॥ ४ ॥ तिर्यंच पंचेंद्रिय मांही देव, करमे हुं आव्यो; करी कुकर्म नरके गयो, तुम दरीशन नहि पायो॥५॥ एम अनंत काळे करी ए पाम्यो नर अवतार; हवे जग तारक तुंही मळयो, भवजल पार उतार ॥६॥ ॥ श्री पंचमी- चैत्यवंदन ।। ॥ युगला धर्म निवारीओ, आदिम अरिहंत ॥ शांतिकरं श्री शांतिनाथ, जय करुणावंत ॥१॥ नेमिसर बावीसमां, बालथकी ब्रह्मचारी ॥ प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथ, रत्नत्रय आधारी ॥२॥ वर्तमान शासन For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धणीए, वर्द्धमान जगदीश ॥ पांचे जिनवर प्रणमता, जगमा वाधे जगीश ॥ ३ ॥ जन्म कल्याणक पंचरूप, सोहमपति आवे ॥ पंच वरण कलसे करी, सुरगिरि न्हवरावें ॥४॥ पंच शिष्य अंगुठडे, अमृत संचारे ॥ बालपणे जिनराज काज, इम भगति सुधारें ॥५॥ पंच धाय पालिजतां. योवन वय पावें ॥ पंच विषे विष वेल नोडी, संजम मन भावे ।। ६ ॥छंडी पंच प्रमादने, पंच इंद्री मद मोडी ॥ पंच महाबत आदरे, देइ धन कोडी ॥७॥ पंचाचार आराममां, पाम्युं पंचम नाण॥ पंच देह वर्जित थयो, पंच इस्वाक्षर मान ॥८॥ पंचम गति भरतार तार, पुरण परमानंद ॥ पंचमी तप आराधतां, श्री खिमाविजय जिणचंद ॥९॥इति।। ॥ श्री अष्टमी- चैत्यवंदन ॥ ॥ अष्टमी. दिन धन जिनवरु ए, चंद्रप्रन मनोहार॥ सेवा करतां जेहनी, टाले भव दुख द्वार ॥ ॥१॥ भगवन् भाखित जे वचन, धारे गुण भंडार ॥ तेहिज अष्टमि तप भण्यु, आगम अर्थ उदार ॥२॥ ज्ञायक ज्ञेय स्वरुपथी ए, चरणधरे सुखकार ॥ अष्टमि For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तप आराधवा, करे शुभ भाव विचार ॥ ३ ॥ अष्ट वरष अष्ट मासनी ए, तपविधि विधिमा सार ॥ श्रावक तनमन वचनथी, पाले निरतिचार ॥ ४ ॥ पोसह पडिकमणु करीए, पुजे जिन अंग अविकार ॥ करुणा सागर गुण भर्या, मुनिजन वंदे विचार ॥५॥ आगम वयण सुणि करीए, पुछे प्रश्न विचार || गुरुगम लहिने सहे, समकित वड विस्तार ॥ ६ ॥ परम सरुप परमेसरुए, परमातम जगदिश ॥ चंद्र प्रभ जिन अष्टमां, वंदो धरि सुजगीस ॥ ७ ॥ सारण वारण चोयणाए, प्रति चोयणनां जाण ॥ वस्त्र पात्र तेहने दिये, तो लहें सुख निरवाण ॥ ८ ॥ एहवी वाणी स्वमुखे, फरमावी जिनराज ॥ भव्य जीव श्रवणे सुणी, धारी आतम काज ॥ ९ ॥ मान क्रोध मद परिहरीए, धारो शुद्ध स्वभाव ॥ आतम ज्ञान नये गृही, आनंद घनरस पाव ॥ १० ॥ शांति सुधारस गुणभर्याए, अनुभव भाव जिणंद || अचरण तेज अमृतसमो, रत्नमुनि गुणवृंद ॥ ११ ॥ उज्जल अष्टमिदिन भण्युए, समकीतीने सुखदाइ ॥ चंद्रमुनि For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण योग्यता, लहि आगम गुण छांहि ॥ १२ ॥ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ श्री पर्यपणपर्वनं चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री श्री पजोसणपर्व सेवो, भवीजन सह हरखी ॥ वेण रासी सर्व परवणी, निज आतम परखी ॥१॥ गुण अनंत छे जेहना, धर्मध्यान नित कीजे ॥ प्रभु गुण सर्व संभालीने, निज भाव ओलखीजे ॥२॥ कल्पतरु सम कल्पसुत्र, निजमंदिर पधरावो ॥ गीत गान मन भावसुं, सुभ भावनाभावो ॥३॥ करी वरघोडो अभीनवो, जीनशासन दीपावो ॥ शुभकरणी अनुमोदतां, गुरु समीपे लावो ॥४॥ गुरु प्ररुपे वायणा, भाव भक्तिने काजे, छट्ठ तप करी निर्मलो, आतमशक्ति माटे ॥५॥प्रतिपदाए प्रभु वीरनो, जन्म महोछव किजे ॥ भगती वच्छल भगवंतनी, सुकृत भव कीजे ॥ ६ ॥ अठम तप करी निरमलो, सकल सुणो अधिकार ॥ नागकेतुनीपरे निरंमलो, जेम पामो भवपार ॥७॥ बली सुणवा बारसे सुत्रनां, भवी थइ उजमाल ॥ श्रीफल स्वामी प्रभावना, करी टालो For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंजाल ॥ ८॥ अठाइ महोच्छव एणीपरे, पालो नि. रती चार ॥ कारज कारण फल होशे, तो तरसो भवपार ॥९॥ द्वीप नंदीसर आठमे, देवमली सुनदाय।। अठाइ ओच्छव करी, निजनिज थांनक जाय ॥१०॥ सुलभ बोधी जीवनी, हरखी साते धात ॥ ते माटे आराधवा, मन कीजे रलीयात ॥११॥ तवगच्छ ना. यक गुण नीलोए, विजयसेन सुरीराय ॥ पंडीत पद्मविजय तणो, दीपविजय गुण गाय ॥१२॥ इति ॥ ॥श्री सिद्धचक्रजीनुं चत्पवंदन ।। ॥ पेहले पद अरिहंतना, गुण गाओ नित्ये ॥ वीजे सिद्धतणा घणा, समरो एक चित्ते, आचार्य त्रीजे पदे, प्रणमो विहुं करजोमी॥ नमीये श्री उवज्ञायने, चोथे मद मोडी ॥२॥ पंचमपद सर्व साधुनुं ए, नमतां नाणो लाज ॥ ए परमेष्टी पंचने, ध्याने अविचल राज ॥ ३॥ दंसण शंकादिक रहित, पदे छठे धारो ॥ सर्व नाणपद सातमे, खिण एक नवि विसारो॥४॥ चारित्र चोऱ्या चितथी, पद अष्टमे जपीए॥ सकल भेद विचे दान फल, तप नवमे तपीये ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ " ए सिद्धचक्र आराधतां पुरे वंछित कोड ॥ सुमतिविजय कविरायनो, राम कहे करजोम ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ सर्व जिनतुं चैत्यवंदन ॥ ॥ सीमंधर प्रमुख नमुं, विहरमान जिन वीश ॥ ऋषभादिक वली वंदीये, संपइ जिन चोवशि ॥ १ ॥ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वला सार ॥ समेतशिखर ए पंच तीरथ, पंचम गति दातार ॥ २ ॥ उर्ध्व लोकें जिनवर नमुं, ते चोरासी लाख ॥ सहल सत्ताणुं उपरें, वीस जिनवर भांख ॥ ३ ॥ एकशो बावन कोड वली, लाख चोराणुं सार ॥ सहस चुमालीस सातशे, शाठ जिन पडिमा उदार ||४|| अधोलोकें जिनजवन नमुं, सात कोड बहोंतेर लाख ॥ तेरशें कोम नेव्यासी कोम, शाठ लाख चित राख ॥ ||५|| व्यतंर ज्योतिषमां वली, ए जिनभुवन अपार ॥ ते भवि नित वंदन करो, जेम पामो भवपार ॥ ६ ॥ तीच्छे लोके शाश्वतां, श्री जिनभुवन विशाल ॥ वत्रीने ओगणसाठ, बंदु थइ उजमाल ॥ ७ ॥ लाख त्रण एकाणुं सहस, व्रणशें वीश मनोहार | जिन प For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डिमा ए शाश्वती, नित्य नित्य करूं जुहार ॥८॥ त्रण भुवन माहे वली ए, नामादिक जिन सार ॥ सिद्ध अनंता वंदिए, महोदय पद दातार ॥९॥ इति ॥ ____ अथ मौन एकादशी- चैत्यवंदन, विश्वनायक मुक्तिदायक नमि नेमि निरंजनं, हर्षधरी हरी पूछे प्रभुने, भाखो आतम हितकरं ॥कुण दिवस एवो वरसमाहे अल्प सुकृत बहुफले, कहे नेउ जिननां हुआं कल्याणक मौन अग्यारसी सुखकरं ॥ ॥१॥ केवलि महाजस सर्वानुभूति श्रीधरनाथए, नमि मन्त्री श्री अरनाथ स्वामी साचो शिवपुर साथए ॥ श्री स्वयंप्रभ देवश्रुत अरहंत उदयनाथ जिनेश्वरं, कहे नेउ जिननां हुआ कल्याणक मौन अग्यारसी सुखकरं ॥२॥ अकलंक कर्म कलंक टाले, शुजकरं समस सदा; सप्तनाथ बलेंद्र जिनवर श्रीगुणनाथ नमु मुदा ॥ गांगिकनाथ श्री सांप्रति मुनिनाथ विशिष्ठ अतिवरं ॥ कहे०॥ ३ ॥श्रीमृदु जिनजी जगतवेत्ता व्यक्त अरिहा वंदीए, श्री कलासत आरण ध्याता सहज कर्म निकंदीए ॥ जोग अजोगश्री परमप्रभुजी For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुद्धातिनी केसरं ॥ कहे० ॥ ४ ॥ श्री सर्वार्थ सकल ज्ञायक हरिभद्र अरिहंतए, मगधाधिष जितेंद्र वंदो श्रीप्रयच्छ गुणवंतए ॥ अक्षोभ मवसिंहनाथ दिनरुक धनंद पोषद जयकरं ॥ कहे० ॥ ५॥ श्रीपलंब चारित्रनिधि जिन प्रशमराजित ध्याइए, स्वामीश्री विपरीतदेव अहोनीश प्रसाद प्रेमे गाइए ॥ अघटितज्ञानी ब्रह्मेद्र प्रभु ऋषभचंद्रजी अघहरं ॥ कहे० ॥ ॥६॥ दयांत दाता जगत केरो अभिनंदन रत्नेशए, सामकोष्ट मरुदेव नायक अतिपार्श्व विशेषए ॥ नमो नंदिषेण व्रतधर श्रीनिर्वाणी दुःखहरं ॥ कहे ॥ ॥७॥ सौंदर्यज्ञानी त्रिविक्रम जिन नारसिंह नमो तुमे. खेमंत संतोषित अरीहा कामनाथथी दुःख समे ॥ मुनिनाथने श्रीचंद्रदाहए दिलादित उदयकरं ॥ कहे०॥८॥ श्रीअष्टाहिक वाणिग बंदो उदयज्ञान आराधिये, तमोकंदने सायकाद स्वामीखेमंत शिवसुख साधिये ॥ निर्वाणीने रविराज साहिब प्रथम नाथ परमेश्वरं ॥ कहे० ॥९॥ श्रीपरुरवास अवबोध जगगुरु विक्रमेंद्र वखाणीए, श्रीस्वसांति हरिनंदिकेशने For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ महामृगेंद्र मन आणीए | अशोकचित चित्तमां वसे अहनीश धर्मेंद्र जगजस करं ॥ कहे० ॥ १० ॥ अश्ववृंद कुटिलक वर्द्धमान नंदीकेशना गुण घणा, श्रीधर्मचंद्र विवेक जगपति कलापक सोहामणा ॥ विसोम सौम्याकृति जेनी आरणअंगि सुखकरं ॥ कहे ॥ ११ ॥ त्रीस चोवीसी दशे खेत्रे कालत्रिक जिन लिजिए, पंचकल्याणक त्रीस जिननां इम दोढसो गुणीजीए ॥ जिननक्ति करतां ध्यान धरतां कोटि तप फल होइनरं ॥ कहे० ॥ १२ ॥ पोषधने उपवास करीने आराधे एकादशी नरभव तेहनो सफल याये परमानंद पद देहली || गुरु रुपकीर्ति हृदय धरीने माणेक मुनि शिव सुखकरं ॥ कहे० ॥ १३ ॥ इति मौन एकादशी चैत्यवंदन संपूर्णम् ॥ अथ दोढसो कल्याणकनुं चत्यवंदन. शासन नायक जग जयो, वर्द्धमान जगइश ॥ आतम हितने कारणे, प्रणमु परस मुनीश ॥१॥ खट परवि जेणे वर्णवी, तेहमां अधिकी जेह || एकादशी सम को नहीं, आराधो गुण गेह ॥ २॥ मागशर सुदी For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ एकादशी, आराधो शिववास || कल्याणक नेउ जिन महायश सर्वानुभुति तणा, एकसोने पचास ॥ ३३ ॥ श्रीधर, नमिमलि अरनाथ ॥ स्वयंप्रभ देवश्रुत उदय, मलिया शिवपुर साथ || ४ || अकलक शुभंकर सप्त नाथ, ब्रह्मेद्र गुण गांगीक ॥ सांप्रति मुनि विशिष्ट जिन पाम्या पुन्यनोरेक ॥ ५ ॥ सुमृदु व्यक्त कलासत, अरण योग प्रयोग || परम सुधारति निकेसतेम, पाम्या शिव संयोग ||६|| सर्वार्थ हरिभद्र मगधाधिप, प्रयच्छ अक्षोभमलयसिंह || दिनरुक् धनद पौषध तथा, जपतां सफल जिह ॥ ७॥ प्रलंब चारित्र निधि प्रशम राजित, स्वामी विपरित प्रसाद || अघटित - मर्णेद्र ऋपनचंद्र, समया शिव अश्वाद ॥ ८॥ दयांत अभिनंदन रत्नेश ते, समकोष्ठ मरुदेव अतिपार्श्व ॥ नंदिषेण व्रतधर निर्वाण तथा, थाये शिवसुख स ||९|| सौंदर्य त्रिविक्रम नरसिंह, क्षेमंत संतोषित कामनाथ ॥ मुनि नाथचंद्र दाहादिलादित्य, मळीयो शिवपुर साथ ॥१०॥ अष्टादिक वर्णिक उदयज्ञान, तमोकंद सायकांक्ष खेमंत || निर्वाणिक रवि राज प्रथम For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ नमतां दुःखनो अंत ॥११॥ पुरुरवास अवबोध विकमेंद्र, सुशांति हरदेव नंदिकेश | महामृगेंद्र अशोचित धर्मेंद्र, संभारो नाम निवेश ||१२|| अश्ववृंद कुटलिक वर्द्धमान नंदिकेश धर्मचंद्र विवेक || कलापक विसोम अरनाथ, समय गुण अनेक ॥१३॥ त्रण पदे पदे कोढ जाण ॥ चोथा पदमां भावना, आराधो गुण खाण ||१४|| दोढसो कल्याणक तणो, गुणणो एमनोहार ॥ चित्त आणीने आदरो, जिम पामो भवपार ॥ १५ ॥ जिनवर गुणमाला, पुन्यनी ए प्रनाला ॥ जे शिव सुख रसाला, पामीये सुविशाला ॥ जिम उत्तम थुणीजे, पाद तेहना नमीजे || जिनरुप समजे शिव लक्ष्मी वजे ॥ १६॥ इति दोढसो कल्याएकनुं चैत्यवंदन संपुर्ण ॥ || नेमनाथनुं चैत्यवंदन ॥ नेमी जिनेसर गुण नीलो, ब्रह्मचारी सिरदार ॥ सहष पुरुषशुं आदरी, दीक्षा जिनवर सार ॥ १ ॥ पंचावनमें दिन लह्या, निरुपम केवलनाण || भविक जीव पडिबोधवा, विचरे महियल जाण ॥ २ ॥ विहार For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " १७ करंता आवियाए, बावीसमा जिनराय ॥ द्वारिका नयरी समोसर्या, समवसरण तिहां थाय ॥ ३ ॥ बार परखदा तिहां मली, भाखे जिनवर धर्म ॥ सर्व पर्व तिथि साचचो, जिम पामो शिव शर्म ॥ ४ ॥ तव पूछे हरि नेमने, लखो दिन मुज एक || थोडो धर्म कर्या थकी, शुभ फल पामो अनेक ॥ ५ ॥ नेम कहे केशव सुणो, वरस दिवसमा जोय || मागशर सुदी एकादशी, ए समो अवर न कोय ॥ ६ ॥ इणदिन कल्याणक थयां, नेउ जिनना सार ॥ ए तिथि विधि आराधतां, सुकृत थया भवपार ॥७॥ ते माटे मोटी तिथि, आराधो मन शुद्ध ॥ अहो रत्तो पोसह करो, मन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घरी आतम बुद्ध ॥ ८ ॥ दोढसो कल्याणक तणुं ए, गण व मनरंग || मौन घरी आराधीये, जिम पामो सुखसंग ॥ १० ॥ उजमणुं पण कीजीए, चित्त घरी उल्हास || पूठांनें वीटांगणे, इत्यादिक करो खास ॥ एम एकादशी भावशुं, आराधो नर राय ॥ क्षायिक समकितनो धणी, जिन बंदी करो शुभ काज ॥ ११ ॥ एकादशी भवियण धरो, उज्वल गुण जिम थाय ॥ ર For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमाविजय जस ध्यानथी, शुभ सुरपति गुण गाय ॥ आठमर्नु चैत्यवंदन. चैत्र वदि आठम दिने, मरुदेवी जायो ॥ आठ जाति दिग कुमरीये, आठ दिश गायो ॥ १॥ आठ इंद्राणी नाथशु, सुरपति ल्यावे ।। सुरगिरि उपर सुरवरा, सर्वे मली आवे ॥ २॥ आठ जाति कलशा करी, चोसठ हजार ॥ दोयसेने पचास मान, अभिषेक उदार ॥३॥ एक क्रोडने साठ लाख, उंचा तीस कोश ॥ पहल पणे अडचाल कोश, कलशा जल कोस ॥४॥ चार वृषभ अडशंग रंग, आठे जल धारे ।। नवरावे जिनराजने, सुर पाप पखाले ॥ ५ ॥ क्षुधा दिक अडदोष शोष, करि अडगुण पोखे॥ टालि आठ प्रमाद आठ, मंगल आलेखे ॥ ६॥ कोड आठ चोगुणी, कंचन वरसावे ॥ प्रभु सोपी निज मातने, नंदीश्वर जावे ॥७॥ अट्ठाइ महोइव करीए, ठवण जिन उद्देश ॥ आठ प्रकारे पूजिए, आठम दिन सुवेस ॥८॥ ऋषभ अजित सुमति नमी,मुनिसुव्रत जन्माअभिनंदन नेम पास, पाम्या शिव शर्म ॥९॥ संभव देव For Private And Personal Use Only Page #33 --------------------------------------------------------------------------  Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पकं ॥ ध्यान रूप अनुपम उपम, नमो सिद्ध निरंजनं ॥१॥ गगन मंडल मुक्ति पञ, सर्व उर्द्ध निवासनं॥ ज्ञान ज्योति अनंत राजे, ॥ नमो० ॥ २ ॥ अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह मेराउखं ॥ नामगोत्र निरंतराय, नमो० ॥३॥ विकट क्रोधा मान योधा, माया लोभ विसर्जन ॥रागद्वेष विमनोत अंकुर, ॥ नमो०॥४॥ विमल केवल ज्ञान लोचन, ध्यान शुक्ल समोरितं ॥ योगनामिति गम्यरूपं. ॥नमो॥५॥ योगमुडा सम समुद्रा, करी पल्यंकासनं ॥ योगनामिति गम्यरूपं, नमो० ॥६॥ जगत जनके दास दासी, तास आश निरासनं ॥ योगीनामिति गम्यरूपं ॥ नमो० ॥ ७॥ समय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी अयोगिकं ॥ देखिता मिलिन होवेनिमो० ॥८॥ सिद्ध तीर्थ अर्थ सिद्धा, भेद पंच दशादिकं॥ सर्व कर्म विमुक्ति चेतन, निमो०॥९॥ चंद्र सूर्य दीप मणीकी, ज्योति तेने ओलंगीकनं ॥ तज्यो तिथी कोई अपर ज्योति, ॥ नमो० ॥१०॥ एक माहे अनेक राजे, नेक मांहि एककं ।। एक नेककी नहि संख्या, नमो० ॥ For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥११॥ अजर अमर अलख अनंत, निराकार निरंजनं॥ ब्रह्म ज्ञान अनंत दर्शन, ॥ नमो० ॥ १२ ॥ अचल सुखकी लहेरमां, प्रभु लीन रहे निरंतरं॥ धर्म ध्यानथी सिद्ध दर्शन, ॥ नमो० ॥१३॥ ध्याने धूप मने पुष्पर्श, पंच इंद्र हुताशनं ॥ दमा जाप संतोष पूजा, पूजो देव निरंजनं ॥ १४ ॥ नमो सिद्ध निरंजनं ॥ इति ॥ आवती चोवीसीनु चैत्यवंदन, श्री पद्मनाभ पहेला जिणंद, श्रेणीक नृपजीव ॥ सुरदेव बीजा नमुं. सुपास श्रावक जीव ॥१॥ श्री सुपार्श्व त्रीजावशी, जीवकोणिक उदायी ॥स्वयं प्रभु चोथा जिणंद. पोटिल मनभावि ॥ २ ॥ सर्वानुभुति जिन पंचमाए, दृढायु श्रावक जाण ॥ देवसुत छटा जिणंद, श्रीकार्तिक शेठवखाण ॥३॥ श्रीउदय जिन सातमाए, शंखश्रावक जीव ॥ श्रीपेढाल जिन आठमा, अनंत मुनि जीव ॥४॥ पोटिल नवमा वंदिएए, जीव जि सुनंद ॥ सतकीरति दशमा जिणंद, सतक श्रावक आणंद ॥ ५॥ सुव्रत जिन अगीयारमाए, देवकी For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राणी जीण ॥ श्रीअममजिन बारमा, श्रीकेशवगुण खाण ॥ ६॥ निष्कषाय जिन तेरमाए, सतकी विद्याधार ॥ निष्पुलायक जिन चौदमां, बलभद्र सुहंकर ॥ ॥७॥ निर्मल जिन पंदरमाए, जीवसुलसा भावी॥चित्रगुप्त जिन सोलमा, श्रीरोहिणी मनभावि ॥८॥ समाधि जिन सत्तरमा, रेवती श्राविका जाण ॥ श्रीसंवर जिन अढारमा, जीव सत्तानी वखाण ॥९॥ श्री यशोधर ओगणीसमा, जीव किशन द्वीपायण, विजयनाम जिन वीसमा, जीवकरण साहेण ॥ १०॥ एकवीसमा श्रीमल्लनाम, जीव नारदनो कहिये ॥ अंबड श्रावक जीव देव, बावीसमा लहीए ॥११॥ अनंतवीर्य तेवीसमा, जीव अमरनो एह ॥ भद्रकृत जिन चोवीसमां, सति बुद्धि गुण गेह ॥ १२ ।। ए चोवीसे जिन होशे, आवंते काले ॥ भाव सहित जे वांदशे, थई उजमाले ॥१३॥लंछन वर्ण प्रमाण आउस, चढतां सवि निरखो ॥ सांप्रत जिन चोवीसए, अंतर सवि परखो ॥१४॥ पंचकल्याणक तेहना, होशे एहज दीस धीरविमल पंडिततणो, ज्ञानविमल सुरीश ॥ १५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सिद्धचक्रजीतुं चैत्यवंदन. जैनेंद्रमिंद्रमहितं गतसर्वदोषं, ज्ञानाद्यनंत गुणरत्नविशालकोषं ॥ कर्मक्षयं शिवमयं परिनिष्टितार्थं, सिद्धं च बुद्धमविरुद्ध महं च वंदे ॥ १ ॥ गच्छाधिपं गुणगणं गणिनं सुसौम्यं ॥ वंदामि वाचकवरं श्रुतदानदक्षं ॥ क्षांत्यादिधर्मकलितं मुनिमालिकां च, निर्वाण साधनपरं नरलोकमध्यं ॥ २ ॥ सद्दर्शनं शममयं श्री जिनोक्तसत्यं तत्त्वप्रकाशकुशलं सुखदं सुबोधं ॥ छिन्नाश्रवं सुमतिगुप्तिमयं चरित्रं, कर्माष्टकाष्टदहनं सुतपं श्रयामि ॥ ३ ॥ पापौघनाशनकरं वरमंगलं चं. त्रैलोक्यसारमुपकारपरं गुरुं च ॥ जावातिश्रुद्धिवरकारणमुत्तमानां, श्री मोक्षसौख्यकरणं हरणं भवानां ॥ ४ ॥ भव्याजबोधतरणिं भव सिंधुनाव, चिंतामणेः सुरतरोरधिकं सुभावं ॥ तत्त्वत्रिपादनवकं नवकाररूपं, श्री सिद्धचक्रसुखदं प्रणमामि नित्यं ॥ ५ ॥ श्री पार्श्वनाथनुं चैत्यवंदन. स्तुवे पार्श्व जिनाधीशं - पार्श्वक्षोभसुसेवितं ॥ प्रणतानल्प संकल्प, दानकल्पद्रुमोपमं ॥ १ ॥ पुजीत्व For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनः पूज्य स्थानं, सर्व जगतामपि ॥ हिलीतत्वांतु नैवेति, दुःखोच्छेदः कदाचन ॥ २ ॥ नाथीकृत्य त्वया देव, भवारिजीयतेक्षणा ॥ हर्षाध्विक्षति तुभ्यं च, स्पृहयेनमुक्ति कामिनी ॥ ३॥ न तत् पुरुषादोषो, रोषादायांति दुरतः ॥ सम्यध्यात तवस्वामिन् , सिध्यन्ति च मनोरथाः ॥ ४॥ स्तुतत्वैन रेनाथ, विलसंत्यखिलाः कलाः॥ उपमानोपमेयत्वं, चिरं जियाज जिनेश्वरं ॥ ५॥ युष्मद् पदानि पद गौरवसुप्रयोगैः स्तुत्वेति पार्श्वजिन सद्गुणभाजनत्वात् ॥ एकं प्रभु त्रिभुवनेऽपि भवे भवे हं, याचे शिवं प्रतिभवं ननु बोधिलाभं ॥ ६ ॥ ( संपूर्णम् ) ॥ अथ आदि जिन चैत्यवंदन ।। ॥ जय त्यादिम तीर्थेश, त्रिलोकी मंगल द्रुमः॥ श्रेयः फलं सदालोका, यथालोका दुपासते ॥१॥ श्रीमन्नानि कुलादित्य, मरुदेव्यं गजप्रभो ॥ संसाराब्धि महापोत,जयत्वं वृषन ध्वज ॥ २॥ नमस्ते जगदानंद, मोक्षमार्ग विधायक ॥ जैनेंऽ विदिताशेष, For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावस्तद्भाव नायकः ॥३॥प्रक्षीणाशेष संस्कार, विस्तार परमेश्वर ॥ नमस्ते वाक्यथातीत, त्रिलोक नर शेखर ॥ ४ ॥ भवाब्धि पतितानंत, सत्व संसार तारक ॥ घोर संसार कतार, सार्थवाह नमोस्तुते ॥५॥ इति ॥श्रीनेमिनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॐ नमो विश्वनाथाय, जन्मतो ब्रह्मचारीणे ॥ कर्मवती वनच्छेद, नमयेऽरिष्ट नेमये ॥ १॥ यदुवंश समुद्रेदु, कर्म कक्ष हुताशनः ॥ अरिष्ट नेमिर्भगवान् , भूयाध्वोऽरिष्ट नाशनः ॥ २ ॥ अनंत परमानंद, पुर्णधाम व्यवस्थितः ॥ भवंतं भवता साक्षी, पश्यतीह जनो खिल ॥३॥ स्तुवंत स्तावकं बिंब, मन्यथा कथमीदशं ॥ प्रमोदाति शयश्चित्ते, जायते भुवनातिग ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥श्री संखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र ।। ॥ ॐ नमः पार्श्वनाथाय । विश्व चिंतामणीयते।। ही धरणेंद्र वैरोट्या । पद्मादेवी युतायते ॥ १॥ शांति तुष्टि महा पुष्टि । धृतिकीर्ति विधायिने ॥ ॐ ही विद व्याल वैताल । सर्वाधिव्याधिनाशने ॥ २॥ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जया जिताख्या विजया । ख्यापरा जितयान्वित ॥ दिशापाल ग्रहैर्यौ । विद्यादेवी भिरन्वितः॥ ३ ॥ ॐ असिआउसायनम । स्तत्रस्त्रैलोक्य नाथतां ॥ चतुः षष्ठिसुरेंद्रास्ते । भासते छत्र चामरैः ॥ ४ ॥ श्री संखेश्वर मंडन । पार्श्व जिन प्रणत कल्पतरु कल्प ॥ चूरय दुष्ट वातं ॥ पुरयमे वांछितं नाथ ॥५॥ इति॥ ॥ अथ पार्श्वजिन चैत्यवंदन ॥ ॥श्रीपार्श्वनाथ नमस्तुभ्यं, विघ्न विध्वंस कारिणे ॥ निर्मलं स प्रभानंदे; परमानंद दायिने ॥१॥ अश्वसेना वनीपाल, कुलचूडामणि प्रभो ॥ वामासुनो नमस्तुभ्यं, श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वर ॥२॥ क्षितिमंडल मुकुट, धार्मिक निकटं, विश्वप्रगट, चारुभटं ॥ भवरेणु समीरं. जलनिधितीरं, सुरगिरिधीर गंभीरं ॥ जगत्रयं शरणं, दुर्गति हरणं, उद्धर चरणं, सुखकरणं ॥ श्रीपार्श्वजिनेंद्र, नत नागेंद्र, नमत सुरेंद्र, कृतभद्रं ॥३॥ कमठे धरणेंद्रे च, स्वोचितं कम्मे कुर्वती ॥ प्रभुस्तुल्य मनोवृतिः पार्श्वनाथ श्रियेऽस्तुवः ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ || श्री पार्श्वनाथजीतुं चैत्यवदन ॥ ॥ प्रणमामि सदा प्रभु पार्श्वजिनं, जिननायक दायक सुख घनं ॥ घनचारु महोत्तम देहधरं, धरणी पति नित्य सुसेवकरं ॥ १ ॥ करुणा रस रचित भव्य फणी, फणि सप्त सुशोभित मौलिमणि ॥ मणि कंचन रूप त्रिकोटि घटं, घटितासुर किन्नर पार्श्वतटं ॥ २ ॥ तटिनीपति घोष गंभीर स्वरं स्वरनाकर अश्व सुसेन नरं ॥ नरनारी नमस्कृत नित्यमुदा, पद्मावती गावीत गीत सदा ॥ ३ ॥ सहनेंद्रिय गोप यथा कमठं, कमठासुर वारण मुक्तहठं ॥ हठ हेलित कर्म कृतांतबलं, बलधाम धुरंधर पंकजलं ॥ ४ ॥ जलजध्वय पत्र प्रभानयनं, नयनंदित भव्य नरेश मनं ॥ मन मन्मथ महीरुह वन्हिसमं, समतामय रत्नकरं परमं ॥ ५ ॥ परमार्थ विचार सदा कुशलं, कुशलं कुरुमे जिननाथ अलं || अलिनी नलिनी नलिनील तनुं, तनुताप्रभु पार्श्वजिनं सुधनं ॥ ६ ॥ धन धान्यकरं करुणा परमं परमामृत सिद्धि महासुखदं ॥ सुखदायक नायक संतभवं, भवभूत प्रभु पार्श्वजिनं शिवदं ॥ ७ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ ॥ श्री जिन चैत्यवंदन ॥ ॥अद्याभवत सफलता नयन द्वयस्य देव त्वदीय चरणांबुज वीक्षणेन।अद्य त्रिलोक तिलकं प्रतिभासतेमे, संसार वारि धिरयं चक्षुक प्रमाणः॥१॥ कलेवं चंद्रस्य कलंक मुक्ता, मुक्तावली चारु गुण प्रसन्ना ॥ जगत्रया स्याभिमंत ददाना, जैनेश्वरी कल्प लतेव मूर्ति ॥ धन्योहं कृत पुण्योहं, निस्तीर्णोहं भवार्ण वात ॥ अनादि भव कांतारे, दृष्टोयेन श्रुतो मया ॥ ॥ ३ ॥ अद्य प्रक्षालितं गात्रं, नेत्रेच विमलिकृत ॥ मुक्तोहं सर्व पापेभ्यो, जिनेंद्र तव दर्शनात् ॥ ४ ॥ दर्शनात दुरित ध्वंसी, वंदनात् वंछित प्रदः ॥ पूजनात् पुरुरकः श्रीणां, जिनःसाक्षात् सुरद्रुमः ॥ ५ ॥ ॥अथ श्रीसिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन ।। ॥ श्री आदिनाथ जगन्नाथ, विमलाचल मंडन ॥ जयनाभि कुलाकाश, प्रकाशन दिवाकर ॥१॥ तवदेव पदांभोज, सेवापि दुर्झना भवेत् ॥ पुण्य संभार हीनानां ॥ कल्पवल्बी व देहिनाम् ॥ २॥ ते धन्या मानवा देवा, योगमन्तब शासनं ॥ वंदनीया विभा For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ तेये, वंदंते भवतः पदौ ॥ ३॥ प्रचंड मम रागादि, रिपुसंतति घातकं ॥ श्रीयुगादि जिनाधीश, देवं वंदे मुदा सदा॥ ४॥ श्री शत्रुजय कोटिर, कृतं राज्यधिया विभो ॥ सर्वोधनाशनं मेस्तु, शासनं ते भवे भवे ॥५॥ पाताले यानि बिंबानि यानिबिंबानि भूतले ॥ स्वर्गेपियानि बिबानि, तानिवंदे निरंतरम् ॥ इति ॥ ॥ परमेष्टी स्तोत्र ॥ ॥ ॐ परमेष्टी नमस्कारं, सारं नव पदात्मकं ॥ आत्मरक्षा करं वज्र, पंजराभ्यस्मराम्यहं ॥ १॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं, शिर सिस्थितं ॥ ॐ नमो सिद्धाणं, मुखे मुख पटवरं ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायनी ॥ ॐ नमो उवझायाणं, आयुधं हस्तयो ढं॥३॥ॐ नमोलोएसव्वसाहणं,मोचके पादयोः शुभे ॥ एसो पंच नमुकारो, सिला वज्रमयीतले ॥४॥ सव्व पावणासणो, वप्रौवज्र भयोवहि ॥ मंगलाणं च सव्वेसिं, खादि रांगार खातिका ॥ ५॥ स्वाहा तंच पदं झेयं, पढमं हवइ मंगलं ॥ वोपरि वज्रमयं, पिधानं देह रक्षणे ॥ ६॥ महा For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभव रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव नाशिनि ॥ परमेष्टि पदोद्भुता, कथिता पूर्वसुरिभि॥७॥यश्चेवं कुरुते रक्षा, परमेष्टि पदैः सदा ॥ तस्य नस्याद्भवे व्याधि, राधिश्चापि कदाचन। ॥ ८॥ इति ॥ ॥ पंचषष्टी यंत्र स्तोत्र ॥ ॥ आदौ नेमिजिनं नौमि, संभवं सुविधि तथा॥ धर्मनाथं महादेवं, शांतिशांतिकरं सदा ॥ १॥ अनंत सुव्रतं भक्त्या, नमिनाथं जिनोत्तम ॥ अजितं जितकंदर्प, चंद्रचंद्र शमप्रभं ॥ आदिनाथं महादेवं, सुपार्श्व विमलंजिनं ॥ महिनाथं गुणोपेतं, धनुषां पं. चविंशति ॥ ३॥ अरनाथं महावीरं, सुमतिंच जगदुगुरुं ॥ श्रीपद्मप्रभ नामानं, वासुपूज्यं सुरैर्नतं ॥४॥ शीतलं शीतलं लोके, श्रेयांसं श्रेयसे स्तव ॥ कुंथुनाथं च वामेयं, श्री अभिनंदन विभु ॥५॥ जिनानां नामनिर्बद्धं, पंचषष्टि समुद्भवं ॥ यंत्रोयंराजते यत्र, तत्र सौख्यं निरंतरं ॥ ६॥ यस्मिन् गृहे महाभक्त्या, यंत्रोयं पुज्यते बुधैः ॥ भुत प्रेत पीशाचायै, भयं तत्र न विद्यते ॥७॥ सकल गुण निधानं,यंत्रमेनं विशुद्धं, For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हृदय कमल कोशे, धीमतां ध्येय रूपं ॥ श्रीजयतिलक गुरु, सूरी राजस्य शिष्यो, वदति सुख निधानं, मोक्ष लक्ष्मी निवासं ॥८॥ ॥ श्री शांति जिन चैत्यवंदन ।। ॥ जय जय शांति जिणंद देव, हथिणापुर स्वामी, विश्वसेन कुलचंद सम, प्रभु अंतरजामी ॥१॥ अचिरा उर सर हंस जिम, जिनवर जयकारी ॥मारी रोग निवारके. कीर्ति विस्तारी ॥२॥ शोलमा जिनवर प्रणमीयें ए, नित उठी नानी सील ॥ सुरनर भूप प्रसन्न मन, नमलां वाधे जगीश ॥३॥ इति ॥ ॥श्री नेमनाथ जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ समुद्रविजय कुलचंद नंद, शिवादेवी जाया॥ यादव वंश नमोमणि, सौरीपुर ठाया ॥ १॥ बालथकी ब्रह्मचर्य धर, गतम र प्रचार ॥ नोक्ता निज आत्मिकगुण, त्यागी संसार ॥ २॥ निःकारण जग जीवनो ए, आशानो विसराम ॥ दीनदयाल शिरोमणि, पूरण सूरतरु काम ॥३॥ पशुआं पुकार सुणी करी, छांडी गृहवास ॥ तत्क्षण संयम आदरी, करी For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ कर्मनो नाश || ४ || केवल श्री पामी करीए, पहोता जन्म मरण भय टालवा, ग्यान मुगतिमोझार ॥ सदा सुखकार ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ चैत्यवंदन बीजुं ॥ ॥ बावीशमा श्री नेमनाथ, नित्य उठी वंदो ॥ समुद्रविजय सुत भानुसम, भविजन सुखकंदो ॥ १॥ सघन श्याम दुति देहनी, दश धनुष्य शरीर | अमित कांति यादव धणी, जांजे भवतीर ॥ २ ॥ राजिमती रमणी तजीए, ब्रह्मचर्य धरधीर ॥ शिवरमणी सुख विलसतां, भूप नमे धरी धीर ॥ ३ ॥ इति ॥ || अंतरीक पार्श्वनाथ चैत्यवंदन || ॥ प्रभु पासजी ताहरु नाम भीतुं, त्रिलोकमां एटलं सार दी || सदा समरतां सेवतां पाप नातुं, मन माहरे ताहरू ध्यान बेटुं ॥ १ ॥ मन तुम पासे वसे रात दीवसे, मुख पंकज नीरखवा हंस हीसे ॥ धन ते घडी जे घडी नयण दीसे, भली भगति भावे करी वनविषे ||२|| अहो एह संसार छे दुःख दोरी, इंद्वजालमां चित लागी ठगोरी || प्रभु मानीए विनती For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक मोरी. मुज तार तुं तार बलीहारी तोरी ॥३॥ सही सुप्न जंजालमां संग मोह्यो, घडीयालमां काल रमतो न जोयो ॥ मुधा एम संसारमा जन्म खोयो, अहो घृत तणे कारणे जल विलोयो ॥ ४ ॥ एतो भ्रम लोके सुवा भ्रांति धायो, जश् सुक तणी तंतु मांदे भरायो ॥ सुके जंबु जाणी ग्रने दुःख पायो, प्रभु लालचे जीवडो एम वाह्यो ॥ ५॥ भम्यो भ्रम भुल्यो रम्यो कर्म भारी, दयाधर्मनी बात नवी विचारी ॥ तोरी नम्र वाणी परम सुखकारी, तीहं लोकना नाथ नवी संभारी ॥६॥ विषय वेलडी सेलडी करी जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तोरी बाणी ॥ एवो भलो भुंडो नीज दास जाणी, प्रभु राखीए बांहनी छाह प्राणी ॥ ७॥ मारा विविध अपराधना कोड सहीए, प्रभु सरणे आव्या तणी लाज वहीए ॥ वली घणी घणी विनति एम कहीए, मुज मानस परमहंस रहीए ॥ ८॥ इति ॥ कलस ॥ कृपामूर्ति पार्श्वस्वामी मुगती गामी ध्याश्ये, अति भक्ति भावे विपत जावे तास संपती For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha ३४ पाए ॥ प्रभु महिमा सागर गुण वैरागर पास अंतरीक जे स्तवे, तस सकल मंगल जयजयारव आनंद वर्धन विनवे ॥ १ ॥ इति ॥ ॥चैत्यवंदन बीजं ॥२॥ ॥ जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी ॥ अष्टकर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामी ॥१॥ प्रभुनामे आनंदकंद, सुख संपत्ति लहीये ॥ प्रभु नामे भवभय तणां, पातक सब दहियें ॥ २ ॥ ॐ ही वर्ण जोडी करीए, जपीये पारस नाम ॥ विष अमृत थई परगमे, पावे अविचल ठाम ॥ ३॥ इति॥ ॥ अथ चोवीस तीर्थकरनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ रुषभ अजित संभव नमो, अनिनंदन जिनराज ॥ सुमती पदम सुपास जिन, चंद्रप्रभु महाराज ॥१॥ सुविधि शीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य सुख वास ॥ विमल अनंत श्रीधर्म जिन, शांतिनाथ पूरे आश ॥२॥ कुंथु अर मल्लि जिन, मुनीसुव्रत जगनाथ ॥ नमी नेमी पार्श्व वीर, ए साचो शिवपुर साथ ॥३॥ द्रव्य भावथी सेवीये, आणी मन उल्लास For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ आतम नीर्मल कीजीये, जिम पामी जे सिववास || एम चोवीस जिन समरतां ए, पोचे मननी आश ॥ अमीकुमर एणी परे भणे, पामे लील वीलास ॥५॥ इति चैत्यवंदन ॥ ॥ अथ वीस विहरमाननु चैत्यवंदन ॥ पहेला श्रीमंधर नमो, बीजा जुगमंधर ॥ बाहुजिन त्रिजा नमो, सुबाहु सुखकार ॥१॥ सुजात जीन पंचमा, स्वयंप्रभु जिन छठा।। रुषभानन जिन सातमा, अनंतवीरज जिन दीठा ॥ २ ॥ सुरप्रभु नवमा नमो, दशमा देवविसाल ॥ वज्रधर जिन ग्यारमा, चंद्रानन दयाल ॥ ३ ॥ चंद्रबाहु जिन तेरमा, चउदमा भुजंगनाथ ॥इश्वरस्वामी पनरमा, नेमी प्रभुनो करो साथ ॥ ४ ॥ वीरसेन जिन सतरमा, महानद्र जिनराज ॥ देवजसा ओगणीसमा, अजितवीरज महाराज ॥५॥ जंबुद्वीपे च्यार जिन, घातकीखंडे आठ ॥ पुष्कराई आठ जिन; नमतां होय नित ठाठ ॥ ॥ ६ ॥ ए वीसे जिन वंदीए, विहरमान जगदीस ॥ पूजो प्रणमो प्रेमशुं, धरो ध्यान निस दीस ॥७॥ धन For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते देश नगर पुरी, जिहां विचरे जिनराज ॥ भवि जीवने प्रतिबोधता, सारे आतम काज ॥ अनुभव रसमयि देशना; स्यादवाद समुदाय ॥ सत्ता धर्म प्रकासता, दुरगति दुःख पलाय ॥९॥ जिम उत्तम पद रूपनी ए, निस दीन करो सेवा ॥ अमीकुमर एणीपरे भणे, मोक्ष तणां सुख लेवा ॥ १० ॥ इति ॥ ॥ अथ गौतमस्वामीनु चैत्यवंदन ॥ ॥ बीरुद धरी सर्वज्ञमुं, जिन पासें आवे ॥ मधुरे वयण शुं वीरजी, गौतम बोलावे ॥१॥ पंचभूत मांही थकी ए उपजें, वीणसें ॥ वेद अरथ विपरीतथी, कहो किम भव तरसे ॥ २॥ दान दया दम त्रिनु पदे ए; जाणे तेहज जीव ॥ ज्ञानविमल घन आतमा, सुख चेतना सदैव ॥३॥ इति ॥ ॥अथ रोहिणी तपनु चैत्यवंदन ।। * ॥ रोहणी तप आराधीए; श्री श्री वासुपूज्य ।। दुःख दोहग दूरे टले, पूजक होये पूज्य ॥ १ ॥ पहेला कीजे वास खेप, प्रह उठीने प्रेम ॥ मध्याने करी धोतीयां, मन वचन काय खेम ॥२॥ अष्ट प्रकारनी For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar रचीए, पूजा नृत्य वाजींत्र ॥ भावे भावना जावीए, कीजें जन्म पवीत्र ॥ ३ ॥ त्रीहुं काले लेइ धुप दीप, प्रभु आगल कीजें ॥ जिनवर केरी भगतीमुं. अवीचल सुख लीजे ॥ ४ ॥ जिनवर पूजा जिन स्तवन, जिननो कीजें जाप ॥ जिनवर पदने ध्याइए, जीम नावें संताप ॥५॥ कोड कोड गुण फल दीए, उत्तर उत्तर भेद ॥ मान कहे ए वीध करो. ज्युं होय भवनो छेह ॥ ६॥ इति ॥ वीसस्थानक नाम चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ पहिले पद अरिहंत नमुं॥ बिजे सरव सिद्ध ॥ त्रीजे प्रवचन मन धरो ॥ आचारज सिद्ध ॥ १ ॥ नमोथेराणं पांचमे ॥ पाठक गुण छठे ॥ नमोलोए सव्वसाहणं. जे छे गुण गरीठे ॥ नमो नाणस्स आठमे, दरसण मन भावो ॥ विनय करी गुणवंतनो ॥ चारित्र पद ध्यावो । नमो बंचवय धारिणं ॥ तेरमें कोरियाणं ॥ नमो तवस्स चौदमे ॥ गोयम नमोजिणाणं ॥४॥ चारित्र ज्ञान सुअस्सनें ए, नमो ती For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ थ्थस्स जाणी ॥ जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुख खाणी॥५॥ इति श्रीविसस्थानक नाम चैत्यवंदन॥ ॥ वीसस्थानक तपना काउसगर्नु चैत्यवंदन ॥ - चोवीस पन्नर पीस्तालीसनो, छत्रीशनो करीए ।। दस पचवीस सतावीसनो, काउसग्ग मन धरीए ॥१॥ पंच सडसठि दस वली, सितेर नव पणावत ॥ बार अडवीस लोगसतणो, काउसग्ग धरो गुणीस ॥ २ ॥ वीस सतर इगवन्न, द्वादशन पंच ॥ इणीपरे काउसम्ग जो करे, तो जाए भव संच ॥३॥अनुक्रमे काउसग्ग मन धरो, गुणी लेज्यो वीस ॥ वीस थानक इम जाणीए, संक्षेपथी लेश ॥ भाव धरी मनमां घणोए, जो एक पद आराधे ॥ जिन उत्तम पद पद्मने॥ नमी नीज कारज साधे ॥५॥ इति संपूर्णम् ।। ॥ अथ तीर्थकरनी राशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥शांति नमी मल्ली मेष छे ॥ कुंथु अजित वृषभांति ॥ संभव अभिनंदन मिथुन ॥ धर्म करक सिंह सुमती ॥१॥ कन्या पद्म प्रभु नेमविर ।। पास सुपास तुलाय ॥ शशी वृंश्चक धन रुषभदेव ॥ सुविधि शीतल जिनराय ॥ मकर सुवृत श्रेयांसने, बारमा For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । घटमिन लील ॥ वीमल अनंत अरनामथी ॥ सुखीया श्री शुभ वीर ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ चउदसें बावन गणधरनुं चैत्यवंदन ।। ॥ गणधर चोराशी कह्या ॥ वलि पंचाणं छेक ॥ दोय अधीक इगसयगणा || सोल अधिक सत एक ॥१॥ सत सुमतिने गणधरा॥ इगसय अधीका सात ॥ पंचांणुं त्राणुं तथा ॥ अडशीइ इगशीइ बात ॥२॥ बोहेतर छासठ सगवन, पंचास त्रेतालीस ॥ छतीस पणतीस कुंथुने ।। अर गणधर तेत्रीस ॥ ३॥ अडविस अष्टादश सुण्या ॥ नमो सतर गणधार ॥ एकादश दश शिव गया ॥ वीरतणा अगीआर ॥ ४ ॥ रुषभादिक चोवीसना ए ॥ एक सहस सय च्यार ॥ अधीकेरा बावन कह्या ॥ सर्व मली गणधार ॥ ५ ॥ अक्षय पद वरीया सवे ए ॥ सादी अनंत नीवास ॥ करीए सुत्नचित वंदना ॥ जब लग घटमां सास ॥६॥ ॥ अथ जिन पूजानु चैत्यवंदन ॥ ॥ निजरूप जिननाथके, द्रव्य पण तिमहिं ॥ नाम स्थापना नेदथी, प्रगट जगमांहि ॥१॥ अध्या For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तमथी जोडिये, निक्षेपा चार ॥ तो प्रभु रुप समान भाव, पामे निरधार ॥२॥ पावन आतमने करे ए. जन्म जरादिक दूर ॥ ते प्रभु पूजा ध्यानथी, राम कहे सुखपूर ॥३॥ इति ॥ ॥ श्री पर्युषणपर्वतुं मोटु चैत्यवंदन ।। ॥श्री शेजो सिणगारहार, श्री आदि जिणंद ॥ नाभिराया कुल चंद्रमा, मरुदेवी माय ॥१॥ काश्यप गोत्र इखाग वंश, विनितानो राय ॥ धनुष पांचसे देहमान, सोवन सम काय ॥ २ ॥ वृषभ लंछन धूर वंदियेए, संघ सकल सुभरीत ॥ अठाइधर आराधीए, आगम वांणी वनीत ॥ ३॥ (बोजु) प्र वाधिदेव, जिनवर महावीर ॥ सुरनर सेव्यो सांतदांत, प्रभु साहस धीर ॥१॥ परव पजुसण पुण्ययी, पामी भवी प्राणी ॥ जैन धरम आराधिये, समकित हित जांणी ॥२॥ श्री जिनप्रतिमा पुजीयेए, कीजे जनम पवित्र ।। जीव जतन करी सांभलो, प्रवचन वाणी वनित ॥ त्रीजुं) कल्पतरु वर कल्पसुत्र, पुरे मनवंछित ॥ कल्पधर धुरथी सुणो, श्री वीर चरित्र द For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ ॥१॥ खत्री कुंडे नरपति, सिद्धारथ राय ॥ राणी त्रिसलातणी कुंखे, कंचन सम काय ॥ २ ॥ पुष्पोतर विमानथी चवीए, उपना पुन्य पवित्र ॥ चतुरा चौद सुपन लहे, उपजे विनय विनित ॥ ॥३॥ ( चोथु) सुपनविध कहे सूत होस्, त्रिभूवन सिणगार ॥ ते दिनथी रिधे वध्या, धन अखुट भंडार ॥२॥ साढासात दिवस अधिक, जनम्या नवमासे॥ सुरपति करे मेरु सिखरे, उच्छव उल्लासे ॥२॥ कुंकुम हाथा दीजीये ए. तोरण झाकझमाल ॥ हरखे वीर हुलरावीये, वांणी वनित रसाल ॥३॥ (पांचमुं) जिननी बहेन सुदर्सना, भाइ नंदिवर्द्धन ॥ परणी यसोदा पदमनी, वीर सकोमल रत्न ॥१॥ दे दान संवत्सरी, लेइ दिक्षा स्वामी ॥ कर्म खपावी थया केवली, पंचमी गति पांमी ॥२॥ दीवाली दीवस थकीए, संघ सकल सुभरीत ॥ अठम करी तैलाधरे, सुणज्यो एकहि चित ॥ ३ ॥ (छ) पास जिणेसर नेमनाथ, समुद्रथी वैष्णुव सूणीये ॥ आदिसरना च. रित्र, जिननां अंतर सुणीये ॥१॥ गौतमादीक For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કર थीरावली, सुद्ध समाचारी ॥ पर्व दीन चौथे दिने, भाषा गणधारि ॥२॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तप ए, जिनधरमें जिन चित्त ॥ जिन प्रतिमा जिन सारीखी, वंदु सदा वनित ॥३॥ (सातमुं) पर्वराज संवच्छरी, दिनदिन प्रते सेवो ॥ श्लोक बारसे कल्पसूत्र, वीर मुनिनो सुणो ॥ १॥ परम पाटपर बार बोल, भा. ख्या गुरु हिरे ॥ संपति श्री विजय मानसुरी, गच्छपति गणधीरे ॥२॥ जिनशासन सोभा करुए, कीर्ति विजय कहे सीस ॥ वीनय विजय कहे वीरने, चरणे नामुं सीस ॥३॥ इति पजुसण चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥ श्री संखेश्वर पार्श्वनाथनुं चैत्यवंदन । ॥सकल भविजन चमत्कारी, नारी महिमां जेहनो ॥ निखिल आतम रमा राजित, नाम जपीये तेहनो ॥ दृष्ट कर्माष्टक गजारी, भविक जन मन सुखकरो ॥ नित्य जाप जपीये पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो ॥ १ ॥ बहु पुण्यराशी देश काशी, तथ्थ नयरी वणारशी ॥ अश्वसेन राजा राणी वामा, रूपे रति तनुं सारशी॥ तस कुखे सुपन्न चौद सूचित, For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar स्वर्गथी प्रभु अवतरयो ॥ नित्य० ॥ २ ॥ पोश मासे कृष्णपक्षे, दशमि दिन प्रमु जनमीया ॥ सुरकुमार सुरपति भक्ति भावे, मेरु श्रृंगे स्थापिया ॥ प्रभाते पृथ्वी पति प्रमोदे, जन्म महोच्छव अति कयों॥ नित्य० ॥३॥त्रण लोक तरुणी मन प्रमोदी, तरुण वय जब आविया ॥ तव मात तातने परण्य चाते भाभिनि परणावीया ।। कमठ शठकृत अग्निकुंडे, नाग बळतो उधों ॥ नित्य० ॥४॥ पोश वदि एकादशी दिन, प्रवा जिन आदरे ॥ सूर असूर राजी भक्ति साजी, सेवना झाझी करे ॥ काउस्सग्ग करता देखी कमठे, किध परिसह आकरो ॥ नित्य० ॥ ५ ॥ तव ध्यान धारारुढ जिनपति, मेघ धारे नवि चळ्यो । तिहां चलित आसन धरण आयो, कमठ परिसह अटकळ्यो । देवाधि देवनी करी सेवा, कमठने काढी परो । नित्य० ॥६॥ क्रमे पामी केवळज्ञान कमळा, संघ चउवीह स्थापीने, प्रभुगया मोक्षे समेत शिखरे, मास अणसण पाळीने ॥ शिवरमणी संगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करे ॥ नित्य० ॥ ७॥ भूत प्रेत For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ . पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टळे ॥ राज्य रमणी रमा पामे, भक्ति भावे जो मळे ॥ कल्पतरुथी अधिक दाता, जगत त्राता जयकरो ॥ नित्य० ॥७॥ जरा जर्जरी भूत यादव, सैन्य रोग निवारता, वढीयार देशे नित्य विराजे, भविक जीवने तारता ॥ ए प्रभु तणा पद पद्म सेवी, रूप कहे प्रभुता वरो ॥ नित्य जाप जपीये, पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो ।। ९ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री पार्श्वनाथजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ पुरिसां दाणी पार्श्व नाथ, नमीये मन रंग ॥ नीलवरण अश्वसेन नंद, निरमल निस्संग ॥१॥ कामीत दायक कल्पसाखी, वामा सुतसार ॥ श्री गवडीपुर स्वाम नाम, जपियें निरधार ॥ २ ॥ त्रिजुवन पति त्रेवीसमोए, जास अखंगीत आण ॥ एक मनें आराधतां, लहिये कोड कट्याण. ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री वर्द्धमानजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ वर्द्धमान जिनवर धणी, प्रणमुं नित्य मेव ॥ सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव ॥ १॥ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिसला उयर सर हंस सम, प्रगटयो सुखकंद ।। केसरी लंछन विमल तनु, कंचनमय वृंद ॥२॥ महावीर जगमा वडोए, पावापुरि निर्वाण ॥ सुरनर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥श्री महावीर स्वामीनु चैत्यवंदन ॥ नव चोमासीतप कर्यां,त्रणमासी दोय॥दोय दोय अढीमासी, तिम दोय मासी होय ॥१॥ बहोत्तेर पास खमण कर्या,मास खमण को बार ॥ खटमासी आदर्या बार ॥ अठम तप सार ॥२॥ षटमासी एकतिम कयों, पण दिन उण षटमास ॥ बसें ओगणत्रीस छठभला, दिदा दिन एक खास ॥३॥ भद्र प्रतिमा दोय तिम, महाभद्र दिन च्यार ॥ दस दिन सर्वतो भद्रना, ला. गट निरधार ॥४॥विण पाणी सप आदर्यो, पारण दिन जास ॥ द्रव्या हारण नक कह्यो, त्रणसें उगण पंचास ॥ ५॥ छद्मस्थे एणीपरे रह्या, सह्या परिसह घोर ॥ शुकल ध्यान अनले करी, बाट्या कर्म कठोर ॥६॥ शुकल ध्यान अंतर रह्या ए, पांम्या केवलनाण ॥ यशविजय कहे प्रणमतां, लहीये नित्य कल्याण ॥ ॥७॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सीमंधर स्वामीनु चैत्यवंदन । ॥ जंबुद्विप पूरव दीशे, पुष्कल वक्ष विजये । नयरी पुंडर गिणी निरमली, धर्म सदा जिहां सजीए ॥१॥ श्रेयांस नरेसर नंद चंद, सत्यकी मात मल्हार ॥ रुख. मणी राणी वालहो, शिववंधु उरहार ॥ २॥ धनुष पांचसे देहमान, कंचन वरणी काय ॥ वृषभ लंछन रलियामणो; पुर्व चोराशी आय ॥ ३ ॥ शाति कुंथु अंतर जन्म, सीमंधर जिनराज ॥ वीस लाख पूर्व कुमर पद, त्रेसठ लाख पुर्वराज ॥४॥ श्री मुनिसुव्रत जव विचरता, तव प्रभु लीये दीक्षा ॥ कर्म खपावी केवल लही, दीये बहु जन शिक्षा ॥ ५॥ उदय ना. थने शासने, वरशे शिव पटराणी ।। सो कोड मुनी. राजजी, दसलाख केवल नाणी ॥६॥ सकल गुणे करी शोभता ए, शिवरमणी शिणगार ॥ श्री रूपविजय कविरायनो, माणेक कहे मुझतार ॥७॥इति॥ ॥वीजु चैत्यवंदन.॥ ॥ श्री सीमंधर विचरता, सोहे विजय मोझार ॥ समवसरण देवे रच्यु, बेसे परखदा बार ॥१॥ नव For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૧૭ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्व दीये देशना, सांजळे सुरनर कोड ॥ षट द्रव्यादिक वरणवे, ले समकित कर जोम ||२|| इहा थकी जिन वेगळा, सहस तेत्रीस शत एक ! सत्तावन जो जन वलि, सत्तर कला विवेक || ३ || द्रव्यथकी प्रभु वेगला, भावथी हृदय मोझार ॥ त्रण काल वंदन करूं, स्वास मांहे सोवार ||४|| श्री सीमंधर जिनवरु ए, पुरे बंछित कोम ॥ कांतिविजय प्रभु प्रणमतां, भक्ते बेकर जोड ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रीजुं चैत्यवंदन ॥ ॥ पूर्व दिशि इशान कूण, पुक्खल में विजया ॥ नयरी पुंडरिगिणी तिहां, सीमंधर थुणीया ॥ १ ॥ पुर्वायु चोराशी लख, कांचन मय काया ॥ उंचपणे सय धनुष्य पंच, प्रणमे सुरराया ||२|| जयवंता जिन विचरंता, केवल दीपक देव ॥ श्री सीमंधर स्वामीजी, देजो तुम पद सेव ॥ ३ ॥ वीशलाख पूर्व कुंवर वास, भोगवी जिनेश्वर ॥ त्रेसठ लाख पुर्व राजऋद्धी, पाली अलवेश्वर ॥ ४ ॥ मुनिसुव्रत जिन विहरमान, तइये तुम दीक्षा ॥ तीर्थकर पद लहिये स्वामी, महियल For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ ॥ ये शिक्षा ॥ ५ ॥ एह अमे खोलग करू, सुणज्यो बीजा चंद || वंदना हमारी वीनंती, जइ कहेज्यो जिनचंद ॥ ६ ॥ समवसरण बेठा जिणंद, उपदेशे जिधर्म | भविक जिव वाणी सुणी, बांधे जे शुभ कर्म ॥ ७ ॥ आठ कर्म चारे कषाय, अढार दोष छंडाय ॥ लही नाण. चौतीश अतिशया, वाणी गुण कहेवाय ॥ ८ ॥ भरत क्षेत्रनां भविकजन, वांछे तुम आशिष ॥ हर्षपणे धर्मलाभ द्यो, पूरो संघ जगीश ॥ ९ ॥ इति ॥ ॥ श्री पंच तिथेनुं चैत्यवंदन. ॥ ॥ धुर समरूं श्री आदिदेव, विमलाचल मंगण || नाभिराया कुल केसरी, मारुदेवी नंदन ॥ १ ॥ गिरनारे गिरुवो वांदर्श, स्वामी नेमकुमार ॥ बालपणे चारित्र लीयो, तारी राजुल नार ॥ २ ॥ बंभण वाडे वीर जिणंद, मन वंछित पुरे ॥ सायण डायण भुत प्रेत, तेहना मद चूरे ॥ ३ ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, महिमाये महंतो, गोमी दोडी जाइये, पुरे मननी खंतो ॥ ४ ॥ चक्रवर्ति पदवी तजी, लीधो संजम भार ॥ शांति जिणेसर सोलमां, नित्य नित्य करूं जुहार ॥ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥५॥ पंचे तीरथ जे नमे; प्रह उठी नरनार ॥ कमळविजय कवी एम कहे, तस घर जय जयकार ॥इति ।। ॥चैत्यवंदन बीजु ॥ ॥ आजदेव अरिहंत नमुं, समलं तारं नाम । ज्या ज्या प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करुं प्रणाम ॥१॥ शत्रुजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्री अजितनाथ; आबु ऋषभ जुहार ॥२॥ अष्टापद गिरि उपरे, जिन चोवीशे जोय ॥ मणिमय मुरति मानशुं, भरते भरावी सोय ॥३॥ समेत शिखर तीरथ वडुं, जिहां वीशे जिन पाय ॥ वैभारक गिरि उपरें, श्रीवीर जिनेश्वर राय ॥ ४ ॥ मांडव गढनो राजियो, नामे देव सुपास ॥ ऋषम कहे जिन समरतां, पहोचे मननी आश ॥५॥ इति ॥ ॥ श्री सिद्धचक्रजी- चैत्यवंदन ॥ विमल केवल ज्ञान कमला ॥ ए देशी ॥ ॥ सकल मंगल परम कमला, केली मंजुल मं. दिरं ॥ भव कोटि संचित पाप नासन ॥ नमो न पद जयकरं ॥१॥ अरिहंत सिद्धसूरी वाचक, साधु For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दरिसण सुखकरं ॥ वर ज्ञानपद चारित्र तप ए॥ ॥नमो० ॥२॥ श्रीपाळ राजा शरीर साजा, सेवतां नवपद वरं ॥ जगमाहे गाजा किरती भाजा ॥ नमो० ॥३॥ श्री सिद्धचक्र पसाय संकट, आपदा नासे अरं ॥ वली विस्तरे सुख मनो वंछित ॥ नमो०॥ ॥४॥ आंबिल नव दिन देववंदन, त्रण टक निरतरं ॥ दोयवार पडिकमणा पलेवण ॥ नमो० ॥ ५॥ त्रिकाळ भावे पुजीये भव, तारक तीर्थकरं ॥ तिम गगणं दोय हजार गुणीये ॥ नमो० ॥ ६॥ एम विधि सहित मन वचन काया, वश करी आराधीये ॥ तप वर्ष साढाच्यार नवपद ॥ नमो० ॥७॥ गद कष्ट चुरे सर्व पुरे, यक्ष विमलेश्वर वरं । श्री सिद्धचक्र पसाय माणिक, विजय विलसे सुखकरं ॥ नमो०॥ ८॥ ॥बीजु चैत्यवंदन ॥ ॥सिद्धचक्र आराधता, भवसायर तरिये ॥ भव अटवीथी उतरी, शिव वधुने वरीये ॥१॥ अरिहंत पद आराधतां, तिर्थंकर पद पावे ॥ जग उपकार करे घणो, सिधर शिवपुर जावे ॥२॥ सिद्ध पद ध्यातां For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थका, अखय अचल पद पावे ॥ कर्म कटक भेदी करी, अकल अरुपी थावे ॥३॥ आचारज पद ध्यावता, जुगप्रधान पद पावे ॥ जिनशासन अजवालीने, शिवपुर नयर शोभावे ॥ ४ ॥ पाठक पद ध्यायतां,वाचक पद पावे ॥ भणे नणावे भावसुं, सुरपुर शिवपुर जावे॥५॥ साधुपद आराधतां, साधुपद पावे॥ तप जप संयम आदरे, शिवसुंदरीने कामे ॥६॥दरसण नाण पद ध्यायतां, दर्सण नाण अजुआले ॥ चारित्र पद ध्यायता, शिव मंदिरमा माले ॥७॥ केसर कस्तुरी केतकी, मचकुंद मालति माले ॥ सिद्धचक्र से, त्रिकाल, जिम मयणाने श्रीपाल ॥ ८॥ नव आंबिल नव वार शियल, समकितसुं पालो ॥ श्री रुपविजय कविराजनो, माणेक कहे थइ उजमालो ॥ ९॥ इति ॥ ॥ पर्युषण पर्वतुं चैत्यवंदन ॥ ॥ प्रणमुं श्री देवाधिदेव, जिनवर श्री महावीर ॥सुरनर सेवा शांतदांत, प्रभु साहस धीर ॥१॥ पर्व पर्युषण पुन्यथी, पामी भवी प्राणी ॥ जैन धर्म आरा. धीये, समकित हित जाणी ॥२॥ श्री जिनप्रतिमा For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजिये ए, कीजे जन्म पवित्र ॥ जीव जान करी सांभळे, प्रवचन वाणि वनित ॥ ३॥ इति ॥ ॥ पजुसणना वडा कल्पनुं चैत्यवंदन । वडा कल्प पुरव दिने, घरे कल्पने लावो । राति जगा प्रमुखे करी, शासनने शोभावो ॥१॥ हयगय सिणगारी कुमर, लावो गुरु पासे ॥ वडा कल्प दिन सांभलो, वीर चरित्र उसासे ॥ छठ घादश नप कीजीये, धरीये शुभ परिणाम ॥ स्वामीवच्छल प्रभावना, पुजा अभिराम ॥३॥ जिन उत्तम गौतम प्रतें, कहेजो एकवीस वार ॥ गुरुमुख पने भावसुं, सुणे तो पामे भवपार ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ श्री दीवाळीनु चैत्यवंदन ॥ ॥मगधदेश पावापुरी, प्रभु वीर पधारया ॥ सोल पोहोर देइ देशना, नवि जीवने तारया ॥१॥ भूप अढारे भावे सुणे, अमृत जीसी वाणी ॥ देशना दीये रयणीये, परण्या शिवराणी ॥२॥ राय उठी दीवा करे, अजवाळाने हेते ॥ अमावाश्या ते कही, वली दीवाळी कीजे ॥३॥ मेरु थकी आव्या इंद्र, For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाते लेइ दीवी ॥ मेराइया दिन सफळ करी, लोक कहे सवी जीवी ॥ ४ ॥ कल्याणक जाणो करी, दीवा ते कीजे ॥ जाप जपो जिनराजनो, पातिक सवि छीजे ॥ ५॥ बीजे दिन गौतम सुणी, पाम्या केवळ ज्ञान ॥ बार सहस गुणणु गुंणो, घर होसे कोड कल्याण ॥६॥ सुरनर किन्नर सहु मिली, गौतमने आपे ॥ भट्टारक पदवी देइ, सहू साखे थापे ॥ ७॥ जवार भट्टारक थकी, लोक करे जुहार ॥ बेन लाई जिमाडीया, नंदी वर्द्धन सार ॥८॥ भाइ बीज तिहा थकी, वीर तणो अधिकार ॥ जयविजय गुरु संपदा, मुजने दीयो मनोहार ॥९॥ ॥ चोवीस जिनेश्वरना छंद ॥ ॥चोपाइ ॥ आर्या ब्रह्मसुता वाणी गिर्वाणी। सुमति विमल आपो ब्रह्माणी। कमल कमंडल पुस्तक पाणी । हुं प्रणमुं जोडी जुग पाणी ॥ १॥ दुहा ॥ चोवीसे जिनवर तणा। छंद रचूं चोसाल । भणतां शिवसुख संपजे । सुणतां मंगल माल ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ छंद जाति सवैया ॥ आदि जिणंद, नमे नरइंद. सपुनमचंद, समान सुखं । समामृत कंद, टाले भवफंद, मरूदेवीनंद,करत सुखं ॥ लगे जस पाय, सुरिंद निकाय, भला गुण गाय, भविक जनं ॥ कंचन काय, नहि जस माय, नमे सुख थाय, श्री आदिजिनं ॥ १ ॥ अजितजिणं, दयाल मयाल, विसाल नयन, कृपाल जुगं। अनुपम गाल. महामृग चाल, सुभाल सुजानग, बाहु जुगं । मनुष्यमे बलीह, मुनिसरसींह, अबीह निरीह, गये मुगती । कहे नय चित्त, धरी बहु नक्ति, नमे जिननाथ, भली जुगती ॥२॥ कहे संभवनाथ, अनाथको नाथ, मुगतिको साथ, मिल्यो प्रभु मेरो । भवोदधिपाज, गरिबनिवाज, सवे शिरताज, निवारत फेरो ॥ जितारीको जात, सुसेना मात, नमे नर जात, मिली बहु घेरो । कहे नय शुद्ध, धरि बहु बुद्ध, जिनावन नाथ हुँ, सेवक तेरो ॥३॥ अभिनंदन स्वाम, लिधे जश नाम, सरे सवि काम, जविक तणो ॥ वनिता जस गाम, निवासको ठाम, करे गुण ग्राम, नरिंद For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar घणो ॥ मुनिश्वर रूप, अनुपम भूप, अकल स्वरूप, जिनंद सणो । कहे नय खेम, धरी बहु प्रेम, नमे नर पावत, सुख घणो ॥ ४ ॥ मेघ नरिंद, मल्हार विराजित, सोवनवांन, समान तनु । चंद सुचंद, बदन सुहावत, रूपविनिगत, कामतनु । कर्मकी कोडी, सवे दुख छोडी, नमे करजोडी, करि भक्ति। वंश इक्षवाकु, विभूषण, साहिब, सुमति जीनंद. गए मुक्ति ॥५॥ हंसपाद तुल्य रंग, रति अर्ध रागरंग, अढिसे धनुष चंग देहको प्रमाण हे । उगतो दिणंद रंग, लालकेसु फुल रंग, रूप हे अनंग, भंग केरो वान हे ॥ गंग को तरंग रंग, देवनाथही अभंग, ज्ञानको विसाल रंग, शुद्ध जाको ध्यान हे । निवारीए क्लेश संग, पद्मप्रभस्वामि धींग, दिजिए सुमति संग, पद्मकरो जाम हे ॥६॥ जिणंद सुपास, तणा गुण रास, गावे भवि भास, आणंद घणे । गमे भविपास, महिमा निवास, पूरे सवि आस, कुमति हणे ॥ चींहु दिसे वास, सुगंध सुवास, उसास नीःसास, जिनेंद्र तणो । कहे नय खास, मुनींद्र सुपास, तणो जस वास For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar सदैव भणो ॥७॥ चंद्र चंद्रिका समान, रुप सैलसे समान, दोढसो धनुषमान, देहको प्रमाण हे। चंद्रप्रभु स्वामी नाम, लीजीये प्रभात जाम, पामीये सुख ठाम ठाम, गामज समान हे ॥ महासेन अंगजात, लक्ष्मणाभिधान मात, जगमां सुजसख्यात, चिहुं दिसे थात हे । कहे नय छोडी तात, ध्याइये जो दिनरात, पामीये तो सुख सात, दुखकोमी जात हे ॥ ॥८॥ ढोलो दुधफेन पीड, उजलो कपुरखम, अमृत सरस कुंड, शुद्ध जाको तुंड है। सुविधि जिनंद संत, कीजीये दुःकर्म अंत, शुभ भक्ति जासदंत, श्वेत जाको वान हे ॥ कहे नय सुणो संत, पूजीये जो पुष्पदंत, पामीये तो सुख संत, शुद्ध जाको ध्यान हे ॥ ९॥ शितल शितल वाणी, घनाघन, चाहेत हे, भविकोक किशोरा, काक दिणंद प्रजासु नरींद, वली जिम चाहत चंद चकोरा ॥ विध गयंद सुचि सुरिंद, सति निज कंत सुमेध मयूरा ॥ कहे नय नेह धरी गुण गेह, तथा हु ध्यावत साहेब मेरा ॥ १० ॥ विष्णु भूपको मल्हार, जग जंतु सुखकार, वंशको शृंगार For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar हार, रूपको आगार हे । छोडि सवि चित्तखार, मान मोहको विकार, काम क्रोधको संचार, सर्व वैरी वार हे ॥ आदर्यो संजमभार, पंच महाव्रत धार, उतारे संसारपार, ज्ञानको भंडार है । इग्यारमो जिणंद सार खडगी जिव चिन्हधार, कहे नय वारोबार, मोक्षको दातार हे ॥ ११॥ लाल केसु फुल लाल, रति अर्घ रंग लाल, उगतो दिणंद लाल, लालचोल रंग हे। केसरीकी जीह लाल, केसरको घोल लाल, चूनडीको रंग लाल, लाल पान रंग है ॥ लाल कीर चंचू लाल, हींगलो प्रवाल लाल, कोकिलाकी दृष्टि लाल, लाल धर्म रंग है। कहे नय तेम लाल, बारमो जिणंद लाल, जयादेवी मात लाल, लाल जाको अंग हे ॥ १२॥ कृतवर्म नरिंद, तणो एह नंद, नमत सुरेंद्र, प्रमोद धरी । गमे दुख दंद, दीये सुखबंद, जाको पद सोहतः चित्त धरी ॥ विमल जिनंद, प्रसन्न वदन, जाके शुभ मन्न, सुगंग परि ॥ नमे एक मन्न, कहे, नय धन्य, नमो जिनराज, जिणंद सुप्रीत धरी ॥ १३ ॥ अनंत जिणंद For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar देव, देवमां देवाधिदेव, पूजो भवी नितमेव, धरी बहु नावना । सुर नर सारे सेव, सुख कीऊ स्वामी हेव, तुज पाखे और देव, न करुं हुं सेवना ॥ सिंहसेन अंग जात, सुजसाभिधान मात, जगमा सुजस ख्यात, चीहुं दिशे व्यापतो ॥ कहे नय तास वात, कीजीए जो सुप्रभात, नित्य होइ सुख सात, कीर्ति कोमी आपतो॥ १४ ॥ जाके प्रताप पराजित निर्बल, भूतल थइ भमे भानु आकाशे॥सौम्य वदन विनिर्जित अंतर श्याम शशी नवि होत प्रकासे। भानु महिपति बंसे कुसय, बोध न दीपत भानुप्रकासे ॥ नमे नय नेह धरी नितुसाहिब, धर्म जिद त्रिजग प्रवासे ॥ सोलमा जिणंद नामे, शांति होय ठामो ठामे, सिद्धि होय सर्व कामे, नाम के प्रभावथे ॥ कंचन समान वान, चालीस धनुष मान, चक्र अतिको भिधान, दीपतो ते सूरथे । चौद रयण समान, दी. पता नव निधान, करत सुरेंद्र गान, पुण्यके प्रभावथे ॥ कहे नय जोडी हाथ, अब हुँ थयो सनाथ, पाइयो सूमती साथ, शांतिनाथके दिंदारथे ॥ १६ ॥ हे कुंथु जिणंद, दयाल मयाल, विशाल नयन, कृपाल युगं For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ भव भीम महार्णव, पूर अगाह, अथाग उपाधि, सुनीर घणो । बहु जन्म जरा, मरणादि विभाव, निमिस घणादि कलेस घणो ॥ अवतारकतार, क्रिपा कर साहिब, सेवक जाणी अछे अपणो ॥ १७ ॥ अरदेव सुदेव, करे नर सेव, सवे दुख दोहग, दुर करे ॥ उपदेश घनाघन, नीर भरे भवि, मानसमान, भूरीतरे ॥ सुदर्शन नाम, नरेसर अंगज, भव्य मने प्रभु, जास वसे ॥ तस संकट शोक, वियोग कुयोग, दरिद्र कुसंगति, न आवत पासे ॥ १८ ॥ नील कीर, पंखी नील. नागवलि पत्र नील, तरुवर राजि नील, नील नील द्राख हे || काचको सुगोल नील, इंद्र नील रत्ननील पत्रनील चास हे ॥ जमुना प्रवाह नील, भंगराज पंखी नील, जेहवो अशोक वृक्ष, नील नील रंग हे । कहे नय तेम नील, रागथे आतम नील, मल्लीनाथ देव नील, जाको अंग नील हे ॥ १९ ॥ सुमित्र नरींद, तणो वरनंद, सुचंद्र वदन, सोहावत है । मंदर धीर, सेवे नरहीर सुशाम शरीर बिराजित हे ॥ कज्झल - बांन, सुकछपयान, करे गुणगान, नरिंद घणो ॥ मु For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निसुव्रत स्वामी, तणो अभिधान, लहे नय मांन आनंद घणो ॥ २० ॥ अरीहंत सरूप अनुपम रूपके, सेवक दुःखने दुर करे ॥ निज वाणी सुधारस मेघ जले, भवीमानस मान भूरी भरे ॥ नमी नाथको दर्शन सार लही कुण, विष्णु महेश धरे जो परे ॥ अब मानव मुढ लहि कुंण सकर, छोडके कंकर हाथ धरे ॥ २१ ॥ जादववंश विभूषण साहिब, नेमि जिणंद महानंदकारी॥ समुविजय नरिंद तणो सुत, उज्वल शंख सुलक्षण धारी॥ राजुल नार मुकी निरधार, गये गिरनार कलेस निवारी ॥ कन्झल काय शिवा देवी माय, नमे नय पाय महा व्रतधारी ॥ २२ ॥ पार्श्वनाथ अनाथको नाथ, सनाथ भयो, प्रभु देखत थे। सविरोग विजोग, कुजोग महा दुःख दुर गए प्रभु, ध्यावतथे ॥अश्वसेन नरेश, सुपुत विराजित, धनाघन वान समान तनु । नय सेवक वंछीत, पूरण साहिब, अभिनव कामं करि रमनु ॥ २३ ॥ कमठ कुलंठ उलंठ हठी हठ, भंजन जास प्रताप विराजे । चंदन वाणी सुवामानंदन, पुरुसादाणी बिरुद जस छाजे ॥ जस नामके ध्यान थको For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ सवि दोहग दारिद्र दुःख महा भय भांजे ॥ नय सेवक वंछित पूरण साहिब, अष्टमहा सिद्धि नित्य नीवाजे ॥२४॥ सिद्धारथ भूप तणा प्रतिरुप नमे नर भूप, आनंद धरी ॥ अचिंत्य स्वरूप, अनुपम रूपके, लंछन सेहात, जास हरी ॥ त्रिसला नंदन, समद्रुम कंदन, लघुपणे कंपित. मेरु गिरि ॥ नमे नय चंद, वदन विराजित, वीर जिणंद सुप्रीत धरी ॥ २५ ॥ चोवीस जिनंद, तणां एह छंद, भणे भविवृंद, जे भाव धरी ॥ तस रोग वियोग कुजोग भोम, सवि दुख्क दोहग दुर टळे ॥ तस अंगण बार, न लाभे पार, सुमति तोखार, हेखार करे । कहे. नय सार, सुमंगल चार, घरे तस संपद, भूरी भरे ॥ ॥ १६ ॥ संवेगी साधु विभूषण, वंस विराजित, श्री नय विमल, जनानंदकारी ॥ तस सेवक संजम, धार सुधीरके, धीर विमल गणी जयकारी ॥ तास पदांबुज, भृंग समान, श्रीनयविमल, महाव्रतधारी, कहे एह छंद, सुणो भविवृंद, के भाव धरीने, भणो नरनारी ॥ २७ ॥ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ चैत्यवंदन ॥ ॥प्रणमुं श्री गुरुराज आज, जिनमंदिर केरो॥ पुन्य भणी करस्युं सफल, जिन वचन भलेरो ॥१॥ देहरे जावा मन करे, चोथ तणुं फल पावे ॥ जिनवर जुहारवा, उठतां छठ पोते आवे ॥ २॥ जावा मांडयु जेटले ए, अट्ठम तणो फल जोय ॥ डगलं भरता जिन भणी, दशम तणो फल होय ॥३॥ जाइस्युं जिनहर भणी, मारग चालंता ॥ होवे द्वादशतएं, पुन्य भक्के मालंता ॥ ४॥ अर्ध पंथ जिनवर भणी, पनरे उपवास ॥ दीतुं स्वामितणुं भुवन, लहिए एक मास ॥ ५॥ जिनहर पासे आवता ए, छमासि फल सिद्ध॥ आव्या जिनहर बारणे, बरसित फल सिद्ध ॥६॥ सो बरस उपवास पुन्य, परदक्षणा देतां ॥ सहस वरस उपवास पुन्य, जिन नजर जोतां ॥७॥ भावे जिनहर जुहारीए, फल होवे अनंत ॥तेहथी लहिये सों गुणो, जो पुजो भगवंत ॥ ८॥ फल घणो फुलनी माल, प्रभु कंठे ठवता ॥ पार ना आवे गित नाद, केरा फल भणतां ॥ ए॥ जिन पुजी पूजा करे ए, For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुर धुप तणुं ध्यान ॥ अक्षत सार ते अक्षय सुख, दिपेतनुं रूप ॥ १०॥ निरमल तन मन करीए, सुथतां इम जगिस ॥ नाटिक भावना भावतां, पामे पदविज सार ॥ ११ ॥ जिनहर भक्ते वलिए, युन्ये प्रकासे ॥ सुणी श्री गुरु वयणासार, पुरवऋषी भाखे ॥ १२ ॥ टालवा आठ कर्मने, जिनमंदिर जास्युं॥ भेटीचरण भगवंतना, हवे निर्मल थास्युं ॥ १३ ॥ कीतिविजय उवज्ञायनोए, विनय कहे कर जोडी ॥सफल होजो मुज विनति, प्रभु सेवना कोम ॥१४॥इति। ॥ चौदसो वाचन गणधरोनुं चैत्यवंदन ॥ प्रथम तीर्थकरने नमुं, गणधर चोरासि देव ॥ पंचाएं अजित जीणंदना, हुं प्रणमुं नीत मेव ॥ १ ॥ श्री संभव जिनवर तणा, गणधर एकसो दोय ॥ अनिनंदन चोथा प्रभु, एकसो सोल तस होय ॥२॥ सुमतिनाथ प्रभु, जिन तणा ए, गणधर एकसो जाणुं॥ पद्मप्रभु स्वामितणा, एकसो सात वखाणुं ॥३॥ श्री सुपास जिन सातमा, गणधर पंचाणुं सार ॥ त्राणु चंद्र प्रभु तणा, उतरे भव पार ॥ ४ ॥ अठ्ठासी गण For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દૂર धर नमुं, सुविधि पुष्फ दंत | एक्यासी शीतल तणा, गणधर गुणवंत ॥ ५ ॥ श्रीयांस जिनवर तणा, गणधर बहोंतेर नमीये ॥ वासुपूज्य बासठ नमी, जव पाप निगमीये ॥ ६ ॥ विमल विमल जिनवर तणा गणधर सत्तावन जाणो ॥ पचास अनंत स्वामीना, नीत ही आणो ॥ ७ ॥ त्रैतालीस गणधर नमुं ए, जे धरमनाथ स्वामी ॥ बत्री शांति जिणंदना, जिणे पंचमी गति पामी ॥८॥ कुंथु जिणेसर सतरमा, गणधर जस पांत्रीस ॥ अरनाथ प्रभु अढारमा, जस गणधर श्रीस ॥ ९ ॥ अठ्ठावीस मल्ली जिन तणा, गणधर यति संगा ॥ मुनी सुव्रत अष्टादश, प्रणमो मनने रंग ॥ १० ॥ नेमिनाथ एकवीसमा, सत्तर गण कहीये ॥ नमी नीरंजन केरडा, एकादश लहीए ॥ ११ ॥ दश गणधर भावी नमो ए, श्री पासकुमार ॥ एकादश वीर जिन तणा, उतारे भव पार ॥ १२ ॥ ए चोवीशे जिन तणा ए, गणधर सरखां जाण || चौदसो बावन वलि, कल्याण विमल गुण खांण ॥ १३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५ || श्री ऋषभदेव जिन चैत्यवंदन ॥ अरिहंत नमो भगवंत नमो, परमेश्वर जिनराज नमो ॥ प्रथम जिनेश्वर प्रेमे पेखत, सिद्धां सघलां काज नमो ॥ अरि० ॥ १ ॥ प्रभु पारंगत परम महोदय, अविनाशी अकलंक नमो ॥ अजर अमर अद्भुत अतिशय विधि, प्रवचन जलधि मयंक नमो ॥ || अरि० ॥ २ ॥ तिहुयण जत्रियण जणमन वंछिय, पूरण देव रसाल नमो ॥ ललि ललि पाय नमुं हुं भाले, करजोडीने त्रिकाल नमो ॥ अरि० ॥ ३ ॥ सिद्ध बुद्ध तुं जग जन सजन, नयना नंदन देव नमो ॥ सकल सुरासुर नरवर नायक, सारे अहो निश सेव नमो ॥ अरि० ||४|| तूं तीर्थंकर सुखकर साहिब, तूं निःकारण बंधु नमो ॥ शरणागत भविने हितवत्सल, तुंही कृपारस सिंधु नमो ॥ अरि० ॥ ५ ॥ केवल ज्ञाना दर्शे दर्शित, लोकालोक स्वभाव नमो ॥ नाशित सकल कलंक कलुषगण, दुरित उपद्रव भाव नमो ॥ अरि० ॥ ६ ॥ जग चिंतामणि जगगुरु जग. हित, कारक जगजन नाथ नमो ॥ घोर अपार ज. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वोदधि तारण, तुं शिवपुरनो साथ नमो ॥ अरि०॥ ॥७॥ अशरण शरण नीराग निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो॥ बोधि दी अनुपम दानेसर, ज्ञानविमल सूरीश नमो ॥ अरि० ॥॥ इति ॥ श्री सिमंधर जिन चैत्यवंदन श्री सिमंधर जिनवरा, विचरे जंबुद्वीपे ॥ पुखलबइ विजय जयो, पुमरगणी दीपे ॥ १॥ सुत श्रेयांस राजा तणो, सोवन वरणी काय ॥ पुर्व चोराशी लाखनु, आयु जास सुहाय ॥२॥ पांचसे घनषनुं शरीर छे, वृषन लंछन पाय ॥ रुखमणी राणी नाहलो, सत्यकी जेहनी माय ॥३॥ दश लाख केवळी जेहने, सो कोडी मुनी स्वामि, साधवी सो कोडी श्राविका, श्रावक संख्या न पामी ॥ ४॥ प्रातिहारज आठ छे, वाणी गुण पत्रिील ॥ पुरव विदेहे जांणीये, नमतां लहीये जगीस ॥५॥ आ भरतें प्रभु कुंथुजिन, सिद्धीपुर पोहते ॥अरजिन जनम थयो नही, ए अं. तर सोहंते ॥ ६ ॥ सिमंधर जिन उपना, सुरपती महोच्छव कधिो ॥ सुबत नमी जिन अंतरे, दीक्षा For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७ कल्याणक सीधो ॥ ७ ॥ उदय पेढाल भावे प्रभु, तस अंतर कहेवाय ॥ सीमंधर जिन पामस्ये, अविनाशी पुर ठाय || ८|| आ भरते पण कोइ जीव, सुलभ बोधी जेह || जाप जपे तुझ मंत्रनो, लाख संख्याए तेह ॥ ९ ॥ भव स्थीती निर्णय तस होये, अथवा ध्यान पसाय ॥ उपजी विदेह केवळ लहे, नवमे वर्ष उछाह ॥१०॥ सासन सुरी पंचांगुली, सेवक सानिध सारे ॥ सिमंधर जिन सेवतां, भवी दुःख दोहग टाळे ॥ ॥ ११ ॥ प्रह उठीने नित नमोए, आणी मन आनंद ॥ लक्ष्मीसुरी प्रभु नामथी, प्रगटे परमानंद ॥ १२ ॥ ॥ श्रीसिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन ॥ || विमल केवल ज्ञान कमला व देशी ॥ ॥ श्री सिद्धाचळ तीर्थ नायक, विश्वतारक जाणीये ॥ कलंक शक्ति अनंत सुरगिरि, विश्वानंद वखाणी ॥ मेरु महीधर हस्त गिरिवर, चरच गिरिघर चिन्न ॥ सासमां सोवार बंदु, नमो गिरिगुणवंत ए ॥१॥ हसित वदने हेम गिरिने, पूजीयें पावन थई । पुंडरीक पर्वत राज सतकुट, नमत अंग आवे For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नही ।। प्रीति मंडण कर्म छंडण, शास्वतो सुरकंद ए ॥ सासमां० ॥२॥ आनंद घर पुन्यकंद सुंदर, मुक्ति राजे मन मस्यो ॥ विजय भद्र सुभद्रकामुक, अचल देखत दिल वस्थो । पाताल मुलने ढंक पर्वत, पुष्पदंत जयंत ए॥ सासमा० ॥३॥ बाहुबल मरुदेवी भगीरथ, सिद्धक्षेत्र कंचन गिरि ॥ लोहिताक्ष कुलिनी वासमां जस, रेवता चल महागिरि ॥ सेजा मणि पुन्य रासि, कुंवर केतु कहेत ए ॥ सासमां० ॥ ४ ॥ गुणकंद कामुक अढ शक्ति, सहजानंद सेवा करे ॥ जय जगत तारण ज्योति रूप, मालवंतने मनोहरे ॥ इत्यादिक बहु करिति माणक, करत सुर सुख अनंत ए॥सासमां० ॥ ५॥ श्री सिद्धचक्र जीटु चैत्यवंदन : श्री सिद्धचक्र आराधतां, सुख संपत्ति लहीये ॥ सुरतरु सुर रमणी थकी, अधिकज महिमा पाहीये ॥१॥ अष्ट कर्म हांगी करी, शिव मंदिर रहीये ॥ विधिशुं नवपद ध्यानथी, पातिक सवी दमाये ॥२॥ सिद्धचक्र जे सेवशे, एकमना नरनार ॥ मन वांछित For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फल पामशे, ते त्रिनोवन मोजार ॥३॥ अंगदेश चंपा पुरी, तस केरो भूपाल ॥ मराणा साथे तप तपे, ते कुंवर श्रीपाल ॥ ४ ॥ सिद्धचक्र नमन थकी. जस नाठा रोग ॥ ततक्षण त्यांथी ते लहे, शिवसुख संजोग ॥५॥ सातले कोढी होता, हुवा निरोगी जेह ॥ सोवन वाने जल हले, जेहनी नीरुपम देह ॥६॥ तेणे कारण तमे भवीजनो, प्रह उठी भक्ते ॥ आसो मास चैत्र थकी, आराधो जुगते ॥ ७ ॥ सिद्धचक्र त्रण काळना, वंदो वली देव ॥पडिकमणुं करी उभयकाल, जिनवर मुनि सेव ॥८॥ नवपद ध्यान इदय धरो, प्रतिपालो भवि शियल ॥ नवपद आंबिल तप तपो, जेम होय लीलम लील ॥९॥ पहेलो पद अरिहंतनो, नित्य कीजे ध्यान || बीजो पद वली सिफनो, करीए गुण ग्राम ॥ १० ॥ आचारज त्रीजे पदे, जपतां जय जय कार ॥ चोथो पद उवज्जायनो, गुण गाउ उदार ॥११॥ सरव साधु वंदु सही, अढी द्वीपमा जेह ।। पंचम पदमां ते सही, धरजो धरी सनेह ॥ १२ ॥ छठे पदे दंसण नमुं, दरसण अजवाबु ॥ ज्ञान पद For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ७० नमुं सातमे, तेम पाप पखावू ॥ १३ ॥ आठमे पद रूडे जपुं, चारित्र सुसंग ॥ नवमे पद बहु तप तपो, जिम फळ लहो अभंग ॥१४॥ एही नवपद ध्यानथी, जपतां नासे कोढ ॥ पंडित धीरविमल तणो, नय वंदे कर जोड ।। १५ ।। इति ॥ ॥ रोहणी तपर्नु चैत्यवंदन । ॥ श्री वासुपूज्य जिन बंदिये, जगदीपक जिनराज ॥ रोहिणी तप फल वर्णवं, भवजल तारण जहाज ॥ १॥ सुदि वैशाखे रोहीणी, तीज तणे दिन जाण ॥ श्री आदिसर जिनवर, वरसी पारणो जाण ॥ २॥ रोहिणी नक्षत्रने दिने, चउविहार उपवास ॥ पोसो पडिकमणो करी, तोडे करमनो पास ॥ ३ ॥ ते दिनथी तप मांडीए; सात वरस लगे सीम ॥ सात मास उपर वली, धरिए एहिज नीम ॥ ४ ॥ जिम रोहीणी कुंवरी, अशोक नाम भूपाल ।। ए तप पूरण घ्याइयो, पाम्या सुभगति विशाल ॥५॥ जिम भविजन तप कीजीए, शास्त्र तणे अनुसार ॥ जन्म मरणना भव थकी, टाले ए तप सार ॥ ६ ॥ तप पूरण For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ तेहज समे, करो उजमणो सार ॥ यथा शक्ति होये जेहनी, जिम करीये धरी प्यार ॥ ७ ॥ वासुपूज्य जिन बिंबनी, पूजा करो त्रिण काल || देव वंदो वली नावसुं, स्वस्तिक पर्व विशाल ॥ ८ ॥ ए तप जे सहि आदरे; पोहचे मननी कोड ॥ मन वांछित फले तेहना, हंस कहे कर जोक ॥ ९ ॥ इति ॥ ॥ बीजनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री जिन पद पंकज नमी, सेवो बहु प्यार ॥ बीज तणे दिन जिन तथा, कल्याणक सार ॥ १ ॥ महा सुद बीजे जनमीया, अभिनंदन स्वामी ॥ वासु पूज्य केवल लह्यो, नमीये शिरनामी ॥ २ ॥ फागुण सुदि द्वितीया वली, चविया श्री अरनाथ ॥ वद वैशाखे बीजनी, शीतल शिवपुर साथ ॥ ३ ॥ श्रावण सुदिने बीज तीथे, सुमती चवन जिणंद ॥ ते जिनवरने प्रणमतां, पामे अति आनंद ॥ ४ ॥ अतित अनागत वर्तमान, जिन कल्याणक जेह || बीज दीने चित्त धारीये; हिडे हरख धरेह ॥ ५ ॥ दुविध धर्म भगवंतजी, भाख्यो सुत्र मझार ॥ तेह भणी बीज For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ आराधतां, शिवपंथ साधन हार ॥ ६ ॥ प्रह उठीने नित नमोए, आणी प्रेम अपार || हंसविजय प्रभु नामथी, पामे सुख श्रीकार ॥७॥ इति ॥ || पंचमीनुं चैत्यवंदन ॥ " ॥ सकल सुरासुर साहिबो, नमिये जिनवरनेम || पंचमी तिथि जग परवडो पालो जन बहु प्रेम ॥ १ ॥ || जिन कल्याणक ए तिथे, संभव केवल ज्ञान ॥ सुविधि जिनेश्वर जनमिया, सेवो थइ सावधान ॥२॥ चवन चंद्रप्रभ जाणीये, अजित सुमति अनंत ॥ पंचमी दिन मोक्षे गया, भेटो भविजन संत ॥ ३ ॥ कुंथु जिन संजम ग्रह्यो, पंचमी गति जिन धर्म ॥ नेमी जनम वखाणीयें, पंचमी तिथि जगचर्म ॥ ४ ॥ पंचमीना आराधने, पामे पंचम ज्ञान ॥ गुणमंजरी वरदत्त जे, पोहता मोक्ष सुथांन ॥ ५ ॥ कार्तिक सुदि पंचमी थकी, तप मांडी जे खास ॥ पंच वरस आ राधीये, उपर वली पंच मास ॥ ६ ॥ दश खेत्रे नेटजिननां, पंचमी दिन कल्याण || एह तिथे आराधतां पामे शिवपद ठाण || ७ || पडिकमणां दोय टंकना, For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ करिये शुद्ध आचार || देव वंदो त्रिहु कालना, पोहचाडे भवपार || ८ || नमो नाएरस गुणणो गुणो, नोकारवाली वीस || सामायक सुधे मने, धरीये शियल जगी ||२|| इणीपरे पंचमी पावशे, भविजन प्राणी जेह || अजरामर सुख पानशे, हंस कहे गुण गेह ॥ १० ॥ इति ॥ || अष्टमीतुं चैत्यवंदन ॥ ॥ शासन नायक समरीयें, वर्द्धमान जिनचंद ॥ अष्टमी तिथिनो फल कहु, ध्यावो मन आणंद ॥ ||१|| ऋषभ जनम दिक्षा प्रभु, सुविधि चवन जिणंद ॥ अजित सुमति नमिनाथजी, जनम्या तिथि आनंद ||२|| संजवने सुपासजी, चवन कल्कांणक जाण ॥ अभिनंदन श्री पास प्रभु, पाम्या पद निर्वाण ॥ ॥ ३ ॥ सुनिसुव्रत अष्टमि तिथे, जनम्या जिनवर स्थाम ॥ इत्यादिक द्वादश कला, कल्याणक सुभ काम ॥ ४ ॥ पर्व तिथे पोसह करो, आणी मन एक तार ॥ अष्ट कर्म मद मोडवा, सेवो ए तिथी सार ॥ ५ ॥ सुजश राजानी परे, सेवो धरी बहु प्यार ॥ For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिद्धि सिद्धि घर पामस्यो, सेवो सहु नरनार ॥ ६॥ शियल संतोषे धारीयें, तजीये झुठ अभिमान ॥ मन वच काया सेवतां, पामे अमर विमान ॥ ७॥ इणीपरे अष्टमी तिथि, पामे भवनो पार ॥ हंस कहे प्रभु सेवतां नित्य पामे जयकार ॥ ८ ॥ ॥ श्री मौन एकादशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ नेमी जिनेश्वर गुणनिलो ब्रह्मचारी शिरदार ॥ सहस पुरुष शुं आदरे. दिक्षा जिनवर सार ॥ १ ॥ पंचावन में दिन लघु, निर्मळ केवळनाण ॥ भविक जीव पडिबोहतां, विचरे महियल जाण ॥ २ ॥ विहार करंता आविया, बावीशमां जिनराय ॥ द्वारिका नगरी समो सरया, समवसरण सिंहां थाय ॥ ३॥ बार पर्खदा जिहां मली, भांखे जिनवर धर्म ॥ सर्व पर्व तिथी साचवो, जिम पामो शिव शर्म ॥ ४ ॥ तत्र पुछे हरी नेमिने, दाखो दिन मुज एक ॥। थोको धर्म कर्या थकी शुभ फल पामुं अनेक ॥ ५ ॥ नेमि कहे केशव सुपो, वर्ष दिवसमा जोय ॥ मृगशिर सुदी एकादशी, ए सम अवर न कोय ॥ ६ ॥ एणे दिन For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणक हुआ; नेQ जिननां सार ॥ ए तिथी विधि आराधतां; सुत्रत लह्यो भवपार ॥७॥ ते माटे मोटी तिथी, आराधो मन शुद्ध ॥ अहोरत्तो पोसह करी; मन धरि आतम बुद्ध ॥ ८॥दोढसो कल्याणक तणुं, गुणाणुं गुणो मनरंग ॥ ए तिथि विधि आराधिये, जिम पामो शिवसंग ॥ ९॥ उजमणुं पण कीजीये, चित्त धरी उल्लास ॥ पुंठाने विटांगणा, इत्यादिक करो खास ॥१०॥ एम एकादशी भावशं: आराधे नरराय ॥क्षायक समकितनो धणी; जिन वंदी घर जाय । ॥११॥ एकादशी भवियण करो ए, उज्वल गुण जिम थाय ॥ खिमाविजय जस ध्यानथी, शुभ सुरपति गुणगाय ॥ १२ ॥ इति ॥ ॥ श्री पर्युषणर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ सकल पर्व शृंगार हार, पर्युषण कहीए । मंत्र माहि नवकार मंत्र, महिमा जग लहीए ॥१॥ आठ दिवस अमार सार, अठाई पालो ॥ आरंभादिक परिहरी, नरभव अजुआलो ॥२॥ चैत्य परिपाटी शुद्ध साधु, विधि वंदन जावे ॥ आठम तप सं. वच्छरी, पडिक्कमणुं भावे ॥३॥ साधर्मिक जन खामणां For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए, त्रिविधिशुं कीजे ॥ साधु मुख सिद्धात कांत, वचनामृत रस पीजे ॥ १॥ नव व्याख्याने कल्पसूत्र, विधि पूर्वक सुणीए ॥ पूजा नव प्रभावना, निज पातिक हीए ॥५॥ प्रथम वीर चरित्र बीज, पार्श्व. चरित्र अंकुर ॥ नेमि चरित्र प्रबंध खंध, सुख संपति पूर ॥ ६॥ ऋषभ चरित्र पवित्र पत्र, शास्वा समुदाय ॥ स्थविरावलि बहु कुसुम पूर, सरिखो कहेवाय ॥ ॥७॥ समाचारी शुद्धताए, वर गंध वखाणो ॥ शिव. सुख प्राप्ति फल सही, सुरतरु समजाणो ॥ ८॥ चौद पूर्वधर श्री भद्रबाहु, जिणे कल्प उद्धरियो । नवमा पूर्वथी युग प्रधान, आगम जल दरियो ॥ ९ ॥ सात वार श्री कल्पसूत्र, जे सुणे भवि प्राणी ॥ गौतमने कहे वीर जिन, परणे शिव राणी ॥ १० ॥ कालिक सूरी कारणे ऐ, पजुसण कीयां ॥ भादरवा शुदि चोथमां, निज कारज सिध्यां ॥११॥ पंचमी करणी चोथमां, जिनवर वचन प्रमाणे ॥ वीर थकी नवसे एंशी, वरसे ते आणे ॥१२|| श्री लक्ष्मी सागर सुरीश्वरूए, प्रमोद सागर सुखकार ॥ पर्व पजुसण पालता, होवे जय जयकार ॥ १३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ७७ ॥ श्री सिद्धचक्रजीतुं स्तवन ॥ ॥ वीर जिनेश्वर साहेब मोरा ॥ ए देशी ॥ सकल कुशल कमलानुं मंदिर, सुंदर महीमारे जास ॥ नवपदमां नव निधिना दाता, सिक अनेकमां वासरे ॥ भविका सिद्ध चक्र सुखकारी ॥ तुमे आराधो नरनारीरे लविका० ॥ प्रथम पदे अरिहंत आ. राधो, स्फटीक रत्न सम वान ॥ पद्म एक मणिनी परे राता, बीजे सिद्धनुं ध्यानरे ॥ भविका० ॥२॥ त्रीजे आचारज अनूसरीए, कंचन कांति अनोष ॥ पद चोथे उवझायने प्रणमो, इंद्र निल सम वानरे ॥ भविका० ॥ ३॥ सर्व साधु पद पंचमे प्रणमो, श्याम वरण सुखकार ॥ छठे दरिसण ज्ञान सातमे, आठमे चारित्र साररे ॥ भविका० ॥ ४ ॥ तपनु आराधन पद नवमे, चारए उज्वल वरणा ॥ इह लोगोतमे एहीज मंगल, करवा एहनु शरणरे ॥ भविका०॥ ॥५॥ आसो चैत्री अट्टाश्मांहि, नव आंबिल नव ओळी ॥ सिद्धचक्रजीनी पूजा करतां ॥ दुःख सबि नाखो ढोळीरे ॥ भविका० ॥ ६ ॥ सिद्धचक्र पूजाथी For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सघळी, संपदा निज घेर आवे ॥ दुष्ट कुष्ट प्रमुख जे रोगा, ते पण दुरे जायरे ॥ भविका० ॥ ७॥ पृथ्वी निरुपम नयरी उज्जेण, दोय पुत्री तस सारी॥ सुरसुंदरी मिथ्यात्विने पेखी, मयणा जिन मत धारीरे ॥ ॥ भविका० ॥ ८॥ सुरसुंदरी कहे सवि सुख अमने, छ निज तात पसाय ॥ मयणा कहे ए फोगट कुसुमत, सुख दुःख कर्म पसायरे ॥ भविका० ॥९॥ तव वचन नृप कोप्यो एह, आव्यो उंबर इण समे॥ सातसें कोढिनो ते अधिपति, तेणे मागी कन्यायरे ॥ ॥ भविका० । १० नृप कहे मेणा तुम कमें, आण्यो ए वर रसाल ॥ तव मयणा मन धीरज धरीने, कंठे ठावे वरमालरे ॥ भविका० ॥ ११ ॥ शुभवेला परणी दोय पहोंच्या, श्रीजिनवर प्रासाद ॥ ऋषभदेव पूजा गुरूपासे, आव्या धरि उवासरे ॥ भविका० ॥ १२ ॥ प्रणमी मयणा कहे गुरुने, हवे भांखो कोई उपाय ॥ जेहथी तुम श्रावकनी काया, सर्वनीरोगी थायरे ॥ ॥ भविका० ॥ १३ ॥ गुरु कहे अमने मंत्र जंत्रादिक, कहेवा नहि आचार ॥ योग्य पणुं जाणी अमे कहेशुं, For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९ करवाने उपगाररे ॥ भविका० ॥ १४ ॥ नव दीन नव आंबिल तप करीने, सिद्ध चक्र नित्य पूजो ॥ न्हवण तणु जल छांटो अंगे, रोग सकल तीहां भुजे रे || भविका० ॥ १५ ॥ गुरु वचन आंबिल तप करीने, सिद्धचक्र आराध्यो | उंबर कोड गयो तस दुरे, रूप अनुपम वाध्योरे || भविका० ॥ १६ ॥ श्री श्रीपाल नरेंद्र थयो जे, परण्यो बहु कन्याय || प्रजापाल पण थयो श्रावक, श्री जिनधर्म पसायरे ॥ भविका० ॥ ॥ १७ ॥ अनुक्रमे चंपा राज्य लइने, पाले अखंडित आण || जगमांहे जसवाद थयो बहु, नित्य नित्य रंग मंडारे || भविका० ॥ १८ ॥ महामंत्र परमेष्टी तणोए, भवदुख नासे सविलंत ॥ सकल सिद्धि वश करवाने, एह अनोपम यंत्ररे ॥ भविका० ॥ १९ ॥ एनो महिमा केवली जाणे, किम छद्मस्य प्रकाशे ॥ माटे ए सकल धर्मथी, सारो जासे जिन धर्मरे ॥ ॥ भविका० ॥ २० ॥ ते माटे भवियण तुमे भावो; सिद्धचक करो सेवा || आ भव परभव बहु सुख संपदा, जिम लहिये शिव मेवा ॥ ॥ भविका० ॥ ॥२१॥ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ८० सुरत बंदर रही चोमासुं, स्तवन रच्युं एवारी ॥ सतरसे बासठ वरसें, संघ सकल हित कारीरे ॥ ॥ भविका० ॥ २२ ॥ सिद्धचक्रनो महिमा सुणतां, होवे सुख विस्तार ॥ श्री विजयसेनसूरिश्वर विनवे, दान विजय जय कारीरे ॥ नविका०॥ २३ ॥ ॥ श्री अष्टापदजीतुं स्तवन । ___॥ नींदरडी वेरण हुई रहो ॥ ए देशी ॥ श्री अष्टापद उपरे, जाणी अवसर हो आव्या आदिनाथके ।। भावे चोसठ इंद्रशें, सप्तवतरण हो मल्या भोटा साथके ! श्री० ॥ १॥ विनीतापुरथी आवियो, बहु साथे हो वली, भरत भूपाल के ।। वांदी हीयडा हेजसुं, तात सुरतीहो निके नयणे निहालके ॥ श्री.॥२॥ लई लाखीगा भामणी, कहे वयणा हो मोरा नयणा धन्नके ॥ विण सांकल विण दोरडे, बांधी लीधुं हो वाहाला लें मन्नके ॥ श्री० ॥ ॥३॥ लघु भाईए लाडका, ते तो तातजी हो राख्या हीयडा हजुरके ॥ देशना सुणी वांदी वदे, धन्य जीवडाहो जे तर्या भवपुरके ॥ श्री० ॥ ४॥ पूछे प्रेमे For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरीयो, आ भरते हो आगल जगदीशके ॥ तीर्थकर केता होशे, भणे ऋषभजी हो अम पछी त्रेवीसके । ॥श्री०॥५॥ माघनी सांमळी तेरस, प्रभु पाम्या हो पद परमानंदके ॥ जाणी भरतेश्वर नणी, ससनेहा हो नाभिरायाना नंदके ॥श्री० ॥ ६॥ मनमोहन दीन एटला, मुज साथ हो रूषणा नविलीधके । हेज हियरो पर हरी, आज उंडी हो अबोलडा लीधके ॥ श्री०॥७॥ विण वांके काइ विरासिया, ते तोड्या हो प्रभु प्रेमना त्रागके ॥ ईन्द्रे भरतने बुझव्या, दोस म दीयो हो ए जिन वितरागके ॥ श्री०॥ ८॥ शोक मुकी भरतेसरु, वारधिकने हो वली दीध आदेशके ॥ थुभ करो जिण जिण थानके, संसकार्याहो तातजी रीसहेसके ॥श्री० ॥९॥ वली बंधव बीजा साधुना, तीहां कीधाहो त्रण शुभ अनुपके ॥ उंचो स्फटिकनो फुटडा, देखी डुंगरहो हरख्या भणे भूपके ॥ श्री० ॥ ॥ १० ॥ रतन कनक थुभ टुकडो, करो कंचन हो प्रासाद उत्तंगके ॥ श्री०॥ चोवारो चूंपे करी, एक जोयण हो मान मनरंगके ॥ श्री० ॥ ११॥ सिंह नि For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्या नामनो, चौरासी हो मंडप प्रासादके ॥ त्रण कोश उंचो कनकमें, ध्वज कलशे हो करे मेरुसुंवादके ॥श्री० ॥ १२ ॥ वान प्रमाणे लंछने, जिन सरखीहो तीहां प्रतिमा कीधके ॥ दोयचार आठ दस नणी, ऋषभादिक हो पूखे परसिद्धके॥श्री०॥ १३ ॥ कंचन मणी कमले ठवि, प्रतिमानी हो आणी नासिका जोडके ॥ देव वंदे रंग मंडपे, नीलां तोरण हो करी कोरणी कोडके ॥श्री०॥१४॥ बंधव बेन माता तणी, मोटी मुरतीहो मणी रतने भरायके ॥ मरुदेवा मयगल चढी, सेवा करतीहो निज मुरतीनी पायके ॥ ॥श्री० ॥१५॥ पाडिहारज छत्र चामरा, जक्षादिक हो कीधा अनिमेषके ॥ गोमुख चतुर चक्केसरी, गढवाडीहो कुंड वाव्य विशेष के ॥ श्री० ॥ १६ ॥ प्रतिष्ठा प्रतिमा तणी, करावेहो राजा मुनिवर हाथके ॥ पूजा स्नात्र प्रभावना, संग भक्ति हो खरची खरी हाथके ॥श्री० ॥ १७ ॥ पडते आरे पापीया, मत पाडोहो कोई वीरु वाटके ॥ एक एक जोयण आंतरे, इम चितवीहो करे पावडियां आठके ॥ श्री० ॥१८॥ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan देव प्रभावे ए देहरां, रहेशे अविचलहो छठ्ठा आरा सीमके ॥ वांदे आप लब्धिने तरे, नर तेणे भवहो, भवसागर सीमके ॥ श्री० ॥ १९॥ कैलासगिरिना राजीआ, दीओ दरीसण हो कांई म करो ढीलके ॥ अरथी होये उतावला, मतराखोहो अमशुं अडखीलके ॥ श्री० ॥ २०॥ मन मान्याने मेलवे, (आवा मइहो तेन मले मित्तके ॥) आवा स्थाने हो कोइ न मले मित्र के, अंतरजामी मील्या पछी, किम चालेहो, रंग लाग्यो मजीठके ॥ श्री० ॥ २१ ॥ ऋषभजी सिद्धि वधु वर्या, चांदलिया हो ते देउल देखाडके। जले भावे वांदि करी, मारे मुक्तिना हो मुज बार उघाडके ॥ श्री० ॥ २२ ॥ अष्टापदनी जातरा, फल पामहो भावे भणे भासके ॥ श्रीभाव विजय उवझायनो, भाण भाखेहो फले सघली आशके ॥ श्री० ॥ २३ ॥ दस पच्चख्खाण- स्तवन. ॥ दुहा ॥ सिद्धारथ नंदन नमुं, महावीर भगवंत ॥ त्रिगमे बेठा जिनवरु, परखदाबार मिलंत ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૮૪ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधर गौतम ति समे, पुछे श्री जिनराय ॥ दसपचखाण कीसां कहां, कीहां कवण फल थाय ॥२॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ सीमंधरकर || श्री जिनवर इम उपदीशे, सांभल गौतम स्वाम ॥ दश पचखाण कीधां थकां, लहीये अविचल ठाम ॥ १ ॥ श्री नवकोरशी बीजी पोरिसी, साढ पोरिंसी पुरिमं ॥ एकाए निवि कही, एकलठाण दिव ॥ २ ॥ दत्ति आबेल उपवास सहि, एहज दश पचखाण 11 11 एहना फल सुण गौतमा, जुजुंआं करूं वखाण || ३ || रत्नप्रभा शर्कराप्रजा, वालुक त्रीजीय जाण ॥ पंकप्रभा धूमप्रभा, तमप्रभा तमतमा ठाम ॥ ४ ॥ नरक साते रहिसही, करम कठन कर जोर ॥ जीव करम वश करे जूदा, उपजे तिणहीज ठोर ॥५॥ छेदन भेदन ताडना, भुख तृषा वली त्रास ॥ रोम रोम पीडा करे, परमाधामीना त्रास ॥ ६ ॥ रात दिवस क्षेत्र वेदना, तिल भर नहीं तिहां सुख ॥ किधां करम तिहां भोगवे, पामे जीव बहु दुख ||७|| एक दिननी नवकारसी, जे करे भाव For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशुद्ध ॥ सो वरस नरकनो आजखो. दरी करे ज्ञानी बुद्ध ॥ ८॥ नित्य करे नवकारसी, ते नर नरक नही जाय ॥ न रहे पाप वळी पाछला, निर्मल होवेजी काय ॥९॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ विमलासर तिलो ॥ ए देशी ॥ सुण गौतम पोरिसी कियां, महामोटो फल होय ॥ भावशुं जे पोरिसी करे, दुर्गति छेदे सोय ॥ ॥ सु० ॥ १॥ नरक मांहे जीव नारकी, वरसां एक हजार ॥ करम खपावे नरकमां, करतां बहुत पुकार ॥२॥ दुर्गति मांहे नारकी, दशहजार परिमाण ॥ ननरकनो आयु खिण एकमें, साढ पोरसी करेहाण ॥३॥ पुरिमढ करतां जीवडा, नरके ते नहीं जाय ॥ लाख वरस करमना कटे, पुरमढ करत खपाय ॥ ४ ॥ लाख वरस दस नारकी, पामे दुःख अनंत ॥ इतरां करम एकासणे, दुरि करे मनखंत ॥५॥ एक कोडि वरसां लगे, करम खपावे जीव ॥ निवि करतां भावशुं, दुर्गति हणे सदैव ॥६॥दस कोडी जीव नरकमें, जीतरो करे कर्म दूर ॥ तितरो अकलठाणहि, करेसही चकचूर ॥७॥ दत्तिकरंता प्राणीया, सो कोमे परिमाण ॥ For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar इतरा वरस दुर्गति तणां, छेदे चतुर सुजाण ॥८॥ आं. बिलनो फल बहु कह्यो, कोडी दस हजार ॥ करम खपावे इण परे, भावे आंबिल कर ॥ ९॥ कोमी हजार दस वरस सही, दुख सहे नरक मझार ॥ उपवास करे एक नावसुं, पामे मुक्ति दुवार ॥ १०॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ केइक वर मागे सिता भणी ॥ ए देशी ॥ ___ लाख कोडी वरसां लगे, नरके करता बहु रीवरे ॥ सुणी गौतम गणधर उट्ठ तप करतां थकां, सही नरक निवारे जीवरे ॥१॥ नरक विषे कोडी लाखही, जीव लहे तिहां अति दुखरे ॥ सुण ॥ ते दुख अट्टम तप हुंती, दूरकरे पामे सुखरे ॥ सु० ॥ २ ॥ बेदन नेदन नारकी, कोडा कोमी वरसाइरे ॥ सु०॥ दुर्गति कर्मने परहरे, दशमें एटलो फल होइरे ॥ सु० ॥३॥ नित्य फासु जल पीवतां, कोडा कोडी वरसनां पापरे ॥सु० ॥ दूर करे खीण एकमां, जीव निश्चये निरधाररे ॥ सु० ॥ ४ ॥ एतो वली अविशेष फल कह्यो, पांच करतां उपवासरे ।। सु० ॥ तेतो पामे झान पांच भला, करंतां त्रिभुवन उज्जासरे ॥ सु०॥५॥ चौदश For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan तप विधिशुं करे, चौद पूरव होय धाररे ॥सु० ॥ अगीयारस एकादशी, करता लहीये शिवसाररे ॥सु० ॥६॥ अट्ठम तप आराधतां, जीव न फरे इण संसाररे ॥ सु०॥ इम अनेक फल तप तणा, कहेतां वली नावे पाररे॥ सु० ॥ ७॥ मन वचन काया करी, तप करे जे नर नारीरे ॥ सु० ॥ अनंत भवना पापथी, जीवमा निरधाररे ॥ सु० ॥८॥ तप इंति पापी तर्या, निस तपिया अरजन मालीरे ॥ सु०॥ तप हंति दिन एकमां, शीव पाम्या गजसुकुमालरे ॥ सु०॥९॥ तपनां फल सूत्रे कह्यां, पचखाण तणा दश भेदरे॥ ॥ सुम् ॥ अवर भेदे पण छे घणा, करतां छेद तीन वेदरे ।। सु ॥ १० ॥ ॥ कलश ॥ पचखाण दस विध फल प्ररुप्यां, महावीर जिन देवए ॥ जे करे नवियण तप अखंडित, तासु सुरपद सेवए ॥ संवत विधु गुण अश्वशशि, वळी पोश शुद दशमी दीने ॥ पद्मरंग वाचक शिष्य गणि, रामचंद तप विधि भणे ॥ इति श्री पञ्चख्खाण स्तवन. For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीअट्टावीश लब्धिD स्तवन ॥ ॥ दुहा ॥ प्रणमुंप्रथम जिणेसरु, शुद्ध मने सुखकार ॥लब्धि अट्ठावीस जिण कही, बागमने अ. धिकार ॥१॥ प्रश्नव्याकरणे प्रगट, भगवती सूत्र मझार ॥ पन्नवणा आवश्यके, वारु लब्धि विचार ॥२॥ आंबिल तपे करी उपजे, लब्धि अट्ठावीश ॥ ए हवे प्रगट अर्थशं, सांभळज्यो सजगीस ॥३॥ ॥ ढाळ ॥ १ ॥ सफल संसारनी ए देशी ॥ अनुक्रमे हवे अधिकार गाथा तणो, लबधि नामा परिणाम सरिखा भणो । रोग सहु जाय जसु अंग फरस्यां सही, प्रथम ते लबधि छे नाम अमोसही ॥१॥ जासु मल मूत्र औषध समा जाणीये, बीय विप्पोसही लबधि वखाणीये ॥ श्लेष्म औषध सारिखो जेहनो, त्रीजी खेलोसही नाम छे तेहनो ॥२॥ देहना मेलथी कोढ दुरे हुव, चोथी जल्लो सही नाम तेहनो ठवे॥ केश नख रोम सहु अंग फरस्ये सही, रहे नहि रोग सव्वो सही ते कही॥३॥एक इंद्रिये करी इंद्रिय तणुं, भेद जाणे तिका नाम संभिन्न भणुं ॥ वस्तु For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९ रूपी सहु जाणिये जिण करी, सातमी लबधि ते अवधि ज्ञाने घणी ॥४॥ ॥ ढाळ ॥ २ ॥ शारद बुध दाई ॥ ए देशी ॥ __ आव्यो तिहां नरहर एजाति ए देशी ॥ हवे अंगुल अढीये उणो मानुष खित्त, संज्ञी पंचेडि तिहां जेवसे विचित्त ॥ तसु मनना चित्त ते जाणे थुल प्रकार, ए ऋजुमति नाम अठम लबधि विचार ॥१॥ संपूर्ण मानुष खेत्रे संझावंत, पंचेंडि जे वैमनवातां तसुतंत ॥ सुक्षम पर्याये जाणे सह परिणाम, ए नवमी कहीये विपुल मति शुभ नाम ॥ २॥ जिण लबधि प्रमाणे उडी जाये आकाश, ते संघा विद्या चारण लबधि प्रकाश ॥ जसु वचन श्रापे खिणमा खेरु थाय, ए लबधि अगीआरमी आसीवि कहेवाय ॥३॥ सहु सुक्ष्म बादर देखे लोक अलोक, ते केवली लबघि बारमोये सहु थोक ॥ गणधर पद लहीए तेरमी लबधि प्रमाण, चौदमी लबधि करी चौद पुरवजाण ॥ ॥ ४ ॥ तीर्थकर पदवी पामे पंदरमी लबधि, सोलमी मुखदाई चक्रवर्ति पद ऋद्धि ॥ बलदेव तणा पद ल. For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीये सतरमी सार, अढारमी आखी वासुदेव विस्तार ॥५॥ मिश्री घृत खीरे मेल्यां जेह सवाद, एहवी लहे वाणी ओगणीसमे प्रासाद ॥ भणियो नावे भूल सुत्र अर्थ सुविचार, ते कुट्ठगबुद्धि विसम लबद्धि विचार ॥६॥ एके पदे भणीये आवेपदलखेकोडि, एकवीसमी लबधि पाया[सारिण जोडि ॥ एके अर्थे करी, उपजे अर्थअनेक॥ बावीसमी कहीए, बीज बुद्धि सुविवेक॥७॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ कपुर होये अति उजलुरे ।। ए देशी ॥ सोलह देश तणी सहीरे, द हक शक्ति वखाण ॥ तेह लबधि तेवीसमीरे, तेजो लेश्या जाण ॥ १॥ चतुर नर सुणज्यो ए विचार, वारु लबधि विचार ॥ चतुरनर० ॥ चौद पूरवधर मुनिवरुरे, उपजता संदेह ॥ रुप नवो रची मोकलेरे, लबधि आहारक एह ॥ चतुरनर० ॥ २ ॥ तेजो लेश्या अग्निनेरे, उपसमवा जलधार ॥ मोटी लबधि पचवीसमीरे, शीतो लेश्या सार ॥ चतुर० ॥ ३ ॥ जिण शक्तिशुं विकुरवेरे, विविध प्रकारे रुप ॥ सदगुरु कहे छत्रीसमीरे, वैक्रिय लबधि अनुप ॥ चतुर० ॥ ४ ॥ एकण पात्रे आदमीरे, जिमावे केई For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar लाख ॥ जेह अखीण महानसीरे, सत्तावीसमी भाख॥ चतुर० ॥ ५ ॥ चूरे सेन चक्रीशनीरे, संघादिकने कामं ॥ तेह पुलाक लबधि कहीरे, अठ्ठावीसमीनाम ।। चतुर० ॥ ६ ॥ तेज शीत लेश्या बि एहरे, तिम पूलाक विचार ॥ भगवती सूत्रमें भाखीयारे, ए तिहुनो अधिकार ॥ ७ ॥ चक्रवर्ती बलदेवनीरे, वासुदेव त्रण एह ॥ आवश्यक सूत्र अछरे, नहीं इहा सदह ॥ चतुर ॥ ८॥ पन्नवणा आहारगीरे, कल्पसुत्र गणधार॥ तिन तिन एक एक मलीरे, वारु आठ विचार ॥ चतुर ॥ ९ ॥ प्रश्नव्याकरण ए कहीरे, बाकी लबधि वीश ॥ सांभलतां सुख उपजेरे, दीलहुय निस दिस॥ चतुर० ॥१०॥ ___कलस ॥ संवत सतरसें छवीसे, मेर तेरस दिन भले ॥ श्रीनगर सुखकर, बुणकणसर, आदि जिन सुपसाउले ॥ १ वाचनाचारिज सुगुरु सानिधि विजय हरख विलासए ॥ कहे धर्मवरधन स्तवन भणतां, प्रकट ज्ञान प्रकाशए ॥२॥ इतिश्री लबधि अठ्ठावीस स्तवन सम्पूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar बीजनुं स्तवन. । दुहा ॥ सरस वचन रस वरसति, सरसति कला भंडार ॥ बीज तणो महिमा कहुं, जिम कह्यो शास्त्रमोझार ॥ जंबुद्विपना भरतमा, राजग्रही नगरी उद्यान ॥ वीर जिणंद समोसर्या, वांदवा आव्या राजन ॥२॥श्रेणीक नामे भूपति, बेठा बेसण ठाय॥ पुछे श्री जिनरायने, यो उपदेश महाराय ॥ ३ ॥ त्रिगडे बेठा त्रिभुवनपति, देसना दिये जीनराय॥ कमल सकोमल पांखडी, जिनवर हृदय सोहाय ॥४॥शशि प्रकट जिम ते दिने, धन ते दिने सुविहाण ॥ एक मने आराधतां, पामे पद निर्वाण ॥५॥ ॥ ढाल ॥१॥ कल्याणक जीननां कहं सुण प्राणीजीरे, अभिनंदन अरिहंत ॥ ए भगवंत भविप्राणीजीरे ॥ महाशुद बीजने दीने ॥ सु० ॥ पाम्या शीव सुखसार ॥ हरख अपार ॥ भवि० ॥१॥ वासुपूज्य जिन बारमा ॥ सु०॥एहज तिथे नाण ॥ सफल विहाण ॥ भवी० ॥ अष्ट करम चुरणकरी ॥ सुणो०॥ अवगाहन एकवार ॥ मुगति मोझार ॥भ०॥ अर For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाथ जीनजी नमुं ॥ सुणो० ॥ अष्टादशमो अरिहंत ॥ ए भगवंत || भवि० ॥ उज्वल तिथि फागुणनी जली ॥ सुणो० ॥ वरीया शीव वधु सार ॥ सुंदर नार ॥ भवि० || ३ || दशमा शीतल जिनेसरु ॥ सुणो० ॥ परम पदनी वेल ॥ गुणनी गेल || भवि० || वैशाख वदी बजिने दिने ॥ सु० ॥ मुक्यो सरव ए साथ || सुरनरनाथ || भवि० ४ ॥ श्रावण सुदनी बीज जली ॥ सुणो० ॥ सुमतिनाथ जिनदेव || सारेसेव ॥ भवि० ॥ इण तिथिए जिनभला ॥ सु० ॥ कल्याणक पंचसार ॥ भवनोपार || भवि० ॥ ५ ॥ || ढाल || २ || जगपति जिन चोर्वासमोर लाल, ए भाख्यो अधिकाररे ॥ भविकजन || श्रेणिक आदे सहुं मल्यारे लाल || शक्ति तणे अनुसाररे भविकजन, भाव धरीने सांभळोरे लाल ॥ आराधो धरी खंतरे ॥ भविक० ॥ १ ॥ दोयवरस दोयमासनीरे लाल, आराधो धरी हेतरे ॥ भ० ॥ उजमणुं विधिशुं करोरे लाल, बीज ते मुगति महंतरे ॥ भ० ॥ भा० ॥ २ ॥ मारग मिथ्या दुरे तजोरे लाल, आराधो गुण नाथरे For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ भ० ॥ वीरनी वाणी सांभळीरे लाल, उछरंग थय, बहु लोकरे ॥ भ० ॥ ना० ॥ ३ ॥ इणि बीजे केई तर्यारे लाल, वळी तरशे केई शेषरे ॥ ज०॥ शशिनिधि अनुमानथीरे लाल, सइला नागधर एकरे ॥ भ० ॥ ४॥ असाड शुदी दशमी दीनरे लाल, ए गायो स्तवन रसालरे ॥ भवि०॥ नवल विजय सुपसायथीरे लाल, चतुरने मंगल मालरे ॥ भ० ॥ भा० ॥ ५॥ कलश ॥ इय वीर जिनवर, सयल सुखकर, गायोअति उलट भरे। असाड उज्वल दशमी दिवसे, संवत अढार अट्टोत्तरे॥ बीज महिमा एम वरणव्यो, रही सिद्धपुर चोमासुए ॥ जेह भविक भावे भणे गुणे तस घर लील विलासए ॥ १॥ आठमनुं स्तवन. दोहा ॥ पंच तीरथ प्रणमुं सदा, समरी शारद माय ॥ अष्टमी स्तवन हरखे रचुं, सुगुरु चरण पसाय ॥१॥ ॥ ढाल ॥१॥ हारे लाला जंबुद्वीपना भरतमां, मगध देश महंत रे ॥ ला०॥ राजगृही नगरी मनोहरु, श्रेणीक बहु बलवंतरे ॥ ला० ॥ १॥ अष्टम For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५ तोथी मनोहरु | हां वेलणा राणी सुंदरी, शियल वती सीरदाररे || ला० ॥ श्रेणीक सुत बुध छाजता, नामे अभय कुमाररे ॥ ला० || अ० ॥ २ ॥ हां० वर्गणा आठ मीटे, एहथी अष्ट साधे सुख निधानरे ॥लाला ॥ अष्ट मद भाजे वज्र छे, प्रगटे समकित निधानरे ॥ ला० ॥ अ० ॥ ३ ॥ हां० अष्ट भय नासे एहथी, अष्ट बुद्धि तणो भंडाररे० ॥ लाला ॥ अष्ट प्रवचन ए संपजे, चारित्र तणो अणगाररे ॥ ला० ॥ अ० ॥ ४ ॥ हांο अष्टमी आराधन थकी, अष्ट करम करे चकचूररे || लाला० ॥ नवनिधि प्रगटे तस घरे, संपुरण सुख भरपुररे, ला० ॥ अ० ||५|| हां० अडदृष्टि उपजे एहथी, शीव साधे गुण अंकुररे || लाला०|| सिद्धना आठगुण संपजे, शीव कमला रुपसरूपरे || ला० ॥ अ० ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ जीहो राजग्रही रळीयामणी, जीहां वीरे वीर जीणंद ॥ जीहो समवसरण इंद्रे रच्युं, जीहों सुरासुरनी वृंद ॥ १ ॥ जगत सहुं वंदे वीर जीणंद ॥ ए आंकणी ॥ जीहो देवरचीत सिंहासने || जीहो बेठा वीर जीणंद ॥ जीहो अष्ट प्रतिहारज शोभता ॥ For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ जीहो भामंडल झलकंत ॥ जगत० ॥ २ ॥ जीहो अनंत गुणीहो जीनराजजी, जीहो परउपगारी प्रधान ॥ जीहो करुणा सिंधु मनोहरु, जीहो त्रिलोके जगभाए ॥ ॥ जगत० ॥ ३ ॥ जीहो चोत्रसि अतिशय विराजता, जीहो वाणी गुण पांत्रीस || जीहो बारे परखदा भावशुं, जीहो भगते नमावे शीश ॥ जगत० ॥ ४ ॥ जीहो मधुरी ध्वनी दीये देशना, जीहो जीमरे असाढोरे मेघ ॥ जीहो अष्टमी महिमा वरणवे, जीहो जगत बंधु कहे ते || जगत० ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ रुडीने रडियालीरे वाला तारी देशनारे, तेतो जोजन लगे संभळाय ॥ त्रिगडे विराजेरे जिन दीये देशनारे, श्रेणिक वंदे प्रभुना पाय ॥ अष्टमी महिमा कहो कृपा करीरे, पुछे गोयम अणगार ॥ अष्टमी आराधन फल सिधनुंरे ॥ १ ॥ वीर कहे तीथी महिमा एहनोरे, ऋषभनुं जनमकल्याण ॥ ऋषभ चारित्र होय नीरमलुरे, अजितनुं जनम कल्याण || अ० ॥ २ ॥ संभव च्यवन त्रीजा जिनेसरुरे, अभिनंदन निरवाण ॥ सुमति जनम सुपार्श्व For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च्यवन छरे, सुविधि नेमि जनम कल्याण ॥ अ०॥ ॥३॥ मुनिसुव्रत जनम अतिगुण निघिरे, नमुं शीवपद लीयुं सार ॥ पार्श्वनाथ निर्वाण मनोहरुरे, ए तिथि परम आधार ॥ अ०॥४॥ गौतम गणधर महिमा सांभलीरे, अष्टमी तिथि परिमाण ॥ मंगल आठतणी गुणमालिकारे, तस घेर शीव कमला परधान ॥ अ०॥५॥ ॥ ढाल ॥४॥ आवश्यक नियुक्तिए भासे, महानिशिथी सुत्रेरे ॥ ऋषन वंश धूर वीरजी आराधो, शीवसुख पामे पतीतरे ॥ श्री जिनराज जगत उपगारी ॥ ए आंकणी ॥ ए तिथी महिमा वीरजी प्रकाशे, भविक जीवन भासेरे, शासन तारं अविचल राजे, दिनदिन दोलत वाधेरे ॥श्री० ॥२॥त्रिसलारे नंदन दोष निकंदन, कर्म शत्रुने जित्यारे ॥ तीर्थकर माहंत मनोहर, दोष अढारने वरज्यारे ॥श्री० ॥३॥ मन मधुकर जिनपद पंकज लीनो, हरखी नीरखी प्रभुभ्यायरे ॥ शिवकमला सुख दीयो प्रभुजी, करुणानंद पद पावुरे ॥ श्री० ॥ ४॥ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar वृष्टि, चमर बत्र विराजेरे ॥ आसन भा मंडल जिनदीपे, दुंदुभी अंबर गाजेरे ॥ श्री० ॥ ५॥ खंभात बंदर अतिय मनोहर, जीनप्रासाद घणा सोहिएरे, बिंब संख्यानो पारन लेवू, दर्शन करी मन मोहिएरे ॥श्री० ॥ ६॥ संवत अढार ओगण चालिस वर्षे, आश्विन मासे उदारोरे, शुक्लपक्ष पंचमी गुरुवारे, स्तवन रच्युं छे त्यारेरे ॥ श्री० ॥७॥ पंडित देव सोभागी बुद्धि लावण्य, रतन सोभागी तणे नामरे ॥ बुद्धि लावण्य लीयो सुख संपुरण, श्री संघने कोड कल्याणरे ॥ श्री० ॥ ८॥ अथ अष्टमी स्तवन. ॥ दहा ॥ जय हंसासणी शारदा, वरदाता गुणवंत ॥ माता मुज करुणा करी, महियल करो महंत ॥ ॥ १ ॥ सोल कला पूरण शशि, निर्जित एण मुखेण॥ गजगति चाले चालती, धारती गुणवर श्रेण ॥२॥ कवि घटना नवनवी करे, केवल आणी खंत ॥ माता तुज सुपसाउले, प्रगटे गुण बहुभांत ॥३॥ माता For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करूं तुज सान्निध्ये, अष्टमी स्तवन उदार ॥ शत मुखे जीभे को स्तवे, तुज गुण नावे पार ॥ ४॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ नमवा नेमि जिणंदने ॥ ए देशी ॥ अष्टमी तिथि भावे आचरो, स्थिरकरी मन वच कायारे ॥ ध्यान धरम ध्याइए, टाळीए दुष्ट अपायरे ॥ आं० ॥१॥ पोसहपण धरीये सही, समता गुण आदरीयेरे ॥ राज्यकथादिक वरजीए, गुणीजन गुण आचरीएरे ॥ अ० ॥२॥ षटलेश्यामांहे करी, आद्य त्रिहं अप्रशस्तरे ॥ वरजो सजन दुर ए, धरो त्रिहुं अंत प्रशस्तरे ।। अ०॥३॥ शल्य त्रिहं दुरे तजो, वरजो कुमति कुनारीरे ॥ सदगति केरी निवारीका, दुर्गति केरी ए बारीरे ॥ आं० ॥४॥ रमीए सुमति नारीसुं, करीए दान सहायरे ॥ भैत्री प्रमोद करुणादिक, धरीये दिल सुखदायरे ॥ अ०॥५॥वाचना पृच्छना तिम वली, अनुप्रेक्षा धर्म संगरे । परावर्त्तना पंच नेद ए, करीए धरी मनरंगरे ॥ अ०॥ ६ ॥ झानावरणीय दर्शना, वरणी वेदनीय तेमरे ॥ मोह आयु नाम गोत्रए, आठमुं अंतरायरे ॥ अ०॥७॥ए अष्ट कर्म For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनाशिनी, अष्टमी तिथि जिन भाखीरे ॥ आराधनादिक ए क्रिया, मानव गति एक साखीरे ॥ अ०॥८॥ ॥ ढाल ॥२॥ मुनिवर आर्यसुहस्तीरे ॥ ए देशी ॥ - बासठ मार्गणा द्वाररे प्रभुजीए कह्या, सुंदर सुललित वयण थीए । तेहमा दश द्वाररे मोक्ष जिनेश्वरे कहिया, अवरमा नवि लह्यां ए ॥१॥ तिण कारण दिव्य मोक्षरे, कारण सुख तणा, पामे मानव भवथकी ए॥ दुलही दश दृष्टांतरे, लहिये मनुज भव, हारो मद विषय थकी ए ॥२॥ पंच भरत मजाररे, पंच औरव्रत, पंच महाविदेहमा ए ॥ पंनर कर्मभूमि रे, नाणी जिनवरे, धर्म कह्यां नहि अन्यमांहे ॥ ३ ॥ क्रोध मानने मायारे, लोभ तिम वली, ए चारे दुखदायीया ए ॥ अप्रत्याख्यानादिकरे, करतां भेद ए सोल, होए तजो भाइआए ॥४॥ थोडापण ए कषायरे, कीधां दुख दीए, मित्रानंद तणी परे ए ॥ ते माटे तजो दुरेरे, हृदयथकी वली, जेम अनुक्रमे शिव सुख वरोए ॥५॥ अष्टमी तिथि आराधेरे, अष्ट प्रवचन, माता आराधक कहु ए ॥ अनुक्रमे लहे निर्वाणरे, ए तिथि आराधे, मुक्ति For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ रमणी सन्मुख जुवे ए || ६ || अजय दान सुपात्ररे, अष्टमी पर्वणी, दिजे अढळक चित्तशुं ए ॥ पामे वहूली ऋद्धिरे, परम प्रमादर्श, लीजे लाहो वित्तशुं ए ॥ ७॥ ॥ कलश || श्री पार्श्वजिन पसाय इणिपरे, संवत सतर अढार ए ॥ वैशाख सुदी वर अष्टमी दिन, कुमति दिनपति वार ए ॥ श्री शुभविजय उवज्झाय जयकर, शिष्य गंगविजय तणो ॥ नय शिष्य पभणे जक्ति रागे, लह्यो आनंद अति घणो ॥ १ ॥ इति श्री अष्टमी स्तवनम् ॥ श्री कल्याणकनुं स्तवन. ॥ दुहा ॥ प्रणमी जिन चोवीसने, कहुं कल्याणक तास ॥ मास अमावस्य तणी, रीति घरी सुविलास ॥१॥ जेहना नाम स्मरण थकी, नासे भव भव पाप ॥ तिणे कल्याणकने दिने, कीजे प्रभुनो जाप ॥२॥ च्यवन परमेष्टिने नमः, जनम अर्हते नाम ॥ नाथाय नमः दिक्षा पदे. गणीए निजगुण काम ॥ सर्वज्ञाय नमः केवली, मोक्ष पारंगताय ॥ आंबिल पौषधने वळी, एकासणे पण थाय ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाळ ॥ १ ॥ प्रभु चित्त धरीने अवधारो मुजवात ॥ ए देशी ॥ आसो सुद पुनम दिनेजी, च्यविया नमि जिन राय ॥ वदी पांचम दिन केवलीजी, संभव जिनवर थाय ॥१॥भवि भाव धरीने गावो जिन कल्याणक ॥१॥ ए आंकणी ॥बे कल्याणक बारशे जी, नेमजी च्यवन प्रमाण ॥ पद्मप्रभु जिन जनमीयाजी, तेरशे दिक्षा मंडाण ॥ भवि० ॥ २॥ वीर अमावासे शिव गयाजी, हवे कार्तिक सुद जाण ॥ त्रीजे सुविधि केवलीजी, बारशे अर जिननाण ॥भवि० ॥३॥ कार्तिकवदी पांचम दिनेजी,सुविधि जन्म एम होय ॥ छटे व्रत सुविधि लीएजी, दसमे वीर व्रत जोय ॥ ॥जवि०॥४॥अगीयारस दिने शिव लह्याजी, जिन उत्तम महाराज ॥ पद्मप्रभुने प्रणमतांजी, लहीये अविचल राज ॥ भवि० ॥ ५ ॥ ॥ ढाल || २ ।। प्रथम गोवाला तणे भवेजी ॥ ए देशी ॥ __ मागसर शुद दशमी दिनेजी, कल्याणक छेरे दोय ॥ अरजिन जन्मने शिव लडोजी, ते प्रणमो सहु कोयरे ॥ भविका ॥ प्रणमो श्री जिनचंद ॥ जस For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रणमे वासव वृंदरे ॥ भविका० ॥१॥ ए आंकणी अगीआरस दिन मोटकोजी, जे दिन पांच कल्याण ॥ मनि जन्मवत केवलीजी, अर व्रत नमी जिन नाणरे ॥ भविका० ॥२॥ जन्म्या संभव चौदशेजी, पुनमे वली व्रत लीध ॥ वदी दशमीथी चौदश लगेजी, ला. गट छे प्रसिद्धरे ॥ भविका० ॥३॥ पार्श्व जन्म वली व्रत लीयोजी, चन्द्रजन्म व्रत सार ॥ शीतल केवल पामीयाजी, हवे पोस सुदी अवधाररे ॥ भविका० ॥ ॥४॥ विमल केवली बडे दिनेजी नवमी ए शांतिने नांण ॥ अजित नाण अगीआरसेजी, लोकालोक सु. जाणरे ॥ भविका० ॥५॥ चौदसे केवल उपनोजी, अभिनंदन जिण भाण ॥धर्म केवली पुनिमेजी, हवे वदीनुं मंडाणरे ॥ भवि० ॥६॥ छटे पद्म च्यवन भकुंजी, बारसने दिन दोय होय॥ शितल जन्म मुनि थयाजी, तेरसे ऋषभ शिव होयरे ॥ भविकाज ॥७॥ अमावास्या दिन पामीयाजी, श्रेयांस केवलनाण ॥ जिन उत्तम पद पद्मनेजी, प्रणमो भविक सुजाणरे ॥ ॥ भविका ॥८॥ For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल ॥ ३ ॥ सुंदर महासुदीमा हवे जाणीये, बे कल्याणक बीजे हो ॥ सुंदर अभिनंदन प्रभु जनमीया, केवली वासुपूज्य हो ॥ सुंदर कल्याणक दिने गाइ ए ॥ १ ॥ सुंदर त्रीज दीने पण दोइ कह्या, जन्म विमलने धर्म हो ॥ सुंदर चोथे विमल जिन व्रत लीये, आठमे अजितनो जन्म हो ॥सु०॥२॥ सुंदर नोमे अजित दिक्षा लीये, बारसे व्रत अभिनंदन हो ॥ सुंदर तेरसे धर्म चारित्रिया, वदीमां सुणी सुखकंद हो ॥ सु० ॥ ३॥ सुंदर छठे सुपासजी केवली, सातमे दोय कल्याण हो ॥ सुंदर शिव पहोत्या सुपासजी, चंडप्रभु लहे नाण हो ॥सुण॥ ॥ ४ ॥ सुंदर नोम दिने सुविधि च्यवीया, एकादशी आदि नाण हो ॥ सुंदर बारसे दोय श्रेयांस जणा, मुनिसुव्रत नाण जाणी हो ॥ सु०॥ ५॥सुदर तेरस श्रेयांस व्रत लीये, जाया चौदसे वासुपूज्य हो।संदर अमावास्या वासुपूज्य व्रत, फागण सुदी हवे बीजहो ॥ सुंदर० ॥६॥ सुंदर अर च्यवीया चोथे मल्लि च्यव्या, संभव आठम च्यवन हो ॥ सुंदर बारसे दोय सुव्रत व्रती, मही मोक करो मनन हो ॥ सुंदर० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुंदर वदी चोथे दोय जाणीए, पार्श्व च्यवन नाण हो ॥सुंदर पांचम चंद्र पव्यावली, आठम दोय कल्या. णक हो ॥ सुंदर ऋषभजी जनमने व्रत लीये, च्यार मुष्टी करी लोच हो ॥ सुंदर तप पद पद्म नम्या थकी, नवि आवे भवि शोच हो। सुंदर० ॥९॥ ॥ ढाल |॥ ४ ॥ माली केरा बागमां ॥ ए देशी ॥ त्रीजे सूणो जिननाणरे लोग अहो कुंथु जिन नाणरे लो० ॥त्रण पांचमे अनंत अजीतजी, संभव निर्वाणरे लो० ॥ अहो संभव० ॥ १॥ नोमे सुमति जिन शिव वर्या, अगीआरसे लह्या नाणरे लो॥ ॥ अहो० अ० तेरसे वीरजी जनमीया, छट्ठा पदम विनाणरे लो ।। अहोरा० ॥ २॥ वदी पमवे कुंथु शिव लह्या, बीजे शितळ सिध्यारे लोल ॥ अहो० ॥ कुंथु दिक्षा लीश पांचमे, निज कार्य सिध्या रे लोल ॥ अहो० ॥३॥ शितल छठे दिने, नमि शिव पद दशमेरे लो ॥अहो० अनंत जन्म वली तेरसे, त्रण छे चौदमेरे लो ॥ अ० ॥ ४ ॥ दिक्षा केवल इण दीने, पाम्या श्री अनंतरे लो ॥ अहो० ॥ तिम कुंथु जिन For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनमीया, प्रणमो भवि संतरे लो ॥ अहो० ॥५॥ वैशाख शुदी चोथने दीने, अभिनंदन चवियारे लो. ॥ अहो० ॥ च्यविया धर्मने सातमे, आठमे दोय च्यवियारे लो॥ अहो० ॥ ६ ॥ अभिनंदन शिव पामीया, सुमति जिन जायारे लो ॥ अहो० ॥ नोमे सुमति व्रत वीरजी, दशमें नाण पायारे लो॥ अहो० ॥७॥ बारसे विमल च्यवन थया, हवे तेरसे इट्ठरे लो॥ ॥ अहो०॥ अजित च्यव्या वदी सांभलो, च्यव्या श्रेयांस छटेरे लो ॥ अहो ॥८॥ आठमे सुव्रत जनमीया, नेमि मोक्ष पधारे लो ॥ अहो०॥तेरसे शांति जनमीया,तेम सिद्धि सिधायारेलो॥अहो० ॥९॥शांति व्रत लाये चौदशे, तजी सर्व उपाधिरे लो अहो० ॥१०॥ ॥ ढाल ॥ ५॥ वाडी फुली अति भली ॥ मनभमरारे ॥ ए देशी ॥ जेठ शुदी पांचम दिने, जिन नमीयरे ॥ मोक्ष गया धर्मनाथ भविक जिन नमीयेरे ॥ चविया वासुपूज्य नवमीये जिन नभीयेरे ॥ जे तारे ग्रही हाथ, भविक जिन नमियेरे ॥१॥ बारसे सुपासजी, जन्म्या For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ जि० ॥ तेरसे दीक्षा ली ॥ भ० ॥ वदी चोथे चव्या ऋषभजी | जि० ॥ सातमे विमलने मोक्ष ॥ भ० ॥ ॥ २ ॥ नमि जिन दीक्षा नवमीये ॥ जि० ॥ असाड शुद्धी छठ दीने ॥ भ० ॥ वीर च्यवन छे आठमे ॥ जिन० ॥ मोक्ष अरिष्ट नेमि जिन ॥ भ० ॥ ३ ॥ वासुपूज्य शिव चौदशे ॥ भ० ॥ वदी त्रीजे अवधार ॥ भ० ॥ सिद्धी श्री श्रेयांसने || जि० || पाम्या भवोदधि पार ॥ भ० ॥ ४ ॥ अनंतनाथ च्यव्या सातमे ॥ जि० ॥ ठमे नेमि जिन जन्म ॥ भ० ॥ कुंथु च्यव्या नोमे तेहना ॥ जि० ॥ प्रणमो पाद पद्म ॥ भ० ॥ ५ ॥ 3 ॥ ढाल || ६ || सुण मोरी सजनी रजनी जायरे ॥ ए देशी ॥ सुमति च्यव्या श्रावण शुद्ध बीजनेरे ॥ नेमि जन्म पांचम दिन लिजेरे ॥ छठ दिन दिक्षा नेमजीए लीधीरे ॥ पार्श्व आठम दिन वरीवा सिद्धिरे ॥ १ ॥ पुनमे मुनिसुव्रत प्रभु च्यवियारे ॥ वदी सातमे दोय कल्याणक जाणोरे || शान्ति च्यवन चन्द्र निर्वाणरे ॥ २ ॥ भादरवा शुदी नवमी सुविधि निर्वाणरे । वदी अमावास्या ॥ For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ अरीष्टनेमी नागरे, एणीपरे श्री जिन उत्तम गुण गाया पद्मविजय कहे भवफल पायारे ॥३॥ || ढाल || ७ || गिरुआरे गुण तम तणा ॥ ए देशी ॥ कल्याणक दिन गाइए, भाव हर्ष धरी बहु मानोरे ॥ प्रभु गुण स्मरण नित्य करी, तप करीये थइ सावधानोरे ॥ क० ॥ १ ॥ ते कल्याणकनुं गणो, वली गयं दोय हजाररे ॥ वर्त्तमान चोवीशीए, कल्याणक दिन अति सारोरे ॥ क० ॥ २ ॥ इम अनन्त चोवीशी धारीए, तो अनन्त कल्याणक थायरे ॥ जणुं तप कीजीये, धरी भक्ति शक्ति निरमायरे ॥ क० ॥ ३ ॥ संवत चढार छत्रीशना, माहावदी बीजने शनिवाररे ॥ शोभन जोगे शोभन थयुं, प्रभु गायो हर्ष पाररे ॥ क० ॥ ४ ॥ पाटण चोमासुं रही, लही जिन उत्तम सुपसायरे ॥ पद्मविजय पुण्ये करी, इम थुणीया श्री जिनरायरे ॥० ॥ ५ ॥ अथ श्री छ आवश्यकलुं स्तवन. ॥ दुहा ॥ चोवीसे जिनवर नमुं चतुर चेतना काज || आवश्यक जिणे उपदिश्या, ते थुपश्युं For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनराज ॥१॥ आवश्यक आराधीये, दीवस प्रत्ये दोय वार ॥ दुरित दोष दुरे टले, ए आत्मउपकार ॥ २ ॥ सामायिक चउविसथ्थओ, वंदण पडिकमणेण ॥ काउसग्ग पञ्चखाणकर, आतम निर्मल एण ॥ ३ ॥ झेर जाय जिम जांगुली, मंत्र तणो महिमाय ॥ तेम आ. वश्यक आदरे, पातक दुर पलाय ॥४॥ भार तजी जिम भाखहु, हेल्नु हळवो थाय ॥ अतिचार आलो. यता, जन्म दोष तिम जाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ॥१॥ कपुर होय अति उजलुरे ॥ ए देशी ॥ ॥पेहेलू सामायिक करोरे, आणी समता भाव ॥ राग द्वेष दुरे करोरे, आतम एह स्वभावरे ॥ प्राणी समता छे गुण गेह ॥ एतो अभिनव अमृत मेहरे ॥ प्राणी० ॥ १॥ आपे आप विचारीएरे, रमीए आप स्वरूपे ॥ ममता जे परभावनीरे, विषमा ते विष कुपरे ॥प्राणी० ॥२॥ भव भव मेळवी मुकीयारे, धन कुटुंब संजोग ॥ वार अनंती अनुभव्यारे, सवि संजोग विजोगरे ॥ प्रा० ॥३॥ शत्रू मित्र जगको नहींरे, सुख दुःख माया जाल ॥ जो जागे चित्त चेत For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar नारे, तो सवि दुख विसरालरे ॥ प्रा०॥ ४॥ सावध जोग सवी परिहरोरे, ए सामायिक रूप ॥ हुआ ए परिणामथीरे, सिक अनंत अरूपरे ॥ प्रा०॥५॥ ॥ ढाल ॥२॥ साहेलडोनी ॥ ए देशी ।। ॥ आदीश्वर आराहीये साहेलडीरे, अजित भजो नगवंत तो ॥ संभवनाथ सोहामणा ॥ सा०॥ अभिनंदन अरिहंततो ॥१॥ सुमति पद्मप्रभ पुजीए॥ ॥सा०॥ समरु स्वामी सुपाश्रतो ॥ चंद्रप्रभ चित्त धारीए ॥ सा०॥ सुविधि सुविधि ऋद्धि वासतो ॥ ॥२॥ शीतल भूतल दिनमणि ॥ सा० ॥ श्री पुरण श्रेयांसतो ॥ वासुपूज्य सुर पूजीआ॥ सा०॥ विमल विमल जस होततो ॥३॥ करुं अनंत उपासना ॥ ॥ सा०॥ धर्म धर्म धुर धार तो ॥ शांति कुंथु अर मल्लि नमु ॥ सा० ॥ मुनिसुव्रत वडवीर तो ॥४॥ चरण नमुनमीनाथना ॥ सा०॥ ने मश्वर करुं ध्यान तो ॥ पार्श्वनाथ प्रनु पूजीए ॥ सा०॥ वंदु श्री वर्द्धमान तो ॥ ५॥ ए चोवीसे जिनवरा ॥ सा० ॥ त्रिजुवन करण उद्योततो ॥ मुक्ति पंथ जेणे दाखव्यो । For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सा० ॥ निर्मल केवल ज्योति तो ॥ ६॥ समकित शुद्ध एहथी होय ॥ सा० ॥ लीजे भवनो पार तो ॥ बीजं आवश्यक इश्युं ॥ सा० ॥ घनवीसथ्थो सार तो ॥७॥ ॥ ढाल ॥३॥ गीरिमां गोरो गीरुओए । ए देशी ॥ वे कर जोडी गुरु चरणे देज वांदणारे ॥ आ. वश्यक पचवीश धारोरे धारोरे धारोरे दोष बत्रीश निवारीएरे ॥१॥ चार वार गुरु चरणे, मस्तक नामीएरे ॥ बार करी आवर्त खामोरे खामोरे खामोरे वली तेत्रीस आशातनारे ॥२॥ गीतार्थ गुणी गिरुआ गुरुने वंदतारे, गोत्र क्षय जाय, थायेरे थायेरे उंच गोत्रनी अरजनारे ॥३॥ आण ओलंगे कोई न जगमा तेहनीरे, परभव लहे सौभाग्य, भाग्यरे भाग्यरे दीपे जगमा तेह-रे ॥ ४॥ कृष्णराय मुनिवरने दीधां वांदणारे, क्षायिक समकित सार पाम्यारे पाम्यारे तीर्थकर पद पामशेरे ॥ ५॥ शीतल आचार्य जिम भाणेजने रे द्रव्य वांदणां दीध, भावेरे भावरे देतांवली केवल लथुरे ॥६॥ ए आवश्यक त्रीजुंएणीपेरे जाण For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ जोरे, गुरुवंदण अधिकार ॥ करजोरे करजोरे विनय नक्ति गुणवंतनी रे ॥७॥ || ढाल ॥२॥ चेतन चेतोरे चेतना ॥ ए देशी ॥ ॥ज्ञानादिक जिनवर कह्यारे, जे पांचे आचार तो ॥ दोयवार ते दिन प्रतिरे, पडिक्रमीए अतिचार ॥ जयो जिन वीरजीरे ॥१॥ आलोइने पडिक्रमीरे, मिच्छामि दुक्कडं देय ॥ मन वच काया शुद्ध करीरे, चारित्र चोखुं करेय ।। जयो० ॥ २ ॥ अतिचार शल्य गोपवेरे, न करे दोष प्रकाश ॥ माछी मल्ल तणी परेरे, ते पामे परिहास ॥ जयो०॥३॥शल्य प्रकाशे गुरु मुखेरे, होय तस भाव विशुद्ध ॥ ते हसी हारे नहींरे, करे कर्मशुं युद्ध ॥ जयो०॥४॥ अतिचार इम पडिकमीरे, धर्म करो निःशल्य ॥ जितपताका तिम वरोरे, जिम जग फल्लही मछ । जयो० ॥५॥ वंदित्तुं विधिशु कहोरे, तिम पमिकमणा सूत्र ॥चोथु आवश्यक इस्युरे, पडिकमणा सूत्र पवित्र ॥जयो० ॥६॥ ॥ ढाल ॥५॥ हवे निसुणो इहां आवीया ॥ ए देशी ॥ ॥ वैद्य विचक्षण जेम हरे ए, पहेलां सोल वि. For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ कारतो॥ दोष शेष पछी रुझवाए, करे औषध उपचार तो ॥१॥ अतिचार व्रण रुझवाए, काउस्सग्ग तिम होय तो॥नवपल्लव संयम हुवे ए, दुषण नव रहे कोय तो॥२॥ कायानी स्थिरता करी ए, चपल चित्त करो ठामतो ॥ वचन जोग सवि परिहरिए, रमीए आतमराम तो॥ ३॥ श्वास उश्वासादिक कह्योए, जे सोले आगार तो ॥ तेह विना सवि परिहरो ए देहतणा व्यापार तो ॥ ४ ॥ आवश्यक ए पांचमुं ए, पंचम गति दातार तो ॥ मनशुद्धे आराधीये ए, लहीए भवनो पार तो ॥५॥ ॥ ढाल ॥६।। वालम वहेलारे आवजो ॥ ए देशी ॥ ॥सुगुण पच्चख्खाण आराधजो, एह छे मुक्तिनुं हेतरे ॥ आहारनी लालच परिहरो, चतुर चित्त तुं चेतरे ॥ सु० ।। १॥ शल्य काढयुं व्रण रुजव्युं, गई वेदना दुररे ॥ पछी भला पथ्य भोजन थकी, वधे देह जेम नूररे ॥ सु० ॥ २ ॥ तिम पडिक्कमण काउस्सग्गथी, गयो दोष सवी दुष्टरे ॥ पछी पचखाण गुण धारणे, होय धर्म तनु पुष्टरे ॥ सु०॥ ३॥ एहथी कर्म For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कादव टले. एह छे संवर रूपरे ॥ अविरति कूपथी उद्धरे, तप अकलंक स्वरूपरे ॥४॥ पूर्व जन्म तप आचयों, विशल्या थइ नार रे ॥ जेहना नवणना नी. रथी, शमे सकल विकाररे ।। सु० ॥५॥ रावणे शक्ति शस्त्रे हण्यो, पड्यो लक्ष्मण सेजरे ॥ हाथ अडतां सचेतन थयो,. विशल्या तप तेजरे ॥ सु० ॥ ६ ॥ छहु आवश्यक कां, एहते पचखाण रे॥छए आवश्यक जेणे कह्यां, नमुं ते जग जाणरे ॥सु०॥७॥ ॥ कलश ॥ तपगच्छनायक मुक्तिदायक श्रीविजयदेवरूरीश्वरो ॥ तस पद दीपक मोह झीपक श्रीविजयप्रभ सूरि गणधरो॥श्रीकीर्तिविजय उवझाय सेवक, विनयविजय वाचक कहे ॥ छ आवश्यक जे आराधे. तेह शिव संपद लहे ॥१॥ इति षमावश्यक स्तवनं ॥ ___ अथ षट्पर्वी महात्म्य स्तवन. ॥ ढाल ॥ १ ॥ ली ॥ पुन्य प्रशसीये ॥ ए देशी ॥ श्री गुरुपद पंकज नमीरे, भाऱ्या पर्व विचार ॥ आगम चरित्रने प्रकरणे रे, भाख्यो जेम प्रकारो रे॥ For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवियण सांभलो ॥१॥ निद्रा विकथा टाली रे, मुकी आमळो ॥ ए आकणी ॥ चरम जिणंद चोवीशमारे; राजग्रही उद्यान ॥ गौतम उद्देशी कहेरे, जिनपति श्री वर्द्धमानरे ।। भवि० ॥ २ ॥ पक्षमां षट तिथि पाळीयेरे, आरंभादिक त्याग ॥ मासमां षट पर्वी तिथिरे, पोसह केरा लागरे ॥ भवि० ॥ ३ ॥ दुविध धर्म आराधवारे, बीज ते अति मनोहार ॥ पंचमी नाण आराधवा रे , अष्टमी कर्म क्षयकाररे ॥ भवि० ॥ ४ ॥ इग्यारस चौदशी तिथिरे, अंग पूर्वने काज || आराधी शुभ धर्मनेरे, पामो अविचल राजरे ॥ भवि ॥५॥ धनेश्वर प्रमुखे यथा रे, पर्व आराध्यां रे एह !। पाम्या अव्याबाधने रे, जिनगुण ऋद्धि वरेहरे ॥ भवि० ॥ ॥ ६॥ गौतम पूछे वीरनेरे, कहो तेनो अधिकार ॥ सांभळी पर्व आराधबारे, आदर होय आररे ॥७॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ एकवासानी ॥ ए देशी ॥ ॥ धनपुरमा र, शेठ धनेश्वर शुभमति ॥ शुद्ध श्रावकरे, पर्व तिथे पोसह नती॥ धनश्री तसरे, पत्नी नाम सोहामणो ॥धनसार सुतरे, तेहज जन्मनो का For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मणो ॥१॥ त्रोटक ॥ कामणो निजहित कारणमाटे, शेठजी आठम दिने ॥ लई पोसह शुन्य घरमां, रह्या काउस्सग्ग स्थिरमने ॥ ईण अवसरे सोहम इंदो, बेठो निजसुर पर्षदा ॥ करे प्रशंसा शेठनी इम, साभले सहु सुर तदा ॥२॥ जो चळावे रे सुरपति जईने आप हि; पण शेठजीरे पोसहमाहि चळे नहि ॥ इम निसुणी रे मिथ्यात्वी एक चिंतवे॥ हं चळायूँ रे जइने हरकोई कौतुके ॥३॥ त्रोटक ॥शेठना मित्ररूप करीने, कोटि सुवर्णनो ढग करी ॥ कहे ल्यो ए ए शेठ तो पण, नवि चळ्या जेम सुरगिरि ॥ पछी पत्नीनुं रूप करीने, आलिंगनादिक बहु करे ॥ अनुकुल उपसर्गे तो ही शेठजी, ध्यान अधिकेलं धरे ॥४॥ करे विहाम[रे ताप प्रमुख देखाडतो ॥ नारीने सुतरे, आवी इणिपरे भाखतो ॥ पारो पोसह हवे अवसर तुमचो बहू थयो । तब शेठजी रे चिंतवे काल केतो 'थयो ॥५॥ त्रोटक ॥ सज्झायने अनुसार करीने, जा'ण्यु छे हजी रात ए ॥ पोसह हमणां पारीये किम नवी थयो प्रभात ए ॥ तब पिशाचर्नु रुप करीने, चाम For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७ डि उताडतो ॥ घात उछालन शिलास्फालन, सायरमांहि नाखतो ॥६॥ इम प्रतिकूलरे, उपसर्गे पण नवि चळ्या ॥प्राणांतरे अष्टमी व्रतथी नवी चळ्या ॥ तब ते सुररे माग माग मुख इम कहे ॥ पण ध्यानमा रे ते वात पिण नवीलहे ॥७॥ त्रोटक ॥ तव तेणे रत्न अनेक कोटि, वृष्टि कीधी जाणीए ॥ बहु जणा पर्व आराधवाने, सादरा गुणखाणए ॥ राजा पण ते देखी महिमा, शेठने माने घj ॥ कहे धन्य धन्य शेठजी तुम, सफल जीवित हुँ गणुं ॥८॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ साहेलडी ॥ ए देशी ॥ तेह नगरमांहे वसे ॥ साहेलमी रे ॥त्रण पुरुष गुणवंत तो॥ घांची हालि एक धोबी साहेलडी रे, षटपर्वी पालंत तो ॥१॥ साधर्मिक जाणी करी ॥ सा० ॥ शेठ करे बहु मानतो ॥ पारणे अशन वसन तथा ॥ सा०॥ द्रव्यतणुं बह दान तो ॥२॥ साधर्मिक सगपण वमु॥सा०॥ ए सम अ तो ॥ शेठ संगे ते त्रण जणा ॥ सा०॥ समकित दृष्टि होय तो ॥३॥ एक दिने चौदस दिन साहेलडी रे For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ राय धोबीने गेहतो || चिवरे राय राणी तणां ॥ सा०॥ मोकलियां वरनेह तो ॥ ४ ॥ आज ज धोई आपज्यो ॥ सा० ॥ महोच्छव कौमुदी काल तो ॥ रजक कहे सुणो माहरे ॥ सा० ॥ कुटुंब सहित व्रत पाल तो ॥ ५ ॥ धो चौदस दिने ॥ सा० ॥ तव नृप बोले जाणतो ॥ नृप आणाये नियम शो ॥ सा० ॥ जेहथी जाये प्राण तो ॥ ६ ॥ सज्जन शेठ पण एम कहे ॥ सा० ॥ एहमां हठ नवि ताणतो || राजकोप अपभ्राजना ॥ सा० ॥ धर्म तणो पण हाणतो ॥ ७ ॥ वळी रायाभियोगेणं ॥ सा० ॥ छे आगार पचखाण तो ॥ तव धोबी चित्त चिंतवे ॥ सा० ॥ दृढता विण धर्म हाणतो ॥ ८ ॥ धोवुं नवि मान्युं तिले ॥ सा० ॥ राय सुणी ते वात तो ॥ कुटुंब सहित निग्रह करूं ॥ सा० ॥ काल जो हुं नृप साच तो ॥ ९ ॥ दैव योगे ते रातमां ॥ सा० ॥ शूल व्यथा नृप थाय तो ॥ हाहाकार नगर थया ॥ सा० ॥ इम दिन ऋण वही जाय तो ॥ १० ॥ पडवे दिन धोइ करी || सा०|| आप्या वस्त्र ते राय तो ॥ व्रत निर्वाह सुखे थयो ॥ सा० ॥ धर्म तणे सुपसाय तो ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ भरत नृप भावशुं ॥ ए देशी ॥ ॥ नरपति चौदसने दिनए, घाणी वाहन आदेश ॥ करे तेली प्रतेए, रजकपरे ते अशेष ॥ व्रत नियम पालिये ए॥१॥ आंकणी ॥ भूपति कोपे कलकल्योए, इण अवसर परचक्र ॥ आव्यं देश भांजवाए, महादुदोन्त ते चक्र ॥ २॥ व्रत नि० ॥ नृप पण सन्सुख नीकल्योए, युद्ध करणने काज ॥ विकल चित्तथी थयो ए, इम रही तेलिनी लाज ॥ व्रतः ॥ ॥३॥ हालिने आठम दिने ए, दीधुं मुहूर्त तत्काल ॥ तीणे पण इम कडं ए, खेडीश हल हुंकाल ॥व्रत०॥ ॥४॥ कोपे भराणो भूपतिए, इण अवसर तिहां मेह॥ वरसण लाग्यो घणुं ए, खेडी न थावे हेव ॥ व्रत०॥ ॥५॥ त्रणे अखंड व्रत पालतां ए, पुण्य अतोलथी तेह ॥ मरण पामी स्वर्गे गया ए, छठे देव लोके जेह ॥व्रत०॥ ६॥ चउद सागरने आउखे ए, उपना ते ततखेव ॥ हवे शेठ उपना ए, बारमे देवलोके देव ॥ ॥ व्रत ॥७॥ मैत्री थई ते च्यारने ए, श्रेष्ठी सुरने ताम ॥ कहे त्रण देवता ए, प्रति बोधजो अम स्वाम For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० ॥ ७० ॥ ८॥ ते पण अंगिकरे तदा ए, अनुक्रमे चविया तेह ॥ उपन्या भिन्न देशमां ए, नरपति कुलमा तेह ॥ व्रतः ॥ ९॥ धीर वीर हीर नामथी ए, देश धणी वडराय ॥ थया व्रत दृढ थकी ए, बहु प प्रणमे पाय ॥१०॥ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ सुरति मासनी ॥ ए. देशी ॥ ॥ धीरपुरे एक शेठने पर्वदिने व्यवहार ॥ करतां लाभ घणो होवे, लोकने अचरिजकार ॥ अन्य दिने हानी पण, होये पुन्य प्रमाण ॥ एक दीने पुछे ज्ञा. नीने, पूर्वभव मंडाण ॥ १॥ ज्ञानी कहे सुण परभव, निर्धन पण व्रत राग | आराधीने पर्वतिथे, आरंभनो त्याग ॥ अन्यदिने तुमे कीधो, सहेजे पण व्रतभंग ॥ तीणे ए कर्म बंधाणां, सांभलो ए कंत ॥२॥ सांभली ते सह कुटुंबशुं, पाले व्रत नीरमाय ॥ बीज प्रमुख आराधे, सविशेषे सुखदाय ॥ ग्राहक पण बहू आवे अर्थे, थावे लान अपार ॥ विश्वासी बहु लोकथी, थयो कोटी सरदार ॥३॥ निजकुल शोषक वाणीआ, जाणो आ जगत प्रसिद्ध ॥ तिणे जइ रायने वाणीए॥ For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ इणी परे चुगली कीध॥ इणे कोटि निधान लाधो, ते स्वामीने होय लोय ॥ नरपति पुछे शेठने, वात कहो सह कोय ॥ ४॥शेठ कहे सुणो नरपति, महारे छे पञ्चखाण ॥ स्थूल भृषावादने वली, स्थूल अदत्तादान ॥ गुरुपासे व्रत आदर्यु. ते पालं नीरमाय ॥ पिशुन वणीक कहे स्वामीए, धर्म धुतारो थाय ॥५॥ तस वचने करी तेहना, द्रव्य तणो अपहार ॥ करीने भूपति राचे, पुत्र सहित निजद्वार ॥ राजद्वारे रह्यो चिंतवे, आज लह्यो में कष्ट ॥ पण आज पंचमी तिथि तिणे, लाभ होय कोइ लष्ट ॥ ६॥ प्रातःसमे नृप देखे, खाली निज भंमार ॥ शेठ धरे मणि रत्न सु. वर्ण, भर्या श्री श्रीकार ॥ आवी वधामणी रायने, ते बिहुनी समकाल ॥ शेठ तेडी कहे नरपति, वात सुणो इण ताल ॥७॥ ॥ ढाल ॥ ६ ॥ हरणी जव चरे ललना ए देशी ॥ ॥ भूपति चमक्यो चित्तमां ललना लालहो, देखी ए अवदात व्रत इम पालीये ललना ॥ खेद लही खामे घणुं ललना, लालहो प्रश्न पुछे सुख शात ॥ ब्रत श्म पालीये ललना ॥१॥ कहो शेठ ए केम नीपन्यु For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ ललना लालहो, तुज घर धन किम होय॥०॥ शेठ कहे जाएं नहीं ललना,लालहो किणी परे ए मुज थाय॥७॥ ॥२॥ पण मुज पर्वने दिहामले ललना, लालहो लाभ अण चिंत्यो थाय ॥०॥ पर्वदिने व्रत पालीयुं ललना, लालहो ते पुन्यनो महिमाय ॥३०॥३॥ पर्व महिमा इम सांभली ललना, लालहो भूपतिने तत्काल ॥०॥ जाति स्मरण उपन्यु ललना, लालहो निजनव दिने रसाल ॥०॥ ४ ॥ धोबीनो भव सांभर्यो ललना, लालहो पाल्युं जे व्रत सार ॥३०॥ जाव जीव नृप आदरे ललना, लालहो षट पवीं व्रत धार ॥व्रत०॥ ॥५॥ आयी वधामणी तेणे समे ललना, लालहो स्वामी नराणा भंडार ॥ बत०॥ विस्मित राय थयो तदा ललना, लालहो हियडे हर्ष अपार ॥ व्रत०१६॥ |ढाल॥७॥ साहेबजी श्रीविमलाचल भेटिये हो लाल ॥ए देशी॥ ॥साहेबजी शेठ अमर प्रगट थयो हो लाल, भाखे रायने एम ॥ सा० ॥ तुं नवि मुजने ओळखे हो लाल, हुं आव्यो तुज प्रेम ॥ १ ॥ साहेबजी पर्व तिथि इम पाळीए हो लाल, साहेबजी श्रेष्टी सुरहुं For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३ जाणजो हो लाल ॥ तुज प्रतिबोधन आज ॥सा०॥ शेठ सानिध्य करवा वली हो लाल, कधिं में सवी काजे ॥ सा० ॥ पर्व०॥ २ ॥ साहेबजी धर्म उद्यम करे जे सदा हो लाल, जावं छं सुणी वात ॥ सा० ॥ तेलिक हालिक रायने हो लाल, प्रति बोधन अवदात ॥सा०॥ पर्व॥३॥ तिहां जई पूर्वभव तणा हो लाल, रूप देखावे तास ॥ सा०॥ देखीने ते पामीया हो लाल, जाति स्मरण खास ॥ सा० ॥ पर्व०॥ ४ ॥ ते बेउ श्रावक थया हो लाल, पाल नित षट पर्व ॥ सा०॥त्रणे ते नर रायने हो लाल, सहाय करे ते सुपर्व ॥ सा०॥ पर्व०॥ ५॥ निज निज देशनी वारता हो लाल, मारी व्यसन सवि जेह ॥ सा० ॥ चैत्य करावे तेहवा हो लाल, प्रतिमा भरावे तेह सा०|| ॥पर्व०॥६॥ संघ चलावे सामटा हो, लाल, स्वामीवहल भली भाते॥सा० ॥ पर्वदिन नित्य नगरमां हो लाल, पडहअमारी विख्यात ॥ सा० ॥ पर्व० ॥७॥ पर्व तिथि सहु पालता हो लाल, राजा प्रजा बहु धर्म ॥ सा० ॥ इति उपद्रव सहु टळे हो लाल, नहि For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ निज परचक्र भर्म ॥ सा० ॥ पर्व ॥ ८॥ धर्मथी सुर सांनिध्य करे हो लाल, धर्म पाली पाले राज ॥ कोई सद्गुरु संजोगथी हो लाल, थया त्रणे ऋषिराज ॥ साहेबजी ॥ सा० ॥ पर्व० ॥९॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥ टुंक अने टोडा विचरे रे ॥ ए देशी ॥ त्रणे नरपति आदर्यो रे चोखो चारित्र भार ॥ संजम रंग लाग्यो रे ॥ तप तपता अति आकरारे, पाले निरतिचार ॥ संयम० ॥१॥ ध्यानबले खेरु कर्या रे, घनघाति जे च्यार ॥ संयम ॥ केवल ज्ञान लही करी रे, विचरे महीयल सार ॥ सं० ॥२॥ श्रेष्ठी सुर महिमा करे रे, ठाम ठाम मनोहार ॥संजम०॥ देशना देता केवली रे, भाखे निज अधिकार ॥सं०॥ ॥३॥ पर्व तिथी आराधीये रे, भवियण भाव उल्हास ॥ सं० ॥ इम महिमा विस्तारीनेरे पाम्या शिवपुर वास ॥ सं० ॥४॥ बारमा देवलोकथी चवीरे, श्रेष्ठी सुर थया राय ॥ सं०॥ महिमा पर्वनो सांभली रे, जाति स्मरण थाय ॥ सं०॥ ५॥ संजम ग्रही केवल For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लहीरे, पाम्या अविचल ठाण ॥ सं० ॥ अव्याबाध सुखी थयारे, केवल चिद् आराम ॥ सं० ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ॥ ९ ॥ गीरुआरे गुण तुम तणा ! ए देशी ॥ ॥ उजमणां ए तप तणां करो, तिथि परिमाण उपगरणारे ॥ रत्न त्रय साधन तणा भवि भवसायर निस्तरणारे ॥१॥ उजमणा० ॥ जो पण सहु दिन साधवा, तो पण तेनी अशक्तिरे ॥ पर्व तिथि आराधीने, तुमे उजवजो बहू भक्तिरे ॥ उ०॥२॥ श्राद्धविधि वर ग्रंथमां, भलो भाख्यो ए अवदातोरे ॥ भगवतीने महानिशीथमां कह्यो, तिथि अधिकार विख्यातो रे ॥ ॥ उ०॥ ३ ॥ तपगड गगनांगण रवि, श्री विजय. सिंह गणधारोरे ॥ अंतेवासी तेहना, श्री सत्यविजय सुखकारोरे॥ ३० ॥ ४ ॥ कर्पूविजय वर तेहना, वर क्षमाविजय पन्यासरे, जिनविजय जगमां जयो, शिष्य उत्तमविजय ते खासरे ॥ उ० ॥ ५॥ तसपद चरण भ्रमर समा, रहि साणंद चोमासुरे ॥ अढार त्रीस संवत्सर; सुद तेरस फागण मासोरे ॥उ०॥६॥ पद्मवि For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ जय भक्ते करी, श्री विजय धर्म सुरि राजेर ॥ वर्ड: मान जिन गाइआ; श्री अमीझरा प्रभु पासेरे ।उ०॥७॥ ॥ कलश ।। पर्व तिथि आराधो, सुव्रत साधो, लाध्यो भव सफलो करो ।। संवेग संगी तत्त्वरंगी उ. तम विजय गुणाकरो ॥ तस शिष्यनामे सुगुण कामें, पद्मविजये आदर्यो, शुभ एह आदर भवि सहाधर नाम षट्पर्वी धर्यो ॥ इति षटपर्वी महिमागुणवर्णन स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री चौद गुणस्थानकनुं स्तवन ।। ॥श्री शंखेश्वरपुर धणीजी, प्रणमी पास जि. णंद ॥ नाम जपतां तेहनुंजी, आपे परमानंद ॥ भविक जन सांभलो एह विचार ॥ कर्म ग्रंथ मांहे कह्योजी, ए सघलो अधिकार ॥ भविक० ॥ १॥ ना. णावरणीय जाणीयेजी, बीजु दर्शनी होय ॥ त्रीजुं वेदनीय भाखीयुंजी, मोहनीय चो) जोय ।।भ०॥२॥ आयु कर्म वली पांचमुं जी, छटुं नाम विचार ॥ गोत्र कर्म ते सातमुं जी, आठमुं अंतराय ॥ भ० ॥३॥ मति श्रुत अवधि मन केवलुं जी. ज्ञानावरणीयरे For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ भेद ॥ चख्खु अचख्खु अवधि केवलीजी, दर्शनना ए भेद ॥ भविक० ॥४॥ निद्रा पहेली निद्रानिद्राजी, त्रीजी प्रचला वखाण ॥ प्रचला प्रचला चोथी कहीजी, थिणद्धि पंचम जाण ॥ भ० ॥ ५॥ दर्शनावरणीय तणाजी ए नवभेदज धार ॥ शाता अशाता वेदनीजी, जाणो ते निरधार ॥ भ० ॥६॥नेद अट्ठावीस मोहनीजी, समकित मोह मिच्छन्त ॥क्रोध मान माया सहीजी; लाभ ए सवे नित ॥ भ० ॥७॥ संज्वलन प्रत्याख्यानीओजी, अप्रत्याख्यान विशेष ॥ चोथो अनंतानुं बंधियोजी, प्राणीतूं उवेख ॥ भ० ॥ ८॥ प्रत्येके एक एकनाजी, भेद कह्या अरिहंत ॥ च्यार च्यार करतां सोल हवेजी, टालो ते गुणवंत ॥भ०॥९॥ हास्य रति अरति भय परिहरुजी, सोग दुगंछा टाल ॥ नर स्त्री नपुंसक वेदथीजी, प्राणी तुं मन वाल ॥ ॥ ज० ॥ १० ॥ देवता नर तिरि नारकीजी, आयुभेद विशाल ॥ कपुर विजय बुद्धराजथीजी, मणिविजय रंगरसाल ॥ भ० ॥ ११॥ इति चारकर्मपयडी प्रथम भाग ॥ For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८. ॥ ढाल २ ॥ बे कर जोडी तामरे ॥ ए देशी ॥ नाम करमनो भेदरे, एकसो त्रणसुं॥ ते विवरी हव कहुं ए ॥ चार गतिनां नामरे, एकेंद्रि आदि पंचेद्रि पांच जाति कहीए ॥ १॥ औदारिक वैक्रियरे, आहारक तेजस, पांचमुं कार्मण तनु सहीए ॥ अंग उपांग ते जाणीरे, अंगोपांग त्रीजें, औदारिक पंच बंधना ए ॥ २ ॥ संघातन विचारीरे, पंचभेदे करी, औदारिक आदिगणो ए॥ वज्रऋषभ नाराचरे, ऋषभनाराच, नाराच अर्ध कीलीका ए ॥३॥ छेवटुं संघेणरे बड़े भाखीउं, षट संस्थानज जीवना ए ॥ सम चउरस्त्र न्यग्रोध रे सादिक, कुब्ज, वामन हुंडक भाखीओ ए ॥ ४ ॥ कालो नीलो रातोरे; पीलो 7जलो वर्ण पांचे जाणीएरे ॥ सुरलि दुरभि गंधरे, पंचरस कह्यो, तीखो कडवो कसायलो ए ॥५॥ खाटो मीठो होयरे, फरस आठजे, गुरु लघु मृदु खर शीतलो ए । उष्ण स्निग्ध रुक्षरे, अनुपुर्वी, चारे गति जुजुवीरे ॥ ६॥ शुभ अशुभ पति दोयरे, ते वली वरणवी, पिंड प्रकृति चौदस हवीए ॥ हवे आठ For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ प्रत्येक पराघात उसास, आताप उद्योत अगुरुलहु ए॥७॥ तीर्थंकर निर्माणरे, पराघात कर्म, त्रस दशको कहूं सुंदरु ए ॥ त्रस बादर पजत्तरे, प्रत्येक थीर शुभ, सुभग सुस्वर आदे यशो ए ॥ ८॥ थावर सुहुम अपजरे, साधारण अथिर ॥ असुन दुभग सातमु ए ॥ दुस्वर अनादेयरे, अयश ए दश स्थावर इणिपरे जाणि ए ॥ ९ ॥ एटली त्राणुं नेद रे, बंधन पांचनां, सत्ताये पन्नर भेद हुवे ए ॥ गोत्र करमना भेदरे, उंच अने नीच, अंतराय वळी आठमुंए ॥१०॥ दान लाभ अंतरायरे. भोग उपभोग, वीयांतराय ए पांचमु ए ॥ एकसो अट्ठावन्नरे, पयडी कर्मनी, मणिविजय बुध उपदीशी ए ॥ ११ ॥ इति श्रीकर्म पयडी द्वितीय भास ॥ ॥ ढोल ॥ ३ ॥ केवल नाणे जाणतोरे लोल ॥ ए देशी ॥ ॥ज्ञान दिवाकर भाखीयोरे लोल ॥ गुणस्थानक विचाररे ॥ सुगुण नर ॥ लेशथकी हुं वरणवू रे लोल, शास्त्र तणे अनुसाररे ।। सुगुण नर ॥१॥ वारो मिथ्यात्वने आवतोरे, जेम सीझे सवि कामरे ॥ ॥ सुगुण०॥ प्रमादे करी जीवनेरे लोल, ओघ थकी For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० बंध होयरे ॥ सुशुण ॥ पयडी एकशत वीसनीरे, लोल, ए परमारथ जोयरे ॥ सु० ॥ वा० ॥२॥ एकसो बावीस आगली रे, पयडी उदय थायरे ॥सु०॥ उदय माव्युं जे होवेरे, ते उदीरणा कहेवायरे ॥ सु० ॥वा०॥ ॥३॥ एहना भेद वळी तेटलारे लोल, सत्ताना वली भेदरे ॥सु०॥ अट्ठावनने एकसोरे लोल, थायते ध्रुवे देशरे ॥ सु०॥ वा० ॥४॥ पेहेले गुणठाणे हवेरे लोल ॥ एकसो सतर बंधरे ॥ सु०॥ तीर्थंकर नाम भेलतार लोल, आहारक दोय अबंधरे ॥सु०॥ वा० ॥५॥ पयडी मिश्र समाकत सुणोरे लोल, आहारक द्विक जिन नामरे ॥ सु०॥ उदय नहीं ए पांचनोरे लोल, गुणठाणे पेहेले जामरे ॥ सु० ॥ वा० ॥ ६॥ कर्म स्थिति सत्ता कहीरे लोल, पयडी शत अड्यालरे ॥ ॥सु०॥ गुणठाणे पेहेले सहीरे लोल, भाखी देव दयाळरे ॥ सु०॥ वा० ॥ ७॥ इणे गुणठाणे प्राणीयारे लोल, नरक निगोद मोजार रे ॥ सु० ॥ कहेता पार नउपजेरे लोल, ते जाणे किरताररे ॥सु०॥वा०॥८॥ एह मिथ्यात्वथी टालियारे लो, श्री जिन जगदाधाररे॥सु०॥ For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achai कर्पुरविजय गुरु रायथीरे लोल, लहीये भवजल पाररे ॥ सुगावा॥९॥ इति श्री प्रथम गुण स्थानक भास ॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ कपुर होवे अति उजलुरे ॥ ए देशी ॥ ॥ बीजु गुण ठाणुं सुणोरे, सास्वादन तस नाम ॥ समकित वमन पछी हुवेरे, जेहथी न सरे कामरे ॥ साजन छंडोए परिणाम | जिम लहो गुण अभिरामरे ॥ सा० ॥१॥ नारय त्रिक जाति चउरे, थावर चउहूंड संस्थान॥आतप नपुंसक बेवहरे, मिहत्त ए सोल मानरे ॥सा०॥ २ ॥ एकसो एक पयडी तणोरे, बंधन एणे गुण ठाण ॥ सूक्ष्म त्रिक आतप वलीरे, मिथ्यात्व पंच वखाणरे । सा० ॥ ३ ॥ नरकनी अनुपूर्वी रे, एकसो अगीआर प्रमाण ॥ उदय कह्यो पयडी तणोरे, उदीरणा तिम जाणरे ॥ सा०॥ ४ ॥ सत्ताए एकशत उपरेरे, पयडी सडतालीस ॥ जिननाम कर्म तणी तिहां रे, न कही सत्ता जगदीशरे || सा० ॥ ५॥ सास्वादन गुण ठाणा तणोरे, अर्थ कह्यो लव लेश, मणिविजय बुध एम कहेरे, सुणजो छांडी क्लेशरे ॥ ॥ सा ॥६॥ इति द्वितीय गुण स्थानक भास ॥ For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ॥ ढाल ॥ ५ ॥ गणधर दशपूर्वधर सुंदर ॥ ए देशी ॥ ॥ मिश्र गुणठाणुं हवे त्रीजु, भाख्युं त्रिभुवनभाणरे ॥ अंतर मुहूर्त स्थिति कही जेनी, सुणज्यो चतुर सुजाणरे ॥ मिश्रण ॥१॥ तिर्यंच त्रिक थिणद्धी त्रिक, दुर्भग त्रिक वली कहीयेरे ॥ च्यार अनंतानुबंधी वीरुआ, संठाण चार मध्य लहीयेरे ॥मिश्रगा। पेहेलं छेवं संघयण टाळी, निचगोत्र उद्योत नामरे ।। अशुभ विहायोगति वेद स्रीनो, ए पयडीनां नामरे ॥ मिश्र० ॥३॥ गुणठाणे त्रीजे ए पचवीस, पयडी बंधन थायरे ॥ उदये चार अनंतानुबंधी थावर एकेंद्रि कहायरे ॥ मिश्र० ॥४॥ विगलेन्द्रिय त्रिक तिरी नर सुरनी, अनुपुर्वी नवि लहीयेरे ॥ मिश्रोदय मिश्र पयडी अंतज, उदये एकसो कहीयेरे ॥ मिश्र० ॥५॥ उदीरणा वळी उदय तणीपरे, जाणी भविजन प्राणी रे ॥ सत्ताये सास्वादनतणी परे, भाखे केवल नाणीरे ॥ मिश्र ॥ ६ ॥ भाव अनेक त्रीजे गुणठाणे, कहेतां पार न आवेरे ॥ कपूरविजय बुध चरण पसाये, मणि For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ विजय आनंद पावरे ॥ मिश्र० ॥ ७ ॥ इति श्री तृतीय गुणस्थानक भास ॥ ॥ ढाल ॥ ६ ॥ सुण मेरी सजनी रजनी न जावेरे ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे गुणठाणुं समकित धरीयेरे, शिवरमणी जिम सहेजे वरीये रे ॥ ते समकितना पाचज भेदरे, बोले आगम जे ध्रुवेदरे ॥ हवे० ॥१॥ जिन नामकर्म सुरनर आयुरे, बंधे सित्तोत्तेर कहेवायरे ॥ समकित नुपुर्वी चाररे, उदये एकसो चार विचाररे ॥ ॥ हवे०॥ २॥ तेम उदीरणा आगम भाखीरे, सत्ता सुणज्यो जे हवे दाखीरे ॥ अपूर्वादिक चउगुणठाणरे, चार अनंता-बंधी जाणरे ॥ हवे० ॥३॥ तिरि नरयनु आयु कहीयेरे, एकसो बेतालीस सत्ता लहीयेरे ॥ क्षपके समकित चार ठामरे, नरक तिरि सुर आयु जामरे ॥ हवे० ॥४॥ पयडी सोने पीस्तालीसरे, सातविना एकसो अडत्रीसरे ॥ नउमे अनिवृत्ति पेहेले भागरे, सत्ता बोलो श्री वीतरागरे ॥ हवे० ॥५॥ केवल नाणी भाख्यो धर्मरे, जेहथी लही शिवना शर्मरे For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ ॥ ए त्रण तत्व सुधा जाणीरे, मणिविजय कहे आदरो प्राणीरे ॥हवे०॥६॥ इतिश्री चतुर्थ गुण स्थानक भास॥ ॥ ढाल ॥ ७ ॥ आज न हेजोरे दीसे नाहलो ॥ ए देशी ॥ ॥पंचमनाणी रे जिनवर इम कहे, देशविरती गुणठाण ॥ सुधो श्रावक तेने जाणीये, जे धरे जिनवर आण ॥ पंचम० ॥१॥ पेहेलु संघयण नर त्रिक जाणीये, अप्रत्याख्यान कषाय ॥ तेहना भेदरे चार वखाणीये, औदारिक दो कहेवाय ॥ पंचम० ॥२॥ ए दश पयडीरे बंधन नवि हुवे, देशविरति मोजार ॥ सतसट्ठि पयडीरे बंधज इहां सही, जोज्यो इदय विचार ॥पंचम०॥ ॥३॥ उदय चार अपचखाणीया, अनुपुर्वी नर तिरियंच ॥ सुरत्रिक नरयत्रिक ते खट भण्या, वैक्रियदुग वली संच ॥ पंचम० ॥ ४॥ दुर्भग अनादेय अयश वली, सत्तर पयडी न होय ॥ सत्यासीनोरे उदय इहां कह्यो, तीम उदीरणा जोय ॥ पंचम०॥ ॥५॥ सत्ता चोथारे गुणठाणथी, जाणो चतुरसुजाण ॥ मणिविजय कहे नित्य जे ए धरे, तेने कोडी कल्याण ॥ पंचम ॥ ६ ॥ इति पंचम गुणस्थानक भास ॥ For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३५ ॥ बल ॥ ८ ॥ कहे नायक सुणो माहरी ॥ ए देशी ॥ ॥छटुंगुणठाणुं हवे, कहेतां हरख अपाररे, सुणो जिनवाणी रे॥प्रमत्तनाम छे जेहनु,साधन कह्यो निरधार।। सुणो भवी प्राणी रे ॥१॥बंध थकी निश्चय हुवे, त्रेसठी॥ पयंडी जाणिरे ॥ सुणो जिन वाणी रे ॥ प्रत्याख्यानी चारनो, बंध नही इण ठाणेरे ॥ सुणो० ॥ २ ॥ उदय थकी हवे सांभलो, तिर्यंचगति तिरियायुरे ॥ सुणो जिन० ॥ निच गोत्र उद्योतनो, प्रत्याख्यानी कषायरे ॥सुणोभ०॥३॥उदय नहीं ए आठनो, आहारक दोय उदाररे॥ सुणो जि०॥ ते भेळवता एक्यासीनो, उदय कह्यो सुविचाररे ॥ सुणो० ॥ ४ ॥ उदीरणाये अंत हुवे, साता असाता दोयरे ॥ सुणो जि०॥ आहारक द्विक थीणद्धि त्रीक, नर आयु आठ ते जोयरे ॥सु०॥ ॥५॥ सत्ता समकितथी लहो, दाखी आगम साररे ॥ ॥ सुणो० ॥ कपुरविजय गुरुजी जयो, मणिविजय हितकाररे॥सुणोभ०॥६॥ इतिश्री प्रमत्त गुणस्थानकभास। ॥ ढाल ॥ ९ ॥ वसुधाधिप बंदी वळयो ॥ ए देशी ॥ ॥श्री जिनवर श्म उपदिशे, अप्रमत्त गुणटाणरे ॥ सर्वविरति इहां कही, धारो मुनिगुण खाणरे ॥ श्री For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १३६ श्री जिनवर इम उपदिशे ॥१॥ ए आंकणी ॥ सोग अरति अथिर दुग, अयश अशाता केरोरे ॥ बंध नहीं इहां खटतणो, सुर आयुबंध अनेरोरे ॥श्री||२॥ एके उणी साठीनो, अहवा अट्ठावन बंधरे ॥ आहार युगल माहि भेलीए, बीजी पयमी अबंधरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ उदय थकी छोतेर पयडी, थीणद्धी त्रिक दाखीरे ॥ आहाराद्विक ए पांचनो, उदय नहीं सूत्र साखीरे ॥ ॥ श्री० ॥ ४ ॥ अप्रमत्त आदि गुणठाणे, शाता अशाता नर आयरे, पयडी त्रण उणी करो, इम उदिरणा थायरे ॥ श्री०॥५॥ समकित चोथे गुणठाण, सत्ता तिहाथी पेखोरे॥माणिविजय बुध इम कह, प्रमत्त गुण ठाण उवेखोरे ॥ श्री०॥६॥ इति श्री अप्रमत्त गुण स्थानक भास॥ ॥ ढाल ॥ १०॥ पंथीडा संदेसडो । ए देशी ॥ ॥ गुणठाणं हवे आठम. भाख्यं श्री जिनराज, निवृत्ति नामे जाणीए, जहथी सीझे काज ॥१॥साध सहु तुमे चित्तधरो, आणी उलट अंग, अध्यवसाय विशेषधी, हुवे एहशुं चंग ॥ साधु ॥ २॥ सात भाग For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar .१३७ करी तेहना, पेहेले अट्ठावन ॥ निद्रा दोयनो अंत करे, पणभाग उपन्न ॥ सा ॥३॥ सुरदुग पंचेद्रिय शुभगति, त्रस नव निरधार ॥ चार शरीर उरलविना, दो अंगोपांग उदार ॥ सा० ॥ ४ ॥ सम चउरंस निर्माणने, जिननाम सुफार ॥ वर्णचार कळी कह्या, अगुरु लहु चार ॥ सा० ॥ ५॥ ए त्रीस पयडी अंतकरे, बढे भाग विचार ॥ बंध कह्यो छवीसनो, सातमो भाग मोजार ॥ सा०॥ ६ ॥ हास्य रति भय दुगंछानो, अंत जिनने वयण ॥ उदय थकी समाकत वली, छेल्लां त्रण संघयण ॥ सा०॥७॥ उदय नहीं ए चारनो, बोहोतेर उदये जाण ॥ उदीरणा अप्रमतथी, भाखी केवल नाण ॥सा०॥८॥ चोथा समकित गुण ठाणथी, सत्ता दिलमें आणि ॥ कपुरविजय गुरु राजथी, मणि वंदे इम वाणी ॥ सा०॥ ९॥ इतिश्री अष्टम निवृत्ति गुणस्थानक भास ॥ ॥ ढाल ॥ ११ ॥ निदरडी वेरण हुइरही ॥ ए देशी ॥ ॥ अनिवृत्ति नवमुं आदरु, गुणठाणुं हो मुनिवर सुखकार के ॥ अंतमुहुर्त जेहनी, स्थिति जाणी For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ हो शास्त्र अनुसार के ॥ अनिवृत्ति नवमुं आदरं ॥ ॥ ए आंकणी ॥१॥ बंध कह्यो बावीसनो, वली कीजे हो एहना पंच भाग के ॥ पुरुषवेद संज्वलन चारे, एकेके हो कीजे ए त्यागके । अनि० ॥ २ ॥ उदय हुवे छासट्ठीनो, हास्य रतिने हो वली अरति निवारके ॥ भयसोग दुगंछा खटतणो, नवि लही हो उदये विचार के ॥ अनि० ॥ ३॥ उदीरणा त्रिसट्ठीनी, सत्ता दाखी हो बीजा भाग मझारके॥ थावर तिार नरय दुग, आतप दुग हो थीण त्रिग निरधारके । ॥ अनि० ॥ ४ ॥ एकेंद्रिय विगल साधारण, ए सोलेहो सत्ता नवा होय के ॥ एकसो बावीस उपरे, बीजे लागे हो सत्ता तुं जोयके ॥ अनि० ॥ ५ ॥ त्रीजे भागे सांभलो, क्षय थाये हो बीयतीय कसाय के ॥ चोथे पांचमे खटभागे, सात आठमे हो एकसो चार थायके ॥ अनि० ॥६|| नउमे सो त्रिण उपरे, नपुंसक हो स्त्री वेद खट हासक ॥ पुंवेद संज्वलन ए त्रण्ये, क्षय होवे हो नागे अनुक्रमे जासके । अनि० ॥७॥ नवमा भागने छेहमे, मायानो हो प्रनु भाख्यो अंत For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ के ॥ कर्पूरविजय गुरू राजनो, शिष्य पभणे हो निजमननी खंति के ॥ अनि० ॥ ८ ॥ इतिश्री नवम गुण स्थानक भास ॥ ।। ढाल ।। १२ ।। देवतणी ऋद्धि भोगवी आव्यो ॥ ए देशी ॥ ॥ सूक्ष्म संपराय नामे दशमुं, गुणवाणं ते जाणि ॥ चढते परिणामे ए होवे, भाख्युं जिनवर भारे ॥ मुनिवर जोज्यो हृदय विचारी ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ बंध को इहां सत्तर पयडी, दर्शन कहीयां चार ॥ उंच गोत्र यश नाणावरणी, अंतराय दशवारी रें ॥ मुनि० ॥ २ ॥ ए सोले पयडी इण ठाणे, बोले ते निरधार ॥ उदय कह्यो इहां साठज पयमी ॥ वेद त्रण निवारी रे ॥ मुनिं० ॥ ३ ॥ संज्वलन त्रिक ए छ पयडी, उदय नहीं इण ठाय । उदीरणा सत्तावन जाणो, सत्ता सतदुग थायरे ॥ मुनि०॥४॥ संज्वलननो लोभ अंत करे इहां, जुओ सुत्र अनुसार ॥ कर्पूरविजय पंमित सुपसाये, मणिविजय जयकाररे || मुनि ||५|| इतिश्री सुक्ष्मसंपराय गुण स्थानक भास ॥ For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल ॥ १३ ।। नतनी मनसा जाणे आणी ॥ ए देशी ॥ . ॥ हवे सुणज्यो नवियण प्राणी, श्री जिनवर केरी वाणी ॥ उपशांत मोह गुण गणे, एकादशभु ए जाणे ॥ १॥ बंधे कहीये पयमी एक, आगमें जोई सुविवेक ॥ शातावेदनीय बंध उदार, बीजी पयडी नहीं निरधार ॥ २॥ उदय थकी हवे सुणीए, एके उणी साठीज गणीए ॥ लोभ संज्वलन केरो अंत, एणे ठाणे एहज संत ॥३॥ उदीरणा तणो अधिकार सांभलतां हरख अपार ॥ भाखी पयडी छप्पन्न जेह, मनमांहि आणो तेह ॥४॥ सकल पमित शिरदार, कपुरविजय सुखकार ॥ तस चरण पसायज पामी, मणिविजय कहे सरिनामी ॥५॥ इति उपशांत मोह गुण स्थानक एकादशम भास ॥ ॥ ढाल ॥ १४ ॥ घिगू धिगू धिगू धिग काया ॥ ए देशी ।। ॥श्री जिनवर एम बोले, वाणीजे अमृत तोले हो ॥ सुणो मुनि समभावी ॥ क्षीण मोह गुण ठाण, द्वादशभु गुणमाणि खाण हो ॥ सुणो० ॥१॥ बंध कह्यो साता केरो, उदये ते भेद अनेरो हो ॥सुणो०॥ रूषभ For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१ नाराच दुग टालो, सत्तावन उदये निहालो हो ॥ ॥ सुणो० ॥ २ ॥ उदये छेले वे भागे, निद्रा प्रचला नवि लागे हो ॥ सु० ॥ उदीरणा चोपन केरी, सत्ताये पयडी अनेरी हो ॥ सु० ॥ छल्ला दुग समे जोय, एकसो एक पयमी होय हो ॥ सु०॥ निद्रा प्रचला इहां अंत, नवाणुं भेद एतंत हो || सुणो० ॥ ४ ॥ दंसण चार पंच ज्ञान अंतराय, पण चउद् ज मान हो ॥ सु० ॥ अंत करे एहनो छेडे, नविउपजे ते फिरे के हो ॥ सु० ॥ ||५|| सकल पंडित शिणगार, कर्पूरविजय शिरदार हो ॥ सु० ॥ तस सुपसाये भाव जाण्या, मणिविजय तेह खाण्या हो ॥ सु० ॥ ६ ॥ इतिश्री क्षीणमोह गुणस्थानक भास ॥ ॥ ढाल ॥ १५ ॥ भले पधार्था तुमे साधुजी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ गुणठाणं हवे तेरमुंरे, जाख्यं श्री जिनरायरे ॥ सयोगी नामे भलुंरे, आव्युं ते नवि जायरे ॥ गुण० ॥ ॥ १ ॥ बंधे शाता वेदनीरे, उदये कां निरधाररे ॥ नाणावरणीय पांचे सहीरे, अंतराय पंचे विचाररे ॥ || गुण० ॥२॥ दर्शन चारे चउदओरे, उदय नहीं For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh १४२ श्ण गणरे ॥ तीर्थकर नाम भेलतारे, बेंतालिस उदय परिमाणरे ॥ गुण०॥३॥ उरल थिर खगई दुगरे, प्रत्येक त्रिक छ संठाणरे ॥ अगुरुलघु वर्ण चारनोरे, निर्माण तेजस जाणी रे ॥४॥ कार्मण पेहेलो संघयणनोरे, दुसर सुसर जोयरे ॥ शाता अशाता एकनोरे, ए त्रीसनो अंत होय रे ॥५॥ एके उणी चालीसनीरे, उदीरणा अवदातरे ॥ पंच्यासी पयडी तणी रे, सत्ता जेह विख्यातरे ॥ ६ ॥ संप्रति पंच विदेहमारे, विचर वीस मुणिंदरे ॥ संयोगी ठाणे अलंकारे, सेवे सुरनर वृंदरे ॥७॥ दोय कोडी साधु केवलीरे, वंदन तेने त्रिकाल रे ॥ कपुरविजय गुरु नामथी, मणिविजय मंगल मालरे ॥८॥ इतिश्री सयोगी गुणस्थानक त्रयोदशम भास ॥ ॥ ढाल ॥ १६ ॥ नयरो अयोध्या संचर्या ए ॥ ए देशी ॥ ॥अयोगी नाम चौदमुरे, गुणठाण श्रीकार ॥ कडं ए जिनवरुए, अ इ उ ऋ ल मान ज एहनुं ए, जेहथी शिव सुखसार ।। कह्यु० ॥१॥ बंध नहीं पयडी तणो ए, उदय तणो भाव जोय ॥ कह्यु०॥ सुभग आदेय यश वली ए, वेदनी त्रस त्रिक होय ॥क०॥ For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R॥ पंचेजिय जाति नर आउखु ए, नरमी गति जिननाम ॥ कयुं० ॥ उंच गोत्र ए बारनो ए, अंत थाय छेहडे ताम ॥ क० ॥३॥ उदीरणा इहां नवि लहे ए, सत्ता सुणो वीरतंत ॥ क० ॥ छेखा दुग समे जाणीए ए, बहोतेर पयमी अंत ॥ क० ॥ ४ ॥ नाम यकी हवे ते कहुं ए, सुर खगई गंध दोय ॥क० ॥ फरस आठ वर्ण पांचनी ए, रस तनु बंधन सोय ॥ ॥ क० ॥ ५ ॥ संघातन ए सवि तणी ए, पंच पंच पयडी जेह ॥ क० ॥ निर्माण नाम ते भेलताए, चालीस पुरी एह ॥ क०॥६॥ संघयण अथीर खटसही ए, संस्थान खट सुविवेक ।। क० ॥ अगुरुलघु च्यार अपज्जता ए, अशाता साता एक ॥क०॥ ७॥ प्रत्येक उपांग त्रिण त्रिण कह्यां ए, सुस्वर नीच गोत्र जाण ॥ क० ॥ ए बोहोतेर पयडी तणो ए, अंत हुवे श्ण ठाण॥ क० ॥ ८॥ बेह समे पयडी तेरनो ए, अंत करे गुणवंत ॥ क० ॥ आठ करम खेपबीए, पामी सुख अनंत ।। क० ॥ ९॥ एम अनेक भेद सुंदरु ए, आगम शास्त्र मझार ॥क० ॥ मणिविजय बुध उपदि For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ शेए, निज मतिने अनुसार ॥ क० ॥ १० ॥ इतिश्री अयोगी गुण स्थानक जास ॥ ॥ ढाल ॥ १७ ॥ दीठो दीठोरे वामाको नंदन दीठो ॥ ए देशी ॥ ॥ पुजो पूजोरे प्रभु पासजीने पूजो ॥ संखेश्वर परमेश्वर साहेब, ए सम देव न दुजोरे ॥ १ ॥ जेहने नामे नवनिधि पामे, मुक्ति वधु तस कामे ॥ सुरनर नारी बे कर जोडी, आवीने शीरनामेरे ॥ प्र० ॥ २ ॥ तेह तेणे सुपसाय हरखे, गुणठाणा सुविचार ॥ बंध उदय उदीरणा सत्ता, जाखी पर उपगाररे ॥ प्रभु० ॥ ॥ ३ ॥ शापुर मंडण शांति जिणेश्वर, महिमा महियल गाजे ॥ पास चिंतामणि चिंता चुरे, सहस फणो जिनराजेरे ॥ ४ ॥ केसर चंदन मृगमद घोली पुजे जे नरनारी ॥ भावना भावे जिनवर आगे, तेहनी दुर्गति वारीरे ॥ ५ ॥ तप गहनायक पुण्येपुरो, | विजयदेव सुरिंद ॥ तस पट्टधारक कुमति वारक, श्री विजयप्रभ मुदिरे || ६ || सकल पंडित शिर मुगट नगीनो, कपुरविजय गुरु शीस ॥ मणिविजय बुध . For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४५. इणिपरे जल्पे, पूरो संघ जगीसरे ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति श्री चर्तुदश गुण स्थानक संपूर्ण ॥ || ज्ञानदर्शन चारित्रनुं स्तवन । ॥ दुहा || श्री इंद्रादिक भावथी, प्रणमे जगगुरु पाय || ते प्रभु वीर जीणंदने, नमतां अतिसुख थाय ॥ १ ॥ ज्ञान दर्शन चारित्रनो, कहुं परस्पर संवाद ॥ त्रिक जोगे सिद्धि होये, एवो प्रवचन वाद ॥ २ ॥ समकित गुण जस चित्त रम्यो, तेहनो वादविवाद || समुदायथी एक अंश ग्रही, मुख्य करे तिहां वाद ॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ ललनानी ॥ ए देशी ॥ ॥ ज्ञानवादी पेहेलो कहे, त्रिभुवनमां हूं सार ललना || नय निक्षेप प्रमाणनो चउ अनुयोग विचार ललना ॥१॥ ज्ञान भजो भवी प्राणीया ॥ ए आंकणी ॥ सप्तभंगी षट् द्रव्यनुं, मुज विण कुण लहे तत्त्व ललना || बंभी लीपीने प्रणमीया, गणधरादिक महासत्त्व ललना ॥ ज्ञा०॥२॥ मेरु सूर्यने इंद्रनी, उपमा ज्ञानीने होय ललना, मुज वीण मूर्ख पशुतणी, एवी For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमा तसहोय ललना॥ज्ञा०॥३॥ ज्ञान पछी जिनराजने, अरिहंत पद होय भोग्य, ललना || भोगवतुं ते ज्ञाननो, उपदेश कहेवो जे योग्य ललना ॥ ज्ञा० ॥४॥ ज्ञान पछी किरिया कही, दशवैकालिक वाणी ललना, ज्ञान गुणे मुनि कह्या, उत्तराध्ययन प्रमाण ललना ॥ ज्ञा०॥५॥ दीपक घट देखावशे, घटथी दीपक न देखाय ललना || अप्रतिपाती ज्ञान गुण सही, महानिशीथे कहेवाय ललना ॥ ज्ञा० ॥ ६ ॥ अधिकुं सर्व पातिक थकी, अज्ञानी जाणे न चोज ललना || आतम स्वरूप जाण्या विना, जीम फिरे जंगल रोज ललना ॥ ७ ॥ किरीया विण बहु सिद्धि लहे, तापसादिक दृष्टांत ललना || गजबेठे मरुदेवीने, आपी में मुक्ति एकांत ललना ॥ ज्ञा० ॥ ८ ॥ अज्ञानवादी इम कहे, यापे मोक्ष न ज्ञान ललना ॥ उत्तर धर्मसंग्रहणीथी, करजो मुज बहु मान ललना ॥ ज्ञा० ॥ ९ ॥ जीव ने ज्ञान अभेद छे, मुजवीण जीव अजीव ललना || अक्षरनो अनंतमो, भाग उघाडो सदैव ललना ॥ ज्ञा०॥१०॥ क्रिया नये जे बाल बे, ज्ञान नये उजमाल ललना ॥ मुनिने For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४७ सेववा योग्य ते, बोले उपदेशमाल ललना ॥ज्ञा०॥११॥ देवाचार्य मल्लवादीजी,जग जस वादलहंत ललना॥बोध जीत्या मुज आश्रये, इम बहु शास्त्रे उदंत ललना ॥ज्ञा० ॥ १२ ॥ देहीना मेल सारीखो, मुज विण किरिया धंध ललना ॥ तिक्ष्णता जे ज्ञाननी, तेहिज चरण अबंध ललना ॥ ज्ञा० ॥ १३ ॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ अरणीक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ क्रोड वरस तप जप किरिया करे, नवि मीट कर्मना पाश रे ॥ झानी ते एक सासोसासमां, अनेक कर्म करे नाशरे ॥ गुणीजन वांदोरे ज्ञानने लळी लळी ॥ १॥ ए आंकणी ॥ ज्ञानना गुणनेरे उत्तम संग्रहे, बालक माने ते वेषरे ॥ मध्यम नर किरिया गुण आदरे, षोडशके उपदेश रे॥गुण०॥२॥ चारित्रहीणो रे झान गुणे घणो, वांदवो पुजवो तेह रे ॥ थोडा ज्ञानीनी किरिया क्लेश छे, उपदेशमालामां एह रे ॥ ॥ ३ ॥ महीयल माहाले रे मेले वेषथी, बगव्यवहारे चालेरे ॥ जगने घालेरे ज्ञान विना धंधे. ते काम धर्मने पालेरे ॥गुण०॥ ४॥ पीपलीया पान जीसा क्रिया गुरु, For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ जहाज समा गुरु ज्ञानीरे ॥ किरिया रहित जे सिद्ध जिणंद छे, भगवती अंगनी वाणीरे ॥गुण०॥५॥ मंडुक चरण जिम जलदागमे, किरियाये तेम भव व्याधीरे ।। तस छार करवारे ज्ञाननी ज्योति छे, उपदेशपदे एम साधीरे ॥गुण०॥६॥ एकनो जाणग सर्व जाणग कह्यो, एहवी छे मार। वडाइ रे ॥ अविसंवादपणे जे जाणवू, तेहीज समकित जाइरे ॥गुण०॥॥ ज्ञान विना कहो समकित कीम रहे, किरिया तोज्ञाननी दासीरे ॥ छठ तपे सुका सेवाल भोजी कह्यो, देखे न सुख अविनासीरे ॥गुण०॥ ८॥ थोमली किरियारे ज्ञानीनी नली, जीम सुरनारीना भावरे।बहुली किरिया रे ज्ञान विना कीसी, जीम अंधनारीना हावरे ॥गुण०॥९॥ सहसत्रेतालीस बसे नर बुझाया, नंदिषेण शुभभाखरे । ज्ञानीए दीटर तेडीज वस्त छे. खरसिंह सम अन्य दाखेरे ॥गुण॥१०॥ किरिया नयनेरे ज्ञान कहे तुमे, मुज थकी निन्न अभिन्नरे ॥ भिन्न थशो तो रे जडता पामशो, जिन्नत्व मुजमाही लीनरे ॥ गुण० ॥११॥ न्याये त्रीजोरे जेहने आलंबीये, जुओ जुगति विमासीरे ॥ एक For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ पद पामी चिलाति सुत तर्यो, ज्ञानथी सहु सुख वासीरे ॥ गुणः ॥ १२॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ सुण मोरी सजनी रजनी न जावेरे ॥ ए देशी ॥ ॥समकितवादी हवे बोल्यो विमासीरे, मुजविण ज्ञान किरियानी बहु हांसी रे ॥ मुजविण ज्ञान अज्ञान ते जाणोरे ॥ शुकपाठक तथा वेदीया मानोरे ॥१॥ मणिमय बिंब अनंत भरावेरे, सोवन देहरां असंख्य करावेरे ॥ दंसण लवविण शुभ फल नापेरे, दंसण रयणायर श्म थापेरे ॥ २॥ वार अनंती जीम जीवने फरस्योरे, जीम मृगतृष्णाए रहेवे तरस्योरे ॥ ते एकवारमा दुःख सवी टाचुरे आत्ममंदिरमां करूं अजुआरे ॥ ३ ॥ मुज पछी ज्ञान किरिया दोय साचीरे, जलधर जोगे वनराय माचीरे ॥ पात्र कुपात्र तुमे नवि जोतारे, अमे भविक अकषाये मोहतारे ॥ ४ ॥ क्षण एक मुजने हृदये राखीरे, जिणे साहि. बनी सुखमी चाखीरे ॥ मिथ्या वचन जो कार्य प्ररुपे रे, हुं तो रीसु पडे भव कुपे रे ॥ ५॥ बांहे झाल्यो ते कारण माटेरे, करं सुखीयो पुद्गलअध साटेरे ॥ For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कृषविल संबंध धरो मनमांहीरे, समतिवंतने घणमो उछांहीरे || ६ || असुच्चा केवली किरियाहीनरे, सिद्धा मुजथकी अनुभव प्रीनरे || दंसण रहित न सीझे कोईरे, निश्चय करो भवि आगम जोईरे ॥ ७ ॥ माला झाले निमाला लोरे, किरियाडंबर भणी बहु शोचेरे || नव ग्रैवेयक सुधि लेई जावे रे, तोये समकित लव सुख नावेरे ॥ ८ ॥ जूठ किरियाए धरावे नामरे, हुं मुनि हुं श्रावक गुण धामरे ॥ मुज छतां मरीचीये भवन वधार्योरे, जमाली कुशीष्य जो समकित हार्योरे ॥ ९ ॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ गुण वेलडीयां ॥ ए देशी ॥ || सिद्ध नरे जिम संग्रह्यो रे ॥ बुद्धवंताजी ॥ विष पण अमृत थाय ॥ रुचिवंताजी ॥ तिम समकितवंते ग्रह्यो । बुद्ध० ॥ शास्त्र सकल समुदाय ॥ रुचि० ॥१॥ द्विपायन श्रेणिक भणी ||बुद्ध० ॥ वासुदेव पेढाल ॥ रुचि ० ॥ अविरतिने पण सुखी करूं || बुद्ध० ॥ मुज विण कवण आधार || रुचि० ॥ २ ॥ दश मिथ्यात्व - गिरि भंजवा || बुद्ध०|| पवि सम हुं समर्थ ॥ रुचि ० ॥ शुभदो आतम भावसुं । बुद्ध० ॥ जिनपदवी मुज For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाथ ॥ चि० ॥ ३॥ समकित अंक विणा सह ॥बुद्ध०॥ किरियादिक बिन्दु रूप ॥ रुचि० ॥ अंगारमर्दक संबंधथी। बुद्ध०॥ समजो मुज स्वरूप ॥ रुचि०॥४॥ कृष्णपखीओ अनादिनो ॥ बुद्ध०॥ मुजथी मीटे ततखेव ॥ रुचिः ॥ शुक्लपखीयो तव थयो ॥बुद्ध०॥ मिटे अनादि नव सेव ॥ रुचि० ॥५॥ वरस हजार किरिया गई ॥ बुद्ध० ॥ कुंडरीकनी अकाज ॥ रुचि० ॥ मुजविण पूर्वधर गया ॥ बुद्ध० ॥ आवे निगोदमां बाज ॥ रुचि० ॥ ६ ॥ पूर्व बद्धायु गतदंसणी ॥ बुद्ध० ॥ बे विण समकितवंत ॥ रुचि०॥ वैमानिक पदवी लहे ।। बुद्ध०॥ इम महाभाष्य कहंत ॥ रुचि०॥७॥ जीव प्रदेशे पुदगल रह्या ॥ बुद्ध०॥ मिथ्यातना जे समस्त रुचि० ॥ तेह मीटे जे शुद्धता ॥ बुद्ध० ॥ तेहीज समकित वस्त ॥ रुचि०॥ ८॥ समकितने भावे हुवे । बुद्ध० ॥ दर्शन सही गुरु देव ॥ रुचि० ॥ अगणित महिमा माहरो ॥ बुद्ध०॥ समकित दश रुचि सेव ।। रुचि०॥ ९ ॥ दशमांहि नव अस्तिता ॥बुद्ध०॥ स्याद्वाद रहे मुजमांह ॥ रुचिः ॥ यथार्थ वस्तु हुं पहुं For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १५२ ॥ बुद्ध०॥ आठ पक्षथी उछांह ॥ रुचि० ॥१०॥समकित मीटे चारित्र नहीं ॥ बुझ० ॥ आवश्यक मांहे वखाणी ॥ रुचि०॥ समकित तेहज चरण छे ॥बुजा पेहेला अंगनी वाणी ॥ रुचिः ॥ ११ ॥ समकितनी सेवा सारी | बुद्ध० ॥ नही मिथ्यामतिराज ॥ रुचि०॥ खट उपमान छे माहरे ॥ बुद्ध० ॥ सदह्यो मुनिराज ॥रुचि०॥ १२ ॥ ॥ ढाल ॥ ५॥ आज हजारी ढोलो प्राहुणो ॥ ए देशी ॥ ॥हवे किरियावादी कहे मन रुली, न गणे झाननो गुण सुख दाई ॥ साजन सुणीयेहे ॥वांझणी सुत रंक राजवी, कीसी सुपने ज्ञान चडाई ॥ सा०॥ नरहर ना नमवारे, संयम धारीने ॥१॥ आंकणी ॥ ज्ञानथी फल भोग नवि लहे, किरियाविण कोइक जीव ॥ सा॥ रसवती जल गुण जाणतां, तृप्ति नवि होये अतीव ॥ सा० ॥ न० ॥२॥ किरिया विण पंथते नवी घटे, विचरे जलनिधि तरे । सा०॥ नटणी निज किरिया विना, जनरंजन कहो कीम करे । सा०॥ न० ॥३॥ शत्रुजय महात्म्यमां कडं, मुनि वेष ते नमवो उछांहि For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . १५३ ॥सा०॥ लिंग देखीने भावे प्रणमाया, सचिव उदय गुणग्राही ॥ सा० न० ॥ ४ ॥ भरतने केवल उपनो, लिंग विण नमीया नहीं देव ॥ सा०॥ कहे उपदेश एक संबंधनो, असुच्चा केवली ततखेव ॥ सा० ॥१०॥ ॥५॥ ज्ञान- फल विरति कडं, बहुविध शास्त्रमझार सा० ॥ चारित्र महाराजा तणा, ज्ञान समकित दो प्रतिहार ॥ सा० ॥ न०॥६॥ गति चारमा समकित पामीये, नरगतिमाही संयम सिद्ध सा०॥ किरियानय शास्त्रनो अंग छे ॥ नियुक्तिना वचन प्रसिद्ध ॥ सा० ॥न०॥७॥ सर्व संवरी किरिया विना, ज्ञानने सुगति न होय ॥ सा०॥ अनंतर कारण हु सही, तेह धुर सिद्धा सहु कोय ॥ सा० ॥ न०॥८॥ ॥ ढाल ॥ ६ ॥ आदर जीव क्षमा गुण आदर ॥ए देशी॥ ॥ जिनवर मंदिर सयल महियलमां, सोवन रयण मंडावेजी ॥ एक दिवसना चरण समोवड, कहो ते किम करी थावेजी ॥ आदर जीव किरिया गुण मनोहर, म करशि वाद विवादजी ॥ए आंकणी ॥१॥ केवलीने पण एक संयमर्नु, स्थानक स्थिर रहे शुद्धजी For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ । सकल प्रदेश स्थिरतारूप चारित्र, सिद्ध प्रभुमे कहे बुद्धजी ॥ आदर०॥२॥ एकवरसना संयमसुखमां, अनुत्तर सुरसुख थावेजी ॥ए पण व्यवहारिक नय वचन छे, क्षणमांहे श्रेणी मंडावेजी ॥ आदर०॥३॥ एक दिवसनी किरियापालक, संप्रति नरपति कीधोजी ॥हरि नृपने नवयाम क्रियाए, पांचमे अनुत्तर सीधोजी ॥ आदर० ॥४॥चार कषाय मीटे संयम होय, किरियाए महा लब्धिजी॥ दशारसिंह सत्यकीने अधोगति, जो नहीं किरिया संबंधीजी ॥ आदर० ॥५॥ अक्रियावादी दशाचूर्णीमां, कृष्णपस्वीओ जीव नयमांजी।। क्रियावादी शुक्ल पखीओ, जिन उपदेशे महिमाजी॥ आदर०॥६॥योग व्यापार नहि जोसिद्धने, तो किरियो किम व्यापेजी ॥ सघला नरमुं सार संयम छे, जिन गणधर का आपेजी ॥ आदर०॥७॥ खर जिम चंदन भार वहे बहु, तस फल भोग न थावेजी॥ दीपक सहस कर्या पण अंधथी, कुण कारज सोहावेजी। आदर०॥८॥ दशार्णभद्रने नमीआ सुरपति, जो किरियाए गुणवंताजी ॥ मुज अवदात अनेक छे जगमां, धारो भवि जयवंताजी॥ आदर० ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १५५ ॥ ढाल ॥ ७ ॥ कोईलो पर्वत धुंधलोरे ॥ ५ देशी ॥ ॥ एम निज निज मत थापता हो लाल, आव्या जिणेसर पासरे ॥ वालेसर ॥ करुणाकारक उपदिशे हो लाल ॥ अनुपम वचन विलासरे ॥ वालेसर ॥ जयो जयो जिनवर जगगुरु हो लाल ॥॥ जेहथी मीटे भव पासरे ॥ वा० ॥१॥ ए आंकणी ॥ दंसण सहित ज्ञानी कह्या हो लाल, देशविराधक साचरे॥ वा०॥ ज्ञान र हित किरिया करे हो लाल, तो पण विराधक वाचरे॥ वा० ॥ज०॥२॥ देश देश उपगारीआ हो लाल, स. मुदाय सिद्धि लहंतरे ॥वा०॥ तीन समूहे नेह उपजे हो लाल ॥ बिन्दु बिन्दु सरहुंतरे ॥ वा०॥ज० ३॥ त्रिण भुवनना योगथी हो लाल, पूरण लोक कहेवायरे ॥वा० ॥ केम ते एकमां थापीये हो लाल, एक सिथे तृप्ति न थायरे ॥ वा० ज० ॥ ४ ॥ ज्ञान समकित धोरी वहे हो लाल, संयम रथ सुविशालरे ॥ वा० ॥ बेसी जिनपंथे चढ्या हो लाल, थाशे ते परम निहालरे वा० ॥ ॥ ज०॥ ५॥ निज निज पद प्राप्ति सुधी हो लाल, ज्ञानाचारादिक सेवरे ॥ वा० ॥इम शुभ परिणामे करी For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ हो लाल, वेगे होय शिवदेवरे ॥ वा० ॥ ज०॥६॥ दंसण ज्ञानमा मेळवी हो लाल, ज्ञान क्रियाये कही सिकरे वा० ॥ पंगु अंधो नर दो भले हो लाल, मनह मनोरथ कीधोरे ॥ वा० ज० ॥७॥ जेटला वचन विचार छे हो लाल, तेटलां नयना वादरे ॥ वा०॥ सहु अंतर प्रीति करे हो लाल, सुणी वीरना वचन जे स्वादरे ॥ वा० ॥ ज०॥८॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥श्रीमहावीरजीनागुण गावो, संशय मनना मीटावोरे, मुक्ताफलनो थाल भरीने, प्रभुजीना ज्ञान वधावोरे ॥ श्री० ॥१॥ आसमये श्रुतज्ञानी मोटा, शुद्ध स्वरूप समजावोरे ॥ ज्ञानीनो जे विनय सेवे, तो अतिचार न थावेरे ॥ श्री० ॥ २ ॥ आवश्यकादिक ग्रंथ अनुसारे, रचना करी मनोहाररे॥ हिनाधिक निजबुद्धि कहेवाय, ते श्रुतधर सुधारीरे, ॥श्री०॥३॥ मुनि कर सिद्धि चंद्रज वरसे, आठम शुदी भले भावेरे ॥त्रणसे त्रीस कल्याणक ए दिन, त्रीस चोवीसीना थावेरे ॥ ॥ श्री० ॥ ४ ॥ पेहेला पांच जीणंद नमि नेमि, सुव्रत For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७ पास सुपासरे ॥ दश जिननां अगीयार कल्याणक, ए दिवसे थया खासरे ॥ श्री० ॥ ५॥ अडसिद्धिबृद्धिदायक एदीन, स्तवन रच्यु प्रमाणरे।। भणशे गुणशे जेह सांभलशे, तस घर कोडि कल्याणरे॥ श्री०॥६॥ ॥ कलश ॥ इम वीर जिनवर प्रमुख केरो, अढीलाख उदार ए ॥ जिनबिंब स्थापी सुजश लीधो, दानसूरि सुखकार ए ॥ तस पाट परंपर तपागच्छे, सोभाग्य सूरि गणधार ए ॥ तास शिष्य लक्ष्मीसूरि पभणे संघने जयजयकार ए॥१॥ ॥ अथ श्री पांचकारणर्नु स्तवन. ॥ ॥ दोहा । सिद्धारथ सुत वंदीये, जगदीपक जिनराज ॥ वस्तु तत्त्व सवि जाणीये, जस आगमथी आज ॥१॥ स्याद्वादथी संपजे, सकल वस्तु विख्यात ॥ सप्तभंगी रचना विना, बंध न बेसे वात ॥ २॥ वाद वदे सहु जुजुआ, आप आपणे ठाम ॥ पूरण वस्तु विचारतां, कोइ न आवे काम ॥३॥अंधपुरुष एह गज ग्रही, अवयव एकेक ॥ दृष्टिवंत लहे पूर्ण गज, अवयव मली अनेक ॥ ४ ॥ संगति सकल नये करी, जुगति For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ योग शुद्धबोध ॥ धन्य जिनशासन जग जयो, जिहां नहि किश्यो विरोध ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ राग आशावरी ॥ ॥ श्री जिनशासन जग जयकारी, स्याद्वाद शुद्ध रूप रे । नय एकांत मिथ्यात निवारण, अकल अभंग अनूपरे ॥श्री० ॥ १॥ ए आंकणी ॥ कोई कहे एक कालतणे वश, सकल जगत गति होय रे ॥ काले उ. पजे काले विणसे, अवर न कारण कोयरे ॥ श्री०॥२॥ काले गर्भ धरे जग वनिता, काले जन्मे पुतरे ॥ काले बोले काले चाले, काले आले घरसुतरे ॥श्री० ॥३॥ काले दुधथकी दहीं थाये, काले फल परिपाकरे ॥ विविध पदारथ काल उपाये, काले सहं थाय खाखरे ॥श्री०॥ ४॥ जिनचोवीश बार चक्रवर्ति, वासुदेव बलदेवरे ॥ काले कलित को न दीसे,जसु करता सुर सेवरे॥श्री०॥५॥उत्सर्पिर्णी अवसर्पिणी आरा, छए जुइ जुइ भातरे ॥ ऋतुकाल विशेष विचारो, भिन्न भिन्न दिन रातरे ॥श्री ॥६॥ काले बाल विलास मनोहर, For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ यौवने काला केश रे ॥ वृद्ध पण वली पली वपु अति दुर्बल, शक्ति नहि लव लेशरे ॥श्री०॥७॥ ढाल ॥ २ ॥ गिरुआ गुण वीरजी ॥ ए देशी ॥' ॥ तव स्वभाववादी वदेजी, काल किस्युं करे रंक ॥ वस्तु स्वभावे नीपजे जी, विणसे तिमज निशंक॥ सुविवेक विचारो, जुओ जुओ वस्तु स्वभाव ॥१॥ ए आंकणी ॥ छते योग जोबनवती जी, वांझणी न जणे बाल ॥मुच्छ नहिं महिला मुखे जी, कर तल उगे न वाल । सु० ॥ २ ॥ विण स्वभाव नवि निपजे जी, केम पदारथ कोई ।। आंब न लागे लींबडे जी, बाग संते जोय ।। सु०॥३॥ मोर पिच्छ कुण चीतरे जी, कोण करे संध्या रंग॥ अंग विविध सवि जीवनां जी, सुंदर नयन कुरंग ॥सु० ॥४॥ काटा बार बबुलना जी, कोणे अणीयाला कीध ॥ रूप रंग गुण जुजुआ जी, तरु फल फुल प्रसिद्ध ॥ सु०॥५॥विषधर मस्तक नित्य वसे जी, मणि हरे विष ततकाल ॥ पर्वत स्थिर मल वायरोजी, उर्ध्व अग्निनी ज्वाल ॥ सु०॥६॥ मत्स्य तुंब जलमा तजे जी, बूडे काग पहाण ॥ पंखी For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० जात गयणे फिरेजी, इणी परे सयल विनाण ॥ सु० ॥ ७ ॥ वायु सुंठथी उपशमेजी, हरडे करे विरेच ॥ सीजे नहिं कण कांगडुं जी, शक्ति स्वभाव अनेक ॥ सु०॥ ८॥ देश विशेषे काष्ठना जी, भूमिमां थाय पहाण | शंख अस्तिनो नीपजे जी, क्षेत्र स्वभाव प्रमाण ॥ सु०॥ ९॥ रवि तातो शशी शीतलोजी, भव्यादिक बहु भाव ॥ छए द्रव्य आप आपणांजी, न तजे कोई स्वभाव ॥सु०॥१०॥ इति स्वानाववाद ॥ ॥ ढाल ॥३॥ कपुर होय अति उजलोरे ॥ ए देशी ॥ ॥ काल किस्युं करे बापडोजी, वस्तु स्वभाव अकज || जो नवि होये भवितव्यताजी, तो केम सिजे कजरे ॥ प्राणी म करो मन जंजाल॥ भाविनाव निहालरे ॥प्रा०॥१॥ए आंकणी ॥ जलनिधि तरे जंगल फरेजी, कोडी जतन करे कोय ॥ अणभावी होवे नहीं जी, भावी होयते होयरे ॥प्रा० ॥२॥ आंबे मोर वसंतमांजी, डाले डाले केई लाख ॥ केई खर्या केई खाखटीजी, केई आधां केई साखरे ॥प्रा० ॥३॥ बाउल जेमभवितव्यताजी, जिण जिण दिशि उजाय।। For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ ॥ परवश मन माणस तणुजी, तृण जेम पुंठे धायरे ॥प्रा०॥४॥ नियति वश विण चिंतव्युजी, आवि मले तत काल ॥ वरसा सोनुं चिंतव्युंजी, नियति करे विसरालरे ॥ प्रा०॥५॥ ब्रह्मदत्त चक्री तणांजी, नयन हणे गोवाल ॥ दोय सहस्स जस देवताजी, देहतणा रखवालरे ॥ प्रा०॥६॥ कोहो कोयल करेजी, केम राखी शके प्राण ॥ आहेडी शर ताकीयोजी, उपर भमे सींचाणरे ॥प्रा०॥७॥ आहेडी नागे डश्योजी, बाण लाग्यो सिंचाण ॥ कोकुहो उडी गयोजी, जुओ जुओ नियति प्रमाणरे ॥ प्रा०॥ ८॥ उडी शस्त्र हण्यां संग्राममांजी, राने पड्या जीवंत ॥ मंदिरमाथी मानवीजी, राख्याही न रहंतरे ॥प्रा०॥९॥ इति भवितव्यता वाद।। ॥ ढाल ॥४॥ राग मारुणा मनोहर हीरजीरे ॥ ॥काल स्वभाव नियत मति कुंडी, कर्म करे ते थाय ॥ कर्म निरय तिरिय नर सुरगतिजी, जीव जवांतरे जाय ॥ चेतन चेतीयरे कर्म सभो नहीं काय ॥चेतन० ॥१॥ ए आंकणी ॥ कर्मे राम वस्या वनवासे, सीतापामे आल ॥ कमें लंकापति रावणर्नु, राज For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थयुं विसराल ॥ चे० ॥२॥ कमें कीडी कमें कुंजर, कमें नर गुणवंत ।। कर्मे रोग शोक दुःख पीडित, जन्म जाय विलपंत ॥ चे०॥३॥ कमें वरस लगे रिसहेसर, उदक न पामे अन्न ॥ कर्मे वीरने जुओ योगमारे, खीला रोप्या कन्न ॥ चे ॥४॥ कमें एक सुखपाले बेसे, सेवक सेवे पाय ॥ एक हय गय रथ चढ्या चतुर. नर, एक आगळ उजाय ॥ चे ॥५॥ उद्यम मानी अंध तणी परे, जग हीडे हा हतो ॥ कर्म बली ते लहे सकल फल, सुखभर सेजे सुतोरे ॥ चे॥६॥ उंदर एके कीयो उद्यम, करंडीयो कर कोले ॥ माहे घणा दिवसनो भूख्यो, नाग रह्यो दुःख डोलेरे ॥ चे० ॥७॥ विवर करी मूषक तस मुखमां, दीये आपणो देह ॥ मार्ग लइ वन नाग पधार्या, कर्म मर्म जुओ एह ॥ चे० ॥८॥इति कर्म विवाद ॥ ॥ ढाल ।। ५ ।। ॥ हवे उद्यम वादी भणेए, ए चारे असमर्थ तो ॥ सकल पदार्थ साधवा, एक उद्यम समर्थ तो ॥१॥ उद्यम करतां मानवीए, शुं नवि सीझेकाज तो ॥रामे For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रयणायर तरीए, लीधुं लंका राज्य सो॥२॥ कर्म नियत ते अनुसरे ए, जेहमां शक्ति न होय तो॥ देउल घाघ मुखे पंखीयांए, पीयु पेसंतांजायतो॥३॥विण उद्यम केम नीकले ए, तील मांहेथी तेल तो ॥ उद्यमथी जंची चढे ए, जुओ एकेंद्रिय वेल तो॥४॥ उद्यम करता एक समे ए, जे नवि सीझे काज तो ॥ तेह फरी उद्यमथी हुवेए, जो नवि आवे वाजतो ॥५॥ उधम करी ओर्या विना ए, नवि रंधाये अन्न तो॥ आवी न पडे कोलीयो ये, मुखमां पखे जतन्न तो ॥ ६ ॥ कर्म पुत्त उद्यम पिताए, उद्यमे कीधां कर्म तो ॥ उद्यमथी दुरे टले ए, जुओ कर्मनो मर्म तो ॥७॥ दृढप्रहारी हत्या करीये, कीधां पाप अनंत तो ॥ उद्यमथी खट मासमां ए, आप थयो अरिहंत तो ॥८॥टीपे टीपे सर भरे ए, कांकरे कांकरे पाल तो॥ गिरि जेवा गढ नीपजे ए, उद्यम शक्ति निहाळ तो ॥ ९॥ उधमथी जळ बिंदुओ ए, करे पाषणमा ठाम तो ॥ उद्यमी विद्या जणे ए, उद्यम जोडे दाम तो ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ . । ॥ ढाल ॥ ६ ॥ ए छंडी कीहां राखी ॥ ॥ए पांचे नय वाद करंता, श्री जिन चरणे आवे ॥ अमिय सरस जिन वाणी सुणीने, आनंद अंग न मावरे ॥ प्राणी समकित मति मन आणो॥ नय एकांत म ताणोरे ॥ प्रा० ।। ते मिथ्यामति जाणोरे ॥ प्राणी समकित मति मन आणो ॥१॥ ए आंकणी।। ए पांचे समुदाय मल्या विण, कोई काज न सीझे ।। अंगुलीयोगे कर तणी परे, जे बुझे ते रीझेरे प्राणी ॥ ॥ स० ॥ २॥ आग्रह आणी कोई एकने, एहमां दीजे वडाई ॥ पण सेना मिली सकल रणांगण, जीत सुभट लडाईरे प्राणी ।। स० ॥ ३ ॥ तंतु स्वभावे पट उपजावे, काल क्रमे रे वणाये ॥भवितव्यता होये तो नी. पजे, नहि तो विघ्न घणांयरे प्राणी ॥ स० ॥ ४॥ तंतु वाय उद्यम भोक्तादिक, भाग्य सकल सहकारी ॥ एम पांचेमली सकल पदारथ, उत्पत्ति शुओ विचारीरे प्राणी ॥ स०॥५॥ नियति वशे हल करमो थईने, निगोद थकी नीकलीयो ॥ पुण्य मनुज भवादिक पामी, सद्गुरुने जई मलीयोरे प्राणी ॥ स० ॥ ६ ॥ भवस्थिति For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १६५ नो परिपाक थयोतव, पंडित वीर्य उवसीयो, भव्य स्वभावे शिवगति पामी, शिवपुर जइने वसीयोरेप्राणी॥ सम० ॥ ७ ॥ वर्षमान जिन एणी परे विनये, शासन नायक गायो ॥ संघ सकल सुख होये जेहथी, स्याद्वाद रस पायोरे प्राणी ॥ सा०॥८॥ ॥ कलश ॥ इम धर्भ नायक, मुक्तिदायक, वीर जिनवर संथुण्यो ॥ सय सत्तर संवत वन्हि लोचन, वर्ष हर्ष धरी घणो ॥ श्री विजयदेव सुरिंद पटधर,श्री विजयप्रभ मुणिंद ए ॥ श्री कीर्तिविजय वाचक शिष्य इणिपरे, विनय कहे आणंद ए ॥ १॥ ॥ अथ श्री समकितनुं स्तवन. ॥ ॥ ढाल ॥ १ ते मुज मिच्छामिदुक्कडं ॥ ए देशी ॥ ॥सांभलरे तुंप्राणीया, सदगुरु उपदेशो ॥मानव भव दोहीलो लह्यो, उत्तम कुल एसो ॥ सा० ॥१॥ देव तत्त्व नवि ओलख्यो, गुरुतत्व न जाण्यो ॥ धर्म तत्व नवि सदह्यो, हियडे ज्ञान न आण्यो ॥सा॥२॥ मिथ्यात्वी सुर जिन प्रत्ये, सरखा करी जाण्या ॥ गुण अवगुण नवि ओलख्यो, वयणे वखाण्या ॥सा०॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar देव थया मोहे ग्रह्या, पासे रहे नारी ॥ काम तणे वश जै पड्या, अवगुण अधिकारी ॥ सा० ॥४॥ केई क्रोधी देवता, वली क्रोधना वाह्या ।। के कोईथी बीहता, हथीयार सवाह्या ॥ सा० ॥ ५ ॥क्रूर नजर जेहनी घणी, देखंतां डरीये ॥ मुद्रा जेहनी एहवी, तेहथी गुंतरीये ॥सा० ॥ ६ ॥ आठ करम सांकल जडयां, भमे भवही मजारो ॥ जन्म मरण भव देखीये, पाम्या नहीं पारो॥ । सा० ॥ ७॥ देवथई नाटक करे, नाचे जण जण आगे ॥ वेषकरी राधा कृष्णनो, वली भीक्षा मागे|सा० ॥८॥ मुखे करी वाये वांससी, पेहेरे तन वाघा ॥भावंतां भोजन करे, एहवा भ्रम लागा ॥सा०॥ ९॥ देखो दैत्य संहारवा, थया उद्यमवंतो ॥ हरि हीरणांकुश मारीयो, नरसिंह बलवंतो ॥सा०॥ १०॥ मत्स्य कच्छ अवतार लइ, सहु असुर विदार्या ॥ दश अवतार जुजुआ, दश दैत्य संहार्या ॥ सा॥११॥ माने मूढ मिथ्या मति, एहवा पण देवो ॥ फरी फरी अवतार ले, देखो कर्मनी टेवो ॥ सा० ॥ १२ ॥ स्वामी सोहे जेहवो, तेहवो परिवारो ॥ इम जाणीने परिहरो, जिन हर्ष विचारो॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६७ || ढाल || २ || ओधव माघवने कहेजो ॥ ए देशी ॥ ॥ जगनायक जिनराजने दाखविये सही देव ॥ मूकाणा जे कर्मथी, सांरे सुरपति सेब ॥ ज० ॥ १ ॥ क्रोध मान माया नहीं, लोभ अज्ञान ॥ रति अरति वदे नहीं, छांडयां मद स्थान ॥ ज० ॥ २ ॥ निद्रा शोक चोरी नहीं, नहि वयण अलिक | मत्सर भय वध प्रा सनो, नकरे तह कीक ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रेम क्रीडा न करे कदी, नहीं नारी प्रसंग || हास्यादिक अढार ए, नहीं जेहने अंग ॥ ज० ॥ ४ ॥ पद्मासन पुरी करी, बेठा श्री अरिहंत || निश्चल लोयण तेहना, नासाग्र रहंत ॥ ज० ॥ ५ ॥ जिनमुद्रा जिनराजनी, दीठां परम उल्लास || समकित थाये निर्मलुं, तपे ज्ञान उजास ॥ ज० ॥ ६ ॥ गति आगति सहु जीवनी, देखे लोकालोक || मनः पर्याय सवि तथा, केवलज्ञान आलोक ॥ ॥ ज० ॥ ७ ॥ मूर्ति श्री जिनराजनी, समतानो भंडार ॥ शीतल नयन सुहामणो, नहीं वांक लगार ॥ ज० ॥ ८ ॥ हसत वदन हरखे हैयुं, देखी श्री जिनराय || सुंदर छबी प्रभु देहनी, शोभा वरणवी न जाय ॥ For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ ज०॥९॥ अवर तणी एहवी छबी, किहां एम न दीसंत ॥ देव तत्त्व ए जाणीये,जिनहर्ष कहंत ॥ज०॥१०॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ जत्तणीनी र देशी ॥ ||श्री जिनवर प्रवचन भाख्या, जे कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥ पासथ्यादिक पांचेई; पाप श्रमण कह्या साचेई ॥१॥ गृहीना मंदिरथी आणी ॥ आहार करे भात पाणी ॥ सुवे उंघे नीशदिश, प्रमादी विसवावीस ॥२॥ किरिया न करे किणीवार, पडिक्कमणुं सांज सवार ॥ न करे पञ्चखाण सज्झाय, किकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत दुध दहीं अप्रमाण, खाय न करे पच्चखाण ॥ ज्ञान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां सुपवित्र ॥ ४॥ सुविहित मुनि समाचारी, पाले नही ते अणगारी ॥ आहारना दोय बयाल,टाले नहीं कीणहि काल ॥ ५॥ धब धब धसमसतो चाले, काचे जले देह पखाले ॥ अर्चा रचना वंदावे, वस्त्रादिक शोभा बनावे ॥६॥ परिग्रह वली झाझा राखे, वली वली अधिकाने धाखे ॥ माठी करणी जे कहीये, ते सघली जिणमें लहीये ॥ ७ ॥ एहवा जे गुरु आरंभी, मुनि For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु कहेवाये दंभी । कोइ कम्म प्रशंसा करीये, भव भव गृहमां अवतरीये ॥८॥ लोहानी नावा तोले, भवसायरमा जे बोले ॥ जिनहर्ष भलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ९॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ करजोडी आगल रही ॥ ए देशी ॥ ॥ गुण गीरुआ गुरु ओलखो, हीयडे सुमति विचारीरे ॥ गुरु परिक्षा दोहिली, भुल पडे नर नारीरे ॥ गु० ॥१॥ पांच इंद्रिय जे वशकरे, पांच महाबत पालेरे ॥ चार चार कषाय तजी जेणे, पांचे किरिया टालेरे ॥ गु० ॥२॥ पांच समिती समिता रहे, तीन गुप्ति जे धारेरे ॥ दोष बेतालीस टालीने, पाणी भात आहारेरे ॥गु०॥३॥ ममता छांडी देहना, निलोभी निर्मायीरे ॥ नवविध परिग्रह परिहरे, चित्तमें चिंते न कांइरे ॥ गु० ॥४॥ धर्मतणां उपकरण धरे, संयम पालवा काजेरे ॥ भूमि जोई पगलां भरे, लोक विरोधथी लाजेरे । गु०॥ ५॥ पडिलेहण नित्य त्रिविधे करे, प्रमाद निवारीरे॥काले शुद्ध क्रियाकरे, इच्छा जोग निवारीरे ॥ गु० ॥६॥ वस्त्रादिक शुद्ध एषणी, ले देखी For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar सुविशेषेरे ॥ काल प्रमाणे खपकरे, दूषण टलतां देखेरे ॥ गु०॥७॥ कुख्खी संबल जे कह्यां, सान्निध्य केम ही न राखेरे ॥ दे उपदेश यथास्थिते, सत्य वचन मुख भाखरे ॥ गु०॥८॥ तन मेला मन उजळां, तप करी खीणी देहीरे॥ बंधन बे छेदी करी, विचरे जन निःस्नेहीरे ॥ गु० ॥ ९ ॥ एहवा गुरु जोई करी, आदरीये शुभ भावरे ॥ बीजुं तत्त्व सुगुरु तणुं, ए जिनहर्ष कहावेरे । गु०॥१०॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥ कर्मन छुटे रे प्राणिया ॥ ए देशी॥ ॥ भवसायर तरवा भणी, धर्म करे हो सारंभ। पथ्थर नावे रे बेसीने, तरवो समुद्र दुरलंभ ॥ भ० ॥ ॥१॥ आपे गोकुल गायनां, आपे कन्या रे दान । आपे क्षेत्र पुण्यार्थे, ब्रामणने देई मान ॥ भ० ॥२॥ टावे धाणी वली, पृथ्वीदान सुप्रेम, गोला कलशारे मोरिया, आपे हल तिल हेम ॥भ०॥३॥ वली खणावेरे खंतशू, कूआ सुंदर वाव ॥ पुष्करिणी करणी नली, सरोवर सखर तलाव ॥ भ०॥४॥ कंद मूल मूके नहीं, अगीआरसने हो दीस ॥ आरंभ ते दिन अति For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७१ घणो, धर्म कीहां जगदीश ॥भ०॥५॥ याग करे होमे तिहां, घोडा नरने रे छाग ॥ होमे जलचर मीडका, धर्म कीहां वीतराग ॥ भ० ॥६॥ करे सदाये रे नोरता, जीव तणां आरंभ ॥ हणे महिषने बोकडा, जेहथी नरक सुलंभ ॥ भ०॥७॥ सारे सरावे ब्राह्मण कने, पूर्वजनां रे श्राद्ध ॥ तेडी पोखेरे कागडा, देखो एह उपाधि ॥भ०॥ ८॥ तीर्थ जाय गोदावरी, गंगा गया प्रयाग ॥ न्हावे अणगल नीरमां, धर्म तणो नहीं लाग ॥ भ० ॥ ९॥ इत्यादिक करणी करे, परभव सुखनेरे काज ॥ कहे जिन हर्ष मले नहीं, एहथी शिवपुर राज ॥भ०॥१०॥ ॥ ढाल ॥६॥ जाया तुज विण घडीरे छमास ॥ देशी ॥ ॥धर्म खरो जिनवर तणोजी, शिव सुखनो दातार ॥ श्री जिनराजे प्रकाशीयोजी, जेहना चार प्रकार ॥ भाविक जन ज्ञान विचारीरे जोय ॥ दुर्गति पडता जीवने जी, धारे ते घर्म होय ॥ भविकजन० ॥१॥ ए आंकणी ॥ पंच महावत साधुनां जी, दशविध धर्म विचार ॥ हित करीने जिनवर कह्योजी, For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૭૨ श्रावकनां व्रत बार ॥ भविक० ॥ २॥ पंचुंबर चारे वियगजी, विष सह माटीरे हिम॥रात्रीभोजनने कह्याजी, बहु बीजोनो नेम ॥ भविक० ॥३॥ घोलवमां वली रींगणांजी, अनंतकाय बत्रीस ॥ अणजाण्यां फल फूलडांजी, संधाणां निशदीश ॥भविक० ॥४॥ चलित अन्न वाशी थयुंजी, तुच्छ सहु फल दक्ष ॥ धर्मी नर खाये नहींजी, ए बावीस अनक्ष ॥ भविक० ॥५॥ न करे निद्धंस पणेजी, घरना आरंभ धीर ॥ जीवतणी जयणा घणीजी, न पीये अणगल नीर ॥भविक० ॥६॥घृतपरे पाणी वावरेजी, बीये करतां पाप ॥सामायिक व्रत पौषधेजी, टाले भवना ताप ॥ भविक० ॥७॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनीजी, सेवा भक्ति सदीव ॥ धर्म शास्त्र सुणतां थकांजी. समजे कोमल जीव ।। भविका ॥८॥ मास मासने आंतरेजी, कुश अग्रे भुंजे वाल॥ कला न पहोचे शोलमीजी, श्री जिनधर्म विशाल । भविक० ॥९॥ जिन धर्म मुक्ति पुरी दीयेजी, चउ. गति भ्रमण मिथ्यात्व ॥ एम जिनहर्ष प्रकाशीयेजी, त्रीजुं तत्त्व विख्यात ॥ भविक०॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १७३ ॥ ढाल ॥ ७ ॥ मधुकर आज रहोरे मत चलो ए देशी ॥ ॥श्री जिनधर्म आराधियेजी, करी निज समकित शुद्ध ॥ भवियण । तप जप किरिया कीधलीजी, लेखे पडे विशुद्ध ॥ भ० ॥ श्री० ॥१॥ कंचन कशी कशी लिजियेजी, नाणुं लीजे परीख ॥ भ० देव धर्म गुरु जोईनेजी, आदरीये सुणी शीख ।। भ०॥श्री॥२॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मनेजी, परिहरिये विष जेम॥भ०॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनेजी, ग्रहीये अमृत तेम ॥ भ०॥श्री. ॥३॥ मूल धर्म ते जिने कह्योजी, समकित सुरतरु एह ॥ भ० ॥ भव जव सुख संपत्ति थकीजी, समकि. तशुं धरी नेह ॥ भ० ॥ श्री० ॥ ४ ॥ सत्तरसे छत्रीस समेजी, नभ शुदी दशमी दस ॥भ॥ समकित सित्तरी ए रचीजी, पुरपाटण सुजगीश ॥ भ० ॥ श्री०॥ ५ ॥ भणजो गुणजो भावशुंजी, लेशो अविचळ श्रेय ॥भ०॥ शांति हर्ष वाचक तणोजी, कहे जिन हर्ष विनेय ॥ भ० ॥ श्री० ॥ ६ ॥ इति श्री समकितसित्तरी संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ ॥ श्री बार आरा- स्तवन. ॥ ॥ दुहा ॥ सरस्वती भगवती भारती, ब्रह्माणी करी सार ॥ आरा बारतणो वळी, कहीशुं सोय विचार 4॥ १॥ वर्द्धमान जिनवर नमुं, जस अतिशय चोत्रीस ॥ समवसरण बेठा प्रनु, वाणी गुण पांत्रीस ॥२॥ गौतम पूछे वीरने, पर उपगारी अकामी ॥ अनेक बोल विवरी करी, भाखे त्रिभुवन स्वामी ॥ ३ ॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ चोपाई ॥ ॥ स्वामी वचन कहे सुकुमाल, आ कहीये अवसर्पिणी काल ॥ दस कोडाकोडी सागर जोय, तिहां षट् श्रारा गौतम होय ॥ १ । सुसम सुसमा पहेलो सार, त्यारे जुगल धरे अवतार ॥ बीजो सुसमा आरो लहु, त्यारे जुगल जुगलणी कहुं ॥२॥सुसम दुसमा त्रीजो वली, त्यारे जुगल कहे केवली ॥ अंते कुलगर हुया सात, नाभिहुआ आदीश्वर तात ॥ ३॥ ॥हा॥ आदि धर्म जेणे थापीओ, शीखव्या पुरुष अनंत ॥ त्रीजा आरामांहे वली, मुक्ति गया भगवंता॥ For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल ॥ २ ॥ राग परजीओ ॥ मनोहरजीनी ए देशी ॥ ॥ पछी वली गौतम चोथे आरे, हुआ तेत्रीस जिणंदो ॥ एकादश चक्रवर्ती तिहां हुआ, त्रीजे भरत नरिंदोरे ॥ १ ॥ गौतम सांजलोरे, दीन दीन पडतो काल ॥ ए आंकणी ॥ क्रोध लोभ मद मत्सर वधशे, दे अणहुतां आल ॥ गौ० ॥ दीन०॥२॥ चक्री आठ गया नर मुक्ति, बे चक्री सुर मोटा ॥ सुभूमराय ब्रह्मदत्त गया नरके, पुन्यकाज हुआ खोटा ॥ गौ०॥ दीन० ॥३॥ वासुदेव नव निश्चय हुआ. नरक तणी लही वाटयो, ॥ जे भूपति संग्राम करंता, त्रिण सयांने साठयो ॥ गौ० ॥ दीन०॥४॥ इह प्रति वासुदेव नव नीका, नवि छंडे धन नारी ॥ वासुदेव तणे करे मारे, ते नरक तणा अधिकारी ॥ गौ० ॥ दीनः ॥५॥ नव बलदेव हुआ इणे आरे, नव नारद ते मोटा ॥ सुरगति मुक्ति तणा भजनारा, शियल वज़ कछोटा ॥ गौ०॥ दीन० ॥६॥ ॥ दुहा ॥ गौतम अंत्ये हूं हवो, तव काया कर सात ॥ मुज शासनमांहे जेह, हशे ते भाखो वाता॥ For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ राग केदारो ॥ नगरका वणजारा ॥ ए देशी ॥ ॥ जाखे वीर जिणेसर त्यारे, में संजम लीधो ज्यारे रे ॥ वरस त्रण गयां तिहांयशाले, त्यारे कुशिष्य मिल्यो गोशालोरे ॥ भाखे० ॥ १ ॥ तेजोलेश्या ते पण ग्रही तो, दोय मुनिवर जिन दहतु जाईरे ॥अंते पातक आलोइने, बारमे स्वर्गे सुर होइरे ॥ भाखे० ॥ २ ॥ ॥ दुहा ॥ वीर कहे केवली पछी; विचमाहे एतो काल ॥चउद वरस उपन्यो, निन्हव सोय जमाल ॥१॥ तिक्ष गुप्ति बीजो सही, सोल वरस तेह ॥ अंते ते पाछो वले, समकित पामे जेह ॥२॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ राग गोडी ॥ भावी पटधर वीरनो ॥ ए देशी ॥ ॥ दुसम आरोरे आगले, वीस सो वरसनुं आयु छ । होशे वरस वीसनु, दोय हाथनी काय ॥ कहं तुज गौतम गणधर ॥१॥ वळी कहे वीर जीणेसरु, माहरो सुधर्मा शीष्य ॥ छेहे होसे दुप्पसह मुनी, ते विच उदय वीस ॥ कहे० ॥ २॥ युगप्रधान जिणे कह्या, जस एक अवतार ॥ पंचम आरे ते हशे, दोय सहसने चार ॥कहे०॥ ३॥ युग प्रधान सरिखो हशे, For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ९७७ . मुनिवर लाख अगीयार ॥ ते उपर अधिका कहुं, मुनिवर सोल हजार कहे०॥४॥जैन भूपति जगमा हशे, करशे धर्म उद्धार ॥ लाख अगीआरने उपरे, संख्या सोल हजार ॥५॥ वीर पछी गौतम जशे, बारे वरसे मोक्ष ॥ वीसे सिद्धिगते सुधर्मा, प्रणमी पातिक शोष ॥ कहे० ॥६॥ ॥ दुहा ॥ वीर थकी वरस चोसटे, मुक्ति जंबु स्वामि ॥ जंबु जाते सही जशे,दसवानां तस गम॥१॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ राग आशावरी काननी वजावे वांसली॥ए देशी ॥ ॥ मन पर्यव त्यारे नहींरे, परम अवधि ज्ञान । पुलाक लब्धि आहारक तनुरे, क्षपक श्रेणी निधान ॥१॥ उपशम श्रेणी जिन कल्पगुंरे, संजम त्रिण जाय ॥ केवलज्ञान नवमुं लहेरे, तव मोक्ष पलाय ।। २ ॥ वीर कहे वरस मुज पछीरे, चिउत्तरे थाय ॥ प्रभव स्वामी जीजे पाटेरे, परलोके जे जाय ॥ ३ ॥ शय्यंभवसूरि मुनिवरुरे, जे चोथे पाटे थाय ॥ बीरथी वरस अटाणुएरे, लहे शुभ गति वाट ॥ ४॥ वीरथी वरस गयां घणारे, एकसो अडताल, यशोभद्र सुरलोकमारे, For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ तब देता फाल ॥५॥ छठे पाटे संभूति विजयरे, हशे पंडित जाण ॥ वीरथी एकसो सित्तरे रे, वरसे निरवाण ॥ ६॥ ॥ दुहा । तबपूर्व ओछा थया, सुण गौतम कहे वीर ॥ भद्रबाहु लगे ते हशे, जेहमा अर्थ गंजीर ॥१॥ ॥ ढाल ॥ ६॥ राग गोडी ॥ सिंह तणी परे एकलो ।। ए देशी॥ ॥ वरस बसें चउदे वलीरे, निन्हव त्रीजो जे होय ॥आषाढाचारज तणोरे. शिष्य कहो वली सोयरे ॥ गौतम सांजलो रे ॥१॥ निन्हव सो एटले सहीरे, पामे समकित सार ॥ बसे पंदर वरस वलीरे, स्थूलिभद्र लहे पारो रे ॥ गौ० २ ॥ पूर्व अनुयोग त्यारे नहींरे, सूक्ष्म महा प्रणिधान ॥ पेहेलु संघयण थाकीउरे, वळी पेहेबुं संस्थानोरे ॥ गौ ॥३॥ बसें वीस वरसे वलीरे. निन्हव चोथोरे जेह ।। अश्वमित्र नाम जे हशेरे, पाछो वलशे नर तेहरे ॥ गौ०॥४॥ वीर पछी वरस जशेरे, बसेंने अठ्ठावीश ॥ तव निन्हव होसे पांचमोरे, धनगुप्तनो शिष्यरे ॥ गौ० ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७९ ॥ दुहा ॥ गंगाचारज ते सही, ते मति आणे ठाहि ॥ चारसेने सितेरे, वीरथी विक्रम राय ॥१॥ जे निज शाको थापशे, परदुःख भंजणहार ॥ जैन शिरोमणि ते हशे, शूरवीर दातार ॥२॥ ॥ढाल॥७॥ राग धन्याश्री ॥ पाट कुसुमनी न पुजरूपे ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर कहे वरस मुजथी जाशे, पंचसयां चउंआल ॥ रोहोगुप्ति निन्हव होय छठ्ठो, भमशे ते बहु काल हो ॥ गौतम दिन दिन कुमति वधशे ॥१॥ भूपति नहीं कोई संयम धारी, दान पचावी दे सेहो ॥पंचसयां चोरासी वरसे, होशे गोष्टामाहील ॥ सातमो निन्हव तेने कहीए, चाले भुंडी चालो हो ॥ गौ०॥ २॥ पंचसयां चौरासी गौतम, वरस गयां तुं जोई ॥ दसपूर्व थाकशे त्यारे, वयरस्वामी लगे होई हो ॥ गौ०॥३॥ वीरथी वरस छसे नव जाये, ताम दिगंबर थाय ॥ सर्व विसंवादी ए निन्हव, आठमो तेह कहाय हो ॥ गौ०॥४॥ वरस छसेने सोलज अंते, पूर्व साडा नव छेद ॥ दुर्बलिका पुत्र ज लगे होई, पाछल सोयने खेद हो ॥ गौ०॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १८० ॥ दुहा ॥ नवसें त्राणुं वरसज गये पुस्तकारुढ ज होय ॥ चोथे पर्युषण आणसे,कालिकाचार्य सोय॥१॥ ॥ ढाल ॥ ८ ॥ राग परजीओ ॥ हितकरी हीरजीनुं । ए देशी ॥ ॥ अथ सिंधु । वीरथी वरस हजार गया पछीरे, पूर्व होये तव छेदोरे ॥ तेरसयारे वरसे मत हशेरे, बोले नवनव भेदोरे ॥ इन्द्रभूति मोटोरे वीर वचन रसेरे ॥१॥ ए आकणी ॥ दिन दिन काल पडतो सही हशेरे, पुन्यवंता नर क्यांहीरे ॥ नीच कुलीरे नरपति बहु थशेरे, पापतणी मती प्राहेरे ॥ इंद्र० ॥२॥ वास वैराग्य विनय थोडा थशेरे, न मले मन्य मन्नोरे॥ सुपुरुष छते सहु सगपण छांमशेरे, वाहालो होशे धन्नोरे ॥ इंद्र० ॥ ३ ॥ कलियुगहिरे मुनि लोभी हशेरे, विरला कही व्यवहारोरे ॥ धर्म तजशे क्षत्री नर वलीरे, ब्रह्म धरे हथियारोरे ॥ इंद्र०॥४॥ ॥ दुहा ॥ गौतम वीर थकी जशे, वरस सयां ओगणीस ॥ पांच मासने उपरे,भाषा बारज दीस ॥११॥ ॥ ढाल ॥ ९॥ राग रामगीरी ॥ राम भणे हरी उठीये ॥ए देशी॥ ॥ ताम कलंकीरे उपजे, कुल चंडाल असार रे For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८१ ॥ माता जसोदारे ब्राह्मणी, होशे तीहां अवतार रे ॥ दुर्गति गामी रे ते सही ॥१॥ चैत्र सुदीरे आठम दिने, विष्टिए जनम ते होयरे॥ देहवरण तस उजलं, पीलां लोचन दोइरे ॥ दु० ॥ २ ॥ रुद्र कलंकी चतुमुंखा, ए होशे त्रणज नामो रे॥छासी वरसनुंआउ, पाटलीपुर जस गामरे॥ दु०॥३॥छट्टो नागज भीखनो, लेशे कलंकी राय रे ॥ षट दरसणरे माने नहीं, दंग कुदंड थायरे ॥ दु० ॥ ४॥ इंद्र इहां पछे आवशे, धरशे विप्रनुं रूपरे ॥ वेगे हणशेरे रायने, लेशे नरकर्नु कूपरे ॥ दु० ॥ ५ ॥ ॥दुहा ॥ तेहनो सुत सुंदर हशे, दत्त भूप, अभिराम ॥ शत्रुजय उद्धार करावशे, राखे जगमा नाम ॥१॥ ॥ ढाल १० ॥ रागरामगिरी ॥ प्रणमी तुभ गुरुजी ॥ ए देशी ॥ ॥आगल आरे पांचमेजी, दुप्पसह मुनिवर होय।। सुरगति मांहेथी आवशेजी, आगल सुरपति सोय ॥ सोभागी छेहलो मुनिवर एह ॥१॥ ए आंकणी॥छेहेलो संघ दुप्पसह तणोजी, आण न खंडे तेह ॥ सोभागीय For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ ॥ वीस वरसनु आउखूजी, बार वरस घर वास ॥ चार वरस मुनिवर पणुंजी, वरस चार गछ धार ॥ सो॥२॥ फुलुक श्रीनामे साधवीजी, नायल श्रावक सोय ॥ सत्यश्री नामे श्राविकाजी, संघ चतुर्विध होय ॥ सो० ॥ ३ ॥ सुविहित संघ छेलो सहीजी, अल्प आउखुरे त्यांही । संघश्रुत श्रेय वलीजी, जाशे पोरज माहे ॥ सो० ॥ ४ ॥ विमल वाहन नरपति जी,सुधर्म मंत्रीरे जेह॥ न्याय नीत अग्नि जशेजी, वळी मध्यान्हे तेह ॥ सो० ॥५॥ ॥ दुहा ॥ जैन धर्म एतां लगे, पछी नहीं पुन्य दान ॥ वायु मेघ भुंडा हशे, सुण गौतम तस मान॥१॥ ॥ढाल॥११॥ राग सारंग ॥ मगध देशनो राजा राजेसर ॥ए देशी।। ॥मान प्रकाशे मेघज केरु, पेहेलो ते जलधार ॥ बीजो अग्नितणो तिहां होशे, त्रीजो ते विषधार हो। गौतम सुणतुं मधुरी वाण ॥ १॥ चोथो आंबिलनो घन वरसे, वीजलीनो वरसाद ॥ एकेको मेघ त्यांहि वरसे, वासर रातज सात हो ॥ गो० ॥ २॥ बोतेर बोल वैताठ्यज केरा, छे वळी शाश्वता त्यांय ॥ नर For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ नारी पंखी हय हरणा, ते रहशे ते माहे हो।गौ०॥३॥ आगल छट्ठो आरो होशे, दुसम दुसमानाम ॥ एकवीस सहस वरसनो जाणो, नहीं नगरी नहीं गाम हो । गौतम० ॥४॥ गर्भ धरे खट वरसनी नारी, बिलवासी मछ खाय ॥ छेल्ने काया एक हाथनी होशे, सोल वरस, आयु हो ॥ गौ० ॥ ५॥ दुहा॥ आगल वली उत्सर्पिणी, त्यां षट आरा जोय ॥ पेहेलो छट्ठो सारिखो, दुसम दुसमा सोय ॥१॥ ॥ ढाल ॥ १२ ॥ राग केदारो ॥ वांदायणाना ॥ ए देशी ॥ ॥ आगल बीजो आरो सारो, त्यारे मेघ होशे वली चारो ॥ पुष्करावर्त खीर अमृत अपारो, चोथा वरसे धृतनी धारो ॥ १॥ फालशे वन वनस्पति बहु गामो, आगल साते कुलगर तामो ॥ दुसम सुसमा त्रिजो अभिरामो, त्रेवीस जिनना तीहां ठामो ॥२॥ नव नारद चक्री अगीआरो, नव वलदेव हशे तीहां सारो॥ वासुदेव नव तेणी वारो, नव प्रतिवासुदेव अपारो ॥३॥ सुसम दुसमा चोथा मांहि, एक जिनवर एक चक्री त्यांही ॥ अंत्ये जुगल होशे बहु जाहि, For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ आउ पल्योपम भद्रक प्राहिं ॥ ४ ॥ आगल सुसम पंचम आरो, जुगल देह वें गाउ धारो ॥ छट्टो सुसम सुसमा संभारो, जुगल देह त्रण गाउ विचारो ॥५॥ पूछयां वचन कह्यां वली वीरे, वित्तमां धरीया गौतम धीरे ॥ भणतां सुणतां सुखह शरीरे, ऋद्धि रमणीघर भरी वीरे ॥ ६ ॥ ॥ कलश || भले स्तवन कीधु, नाम दीधु, गौतम प्रश्नोत्तर सही ॥ संवत सिद्धि मुनि अंग चंदे, भाद्रव सुदी तियां तहिं ॥ १ ॥ तपगच्छ तिलक समान सोहे गुरुश्री विजयानंद सूरीश्वर || सागगनो सुत ऋषभ श्रावक, कहे गच्छ मंगल करु ॥ २ ॥ इतिश्री बार आरानुं स्तवन ॥ अथ श्री आंतरानुं स्तवन. || दुहा || शारद शारदना सुपरे, पद पंकज प्रणमेय || चोविसे जिन वरण, अंतर युत संखेय ||१|| वीर पार्श्वने आंतरु, वरस अढीसें होय ॥ पंच कल्याणक पार्श्वना, सांभलजो सहु कोय ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ढाल॥ निरुपण नयरी वणारसी जी, श्रीअश्वसेन नरिंदतो ॥ वामा राणी गुण भर्याजी, मुख जिम पुनम चंद तो॥ भवी भाव धरीने प्रणमो पास जिणंदतो ॥१॥ ए आंकणी ॥ प्राणत कल्प थकी चव्याजी, चैत्र वदी चोथने दीन तो।। तेहनी कुखे अवतर्याजी, प्रभु जिम किंदर सिंह तो ॥भवि०॥२॥ पोस बहुल दशमी दीनेजी, जन्म्या पास कुमार तो ॥ जोबन वय प्रभु आवीयाजी, वरीया प्रभावती नारी तो। भवि० ॥ ३॥ कमठ तणो मद गालीयोजी, उधयों नाग सजोर तो ॥ वद अगीआरस पोसनी जी, संजम लीये ऋद्धि छोमतो ॥ भवि०॥ ४॥ गाज विज ने वायरो जी, मुसलधार मेघ तो ॥ उपसर्ग कमठे कोजी, धरणेंद्र निवार्या तेह तो ॥भवि०॥५॥ कर्म खपावी केवल लहीजी, चैत्रवदी चोथ सुजाणतो ॥ श्रावण शुद दीन आठमेजी, प्रभुजीनुं नीवोण तो ॥ ॥भवि०॥ ६॥ एकसो वरसनुं आउखुंजी, पास चरित्रे का एम तो, वरस चोरासी सहसनुं जी, आंतरु पासने नेम तो ॥ भवि०॥ ७॥ For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ ॥ ढाल ॥२॥ सोरीपुर नयर सोहामj, जगजीवनारे नेम ॥ समुद्रविजय नरपाल तो, दीलरंजनारे नेम ॥ चविया अपराजित थकी, जग जीवनारे नेम ॥ कारतक वद बारस दीनहो, दील रंजनारे नेम ॥१॥ शीवा देवी कुखे अवतर्या ॥ जग० ॥ मान सर जिम मराल हो ॥ दील० ॥ श्रावण शुदो दीन पंचमी ॥ ॥ जग० ॥ प्रसव्यो पुत्र रतनहो ॥ दील० ॥२॥ जोबन वय प्रभु आवीया ॥ जग० ॥ नील कमल दलवान हो ॥ दी० ॥ परणो सुंदर सुंदरी ॥ ॥जगण॥ इम कहे गोपी कान हो । दी० ॥३॥ श्री उग्रसेननी कुंवरी ॥ जग० ॥ वरवा कीधी जान हो ॥ दील० ॥ पशु देखी पाछा वल्या ॥ जग० ॥ हुवा जादव कुल हेरान हो ॥ दील० ॥ ४ ॥ तोडे हारने तीहां रडे ॥ ॥ जग० ॥राजुल दुःख न माय हो ॥ दील०॥ कहे पीयुजी पाये पहुं ॥ जग० ॥ छोडी मुने मत जाओ। ॥ दील० ॥ ५॥ कीडीसुं कटक कीकरो ॥ जग० ॥ ए तुम कुण आचार हो ॥दी०॥ माणसना दील दुहवो ॥ जग० ॥ पशुआंशुं करो प्यारहो ॥ दील० ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८७ नवजव नेह निवारीओरे ॥ जग० ॥ देइ संवच्छरी दान हो ॥ दील०॥ श्रावण सुद छठने दीनेरे ॥ ॥ जग० ॥ संजम लीए वड वान हो ॥ दील०॥७॥ तारी राजुल सुंदरी ॥ जग०॥ देइने दीक्षा दान हो। ॥ दील. ॥ अमावस्या आसोज तणीरे ॥ जग० ॥ प्रभु लहे केवल ज्ञान हो ॥ दील० ॥ ॥ सहस वरस प्रभु आउखुरे ॥ जग० ॥ पाली श्री जिनराज हो ॥ दील० ॥ अषाढ सुदी दीन आठमेरे ॥जग०॥ प्रभु लहे शीवपुरराज हो ॥ दील ॥ ९॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ थारा महेला उपर मेह झबुके वीजली हो लाल ॥ ॥ देशी ॥ ॥ पांच लाख वरस नमि नेमने आंतरू हो लाल, नमी नेमने आंतरु ॥ मुनिसुव्रत नेमिनाथने छ लाख चित्त धरूं, हो लाल, छ लाख चित्त धरु, चोपन लाख वरस मुनिसुव्रत मल्लिने हो लाल, मुनिसुव्रतमल्लिने॥ कोड सहस वली जाणो मन्त्री अर नाथने हो लाल, मल्ली अरनाथने ॥ १॥ कोड सहस वरस करी, उणो पल्यन हो लाल, उणो पल्यनुं ॥ चोथो भाग अरना For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achana २८८ थवली कुंथुनाथने हो लाल, वली कुंथुनाथने ॥पल्योपमनुं अरध जाणी शांति कुंथुने हो लाल, जाणो शांति कुंथुने ॥ शांति धर्म पल्योपम उणे सागर त्रणर्नु हो लाल, सागर त्रण- ॥ २॥ सागर चार अनंतने धर्म जिणंदने हो लाल, धर्म जिणंदने ॥ नव सागर मळी अनंत विमल जिन चंद्रने हो लाल, अनंत विमल जिन चंद्रने ॥सागर त्रीस विमल वासुपूज्यने हो लाल, विमल वासुपूज्यने । सागर चोपन श्री वासुपूज्य श्रेयांसने हो लाल, वासुपूज्य श्रेयांसने ॥३॥ लाख पांसठ सहस छवीस वरससो सागलंहो लाल, वरससो सागर ॥ उणो सागर कोड श्रेयांस शीतल करे हो लाल, श्रेयांस शीतल करे ॥सुविधि शीतलने नव कोड सागर नावज्यो हो लाल, सागर भावजो॥सुविधिचंद्र प्रभु नेउकोडी सागरभावजो हो लाल सागरमनभावजो ॥४॥सागर नवसें कोमसुपास चंद्रप्रभुहोलाल,सुपास चंद्रप्रभु ॥ सागर नव सहस कोड सुपास पद्म प्रभु हो लाल, सुपास पद्म प्रभु ॥ सुमति पहा प्रभु नेउ सहस कोड सागर हो लाल, कोड सागरु ।। ५॥ दस लाख कोड सागर संभव अभिनंदने हो लाल, संभव अभि For Private And Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar नंदने ॥ त्रीस लाख कोड सागर संभव अजितने हो लाल,संभव अजितने॥पचास लाख कोड सागर अजीत जिन ऋषभने हो लाल, अजित जिन ऋषभने । एक कोडा कोड सागर ऋषभने वीरने हो लाल, ऋषभने वीरने, ॥ ६॥ सहस बैंतालीस तीन वरस वली जा. णीए हो लाल, वरस वली जाणीये ॥ साडा आठ महिना उणा ते वखाणीये हो लाल उणा, ते वखाणीये ॥ नवसे एंसी वरले होइ पुस्तक वांचना हो लाल, पु. स्तक वांचना ॥ अंतर काल जाणो जिन चोवीसनो हो लाल, के जिन चोवीसनो ॥७॥ ॥ ढाल ॥ ४॥ दोन सकल मनोहर ॥ ए देशी ॥ ॥ जयो आदि जिणेसर, त्रिभुवननो अवतंस ॥ नाभी राजा मरुदेवा, कुल मानुं सर हंस || सर्वार्थ सिद्धथी, चवि इक्ष्वाकु भूमि वरठाम ॥ अताड वदी चोथे अवतर्या पुरुष प्रसन्न ॥ १ ॥ चैत्र वदी आठमे, जन्म्या श्री जिनराय ।। आवे इंद्र इंद्राणी, प्रभुजीना गुणगाय ॥ सुनंदा सुमंगला, वरिया जोवन पाय ॥भरतादिक एकसो, पुत्र पुत्री दो थाय॥२॥ करी रा For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनी थापना, वासि वनिता इंद्र ॥ जगमा निति चलाय, मारु देवीनो नंद ॥ प्रभु शील्प देखाडी, चारे जुगल आचार ॥ नरकला बहोतेर, चोसठ महिला सार ॥ ३ ॥ भरतादिकने दीए, अंगादिकनुं राज्य ॥ सुरनर इम जपे, जय जय श्री जिनराज ॥ देइ दान संवच्छरी, प्रभु लीए संयम जार, चार सहस राजाशुं, चैत्रवद आठम सार ॥ ४॥ प्रभु विचरे महियल, वरस दिवस विण आहार ॥ गजरथने घोमा, जन दिए रा. जकुमारी ॥ प्रभुतो नवि लेवे, जुवे शुद्ध आहार ॥ पडिलाभ्या प्रभुजी, श्रीश्रेयांसकुमार ॥ ५॥ फागण अंधारी, अगीयारस शुभ ध्यान ॥ प्रभु अठम भक्ते, पाम्या केवलनाण ॥ गढ त्रणे रचे सुर, सेवा करे करजोड ॥ चक्र रत्न उपन्यो, भरतने मन कोड ॥६॥ मारुदेवा मोहे, दुःख आणे मनजोर ॥ मारो ऋषभ सहे छे, वनवासी दु:ख घोर ॥ तव भरत पयंपे, त्रिभुवन केरो राज ॥ ७ ॥ गजरथ बेसाडी, समवसरणनी पास ॥ भरतेसर आंवे, प्रभुवंदन उवास ॥ सुणी दे. वनी दुंदुभी, उलसित आणंदपुर ॥ आव्या हरखना For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar आंसु, तिमिर पमल गयां दुर ॥ ८॥ प्रभुनी ऋद्धि देखी, एम चिंते मनमाहे ॥ धिक् धिक् कुडी माया, कोना सुत कोना तात ॥ एम भावना भावतां, पाम्यां केवलज्ञान ॥ ततक्षण मरुदेवा, तिहां लह्यो निर्वाण ॥ ॥ ९॥ धन्य धन्य ए प्रभुजी, धन्य एहनो परिवार । लाख पूर्व चोरासी, पाली आयु उदार ॥ महा वदी तेरस दीन, पाम्या सिद्धिनुं राज ॥ अष्टापद शिखरे, जय जय श्री जिनराज ॥ १० ॥ कलश ॥ चोवीस जिनवर तणो अंतर, भएयो अतिउल्लास ए, संवत सतर तहांतरे, एम रही चोमासुंए । संवतणो आग्रह ग्रही में श्री विमलविजय उबझागए ।। तस शिष्य रामविजय नामे, वो जय जय कार ए ॥ इति श्रीआतरानुं स्तवन संपूर्ण.॥ ॥ महारमाहाविरकरांगतार, सदासमाले हितदेवमाना, समारमा मागमया सरामा, सिद्धाई कामे लवता दयामा ॥ १॥ इति स्तुतिः आ स्तवननी सातमो गाथामां बे चरण त्रुटे छे For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ || श्री रोहिणी तप विधि स्तवन. ॥ || दुहा ॥ सुखकर शंखेश्वर नमी, शुभगुरुने आधार ॥ रोहिणी तप महिमा विधि कहिशृं भवि उपगार ॥ १ ॥ भक्त पान कुच्छित दिए, मुनिने जाण अजाण ॥ नरक तीर्थचमां जीवते, पामे बहु दुःख खाण ॥ २ ॥ ते पण रोहिणी तप थकी, पामी सुख संसार || मोक्षे गया तेहनो कहुं, सुंदर ए अधिकार ॥ || ढाल ॥ १ ॥ शीतलजिन सहेजानंदी || ए देशी || ॥ मघवा नगरी करी झंपा, अरिवर्ग थकी नहि कंपा, आरंभे पुरी छे चंपा, राम सीता सरोवर पंपा ॥ १ ॥ पनोता प्रेमथी तप कीजे, गुरुपांसे तप उन्चरोजे ॥ ए आंकणी ॥ वासुपूज्यना पुत्र कहाय, मघवा नामे तिहा राय, तस लक्ष्मीवती के राणी, आठ पुत्र उपर एक जाणी ॥ प० ॥ २ ॥ रोहिणी नामे थई बेटी, नृप वल्लभसुं थई मोटी, यौवन वयमां जब आवे, तब वरनी चिंता थावे || १० || ३ || स्वयंवर मंडप मंडावे, दूरथी राजपुत्र मिलारे, रोहिणी शणगार धरावी, जाएं चंद्र प्रिया इहां आवी ॥ प० ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागपुर वितशोक भूपाल, तस पुत्र अशोक कुमार, वरमाला कंठे ठावे, नृप रोहिणीने परणावे ॥१०॥ ॥५॥ परिकरसुं सासरे जावे, अशोकने राज्ये ठावे॥ प्रिया पुण्ये वधी बहु ऋद्धि, वितशोके दीक्षा लीधी ॥प० ॥ ६ ॥ सुख विलसे पंच प्रकार, आठ पुत्र सुता थई चार, रही दंपति सातमे माले, लघु पुत्र रमाडे खोले ॥ ५० ॥७॥ लोकपालभिधानने वाल, रही गोखे जुए जन चाल, तस सन्मुख रोति नारी, गयो पुत्र मरण संभारी ॥ प० ॥ ८॥ शिर छाती कुटे मली केती, माय रोती जलजली देती, माथाना केश ते रोले, जोई रोहिणी कंतने बोले ॥ ५० ॥ ९ ॥ आज में नवं नाटक दीद्वं. जोतां बहु लागे मीटुं, नाच शीखी काहांथी नारी, सुणी रोषे भर्या नृप जारी ॥५०॥१०॥ कहे नाच शीखो इणि वेला, लेई पुत्र बाहिर दीए झोला, करथी विछोड्यो ते बाल, नृप हाहाकरे ततकाल ॥ ५० ॥ ११ ॥ पुरदेव विचेथी लेता, भुंय सिंहासन करी देता, राणी हसती हसती जुए, हेतुं राजा ए कौतक दीतुं ॥ ५० ॥ १२ ॥ लोक For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ सघळा विस्मय पामे, वासुपूज्य शिष्य वन ठामे, आव्या रूप सोवन कुंभ नामा, शुभ वीर करे परणामा । प०॥ १३ ॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ चउनाणी नृप प्रणमि पाय, निज राणीनुं प्रश्न कराय ॥ आ भवदुख नवि जाण्या एह, ए उपर मुज अधिको नेह ॥१॥ मुनि कहे इण नगरे धनवतो, धनमित्र नामा शेठज हतो । दुर्गधा तस बेटी थई, कुब्जा कुरूपा दुर्भगा भई ॥ २॥ योवन वय धन देता सही, दुर्भगपणे कोई परणे नहीं ॥ नृप हणतां कौतव शिष्येण, राखी परणावी सा तेण ॥३॥ नाठो ते दुर्गधा लही, दान देयंता सा घरे रही ॥ ज्ञानीने परभव पूछती, मुनि कहे रैवतगिरि तट हती ॥४॥ पृथ्वीपाल नृप सिद्धिमति, नारी नृप वनमां क्रिडती ॥राय कहे देखी गुणवंता, तपसी मुनि गोचरीए जता ॥५॥ दान दीयां घर पाछां वली, तब क्रीडा रसे रीसें बली ॥ मूर्ख पणे करी बलते हैये, कडवो तुंबड मुनिने दीए ॥ ६॥ पारणुं करतां प्राण ज गया, सुर For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोके मुनि देवज थया ॥ अशुभ कर्म बांधे सा नारी, जाणी नृप काढे पुर बारे ॥७॥ कुष्ट रोग दिन साते मरी, गई छठे नरके दुःख भारी ॥तिरीय भवे अंतरता लही, मरीने सात नरकमां गई ॥८॥ नागण करभी ने कुतरी, उंदर घीरोली जलो शुकरी ॥ काकी चंडालण भव लही, नवकार मंत्र तिहां सदही ॥९॥ मरीने शेठनी पुत्री भई, शेष कर्म दुर्गधा थई॥सांभलि जाति स्मरण लही, श्री शुभ वीर वचन सदही ॥१०॥ ॥ ढाल ॥ ३॥ गजरा मारुजी चाल्या चाकरीरे ॥ए देशी॥ ॥ दुर्गंधा कहे साधुने रे, दुःख भोगवियां अतिरेक ॥ करुणा करीने दाखीएरे, जिम जाए पाप अनेक रे ॥१॥ जिम मुनि कहे रोहिणी तप करोरे, सात वरस उपर सात मास ॥ रोहिणी नक्षत्रने दिनरे, गुरुमुख करीए उपवासरे ॥ गुरु० ॥ २ ॥ तपथी अशोक नृपनी प्रियारे, थई भोगवी भोगविलास ॥ वासुपूज्य जिन तीर्थरे, तमो पामशो मोक्ष निवासरे ॥ तमे० ॥३॥ उजमणे पुरे तपेरे, वासुपूज्यनी पडिमा भराय ॥ चैत्य अशोक तरु तलेरे, अशोक रोहिणी For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ चितरायरे ॥ अशो० ॥ ४ ॥साहमिवच्छलपधरावीनेरे, गुरु वस्त्र सिद्धांत लखाय ॥ कुमारसुंगध तणी परेरे, दुष्कर्म सकल क्षय जाय रे ॥ दुष० ॥ ५॥ साधु कहे सिंहपुरमारे, सिंहसेन नरेसर सार ॥ कनकप्रभा राणी तणोरे, उंगेधी अनिष्ट कुमाररे॥दुर्ग०॥६॥ पद्मप्रभुने पुछतारे, जिन जल्पे पूर्व भव तास ॥ बार जोजन नागपुरथीरे, एक शिला निलगिरि पासरे ॥ एक०॥ ७॥ ते उपर मुनि ध्यानथीरे, न लहे आहेडी शिकार ॥ गोचरी गत शिला तळेरे, कोप्यो घरे अग्रि अपा ररे ॥ कोप्यो० ॥ ८॥ शिला तपी रह्या उपरेरे, मुनि आहार करे काउसग्ग ।। दपक श्रेणी थई केवलीरे, ततक्षण पाम्या अपवर्गरे ॥ तत० ॥९॥ आहेडी कुष्टी थई रे, गयो सातमी नरक मझार ॥मच्छ मघा अहीं पांचमी, सिंह चोथी चित्र अवतार ॥ सिंह ॥ ॥१०॥ त्रीजी बिलाडो बीजीएरे, धूक प्रथम नरक दुःख जाल ॥ दुखना भव भमी ते थयोरे, एक शेठ घरे पशुपाल रे ॥ एक० ॥ ११ ॥ धर्म लही दवमा बल्योरे, निद्राए हृदय नवकार ॥ श्री शुभवीरना ध्यानथीरे, तुज पुत्र पणे अवताररे ॥ तुज ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल || ४ ॥ मारी अंवाना वडला हेठ ॥ ए देशी ॥ निसुणी दुर्गंध कुमार, जाति स्मरण पामतोरे॥ पद्मप्रभु चरणे शीस, नामी उपाय ते पूछतोरे ॥ प्रभु वयणे उजमणे युक्त, रोहिणीनो तप सेवियोरे ॥ दुर्गध पणुं गयुं दूर, नामे सुगंधी कुमार थयो रे रोहिणी तप महिमा सार, सांगळतां नव विसरेरे ॥ ॥ ए आंकणी ॥ १॥ रही वात अधुरी एह, सांभळशो रोहिणीने भवरे ॥ इम सुणी दुर्गधा नारी, रोहीणी तप करे ओछवेरे ॥ सुगंधि लहि सुख भोग, स्वर्गे देवी सोहामणीरे ॥ तुज कांता मघवा धुअ, चवि चंपाए थई रोहिणीरे ॥ रो० ॥२॥ तप पुण्य तणे प्रभाव, जन्मथी दुःख न देखीओरे ॥ अति स्नेह कीस्यो अम साथ, राय अशोके वली पुरीयुरे ॥ गुरु बोले सुगंधि राय, देव थई पुष्कलावतीरे ॥ विजये थई चक्रि तेह, संजमधर हुआ अच्चुतपतिरे ॥रो॥३॥ चविने थया तमे अशोक, एक तपे प्रेम बन्यो घणोरे॥ सात पुत्रनी सुणज्यो वात, मथुरामा एक महिणारे ॥ अग्नि शर्मा सुत सात, पाटलिपुर जई भीक्षा भमेरे ॥ For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि पासे लई वैराग, विचर्या साते रही संजमेरे ॥ ॥ रो० ॥ ४॥ सौंधर्मे हुआ सुरसात, ते सुत साते रोहिणीतणा रे ॥ वैताढ्ये भल्ल चूल खेट, समकित शुद्ध सोहामणोरे ॥ गुरुदेवनी भक्ति पसाय, धुर स्वर्गे थई देवतारे ॥ लघु सुत आठमो लोकपाल, रोहिणीनो ते सुर सेवतारे ॥रो० ॥ ५॥ वली खेट सुता छे चार, रमवाने वनमा गईरे ॥ तीहां दीठा एक अणगार, भाखे धर्म वेला थरे ॥ पूछयाथी कहे मुनि भास, आठ पहोर तुम आयुछेरे । आज पंचमीनो उपवास, करशो तो फलदाय छेरे ॥ रो० ॥ ६॥ धुजंती करी पचखाण, गेह अगाले जई सोवतिरे । पडी विजळीये वली तेह, धुर सुर लोके देवी थतीरे॥ चवी थई तुम पुत्री चार, एक दिन पंचमी तप करीरे ।इम सांगली सहं परिवार, वात पूर्व भवनी सांभळीरे ॥रो०॥७॥ गुरु वंदी गया निज गेह, रोहिणी तप करता सहुरे ।। मोटी शक्ति बहुमान, उजमणां वस्तु बहुरे ॥ इम धर्म करि परिवार, साथे मोक्षपुरी वरीरे ॥ शुभ वीरना शासन मांह, सुख फल पामो तप आदरीरे ॥रोगाला For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ कलश ॥ इम त्रिजग नायक मुक्तिदायक वीर जिनवर जाखीयो॥ तप रोहिणीनो फल विधाने विधि विशेषे दाखीयो ॥ श्री क्षमाविजय जसविजय पाटे, शुभविजय सुमति धरो ॥ तस चरण सेवक कहे पंमित वीर विजयो जय करो॥इति श्री रोहिणी तप विधि स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री अक्षयनिधि तपर्नु स्तवन. ।। ।।दुहा॥ श्री शंखेश्वर शिरनमी, कहुं तप फल सुविचार ॥अक्षय निधि तप भाखीयो, प्रवचन सार उद्धार ॥१॥ तप तपतां अरिहा प्रभु, केवल नाणने हेतानाण लही तप तजी कीयो, शिव रमणी संकेत ॥२॥ तिम सुंदरी परे तप करी, अक्षयनिधि गुणवान, श्रुत केवलीये जे रच्यो, कल्पसूत्र बहु मान ॥३॥ ढाल॥१॥ रुडीने रढोयालीरे वाला तारी वांसळीरे ॥ ए देशी ।। ॥ जंबु जरते रे नयरी राजग्रहीरे, संवर शेठ वसे एक सार । गुणवंती नारीरे कठण आजीविकारे, घर दारिद्रय तणो नंडार ॥सुंदरी सेवोरे अक्षय निधि तप भलोरे ॥ १॥ ए आंकणी ॥ पुण्य संजोगेरे पिया For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० गरभे फलीरे, तब तस वृत्तिं चली घरबार ॥ केई व्यवहारीरे वणज करावतारे, वाध्यो शेठतणो व्यवहार ॥ सुंदरी० ॥ २॥ पुरण मासेरे जन्मी कुमारिकारे, प्रगटयो नाल निखेप निधान ॥ लक्षणवंतीरे पुत्री प्रभावथीरे, राय सुणी करतो बहु मान ॥ सुंदरी० ॥ ॥३॥ पुत्रनी परेरे जन्म ओच्छव कोरे, सजनवर्ग नोतरीया गेह ॥ संवर शेठेरे थाप्युं सुंदरीरे, नाम महोत्सव करी धरी नेह ॥ सुंदरी०॥४॥ बाल स्वभावेरे रमती सुंदरीरे, जिहां जिहां भूमि खणंती रमाय ॥ पूर्व पुन्येरे मणि माणेक जोरे, तिहां तिहां द्रव्यनिधि प्रगटाय ॥ सुंदरी० ॥ ५॥ आणी आपेरे तातने सुंदरीरे, तिणे ते शेठ हुओ धनवंत ॥ यौवन जागेरे रंभा उर्वशीरे, देखी शेठ करे वरचिंत ॥ ॥ सुंदरी० ॥ ६ ॥ शेठ समुप्रियाभिध नगरमा रे, कमल सिरि नारी तसपुत्त ॥ श्रीदत्तनामेरे रुप कला भयोरे, तस परणावी ते धन जुत्त ॥ सुंदरी० ॥७॥ पुण्य पनोतीरे सासरे सुंदरीरे, आवी तत्क्षण निधि प्रगटाय ॥ पग अंगुठेरे कांकरो काढतां रे, पूर्ण कलश For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ धन लेती जाय ॥ सुंदरी०॥ ८॥ मोसाले भाणेजीने तेडयां भोजनेरे ॥ तेहेने घर पण लक्ष्मी नमाय । म जिहां बालारे शा पगलां ठवरे, निधि प्रगटे सहूं सुखियां थाय ॥ सुंदरी० ॥ ९॥ वहुने मानेरे ससरो भली परेरे । राजा पण चित्त विस्मय थाय ॥ एक दिन आव्या धर्म घोष सूरिवरारे, राजा प्रमुख ते वंदन जाय ॥ सुंदरी० ॥१०॥ सुंदरी पूछे कहो कुण कारणेरे, पग पग पामु ऋद्धि रसाल ॥ सूरि कहे साचोरे पूर्व भवतें कोरे, अक्षयनिधि तप थई उजमाल ॥ सुंदरी० ॥ ११ ॥ ॥ ढोल ॥२॥ माता जसोदा तमारो कान, मही वेचतां मांगे दाण॥ ए देशी ॥ अथवा चोपाइनी देशी ॥ ॥ खेटकपुर संयम अभिधान, शेठ प्रिया ऋजुमति गुणवान ॥ ऋजुमति तप राति रहे, ज्ञान भक्ति सुख संपद लहे ॥१॥ रयणावली कनकावली करे, एकावली विधिये उचरे ॥ पाडोसी वसु शेठे वरी, सोमसुंदरी बहु मच्छर भरी, ॥२॥ पुण्यवती तप रति बहु,ऋजुमति प्रशंसे सहु ॥सोमसुंदरी सुणी निंदा For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Ah Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ करे, डाकणी परे छल जोती फरे ॥३॥ भुख्यो ब्राह्मण बगायो ढोर. चांप्यो नाग नासंतो चोर ॥ रांड भांडने मातो सांढ, ए सातेथी उगरीये मांड ॥४॥ लाग्यु घर शेठ संजम तणुं, सोमसुंदरी चित हरख्युं घणुं ॥ नारी प्रभावे न बळी एक छमी, वळी एक दिन धाडज पडी ॥५॥ पाडोसण मन चिन्ते इसु, पापी शेठनुं न गयुं किसुं ॥ देती श्रापने निर्धन थया, ते दंपति सुरलोके गया ॥ ६ ॥ सोम सुंदरी घणी मच्छर भरी, अशुभ कर्म उपार्जन करी ॥ पामी मरण सा कोइक गुणी, श्रावक मुख नवकारज सुणी ॥ ७ ॥ जितशत्रु मथुरानो राय, चउसुत उपर बेटी थाय ॥ सर्व ऋद्धि नामज तसदई, पंच धावसुं मोटी थई ॥ ८॥ शत्रु सैन्य समूहे नड्यो, जितशत्रु रणयोगे पड्यो | बुंट पडी जब राजद्वार, कुंवरी पण नाठी तिणीवार ॥९॥ उजाति एक अटवी पडी, रवि उदये मार्ग शिर चडी ॥ वनफल वृत्ते वनचर थई, यौवन वेला निष्फल गइ ॥१०॥ एक विद्याधर देखी करी, परणी सा जिन मंदिर धरी ॥ तिणि वेला घर लागी गयुं, सर्व ऋिद्धि For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ पगलेथी गयुं ।। ११ ॥ विद्याधरे फरी वनमां धरी, पल्लिपति एक भीले हरी ॥ त्रीजे दीन घर तेनुं बल्यु, नारी निंदन सहूं जन भल्युं ॥१२॥ सार्थवाह कर वेची तीणे, चाल्यो निज देसावर जाणी ॥ पंथ वचे बुटाणा तेह, सर्व ऋद्धि नाठा लई देह ॥ १३ ॥ वनमां सरोवर तीरे खडी, राजकुमारी कर्मे नडी ॥ पुन्ये मुनि मल्या गुण गेह, मीठे क्यणे बोलावी तेह ॥ १४ ॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ छोरी जाटडीनी ॥ ए. देशी ॥ ॥छोरीरे बेटी तो रायनी, हे काई उनी सरोवर पाळरे ॥ शुं दुःख चिंतवे ॥ सिरदार सहूने सुख करे, महाराज मुनि एम उच्चरे ॥पूर्वभव मच्छर करी, हे कांई फली तरु शाखा डालरे ॥ सोम सुंदरी भवे ॥ सिर० ॥ म०॥ १॥ तात मरण पुर ढुंटीयु, हे काई पडी तुं अटवी मोजाररे ॥ दुःख पामी घणी खेचरशू, श्णे भवे लह्यो । हे सुख संभोग एक वाररे, वली वनचर पणुं ॥ सि०॥ म० ॥ २॥ ज्ञानी गुरु वयणां सुणी, हे राजकुमारी पुछायरे ॥गुरु चरणे नमी, आ दुःखथी किम छुटीये॥हो कहीये करी सुपसायरे, For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २०४ दुःख वेला खमी ॥ सि०॥म० ॥३॥ अक्षयनिधि तप विधि करो, हे ज्ञान भक्ति विस्ताररे ॥ शक्ति न गोपवी, श्रावण वदी चोथे थकी ।। हे संवत्सरी दिन साररे, पूरण तप तपी सि० ॥ म० ॥ ४॥ चोथनक्त एकासणो, हे शक्ति तणे अनुसाररे ।घट अक्षत भरो, विधि गुरुगमथी आचरो। हे गणणुं दोय हजाररे,पमिकमणां करो ॥ सि०॥ म०॥ ५॥ एक वरस जघन्यथी, हे तीन वरस उनिहरे ॥ण विधि तप करो, शासन देवी कारणे ॥ हे चोथे वरस वीसी ठरे, वळी ए आदरो । सि० म०॥६॥ आभव मनवंचित फले, हे परनव शिद्धी न मायरे ॥हरि चक्रिपरे, इम निसुणी कुमरी तिहां ॥ हे वांदी गुरुना पायरे, गई गामांतरे ॥सि०॥ म० ॥ ७ ॥ परघर करतांचाकरी, हे आजी. विका निर्वाहरे ॥ सुख दुखमां करे, अल्प विधिय तप तिणे कयों ॥ हे प्रथम वरस फरि चाहेरे, बीज भलिपरे ॥ सि० म०॥ ८॥ चोथे वरस तप मांडतां, हे कोईक हुई धनवंतरे । एक दिन आवीया, विद्याधर क्रीमा वशे ॥ हे पूरव नेह उलसंतरे, देखी निज प्रिया For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ ॥ सि०॥ म० ॥ ९॥ थापी जई अंते उरे, हे सा करे शीलवत मुख्यरे ॥ इणि काया धरी, शेषायु अणसणे मरी ॥ हे संवर पुत्री तुजरे, कहुं सुण सुंदरी ॥ सि० ॥ म० ॥ १० ॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ कोश्या वेश्या कहे रागीजी, मनोहर मन गमता ॥ ए देशी ॥ ॥निज पूर्वभव सुणी तेहजी, सुंदरी सुकुमाली॥ जाति स्मरण वरे तेहजी ॥सुं०॥तप फले लहो ऋद्धि रसालजी ॥ सुं० ॥ कहे धर्मघोष अणगारजी ॥ सुं० ॥१॥ कहे सुंदरी सर्व साचुंजी ।। सुं० ॥ तुम ज्ञान माहे नहि काचुंजी ॥ सुं०॥ अवंति माहे वखाण्यांजी ॥ सुं०॥ तेहवा में तुमने जाण्याजी ॥ सुं० ॥२॥ सूरीवंदी निज घर आवजी ।। सुं॥ तप अक्षय निधि मंडावेजी ॥ सुं ॥ राजा राणी तिणि वेलाजी ॥ सुं॥ शेठ सामंत सर्व भेलाजी ॥ सुं ॥ ३ ॥ पग पग प्रगटे जे निधानजो ॥ सुं० ॥ करे प्रभावना बहुमानजी ॥ ॥सु०॥ नाम सुंदर। तो विसराणोजी ॥ सुं॥ते तो अक्षय निधि कहेवाणीजी ॥ सुणो० ॥ ४॥ मनमोटे For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ पूर्ण फल लीधुंजी ॥ सु० ॥ पंचमीये पारणं की धुंजी ॥ सु० ॥ ज्ञान जक्ति महोच्छव देखीजी ॥ सु० ॥ देवी देव हुआ अनिमेषीजी || सु० ॥ ५ ॥ सुख विलसंता संसारजी ॥ सु० ॥ हुआ सुत चउ पुत्री चारजी ॥ सु०॥ लियो अंते संयम भारजी ॥ सु० ॥ घनघाति खपाव्यां चारजी ॥ सुणो० ॥ ६ ॥ लहि केवल शिवपुर जावेजी ॥ सु० ॥ गुण अगुरुलघु निपजावेजी || सु ॥ अवगाहन लक्षण संताजी ॥ सु० ॥ तिहां बीजा सिद्ध अनंताजी ॥ सु० ॥ ७ ॥ तस फरसित देश प्रदेशेजी ॥ सु० ॥ असंख्य गुणा सुविशेषेजी ॥ सु० ॥ जुओ प्रथम उपांगे ठामजी ॥ सु० ॥ शुभवीर कहे प्रणामजी ॥८॥ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ कोईलो पर्वत धुंधलोरे लोल ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर जिणेसर गुण नीलोरे लोल, ए भाख्यो अधिकार || सुगुणनर || वरते शासन जेहनुंरे लोल, एकवीस वरस हजाररे ॥ सुगुणनर ॥ वीर जीणेसर गुणनीलोरे ॥ १ ॥ जिहां सफल जिन गुण सुणीरे लोल, दिहा सफल प्रभु ध्यानरे ॥ सु० ॥ जन्म सफल प्रभु दरिसोरे लोल | वाणीये सफल कानरे ॥ सु० ॥ For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २०७ ॥वी० ॥ २॥ तास परंपर पाटवीरे लोल, श्रीविजयसिंह सुरीसर ॥ सु०॥ सत्यविजय बुध तेहनारे लोल, कपुरविजय कवि शिष्यरे ॥सु०॥ वी० ॥ ३ ॥ क्षमाविजय गुरु तेहनारे लोल, श्रीजसविजय पन्यासरे ॥ ॥ सु० ॥ श्रीशुभविजय सुगुरु नमीरे लोल, सुरत रही चउमासरे ॥ सु० ॥ वी० ॥ ४॥ चंद्र मुनि वसु हिमकरुरे लोल, वरसे श्रावणमासरे ॥ सु० ॥ श्रीशुभवीरने शासनेरे लोल, होजो ज्ञानप्रकाशरे ॥ सु०॥ वी० ॥५॥ ॥ कलश ॥ ए पंच ढाल रसाल भक्ति पंच ज्ञान आराधवा ॥ काम प्रमाद किरिया पंच छंमी, पंचमी गति साधवा ॥ नभ कृष्ण पंचमी स्तवन रचीओ, अक्षय निधिक कारणे ॥ शुभवीर ज्ञाने देवसुंदरी, नाचवा घरबारणे ॥१॥ इति अक्षय निधि तप स्तवन संपूर्ण॥ ॥अथ श्री ऋषभदेवस्वामी स्तवन ॥ ॥ दुहा ॥ पुरिसा दाणी पासजी, बहु गुणमणि For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वास ॥ ऋद्धि वृद्धि मंगल करण, प्रणमुं मन उल्लास ||१|| सरस्वती सामिनी विनवुं, कवि जन केरी माय ॥ तरस वाणी मुजने दीओ, मोटो करी पसाय ॥ २ ॥ लब्धि विनय गुरु समरीए, अहर्निश हर्ष धरेव ॥ ज्ञान दृष्टि जेथी लही, पद पंकज प्रणमेव ॥३॥ प्रथम जिणेसर जे हुआ, मुनिवर प्रथम वखा ॥ केवलधर पहेलो जे कहे, प्रथम भिक्षाचर जाण ॥ ४ ॥ पहेला दाता ए को, आ चोवीसी मझार ॥ तेह तणा गुण वरणं, आणी हर्ष अपार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ धन्य धन्य संप्रति साचो राजा ॥ ए देशी ॥ ॥ राग आशावरी ॥ पेहेले भव धन सार्थवाहे, समकित पाम्यासाररे ॥ आराधी बीजे भव पाम्या, जुगलतणो अवताररे ॥१॥ सेवो समकित साधुं जाणी, ए सवि धर्मना खाणीरे ॥ नवि पामे जे अभव्य अनाणी, एहवी जिननी वाणी रे || सेवो० ॥ २ ॥ ए आंकणी ॥ जुगल चवि पेहेले देवलोके, भवतिजे सुर थायरे ॥ चोथे भवे विद्याधर कुले यया, महाबल नामे रायरे ॥ सेवो० ॥ ३ ॥ गुरु For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ पासे दीक्षा पालीने, अणसण दीधुं अंतरे ॥ पांचमे भवे बीजे देवलोके, ललितांग सुर दीपंतरे । सेबो०॥ ॥४॥ देवचवी छठे भवे राजा, वज्रजंघ एणे नामेरे। तीहाथी सातमे भवे अवतरीआ, जुगला धर्मशुंठामेरे॥ ॥सेवो० ॥ ५॥ पूर्ण आयु करी आठमे भवे, सुधर्म देवलोक देवरे ॥ देवतणी ऋद्धि बहुली पाम्या, देवतणा वळी जोगरे ॥ सेवो० ॥६॥ मुनिभव जिवानंद नवमे भवे. वैद चवी थयो देवरे॥ साधुनी वैयावच्च करी, दिक्षा लई पाळे स्वयमेवरे ॥ सेवो० ॥७॥ वैद जीव दसमे भवे स्वर्गे, बारमें सुरह होयरे ॥ तिहां कणे आयु भोगवी पुरुं, बावीस सागर जोयरे ।सेवो. ॥८॥ अगीयारमें भवे देव चवीने, चक्रीहओ वज्रनाभ रे ॥ दीक्षा लई वीस स्थानक साधी, लीधो जिनपद लाभरे ॥ सेवो० ॥ ९॥ चौद लाख पूर्वनी दीक्षा, पाली निर्मल भावेरे ॥ सर्वार्थ सिद्ध अवतरीया, बारमें भवे आयरे ॥ सेवो० ॥१०॥ तेत्रीस सागर आयु प्रमाणे, सुख भोगवे तिहां देवरे ॥ तेरसमा भव केरो हवेहूं, चरित्र कहुं संखेवरे ।। सेवो० ॥११॥ For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० ॥ ढाल ॥ २ ॥ वाडी फूली अति भली मनभमरारे ॥ र देशी ॥ ॥जंबुद्वीप सोहामणुं ॥ मन मोहना ॥ लाख जोजन परिमाण लाल ॥ मन मोहना ॥ दक्षिण जरत भलु तिहां ॥ मन मोहना ॥ अनुपम धर्मनुं ठाम ॥ लाल मन मोहना ॥१॥ नयरी विनिता जाणीए ॥ मन० ॥ स्वर्गपुरी अवतार ॥ लाल ॥ नाभीराय कुलगर तिहां ॥ मन० ॥ मरुदेवी तस नाशिलाल०॥ ॥ २ ॥ प्रीति भक्ति पाले सदा ।।मन०॥ पीयुशुप्रेम अपार ॥ लाल० ॥ सुख विलसे संसारनां ॥ मन०॥ सुरपेरे स्त्री भरथार । लाल० ॥ ३॥ एक दिन सूती मालीये ॥ मन० ॥ मरुदेवी सुपवित्र ॥ लाल० ॥ चोथ अंधारी अपाडनी ॥मन०॥ उत्तराषाढा नक्षत्र॥लाल०॥ ॥ ४॥ तेत्रीस सागर आउखे ॥ मन०॥ भोगवी अ. नुपम सुख ॥लाल०॥ सर्वार्थ सिद्धथी चवी ॥मन०॥ सुर अवतरीओ कुख ॥ लाल० ॥ ५॥ चउद सुपन दीठां तीसे ॥ भन० ॥ राणी मध्यम रात ॥ लाल०॥ जई कहे निज कंतने ॥ मन० ॥ सुपन तणो सवि वात ॥ लाल०॥६॥ कंथ कहे निज नारीने ॥मन॥ For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपन अर्थ विचार || लाल० कुलदीपक त्रिभुवन पति ॥ मन० ॥ पुत्र होशे सुखकार || लाल० ॥ ७ ॥ सुपन अर्थ पीउंथी सुणी ॥ मन० || मन हरख्यां मरुदेव || || लाल० ॥ सुखे करी प्रतिपालना || मन०॥ गर्ज तणी नित मैव ॥ लाल० ||८|| नव मसवाडा उपरे ॥ मन० || दिन हुवा साठासात ॥ लाल० ॥ चैत्रवद् आठम दीने || मन० ॥ उत्तराषाढा विख्यात || लाल० ॥९॥ मझीम रयणीने समे ॥ मन० ॥ जन्म्यो पुत्र रतन ॥ || लाल० || जन्म महोच्छव तबकरे ॥ मन० ॥ दिशी कुमरी छप्पन्न || लाल ॥ १० ॥ ॥ ढाल || ३ || देशी हभचडीर्नी ॥ आसन कंप्यं इंद्रतणुरे, अवधिज्ञाने जाणि ॥ जिननो जन्म महोच्छव तब करवा, आवे इंद्र इंद्राणी रे ॥ हमचडी ॥ १ ॥ सुर परिवारे परवर्या रे, मेरु शिखर लई जाय || प्रभुने नमण करीने पूजी, प्रणमी बहु गुणगारे || हमचडी ||२|| आणी माता पासे मेहेली, सुर लोके पहुंता ॥ दीन दीन वाधे चंद्र तणी परे, देखी हरखे मातारे ॥ हमचडी० ॥ ३ ॥ वृषभ तशुं For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लंछन प्रजु चरणे, मात पिताए देखी।सुपन माहे वली वृषभ जे पेहेला, दीठो उज्वल पेखीरे हमचडी० ॥४॥ तेहथी मात पिताए दीg, ऋषभ कुमार गुण गेह ॥ पांचसे धनुष प्रमाणे उंची, सोवन वरणी देहरे ॥हम०॥ ॥५॥ वीस पुर्व लख कुमार पणेरे, रहीया प्रभु घरवासे ॥ सुमंगला सुनंदा कुंवारी, परण्या दोय उलासे रे॥हमचडी०॥६॥ त्याशी लाख पुर्व घरवासे, वसीय ऋषभ जिणंद ॥ भरतादिक सुत शत हुआरे, पुत्री दोय सुख कंदरे ॥ हमचडी० ॥ ७॥ तव लोकांतिक सुर आवीनेरे, कहे प्रभु तीर्थ थापो॥ दान संवच्छरी देई दिक्षा, समय जाणी प्रभु आणीरे ॥ हमचडी०॥ ८ दीक्षा महोच्छव करवा आवे, सपरिवार सुरिंदो॥ शिबिका नामे सुदर्शना, आगल ठवे नरीदरे ॥ हम चडी० ॥९॥ ॥ ढाल ॥ ४ ॥ राग मारु ॥ ए देशी ॥ ॥ चैत्रवदी आठम दीनेरे, उत्तराषाढारे चंद ।शिबिकाये बेसी गयारे, सिद्धारथ वनचंदो ॥१॥ऋषभ संयम लीये ।। ए आंकणी ॥ अशोक तरुतले आवीनेरे, चउ For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३ मुठी लोच कीध ॥ चार सहस वड राजवीरे, साथे चारित्र लीधरे ॥ ऋ० ॥२॥ त्यांथी विचर्या जिनपतिरे, साधुतणे परिवार ॥ घरघर फरतां गौचरीरे, महीअल करे विहाररे ॥ ऋ० ॥ ३॥ फरतां तप करतां थकां रे, वरस दिवस हुआ जाम ॥ गजपुर नयर पधारीयारे, दीपा श्रेयांस तामरे ॥ ऋषभ० ॥४॥ वरसी पार' जिन जईरे, शेलडी रल तिहां कीध ॥ श्रेयांसे दान देईनेरे, परभव संबल लीधरे । ऋ० ॥५॥ सहस वरस लगे तप तपीरे, कर्म कर्या चकचूररे ॥ पुरिमतालपुर आ आवीनेरे, वीचरंता बहु गुण पुर्यारे ॥ऋ०॥६॥ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ कपूर होवे अति उजलोरे ॥ ए देशी ॥ ___ समवसरण देवे मलीरे, रचियुं अतिहि उदार॥ सिंहासन बेसी करीरे, दीए देशना जिन सार ॥ चतु. रनर० ॥१॥ कीजे धर्म सदाइ, जिम तुम शिवसुख थाय ॥ चतुरनर ॥ कीजे० ॥ बारे परखदा आगलेरे, कहे धर्म च्यारे प्रकार ॥ अमृत सम देशना सुणीरे, प्रति वोध्या नरनार ॥ चतुरनर० ॥२॥ नरत तणा For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha २१४ सुत पांचसेरे, पुत्री सातसें जाण ॥ दिक्षा लीये जिवजी कनेरे, वैरागे मन आण ॥ चतुरनर० ॥ ३ ॥ पुंडरीक प्रमुख थयारे, चोरासी गणधार ॥ सहस चोरासी तिम मलीरे, साधु तणो परिवार ॥ चतुरनर० । ४ ॥ ब्राह्मी प्रमुख वली साहुणीरे, त्रण लाख सुविचार ॥ पांच सहस त्रण लाख भलारे, श्रावक समकित् धार ॥ ॥ चतुरनर० ॥ ५ ॥ चोपन सह पंच लाख कहीरे, श्राविका शुद्ध आचार ॥ इम चउविह संघ थापीनेरे, ऋषभ करे विहार ॥ चतुर०॥६॥ चारित्र एक लख पूर्वनुरे, पाल्युं ऋषभ जिणंद ॥ धर्म तणे उपदेशथीरे, तार्या भविजन वृंद ॥ चतुरनर० ॥७॥ मोक्ष समय जाणी करीरे, अष्टापद गिरि आव ॥ साधु सहसदशसुं तिहारे, अणसण कीधुं भाव ।। चतुरनर०॥८॥महावदी तेरस दीनेरे, आभि नक्षत्र चंद्र योग ॥ मुक्ति पहोत्या ऋषभजीरे, अनंत सुख संजोग ॥चतुरनर०॥९॥ ॥ ढाल ॥ ६ ॥ राग धन्याश्री ॥ कडखानो ॥ ए देशी ॥ ॥तुं जयो तुं जयो ऋषभ जिन तुं जयो, अलजयो हुँ तुम दरसन करवा ॥ मेहेर करो घणी, विनवू For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ तुम भणी, अवर न कोई धणीज उधारवा ॥ तुज० ॥ ॥१॥ जगमाहे मेहने मोर जिम प्रीतडी, प्रीतडी जेहवी चंद्र चकोर ॥ प्रीतडी राम लक्ष्मण तणी जेहवी, रात दिन ध्याउं दरस तोरा ॥ तुज ॥ २ ॥ शितल सुरतरु तणी तीहां छायडी, सितलो चंद चंदन घसारो ॥ शीतलु केल कपुर जिम शितलं, सीतलो तिम मुझ मुख तमारो ॥ तुज० ॥३॥ मीठडो सेलडी रस जिम जाणीए, खटरस द्राख मीठी वखाणी॥ मीठमि आंबला शाखतिम तुम तणी, मिठडि मुजमन तिम तुज वाणी ॥ तुज०॥ ४॥ तुम तणा गुण तणो पारहुं नवि लहु, एक जीभे केम में कहीजे ॥ तार मुज तात संसार सागर थकी, रंगशुं शीवरमणी वरीजे ॥तुज०॥५॥ ॥ कलस॥ इम ऋषभ स्वामी, मुक्तिगामी चरण नामी शीरए । मरुदेवी नंदन सुख कंदन, प्रथम जिन जगदीशए ॥ मनरंग आणी, सुखवाणी, गाइओ जग हितकरु ॥ कविराय लब्धि निज सुसेवक प्रेम विजय आनंद वरो ॥ इति श्री ऋषभ स्वामीना तेर भवन स्तवन ।। For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ ॥ अथ श्री नेमनाथजीचं स्तवन ॥ ॥ ढाल ॥ सरसती सामिणी पाय नमुंजी, गायशं नमी जिणंद ॥ समुद्रविजय कुले उपनोजी, प्रगटयो पुनमचंद ॥ सुणो नर नेम समो नहीं कोय ॥ सौरीपुरनो राजीओजी, शिवादेवो सुत सोय ॥ सुणोनर० ॥१॥ ए आंकणी ।। चौद सुपन सूचित भलाजी, जनम्या नमि कुमार ॥ जोबन वय प्रभु आवीयाजी, सकल लोक शणगार ॥सणो०॥२॥ एक दीन आवे मलपताजी, आयुधशाला ज्यांय ॥ शंख चक्रने गदा भलीजी, सारंग धनुष त्यांह ॥ सुणो० ॥३॥ नेमि धनुष चढावीयोजी, चक्र भमाड्युं त्यांह ।। गदा उपाडी फेरवीजी, शंख लोयो करमांह ॥ सुणो ॥ ४ ॥ नेमि वजावे शंखनेजी, नादे डोल्यारे इंद्र ॥ शेषनाग पाता. लमांजी, गगने ताराचंद्र॥ सुणो० ॥ ५॥ वनमां बीन्या मृगपतीजी, हंस सरोवर कंठ ॥ नारी बीनीकामिनीजी, आलंबी पीया कंठ ॥ सुणो० ॥६॥ शब्द सुण्यो जब शखनोजी, करतो कृष्ण विचार ॥ कहे कुण वयरी उपनोजी, राज लीये निरधार ॥ सुणो० ॥ ७ ॥ हरि For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ हेलामांहे आवियाजी, ज्या छे नेमि कुमार ॥ मुखथी मीटुं बोलतांजी, होय रोष अपार ॥ सुणो० ॥ ८ ॥ कृष्ण कहे सुणो राजीयाजी, नेमि नीरुपम नाम || बल परीक्षा इहां कीजीएजी, आछे अनोपम ठाम ॥ सुणो० ॥ ९ ॥ कृष्णे कर लंबावीयोजी, झाली नेम कुमार ॥ कणयर कांब जिम वालीयोजी, क्षण नव लागी वार ॥ सुणो० ॥ १० ॥ कृष्ण कर धर्यो नेमनोजी, वाल्यो किमही न जाय ॥ नेमे कृष्ण धंधोलीओजी. हरी मन झांखो थाय ॥ सुणो० ॥ ११ ॥ कृष्ण वल्या घर आपजी, चित हृदय मोझार ॥ बत्रीस सहस अंतेउरी जी, बोलावी घर नार ॥ सुणो० ॥ १२ ॥ नेम कुंवर छे लाडकाजी, बंधव श्याम शरीर || विवाह तास मनावाजी, पेहेरो कंचुक चीर ॥ सुणो ॥ १३ ॥ || ढाल || टोले मीली सवि हरनी नारी, प्रमदा पहोती गढ गीरनारी, खंडोखली माहि भरीउ नीर, झीले पहेरी आछां चीर ॥ १ ॥ नेम तणो इम झाली हाथ, हास्य विनोद करती नेम साथ || सोवन सिंगी नीरे भरी, छांटे नेम कुंवरने फीरी ॥ २ ॥ एक मुख For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ नेम कुंमारनुं धुए, बदन एक चीर जई लुहे ॥ देवर मारा सुंदर सार, परणो नारी नेम कुमार ॥३॥ भोला देवर करो विचार, नारी विना कुण करसे सार ॥ भोयण सुयण फोफल पान, नारी विना कूण देशे मान ॥ ४ ॥ नारी विना नर हाली होय, बार परुणो नावे कोय ॥ साधु साधवी श्रावक सोय, भक्ति करे जो स्त्री घर होय ॥ ५॥ नेम कहे सुणो भाभी वात, ए पीछं हुं सवि अवदात ॥ नारी मोहे जे नर पड्या, साते नरके ते रडवड्या ॥६॥ ए नारी नव केहनी होय, तु पण हृदय विचारी जोय ॥ सुरनर किंनर दानव जेह, नारी आप्या तेहने छेह ॥ ७॥ भोज मुज पर देशी जेह, शब्द विडंब्या नारी तेह ॥ दीक धनने जिम नारी नड्यो, राय भर्तृहरि इम रडवडयो ॥८॥ ब्रह्मराय घर चुलणी जेह, पोते पुत्र मरावे तेह ॥ गौतम ऋषिनी अहल्या नार, इंद्र भोगवे भुवन मझार ॥९॥ ए नारीनो जुओ विचार, जोतां कांइ नव दीसे सार॥ समज्या ते नर मुकी गया, नवि समज्या ते खुची रह्या ।। १० ॥ अकल गई नरनी वली एम, जिहांथी For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रगट्यां तिहां बहु प्रेम ॥ उत्पत्ति जोई न तुं आपणी, समजी मुके ते मती पापिणी ॥ ११ ॥ मात पिताने जोगे वली, शोणी शुक्र गया बहु मिली । जग सघलो तिहां जई उपनो, नानो मोटो एम नीपनो ॥१२॥ तो ते साथे शो बली रंग, न करं नारीकेरो संग ॥ भोग करतां हिंसा बहु, नरनारी तुमे सुणजो सहू ॥ १३ ॥ बे इंद्रि पंचेद्रि जेह, नव नव लाख कहीजे तेह ॥ मनुष्य असंख्य संमूर्छिम जाणी, भोग करंतां तेहनी हाण ॥ १४ ॥ इस्यां वचन जब नेमे कह्यां, अंतेउर सवि झांखां थयां ॥ कृष्ण राय प्रत्ये जइ कहे, नेमनाथ गृह वासे नवि रहे ॥ १५ ॥ गौरी गंधारी लक्ष्मणा, रुक्मिणी बोल कहे तिहां घणा ॥ जंबुवतीने सुसीमा सती, सत्यभामाने पद्मावती ॥१६॥ पटराणी ए हरिनी हशे, देवर मती कांताहारी खसे ॥ ऋषभ देव साम नवि जोय, जन्म कुंवारो न रह्यो कोय ॥ १७ ॥ भरतराय तो परण्यो खरी, चउसठि सहस जो अंतेउरी॥ हवडां तारो बंधव भलो, बत्रीस सहस निरवहे एकलो ॥१८॥ एक थकी थाये आकलो, परणा For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० वाने पाछा वलो ॥ ना ना कहेता नावे लाज, किम रहेशे क्षत्रीकुल राज ॥ १९ ॥ इस्यां वचन कहे हरीनी नारी, पासे उभा देवमुरारि ॥ नेम न बोल्या मुखथी फरी, मान्युं मान्युं कहे सुंदरी ॥२०॥ ॥ ढाल ॥३॥ उग्रसेन घर बेटडी, मन भमरारे ॥ नामे राजुल नार, लाल मन भमरारे ॥ कृष्ण देव तिहां आविया ।। मन० ॥ राय तणे दरबार ।। लाल मन० ॥१॥ उग्रसेन घणुं हरखीया ।। मन०॥ धन्य धन्य दिन मुज आज ।। लाल०॥ हरी आव्या मुज आंगणे ॥मना तो सरीआं सवि मुज काज लाल. ॥२॥ कृष्ण कहे सुणो राजीया ॥ मन० ॥ मुज बंधव तुज धुअ ॥ लाल ॥ प्रेम धरी परणावीये ॥ मन०॥ जिम वाधे बहु नेह ॥ लाल० ॥३॥ हरी विवाह मेलीओ ॥ मन० ॥ नेम तणो निरधार ॥ लाल० ॥ मंडप घाल्या बारणे ॥ मन भमरारे ॥ तोरण बांध्यां सार ॥ लाल० ॥४॥ खाजां लाडु लापशी ॥मन०॥ अति प्रौढां पकवान ॥ लाल०॥ जमो जलेबी पातळी ॥ मन० ॥ जीम वाधे निजवान ॥ लाल० ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २२१ पेंडा मरकी मने गमे ॥ मन० ॥ तनमनी कोहळा पाक ॥ लाल० ॥ उपर जोजन अतिभलां ॥ मन० ॥ सुंदर शोभित शाक || लाल० ॥६॥ सजन कुटुंब संतोषीया ॥ मन० ॥ नेम वधारयो वान ॥ लाल०॥ ट्रंप भर्यो शिर शोभतो ॥ मन० मुख चावे बहु पान ॥ लाल० ॥ ७ ॥ काने कुंडल रयणमई ॥ मन० ॥ कमर बांधीरे कमाय ॥ लाल० ॥ चामर विझे चिहुं दिसे ॥ मन० ।। गज चढीया नेमराय ॥ लाल०॥८॥ चीर पीतांबर पामरी ॥ मन० ॥ कंठे कुसुमनो हार ॥ ॥ लाल ॥ गजरथ घोडा पालखी ॥ मन० ॥ आगल बहु असवार ॥ लाल० ॥ ९ ॥ छपन कोडि यादव मल्या ॥ मनः ॥ चाली जिनवर जान ॥ लाल० ॥ कोकिल कंठ कामिनी ॥ मन० ॥ गोपी करे तिहां गान ॥ लाल० ॥ १० ॥ ढोल ददामा गडगडे ॥ ॥ मन० ॥ पंच शब्द तिहां सार ॥ लाल० ॥ तोरण आव्या नेमजी ॥ मन० ॥ सुणीओ पशु नो पोकार ॥ लाल० ॥ ११ ॥ ॥ ढाल ॥ ४॥ हरिणी कहे सुणो कंथ हमारा, For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमणां प्राण हणशे तुमारा ॥ ओ आवे जिन नेम कुमारा, कर कांइ तु आतम सारा ॥१॥ हरणो कहे सहको खेम, अति अपराधे म हणे नेम ॥ विण अव. गुण प्रभु किमे न मारे, हरणो वचन वदे तिणवारे ॥ ॥२॥ हुं न करूं परकेरी आश, जई जंगलमा पुरु वास ॥ पर्वत पाणी चरि घास, नवी ठाकुर नही कही दास ॥ ३ ॥ विण अपराधे मृग न मारे, ते नर भमशे गति जो च्यारे ॥वात करे नर पशअ पोकारे, शब्द सुणीने आप विचारे ॥४॥जो परj तो पशुं हणाय, मुज अनुकंपा नाठी जाय !! भोग भोगवी कुण दुखी. यो थाय, नेमनाथ रथ फेरी जाय ॥ ५॥ वरस दिवस जे दीधुं दान, सहस पुरुष शुं संयम ध्यान । चोपम दिन छद्मस्था मान, नेमे पाम्युं केवल ज्ञान ॥६|| ॥ ढाल ॥ ५॥ राजीमती तो पुंठे जाय, नेम विना दुख सबलो थायाकहे कंथ मुज अवगुणी, नीर विना किम रहे पोयणी ॥ १॥ अष्ट भवंतर आगे नेह, तो किम आपे हमणां छेह ॥ स्वामी कठिन हृदय मम करो, परणवाने पाछा वलो ॥२॥ इस्यां वचन For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ भाखे मुख तिहां, वाघ सिंह बोले वन माहे ॥ हीयडे चिंते राजुल नारी, कीशां क्रम कधिां कीरतार ॥३॥ के में जलमां नांख्या जाल, के में माय विछोह्यां वाल ॥के में सती ने चडाव्यां आल, के में भाखी विरुइ गाल ॥ ४ ॥ के में वन दावानल दीया, के में परधन वंची लीया ॥ केमें शील खंडना करी, तो मुजने नेमे परिहरि ॥ ५॥ इस्यां वचन भांखे सुंदरी, नेम तणे पासे संचरी ॥ स्वामी वचन सण्यां जब सार. मनथी चिंते अथीर संसार ॥६॥राजेमती वैरागीणी थई, हारदोर तिहां छोडे सही ॥ कंकण चुडी अलगी ठवी, लई संयमने हुई साधवी ॥ ७ ॥ सुणी वाख्यान वळी एक मने, त्रुटयो मेघ चमकी दामिनी ॥ वस्त्रे लाग्युं काचुं नीर, भीनुं राजुल तणुं शरीर ।। ॥८॥ रेहेनेम उभा छे जिहां, राजुल वस्त्र सुकवती तिहां ॥ रेहेनेमी दीठा संदरी, परवश पुतां तव इंदरी ॥ ९ ॥ प्रगट थई नर बोल्यो यति, भाभी दुःख म धरस्यो रति ॥ नेम गयो तो मुजने वरो, काम भोग मुज साथे करो ॥ १० ॥ अंग विभूषण सवि आदरो, For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha ૨૨ક नगर अमारे पाछा फरो ॥ तुज कारण हुं मुकुं जोग, जो तुं मुजस्युं विलसे भोग ॥ ११ ॥ एक वचन मानो सुंदरी, आगल संजम लेजो फरी॥ कुप छांयडी करपि जेम धन्न, विसमे ठामे उग्युं छे वन ॥ १२॥ तेना फल जेम तिहां विसमे, तिम तुं योवन का एळे गमे॥ राजुल कहे सुण मूढ गत आण, पश्चिम दीश उगे जो भाण ॥ १३ ।। चंद्र थकी वरसे अंगार, तोहे न वालं तुज भरथार ॥ पवंत पाणी पाछा चढे, कायर सरा ज्यम जो वढे ॥१४॥ पाप करीने पामे लील. तोए न खंग माझं शील ॥ वमी वस्तुने शं आदरे, विषय काजे कां दुर्गति फरे ॥ १५ ॥ रेहेनेमि मन झांखो थयो, हे हे वचन किश्योमें कह्यो । उत्तम कु. लनी न रही लाज, धिग धिग तुं रे विरुआ काज ॥ ॥ १६ ॥ आतम निंदा करतो आप, मुज भाइ पोढां लाग्यां पाप ॥ नेम तणा जे वंदे पाय, लेई संयभने मुक्ति जाय ॥ १७ ॥ राजीमती तिहां वहुतप तपे, अरिहंत नाम हृदयमां जपे ॥ नेमे तारी घरनी नार, राजुल मुकी मुगति मोजार ॥१८॥ For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ ॥ ढाल ॥ नेमनाथ नित्य वंदो बावीसमारे, वंदोरे नेमनाथ राजेमतिरे ॥ संवत सोल सत साठ संघ सहु सांभलोरे ॥पोसमास सुद बीज गुरुरे ॥ स्तंभ नयर माहे जिन थुण्योरे ॥ कलश। इयनेमि जिनवर, पुण्य दिनकर,सकल गुण मणि सागरो । जस नाम जपतां कर्म खपीए, छुटीए भव आगरो ॥ तपगढ मुनिवर सकल सुखकर श्री विजयसेन सूरीसरो ॥ तस तणो श्रावक ऋषभ बोले, थुण्यो नेमि जिणेसरो ॥ इति श्री नेमनाथ स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ श्रीमहावीरस्वामी- पंचकल्याणकनुं त्रण ढाळनुं स्तवन ।। ॥दुहा ॥ शासन नायक शिवकरण, वदुंबीर जिणंद ॥ पंच कल्याणक जेहना, गाशुं धरी आणंद ॥१॥ सुणतां थुणतांप्रभु तणा, गुण गीरुआ एकवार ॥ रूछि वृद्धि सुख संपदा, सफल हुए अवतार ॥२॥ ॥ ढाल ॥ १ बापडी सुण जीभलडी ॥ ए देशी ॥ ॥सांभळज्यो सस्नेही सयणां, प्रभुनां चरित्र उहासे ॥ जे सांभळशे प्रभु गुण जेहना, समकित For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्मल थाशेरे || सां० ॥ १ ॥ जंबुद्वीपे दक्षिण भरते, भाहण कुंड गामे ॥ रुषभदत्त ब्राह्मण तस नारी, देवानंदा नामेरे || सां० ॥ २ ॥ आषाढसुदी छट्ठे प्रभुजी, पुष्पोत्तरथी चविया || उत्तरा फाल्गुनी योगे आवी, तस कुखे अवतरीयारे ॥ सां० || ३ || तिण रयणी सा देवानंदा, सुपन गजादिक निरखे || प्रभाते सुणी कंथ रूषभदत्त, हियडामांही हरखेरे ॥ सां० ॥ ४ ॥ भांखे भोग अर्थ सुख होस्ये, होस्ये पुत्र सुजाण ॥ ते निसुणी तिण देवानंदा, कीधुं वचन प्रमाणरे ॥ ॥ सां० ॥ ५ ॥ भोग भला भोगवता विचरे, ए हवे अचरज होवे ॥ सतकतु जीव सुरेसर हरख्यो, अवधि प्रभुने जोवेरे || सां० ॥६॥ करी वंदनने इंद्र सन्मुख, सात आठ पग आवे || शक्रस्तव विधि सहित भणीने, सिंहासन सोहावेरे ॥ सां० ॥ ७ ॥ संशय पडिओ एम विमासे, जिनचकी हरीराम ॥ तुच्छ दरिद्र माहणकुल नवि, उग्रभोग विण धामेरे ॥ सां० ॥ ८ ॥ अंतिम जिन माहण कुल आव्या, एह अछेरु कहीए ॥ उत्सपिंणी अवसर्पिणी अनंती, जातां एवं लहीएरे ॥ For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ૨૨૭ ।। सां० ॥ ९॥ इण अवसर्पिणी दश अछरां, थयां ते कहीए तेह ॥ गर्भ हरण गोसाला उपसर्ग, निष्फल देशना जेहरे ॥ सां० ॥ १०॥ मूल विमाने रवि शशी आव्या, चमरानो उत्पात ॥ ए श्रीवीरजिणेसर वारे, उपना पंच विख्यातरे ॥ सां० ॥ ११ ।। स्त्री तीर्थ मद्धिजिनवारे, शीतलने हरिवंश ॥ ऋषभने अट्ठोत्तरसो सीधा ।। सुविधि असंजती संसरे ॥ सां० ॥ ॥ १२ ॥ शंख शब्द मीलीया हरि हरस्युं, नेमीसरने वारे ॥ तीम प्रभु नीच कुले अवतरीया, सुरपति एम विचारेरे ॥ सांग ॥ १३ ॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ नदी यमुनाके तीर ॥ ए देशी ॥ ॥ भव सत्तावीस स्थूलमांहि त्रीजे भवे, मरीची कीयो कुलनो मद भरत यदा स्तवे ॥ नीच गोत्र करम तिहां बांध्युं ते वती ॥ अवतरीया माहण कुल अंतीम जिनपती ॥ १ ॥ अति अघटतं एह थयं थाशे नहीं, जे प्रसवे जिन चक्री नीचकुले नहीं ॥ इहां मारो आचार धरूं उत्तम कुले, हरणांगमेषी देव तेडावे एटले ॥ २॥ कहे माहणकुंग नयरे जाई For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ देवानंदा कुखेथी प्रभुने संहरो ॥ नयर क्षत्रीयकुंड राय सिद्धारथ गेहिनी, त्रिशला नामे धरो प्रभु कुखे तेहनी ॥३॥ त्रीशला गर्भ लईने धरो माहणी उरे, ब्यासी रात वसीने कडं तीम सुरकरे ॥ माहणी देखे सुपन जाणे त्रीशला हयाँ, त्रीशला सुपन लहे तव चौद अलंकां ॥ ४॥ हाथी वृषभ सिंह लक्ष्मी माला सुंदरुं, शशी रवि ध्वज कुंन पद्म सरोवर सागरं ॥ देव विमान रयण पुंज अग्नि विमले, एहवे देखे त्रिशला एह के पीउने विनवे ॥५॥ हरख्यो राय सुपन पाठक तेडाविया, राजभोग सुतफल सुणी तेह वधाविया ॥ त्रिशलाराणी विधिस्यु गर्नसुखे हवे, माय तणे हित हेत के प्रभु निश्चल रहे ॥ ६ ॥ माय धरे दुःख जोर विलाप घणुंकरे, कहे में कीधां पाप अघोर भवांतरे ॥गर्भ हयों मुज केण हवे केम पामीए, दुखनो कारण जाणी विचार्यु स्वामीये ॥ ७ ॥ अहो अहो मोह विटंवण जालम जगतमे, अणदीठे दुःख एवडो उपायो पलकमें ॥ ताम अभिग्रह धारे प्रभु ते कहुं, मात पिता जीवतां संयम नवि ग्रहं ॥ ८॥ करुणा For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ आणी अंग हलाव्यं जिनपति, बोली त्रिशला मात हिये घणुं हिसती ॥ अहो मुज जाग्यां भाग्य गर्भ मुज सलसल्यो, सेव्यो श्री जिनधर्म के सुरतरु जिम फल्यो || ९ || सखी कहे शीखामण स्वामीनी सांभलो, हळवे हळवे बोलो हसो रंगे चलो ॥ इम आनंदे विचरतां डोहला पुरते, नव महिनाने साडासात दिवस थते ॥ १० ॥ चैत्र तणी सुद तेरस नक्षत्र उत्तरा, जोगे जन्म्या वीर के तव वीकसी धरा || त्रिभुवन यो उद्योत के रंग वधामणां, सोना रूपानी वृष्टि करे घेर सुर घणा ॥११॥ आवी छप्पन कुमारी के ओछव प्रभु तणे, चल्युंरे सिंहासन इंद्रके घंटारण झणे ॥ मळी सुरनी कोड के सुरवर आवीयो, पंच रूप करी प्रभुने सुरगिरि लावीओ ॥ १२ ॥ एक कोन साठ लाख कलश जलशुं भर्या, किम सेहस्ये लघु वीर के इंद्र संशय धर्या ॥ प्रभु अंगूठे मेरु चांप्यो अति घड घडे, गडगडे पृथ्वी लोक जगतना लडथडे ॥ १३ ॥ अनंत बळी प्रभु जाणी इंद्रे खामीओ, च्यार वृषभनां रूप करी जल नामीओ ॥ पूजी खरची प्रभुने For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० माय पास धरे, धरी अंगुठे अमृत गया नंदीश्वरे॥१४॥ ॥ ढाल |॥ ३ ॥ देशी हमचडीनी ॥ ॥करी महोच्छव सिद्धारथ भूप, नाम धरे वर्धमान ॥ दीन दीन वाधे प्रभु सुरतरु जिम, रुप कला असमान रे ॥ हमचडी॥१॥ एक दिन प्रभुजी रमवा कारण, पुर बाहिर जब जावे॥इंद्र मुखे प्रशंसा सुणी तिहां, मिथ्यात्वी सुर आवेरे ॥ हमचडी ॥ २॥ अहि रूपे विटाणो तरस्यु, प्रभु नांख्यो उछाली ॥ सात ताडनुं रूप कर्यु तब, मुठे नांख्यो वाली रे॥ हमचडी० ॥३॥ पाये लागीने ते सुर खामे, नाम धरे महावीर ॥ जेवो इंद्रे वखाण्यो स्वामी, तेवो साहस धीररे॥ हमचडी०॥४॥ मात पीता निशाळे मुके, आठ वरसना जाणी इंद्रतणा तिहां संशय टाट्या, नव व्याकरण वखाणीरे ॥ हमचडी० ॥ ५॥ अनुक्रमे यौवन पाम्या प्रभुजी, वर्या यशोदा राणी ॥ अठ्ठावीशे वरसे प्रभुनां, मात पिता निर्वाणीरे ॥ हमचमी० ॥ ६॥ दोय वरस भाइने आग्रह, प्रभु घरवासे वसीया॥ धर्म पंथ देखाडो इम कहे, लोकांतिक उलसीयारे ॥ हमचडी० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक कोड आठ लाख सोनइया, दीन दीन प्रभुजी आपे ॥ इम संवच्छरी दान दइने, जगनां दारिद्रय कापेरे॥ हमचडी० ॥८॥ छांड्यां राज अंतेउर प्रभुजी, नाइए अनुमति दीधी ।मृगशीर वद दशमी उत्तराये, वीरे दीक्षा लीधीरे॥ हमचडी० ॥९॥ चउनाणी तिण दीनथी प्रभुजी, वरस दिवस झाझेरे ॥ चिवर अर्ध ब्राह्मणने दीधुं, खंड खंड वे फेरा रे ॥ हमच० ॥१०॥ घोर परिसह साढा बारे, वरसे जे जे सहीया ॥ घोर अनिग्रह जे जे धरिया, ते नवि जाये कहीयारे हमचडी ॥ ११ ॥शूलपाणीने संगमदेवे, चंडकोसी गोसाले ॥ दीधुं दुखने पायस रांधी, पग उपर गोवालेरे ॥ ॥ हमचडी ॥ १२ ॥ काने गोपे खीला मायाँ, काढता मुकी राढी ॥ जे सांभळतां त्रिभुवन कंप्यां, पर्वत शिला फाटीरे ॥ हमचडी ॥ १३ ॥ ते तें दुष्ट सहु उधरीया, प्रभुजी पर उपगारी ॥ अडद तणा बाकुला लइने, चंदन बाला तारीरे ॥ हमचमी ॥ १४ ॥ दोय छ मासी नव चउ मासी, अढी मासी त्रणमासी ॥ दोढ मासी बे बेकीधा, छकीचां बेमासीरे ॥ हमचमी For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ ॥ १५ ॥ बार मासने पख बोहोतेर, छठ बसें ओगणत्रीस खाणुं || बार अठम भद्रादि प्रतिमा, दीन दोइ चार दश जाणुंरे ॥ हमचडी ॥ १६ ॥ इम तप कीधा बारे वरसे, वीण पाणी उल्हासे ॥ तेमां पारणां प्रभुजी कीधां, त्रणसें ओगणपचासरे ॥ हमचडी ॥ ॥ १७ ॥ कर्म खपावी वैसाखमासे, सुद दशमी सुभ जाण ॥ उत्तरा योग शालिवृक्ष तले, पाम्या केवल नारे ॥ मचडी ॥ १८ ॥ इंद्रभूति आदि प्रतिबोध्या, गणधर पदवी दीधी ॥ साधु साधवी श्रावक श्राविका, संघ स्थापना कीधीरे ॥ हमचडी ॥ १९ ॥ चउद सहस अणगार साधवी, सहस छत्रीस कहीजे ॥ एक लाखने सहस गुण सहि, श्रावक शुद्ध कहीजेरे ॥ हमचडी ॥ || २० || तीन लाख अठार सहस वली, श्राविका संख्या जाणी ॥ त्रण से चौद पूर्वधारी, तेरसें ओही नाणीरे || हमी० ||२१|| सात सयां ते केवलनाणी, लब्धिधारी पण तेता ॥ विपुल मतिया पांचसें कहीया, चार वादी जेतारे || हमचडी ॥ २२ ॥ सातसें अंतेवासी सीध्या, साधवी चौदसें सार ॥ दीन दीन तेज For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ सवाये दीपे, ए प्रभुजीनो परिवाररे ॥ हमचडी ॥ २३॥ त्रीस वरस घरवासे वसीया, बार वरस छद्मस्थ्ये । तीस वरस केवल बेंतालीस, वरस समणा मध्येरे ॥ ॥ हमचमी ॥ २४ ॥ वरस बहोतेर के आयु, वीर जिणंद- जाणो ॥ दीवाली दीन स्वाती नक्षेत्र, प्रभुजीनो निरवाणरे हमचडी ॥ २५॥ पंचकल्याणक एम वखाण्या, प्रभुजीनां उल्लासे ॥ संघ तणे आग्रह हरख भरीने, सुरत रही चोमासुंरे । हमचडी ॥२६ ।। कलश॥ इम चरम जिनवर, सयल सुखकर, थुण्यो अति उलट धरी । अषाम उज्वल पंचमी दिन, संवत शत त्रीहोतरे ॥ भाद्रवा शुद पडवा तणे दीन, रविवारे उलट भरो ॥ विमल विजय उवज्ञाय पदकज, भ्रमर सम शुभ शीष्य ए॥ रामविजय जिनवर नामे, लहे अधिक जगीसए ॥२७॥ इति श्री वीर जिन स्तवन ॥ ॥ श्रीआंबिल वर्धमान तपर्नु चैत्यबंदन । ॥ वर्धमान जिनपति नमी, वर्द्धमान तप नाम ॥ ओली आंबिलनी करूं, वर्द्धमान परिणाम ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ एक एक दिन यावत् शत, ओली संख्या थाय ॥ कर्म निकाचित तोडवा, वज्र समान गणाय ॥ २॥ चौद वर्ष त्रण मासनी, ए संख्या दिननी वीस ॥ यथा विधि आराधता, धर्मरत्न पद ईश ॥ ३॥ ॥ ढाल ॥ १॥ वर्द्धमान तपनुं स्तवन ॥ ॥ नवपद धरजो ध्यान, भविक तमे नवपद धरज्यो ध्यान ॥ ॥ देशी॥ ॥ तप पद धरजो ध्यान, भविक तमे, नामे श्री वर्द्धमान ॥ दिन दिन चढत वान, भविक तमे, सेवो थई सावधान ॥ भ० ॥१॥ प्रथम ओली एम पालीनेरे, बीजी ए आंबिल होय ॥भ०॥ त्रीजी त्रण चोथी चार छेरे, उपवास अंतरे होय ॥ भ० ॥ २ ॥ एम आंबिल सो वृत्तनीरे, सोमी ओली थाय ॥ भ०॥ शक्ति अभावे आंतरेरे, विश्रामे पहोंचाय ॥ भ० ॥३॥ चाद वरस त्रण मासनीरे, उपर संख्या वीश ॥ भ० ॥ काल मान ए जाणवुरे, कहे वीर जगदीश ॥भ० ॥ ॥ ४ ॥ अंतगड अंगे वरणव्युरे, आचारदिनकर लेख ॥ भ० ॥ ग्रंथांतरथी जाणवुरे, ए तप, उल्लेख ॥ भ० For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३५ ॥ ५॥ पांच हजार पचाश छेरे, आंबिल संख्या सर्व ॥ भ० ॥ संख्या सो उपवासनीरे, तप मान गाले गर्व ॥ भ० ॥ ६ ॥ महासेन कृष्णा साधवीरे, वर्धमान तप कीध ॥ भ० ॥अंतगड केवल पामीनेरे, अजरामर पद लीध ॥ भ० ॥ ७ ॥ श्रीचंदकेवलीए तप सेवियोरे, पाम्या पद निर्वाण ॥ भ० धर्म रत्न पद पामवारे, ए उत्तम अनुमान ॥ भ० ॥८॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ जेम जेम ए गिरि भेटीएरे, तेम तेम पाप पलाय सलुणा || ए देशी ॥ ॥ जिम जिम ए तप कीजीएरे, तिम तिम भवपरिपाक सलुणा ॥ निकट भवि जीव जाणवोरे ॥ एम गीतार्थ साख सलुणा ॥जिम०॥१॥आंबिल तप विधि सांभलोरे, वर्द्धमान गुणखाण सलुणा ॥ पाप मलक्ष्य कारणेरे, कतक फल उपमान सल्लुणा ॥ जिम०॥२॥ शुन महुर्त शुभ योगमारे, सद्गुरु आदि योग सखुणा ॥ आंबिल तप पद उचरीरे, अराधो अनुयोग सखुणा ॥ जिम० ॥४॥गुरु मुख आंबिल उचरीरे, पुजी प्रतिमा सार सल्लुणा ॥ नवपदनी पूजा भणीरे, मागो पद For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ अणहार सलुणा ॥ जिम ॥ ४॥ खटरस भोजन त्यागवारे, भूमि संथारो थाय सखुणा ॥ ब्रह्मचर्यादि पालवारे, आरंभ जयणा थाय सखुणा ॥ जि०॥५॥ तप पदनी आराधनारे, काउसग्ग लोगस्स बार सखुणा ॥ खमसमणां बार आपवारे, गयणु दोय हजार ॥स०॥ ॥ जि ॥ ६ ॥ अथवा सिद्धपद आश्रयिरे, काउसग्ग लोगस्स आठ सलूणा ॥ खमासमणां आठ जाणवारे, नमो सिद्धाणं पाठ सखुणा ॥ जि० ॥ ७ ॥ बीजे दीन ऊपवासमारे, पौषधादि व्रतयुक्त सलुणा । पडिकमणादि क्रिया करीरे, भावना परिमल युक्त सखुणा ॥ ॥ जि० ॥८॥ एम आराघतां भावथीरे, विधि पूर्वक धरो प्रेम सबुणा ॥लावो ध्यावो भविजनारे, धर्म रत्न पद एम ।। स० ॥ जि० ॥ ९॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ नरभव नयर सोहामणुं वणजारारे ॥ ए देशी ॥ ॥ 'जिन धर्म नंदन वन भलो, राज हंसारे, शीतल छाया सेवोने, राज हंसारे ॥प्राणी तुं था सावधान अहो राज हंसारे ॥ १॥ अमृत फल आस्वादीने १ आ गाथामां एक चरण त्रुटे छे. For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir રરૂ૭ राज हंसारे, काढ अनादिनी भुख ॥ अहो० ॥ नव परिभ्रमण भमतु ॥ राज० ॥ अवसर पामी न चुक ॥ अहो० ॥२॥ शत शाखाथी शोभतो ॥ राज०॥ पांच हजार पचास ॥ अहोराजहंसारे, आंबिल फुले अलंकयौ ॥ राज०॥ अक्षय पद फल तास ।। अहो. ॥३॥ विमलेसर सुर शांतिये ॥ राज०॥ तु निर्भय थयो आज ।। अहो ॥ कृत कृत्य थई मागतुं ॥राज०॥ अकल स्वरूपी राज ॥ अहो ॥४॥ विग्रह गति वोसरावीने ॥ राज० ॥ लोकाग्रे करवास ॥ अहो० ॥ धन्य तुं कृत्य पुण्य तुं ॥राज०॥ सिद्ध स्वरुप प्रकाश ॥ अहो०॥ ५॥ तप चिंतामणी काउसगे ॥राज ॥ वीर तपो धन ध्यान ॥ अहो० ॥ महासेन कृष्णा साधवी ॥ राज० ॥ श्रीचंद जवजल नाव ।। अहो० ॥ ॥६॥ सूरिश्री जगचंद्रजी ॥राज० ॥ हीरविजय गुरु हीर ॥ अहो. मल्लवादी प्रभु कुरगडु ॥ राज०॥ आ. चार्य सुहस्ती वीर ॥ अहो०॥७॥ पारंगत तपजलधिना ॥ राज० ॥ जे जे थया अणगार ॥ अहो० ॥ जीत्या जीह्वा स्वादने ॥राज०॥ धन्य धन्य तस For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ अवतार ॥ अहो० ॥ ८॥ एक आंबिले तुटशे ॥राज॥ एक हजार दस क्रोम ॥अहो०॥ दस हजार क्रोड वरसनुं ॥ ॥ राजग | उपवासे नरक आयुष ॥ ॥ अहो राज०॥ ए ॥ तपसु दशन चक्रथी॥राज०॥ करो कर्मनो नाश ॥ अहो० ॥ धर्म रत्न पद पामवा ॥राज. आदरो तप अन्यास ॥ १०॥ ॥ कलश ॥ तप आराधन धर्मसाधन, वर्द्धमान तप परगडो ॥ मनकामना सहुं पूरवामां, सर्वथा ए सुरघडो ॥ अन्नदानथी शुभध्यानथी, सुभवि जीव ए तपस्या करो ॥ श्री विजयधर्म सूरशि सेवक, रत्नविजय कहे शीव वरो ॥ १ ॥ इति वर्षमान तप स्तवन सम्पूर्ण ॥ ॥ अथ श्री वर्द्धमान तपनी थोयो. ॥ ॥ वर्द्धमान ओली करो, भव भव पातिक त्यारे हरो ॥ वर्द्धमान जिन पामीने, दूर करो सहं खामीने ॥ १॥ वर्द्धमानादिक जिन तर्या, पूर्व भवे जे तप कर्या ॥ ते तप मुजने फल आपो, आहारादिक संज्ञा कापो ॥ २ ॥ अंतगड आचार दिन, श्री चंद्र चरित्र For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __२३९ आदलं, तप कुलकादि ग्रंथजे, तप साधनना पंथ छे ॥३॥ तपगच्छ नंदन सुरतरु, श्री विजय धर्म सुरी. सरु ॥ रत्न विजय सुखदायिका, सहायकरे सिद्धायिका ॥ ४ ॥ इति थोयो, ।। ॥ श्रीवर्द्धमान तपनी सझाय. ॥ ॥ मोरा साहिबहो श्रीशीतलनाथके अरजसुणो एक माहरी॥ए देशी॥ ॥ मोरा चेतन हो कहुं अनुभव वातके, सांभल स्थिर थई मित्र तुं ॥ जिम पामे हो तुं शिवसुख सारके, क्षणमा होय पवित्र तुं ॥१॥ तप आंबिल हो करजे वर्द्धमान के, विघ्न विदारण केसरी ॥अष्टसिद्धि हो अणिमादिक थायके, प्रगटे ऋद्धि परमेश्वरी ॥२॥ भय साते हो सहुं दूर पलायके, आंबिले बली नहीं द्वारिका ॥ देव सांनिध्य हो करे हरे सौ कष्ट के, मंत्र तंत्र फल कारका ॥ ३ ॥ मयणा सुंदरी हो श्रीपाल नरेश के, ए तपथी सुखीया थया के ॥ ए सेव्या हो तप सुरवृदके, मुक्ती पदवी लह्या ॥ ४ ॥ नवकारशी हो तोडे एकसो वर्षके, नरकायु सुरनुं करे ॥ तो तोडे For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર૪૦ पोरसी हो, वर्ष एक हजार के, आयु ते साठपोरसी हरे ॥५॥ एक लाख हो पुरिमल हरंतके, एकासण दस लाखनुं॥ नीवी करतां हो एक क्रोड कपायके, एकलठाणा दस क्रोडर्नु॥६॥ कापे सो क्रोड हो वर्ष एकलदातिके, हजार कोम वरस आंबिले ॥ उपवासे हो दस सहस क्रोमके, नरक आयुषतुं कापले ॥ ७ ॥ ए वाख्या हो मध्यम फल जाण के, केवल लहे उत्कृष्टथी ॥ दस धारो हो ए असि सूर्य हासके, मुष्टि ज्ञाने ग्रही मुष्टिथी ॥ ८॥ नमो तवस्सहो गणो दोय हजारके, खमासमणा बार छे, गणो लोगस्स हो बार काउस्सग रुपके, साचो कर्म कुठार छे ॥९॥ यथा शक्ति हो करो तप अनुकुलके, संयम श्रेणी आदरो॥ तप वर्द्धमान हो वर्द्धमान परिमाणके, धर्म रत्न पद अनुसरो ॥ १० ॥ इति वर्द्धमान तप सज्जाय.॥ ॥ अथ अक्षयनिधि तपनो विधि.॥ ॥श्रावण वद चोथने दिवसे प्रारंभ करवो, प्रथम एक कुंभ सुवर्णनो अथवा रत्ननो जडीत शक्ति प्रमाणे करवो, जण दिठ भिन्न भिन्न करवा, ते कुंभ पवित्र For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir રક? पणे एकान्त स्थानके स्थापवो, डांगरनी ढगली उपर स्थापवो, ते कुंभ उपर एक श्रीफल मुकवू, अने आगळ चोखाना स्वातिक करवो, ते घडामां शक्ति होय तो हमेश रुपा नाणुं नांखवू, नहितो पहेले दिवसे तथा छेल्ले दीवसे रुपानाणुं नाखवू, वचला दीवसोमां यथा शक्ति नाखवू पण हमेश कुंभमां नाणुं तो नाखवू ज जोइये, तिहां ज्ञान बांधवू, एक पीठिका उपर कल्पसूत्रनुं पुस्तक पधरावq पुस्तक उपर चन्द्रवो बांधवो, धूप दीप करवो, अने ते दीपक अखंड राखवो जोईए.॥ ॥ प्रथम इरिया वही प्रतिक्रमवा, तस्स उत्तरी कहेवी पछी एक लोगस्सनो काउसग्ग करवो, पछी प्रगट लोगस्स कहेबो, पछी “अक्षयनिधि तप आराधवा चैत्यवन्दन करूं' एम कही अक्षय निधिचैत्यवन्दन करवू, पछी नमुथ्थुणं-जावंति चेइआइंजावंत केविसाहु-पछी नमोऽहत्-पछी स्तवन अक्षयनिधिनुं कहे, पछी जयवीयराय कहेवां, पछी खमासमण देइ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् श्री श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ, एक For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ ર૪ર नवकारनो काउसग्ग, पछी नमोऽहत्० कही श्रुतदेवतानी थुई कहेवी, पछी पच्चखाण करवां, आ प्रमाणे चैत्यवन्दननी विधि छे. ॥ हवे ज्ञाननी पूजा भणाववानी विधि कहे छे. ॥ नवपद मध्येथी-दुहा-सप्तमपद श्री ज्ञाननो, सिद्ध चउदपद मांहि, आराधीजे शुभमने, दिनदिन अधिक उच्छाह ॥१॥ छंद गाथा अन्नाणसम्मोहतमोहरस्स सातमा पदनी पूजा नणाववी पछी “ॐ ही परमात्माने नमः" ज्ञानपदेभ्यः कलशं यजामहे स्वाहाः ॥ एम कहीने ज्ञानने फरती कलशथी धारावाडी देवी,पछी वास क्षेप तथा रुपानाणुं हाथमां लइने, थोय कहेवी. ॥जिन जोजनभूमि, वाणिनो विस्तार ॥ प्रभु अथ प्रकाशे, रचना गणधर सार॥सोय आगम सुणतां, छेदाजे गतिचार ॥ प्रभु वचन वखाणी, लईये भवनो पार ॥१॥ आ थोय कहीने ज्ञान पुजवू, प्रथम वासक्षेपनी पुजा करे पछी द्रव्य पूजा करे, पछी चोखा निर्मलबे हाथे पसली भरीने, उपर पैसो सोपारी For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ मुकीने उभा रही ज्ञाननी स्तुति करीये, ॥ दुहो॥ ज्ञानसमो कोई धन नहीं, समता समुं नहि सुख ॥ जीवित समी आशा नहि, लोभ समो नहि दुःख ॥ ॥१॥ पछी चोखानी पसली कुंभमा नांखीये, उपर श्रीफल. १मुकवू, एम दीन १५ सुधी चोखानी पसली तथा सोपारी रुपानाj घडामां नांखीये, सोलमे दीवसे कुंभ पुरो भरीये, पछी खमासमण देईने इच्छाकारेण संदिसह भगवान् श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउसम्ग कर, इच्छं, श्रुतदेवता आराधनाथ करेमि काउसग्गं अन्नथ्थ एक नवकारनो काउसग्ग करी,नमोऽर्हता कहीने ज्ञाननी थोय कहेवी, पनी खमासणा वीस देवां पनी हमेशां अक्षयनिधि ढाल सांभळवी. ॥ पछी “ॐ ही नमो नाणस्स" ए पदनी नवकारवाली २० गणवी, छेल्ले दीवसे रात्री जगो, पूजा, प्रभावना करवी, भादरवासुदी त्रीज सुधी एकासणा पंदर करवां. सुदी ४ संवच्डरीनो छेल्लो उपवास करवो, सुदी पांचमें पारणुं करवू, ते दीवसे वरघोडो मोटा आमंबरथी चढाववो, नैवेद्य सुखडी शक्ति प्रमाणे करावी For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याल भराववां, कुंभ उपर लीलो पीलो तास्तो बाधवो, नाडाकी बांधे, फुलनी माला होय तो नांखवी, पछी सौभाग्यवती स्त्रीने माथे चढावीये ते वरघाको वाजते गाजते विशाल चैत्य होय त्यां आवे पछी कुंभवाली यो प्रदक्षिणा दे, नैवेद्य प्रभु आगल ढोंकवां, त्रण पठी पुस्तक गुरु महाराजना उपाश्रये पधरावनुं, अने ज्ञान पूजन गुरू पूजन त्यां करीये, निरंन्तर भोंय सुबुं, निर्मल शियल पालवं, ए रीते जेटलां तप करतां होय तेटला कुंभ भिन्न भिन्न जोईये, देव वंदन पडिलेह करवां एम चार वर्ष सुधी करवुं, त्यारे चोसठ दीवसनो ए तप पूर्ण थाय इति श्री अक्षयनिधि तपनी विधि सम्पूर्ण. ॥ ॥ अथ अक्षयनिधि तपनी विधि. ॥ ॥ प्रथम ईरिया ही कहेवी, पछी तस्स उत्तरी कहेवी, पढी एक लोगस्सनो काउस्लग्ग करवो, पढ़ी प्रगट लोगस्स कहेवो, पबी, अक्षय निधि तप आराथवा चैत्यवंदन करूं, एम कही चैत्यवंदन करखं. ॥ For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ शासन नायक सुखकरण, वर्द्धमान जिन भाण || अहर्निश एहनी शिरवहु, आणा गुण माण खाण || १ || ते जिनवरथी पामीया, त्रिपदी श्री गणधार || आगम रचना बहु विधि, करी अर्थ विचार ॥ २ ॥ ते श्री श्रुतमां भाखिया, ए तप बहु विधि सुख कार || श्री जिन आगम पामीने, साधे मुनि शिवसार || ३ || सिद्धांत वाणी सुधा रसिक, श्रावक समकित धार ॥ अष्ट सिद्धि अर्थे करे, अक्षयनिधि तप सार ॥ ४ ॥ तप तो सूत्रमां अतिघणां, साधे मुनिवर जेह ॥ अक्षय निधानने कारणे, श्रावक ते गुण गेह ॥५॥ माटे भवितप करो, सर्व ऋद्धिपरे सार, विधिशु एह आराधतां पामी जे भवपार ॥ ६ ॥ श्री जिनवर पूजा करो, त्रिक शुद्धे त्रिकाल || तेम वळी श्री श्रुत ज्ञाननी, भक्ति थई उजमाल ॥ ७ ॥ पडिकमणा दोय टंकना, ब्रह्मचर्यने धरीये ॥ ज्ञाननी सेवा करी, सेने भवजल तरीये ॥ ८ ॥ चैत्यवंदन शुभ भावर्थाएं ॥ स्तवन थुई नमस्कार, श्रुतदेवी उपासना, धीरविजय हितकार ॥ ९ ॥ For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ पनी नमुथ्थुणं कहेवू, जावंति चेईआई, जावंत केविसाह, कही नमोहत्० कहीने स्तवन कहेवू. । लावो लावोरे राज मोघां मूलां मोती ॥ ए देशी ॥ ॥ तप वर कीजेरे, अक्षय निधि अभिधाने ॥ सुखभर लीजेरे, दिन दिन चढते वाने ॥१॥ आंकणी पर्व पजुसण पर्व शिरोमणि, जे श्री पर्व कहाय ॥मास पास छट्ठ दशम दूवालस, तप पण ए दिन थाय ॥ तप० ॥२॥ पण अक्षयनिधि पर्व पजुसण, केरो कहे जिन भाण ॥ श्रावण वदी चोथे प्रारंभी, संवच्छरी प्रमाण ॥ तप० ॥३॥ ए तप करतां सर्व ऋद्धिवरे, पग पग प्रगटे निधान ॥ अनुक्रमे पामे तेह परम पद, सांबीया नाम प्रधान ॥ तप० ॥ ४ ॥ पर मच्छरथी कर्म बंधाएं, तिणे पामी दुख जाल ।। ए तप करता ते पूर्वलं, कर्म थयुं विसराल ॥ तप० ॥ ५॥ ज्ञान पूजा श्रुत देवी काउस्सग्ग, स्वस्तिक अतिशय सोहावे ॥ सोवन जडित कुंम निज शक्ति, संपूर्ण क्रमे थावे ॥ तप० ॥६॥ जघन्य मध्यम उत्कृष्टताथी करीये, इगदोय तीन वरिस ।। वरस चोथे श्रुतदेवी For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૩૭ निमित्ते, ए तप वीसवा वीस ॥ तप० ॥ ७ ॥ इणे अनुसारे ज्ञान तणुंवर, गणणुं गणीए उदार ॥ आवश्यकादिक करणी संयुक्त, करतां लहे भवपार ॥ ॥ तप० ॥ ८ ॥ इहभव परभव आ संसार, हित करो भवि प्राणी ॥ जे पर पुद्गल ग्रहण न करवुं, ते तप कहे वरनाणी ॥ तप० ॥ ९ ॥ राति जगा पूजा प्रभावना, हयगयरथ शणगारी जे || पारणादिन पंच शब्द वाजे, वाजंते पधरावी जे ॥ तप० ॥ १० ॥ चैत्य विशाल होय तिहां आवी, प्रदक्षिणा वली दीजे ॥ कुंभ विविध नैवेद्य संगाते, प्रभु आगल ढोइजे ॥ ॥ तप० ॥ ११ ॥ राघणपुरे ए तप सुणी बहु जन, थया उजमाल तपकाज || तेहमां मुख्य मंडाण ओच्छत्रम, मसालिया देवराज ॥ तप० ॥ १२ ॥ संवत अढार त्रेतालीस वर्षे, ए तप बहु भवि कीधो ॥ श्री जिन उत्तम पास पसाये, पद्मविजये फल लीधो ॥ ॥ तप० ।। १३ ।। ते वार पछी जयवियराय कही, सुयदेवयाए करोमि काउसग्गं कही, एक नवकारनो काउसग्ग For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करी, पछी गुरु " सुयदेवयानी थोयं" कहे, पछी पच्चखाण करवां पछी पूजानी ढाल कहेवी ॥ ॥ पूजानी ढाल || ॥ हा ॥ सप्तमपद श्रीज्ञाननुं, सिद्ध चउपद मांही ॥ आराधीजे शुभमने, दिन दिन अधिक उच्छाह ॥ १ ॥ ॥ छंद गाथा ॥ अन्नाणसम्मोहतमो हरस्स || नमो नमो नाणंदिवायरस्य ॥ पचप्पयार रसुवगारगस्स, सत्ताण सव्वथ्य पयासगस्य ॥ १ ॥ हुंबे जेहथी सर्व अज्ञानरोधो, जिनादीश्वर प्रोक्त अर्थाविवोधो ॥ मति आदि पंचप्रकारे प्रसिद्धो, जगद्भासते सर्व दैवाविरुद्धो ॥ २ ॥ यदीयप्रभावे सुभक्ष्यमभक्ष्यं, सुपेयं अपेयं सुकृत्यं अकृत्यं ॥ जेने जाणीये लोक मध्ये सुनाणं, सदा मे विशुद्धं तदेव प्रमाणं ॥ ३ ॥ || ढाल ॥ भव्य नमो गुण ज्ञानने, स्वपर प्रकाशक भावेजी ॥ पर्याय धर्म अनंतता, नेदाभेद स्वभावेज || चाल || जे मुख्य परिणति सकल ज्ञायक, बोध भाव विलच्छना ॥ मति आदि पंच प्रकार नि For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४९ मल, सिद्ध साधन लच्छना ॥ स्याद्वादसंगी तत्त्वरंगी प्रथम नेदानेदता, सविकल्पने आविकल्प वस्तु, सकल संशय छेदता ॥ ॥ ढाल ॥ लक्षाभद न जे विण लहीए, पेय अपेय विचार ॥ कृत्य अकृत्य न जेविण लहीए, ज्ञान ते सकल आधाररे ॥ भ० सिद्ध ॥ १ ॥ प्रथम ज्ञानने पछी अहिंसा, श्रीसिद्धांते जाख्यु ॥ ज्ञानने वंदों ज्ञान मनिंदो, ज्ञानीए शिव सुख चाख्युरे ॥ भ० ॥ २॥ सकल क्रियानु मुल जे श्रद्धा, तेह- मुल जे कहिए ॥ तेह ज्ञान नित्य नित्य वंदीजे, ते विण कहो किम रहीएरे ॥ भ० ॥३॥ पंच ज्ञानमांहे जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ दिपक परे त्रिभुवन उपगारी, वली जेम रवि शशी मेहरे ॥ भ० ॥ ४ ॥ लोक उर्ध्व अधो तिर्यग ज्योतिष, वैमानिकने सिद्ध ॥ लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, ते ज्ञान मुज शुद्धिरे । ॥ भ०॥५॥ ॥ ढाल ।। ज्ञानावरणीय जे कर्म छे, दय उपशम तस थायरे ॥ तो होय एहिज आत्मा, ज्ञान For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० अबोधता जायरे ॥ श्री वीर जिणेसर उपदिशे ॥ V ॐ ही परमात्मने नमः ज्ञानपदेभ्यः कलशं यजामहे स्वाहाः ॥ ए ढाल थई रहे एटले ज्ञान पूजे वासपूजा करे द्रव्यपूजा करे सोना मोहोर तथा रुपा मोहोरथी ज्ञान पुजे तेमां यथा शक्ति जाणवु. ॥ दुहा ॥ सुखकर शंखेश्वर नमी, श्रुणशुं श्री श्रुतनाण || चउमुगा श्रुत एक छे, स्वपर प्रकाशक भाण ॥ १ ॥ अभिलाप्य अनंतमे, भागे रचियो जेह ॥ गणधर देवे प्रणमीयो, आगम रयण अछेह ॥ २ ॥ इम बहुली वक्तव्यता, छठाण वडीया भाव ॥ क्षमा श्रमणभाष्ये कथं, गोपय सर्पि जमाव || ३ || लेश थकी श्रुत वरण, भेद भला तस वीस ॥ अक्षयनिधि तपने दिने, क्षमाश्रमण तेवीस ||४|| सूत्र अनंत अर्थ मयी, अक्षय अंश लहाय ॥ श्रुतकेवली केवलीपरे, भाखे श्रुत पर्याय ॥ ५ ॥ श्रीश्रुतज्ञानने नित नमो, भाव मंगलने काज ॥ पूजन अर्चन द्रव्यथी, पामो अविचल राज || ६ || आ छेला दुहा खमासमण दीठ कहवा || इगस्य अमवीस स्वरतणा, तिहां आकार For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ अढार ॥ श्रुत पर्याय समासमे, अंश असंख्य विचार ॥श्रीश्रुत० ॥१॥ बत्रीस वर्ण समायछे, एक श्लोक मझार । तेमांहे एक अक्षर आहे, ते अक्षर श्रुतसार ॥ ॥श्रीश्रुत० ॥२॥ क्षयोपशम भावे करी, बहु अक्षरनो जेह ॥ जाणग ठाणांग आगले, ते श्रुतनिधि गुणगेह ॥ ॥श्रीश्रुत०॥३॥ कोडि एकावन अडलखा, अगसय अठ्यासी हजार ॥ चालीस अक्षर पद तणा, कहे अनुयोगद्वार ॥श्रीश्रुत०॥४॥ अर्थाते इहां पद कयुं, जिहां अधिकार ठराय ॥ ते पद श्रुतने प्रणमता, ज्ञानावणीय हठाय । श्रीश्रुत० ॥ ५॥ अढार हजार पदेकरी, अंग प्रथम सुविलास ॥ दुगुणा श्रुत बहु पद ग्रहे, ते पद श्रुत समास ॥श्रीश्रुत०॥६॥ पिंडप्रकृतिमां एके पदे, जाणे वह अवदात ॥क्षयोपशमनी विचित्रता, तेहज श्रुत संघात ॥ श्रीश्रुत०॥७॥ पंचोतेर भेदे करी, स्थिति बंधादि विलास ॥ कम्मपथडी पयडी ग्रहे, श्रुत संघात समास ॥श्रीश्रुत० ॥णा गत्यादिक जे मार्गणा, जाणे तेहमा एक ॥ वहेंचण गुणठाणादिके, तस प्रतिपत्ति विवेक ॥ श्रीश्रुतः ॥ ९ ॥ जे बासहि For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २५२ मार्गण पदे, लेश्या आदि निवास ॥ संग्रह तरतम योगथी, ते प्रतिपत्ति समास ॥ श्रीश्रुत० ॥ १० ॥ संतपदादिक द्वारमा, जे जाणे शिवलोक ॥ एक दोय द्वारे करी,श्रद्धाश्रुत अनुयोग॥श्रीश्रुत।।११॥वळी सत्तादिक नव पदे,तिहां मार्गणाभास|सिद्धतणीस्तवना करे, श्रुत अनुयोग समास ॥ श्रीश्रुत०॥१२॥प्रामृत प्राभूत श्रुत नमुं, पूर्वना अधिकार ॥ बुद्धि बल प्रजावथी, जाणे एक अधिकार ॥श्रीश्रुत० ॥ १३ ॥ प्राभूत प्रातृत श्रुतसमा, सान्निध लब्धि विशेष ।। बहु अधि. कार इस्यां ग्रहे, क्षीराश्रव उपदेश ॥श्रीश्रुत० ॥१४॥ पूर्वभव गत वस्तु जिके, प्राभृत श्रुत ते नाम ।। एक प्राभृत जाणे मुनि, तास करुं प्रणाम ॥श्रीश्रुत॥१५॥ पूर्वलब्धि प्रनावथी,प्राभृत श्रुत समाल॥अधिकार बहुला ग्रहे, पद अनुसार विलास ॥श्रीश्रुत॥१६॥ आचारादिक नामथी. वस्तुनाम श्रुत सार ॥अर्थ अनेकविधे ग्रहे, ते पण एक अधिकार ॥ श्रीश्रुत०॥१७॥ दुगसय पणवीस वस्तु छे, चौद पूर्वनो सार ॥ जाणे तेहने वंदना, एक सासे सोवार ॥ श्रीश्रुत० ॥१८॥ For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ उत्पादादिक पूर्व जे, सुत्र अर्थ एक सार ॥ विद्यामंत्र तो को, पूर्वश्रुत जंडार ॥ श्रीश्रुत० ॥ १९ ॥ बिंदुसार लगे भणे, तेहिज पूर्व समास ॥ श्रीशुभ वीरने शासने, होज्यो ज्ञान प्रकाश ॥ श्री० ॥ २० ॥ इति अक्षयनिधि तप खमासमण विधि दुहा समाप्त || || श्री सीमन्धरस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ श्री सीमंधरस्वामीजी, जीवन जगदाधार ॥ वहाला सुणो एक विनति, मारा प्राण आधार ॥ प्रभुजी मानीए महाराज ॥ १ ॥ हियडु ते मुज हे जालुओ, संशय भर्या उभराय ॥ एक पलक धीरज नवी धरी, कहुं कवण आगल जाय || प्रभु० ॥ २ ॥ क्षण क्षण मनोरथ नवनवा, उपजे ते मनडामांहि ॥ फीरी ते मनमां वीरमे, कांइ जेम कुवानी छांहि ॥ ॥ प्र० ॥ ३ ॥ एक घडी अथवा अधघमी, जो प्रभु मले एकांत ॥ तो वात सवी मननी कहुं, भांजो ते सघली भ्रांत ॥ प्र० ॥ ४ ॥ भले सरज्यां पखेरुआं, मन चिंतवे तिहां जाय ॥ माणसने न सरजी पांखड), ली रधुं मन अकलाय ॥ प्र० ॥ ५ ॥ कुण मित्र For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जग एहवो मिले, जे लहे मननी वात ॥ वेधे नही मन जेह शुं, कीम मिले तेह सुधान ॥ प्रभुजी० ॥ ॥ ६ ॥ नवनवा रंगी जीवडा, अति विषम पंचम काल || आप आपणा मन रंगमां, सहुको थइ रह्या लाल || प्रभुजी० ॥ ७ ॥ कहुं कुण श्रगल वातडी, कुण सांभले वली ते ॥ टाले ते कुण प्रमु तुम विना, मनडातणा संदेह ॥ प्रभुजी० ॥ ८ ॥ संसार सघलो जोवतां, मुज मन न रुचे कांही ॥ जीम कमल वननो भमरलो, तेने अवर न गमे कांही ॥ प्र० ॥ एए ॥ धन्य महाविदेहना लोकने, जे रहे सदा प्रभु पास ॥ मुखचंद देखी तुम तणो, पुरजो मननी आश ॥ प्रभु० ॥ ॥ १० ॥ तुम वयणा अमृत सरीखा, श्रवणे सुणो नित्यमेव ॥ संदेह पुछी मन तणो, निर्णय करी नित्यमेव ॥ ११ ॥ शे गुनहे अमने अवगुणी, प्रभुजी वश्या अतिदुर || शी भक्ति एवी ते हुंति, जे कर्या आप हजुर ॥ १२ ॥ जो गुनहा लाख गमे करी, सेवक लहीता जेह ॥ तो पण पोताना त्रेवडी, साहेब दाखी छेह ॥ ॥ प्रभुजी० ॥ १३ ॥ वळी वळी शुं कहीए घएं, प्रभु For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ विनति मन मांही ॥ इम भक्तने उवेखतां, नहीं भला दीसो काही | प्रभुजी० ॥ १४ ॥ मुज सरिखा कोमी 'गमे, सेवक तुमारे स्वाम | पण मारे प्रभु तुम विना, नहीं अवर मन वीसराम ॥ प्रभुजी० ॥ १५॥ ए अरज मारी सांभळी, करूणा करी मन साथ ॥ कहे हंस प्रभु हेजे हवे, दरसण दीजे नाथ ॥ प्रभुजी० ॥ १६॥ || श्री सिद्धाचल स्तवन || नाभिनंदन पूर्व नवाएं, श्री आदीश्वर आव्या || अजित शांति चोमासुं रहीया, सुरनरपति मन भाव्या, भवितुमेवंदोरे, सिद्धाचल सुविचारी | पाप निकंदोरे, गिरि गुण मनमां धारी ||१|| चैत्र सुद पुनमने दिवसे, गुण रयणायर भरीया ॥ पांच कोडीसुं पुंमरिक गणधर, भव सायरने तरिया ॥ भवि० ॥ २ ॥ पोतरा प्रथम प्रभुजी केरा, द्राविड वारिषेण जाणो || कार्त्तिक सुदी पुनमने दिवसे, दस कोडी गुण खाणी ॥ जवि० ॥३॥ कुंता माता सती शिरोमणी, यदुवंशी सुखकारी ॥ पांडव वीस कोडीशुं सिद्धा, अशरीरी अणहारी ॥ ॥ भवि० ॥ ४ ॥ फागण सुदी दशमीने सेवो, नमि For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनमी वे कोडि, आतम गुण निर्मल निपजाव्या, नावे एहनी जोकी ॥ भवि० ॥ ५ ॥ चैत्र वदी चौदस शिव पामी, नमि पुत्री चोसह ॥ रत्न त्रयी संपूर्ण साधी, पामी ए परमड ॥ भवि० ॥ ६ ॥ फागण सुदी तेरसे शिव पाम्या, शांब प्रद्युम्न गुण खाणी ॥ साडी आठ कोडीशुं मुनिवर, परणी शिव पटराणी ॥ भवि० ॥ ॥ ७ ॥ राम भरत त्रण कोडी मुनिशुं, अचल थया अरिहंत || छेहेला नारद लाख एकाएं, समरो मन करी संत ॥ वि० ॥ ८ ॥ एक सहसशुं थावच्यासुत, पंचसया सेलगजी || एक हजारसुं शुक परित्राजक, पाम्या पद अविचलजी ॥ भवि० ॥ ९ ॥ अतित चोवीसीना चोवीसमा प्रभु, तेहना गणधर वंदो ॥ कदबं नाम एक कोडी, सिद्ध थया सुखकंदो ॥ ॥ भवि० ॥ १० ॥ एक हजारने आठ संघाते, बाहुबलि मुनि मोटा ॥ त्रण कोडी जयराम ऋषीश्वर, सिद्ध थया नहीं खोटा ॥ भवि० ॥ ११ ॥ अंधक विष्णुपिता मा धारिणी, तेह तथा दश पुत्र || गौतम समुद्र प्रमुख शिव पाम्या, राख्युं घरनुं सूत्र ॥ भवि० ॥ १२ ॥ वळी For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेहना आठ पुत्र वखाणो, अक्षोभ आदि कुमारा || सोल वर संजम आराधी, पाम्या भवनो पारा ॥ || भवि० || १३ || अनाधृष्टिने दारुग मुनि दोय, आत्म शक्ति समारी ॥ ऋषभ सेनादिक तीर्थकर पण, इहां वरीआ शिवनारी || भवि० || १४ || भरत वंशे राजादि घणेरा, आतम धर्मने साध्यो ॥ शुक राजन शोकागत सुणीओ, मुक्ति निलय गुण वाध्यो || भ० ॥ ॥ १५ ॥ जालि मयालिने उवयालि, देवकी खट सुत वारु | सिद्ध थया मंडुक मुनि वळी, नभतां मन होय चारु ॥ भवि० ।। १६ ।। अतीत काले सिद्धा अनंता, सीडशे वल अनंता ॥ संप्रतिकाले मोटुं तीरथ, इम भांखे भगवंता || भवि० ॥ १७ ॥ धन्य ए तीरथ मोटो महिमा, पामी पातिक जाये, क्षमाविजय जस तीरथ ध्याने, शुभ मन सिद्धि धाये ॥ मवि० ॥ १८ ॥ इति श्री सिद्धाचल स्तवन संपूर्ण ॥ || श्री सुमतिनाथ स्तवन ॥ ॥ सजनी मोरी सुमति जिनेसर सेवोरे ॥ स०॥ नरजवनो ए मेवोरे ॥ स० ॥ सारंगपुर शणगाररे ॥ स० ॥ आपे भवनो पाररे ॥ स० ॥ विनतडी अव १७ For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २५८ धारोरे ॥ स०॥ निज आतमने तारोरे ॥ १॥ स०॥ भोग कर्म क्षय जाणीरे ॥स०॥ परण्या संजम राणीरे ॥ स०॥ पुदगल अनुभव छोडयोरे ॥ स०॥ करमशं झघडो मांड्योरे ॥२॥ स० ॥ संवर कोट श्रीकाररे ॥ स० ॥ चोकी भावना बाररे ॥ स० ॥ धीरज ढाल पर सिद्धरे, क्षमा खडग कर लीधरे ॥३॥ स०॥ शियल सन्नाह धरी धीररे ।। स० ॥ तप तिरकस भरी तीररे । स०॥ ज्ञानना गोला चलावीरे ॥स०॥ध्यान अनल सलगावीरे ॥ ४ ॥ स०॥ मोह रायने मार्योरे ॥ स०॥ निज आतमने तार्योरे ॥स०॥ करम कटक सवि भाग्युरे । स० ॥ जीत नगारुं वाग्युरे ॥५॥स०॥ केवल कमला वरियारे ॥ स० ॥ ज्ञानादिक गुण दरिआरे ॥ स०॥ आतम सुखना भोगीरे ॥२०॥ पुदगल जाव वियोगीरे ॥ ६॥ स० ॥ सुमति जिन सुमति आपेरे ॥ स०॥ आप समोवड थापेरे ॥ स०॥ ए सम अवरन कोइरे ॥स॥ त्रण भुवनमां जोइरे ॥७ाल०॥ आप थया शिव गामीरे ॥ स० ॥ करमणुं करशे हरामीरे ॥ स०॥ सादि अनंते भागेरे ॥ स०॥ ए पद For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुण न मागेरे ॥ ७ ॥ स० ॥ शुं विषया रस राचोरे ॥ स०॥ भवसुख जाणो काचोरे ॥ स०॥ घरनो धंधो छोडोरे ॥स०॥ धर्मशुं ममता जोडोरे ॥९॥स०॥ मणि उद्योत प्रभु पामीरे ॥ स०॥ किम थाये विषयारामीरे ॥ स० ॥ कुण पीये खाटी छाशरे ॥ स० ॥ मुकी अमृत सुवासरे ॥ १० ॥ इति श्री सुमतिनाथ स्तवन ॥ ॥ श्री नवकारनो रास ॥ ॥ सरसती स्वामिनी यो मुज माय तो, गौतम गणधर लागुजी पाय तो ॥ ते फल जाणजो श्री नवकार तो, रास भए॒ श्री नवकारनो ॥१॥ पेहेला लीजे श्री अरिहंतनुं नाम तो, साधु सर्वने करुं प्रणाम तो ॥ सदगुरु वाणी तुमे सांभलो, भुल्या जो अक्षर लीखज्यो जीगमतो ॥ चौद पूर्व पेहेलां कह्यां, ते पछी पुरशे मन तणी आश तो ॥ ते० ॥ रा०॥२॥ एणे मंत्रे बांध्यो बीज आकाश तो, अमावास्या पुनिम कह॥ वृक्ष उपामी चलावियो साथे तो, विचे वाघ वासो वसे, डाकणी साकगी लागेजी पाय तो ॥ ते०॥ For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० ॥ रा० ॥ ३ ॥ मंत्र मांहि कीधो वर्डोरे नवकार तो, गुणतां आणंदजी लागे पाय तो ।। ए रत्नरुप ए निरमां, कर्म रहित थया मोक्ष द्वार तो ||०||रा०॥४॥ सुरनर नारी तुम सांभळो वात तो, गाता पुरशे मन तणी आश तो ॥ ध्यायतां सर्व संकट टळी जाय तो ॥ वैरी विरोध दुर टळे, सुगुणीनो पिता मुक्तिनो साथ तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ ५ ॥ एहनो एक अक्षर संभारे तो, पाप खपावे सागर सात तो ॥ पुरे पद आगल कहुं दुरित हरे, सागर पचास तो ॥ पांचसे पूर्णता लहु, वही उपघान भणे नवकार तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ ॥ ६ ॥ सूत्र सिद्धांत तोहि एणे प्रकाश तो, तोहि पण एणे समो कोइ नहीं, जिनवर भाखीओ ए लेला तो ॥ साधु श्रावक एम जपिया || मोक्षनुं कारण लहुं भव पार तो ॥०॥०॥७॥ शाश्वता पद ए जगमां जाणतो, तोही पण एणे समें कोइ नहीं ॥ एक शियल बीजो नवकार तो || ते० ॥ रा० ॥ ८ ॥ केरमा चारतो. बोले वेसतो, नदी जल उलट आविया शेठ तो ॥ बालक साथे चलावियो नावतो, तेणे For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ समर्यो मनमां नवकारतो || नदी जल फाटी हुइरे द्वार तो ॥ ० ॥ ० ॥ ९ ॥ एहना मांहे सुरतरु रंगे तो, रंग फाटे फीटे नहीं || गायंता ततक्षण सहु परि० वार तो ॥ अवरमा कोइ सांसो नहीं ॥ कोहे वणारसी कुने पसाय तो || ते० ॥ रा० ॥ १० ॥ रत्न जडित गले पेहेरीयो हार तो, तप तणी मुद्रिका जलइले || खेमा तो खटकण राखीयो हार तो, पंचमी गतिनो एह दातार तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ ११ ॥ रत्नमूलानो हाथ परिमाण तो, शियळ अनोपभ जगमां जाएं तो ॥ जे नरनारी नीर वह्यां, अनुभव सुरतरु जय जयकार तो || ते० ॥ परभव पामशे मोक्ष द्वार तो || रा० ॥ १२ ॥ कन्या घुघर तणी सांभलो वात तो, कुडी न पुरशो कोइ तणी साख्य तो ॥ थापण मोसो मत करो, गंधरपनी परे उपनो रोग तो || दुष्कृतनी परे जाणीए ॥ जीभ सडेने पडेरे वियोग तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ १३ ॥ चंपापुरी नगरीतणी सांभलो वात तो, सतीने कलंक आव्या अपरीघ तो ॥ नाम सुभद्रा जाणजो, कुडुं न भाख्यं रतिय लगार तो || ते० रा० ॥ १४ ॥ जितशत्रु For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा पालशे राज्य तो॥ दीन दीन एक एक बीजोरु खाय तो ॥ जीभ तणे रसे इंद्रीए चोरतो, एह बीजोरे राखीओ हारतो ॥ ते०॥ रा०॥१५॥एक दिने चिठी आवी जिनदास तो, राये बोलावी आपण पास तो ॥ उठो शेठजी बीजोरु लावज्यो, शेठने उठतां लागी छे वार तो, तेणे समयों मनमा नवकार तो॥ देवता उठीने लाग्योजी पाय तो ॥ ते०॥रा० ॥ १६ ॥ एक पूरवतणी सांभलो वात तो, राजाने खोळे विशम्यो रास तों, लोक मांहि महिमा घणो ॥ अनुभव सुरतरु जय जय कारतो ।। परभव पामशो मोक्षद्वार तो ॥ ॥ते॥रा०॥१७॥पोतनपुरतणी सांभलो वात तो, मदन नामे एक श्रावक सारतो, तेहनी बेटी छे श्री. मति, परणी छे मिथ्याविने घेर तो, धर्म उपर द्वेष छे घणो, तेणे राखीयो घडामाहि सापतो, नवकार प्रभावे थई फूलनी मालतो ॥१८॥ रत्नपुरी नगरे यशोभद्र राय तो, तेहनो बेटो शिवकुमार तो, सात व्यसननो सेवन हारतो, पर वचन सेवे घj, मात पिता कुटुंब सहु परिवार तो, केण न माने कोय तणुं, संकट पडे समर्या नवकार तो, फरश्याथी उठी नीक For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ २६३ ब्यो बहार तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ १९ ॥ मथुरा नगरी तणी सांभळो वात तो, अधिक चोर वसे ते माहि तो ॥ खातर पाडी धन लावे घj ॥ मथुरां नगरी तणो कहुं अवदात तो ॥ कुलवंती वेश्याए मांड्यो वाद तो । त० ॥ रा० ॥ २० ॥ हार पड्यो चोर झा. लीओ एक तो, ते लेई नांख्यो केरडानी पास तो ॥ शुली उपरे जो रोपीओ, पाणीनी तृषा लागी अपार तो ॥ हाथ साने जल मागीओ ॥ त०॥रा०॥२१॥ राजाने भये कोय पाणी न पायतो, जिनदास शेठे एम का, पाणी लावू त्यां लगी गणे नवकार तो ॥ तिणे समयों मनमां नवकार तो, तेह मरी थयो यक्ष कुमार तो ॥ शत्रुजयेशा निद्यत्ते करे ॥त०॥रा०॥२२॥ चारुदत्त नामे शेठनो पुत्र तो ॥ वेश्याने संगे हार्यो वित्ततो, द्रव्य उपरे उद्यम करे, अनुक्रमे आव्यो दरीआनी तीरतो ॥ काउसग्ग अणसण उचरे, सुणी नवकारने गयो देव लोक तो, देवता आवीने करे प्रणाम तो त० ॥रा० ॥ २३॥ चंद्रावती नगरी मनोहार तो, वीरधवल राजा करे राज्य तो॥बेटी मलया For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha २६४ सुंदरी कर्म वशे गई देश नेपाल तो ॥ दुख सह्यां कीधां अपार तो, पंखी थकी जलधर पडे, तीहां समयों मनमांही नवकार तो ॥ जलधर तरी उतर्या पारतो ॥ ते॥रा०॥२४॥ फोफलपुर नगरी जस दीप मोजार तो, दमण सागर ऋषि रह्या चोमासु तो ॥ त्यां बेसी बेहु शीख्या नवकार तो, राजकुमार रत्नावली, चारित्र पाली गया मोक्ष दुवार तो॥ते॥ ॥रा० ॥ २५॥ त्रिभुवनमा हुओ जयजय कार तो, तेफल जाण ज्यो श्रीनवकार तो ॥ रास नवका. रनो रास भणुं श्रीअरिहंतनो ॥ रास भणुं श्री गौतम स्वामीनो, रास भणुं सर्व साधुनो ॥ ते फल जाणज्यो श्री नवकार तो, रास भणुं श्री नवकारनो ॥ ते॥ ॥रा०॥ २६ ॥ संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचल स्तबन ॥ ॥ हरणी जव चरे लालनां ॥ ए देशी ॥ ॥ कर जोडी कहे कामिनी ललना, लालाहो प्रीतमजी अवधार, एह गिरिवरु रे ललना ॥ सफल करो लही आपणो ललना, लालाहो मानवनो अब For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २६५ तार ॥ एह गिरि० ॥१॥ नव लखो टीलोस्युं करु ललना, लाला होशे जवाली जोडावे ॥ एह० ॥ सुनंदानो नाहलो ल० लालाहो त्रिभुवन तिलक भेटावी, ॥ एह० ॥ २ ॥ ऋषभ सेनादिक जिनवरा ललना, लालाहो मुक्ति गया इणे ठाम ॥ एह० ॥ जिनतणी फरमी भूमिका ललना, लालाहो सिद्ध अनंतानो ठाम ॥ एह० ॥ ३॥ इणी चोवीशी सिद्धाचले ललना, लालाहो नेमि विना त्रेवीस ॥ एह० ॥ भावी चोवीशी आवशे ललनां, लालाहो पद्मनाभादि जिनेश, ॥ ॥ एह० ॥ ४ ॥ आदि जिणंद समोसर्या ललना, लालाहो पूर्व नवाणुं वार, ॥ एह०॥ चोमासुं अजित जिनेश्वर ललना, लालाहो शान्ति चोमासुं सार ॥ ॥ एह० ॥५॥ पांच कोमि परिवारशूललना, लालाहो ऋषभसेना पुंडरीक ॥ एह. ॥ चैत्री पुनमे शिव संपदा ललना, लालाहो पांमी थया नीरभीक, ॥ एह० ॥ ६ ॥ कार्तिक पुनम कामित वर्या ललनां, लालाहो प्राविम वरिषेण दोय ॥ एह०॥ दस कोडि मुनि महंतशुं ललनां, लालाहो प्रणमी पातक धोय ॥ एह० ॥ For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ || ७ || नेमि विनमि विद्याधरा ललना, लाला हो बे कोडी साधु संगाते || एह० ॥ फागण सुदी दशमी शमी ललना, लाला हो कीधो कर्मनो घात, ॥ ८ ॥ ऋषभ वंश नरपति घणां ललना, लाला हो भरत अंगज केई पाट, ॥ एह० ॥ सिद्धक्षेत्र श्रेणि चढी ललना, लाला हो रोप्या धर्मना घाट | एह० ॥ ९ ॥ नारद एकां लाखशुं ललना, लाला हो राम भरत त्रण कोटी ॥ एह० ॥ वीश कोटिशुं पांगवा ललना, लाला हो देवकी सुत घट कोटि ॥ एह० ॥ १० ॥ हरिनंदन दोय वंदिई ललना, लाला हो श्याम प्रद्युम्न कुमार, || एह० ॥ साढी आठ कोडि साथै थया ललना, लाला हो शिव सुंदरी नरथार, ॥ ६० ॥११॥ थावच्या सुत संयमी ललना, लाला हो सहसशुं स लीध, ॥ ० ॥ नेमी सिस नंदिषेणजी ललना, लाला हो अजित शान्ति स्तव कीध ॥ एह० ॥ १२ ॥ सुव्रत सहस मुणिंद शुं ललना, लाला हो शुक परिब्राजक सिद्ध || ० || पंचसया सेलकसूरि ललना, लाला हो मंडुक मुणिसुप्रसिद्ध ॥० ॥ १३ ॥ सिद्धा J 2 For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७ चल विमलगिरि ललनां, लाल हो मुक्ति निलय सिद्ध ठाम ॥ एह० ॥ शत्रुजय आदि जेहनां ललना, लाला हो उत्तम एकवीस नाम ॥ एह०॥१४॥ भवसायर तरीए जिणे ललना, लाला हो तीरथ तेह कहाय ॥ एह० ॥ कारण सकल सफल होय ललना, लाला हो आतम वीर्य सहाय, ॥ एह ॥ १५॥ कीर्तिस्थंन ए जैननो ललना, लालाहो शिवमंदिर सोपान एह. क्षमाविजय गुरुथी लही ललना, लाला हो सेवक जिनधरे ध्यान ॥ एह० ॥ १६ ॥ इति श्री सिकाचल स्तवनम् ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचल स्तवनम् ॥ ॥जीरे मारे श्री सिद्धाचल तीर्थ, शास्वतुंप्रायः जाणीये ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे नाभिनरेश्वर नन्द, ऋषभ जिणंद वखाणीये ॥ जीरे जी॥ जीरे मारे पूर्वनवाणुं वार, गिरि दर्शनने आवीया ॥ जीरे जी॥ जीरे मारे आद्य आठमथी जाण, फागण सुदी मन भावीया ॥ जीरे जी ॥१॥ जीरे मारे रायण ऋषन मनोहार. ते चरणे पावन करी। जीरे जी ॥ जीरे मारे For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh २६८ हुं वन्दु त्रण काल, भावघणो मनमां धरी ॥जीरे जी॥ जीरे मारे जरतेश्वर निजनंद, पुछे प्रभु बहु मानथी ॥ जीरे जी॥ जीरे मारे तुम सरीखा जगनाथ, पूज्य कहे कुण कामथी ॥ जीरे जी ॥ २ ॥ जीरे मारे कृपावन्त भगवन्त, तीर्थ महिमा अति दाखीयो ॥जीरे जी।। जीरे मारे आठ उपर सो नाम, रस स्वाद करी चाखवो ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे सांजळी जिनवर वाण, ऋष. भसेन प्रमुख वली ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे चोरासी गणधार, तीर्थ स्थापे मन सली ॥ जीरे जी ॥ ३ ॥ जीरे मारे ऋषभसेन पुंडरीक, पुछे प्रभु चरणे नमी ॥ ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे कीहां होशे मुज सिकि, भाष्यो पूज्य केवल गमी ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे कहे केवली जिनराज, नाण निर्वाण साधशो ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे ए तीथे महा भाग्य, गुण अतिशय वाधशो ॥ जीरे जी ॥४॥ जीरे मारे पांच कोडी अणगार, फागण सुदी पूनम भली ॥ जीरे जी ॥ जीरे मारे करी संलेखन सार, चैत्र सुदी पूनम वली ॥जीरेजी ।। जीरे मारे पामी केवल नाण, अजरामर For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६९ सुख पामीया ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे सादि अनंत निवास, जन्म जरा दुःख वामीया ॥ जीरेजी ॥ ५॥ जीरे मारे द्राविड ने वारिषेण, दशकोडी मुनि परिवारशं ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे कार्तिक पुनम दिनसार, टुं वंदु भला भावशू, जीरेजी ॥ जीरे मारे विद्याधर मुनि दोय, नमि विनमि वखाणीये ॥जीरेजी ॥ जीरे मारे बे कोडी मुनि सजुत्त, अव्याबाध सुख पामीया ॥ ॥ जीरेजी ॥६॥ जीरे मारे सागरचंद मुनिराय; त्रण कोडि परिवारशं॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे सोमजय अणगार, तेर कोडि भलाभावगुं॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे दमीतारी नीसल्ल, चउद सहससुं सिद्ध थया ॥ ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे बाहुबली बलवंत, एक सहस आठशुं शिव गया ॥ जीरेजी ॥७॥ जीरे मारे पांडव पांच झुझार, वशि कोडि परिवारशुं ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे आसो पुनम दिन सार, मुक्ति वर्या भले नावसुं ॥जीरेजी ।। जीरे मारे इत्यादिक अनेक, कांकरे कांकरे सिद्ध थया ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे ए तीरथ आघार, कर्म खपावी मोक्षे गया ॥ जीरेजी॥८॥ जीरे मारे For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ર૭૦ जात्रा नवाणुं एह, जे करशे भला भावशू ॥जीरेजी॥ जीरे मारे ते तरशे संसार, न पडे भवना दावशुं॥ ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे जिन उत्तम महाराज, पाय पद्म तस नामीये ॥ जीरेजी ॥ जीरे मारे रुप विजय कविराय, शिव सुख लक्ष्मी पामीये ॥ जीरेजी ॥९॥ इतिश्री सिद्धाचलजीनुं स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री सिमंधर स्वामीनुं स्तवन ॥ ॥दोहा॥ सुण सुण सरसती भगवती, ताहारी जग विख्यात ॥ कविजननी किर्ति वधे, तिम तुं करजे मात ॥१॥ मंधर स्वामी महाविदेहमां, बेठा करे वखाण ॥ वंदना माहरी तिहां जई, केहज्यो चंदा भांण ॥२॥ मुझ हायडुं संशय भरघु, कुण आगल कहूं वात ॥ जेहसुं मांडु गोठडि, ते मुझ न मिले धात ॥३॥ जाणुं आq तुम कने, विषम वाट पंथ दूर ॥ डुंगरने दरीया घणा, विचे नदी वहे पूर ॥४॥ ते माटे इंहा कण रही, जे जे करुं विलाप || ते तुमे प्रभुजी सांभळी, अवगुण करज्यो माफ ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ ॥ ढोल पहेली ॥ कपूर होये अति उजलोरे ॥ ए देशी ॥ । भरत क्षेत्रना मानवीरे, ज्ञानि विण मुंझाय॥ तिण कारण तुमने सहरे, प्रभुजी मनमां चाहे रे ॥ स्वामी आवो आणे क्षेत्र ॥ जो तुम दरीसण देखीयेरे, तो निर्मल कीजे नेत्र रे ॥ स्वामी आवो आणे क्षेत्र ॥१॥ए आंकणी ॥ गाडरीयो परीवार मिल्यो रे, घणा करे ते खास ॥ परिक्षावंत थोडा हुआरे, श्रद्धानो विसवासरे ॥ स्वामी० ॥ २ ॥ धरमीनी हांसी करे रे, पद विहूणो सिदाय ॥ लोभ घणो जगे व्यापीयोरे। तेणे साचो नवि थाय रे ॥ स्वामी० ॥३॥ सामाचारी जुजुई रे, सहू कहे माहरो धर्म ॥ खोटो खरो केम जाणीये रे, ते कुण भांजे भरमरे ॥ स्वामी ॥४॥ ॥ ढाल बीजी ॥ राग रामगीरी ॥ क्रीडा करी घरे आवीयो ॥ ॥ ए देशी ॥ ॥ वीरजी ज्यारे विचरंता. ताहरे वरतती शांति रे॥ जे जन आवीने पलता, तस मन भांजती भ्रांतीरे ॥ १॥ है है ज्ञानीनो विरहो पड्यो ॥ ते तो दहे मुझ दुःखरे ॥ स्वामी सीमंधर तुज विना, ते तो For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २७२ कुण करे सुख रे ॥ हैहै ॥२॥ भुला भमेरे वाडोलीए, जिहां केवली नाहि रे ॥ विरहणीने रयणी जीसी, तेसी मुज घडी जायरे ॥ है० ॥ ३ ॥ वात मस्खे नव नवी सांभलि, पण निरति नवि थाय रे ॥ जे जे दुर्भागिया जीवडा, ते तो अवतरया आंही रे ॥ है ॥ ४ ॥ धन माहाविदेहना मानवी, जिहां जीनजी आरोग्य रे ॥ नाण दंसण चरण आदरे, संयम लीये गुरु योग रे ॥ है ॥५॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ वैरागी थयो ॥ ए देशी ॥ मंधर स्वामी माहरारे, तुं गुरुने तुं देव ॥ तुझ विण अवर न ओलखु रे, न कहें अवरनी सेवरे ॥१॥ अहिया कणे आवजो ॥ वली चतुर विध संघरे, साथे लावज्यो ॥ ए आंकणी ॥ ते संघ किम कीरीया करे रे. किणीपेरे ध्याये ध्यान ॥वत पञ्चख्खाण किम आदरे रे, किणी परे दीये दांन रे॥ ॥ अहि० ॥ २ ॥ इहां उचित किरती घj रे, अनुकंपा लवलेस ।। अजय सुपात्र अलोप हुआ रे, एहवा जरतमा देशरे ॥ अही० ॥३॥निश्चय सरसव जेटलो For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૭ .:२० रे, बहू चाल्यो व्यवहार ॥ अभ्यंतर विरला हुआरे, झाझो बाह्य आचारो रे ।। अहीया० ॥ ४॥ ॥ ढाल चोथी ॥ धन धन संप्रती साचो राजा ॥ ९ देशी ॥ ॥श्री मंधर तुं माहरो साहेब, हूं सेवक तुज दास रे ॥ भमी नमी भव करी करी थाको, हवे आपो शिवराज रे ॥ श्री मंध० ॥ १॥ इण वाटे वटे मारगु नावे, नावे कासीद कोइ रे ॥ कागल कुण साथे पोहचाकुं, हूं मुंझयो तुझ मोहे रे ॥ श्री मंध० ॥ २ ॥ च्यार कषाय घटमां रह्या व्यापी, रातो इंद्रीय रसेरे। मद पिण कोको किहारे व्यापे, मन नावे मुझ वस रे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ तृष्णानु दूख होत नहीं मुजने, होत संतोषनुं ध्यान रे ॥ तो हूं ध्यान धरत प्रभु ताहारो, थिर करी राखत मन्न रे ॥ श्री ॥ ४ ॥ निवम परिणामे गोठडि बांधी, ते छटे कीम स्वामी रे ॥ ते हुन्नर तुझमां के प्रभुजी, आवो अमारे कने रे ॥ ॥श्री०॥५॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ आदि जिणेसर विनवं ॥ ए देशी । ॥श्री मंधर जिन एम कहे, पूछे तिहानां लो १८ For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २७४ करे ॥ भरतखेत्रनी वारता, सांभळे सुरनर थोकरे ॥ ॥ श्रीमं० ॥१॥ त्रीजो आरो बेठा पछे, जासे केटलो काळरे ।। पद्मनाभ जिनजी तव होसे. ज्ञानी झाक झमाल रे॥ श्री० ॥२॥ छठे आरे जे होसे, ते प्राणीना पापरे ॥ शाता नहि एके घडी, रविनो झाझो तापरे॥ ॥ श्री० ॥ ३ ॥ ओछा आयु माणस तणा, मोटा देवना आयरे ॥ सुख भोगवतां स्वर्गना, सागर पलिया जायरे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ सरागीने एम कहे, तुमे तारो भगवंत रे ॥ आप्याथी आपेतरे, एम सुंणज्यो सहु संतरे॥ श्री मं०॥५॥ ॥ ढाल ॥ ६ ॥ मेघ कुमारने एणीपरे विनवेरे ॥ ए देशी ॥ ॥ एहवी सूत्रमा जीव ते वातो सांभलीरे, कर हवे जीव विषवाद ॥जोर ते पुन्य पूर्व भवे कीधा नहीं रे, तो किहांथी पोहचे आस ॥ जिनजी कीम मिलेरे ॥ कहे भोला शुं टलवलेरे॥ ए आंकणी ॥१॥ तुं सरागी प्रभु वैरागीमां वडोरे, तो केम तेडावे प्रभु त्यांही ॥ गुण देखी तुज उपर करुणा करेरे, किम आवे प्रभु आंही ॥ जिन० ॥ २ ॥ चोल मजिठ स For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ रीखो जिनजी साहिबोरे, हूंतो गलीनो रंग ॥ कटका काच तणो मुल मुझमां नहीरे, प्रभुतो नगिनो नंग ॥ जि. ॥३॥ भमर सरीखो भोगी श्री भगवंतजीरे, हूंतो माखी तोल ॥ सरीखा सरीखे विण किम बाझे गोठडीरे, हृदय विचारी बोल ॥ जिन० ॥ ४ ॥ कर्म सरीखो लपटाणो तुहि जिहां लगेरे, तिहां लगे तुझने कास ॥ समतानो गुण ज्यारे तुझमां आवसे रे, त्यारे तुं जाईस प्रभुजीने पास ॥ जिन० ॥ ५॥ ॥ ढाल ॥ ७ ॥ हभचडीनी देशी ॥ ॥ मंधर स्वामी तणी गुणमाला, जे नर भावे भणसे ॥ तस शिर वयरी कोइ न व्यापे, कर्म शत्रुने हणसेरे ॥ हमचमी ॥ १॥ हमचडी मारी हेलरे, श्री मंधर मोहन वेल ॥ सत्यकी राणीनो नंदन निरखी, सुख संपतीनी गेलरे ॥ हम० ॥२॥ मंधरस्वामी तणी गुणमाला, जे नारि नित गणसे ॥ सति सोहागण पिहर पसरी, पुत्र सुलक्षणा जणसेरे । हम० ॥३॥ मंधर स्वामी शिवपूर गामी, कविता कहे शिरनामी ॥ वंदना माहरी हृदयमा धारी, धर्मलाभ · यो स्वामीरे For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ ॥ हम० ॥ ४ ॥ श्री तपगच्छनो नायक सुंदर, श्री विजय देव पटोधारि॥ किर्ति जेहनी जगमाहे झाझी, बोले नरने नारीरे ॥ हम० ॥५॥ श्रीगुरु वयण सुणी बुद्धी सारु, श्री मंधरजिन गायो ॥ संतोषि कहे देवगुरु धर्म, पुरव पुन्ये पायोरे ॥ हमचडी ॥ ६ ॥ इति श्री मंधर स्वामीनो स्तवन संपुर्ण ॥ ॥ अथ श्री वीर स्तुतिरुप हंडिनुं स्तवन ।। ढाल १ ली. (ए छिंडी किहां राखी. ए देशी) ॥प्रणमी श्री गुरुना पयपंकज, थुणस्युं वीर जिणंद ॥ ठवण निक्षेप प्रमाण पंचांगी, परखी लहं आणंद रे ॥१॥ जिनजी ॥तुज आणा शिर वहीए॥ तुज शासन नय शुद्ध प्ररुपण, गुणी शिवसुख लहीए रे॥ जिनजी ॥ तु०॥ ए आंकणी॥श्री अनुयोगदुवारे भांख्या, च्यार निक्षेपा सार ॥ च्यार सत्य दश सत्या भाख्या, ठाणांगें निरधार रे ॥२॥ जि० ॥ जास ध्यान कीरिया मांहि आवे, तेह सत्य करी जाणुं ॥ श्री आवश्यक सूत्र प्रमाणे, विगते तेह वखाणुंरे ॥३॥जि०॥ चऊविसथ्थय मांहि निक्षेपा, नाम द्रव्य दोय भाई ॥ For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७७ काउसग्ग आलावें ठवणा, जाव ते सघलें लावुं रे ॥ ॥ ४ ॥ ज० ॥ पुस्तक लिखित सकल जिम आगम, तिम आवश्यक एह || भगवई नंदी साखे सम्मत, तेहमां नहिं संदेह रे ॥ ५ ॥ जि० ॥ सूत्र आवश्यक जे घर घरनुं, कहेशे ते अज्ञानी || पुस्तक अरथ परंपर आव्युं, माने तेहज ज्ञानी रे ॥ ६ ॥ जि० ॥ बंभी लिपी श्री गणधर देवें, प्रणमी जगवई आदें ॥ ज्ञान तणी ते ठवणा अथवा, द्रव्यश्रुत अविवादे रे ॥ ७ ॥ जि० || भेद अढार जे बंभी लिपीना, समवायांगें दीठा || शुद्ध अरथ मरडी भव बहुला, भमशे कुमती धीठा रे ॥ ८ ॥ जि० ॥ बंभी लिपी जो तेहनो करता, तो लेखक पण आवें ॥ गुरु आणा विए रथ करे जे, तेहनो बोल न भावे रे ॥ ९ ॥ जि० ॥ जिनवाणी पण द्रव्यश्रुत छे, नंदीसत्रने लेखें । जिम ते तिम बंभी लिपी नर्माए, भाव ते द्रव्य विशेषे रे ॥ १० ॥ जि० ॥ जिम अजीव संयमनुं साधन, ज्ञानादिकनुं तेम ॥ शुद्ध जाव आरोपें विधिस्युं, तेहनें सघले खेम रे ॥ ११ ॥ जि० ॥ शुद्ध भाव जेहनो छे तेहना, च्यार निक्षेपा For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ साचा । जेहमां भाव अशुद्ध छे तेहना, एक काचें सवि काचा रे ॥ १२ ॥ जि०॥ दशवैकालिके दूषण दाख्यु, नारी चित्रने ठामे ॥ तो किम जिनप्रतिमा देखीने, गुण नवि होय परिणामे रे ॥ १३ ॥ जि०॥ रुचकद्वीपें एक डगले जातां, पडिमा नमीय आणंदे॥ आवतां एक डगले नंदीसरे, बीजें इहां जिन वंदे रे ॥ १४ ॥ जि० ॥त्री गतिए भगवई भाखी, जंघा. चारण केरी ॥ पंडग वन नंदन इहां पमिमा, ऊर्ध्व नमें घणेरी रे ॥ १५ ॥ जि० ॥ विद्याचारण ते एक डगले, मानुषोत्तरे जाय ॥ बीजे नंदीश्वर जिनप्रतिमा, प्रणमी प्रमुदित थाये रे ॥ १६ ॥ जि० ॥ तिहांथि पडिमा वंदण कारण, एक डगले इहां आवे॥ अर्ध्वपणे जातां बिहुं डगलां, आवतां एक स्वभावें रे ॥१७॥ जि०॥ शतक वीसमें नवमें ऊद्देशे, प्रतिमा मुनिवर वंदी ॥ एम देखी जे अवला भांजे, तस मति कुमति फंदी रे ॥ १८॥ जि.॥ आलोअणY ठाण कर्तुं जे, ते प्रमाद गति केरो॥ तीर गति जे यात्र विचालें, रहतो खेद घणेरो रे ॥ १९ ॥ जि०॥ करी गोचरी जिम For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan २७९ आलोवे, दश वेकालिक साखे ॥ तिम ए ठाम प्रमाद आलोयें, नहीं दोष ते पाखें रे ॥२०॥ जि० ॥ कहें कोइ ए कहेंवा मात्रज, कोइ न गयो नवि जास्ये ॥ नहीं तो लवणशिखा मांहि जातां, किम आराधक थास्ये रे ॥ २१ ॥ जि०॥ सत्तर सहस जोयण जइ उंचा, चारण त्रीर्जा चाले ॥ समवायांगे प्रगट पाठ ए, स्युं कुमती भ्रम घाले रे ॥ २२ ॥ जि०॥ चैत्य शब्दनो ज्ञान अर्थ ते, कहो करवो कुण हेते ॥ ज्ञान एकने चैत्य घणां छे, भुलें जम संकेते रे ॥ २३ ॥ जि०॥ रुचकादिकनां चैत्य नम्यां ते, सासय पडिमा कहीए॥ जेह इहांनां तेह अशाश्वत, बिहुमां भेद न लहीए रे ॥२४॥ जि० ॥ जेह उपर साहिब तुज करुणा, शुद्ध अरथ ते भांखे । तुज आगमनो शुद्ध प्ररूपक, सुजश अमीयरस चाखे रे ॥२५॥जि०॥ ॥ ढाल २ जी ॥ महाविदेह क्षेत्र सोहाणु ॥ ए देशी ॥ ॥ तुज आणा भुझ मन वशी, जिहां जिनप्रतिमा सुविचार लाल रे।। रायपसेणी सुत्रमां, सुरिआभ तणो अधिकार ॥ला०॥ १॥ तु०॥ ते सुर अभिनव For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० . उपनो; पुछे सामानिक देव ॥ ला०॥ स्यु मुझ पुरवने पछे; हितकारी कहो ततखेव ॥ ला० ॥२॥ ॥ तु०॥ ते कहे एह विमानमां; जिणपडिमा डाढा जेह ॥ ला० ॥ तेहनी तुम्हे पूजा करो, पुरव पच्छाहित एह ला ॥ ३॥ तु०॥ पूरव पच्छा शब्दथी; नित्य करणी जाणीए सोइ ॥ ला०॥ समकितदृष्टि सदृहे, ते द्रव्य थकी किम होय ॥ ला० ॥ ४ ॥तु०॥ द्रव्य थकी जे पुजीया, प्रहरण कोशादि अनेक ॥ला०|| तेहथी बिहुं जुदा कह्या, ए तो साचो भाव विवेक ॥ ला०॥५॥ तु० ॥ चक्ररयण जिण नाणनी, पूजा जे भरते कीध ॥ ला०। जिम तिहा तिम अंतर इहां, समकित दृष्टि सुप्रसीद्ध ॥ ला० ॥६॥तु० ॥ पहेलो भव पुरव कहे, ज्ञाता दहर संबंध ॥ ला० ॥ पच्छाकमुअ विषय कह्या, वली मृगापुत्र प्रबंध ॥ला०॥७॥ ॥तु०॥ आगमे सिभद्वा कह्या, गई ठिइ कहाणी देव ॥ला०॥ तस पुरव पच्छा कहे, त्रिहुं काले हित जिन सेव ॥ ला०॥८॥तु०॥ जस पुरव पच्छा नहि, मध्ये पण तस संदेह ॥ ला० ॥ एम पहले अंगे का, छे ' t For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ ' सुधो अरथ ते एह || ला ० ॥ ९ ॥ तु० ॥ पच्छा पेच्चा शब्दनों, जे फेर कहे तु दुट्ट || ला || शब्द तणी रचना घणी, पण अरथ एक छे पुठ || ला०|| १० ॥ तु०॥ वांची पुस्तक रत्ननां, हवे लेइ धर्म व्यवसाय ॥ ला०॥ सिद्धायतने ते गयो, जिहां देवच्छंदानो ठाय ॥ ला०॥ || ११||०|| जिनप्रतिमा देखी करी, करे शिर प्रणाम शुभ बीज || ला० ॥ पुप्फ माल्य चूर्णे करी, वस्त्राभरणे वली पूज ॥ ला० ॥ १२ ॥ तु० || फूल पगर आगे करी, आलेखे मंगल आठ ॥ ला० ॥ धुप देइ काव्य स्तवी, करे शक्रस्तवनो पाठ ॥ ला० ॥ १३ ॥० ॥ जेहना स्वमुखे जिन कहे, भव सिद्धि प्रमुख ब बोल ||ला० ॥ तास भगति जिनपूजना, नवि माने तेह निटोल || ला० ॥ १४ ॥ तु० || प्रभु आगल नाटक करयो; भगते सुर्याभे सार || ला०॥ भगति तणां फल शुभ कह्यां, श्री उत्तराध्ययन मझार ॥ ला० ॥ १५ ॥ ॥ ० ॥ अंग उपांगे घणें कही, एम देव देवीनी भक्ति ॥०॥ आराधकता तिणे थइ, इहां तामली इंद्रन । युक्ति ॥ ला० ॥ १६ ॥ तु० ॥ भक्ति जीतधर्मे For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર૮૨ करी, लीए दाढा अवर जिन अंग ॥ ला०॥ शुभ रचे सुर त्रिण ते, कहे जंबपन्नत्ती चंग॥ ला०॥१७॥तु०॥ शतक दशमे अंग पंचमे, उद्देशे छठे इंद ॥ला०॥ दाढ तणी आशातना, टाले ते विनय अमंद॥ ला०॥ ॥१८॥तु०॥ समकितदृष्टि सुरतणी, आशातना करस्ये जेह ॥ला० ॥ दुर्लभबोधि ते थस्ये, ठाणांगें भाख्यु एह ॥ ला० ॥ १९ ॥ तु० ॥ तेहने यश बोले का, वली सुल्लभबोधिता थाय । ला० ॥ तिणे पूजादिक तेहनां, करणी शिवहेतु कहाय ॥ला० ॥ २० ॥तु०॥ तप संयम सुरतरु सम कह्यां, फल सम ते सुर शिवशर्म ॥ ला० ॥ सुर करणी माने नही, तेणे नवि जाण्यो मर्म ॥ ला० ॥ २१ ॥ तु०॥ दशवैकालिके नर थकी, सुर अधिक विवेक जणाय ॥ ला० ॥ द्रव्यस्तव तो तेणे करयां, माने तस सुजस गवाय ॥ ला० ॥ २२ ॥ तु०॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ ऋषभनो वंश रयणायरू ॥ ए देशी ॥ ॥ शासन ताहरू अति जर्बु, जग नहि कोय तस सरिखं रे ॥ तिम तिम राग वधे घणो, For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ जिम जिम जुगति सु परखं रे ॥१॥शा०॥ अरिहंतने वली तेहनां, चैत्य नमुं अनेरां रे ॥ अंबड ने तस शिष्यनां, वचन उववाई घणेरां रे ॥शा० ॥२॥ चैत्य शब्द तणो अरथ ते, प्रतिमा नहि कोई बीजो रे ॥ जेह देखी गुण चिंतीए, तेहज चैत्य पती जो रे ॥शा० ॥ ३॥ एमज आला वे आणंदने, जिनपडिमा नति दीसे रे ॥ सप्तम अंगना अर्थथी, ते नमतां मन हीसे रे ॥ शा० ॥ ४ ॥ परतीरथी सुर तेहनी, प्रतिमानी नति वारी रे ॥ तिणे मुनी जिनप्रतिमा तणी, वंदन नति निरधारी रे ॥शा०॥ ५॥ परतीर्थी ए जे परिग्रह्यां, मुनी ते पण परतीच्छी रे॥ त्रिण शरण मांहि चैत्य ते, लही प्रतिमा शिव अच्छी रे ॥शा०॥ ॥६॥ दान किस्युं प्रतिमा प्रते, एम कहे जे छल हेरी रे ॥ उत्तर तास संभव तणी, शैली छे सूत्र केरी रे ॥ शा० ॥ ७ ॥ दश विध बहुविध जिम कह्यां, वैयावच्च जहा जोगे रे ॥ दशमे ते अंगे तथा इहां, जोडे नय उपयोगे रे ॥ शा०॥ ८॥ साधुने जिनपडिमा तणुं, वैयावच्च तिहां बोल्युं रे॥ तेह अरथ For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ थकी कुमतिर्नु, हैमुं कांइ न खोल्युं रे ॥ शा० ॥९॥ संघ तणी जिम थापना, वैयावच्च जस वादो रे ॥ जाणिए जिनपडिमा तणुं, तिम इहां कवण विवादो रे ॥ शा० ॥ १० ॥ एम सवि श्रावक साधुने, वंदननो अधिकारो रे ॥ सुत्रे कह्यो पडिमा तणो, हवे कहुं पूजा विचारोरे । शा० ॥११॥याग अनेक करया कह्या, श्री सिझारथ राजे रे ॥ ते जिनपुजन कल्पमां, पशुना याग न छाजे रे ॥ शा०॥ १२ ॥ श्रीजिन पासने तीरथे, श्रमणोपासक तेहो रे ॥ प्रथम अंगे कडं तेहने, श्री जिनपूजानो नेहो रे॥ शा० ॥१३॥ श्रेणिक महाबल प्रमुखना, एम अधिकार अनेको रे ॥ छठे अंगे वली द्रौपदी, पुजा प्रगट विवेको रे ॥शा॥१४॥ नारद देखीने नवि थई, उभी तेह सुजाण रे ॥ जा. णिए तेणे ते श्राविका, अक्षर एह प्रमाण रे । शा० ॥ १५॥ आंबिल अंतर छठनो, उपसर्गे तप कीधो रे ॥ किम नवि कहिए ते श्राविका, धरमे कारज सीधो रे। शा० ॥ १६ ॥ रायकन्या कही श्राविका, न कही एम जे भूले रे ॥ राजीमति कही तेहवा, एम For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ संदेहे ते झुले रे ॥ शा० ॥ १७ ॥ हरि परे कर्म नियाणनो, इह भवे भोग न नासे रे ॥ समकित लहे परण्या पछी, कहे ते स्युं न विमासे रे ॥ शा० ॥१८॥ जिणधर केणे कराविडं, तिहां प्रतिमानी पइठा रे ॥ तेहनी पुजा ते कुण करे, एम परखे तेह गरीग रे ॥शा०॥ १९ ॥वर नवि माग्यो छे पूजतां, शक्रस्तवे शिव मागे रे ॥ जक्ति भणी सूरियाभने, विरति वि. शेषथी जागे रे ॥शा० ॥२०॥ धर्म विनय अरिहंतनो, एम ए लोगुवयारो रे॥ सर्वने संभव जाणिए, समकित शुद्ध आचारो रे ॥शा० ॥२१ ॥ आणंदनो विधि नवि कह्यो, राय प्रदेशीने पाठे रे ॥ संभव सर्व न मानस्ये, विंटास्ये तेह आठे रे । शा० ॥२२॥ पडिकमणादिक क्रम नही, पाठे सप्तम अंगे रे ॥ पमिकमणुं ओपथी प्रकरणे, सर्व कह्यो विधि रंगे रे ॥ ॥शा० ॥ २३ ॥ किहांएक एक देशज आहे, किहां एक ग्रहे ते अशेषो रे ॥ किहांएक क्रम उत्क्रम कहे, ए श्रुत शैली विशेषो रे ॥ शा० ॥ २४ ॥ शासननी जे प्रभावना, ते समकितनो आचारो रे ॥ श्री जिनपूजा जे करे, ते लहे सुजश भंडारो रे ॥शा॥२५॥ For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ ॥ ढाल ४ थो ॥ झांझरीयानी देशी ॥ ॥ कोइ कहे जिन पुजतां जी, जे षटकाय आरंभ ॥ ते किम श्रावक आचरे जी, समकितमां थिर थंभ॥१॥सुखदायक तोरी, आणामुज सु प्रमाण ॥ ए आंकणीतहने कहीए यतना भगति, किरीयामां नहिं दोष ॥ पडिकमणे मुनि दान विहारे, नही तो होय तस पोष ॥ २ ॥सु०॥ साहमी वच्छल परिकय पोसह; भगवइ अंग प्रसिद्ध ॥ घर निर्वाह चरण लीए तेहना, ज्ञाता मांहि हरि कीध ॥३॥सु०॥ कोणिक राये उदायन कीधां, वंदन मह सुविवेक ॥ एहाया कयबलिकम्मा कहिया, तुगिया श्राद्ध अनेक ॥४॥ ॥सु०॥ समकित संवरनी ते किरीया, तिम जिनपूजा उदार ॥ हिंसा होय तो अरथ दंडमां, कहे नही तेंह विचार ॥ ५॥ सु० ॥ नाग भूत यक्षा दिक हेते, प्रजा हिंसा रे उत्त ॥ सुयगडांगमां ते नवि जिन हेत, वेलिए जे होय जुत ॥ ६ ॥ सु० ॥ जिहां हिंसा तिहां नहीं जिन आणा, तो किम साधु विहार ॥ कर्मबंध नही जयणा भावे, ए छे श्रुत व्यवहार ॥ ७॥सु०॥ For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८७ प्रथम बंध ने पछे निर्जरा, कूप तणो रे दिठंत ॥ कही कोई जोडे बुध नांखे, भावे ते शुचि जल तंत॥ ॥ ८॥ सु० ॥ उपादान वशे बंध कहिओ तस; हिंसा शिर उपचार ॥ पुप्फादिक आरंभ तणी एम, होय भावे परिहार ॥९॥ सु०॥ जल तरतां जल उपर मुनिने, जिम करुणानो रे रंग ॥ पुप्फादिक उपर श्रावकने, तिम पूजा मांहि वंग ॥ ।। १०॥ सु०॥ पात्रदानथी शुभ विपाक जिम; लहे सुबाहु कुमार॥ पहेले गुणठाणे भद्रक पणे; तिम जिन पूजा उदार ॥ ११ ॥ सु०॥ उपलक्षणथी जिम शीलादिक; तिम जिनपूजा लिध ॥ मनुज आयु बंधे जे सुबाहु; तेणे समकित प्रसिद्ध ॥ १२ ॥ सु० ॥ मेघ जीव गज शश अनुकंपा; दान सुबाहु विचार ।। पहेले गुणठाणे पण सुंदर; तिम जिनपूजा प्रकार ॥ १३ ॥ सु०॥ दान देवपूजादिक संघलां; द्रव्यस्तव कह्यां जेह । असदारंभी तस अधिकारी, मांडी रहे जेह गेह ॥ १४ ॥ सु० ॥ सदारंभमां गुण जाणीजे, असदारंभ निवृत्ति ॥ अरमणीयता त्यागे भाखी, ईमहिज For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar २८८ परदेशी प्रवृत्ति ॥१५॥ सु०॥ लिखित शिल्प शत गणित प्रकाश्यां, तेणे पूजा हित हेताप्रथम राय श्री ऋषभ जिणंदे, तिहां पण एह संकेत ॥१६॥सु०॥ यतनाए सत्रे कयुं मुनीने, आर्यकरम उपदेश ।परिणामिक बुधे विस्तारे, समझे श्राद्ध अशेष ॥१७॥ सु०॥आर्य कार्य श्रावकनां जे छे, तेहमां हिंसा दिठ॥ हेतु स्वरुप अनुबंध विचारे, नासे देह निज पिठ ॥१८॥सुधा हिंसा हेतु अजतना जावे, जीव वधे ते स्वरूप ॥ आणा भंग मिथ्यामति भावे, ते अनुबंध विरूप ॥१९|| सु०॥ हेतु स्वरूप न हिंसा सेवी, सेवी ते अनुबंध ॥ तो जमालि प्रमुखे फल पाम्यां, कसुआ करी बहु धंध ॥२०॥सु०॥ स्वरूपथी हिंसा नवि टले छे, समुद्रजले ते सीद्ध ॥ वलि अपवाद पदे जे वरते, तेणे पण शिवगति लीद्ध ॥ २१ ॥ सु०॥ साधु विहार परे अनुबंधे, नहि हिंसा जिनभक्ति एम जे माने तेहने वाधे, सुख जस आगम शक्ति ॥२२॥ ॥ ढाल ॥ ५ मी. ॥ माहरी सही रे समाणी. ए ॥ देशी ॥ . ॥सासय पडिमा अमसय माने, सीद्धायतन नवि माने रे ॥ धन धन जिनवाणि, प्रभु ते भांखी For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ अंग उषंगे || वर्णवस्यूं तिम रंगे रे ॥ ६० ॥ १ ॥ कंचन म करतल पद सोहे, भवी जननां मन मोहे रे ॥ ध० ॥ अंक रतनमय नख ससनेहा, लीहोताक्ष मध्य रेहा रे ॥ ६० ॥ २ ॥ गात्र दृष्टी कंचनमय सारी, नाभी ते कंचन क्यारी रे || || रीष्ट रतन रोमेराजी विराजे, चंचुक कंचन छाजे रे ॥ ६० ॥ ३ ॥ श्रीवत्स ते तपनीय विशाला, होठ ते लाल प्रबाला रे || ध० ॥ दंत फटिकमय जीभ दयालु, वलि तपनीय मयनुं तालुं रे ॥ ध० ॥ ४ ॥ कनक नासिका तिहां सुविशेषा, लोहीताक्षनी रेखा रे ॥ ध० ॥ लोही ताक्ष रेखित सुविसाला, नयन अंक रतनाला रे ॥ ६० ॥ ५ ॥ अच्छि पत्ति मुहावलि कीकि, रीष्ट रतनभय नीकी रे ॥ ध० ॥ श्रवण निलावटी गुणसाला, कंचन झाक झमाला रे ॥ ध० ॥ ६ ॥ वज्र रतनमय अतिहि सुहामणी, सीस घडी सुखखाणी रे ॥ ६० ॥ केस भुमि तपनीय नीवेसा, राष्ट रतनमय केसा रे ॥ घ० ॥ ७ ॥ पुंढे छत्र धरे प्रत्येके, प्रतिमा एक विवेके रे ॥ ६० ॥ दोय पासे दोय चामर ढाले, लीला ए जिनने उवारे रे ॥ ध० ॥ ८ ॥ ૧૯ For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० नाग भूत यक्षने कुंमधारा, आगे दोय उदारे ॥ध०॥ ते पडिमा जिनपडिमा आगे, मानु सेवा मागे ॥ध०॥ ॥ ९॥ घंट कलस भिंगार आयंसा, थाल पाइ सुपविठा रे ॥ ध० ॥ मणगुली आवाय करग प्रचंडा, चिंतारयण करमा रे ॥ध० ॥ १०॥ हय गय नर किन्नर किंपुरिसा, कंठ उरग वृष सरिखा रे ॥ ध०॥ रयण पूंज वलि फूल चंगेरी, माल्यने चूर्ण अनेरी रे ॥ध० ॥ ११ ॥ गंध वस्त्र आभरण चंगेरी, सरिसव प्रजणी केरी रे ॥ १०॥एम पुप्फादिक पडल वखाण्यां, आगे सिंहासन जाण्यां रे ॥ १०॥ १२॥ छत्र चामर आगे सुमुग्गा, तैल कुष्ट भृत जुग्गा रे॥ ध० ॥ भरीया पात्र चोयग सुविलासे, तगर एलासुचि वासे रे ॥ ५० ॥ १३ ॥ वलि हरीआलने मणसील अंजन, सवि सुगंध मनरंजन रे ॥ध०॥ ध्वजा एकसत आठ ए पूरा, साधन सर्व सनुरा रे ॥ध० ॥ १४ ॥ सूर ए पुजा साधन साये, जिनपुजा निज हाथे रे ॥ ३०॥ सिद्धायतने आप विमाने, थूभादिक बहु माने रे ॥ ॥ ध० १५ ॥ एह अपूरव दरिसण दिट्रं, सुरतरु फ For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९१ लथी मिटुं रे ॥ ३० ॥ ए संसार समुद्रने नावा; तारण तरण सहावा रे ॥धः ॥ १६ ॥ एम विस्मय भव भय गुण रागे, झीले तेह अतागे रे ॥ध ॥ राचे माचे ने वली नाचे, धर्मध्यान मन साचे रे ॥ध०॥ १७॥ थै थै करता दिए ते भमरी; हरखे प्रभु गुण समरी रे ॥ध०॥ योग निरालबंन लय आणी; वश करता शिवराणी रे ॥ ध० ॥ १८ ॥ एम नंदीश्वर प्रमुख अनेरां; शास्वत चैत्य भलेरां रे ॥ध०॥ तिहां जिन पूजी ते अनुमाने; जनम सफल निज माने रे ॥ध०॥ १९ ॥ कल्याणक अठाइ वरसी; तिथी चउमासी सरसी रे ॥ध०॥ तेह निमित्ते सुर जिन अरचे; नित्य भक्ति पिण विरचे रे ॥ ध० ॥ २०॥ भाव अखयभावे जे मिलिओ; ते नवि जाए टलिओ रे ॥३०॥ फरी त्रांबु नवि होय निषेधे; हुजो हेम रस वेधे रे ॥ ध० ॥२१॥ एके जल लवे जलधी भलाये, तो ते अक्षय थाये रे ॥ ध० ॥ आप भाव जिन गुण मांहि आणे, तिम ते अक्षय प्रमाणे रे ॥ ध० ॥ २२ ॥ अपुणरुत्त अडसय वडवृत्ते; एम सर भाबे चिंते रे ॥ध०॥ एम जिनपूजी जे गुण गावे; सुजस लील ते पावे रे ॥ध०॥२३॥ For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 ॥ ढाल ६ ठी ॥ भोलीडा हंसा रे विषय न राची ए. ॥ ए देशी ॥ ॥ समकित सुधुं रे तेहने जाणिए, जे माने तुझ आण || सूत्र ते वांचे रे जोग वही करीः करे पंचांगी प्रमाण || स० ॥ १ ॥ उद्देशादिक नहि चउ नाणना, छे सुअनाणना तेह || श्री अनुयोगद्वार थकी लही, धरी योग नेह ॥ २ ॥ स० उद्देसादिक क्रम विण जे भणे, यशातन तेह नाय || नाणा वरणी रे बांधे तेहथी, भगवई अंग प्रमाण ॥ ३ ॥ स० ॥ श्री नंदी अनुयोगदुवारमा, उत्तराध्ययने रे योग | कोल ग्रहनोरे विधि सघलो को, धरीए ते उपयोग || ४ || ॥ स० ॥ ठाणे श्रीजे रे वली दशमे कयुं, योग वहे जेह साध || आगमे सिभद्दा ते संपजे, तरे संसार अगाध ॥ ५ ॥ स० ॥ योग वहींने रे साधु श्रुत भणे, श्रावकने उपधाने ॥ तप उपधाने रे श्रुत परिग्रह कह्या, नंदीए तेह निदान ॥ ६ ॥ स० ॥ इरियादिकनां रे खट उपधान छे, तेणे आवश्यक शुद्ध ॥ गृहि सामायक आदे श्रुत भणे, दीक्षा लेइ अलुद्ध ॥ ७ ॥ स०॥ For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९३ सुत्र भण्या कोइ श्रावक नवि कह्या, लद्धठा कह्या तेह ॥ प्रथम ज्ञानने रे पछे दया कही, तिहां संयत गुण रेह ॥ ८॥ स० ॥ नवम अध्ययने रे बीजा अंगमा, घरमांहि दीव न दीठ ॥ वली अ चउदमे रे का शिक्षा लहे, ग्रंथ त्यजे ते गरीठ ॥९॥स० ॥ सप्तम अंगे रे अपढिया संवरी, दाख्या श्राफ अनेक ॥ नवि आचारधरादिक ते कह्या, मोटो एह विवेक ॥ १०॥ ॥स० ॥ उत्तराध्ययने रे कोविद जे कह्यो, श्रावक पालीक चंप ॥ ते प्रवचन निग्रंथ वचन थकी, अरथ विवेके अकंप ॥ ११ ॥ स० ॥ सुत्रे दी) रे सत्य ते साधुने, सुर नरने वली अच्छ ॥ संवरद्वारे रे बीजे एम कही, अंग दशमें समरच्छ ॥१२ ॥ स० ॥ वली विगय पमिबद्धने वाचना, श्री ठाणांगें निषिध ॥ नविय मनोरथ श्रुत भणवा तणो, श्रावकने सुप्रसिद्ध ।। १३ ॥ स० ॥ वाचना देतां रे गृहिने साधुने, पायश्चित चउमास ॥ का निशीथे रे तो स्युं एवडी, करवी हुंश निरास ॥ १४ ॥ स०॥ तजिय असज्झाइ गुरुवाचना, लेई जोग गुणवंत ॥ जे अनुयोग त्रिविध साचो For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ लहे, करे ते करमनो अंत ॥ १५॥ स०॥ सुत्र अरथ पहेलो बीजे कह्यो, निजुत्तीए रे मीस ॥ निरविशेष त्रीजो ते अंग पांचमे, एम कहे तुं जगदीस ॥ १६ ॥ ॥स० ॥ सुत्र निजुत्ती रे बिहुं भेद कह्यो, त्रीजो अनु. योगद्वार ॥ कुमा कपटी रे जे माने नही, तेहनो कवण आधार ॥१७॥ स०॥ बद्ध ते सूत्रे रे अर्थ निकाचिया, निजुत्तीए अपार ॥ उपधि मान गुणणादिक किहां लहे, ते विण मार्ग विचार ॥ १८ ॥ स० ॥ जो निजुत्ती रे गइकुमती कहे, सुत्र गयां नहीं केम ॥ जेह वांचतां रे आव्यु ते सवे, माने तो होय खेम ॥ ॥ १९ ॥ स० ॥ आंधा आगे रे दर्पण दाखवो, बहेरा आगे रे गीत ॥ मूरख आगे रे कहे, युक्तिनुं, ए सवि एकज रीत ॥ २० ॥ स०॥ मारग अरथी रे पण जे लोक छे, भद्रक अतीहि विनीत ॥ तेहने ए हित सीख सोहामणी, वली जे सुनय अधीत ॥ २१ ॥स०॥ प्रवचन साखेरे एम में भांखीयां, विगते अरथ विचार ॥ तुझ आगम नीरे ग्रही परंपरा, लहीए जग जयकार ॥ २२ ॥ स० ॥ गुण तुझ सघला रे प्रमु कुण गाण For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सके, आणा गुण लव एक ॥ एम में थुणतां रे समकित दृढ करयुं, राखी आगम टेक ॥ २३ ॥ स०॥ आणा तारी रे जो में शिर धरी, तो स्युं कुमतीनुं जोर ॥ तिहां नवि पसरे रे बल विषधर तणुं, किंगारे जिहां मोर ॥ २४ ॥ स० ॥ पवित्र कीजे रे जीहा तुझ गुणे, शिर धरीए तुझ आण ॥ दिलथी कहिए रे प्रभु न विसारीए, लहीए सुजस कल्याण ॥ २५॥ स०॥ ॥ ढाल ७ मी ॥ ( राग धनाश्री ) ॥ वर्तमान शासननो स्वामी, चामीकर सम देहोजी ॥वीर जिणेसर में इम थुणीओ, मन धरी धर्म स्नेहोजी ॥ एह स्तवन जे भणस्ये गुणस्ये, तस्स घर ल माला जी ॥ समकित भाण हुस्ये चित तेहने. प्रकट झाक झमाला जी ॥१॥ अरथ एहना छे अति सुक्ष्म, ते धारो गुरु पासे जी ॥ गुरुनी सेवा करतां लहीए, अनुभव नीति अभ्यासे जी ॥ जेह बहुश्रुत गुरु गीतारथ, आगमना अनुसारी जी ॥ तेहने पूछी संशय टालो, ए हीतसीख छ सारी जी ॥ २ ॥ इंदलपुर माहि रही चोमासु, धर्मध्यान सुख पाया जी॥ For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ संवत १७३३ सत्तर तेत्रीसा वरषे, विजय दशमी मन भाया जी ॥ श्री विजयप्रभसूरी सवाया, विजयरत्न युवराया जी ॥ तस राजे भविजन हित काजे, एम में जिनगुण गाया जी ॥३॥ श्री कल्याणविजयवर वाचक, तपगच्छ गयण दिणंदा जी ॥ तास सांस श्री लाभविजय बुध, भविजन कैरव चंदा जी ॥ तास सीस श्री जीतविजय बुध,श्री नयविजय मुणिंदा जी॥ वाचक जशविजय तस सीसे, शुणिया वीर जिणंदा जी ॥४॥दोसी मूला सुत विवेकी, दोसी मेघा हेते जी ॥ एह स्तवन में कीg सुंदर, श्रुत अदर संकेते जी ॥ ए जिन गुण सुरतरुनो परिमल, अनुभवनो ते लहेस्ये जी ॥ भमर पर जे अरथी होइने, गुरु आणा शिर वरस्ये जी ॥ ५॥ इति ॥ ॥ श्रीमद् यशौविजयजी कृत श्री मंधर स्वामीनु निश्चय व्यवहा रनुं च्यार ढालनु स्तवन ॥ ॥ ढाळ पहेली ॥ ॥श्री समिधर साहिब आगे विनति रे, मन धरी निर्मल भावाकीजे रे कीजे रे,लीजे लाहो भव तणो रे For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९७ ॥ १ ॥ बहु सुख खामी तुज वाणी परिणमे रे, जेह एक नय पक्ष ॥ भूला रे भूला रे, ते प्राणी भव रङवडे रे ॥ २ ॥ में मति मोहे एकज निश्चय आदयों रे, के एकज व्यवहार ॥ भेलारे भेलारे, तुज करुणाए ओलख्यारे ॥ ३॥ शिबिका वाहक पुरुष तणी परे ते को रे, निश्चय नय व्यवहार || मिलीयारे मिलीयारे, उपगारी नवी जुजुआरे ||४|| बहुला पण रत्न कह्या जे एकलां रे, ते माला न कहाय || मालारे मालारे, एक सुत्रे ते सांकल्यारे ||५|| तेम एकाकी नय सघला मिथ्यामति रे, मिलीया समकित रूप ॥ कहीये रे कहीये रे, लहीये सम्मति सम्मतिरे ||६|| दोय पंख विण पंखी जेम नवि चली शके रे, जेम रथ विण दोय चक्र ॥ न चले रे न चले रे, तिम शासन नय बिहं विना रे ॥ ७ ॥ शुद्ध अशुद्धपणुं सरखं छे बेजने रे, निज निज विषे शुद्ध ||जाणो रे जाणो रे, पर विषे अविशुद्धतारे ॥८॥ निश्वयनय परिणाम पणाए छे वमो रे, तेहवो नहि व्यवहार ॥ भाखे रे भाखे रे, कोइक एम नवि घटे रे || ९ || जे कारण निश्चय नय कारण For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ अछे रे, कारण जे व्यवहार ॥ साचो रे साचो रे, कारज साचो ते सहि रे ॥ १०॥ निश्चय नय मति गुरु शिष्यादिकको नहि रे, करे न भुंजे कोय ॥ तेहथी रे तेहथी रे, उन्मारग ते देशनारे ॥ ११ ॥ व्यवहारे गुरु शिष्यादिक संभवे रे, साचो ते उपदेश ॥ भाख्यो रे भाख्यो रे, भाष्ये सुत्र व्यवहारमें रे ॥१२॥ ॥ ढाल थीजी ॥ गुण वेलडीया ॥ ए देशी ॥ ॥ कोइक विधि जोतां थकां रे, छांडे सवि व्यवहार रे ॥ मन वसीया ॥ न लहे तुज वचने कह्यं रे, द्रव्यादिक अनुसार रे ॥ गुण रसीया ॥१॥ पाठ गीत नृत्यनी कला रे, जिम होय प्रथम अशुद्ध रे ॥मन०॥ पण अभ्यासे ते खरी रे, तेम क्रिया अविरुद्धरे ॥ ॥गुण०॥२॥ मणि शोधक शत खारना रे, जिम पुट सकल प्रमाण रे । मन० ॥सर्व क्रिया तेम योगने रे, पंच वस्तु अहिनाण रे ॥गुण०॥३॥ प्रीति भक्ति योगे करी रे, इच्छादिक व्यवहाररे ॥मन०॥ हीणो पण शिव हेतु छे रे, जेहने गुरु आधार रे ॥ गुण ॥ ४ ॥ विष गरल अन्योअन्य छे रे, हेतुअमृत जेम पंच रे ॥मन०॥ For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achana २९९ क्रिया तिहां विष गरल कही रे, इह परलोक प्रपंचरे ॥गुण०॥५॥ अन्योअन्य इदय विना रे, समुर्बिम पर होय रे ॥ मन० ॥ हेतु क्रिया विधि रागथी रे, गुण विनयीने जोय रेगुणादाअमृत क्रिया मांही जाणीये रे, दोष नहि लव लेश रे ॥मन०॥ त्रिक तजवा दोय सेववारे, योग बिंदु उपदेशरे ॥ गुण ॥७॥ क्रिया भक्ति छेदीए रे, अविधि दोष अनुबंध रे ॥ मन० ।। जिणे ते शिव कारण कहे रे, धर्म संग्रहणी प्रबंधरे ॥गुण ॥८॥ निश्चय फल केवल लगेरे, न तजीए व्यवहाररे ॥ मन० ॥ चक्री भोग पाम्या विनारे, जिम निज जोजन साररे ॥गुण ॥ए ॥ पुण्य अग्नि पातिक दहे रे, ज्ञान सेहेजे ओलखायरे मन०॥ पुण्य हेतु व्यवहार छे रे, तिणे निर्वाण उपायरे।गुण॥१०॥ भव्य एक आवर्तमां रे, क्रिया वादि सिद्धरे ॥मन०॥ जोवे तेम बीजो नहि रे, “ दशा चुर्णी " प्रसिद्ध रे ॥ गुण ॥ ११ ॥ इम जाणीने मन धरे रे, तुज शासननो रागरे ॥मन०॥ निश्चय परिणति मुनि रहेरे, व्यवहारे वड लाग रे ॥ गुण० ॥१२॥ For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० ॥ ढाल त्रीजी ॥ भोलीड़ा हंसा रे विषय न राचीये ॥ ए देशी ॥ ॥ समकित पक्ष कोइकज आदरे, क्रिया मंद अणजाण ॥ श्रेणीक प्रमुख चरित्र आगल करे, नवि माने गुरु आए || अंतरजामी रे तुं जाणे सवे ॥ १॥ कहे ते श्रेणीक नवि नाणी हुओ, नवि चारित्र प्रधान ॥ समकित गुणथी रे जिन पद पामशे, तेहज सिद्धि निदान || अंतर० ॥ २ ॥ ते नवि जाणे रे क्रिया खप विना, समकित गुण पण तास ॥ नरक तणी गति नवि छेदी शके, ए आवश्यके भाष ॥ अंतर० ॥ ३ ॥ उज्वल तारे वाणे मेलडे, सोहे पद न विशाल || तिम नवि सोहे रे समकित अविरति, बोले उपदेश माल || अंत० ॥ ४ ॥ विरति विघन पण समकित गुणवर्यो, छेदे पलीय पुहुत्त || आणंदादिक व्रत धरता कह्यो, समकित साथे रे सूत ॥ अंतर० ॥ ५॥ श्रेणिक सरिखा रे अविरति थोडला, जेह निकाचित कर्म ॥ ताणी आणे रे समकित विरतिने, ए जिन शासन मर्म ॥ अंतर० ॥ ६ ॥ ब्रम्ह प्रतिज्ञा रे विण लव सप्तमा, ब्रम्ह व्रति नहि आप ॥ अण किधा पण लागे For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . .. अविरते, स्हेजे संघला रे पाप ॥ अंतर०॥७॥ एहवं जाणी रे व्रत आदर करो, जतने समकित वंत ॥ पंडित पीछे रे थोडे जिम भणे, नांवे बोल अनंत ॥ ॥ अंतर० ॥७॥ आंधा आगल दरपण दाखवो, बहेरा आगल गीत ॥ मूरख आगल परमारथ कथा, त्रण एकज रीत ॥ अंत. ॥९॥ एq जाणी रे हूं तुज विनवं, किरिया समकित जोडीदीजे कीजे रे करुणा अति घणी, मोह सुभट मद मोडी ॥अंत॥१०॥ ॥ ढाल चोथी ॥ क्रीडा करी घरे आवीयो । ए देशी ॥ ॥ एणीपरे में प्रभु विनव्यो, सीमंधर भगवंतो रे ॥ जाणुं हुं ध्याने प्रगट हुं तो, केवल कमला केतो रे ॥ जयो जयो जगगुरु जगधणी ॥१॥ तुं प्रभु है तुज सेवको, ए व्यवहार विवेको रे ॥ निश्चय नय नहि आंतरो, शुद्धात्तम गुण एको रे ॥ जयो० ॥२॥ जिम जल सकल नदी तणो, जलनिधि जल होय भेलो रे ॥ ब्रम्ह अखंड सखंडनो, तिम ध्याने एक भेलो रे ॥ जयो० ॥३॥ जिणे आराधन सुज कर्यु, तस साधन कुण लेखे रे ॥ दुर देशांतर कुण भमे, जे For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ सुरमणि घरे देखे रे ॥ जयो० ॥ ४ ॥ अगम अगोचर नय कथा, पार कुणे नवि लहीए रे ॥ तिणे तुज शासन इम कयुं, बहुश्रुत वयणमे रहीए रे ॥ जय० ॥ ५॥ तुं मुज एक हृदय वस्यो, तुंहीज पर उपगारी रे ॥ जरत भविक हित अवसरे, सुज मत मेलो विसारी रे ॥ जय० ॥ ६ ॥ ॥ कलश ॥ इम विमल केवल ज्ञान दिनकर, सकल गुण रयणायरो || अकलंक अकल निरीह निर्मम, विनव्यो सीमंधरो || श्री विजयप्रभ सूरिराज राजे, विकट संकट भय हरो || श्री नयविजय बुध शिष्य वाचक, जसविजय विजय करो ॥ १ ॥ ३ ॥ ॥ अथ श्री गोडी पार्श्वनाथ अधिकारे मेघाशानुं स्तवन प्रारंभः ॥ || दुह| || प्रमुं नित परमेसरी, आपो अविचल मात ॥ लघुताथी गिरुता करे, तुं शारद सरसत ॥१॥ मुझ उपरमया करी, देजे दोलत दान ॥ गुण गाउं गिरुआ तणा, महीयल वाधे वान ॥ २ ॥ धवलधिंग गोडी धणी, सहुको आवे संघ || महिमावादी मोटको, नारंगने नवरंग ॥ ३ ॥ प्रतिमा त्रणे पासनी, प्रगटी For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०३ पाटणमांहि ॥ भक्ति करे जे भविजन, कुण ते वली कहेवाय ॥४॥ उत्पत्ति तेहनी उचलं, शास्त्रतणी करी शाख ॥ मोटा गुण मोटा तणा, भाखे कविजन भांख ॥ ५॥ ॥ ढाल ॥ १॥ नदी जमुनाके ॥ ए देशी ॥ काशी देश मझारके नयरी घणारसी ॥ एसमो अवर न कोय जाणे लंकाजिसी ॥ राज करे तिहां राजके अश्वसेन नरपति ॥ राणी वामा मातके तेहनी दीपती॥ ॥६॥ जन्म्या पास कुमारके तेहनी राणीयें, उछव कीधो देवके इंद्र इंद्राणीयें ॥ जोबन परण्या प्रेम कन्या परभावति, नीत नीत नवला वेश करि देखावति ॥७॥ दीक्षा लेइ वनवास रह्या काउसग्ग जिहां। उपसर्ग करवा मेघमाली आव्यो तिहां ॥ कष्ट देइने तेह गयो जे देवता ॥ चोसठ इंद्र तेहने नित नित सेवता॥ ८॥ वरस ते सोनो आवखो भोगवी उपनां, जोतमाहि वली ज्योत तिहां केइ रुपनां ॥ पाटणमाहे मुरत त्रणे पासनी, मेली भोयरांमांहि राखे केइ शासनी ॥ ९॥ एक दिन प्रतिमा तेह गोडीनी लेश For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ करी, पोताना आवासमाहे के तुरके हित धरि ॥ भोमी खणिने मांहे घाली तुरके तिहां, सुवे नित प्रते तेहके सेजवाली तिहां ॥ १० ॥ एक दिन सोहणामांहिं के जक्ष आवि कहे, तिण अवसर ते तुर्क हैयामां चिंतवे ॥ नहितर मारीश मरमीश हवे हुँ तुझने, ते माटे घरमाथी काढजे मुझने ॥ ११ ॥ पारकरमांहेथी मेघोशा इहां आवशे, ते तुज देशे लावी टका ए पांचसे || देजे मुरति एह काढीने तेहने, मत केजे कोइ आगल वात तुं केहने ॥ १२ ॥ थाशे कोटि कल्याण के ताहरे आजथी, वाघस्ये पंचमाहें के नाम ते लाजथी ॥ मनसुं बीनो तुर्क थइने आकलो, आगल जे थाये वात ते भविजन सांभलो ॥ १३ ॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ साभलोथल || ए देशी ॥ लाख जोजन जंबू परिमाण, तेमां भरतक्षेत्र परधानरे ॥ माहारा सुगुण सनेही सुणजो || पारकर देश शोभे रुडो, जिम नारीने सोहे चूमोरे ॥ मा० ॥ १४ ॥ शास्त्रमाहिं जेम गीता, जिम सतीयोमांहें सीतारे ॥ ॥ मा० ॥ वाजित्रमांहे जिम भेर, जिम परवतमहिं For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ३०५ मोटो मेररे ॥ मा० ॥१५॥ देवमाहें जिम इंद्र, ग्रहणमांहें जिम चंद्ररे ॥ मा०॥ बत्रीस सहस ते देश, तेमांहें पारकरदेश विशेषरे ॥ मा० ॥ १७ ॥ भूदेशरनामें नयर, तिहाँ कोइ न जाणे वेररे ॥मा०॥राज करेरे खंगार, ते तो जात तणो परमाररे ॥मा॥१८॥ तिहां वणिक करे वेपार, अपछरा सरखी नाररेमा०॥ मोटा मंदीर परधान, ते तो चौदसें बावनरे ॥मा०॥ ॥१९॥ तिहां काजलशा व्यवहारी, सहु संघमा छे अधिकारीरे ॥मा०॥ पुत्रकलत्र परिवार, जसमां नित छे दरबाररे ॥ मा० ॥ २० ॥ तेह काजलशानी बाइ, सा मेघासु कीघ सगाइरे ॥मा॥ एक दिन सालो बनेवी, बेठां वातुं करे छे एवीरे ॥ मा०॥२१॥ इहांथी द्रव्य घणो लेइ, जइ लावो वस्तु केइरे ॥ मा० ॥ गुजरातमाहें तुमे जाजो, जे माल मन आवे ते लेजोरे ॥ मा० ॥ २२॥ ॥ढाल॥३॥प्रणमुंए देशी॥सा काजल कहे वात,मेघा तणी अवदात ॥सांभली सदहे ए, वलतुं एम कहे ए॥ ॥ २३ ॥ धन घणो लइ हाथ, परिवार को साथ ॥ For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कुंकुम तिलक कियोए, श्रीफल हाथे दीयोए ॥२४॥ जाइश हुं परभात, साथ करी गुजरात ॥शकुन भला सहीए, तो चालुं वहीए ॥ २५ ॥ लेई उंट कंतार, आव्यो चउटा मझार॥ कन्या सन्मुख मलीए, करती रंग रलीए ॥ २६ ॥ मालण आवी ताम, बाब भरि छे दाम ॥ वधावे शेठ भणीए, आशीस दे घणीए ॥२७॥ मयुगल मल्या खास, वेद बोलतो व्यास ॥ पतरी भरी जोगणी, वृषभ हाथे घणीए ॥ २८ ॥ डाबो बोले सांढ, दधिनो भरियो माट ॥ खरडावो खरो ए, सहु कोइए धरोए ।।२९॥ आगल आव्या जाम, सारंग त्रूठा ताम ॥ नेरव जमणीभलिए, देव डाबि चलिए। ॥ ३० ॥ जमणी रुपारेल, ठारबांधी तिण वेल ॥ ॥ नीलकंठ तोरण कियो ए, उलस्यो अति हयोए ॥ ॥३१॥ हनुमन दीधी हांक, मधुरां बोले काक ॥ लोक हसे सहुए, काम होशे बहुए ॥३२॥ अनुक्रमे चाल्या जाय, आव्या पाटणमांहि ॥ उतारा किया ए, शेठजी आवीयाए ॥३३॥ निशीभर सुता ज्यांहिं, जक्ष आवीने त्यांहि ॥ सुहणे एम कहेए, ते सघलो सद्दहेए ॥३४॥ For Private And Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०७ तुरकतणे जइ धाम, तुं जय देजे दाम ॥ पांचसें रोकडाए, तुं देजे दोकडाए ॥३५।। देशे प्रतिमा एक, पासतणी सुविवेक ॥ एहथी तुझ थाशे ए, चिंता दुर जाए ॥ ३६ ॥ संभलावी जक्षराज, तर्कभणी कहे साज ॥ प्रतिमा तुं देयजेए, पांचसे धन लेयजे ए॥ ॥ ३७॥ एम करतां परभात, तरकभणी कहे वात ॥ मनमांहें गहगहेए; अचरिज कुण लहेए ॥३०॥ ॥ ढाल ॥४॥ आसण ॥ ए देशी ॥ तरकभणी दीये पांचसे दाम, प्रतिमा आणे निज ठामरे ॥ पासजी मुने त्रुठा ॥ पूजे प्रतिमा हर्ष भराणो, भाव आ. णीने खरच्यो नाणोरे ॥ पा०॥ ३९ ॥ मुज वखते ए मूरति आवी, मुज आफ्शे दाम कमावी रे ॥ पा०॥ नाणुं देइने रु तिहां लीधो, मनमान्यो कार्य सीधोरे ॥पा० ॥ ४० ॥ रुना भरीया उंट वीस, मांहे बेसाड्या प्रभुने उछांहेरे ॥ पा० ॥ अनुक्रमे चाल्या पाटणमांथी, साथे मुरति लेइ तिहांथी रे । पा०॥४१॥ आगल राधणपुरे आव्या, दाणी दाण लेवाने आव्यारे ॥ पा० ॥ गणे उंट रुनो करे लेखो, एक अधिको For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ छो देखे रे ॥ पा० ॥ ४२ ॥ मेघाशाने दाणी मली पूछे, कहो शेठजी कारण शुंळे रे || पा० ॥ दाणी मली विचारे मनमां, एतो कौतुक दिसे छे एणमां रे ॥ ॥ पा० ॥ ४३ ॥ तव मेघो कहे सांभलो दाणी, अमे मूरति गोडीनी आणीरे || पा० ॥ ते मूरतिए वरकि मोहें, किम जालविए बीजे ठामेरे || पा० ॥४४॥ पारसनाथ तणे सुपसाये, दाणी दाण मेली घरे जायेरे ॥ || पा० ॥ यात्रा करी सहु निजघर आवे, जिनपूजा आनंद पावेरे ॥ प० ॥ ४५ ॥ तिहांथी आव्या पारकरमाहें, भूदेशर नयर उछाहेरे || पा० ॥ वधामणी दीधी जेणे पुरुषे, थयो रलियात सहु हरखे रे ॥ पा० ॥ ४६ ॥ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ राणपुरो रलियाम ॥ ए देशी ॥ संघ आवे सहु सामटारे लो, दरिसण करवां काज ॥ भवि प्राणीरे || ढोल नगारा दडदडेरे लो, नादे अंबर गाज ॥ ज० ॥ सुणजो वात सुहामणी रे लो || ४७ ॥ ओछव मोछव घणा करेरे लो, भेटे श्री पार्श्वनाथ ॥ • ॥ भ० ॥ पूजा प्रभावना करे घणीरे लो, हरख पाम्या For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०९ सहु साथ ॥ भ० ॥ ४८ ॥ संवत चौद बत्रीसमेरे लो, फागण सुदनी बीज । भ० ॥ थावरवारे थापीयारे लो, नरपति पाम्या रीझ ॥ भ० ॥ ४९ ॥ एक दिन काजलशा कहेरे लो, मेघाशाने वात ॥ भ० ॥ नाणो अमारो लेइ करीरे लो, गया हता गुजरात ॥भ०॥५०॥ ते धन तमें किहां वावर्यु रे लो, ते दीयो लेखो आज ॥भ० ॥ तव मेघो कहे शेठजी रे लो, खरच्यां धरमने काज ॥ भ० ॥ ५१ ॥ स्वामीजी माटे सोंपीयोरे लो, पांचसे दीधा दाम ॥ न० ॥ काजल कहे ए शुं कयुरे लो, पत्थर कोण आवे काम ॥ भ० ॥ ५२ ॥ काजलने मेघो कहेरे लो, ए व्यापारमें भाग ॥ भ०॥ ते पाचसे शिर माहरेरे लो, तेमांहे तुमने न लाग । ॥ भ० ॥ ५३ ॥ मेघासानी भारजारे लो, मरगादे छे नाम ॥ भ० ॥ महियोने मेरो बेहु सारखारे लो, दोए सुत रतिय समान ॥ भ० ॥ ५४॥ ॥ ढाल ॥ ६ ॥ कंत तमाकु परिहरो ॥ ए देशी ॥सा काजल मेघाभणी. बेहं जणमां हैं संवाद ॥ मेरे लाल ॥ तिहा मेघो धनराजने, एक दिन कीधो साज For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ५५ ॥ सुणजो वात सुहामणी ॥ ए प्रतिमा पूजो तमे, जाव आणीने चित्त ॥ मे० ॥ बार वरस लगे तिहां, पूजे खरचे वित्त ॥ मे० ॥ ५६ ॥ एक दिन सुहणे एम कहे, मेघासाने वात ॥ मे० ॥ तुं अमसाथे आवजे, परवारि परभात ॥ मे ॥ वेल लेजे नावलतणी, चारण जात छे तेह ॥ मे० ॥ देवानंदा अंकतणी, दोय वृषभ छे जेह ॥ मे० ॥ ५७ ॥ वेल खेडे तुं एकलो, मत लेजे कोइ साथ ॥ मे०॥ थलावडी भणी हांकजे, मुझने राखजे हाथ ॥ मे० ॥ ॥ ५८ ॥ एम मेघाने विनवी ॥ जक्ष गयो निज ठाम ॥ मे०॥ रवि उगे मेघे तिहां, करवा मांडयो काम ॥ मे० ॥ ५९ ॥ वेल लीधी भावलतणी, वृषभ आण्या वली दोय ॥ मे० ॥ वेल जोडी स्वामितणी, ते जाणे सह कोय ॥ मे० ॥ ६०॥ तव मेघो ते वेलने, खेडि चाल्यो जाय ॥मे०॥ अनुक्रमे मारग चालतां, आव्या थलावमी माय ॥ मे० ॥ ६१ ॥ ॥ ढाल ॥ ७॥ तिहां मोटाने छोटा थल घणां, दिसे वृक्षतणो नहि पारोरे ॥ वली भूतप्रेत व्यंतर For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar घणा, तिहां डरतणो नहिं पारोरे ॥६॥ साहा मेघो एणी परे चिंतवे, हवे मुझने कवण आघारोरे ॥ तिहां जक्ष आवीने एम कहे, तुं मत करे फिकर लिगाररे ॥६३॥ सा० ॥ तिहां वेल हांकिने चालियो, आब्यु उजड गोमिपुर गामरे ॥ तिहां वाव सरोवर कुवा नहि, नहिं मोल मंदिरने ठामरे ।। ६४ ॥सा०॥ तिहां वेल थंभाणी हाले नहि, तव साह हुओ दिलगीररे ॥ मुझ पासे नथी कोइ दोकडो, केम भांजसे मुझ मन भीडरे ॥६५॥ स०॥तिहां रात पडी रवि आथम्यो, चिंतातुर थइने बेठोरे ॥ सामे घाभणी आवी कहे, सोहणामां हैं जक्ष एकांतोरे ॥ ६६ ॥ सा० ॥ हवे सांजल मेघा हूं कहुं, आव्यो छे गोडिपुर गामरे ॥ मोटो देरासर करजे इहां, उत्तम जोइने ठामोरे ॥ ६७ ॥सा॥ तुं जाजे दक्षिण दिशभणी, तिहां पडयुं छे लीबुंछाएं रे ॥ तिहां कुओ उमटसे पाणीतणो, वलि प्रगटसे पाणीनी खाणरे ॥६८॥ सा०॥ पासे उग्यो छे उजल आकडो, ते हेठल छे धन बोहोळोरे ॥ पुर्यो छे चोखातणो साथिओ, तिहां पाणीतणो कुवो पोतोरे ॥ ।। ६ए॥ सा०॥ For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ ॥ ढाल ॥ ८ सीता रूपे रुडी ॥ ए देशो ॥ सिलावट सिरोही गामे, तिहां रहे छे चतुर बहु कामे हो ॥ शेठजी सांजलो ॥ रोग छे तेहने, शरीरे, नमj करी छांटजे नीर हो ॥ शे० ॥ ७० ॥ रोग जाशे ने सुख थाशे, बेठो इहां काम कमासे हो ॥ शे० ॥ जक्ष गयो एम कहीने, करे शेवजी उद्यम वहिने हो ॥ ॥ शे० ॥ ७१॥ ज्योतिष निमित्त जोवरावे, देरासरपायो ममावे हो ॥ शे० ॥ शिलावटने तेडावे, वली धननी खाण खणावे हो ॥ शे० ॥ ७२ ॥ गोडिपुर गाम वसावे, सगासाउंने तेडावे हो ॥ शे० ॥ एम करतां बहु दिन बीतां, थयो मेघो जगतवदिता हो । ॥ शे० ॥ ७३ ॥ एक दीन सा काजल आवी, कहे मेघाने वात बनावी हो ॥ शे० ॥ ए काममां भाग अमारो, अरध तारो ने अरध मारो हो ॥शे॥७४ ॥ एम करी देरासर करिए, जिम जगमां जश वरिजे हो ॥ शे० ॥ हवे मेघो कहे तेहने, दाम जोइए छे केहने हो ॥शे०॥७५॥ स्वामिजीने सुपसायें, घणा दाम छे भाइ आंहिं हो ॥ शे० ॥ एक दिन कहेता आम, For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१३ ए पत्थरनो कुण काम हो ॥०॥७६॥ क्रोध वशे पाछो वलीयो, पण दगो मनमांहें भलियो हो ॥शेला हवे काजल मनमां चिंते, माझं मेघो थाउं नचिंते हो ॥शे० ॥ ७७॥ ॥ ढाल ॥ ९॥ कोयलो परवत ए देशी ॥ परणावू पुत्री माहरीरे लो, खरची द्रव्य अपाररे ॥ ॥ चतुरनर ॥ नात जमाई आपणारे लो, तेड़े मेघो तिण वाररे ॥ च० ॥ सांभलजो श्रोता तमे रे लो ॥ ॥ ७८ ॥ जो मेघो मारूं तो खरोरे लो, तो मुझ होय कराररे ॥च०॥ देवल करावं हुँ एकलोरे लो, तो नाम रहे निरधाररे ॥च०॥७९॥एम चिंतवी विवाहनोरे लो, करे काजल ततकालरे ॥च०॥साजनने तेडावीयोरे लो, गोरीउं गावेधमाल।च०॥८॥सा मेघाभणी नोतर्या रे लो, मोकले काजलशाहरे च० विवाह उपर आवजोरे लो, अवश्य करीने आंहीच०॥८॥सांभली मेघो चिंतवेरे लो,किम करि जश्ये त्यांहिरे॥च॥काम अमारे छे घj रे लो, देरासरने आहिरे ॥ च० ॥२॥ तव मेघो कहे तेहनेरे लो, तेडी जाओ परिवाररे ॥१०॥ काम मेली For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ किम आवीयेरे लो, ते जाणो निरधाररे ॥ १०॥३॥ मेघासाना सहु साथमारे लो, पुत्रकलत्र परिवाररे ॥ च०॥ मरगादे साथे लेइ करीरे लो, तेडी आव्या परिवाररे ॥१०||८४॥ कहे काजल मेघो किहारे लो, इहां न आव्यो शामाटरे ॥च०॥ किम मेघा विण चालशेरे लो, नाततणी सवि वातरे ॥च०॥५॥ ॥ ढाल ॥१०॥ कहे जक्ष मेघाभणीरे लो, ता. हरे हवे आवी बनीरे लो, काजल आवशे तेडवारे लो, कुड करी तुज छेडवारे लो ॥६॥ तुं मत जाजे तिहां कणेरे लो, झेर दइ हणशेरे लो ॥ तेड्या विण जाए नहिरे लो, नमण करी लेजे सहिरे लो ॥ ८७॥ धमाहे देशे खरुरे लो, नमण पीधे जासे परुरे लो॥ ते माटे तुझने घऍरे लो, माने वचन सोहामणुरे लो ॥॥ जक्ष कही गयो तेहवेरे लो, काजलशा आव्यो तेहवे रे लो॥ कहे मेघाने सांभलोरे लो, आवो मेली मन आमळोरे लो ॥ ८९ ॥ तुम आव्या विण केम सरेरे लो, नातमां शोभा केणिपरेरे लो॥ तम सरिखा आवे सगारे लो, तो मन थाये उमंगोरे लो ॥ए॥ For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar जो अमने कोई लेखवारे लो,तो आडं अवलं मत दाखवोरे लो॥ हठ करी बेठा तुमेरे लो,खोटी थाइये छे अमेरे लो,॥९१॥हुं आव्यो धरती भरीरे लो, तो किम जाउं पाछो फरिरे लो॥ सा मेघे मन चिंतव्यु रे लो, अति ताएयु किम परवरेरे लो ॥ ९२ ॥ काजल साथे चालियोरे लो, भूदेशरमा आवीयोरे लो॥ नमण विसायु तिहांकणेरे लो, भावी वस्तु आवी बनेरे लो॥ ९३ ॥ ॥ ढाल ॥ ११ कंबल मत चाले ॥ ए देशी ॥ नात जमाडी आपणी, देइने बहु मान ॥ वरकन्या परणावीयां, दीधां बहुलां दान ॥ ९४ ॥ काजल कहे नारीभणी, मेघासुं अम भेलां ॥ जमण देजो विष भेलिने, जिमतां दूधज वेलां ॥ ९५ ॥ दूधतणी छे आखमी, तुमने करीश हुँ रीस ॥ मेघाने मेलवो नहि, जमण तव ते प्रीस ॥ ६॥ तव नारी कहे पिउजी, मेघाने मत मारो ॥ कुलमां लंछन लागसे, जासे पंच. माकारो ।। ९७ ॥ काजल ते माने नहि, नारी कहीने हारी ॥ मन भांग्यु मोति त्रुटयुं, तेहने न लागे कारी ॥ ९८॥ एम शीखवी निज नारिने, जमवाने बेउ For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ बेठा ॥ भेला एकज थालीए, हिये हरखे हेठा ॥९९॥ दूध आण्युं तिण नारीये, पीरस्युं थाली मांहिं ॥ काजल कहे मुझ आखमी, पीधुं मेघाशाहे ॥ १०० ॥ मेघाने हवे ततखीणे, विष वायुं अंगोअंग || श्वासोश्वास रमी गया, पाम्या गतस्वरंग ॥ १ ॥ || ढाल ॥ १२ ॥ आवी मृगादेवी उदेखने रे, रोती कहे तिणिवार रे || महियो मेरो ते पिण बेहु जणारे, अति घणो करे पोकाररे ॥ २ ॥ फटरे कुलहीणा काजल इयुं कर्तुं रे लो, नावी लाज लगाररे ॥ मुख देखाडीश केम लोकमां रे, धिगधिग तुज अवतार रे || फ० ॥ ३ ॥ वीरडा ते न जाएयुं मन एवं रे, तारी भगिनीनो कुण सलुकरे ॥ मारे तो कर्मे ए छाज्यं नहीं रे, पडी दीसे छे मुजमां चुकरे ॥ ५० ॥ ॥ ४ ॥ एहवा लखीया छठी अक्षरा रे, तो हवें दीजे कुणने दोषरे, ॥ निरधारी मेलिओ नाहलो रे, मुजने न कीधो कहिइ रीसरे || फ० ॥ ५ ॥ एम वलवलती मृगादे कहेरे, वीरडा तें त्रोडी मोरी आशरे ॥ तुझने किम उकल्युं एहरे, कोइ न थइ पूरि आशरे || फ० | For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१७ ॥ ६ ॥ कुड करीने मुज छेतरीरे, कीधो ते मोटो अन्यायरे ॥ मारां नानकडां बिहुँ बालुडां रे, मिलसे केहने ध्यायरे ॥ फ० ॥७॥ अधवच देरासर रह्या रे, जगमा नाम रह्यं निरधाररे ॥ नगरमा वात घरघर विस्तरीरे, सहकोना दिलमां आव्यो खाररे ॥ फ० ॥ ॥ ८॥ द्वेष राखीने मेघो मारियोरे, ए तो काजल कपट-भंडार रे ॥ मननो मेलो धीठो एहवो रे, एम बोले छे नर नाररे ॥ ए॥ फि०॥ ॥ ढाल ॥ १३ ॥ होवे साहि० ॥ ए देशी ॥ हो बेनि अग्निदाह देइ करी, सहुको आव्या निज ठाम हो ॥ हो बेनि काजल कहे तुं मत रुए, न कहें एहवां काम हो ॥ १० ॥ हो बेनि लेख लख्यो ते लाभीओ, दीजे कोणने दोष हो ॥ हो बेनि जन्म मरण हाथे नहीं. ते शुं राखवो रोष हो॥११॥ हो०॥ होवेनिए संसार डे कारमो, खोटी मायाजाल हो ॥ हो बेनि एक आवे ठालि भरी, जेहवी अरहट माल हो ॥१२॥ हो० ॥ हो बेनि सुख दुख सरज्यां पामीयें, नहि कोइने हाथ हो ॥ हो बेनि मकरे फिकर लगार तुं, बो For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ हलि छे आपणी हाथ हो ॥ १३ ॥ हो० ॥ हो बेनि खाओ पीओ सुख भोगको, मकरो चिंता लगार हो। हो बेनि जे जोइयें ते मुजने कहो, ते आणुं निरधार हो ॥ १४ ॥ हो० ॥ हो बेनि जिननो प्रासाद करावशं, महितल राखशुं नाम हो ॥ हो बेनि इजत ते आपणा घरतणी, खोशुं किम करी नाम हो ॥१५॥ ॥ हो० ॥ हो बेनि सोढाने हाथे सोपसुं, ए गोडीपुर गाम हो ॥ हो बेनि चालोने आपणे सह तिहां, हं लेइ आq दाम हो ॥ १६ ॥ हो० ॥ हो बेनि अनुक्रमे चाल्या सहु मलि, गोडीपुर गाम मझार हो ॥ हो बेनि जिन-प्रासाद करावियो, काजलशाहे तिणवार हो । ॥ १७ ॥ हो०॥ ॥ ढाल ॥ १४ ॥ देरे शिखर चडावीओ, थिर न रहे तिणीवार होजी ॥ काजल मनमां चिंतवे, हवे कुण करशुं प्रकारजी ॥ १८॥ भविजन सांभलो नावसुं ॥ बीजीवार चढावीओ, पडे हेठो ततकाल जी॥ सोहणामहो जक्ष आवीने, कहे मेहराने सुविलासजी ॥ ज० ॥ १९ ॥ तुं चढावे जश्ने, थिर रहेशे शिर For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेहजी ॥ काजलने जस किम होवे, मेघो मायों तेहजी ॥ भ० ॥ २० ॥ मेहरे सीखर चढावीओ, नाम राख्यां जगमाहेजी ॥ मूरत थापी पासनी, संघ आवे उछांहेजी ॥ भ० ॥ २१ ॥ देश परदेशी आवे घणा, आवे लोक अनेकजी ॥ भाव धरी भगवंतने, वांदे अनेक विवेकजी ॥ भ० ॥ २२ ॥ संवत चौद चमालमां, देरे प्रतिष्ठा कीध ॥ महिओ मेरो मेघातणो, रंगे जगमां जस लीधजी ॥ भ० ॥ २३ ॥ खरचे प्रव्य घणां तिहां, राय राणा तिणवारजी ॥ मानता माने लाखनी, टाले कष्ट अपारजी ॥ भ० ॥ २४ ॥ निर्धनीयाने धन दीये, अपुत्रीयाने पुत्रजी ॥ रोग निवारे रोगीनां, टाले दारिद्र सूत्रजी ॥ भ० ॥ २५ ॥ ॥ ढाल ॥ १५॥ धनाश्री आज अमघर रंगव, धामणां, आज त्रुगा गोडीपास॥ आज चिंतामण आ. वी चढ्यो, आज सफल फली मन आश ॥ आ०॥ ॥ २६ ॥ आज सुरतरु फलिओ आंगणे, आज प्रगटी मोहनवेल ॥ आज बिछडीया वाला मिल्या, आज अमघर हुइ रंगरेल ॥ आ० ॥ २७ ॥ आज अमघर For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० आंबो महोरिओ, आज वूठी सोवनधारजी ॥ आज दूधे वुठा मेहुला, आज आवी गंगा बारजी ॥ आ०॥ ॥२८॥ आज गायो गोडीपुर धणी, श्रीसंघकरे उगह ॥चोमासु कीg )पसुं, मोटी ते महियल मांहेजी ॥ आ० ॥ २५ ॥ चउआणां वाचा चिहूं खुंटमां, तेमां मोटो जाणो ॥ मेघदास दूलजी जाणीयें, एहवा धर, तीमां धणी नहि कोय ॥ आ० ॥३० ॥ रामना राजतणी परे, चलावे जगमां रीत ॥ सोलंकी साथमां शो, भता, विवेकी वाघा सुविनित ॥ आ० ॥ ३१ ॥ परमाण वोरा परतापसी, समरथ राजकाजमां काम ॥ भणसाली नायो तिहां शोभता, तेहने घरे बोहला दाम ॥ आ०॥ ३२ ॥ संघवी लाधो ते जाणीयें, लुणो मेतामां होय ॥ शेठमांहे दीपो वखाणीये, वली मनो नेमजी जोय ॥ आ० ॥३३॥ सा रुपो टोली जाणिये, तपगच्छमां तलकसमान ॥ महीयळ महाजन शोभता, दिनदिन दोलत करि वान ॥ आ०॥ ३४ ॥ श्रीहोर विजयसुरीश्वरु, तेनां शुभविजय कवि शिष ॥ तेना भावविजय कवि दीपता, तास शिष धनमुनि दीस For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१ ॥ आ० ॥ ३५ ॥ तेना रुपविजय कविराजना, तेना कृष्ण नमुं करजोड ॥ वली रंगविजय रंगे करी, हुं प्रणमुं प्रणिपत कोड ॥ आ० ॥ ३६ ॥ संवत अढार सतलोतरे, नादवा मास उदार ॥ हांजी तेरस कंज. वासरे, एम नेमविजय जयकार ॥ आ० ॥३७॥ इति॥ ॥ श्री सीमंधर जिन स्तवन ॥ ॥ साहिबा अजित जिणंद जुहारियें ॥ ए देशी ॥ साहिबा श्री सीमंधर साहेबा, तुम प्रभु देवाधि देव ॥ सनमुख जुओने माहरा साहिबा, साहेब मन शुद्धे करूं तुम सेव ॥ एकवार मळोने महारा साहिबा ॥ ए आंकणी ॥१॥ साहिब सुख दुःख वातो महारे अति घणी, साहिब कोण आगळ कई नाथ ॥ साहेब केवळ ज्ञानी प्रभु जो मळे, साहिब तो थाऊं हुरे सनाथ ॥ एकवार०॥२॥ साहिब भरत क्षेत्रमा हुँ अवतर्यो, साहिब ओर्छ एटबुं पुन्य ॥ साहिब ज्ञानी विरह पडयो आकरो, साहिब ज्ञान रह्यो अति न्यून ॥ एकवार० ॥ ३ ॥ साहेब दश दृष्टांते दोहिलो, साहेब उत्तम कुल सोभाग ॥ साहिब पा २१ For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ म्यो पण हारी गयो, जेम रत्ने उडाड्यो काग ॥ एकवार० ॥ ४ ॥ साहेब षडरस भोजन बहु को, साहेब तृप्ति न पाम्यो लगार ॥ साहेब हुरे अनादि भूलमां, साहेब रझळ्यो घणो संसार ॥ एकवार ॥ ॥ ५॥ साहेब सजन कुटुंब मेळा घणां, साहेब तेहने दुःखे दुःखी थाय ॥ साहेब जीव एकने कर्म जुजुआं, साहेब तेहथी दुर्गति जाय ॥ एकवार० ॥ ॥६॥ साहेब धन मेळववा हुं धसमस्यो, साहिब तृष्णानो नाव्यो पार ॥ साहेब लोभे लटपट बह करी, न जोयो पुण्य ने पाप व्यापार ॥ एकवार० ॥ ॥ ७ ॥ साहेब जेम शुद्धाशुद्ध वस्तु छे, साहेब रवि करे तेह प्रकाश ॥ साहेब तेमरे ज्ञानी मळे थके, ते तो आपे समकित वास ॥ एकबार० ॥ ८॥ साहेब मेघ वरसे के वाटमा, साहेब वरसे छे गामो गाम ॥ साहिब ठाम कुठाम जुए नहीं, साहिब एहवा महोटानां काम ॥ एकवार० ॥ ९॥ साहिब हुं वश्यो भरतने छेडले, साहिब तुमे वस्या महाविदेह मोझार ॥ साहेब दूर रही करुं वंदना, साहिब भवसमुद्र For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ उतारो पार 1. एकवार० ॥ १० ॥ साहिब तुम पासे देव घणा वसे, एक मोकलजो महाराज ॥ साहेब मुखनो संदेशो सांभलो, तो सहेजे सरे मुज काज ॥ एकवार० ॥ ११ ॥ साहेब हुं तुम पगनी मोजडी, साहिब हुं तुम दासनोदास || साहिब ज्ञानविमळ सूरि एम भणे, मने राखो तमारी पास ||एकवार० ॥ ॥ स्तवन चोथुं ॥ ॥ क्युं जाणं क्युं वनी आवशे ॥ ए देशी ॥ ॥ श्री सीमंधर साहिबा, हुं किम आबुं तुम पास हो ॥ मुणिंद ॥ दुर विचे अंतर घणो, मुने मिलवानी घणी आस हो । नुणिंद ॥ श्रीसीमं० ॥ ||१|| हुं या भरतने छेदने, कांइ प्रभुजी विदेह मझार हो ॥ मु० ॥ डुंगर विचे नदीयो घणी, कांइ कोस ते केइ हजार हो, ॥ मु० ॥ श्री० ॥ २ ॥ प्रभु देता हस्यो देशना, कां सांभले तिहांना लोक हो ॥ मु० || धन्य ते गाम नगर पुरी, जिहां वरते पुन्यसि लोक हो ॥ मु० ॥ श्री० ||३|| धन्य ते श्रावक For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राविका, जे निरखे तुम मुख, चंद हो ॥ मु०॥ पण ते मनोरथ अम तणो, कांइ फलस्ये भाग्य अमंद हो ।मु०॥ श्री० ॥ ४॥ वरतारो वरती जुओ, काइ जोसी मांडी लगन हो ॥ मु० ॥ क्यारे सी. मंधर भेटस्युं, मुने लागी एह लगन हो ॥ मु०॥ श्री० ॥५॥ पण कोइ जोसी न एहवो, जे भांजे मननी भ्रांत हो ॥ मु० ॥ अनुभव मित्र कृपा करी, तेणे मेलव्यो तुम एकांत हो ॥ मु०॥श्री०॥६॥ वीतराग भावें सही, तुमे वरतो छो जगनाथ हो। मु० ॥ मे जाणुं तस केहेबाथी, हवे हुं थयो स्वामी सनाथ हो ॥ मु०॥ श्री० ॥ ७॥ पुष्करवइ विजये जयो, कांइ नयरी पुंडरीगिणी सार हो ॥ मु०॥ सत्य की नंदन वंदना, अवधारज्यो गुणना धाम हो॥ मु०॥ श्री० ॥८॥ श्रेयांस नृप कुल चंदलो, राणी रुखमणि केरा कंत हो ॥ मु० ॥ वाचक रामविजय कहें, तुम्ह ध्याने होज्यो मुझ चित्त हो ॥ मु० ॥ श्री०॥ ९॥ इति For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२५ || स्तन पांच || || जगजीवन जग वाल हो । ए देशी ॥ श्री सीमंधर साहिबा, वीनतडी अवधार लाल रे || परम पुरुष परमेसरू, आतम परम आधार लाल रे ॥ श्रीसी० ॥ १॥ केवलज्ञान दिवाकरु, भांगे सादि अनंत लाल रे ॥ भासक लोकालोकना, ज्ञायक ज्ञेय अनंत लाल रे || श्री० ॥ २ ॥ इंद्र चंद्र चक्की, सुरनर रहे कर जोड लाल रे || पद पंकज सेवे सदा, हुं तें एक कोड लाल रे ॥ श्री० ॥ ॥३॥ चरण कमल पिंजर वसें, शुभ मन हंस नित मेव लाल रे || चरण शरण मोहि आशरो, भवभव देवाधिदेव लाल रे || श्री० ॥ ४ ॥ अधम उद्धारण छो तुम्हे, दूर हरो भव दुःख लाल रे || कहे जिन हर्ष मया करी, देजो अविचल सुख लाल रे | श्री० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ ॥ स्तवन चोथुं ॥ ॥ चालो सोरठ देश देखावो रसीआ || चालो For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ सोरठ ॥ सोरठ देशमां दोय मोटा तीरथ, गढ गी रनार जय गीरीया ॥ चालो० ॥ १ ॥ रैवत गिरिपर जदुपती केरा, दीक्षा केवलज्ञान रसीआ ॥ चा० ||२|| राजुलनार नेमीश्वर साथै, संजम लेइ भवोदधी तरीया || चालो० ॥ ३ ॥ शेत्रुंजय उपर ऋषभ जिनेश्वर, पूर्व नवाणु वार समोसरीया || चालो० ॥ ॥ ४ ॥ तिहां अणगार अनंत अपारा, अणसण ग्रही शिवसुख वरीया ॥ चालो० ॥ ५ ॥ नाभी रायाने करु जुहार, पावन करु सब मोह परीया ॥ चालो० ॥ ६ ॥ हीणा अवतार न होत लीगारा, ज्ञान विमल प्रभु सीर धरीया || चालो० ॥७॥ इति ॥ ॥ स्तवन पांचमुं ॥ ॥ शत्रुंजयनो वासी प्यारो लागे, मोरा राजींदा ॥ इणि डुंगरीयारी झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर विराजे || मोरा राजींदा ॥ शत्रुं० ॥ १ ॥ चउमुख बिंब अनोपम छाजे, अद्भुत दीठां दुख भाजे ॥ मोरा० ॥ शत्रुं० ॥२॥ कानेजी कुंडल मुगट विराजे, For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha ३२७ बांहे बाजुबंध छाजे ॥ मोरा० ॥ शत्रु० ॥३॥ चुवा चुवा चंदन ओर अरगजा, केशर तिलक विराजे ॥ मो० ॥ शत्रु० ॥४॥ इण गिरि साधु अनंता सीधा, कहेतां पार न आवे ॥ मो० ॥ शत्रु० ॥५॥ शान विमल प्रभु इणीपरे बोले, आ भवपार उतारो ॥ मोरा राजींदा शत्रु०॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री नवपद महिमा वर्णन श्री सिद्धचक्रजीतुं स्तवन ।। ॥ सांभलरे तुं सजनी मोरी, रजनी क्यां रमीआवीजी ॥ ए देशी ॥ ॥सिद्धचक्र वर सेवा कीजे, नरभव लाहो लीजेजी ॥ विधी पूर्वक आराधन करतां, भव भव पा. तिक छीजे, भवीयण भजीयेजी ॥ अवर अनादीनी चाल, नित्य नित्य तजीयेजी ॥ ए आंकणी ॥१॥ देवना देव दयाकर ठाकर, चाकर सुरनर इंदाजी ॥ त्रिगडे त्रिभुवन नायक बेग, प्रणमो श्री जिनचंदा ॥ भवी०॥२॥ अज अविनाशी अकल अजरामर, केवल दंसण नाणीजी ॥ अव्याबाध अनंतु वीरज, For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्ध प्रणमो भवी प्राणी ॥ नवी० ॥३॥ विद्या सौभाग्य लक्ष्मी पीठ, मंत्र जोगराज पीठजी ॥ सुमेरु पीठ पंच प्रस्थाने, नमो आचारज इष्ट ॥ भवी० ॥ ॥ ४ ॥ अंग उपांग नंदि अनुयोगा, 3 छेदने मूल चारजी ॥ दस पयन्ना एम पणयालीस, पाठक तेहना धार ॥ भवी०॥ ५ ॥ वेद त्रणनें हास्यादिक षट, मिथ्यात्व चार कषायजी || चउद अभ्यंतर नवविध वाह्यनी, ग्रंथी त्यजे मुनिराज ॥ भवी० ॥६॥ उपशम क्षय उपशमने क्षायिक, दरशण त्रण प्रकारेंजी ॥ श्रद्धा परणति आतम केरी, नमिये वारंवार ॥ भवी० ॥७॥ अठावीस चौदने खट दुग एक, मत्यादिकना जाणजी ॥ एम एकावन भेदे प्रणमो, सातमुं पद वरनांण ॥ भवी०॥ ८॥ निति ने अपर्ति भेदे, चारित्र छे व्यवहारेंजी ॥ निज गुण थिरता चरण ते प्रणमो, निश्चय शुरु प्रकार ॥ भवी० ॥ ९॥ बाह्य अभ्यंतर तप ते संवर, सुमता निर्जरा हेतुजी ॥ ते तप नमिए भाव धरिने, भव सायरमां सेतु ॥ भवी० ॥१०॥ ए नवपदमां पांच छे धर्मी, धर्म ते वरते चा For Private And Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रजी ॥ देवगुरुने धर्म ते एहमां, दो तीन चार प्रकार ॥ भवी० ॥ ११ ॥ मारग देशक अवीनाशी पणो, आचार विनय संकेतजी ।। सहायपणुं धरता साधुजी, प्रणमो एहीज हेतु ॥ नवी० ॥ १२ ॥ विमलेश्वर यक्ष सानिध्य सारे, उत्तम जे आराधेजी॥ पद्मविजय कहे ते भवी प्राणी, निज आतमहित साधे ॥ भवी० ॥२३॥ ॥ स्तवन बीजं ॥ ___॥ आछे लालनो देशी ॥ ॥ नवपद महिमा सार, सांभलजो नरनार ॥ आछे लाल ॥ हेज धरी आराधीयेंजी॥ तो पामो भ. वपार, पुत्र कलत्र परिवार ॥ आ०॥ नवपद मंत्र आराधीयेंजी ॥१॥ आसो मास विचार, नव आंबिल निरधार ॥ आ० ॥ विधिशुं जिनवर पूजीयेंजो ॥ अरिहंत सिद्धपद सार, गणगुंजी तेर हजार ॥ आ०॥ नव पदनुं इम कीजीयेंजी ॥ २ ॥ मयणा सुंदरी श्री पाल, आराध्यो ततकाल ॥ आ०॥ फलदायक तेहने थयोजी ॥ कंचन वरणी काय, देही तेहनी थाय ॥ । आ० श्री सिद्धचक्र महिमा कह्योजी ॥३॥ सांभलि For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहु नरनार, आराध्यो नवकार ॥ श्रा० ॥ हेज धरी हियडे घणुंजी ॥ चैत्र मासें वली एह, नवपद शुं धरो नेह ॥ आ० ॥ पूज्यो ये शिवसुख घणुंजी ॥ ४ ॥ इणिपर गौतम स्वाम, नवनिधि जेहने नाम ॥आ०॥ नवपद महिमा वखाणीयोजी ॥ उत्तम सागर शिष्य, प्रणमे ते निशदीस ॥ आ०॥ नवपद महिमा जाणीयोजी इति संपूर्ण ॥ ॥ स्तवन त्रीजु ।। ॥ जगजीवन जग वालहो ॥ ए देशी ॥ ॥श्री सिद्धचक्र आराधीये, शिवसुख फल सहकार लालरे ॥ ज्ञानादिक त्रण रत्ननु, तेज चढावण हार लालरे ॥ श्री सिद्ध० ॥ १ ॥ गौतमे पूछता कह्यो, वीर जिणंद विचार लालरे ॥ नवपद मंत्र आराधतां, फल लहे भविक अपार लालरे ॥ श्री सि० ॥ २ ॥ धर्मरथना चार चक्र छे, उपशमने सुविवेक लालरे ॥ संवर त्रीजुं जाणीय, चोसिद्धचक्र छेक लालरे ॥ श्री० ॥३॥ चक्री चक्र रयण बलें, साधे सयल छ खंड लालरे ॥ तिम सिद्धचक्र प्रभावथी, For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेज प्रताप अखंड लालरे ॥श्री सि०॥४॥ मयणाने श्रीपालजी, जपतां बहु फल लीध लालरे ॥ गुण जसवंत जिनेंद्रनो, ज्ञानविनोद प्रसिद्ध लालरे ॥ श्री सि०॥५॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ स्तवन चोथु ।। ॥ निद्रडी वेरण हुइ रही-ए देशी ॥ ॥श्री सिद्धचक्र आराधिये, जिम पामो हो भवि कोमि कल्याण के ॥ श्री श्रीपाल तणी परें, सुख पामोहो लहो निर्मल नाण के ॥ १॥ नवपद ध्यान धरो सदा ॥ चोखे चिचें हो आणी बहु भावके ॥ विधि आराधन साचवो, जिम जगमांहो होये जसनो जमावके ॥ नव० ॥२॥ केशर चंदन कुसुमशु, पूजी, ने हो उखेवीये धूपके ॥ कुंदरु अगरने अरगजा, तप दीनता हो कीजें धृतदीपके ॥ नव० ॥ ३॥ आशो चैत्र शुक्लपक्षे, नवदिवसहो तपकीजें एहके ॥ सहज सोभाग सुसंपदा, सोवन सम हो जलके तस देहके ॥ नव० ॥ ४॥ जाव जीव शक्ते करो, जिम पामो. For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar हो नित्य नवला भोगके ॥ चार वरस साडा तथा, जिनशासन हो ए मोहोटो योगके ॥ नव० ॥ ५॥ ॥ श्री विमलदेव सान्निध्य करे, चक्केसरी हो होये तास सहाय के ॥ श्री जिनशासन सोहियें, एह करतां हो अविचल सुख थायके ॥ नव० ॥ ६॥ मंत्र तंत्र मणि उषधि, वश करवा हो शिवमणी काजके ॥ त्रिभुवन तिलक समो वडी, होये ते नर हो कहे नय कविराज के ॥ नव०॥ ७॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीपर्युषणचं स्तवन ।। ॥ आंखडीयें अमे आज शेत्रंजो दीठो रे ॥ ए देशी ॥ सुणजो साजन संत, पजुसण आव्या रे ॥ तुमें पुण्य करो पुण्यवंत, नविक मन जाव्यां रे ॥ वीर जिणेसर अतिअलवेशर ॥ वाला मारा ॥ परमे, श्वर एम बोले रे ॥ पर्वमांहे पजूसण मोहोटां, अवर न आवे तस तोले रे ॥ पजु०॥ तुमें०॥ भ० ॥१॥ चौपगमाहे जेम केशरी मोहोटो ॥ वा० ॥ खगमां गरुड ते कहिये रे ॥ नदीमांहे जेम गंगा मोहोटी, नगमां मेरु लहियें रे ॥ पजु० ॥ तु० भ०॥ २॥ भू For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३३ पतिमां भरतेसर भांख्यो || वा० ॥ देवमांहे सुरेंद्र रे ॥ तीरथमां शेत्रंजो दाख्यो, ग्रहगणमां जेम चंद्र रे ॥ पजु० ॥ ० ॥ भ० ॥ ३ ॥ दसरा दीवाळीने वळी होळी ॥ वा० ॥ अखात्रीज दीवासो रे ॥ बलेव प्रमुख बहुला छे बीजा, पण नहि मुक्तिनो वासो रे || पजु० ॥ तु० ॥ भ० ॥ ४ ॥ ते माटे तमे अमार पळावो || ॥ वा० ॥ अठ्ठाइ महोच्छव कीजें रे || अहम तप अधिकांइयें करीने, नरजव लाहो लीजें रे ॥ पजु० ॥ तु० ॥ ज० ॥ ५ ॥ ढोल ददामा भेरी नफेरी | ॥ वा० ॥ कल्पसूत्रने जगावो रे || झांझरना झमकार करीने, गोरीनी टोळी मळी आवो रे | पजु० ॥ तु० ॥ भ० ॥ ६ ॥ सोनारूपाने फुलडे वधावो ॥ वा० ॥ कल्पसूत्रने पूजो रे ॥ नव वखाण विधियें सांभलतां, पापमेवासी धूजो रे ॥ पजु० || तु० ॥ ज० ॥ ७ ॥ एम अठाइनो महोत्सव करतां ॥ वा० ॥ बहु जीव जगउद्धरया रे ॥ विबुध विमळ वर सेवक एहथी, नवनिधि रुद्धि सिद्धि वरया रे || पजु० ॥ तु० ॥ भ० ॥ ८ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ ॥ अथ श्री जिन प्रतिमां उपर स्तवन || ॥ चोपाइनी देवीमां ॥ || जेहने जिनवरनो नहीं नाप, तेहनुं पासुं न मेले पाप || जेहने जिनवरशुं नहीं रंग, तेहनो कदी न कीजें संग ॥ १ ॥ जेहने नहीं वाहाला वीतराग, ते मुक्तिनो न लहे ताग || जेहने भगवंतशुं नहीं ॥ भाव, तेहनी कुण सांभलशे राव ॥ २ ॥ जेहने प्रतिमाशुं नहीं प्रेम, तेतो पामे नहिं समकित ॥३॥ जेहने प्रतिमाशुं छे वेर, तेहनी कहो शी थाशे पेर ॥ जेहने जिनप्रतिमा नहीं पूज्य, आगम बोले तेह अपूज्य ||४|| नाम थापना द्रव्य ने भाव, प्रभुने पूजो लही प्रस्ताव ॥ जे नर पूजे जिननां बिंब, ते लहे विचल पद विलंब ॥ ५॥ पूजा अविलंब ॥ ५॥ पूजा छे मुक्तिनो पंथ, नित नित भांखे इम भगवंत ॥ ४ ॥ सहि एक नर कविना निरधार, प्रतिमा के त्रिभुवनमां सार ||६|| सतर अठाएं आषाढी बीज, उज्वल कीधुं छे बोध बीज ॥ इम कहे उदयरतन उवज्झाय, प्रेमें पूजो प्रभुना पाय ॥७॥ इति जिनप्रतिमा स्तवनं ॥ For Private And Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५ ॥ अथ समवसरणनुं स्तवन ।। ॥ एक वार गोकुल आवजो गोविंदजी ॥ ए देशी ॥ ॥ एक वार वच्छ देश आवजो. जिणंद जी, एक वार वच्छदेश आवजो ॥ दरिसण नयन ठेरावजो ॥ जिणंद जी, एकवार वच्छदेश आवजो ॥ जयंतीने पाय नमावजो ॥ जि० ॥ एक०॥ वली समोवसरण देखावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ ए आंकणी ॥ समोवसरण शोभा जे दीपी, क्षण क्षण सांभरी आवशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ भूतल सुगंधी जल वरसावे, फूलना पमर भरावशे || जि० ॥ एक० ॥१॥ कनक रतननो पीठ करीने, त्रिगमानी शोभा रचावशे ॥ जि. ॥ एक० ॥ रूपानो गढने कनक कोशीशां, बचें रतन जडावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥२॥रतनगढें मणिना कोशीशां, झगमग ज्योति दीपावजो ॥जि० ॥ एक० ॥ चारे दुवारें एंशी हजारा, शिव सोपान चढावजो ॥ जि० ॥ एक०॥ ३ ॥ देव चार कर आयुद्ध धारी, छारें खडा करे चाकरी ॥ जि. ॥ एक० ॥ दूर पासथी एक समे वंदे, जरंतीने लघु छोकरी ॥ जि०॥ For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ एक० ॥ ४॥ सहस्त योजन ध्वज चार ते ऊंचा, तोरण चड अठ वावडी ॥ जि० ॥ एक० ॥ मंगल आठने धूप घटाली, फुलमाल कर पूतली ॥जि०॥एक० ॥५आठ सुरी बीजे गढद्वारे, रत्न गर्दै चउ देवता ॥ जि० ॥ एक० ॥ जाती वैर छंडी पशु पंखी, तुज पद कमलने सेवता ॥ जि०॥ एक० ॥ ६॥ पंचवरणमयी जल थल केरां, फूल अमर वरसावता॥जि. ॥एक० ॥ परखदा बार ते ऊपर बेसे, मुनि नरनारी देवता ॥ जि० ॥ एक० ॥ ७ ॥ आवश्यक टीकायें पण उत्तर, थाये न कुसुम किलामणी ॥ जि०॥एक० ॥साधवी वैमानिकनी देवी, उभी सुणे दोय चूरणी ॥ जि०॥ एक० ॥८॥ बत्रीश धनुष अशोक ते उंचो, चामर छत्र धरावजो ॥ जि०॥ एक०॥चउमुख रयण सिंहासन बेसी, अमृत वयण सुणावजो ॥ जि०॥ एक० ॥९॥ धर्मचक्र भामंडल तेजें, मिथ्या तिमिर हरावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ गणधर वाणी जब अमें सुणीयें, तब देवच्छंदे सुहावजो ॥जि०॥एक० ॥१०॥ देवतासुरि कवि साचुं बोले, जिहां जाशो तिहां आ For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३३७ वशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ रंभादिक अपच्छरनी टोली, वंदी नमी गुण गावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ ११ ॥ अंतरयामी दूरे विचरो, मुझ चित्त भीनुं ज्ञानशुं ॥ जि. ॥ एक० ॥ हृदयथकी जो दूरे जाओ, तो अमे कौतुक मानशु॥ जि०॥ एक०॥१२॥ सुलसादिक नव जिनपद दीg, अमशुं अंतर एवडो । जि०॥ एक० ॥ वीतराग जो नाम धरावो, सहुने सरिखा तेवडो ॥ जि० ॥ एक०॥ १३ ॥ ज्ञाननजरथी वात विचारो. रागदशा अम रूअडी ॥ जि०॥ एक० ॥ सेवक रागें साहेब रीजो, धन धन त्रिशला मावडी ॥ जि०॥ एक० ॥ १४ ॥ तुज विण सुरपति सघला तूसे, पण अमें आमण दूमणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ श्रीशुभवीर हजूर रहेतां, उन्लव रंग वधामणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ ॥१५॥ इति श्री समवसरण स्तवन ।। संपूर्ण ॥ ॥ अथ सिद्धपद स्तवन ।। ॥श्रीगौतम पृच्छा करे, विनय करी शीशनमाय प्रभुजी ॥ अविचल स्थानक में सुण्यं. कृपा करी मोय बताय प्रनुजी ॥ शिवपुर नगर सोहामणुं ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ ए आंकणी ॥ आठ कर्म अलगां करी, सारथां आतम काम हो ॥ प्र०॥छुट्या संसारनां दुःखथकी, तेणे रहेवानुं किहां ठाम हो ॥ प्र० ॥ शि० ॥२॥ वीर कहे जर्व लोकमां, सिद्ध शिलातणुं गम हो गौतम । स्वर्ग छवीशनी उपरें, तेहना बारे नाम हो ॥ गौ०॥ शि० ॥ ३ ॥ लाख पिस्तालीश जोजना, लांबी पोहोली जाण हो॥ गौ० ॥ आठ जोजन जाडी विचें, छेडे मांख पंख ज्यु जाण हो ॥ गौ०॥ शि०॥ ॥४॥ उज्वल हार मोती तणो, गोदुग्धशंख वखाण हो ॥ गौ० ॥ ते थकी ऊजली अति घणी, उलट छत्र संठाण हो ॥ गौ०॥ शि० ॥ ५॥ अर्जुन स्वर्णसम दीपती, गवारी मवारी जाण हो ॥ गौ० ॥ फटक रत्न थकी निर्मली, सुंआली अत्यंत वखाण हो ॥ गौ०॥ शि० ॥६॥ सिद्धशिला ओलंघी गया, अधर रह्या सिद्ध राज हो ॥गौ०॥ अलोकशुं जाई अड्या, सारयां आतम काज हो ॥ गौ० ॥ शि०॥७॥ जन्म नहीं मरण नहीं, नहीं जरा नहीं रोग हो ॥ गौ०॥ वैरी नहीं मित्रज नहीं, नहीं संजोग विजोग हो ॥ For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३९ गौ० ॥ शि० ॥ ८ ॥ भूख नहीं तरषा नहीं, नहीं हर्ष नहीं सोग हो । गौ० ॥ कर्म नहीं काया नहीं, नहीं विषया: रस योग हो ॥ गौ० ॥ शि० ॥ ९ ॥ शब्द रूप रस गंध नहीं, नहीं फरस नहीं वेद हो ॥ गौ० ॥ बोले नहीं चाले नहीं, मौनपणुं नहीं खेद हो | गौ० ॥ शि० ॥ १० ॥ गाम नगर तिहां कोइ नहीं, नहीं वसती न उजाड हो । गौ० ॥ काल सुगाल व नहीं, रात दिवस तिथि वार हो ॥ गौ० || शि० ॥ ११ ॥ राजा नहीं परजा नहीं, नहीं ठाकुर नहीं दास हो || गौ० ॥ मुक्तिमां गुरु चेला नहीं, नहीं लघु वडाई तास हो । गौ० ॥ शि० ॥ १२ ॥ अनंतां सुखमां झीली रह्या, अरुपी ज्योति प्रकाश हो || गौ० ॥ सहु कोइने सुख सारीखां, सघलानें अविचल वास हो || गौ० ॥ शि० ॥ १३ ॥ अनंत सिद्ध मुगतें गया, वली अनंता जाय हो || गौ० ॥ अवर जग्या रुंधे नहीं, ज्योतिमां ज्योति समाय हो ॥ गौ० शि० ॥ १४ ॥ केवलज्ञान सहित छे, केवल दर्शन खास हो ॥ गौ० ॥ खायक समकित दीपतुं, कदीय For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३४० न होवे उदास हो ॥ गौ० ॥ शि० ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरूप जे ओलखे, आणी मन वैराग हो । गौ० ॥ शिवसुंदरी वेगें वरे, नय कहे सुख अथाग हो ॥ गौ० ॥ शिव० ॥ १६ ॥ इति श्री सिद्धस्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री सिद्ध भगवाननुं स्तवन ॥ ॥सिद्धनी शोभा रे शी कहुं ॥ ए अांकणी॥ ॥ सिद्ध जगत शिर शोलता, रमता आतमराम ॥ लक्ष्मी लीलानी लेहेरमां, सुखिया छे शिव ठाम ॥ सि० ॥१॥ महानंद अमृतपद नमो, सिद्धि कैवल्य नाम ॥ अपुनर्भव ब्रह्मपद, वली अक्षय सुख विशराम ॥ सि० ॥२॥ संश्रेय निःश्रेय अक्षरा, दुःस्व समस्तनीहाण ॥ निवृत्ति अपवर्गता, मोद मुक्ति निरवाण ॥ सि०॥ ३ ॥ अचल महोदय पद लघु, जोतां जगतना ठाठ ॥ निज निजरूपं रे जुजुआं, वीत्यां कर्म ते आठ ॥ सि० ॥ ४ ॥ अगुरुलधु अवगाहना, नामें विकसे वदन्न ॥ श्री शुभवारने बंदतां, रहिये सुखमां मगन्न | सि०॥५॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३४१ ॥ अथ एकादल गणधरनुं प्रभातीयुं ॥ ॥ चालोने प्रीतमजी प्यारा शेजेजे जइये ए देशी॥ ॥प्रभाते उठीने भविका गणधर वंदो ॥ गणधर बंदोरे भविका गणधर वंदो ॥ प्रजा० ॥ इंद्रभूति नाम पहेलारे गणधर, जीवनो संदेह ॥ अग्निभूतिने कर्मनो संदेह, नमिये गुण गेह ॥ प्रभा० ॥१॥ जीव शरीर बे एकज माने, वायुभुति नामे ॥ गौतम गोत्र सहोदर त्रण, प्रणमं पुन्य कामे ॥ प्रभा०॥२॥ चोथा गणधर व्यक्तजी वंदो, सर्व सुन्य माने ॥ आ लव परभव सरखो थावे, सोहम अनिधाने ॥ प्र॥३॥ मंडित गणपति छठारे जिनना, बंध मोद टाले ॥ मौरीय पुत्रने देवनो संदेह, हैयडामे साले ॥प्रभा०॥ ॥४॥ नारको जगमां नजरे न देखे, अकंपित बोले॥ अचल भ्राताजी पून्य पाप दोय, संशयमा डोले ॥ ॥ प्रना० ॥ ५ ॥ मेतारजने पर भव शंका, गणपति परजासे ॥ मोक्ष घटे नहि युक्ति करतां, आव्या प्रभु पांसे ॥प्रभा० ॥ ६॥ संदेह भांगीने मुक्ति देखाडे, जिनवर माहावीर ॥ केवळनांणी प्रभने वांदी. बुज्या For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir રૂકર माहा धीर ॥ प्रभा०॥७॥चुमालोसेय ब्राह्मण साथे लेइ श्रमण दीक्षा ॥ पांमे एकादश प्रभुनी पासे, त्रिपदीनी शिक्षा॥ प्रभा०॥८॥ द्वादशांगी रचे सघलारे गणधर, करे जिनवर सेवा ॥ उत्तम गुरु पद पाये नमतां, लहीये शिव मेवा ॥ प्रभाते० ॥ ९ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ अठाई स्तवन लिख्यते ॥ दूहा ॥ स्यादवाद सुद्धोदधि । वृद्ध हेतु जिनचंद ॥ परम पंच परमेष्टीमां । तास चरण सुखकंद ॥१॥ त्रिगुण अगोचर नाम जे । बुद्धि शानमां तेह ॥ थया लोकोतर सत्वथी । ते सर्वे जीनगेह ॥ ॥ २॥ पंच वरण अरिहा विभु । पंच कल्याणक ध्येय ॥ खट अठाइ स्तवन रचुं॥प्रणाम अनंत गुणगेह ॥३॥ ॥ढाल पहेली ॥ कपुर होए अति उजलो रे ॥ ए देशी ॥ चैत्र मास सुदि पदमां रे । प्रथम अठाइ संयोग ॥ सिद्धचक्रनी सेवना रे । अध्यातम उपयोगरे ॥ भविका पर्व अठाइ आराध ॥ जिम वंछित सुख साध रे ॥ भविका० ॥१॥ ए आंकणी ॥ पंच परमेष्टी त्रिकालनां रे । उत्तर चउ गुणकंत ॥ सास्वता For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४३ पद सिद्धचक्रनां रे । वंदतां पुन्य महंत रे ॥भ० ॥२॥ लोचन कर्ण युगल मुखे रे । नासिका अग्र निलाम ।। तालु सिर नाभि रदे रे । मुंह मध्ये ध्यान पाठ रे ॥ ॥ भ० ॥ ३ ॥ आलंबन स्थानक कह्यां रे । ज्ञानियें देह मझार ॥ तेहमां विगत विषयपणे रे । चितमां एक आधार रे ॥ भ० ॥ ४ ॥ अष्ट कमलदल कर्णीका रे ॥ नव पद थापो भाष ॥ बहिर यंत्र रचि करी रे ॥ धारो अनंत अनुभाव रे ॥ भ० ॥ ५॥ आसो सुदि सातम थकी रे ॥ बिजे अंगे मंडाण ॥ बसें त्रेतालीस गुणे करी रे । असिआ उसादिक ध्यान रे ॥ भ०॥ ॥६॥ उत्तराध्ययन टिका कहे रे । ए दोय सास्वति पात्र ॥ करता देव नंदिसरे रे। नर जिम ठाम सुपाशरे ॥ भविका० ॥७॥ ॥ ढाल बीजी॥ भविका सिद्धचक्र पद वंदो ॥ ए देशी ॥ __ आसाढ चोमासानो अठाइ । जिहां अभिग्रह अधिकाई ॥ कृष्ण कुमारपाल परें पालो । जिवदया चित लाइ रे ॥ प्राणी अठाइ मोछव करीयें । सचित आरंभ परिहरीये रे ॥ प्रा० ॥१॥ दिसि गमन तजो For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ वर्षा समयें, भक्ष्यानक्ष्य विवेक ॥ अछति बरनु पण विरतियें। बहु फल वंकचुल विवेक रे ॥ प्रा० ॥२॥ जे जे देह ग्रहीने मुक्यां । जे जे हिंसा थाय ॥ पाप अकर्षण अविरति योगे ॥ ते जिवे कर्म बंधाय रे ॥ ॥प्रा० ॥३॥ सायक देहता जिव जे गतिमां ॥ वसिया तस होय कर्म ॥ राजा रंकने किरीया सरिखी, भगवति अंगनो मर्म रे ॥ प्रा० ॥ ४॥ चोमासि आ. वस्यक काउसगना ॥ पंच सत माने उसासा ॥ छठ तपनी आलोयण करतां ॥ विरति धर्म उल्लास रे ॥ ।। प्रा०॥५॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ जिन रयण जी दस दिस निरमलता धरे ॥ ए देशी॥ कार्तिक सुदीमां जी घरम वासर अड धारीये। तिम वली फागुणे जी पर्व अठाइ संभारी ॥ त्रण अटाइ जी चोमासा त्रण कारणीं ॥ भवी जिवनां जी पातिक सर्व निवारणी ॥१॥ त्रुटक ॥ निवारणी पातिक तणी ए जाणी ॥ अवधिज्ञाने सुरवरा ॥ निका य चारना इंद्र हर्षित, वंदे निज निज अनुचरा ॥ अठाइ महोत्सव करण समये, सास्वता ए देखीयें ॥ For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४५ सवि सज थाओ देवदेवी, घंट नाद विसेषिये ॥२॥ ॥ चाल ॥ वली सुरपति जी उदघोषणा सुरलोकमां, नीपजावे जी परिकर सहित असोकमां ॥ द्विप आठमे जी नंदिश्वर सवि आविया, सास्वति प्रतिमा जी प्रणमि वधावे भावीया ॥३॥ त्रुटक ॥ भावीया प्रणामि वधावे प्रभुने, हरष बहुले नाचता ॥ बत्रीस विधना करीय नाटिक, कोडे सुरपति माचता ॥ हाथ जोडी मान मोडि, अंग भाव देखावती ॥ अपछरा रंभा अति अचंभा, अरिहा गुण आलावति ॥ ४ ॥ चाल ॥त्रण अठाईमां जी खट कल्याणक जिनतणा, तथा आलयजी बावन जिननां बिंब घणां ॥ तस स्तवनाजी सद्भूत अर्थ वखाणतां, ठाम पोहचे जी, पछे जिन नाम संभारतां ॥ ५॥ त्रुटक || संभारतां प्रभुनुं नाम निसदिन, परव अठाइ मन धरे ॥ समकित निरमल करण कारण, सुभ अभ्यास ए अनुसरे ॥ नर नारी समकितवंत भावे, एह पर्व आराधशे ॥ विघन निवारे तेहनां सहि, सौभाग्य लक्ष्मी बाधा ॥ ढाळ चोथी ॥ आदि जिणंद मया करी ॥ ए देशी ॥ परव पजुसणमां सदा, अमारी पडहो बजडावो For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३४६ रे ॥ संघ भगति द्रव्य भावथी, साहमिवछल शुभ दावरे ॥ महोदय पर्व महिमा निधि ॥ १॥ साहमीवछल एकण पाले, एक कर्म समुदाय रे । बुद्धि तोलायें तोलीये, तुल्यलाभ फल थाय रे ॥ म० ॥२॥ उदाइ चरम राजरूषी, तिम करो खांमणां सत्यरे ॥ मिच्छामिदुकडं देइने, फरी सेवो पाप वत्तरे ॥ म०॥ ॥३॥ तेह कह्या माया मृषावादी, आवसक नियुक्ति माह रे ॥ चइत परवामि किजीयें, पूजा त्रिकाल उछांह रे ॥ म० ॥ ४ ॥ छेहली च्यार अठाइयें, महामहोत्सव करे देवा रे ॥ जिवाभिगमे ईम उचरे, प्रभु शासनना ए मेवा रे ॥ म०॥५॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए. देशी ॥ अमिनो तप वार्षिक पर्वमां, सल्य रहित अविरुद्धजी रे, कारक साधक प्रभुता धर्मनो, इछारोध होय सुद्ध जी रे ॥ तपने सेवो रे विरती नवी छुटे ।। ॥१॥ सो वरसे रे कर्म अकामथी, नारकि ते तो सकामे जी रे ॥ पाप रहित होय नवकारसी थकी, दस गुणो लाभ उदार जी रे ॥ त०॥२॥ दश लाख For Private And Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४७ कोड वरसनुं अठमे, पुरित मिटे निरधारो जी रे ॥ पंचास वरस सुधी तप्यां लखमणां, माया तप नवि शुद्ध जी रे ॥ असंख्य भव भम्यां रे एक कुवचन थकी, पद्मनाभ वारे सिद्ध जी रे ॥ त० ॥४॥ आहार निहरता रे सम्यग तप कह्यो, जुयो अभ्यंतर तत्व जी रे ॥ भवोदधि सेतु रे अठम तप भणी, नागकेतु फल तप जी रे ॥ त० ॥ ५॥ ॥ ढाल छठी ॥ स्वामी श्रीमंधर विनती ॥ ए देशी ॥ वार्षिक पडिकमणां विषे । एकहजार शुभ आठ रे । सास उसास काउसग तणां। आदरी त्यजो कर्म काठ रे ॥ प्रभु तुम शासन अति भलं ॥१॥ दुग लख चउ सय अम कह्यां। पल्य पणयालिस हजार रे ॥ नव भांगे पल्यना चउ ग्रह्या । सासमां सुर आयु सार रे ॥प्र०॥२॥ उगणिस लाखने त्रेसठी। सहस बसें सतसठि रे ॥ पल्योपम देव- आउखुं । नोकार काउसग जीठ रे ॥प्रण॥३॥ एकसठ लाख ने पणतीसा। सहस बसें देश जाण रे ॥ एता पल्यनुं सुर आउखुं । लोगस काउसग मान रे ॥०॥४॥ धेनुं For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ धण रुपे रे जीवनां । अचल छे आठ प्रदेश रे ॥ तेह 1 परे सर्व निर्मल करे | पर्व अठाइ उपदेश रे ॥ ५॥ || ढाल सातमी || लीलावंत कुंवर भलो ए देशी ॥ सोहम कहे जंबु प्रते । ज्ञानादि धर्म अनंत रे विनीत || ए आंकणी || अर्थ प्रकाशे विरजी । तिम में रचिओ सिद्धांत रे ॥ विनीत ॥ १ ॥ प्रभु आगम भलो विश्वमां ॥ षठ लाख ऋणसें ने तेत्रीस । ए गुणा साठ हजार रे ॥ वि० ॥ पीस्तालीस आगम तणो । संख्या जगदाधार रे || वि० ॥ २ ॥ प्र० ॥ आठमीए जीन केवळ रवि । सुत दीपे व्यवहार रे ॥वि०॥ उभय प्रकाशक सूत्रनो । संप्रति बहु उपगार रे ॥ ०॥ ३ ॥ प्र० ॥ पुन्य क्षेत्रमां सिद्ध गिरी, मंत्रमहे नवकार रे ॥ वि० ॥ शुक्लध्यान छे ध्यानमां, कल्पसूत्र तिम सार रे ॥वि० ॥४॥ प्र०॥ विर वर्णव छे जेहमां, श्री पर्वतसु सेव रे || वि० || छठ तपे कल्पसूत्र सुणे सुदा, उचित विधि ततखेव रे ॥वि० ॥ ५ ॥ प्र०|| || ढाल आठमी ॥ तपसु रंग लाग्यो | ए देशी ॥ नेउ सहस संप्रति नृपे रे, उद्धार्या जैन प्रासाद For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९ रे ॥ छतिस सहस नवां करयां रे, निज आयु दिनवाद रे || मनने मोठे रे || पूजो पूजो महोदय पर्व, महोत्सव भोटे रे ॥१॥ असंख्य भरतना पाटवी रे, अठाइ धर्मनां कामिरे, सिद्धगिरीयें शिवपूरी वरया रे, अजरामर शुभ धामि रे ॥०॥२॥ युगपरधान पूरव धणी रे; वयर स्वामी गणधार रे ॥ निज पितु मित्र पासे जइरे, जाच्यां फूल तइयाररे ॥ म० ॥ ३ ॥ वीस लाख फूल लेइनेरे, आव्या गिरी हिमवंत रे || श्रीदेवी हाथे लीया रे || महा कमल गुणवंत रे ॥ म० ॥ ४ ॥ पछे जिनगिरीने सुंपियां रे । सुभीक्षा नयर मझाररे ॥ सुगत मत उछ दिनेरे, शासन सोभा अपाररे म० ॥५॥ || दाल नवमी | भरत नृप भावशुं प ॥ ए देशी ॥ पतिहारज अड पामीये ए, सिद्ध प्रभुना गुण आठ, हरष धरी सेवी ए ॥ ज्ञान दर्शन चारित्रनां ए, आठ आचारणां पाठ ॥ ० ॥ सेवो सेवो पर्व महंत ॥० ॥ १ ॥ पण माता सिद्धिनुं ए, बुद्धि गुणां अड दृष्ट || ह० ॥ गणि संपद अड संपदा ए, आठमी गति दिये पुष्ट कर्म अड दोषने ए, अवधि मद || ह० ॥ २ ॥ आठ परमाद || ह || परि For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० हरी आठ आठ कारण, भजीए अप्रभावक आठ॥ह. ॥३॥ गुजर हलि देशमा ए, अकबरशाह सुलतान ॥०॥ हिरजी गुरुनां वयणथी ए, अमारी पडह वजडावी ॥ ह० ॥४॥सेनसुरी तपगच्छ मणि ए, तिलक आणंद मुर्णिद ॥०॥ राज्यमान रिद्धि लहे ए, सौभाग्य लक्ष्मी सुरिंद ह ॥५॥ सेवो सेवो पर्व महंद ॥ ह० ॥ पुजा जिनपद अरविंद ॥ ह० ॥ पुन्य पर्व सुखकंद ॥ह० ॥ प्रगटे परमाणंद ॥ ह० ॥ कहे एम लक्ष्मी सुरिंद ॥ ह०॥ ६ ॥ ___ एम पास प्रभुनो पसाय पामी, नामि अगइ गुण कह्या ॥ भवि जीव साधो नित याराधो, आत्म धर्मे उमयां ॥ १॥ संवत जिन अतिशय वसु, ससी चैत्र पुनमे ध्याइया ॥ सौजाग्यसुरी शिष्य लक्ष्मीसुरी बहु, सघ मगल पाइया ॥२॥ ॥ इति श्री अठाइ महोत्सव स्तवन सम्पूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री महावीरस्वामीना सत्तावीश भवन पंचढालियुं ॥ श्री शुभविजय सुगुरु नमी, नमी पद्मावती ॥दोहा॥ For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५१ माय ॥ भव सत्तावीश वर्णवं सुणतां समकित थाय ||१|| समकित पामे जीवने, भव गणतीए गणाय ॥ जो वली संसारे भमे, तोपण मुगते जाय ॥ २ ॥ वीर जिनेश्वर साहेबो, जमीयो काल अनंत ॥ पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत ||३|| ॥ ढाल पहेली || कपूर होय अति उजलो रे ॥ ए देशी पहेले भवे एक गामनो रे, राय नामे नयसार || काष्ट लेवा अटवी गयो रे, भोजन वेळा थाय रे ॥ प्राणी धरिये समकित रंग, जिम पामिये सुख अभंग रे ॥ प्राणी ॥ धरिये ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ मन चिंते महिमा नीलो रे, आवे तपसी कोय ॥ दान देइ जोजन करूं रे, तो वंछित फळ होय रे || प्राणी० ॥२॥ मारग देखी मुनिवरे, वंदे देइ उपयोग || पुछे केम भटको इहां रे, मुनि कहे साथ विजोगरे || प्राणी || ३ || हरष भरे तेडी गयो रे, पकिलाभ्या मुनिराज ॥ भोजन करी कहे चालीए रे, साथ भेळा करूं आज रे ॥ प्राणी ॥४॥ पगवटीये भेळा करया रे, कहे मुनि द्रव्य ए मार्ग ॥ संसारे भूला भमो रे, जाव मारग अपवर्ग रे ॥ प्राणी० For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ॥५॥ देवशुरु ओळखाविया रे, दोधो विधि नवकार ॥ पश्चिम महाविदेहमां रे, पाम्यो समकित सार रे ॥ प्राणी० ॥६॥ शुभ ध्याने मरी सुर हुओ रे, पहेला सर्ग मझार ॥ पल्योपम आयु चवी रे, भरत घरे अवतार रे ॥ प्राणी० ॥७॥ नामे मरीची जोवनेरे, संयम लीये प्रभु पास ॥ दुष्कर चरण लही थयो रे,, त्रिदंडीक शुज वास रे ॥ प्राणी ॥८॥ ॥ ढाल बीजी ॥ विवाहलानी देशी ॥ नवो वेष रचे तेणी वेळा, विचरे आदिश्वर नेळा ॥ जळ थोडे स्नान विशेष, पग पावडी भगवे वेषे ॥१॥ घरे त्रिदंडी लाकडी म्होटी, शीर मुंडणने घरे चोटी। वळी छत्र विलेपन अंगे, थूलथी व्रत धरतो रंगे ॥२॥ सोनानी जनो राखे, सहुने मुनि मारग भांखे ॥समोसरणे पूछे नरेश, कोइ आगेहोशे जिनेश ॥३॥ जिन जंपे जरतने ताम, तुज पुत्र मरीची नाम वीर नामे थशे जिन छेला, आ भरते वासुदेव पहेला ॥४॥ चक्रवर्ति विदेहे थाशे, सुणी आव्या भरत उहासे For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ मरीचीने प्रदक्षिणा देता, नमी वंदीने एम कहेता ॥५॥ तमे पुन्याइवंत गवाशो, हरिचक्री चरम जिन थाशो ॥ नवि वंदु त्रिदंमिक वेष, नमुं भक्तिए वीर जिनेश ॥६॥ एम स्तवना करी घर जावे, मरीची मन हर्ष न मावे ॥ म्हारे त्रण पदवीनी छाप, दादा जिन चक्री वाप ॥७॥ अमे वासुदेव धुर थइजु, कुल उत्तम म्हारं कहीशुं । नाचे कुळ मदशुं भराणो, नीच गोत्र तिहां बंधाणो ॥८॥ एक दिन तनु रोगे व्यापे, को साधु पाणी न आपे ॥ त्यारे वंछे चेलो एक, तव मळियो कपिल अविवेक ॥९॥ देशना सुणी दीक्षा वासे, कहे मरीची लीयो प्रभु पासे ॥राजपुत्र कहे तुम पासे, लेशं अमे दिक्षा उल्लासे ॥१०॥ तम दरशने धरमनो व्हेम, सुणी चिंते मरिची एम ॥ मुज योग्य मळयो ए चेलो, मूळ कडवे कमवो वेलो ॥११॥ मरीचि कहे धर्म उभयमां, लीये दीक्षा जोबन वयमां॥ एणे वचने वध्यो संसार, ए त्रीजो कह्यो अवतार ॥१२॥ लाख चोरासी पूरव आय, पाळी पंचमे सर्ग सघाय ॥ दश सागर जीवित त्यांही, शुभवीर सदा सुख मांही ॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ ॥ ढाल त्रोजी ॥ चोपाईनो देशी ॥ पांचमे भव कोल्लागसन्निवेश, कौसिक नामे ब्राह्मण वेष ॥ एंशी लाख पूरव अनुसरी, त्रिदंडीयाने वेषे मरी ॥१॥ काल बहु भमीयो संसार, श्रुणापुरी छठ्ठो अवतार ॥ बहोतेर लाख पूरवने आय, विप्र त्रिदंमी वेष धराय ॥२॥ सौधर्मे मध्य स्थितिये थयो, आठमे चैत्य सन्निवेषे गयो ॥ अग्निद्योतं द्विज त्रिदं. डीयो, पूर्व आयुलख साठे मूओ ॥ ३ ॥ मध्य स्थितिये सुर सर्गइशान, दशमे मंदिर पुर द्विजठाण ॥ लाख छप्पन पूरवापुरी, अग्निभूति त्रिदंडीक मरी ॥ ॥ ४ ॥ त्रीजे सरग मध्यायुथिरी, बारमे भव श्वेतांबीपुरी ॥ पुरव लाख चुम्माळीश आय, भारद्वीज त्रिदंडीक थाय ॥ ५॥ तेरमे चोथे सर्गे रमी, काळ घणो संसारे भमी ॥ चउदमे भव राज गृही जाय, चोत्रीश लाख पुरवने आय ॥ ६ ॥ थावर विप्र त्रिदंडी थयो, पांचमे सर्ग मरीने गयो ॥ सोळमे भव कोड वरस समाय, राजकुमार विश्वभूति थाय ॥ ७ ॥ संभूति, मुनि पासे अणगार, दुकर तप करी वरस हजार ॥ For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३५५ मासखमण पारण घरी दया, मथुरामां गोचरीए गया ॥ ८॥ गाये हण्या मुनि पडिया वशा, विशाखानंदी पितरिया हशा ॥ गौशृंगे मुनि गर्व करी, गयण न. छाळी धरती धरी ॥९॥ तप बळथी होज्यो बळ घणी, करी नियाj मुनि अणसणी ॥ सत्तरमे महा शुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सत्तर सागरा ॥ १० ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी॥ अढारमे भवे शात, सुपन सूचितसति ॥ पोतनपुरीये प्रजापति, राणी मृगावती । तस सुत नामे त्रिपृष्ठ, वासुदेव नीपन्या ॥ पाप घj करी सातमी, नरके ऊपन्या ॥ १ ॥ वीशमे भव थइ सिंह, चोथी नरके गया ॥ तीहांथी चवी संसारे, भव बहुळा थया ॥ बावीशमे नर भव लही, पुण्य दशा वरया ॥ त्रेवीशमे राज्यधानी, मूकाये संचरया ॥२॥ राय धनंजय धारणी, राणीये जनमिया ॥ लाख चोराशी पूरव आयु जीविया, प्रिय मित्र नामे चक्रवर्ती दीक्षा लही ॥ कोडी वरस चारित्र दशा पाली सही ॥ ३ ॥ महा शुक्रे थइ देव, इणे भरते चवी ॥ छत्रिका नगरीये For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ जितशत्रु राजवी ॥ भद्रामाय लख पचवीश, वरस स्थिति धरी ॥ नंदन नामे पुत्रे, दीक्षा आचरी ॥४॥ अगीयार लाख ने एंशी, हजार छस्से वळी ॥ ऊपर पीस्ताळीश, अधिक पण दिन रूळी ॥ वीश स्थानक मास खमणे, जावजीव साधता ॥ तीर्थकर नाम कर्म, तिहां निकाचता ॥ ५ ॥ लाख वरस दीक्षा पर्याय ते पाळता ॥ छवीशमे भव, प्राणत कल्पे देवता ॥ सागर वीशनुं जीवित, सुख भर भोगवे ॥ श्री शुभवीर जिनेश्वर, भव सुणजो हवे ॥६॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ गजरामारुजी चाल्या चाकरी रे ॥ ए देशी ॥ नयर माहणकुंममा वसे रे, महा रुद्धि रूषभदत्त नाम ॥ देवानंदा द्विज श्राविकारे, पेट लीधो प्रभु विसराम रे ॥ पेट लीधो प्रभु विसराम ॥ १ ॥ व्याशी दिवसने अंतरे रे, सुर हरिणगमेषी आय ॥ सिद्धारथ राजा घरे रे, त्रिशला कूखे छटकाय रे ॥ त्रि० ॥२॥ नव मासांतरे जनमीयारे, देव देवीये ओच्छव कीध ॥ परणी यशोदा जोवने रे, नामे महावीर प्रसिद्ध रे ॥ ना० ॥ ३॥ संसार लीला भोगवी For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रे, त्रीश वर्षे दीक्षा लीध ॥ बार वरसे हुआ केवळी रे, शिववहुनुं तिलक शिर दीध रे ॥ शि० ॥ ४॥ संघ चतुर्विध थापीयो रे, देवा नंदा रूपभदत्त प्यार ॥ संयम देइ शिव मोकल्यां रे, भगवतीसुत्रे अधिकार रे ॥ भ० ॥ ५॥ चोत्रिश अतिशय शोभता रे, साथे चउद सहस अणगार ॥ छत्रीश सहस ते साधवी रे, बीजो देव देवी परिवार रे ॥ बीजो० ॥ ६ ॥ त्रीश वरस प्रभु केवळी रे, गाम नगर ते पावन कीध ॥ वहोतेर वरस, आउ रे, दीवाळीये शिवपद लीधरे ॥ दीवा० ॥७॥ अगुरु लघु अवगाहने रे, कीयो सादी अनंत निवास ॥ मोहरायमस मूळशुं रे, तन मन सुखनो होय नाश रे ॥ तन मन० ॥ ७ ॥ तुम सुख एक प्रदेशन रे, नवी मावे लोकाकाश ॥ तो अमने सुखीया करो रे, अमे धरीए तुमारी आश रे । अमे० ॥ ९ ॥ अखय खजानो नाथनो रे, में दीठो गुरु उपदेश ॥ लालच लागी साहेबा रे, नवि भजीये कुमति नो लेश रे ॥ नवि० ॥१०॥ म्होटानो जे आशरो रे, तेथी पामीये लील विलास ॥ द्रव्य भाव शत्रु हणी रे, शुभवीर सदा सुखवास रे ॥ शुभ० ११ ॥ For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ ॥ कलश ॥ ओगणीश एके वरस छे के, पूर्णिमा श्रावण वरो ॥ में शुण्यो लायक विश्वनायक, वर्द्धमान जिनेश्वरो ॥ संवेग रंग तरंग झीले, जस विजय समता धरो॥ शुभविजय पंमित चरण सेवक, वीरविजयो जय करो ॥ १२ ॥ ॥ अथ श्रीमहावीर स्वामीनु पालणुं प्रारंभः ॥ ॥ माता त्रिशलायें पुत्र रतन जाओ, चोसठ इद्रनां आसन कंपे सार ॥ अवधिज्ञाने जोइ ध्यायो श्री जिन वीरने, आवे क्षत्रियकुंड नयर मझार ॥ माता ॥१॥ वीर प्रतिबिंब मुकी माता कने, अवस्वापिनी निद्रा दीए सार ।। एम मेरुशिखरे जिनने लावे भक्तिशं, हरि पंच रूप करी मनोहार ॥ माता० ॥२॥ एम असंख्य कोटा कोटी मली देवता, प्रभुने सोचव मंडाणे लइ जाय ॥ पांडुक वन शिलायें जिनने लावे भक्तिशुं, हरि उछंगे थापे इंद्र घणुं उच्छाय।माता॥ ॥३॥ एक कोडी शाठ लाख कलशें करी, वीरनो स्नात्र महोत्सव करे सार ॥ अनुक्रमें वीर कुमरने For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९ लावे जननी मंदिरें, दासी प्रियंवदा जई तेणी वार ॥ माता० ॥ ४ ॥ राजा सिद्धारथने दीधी वधामणी, दासीने दान ने बहु मान दिए मनोहार ॥ क्षत्रिय कुंडम हे उच्छव मंमावियो, प्रजा लोकने हरष अपार || माता०||५|| घर घर श्रीफल तोरण त्राटज बांधियां, गोरी गावे मंगल गीत रसाल ॥ राजा सिद्धारथे जनम महोत्सव कयों, माता त्रिशला थई उजमाल ॥ माता० ॥ ६ ॥ माता त्रिशला फूलावे पुत्र पारणे ॥ ए आंकणी || झूले लाडकडा प्रभुजी आनंद भेर || हरखनिरखिने इंद्राणीयो जाए वारणें, आज आनंद श्री वीरकुमरने घेर ॥ माता० ॥ ७ ॥ वीरना मुख मा उपर वारुं कोटी चंद्रमा, पंकज लोचन सुंदर वि. शाल कपोल || शुकचंचू सरिखी दीसे निर्मल नासिका, कोमल अधर अरुण रंगरोल ॥ माता० ॥ ८ ॥ औषधि सोवनमढी रे शोभे हालरे, नाजुक आभरण सघलां कंचन मोतीहार || कर अंगुठो धावे वीरकुमर हर्षे करी, कांइ बोलावतां करे किलकार | माता० ॥ ॥ ९ ॥ वीरने लिलाडें कीधो छे कुंकुम चांदलो, शोभे For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३६० जडित मर्कत मणिमां दीसे लाल ॥ त्रिशलायें जुगतें आंजी अणियाली बेहु आंखडी, सुंदर कस्तूरीनुं टबकुं की, गाल ॥ माता०॥१०॥ कंचन शोले जातनां रत्ने जडियुं पालj, जुलावती वेला थाए बूधरनो घमकार ॥ त्रिशला विविध वचने हरखी गायें हाललं, खेंचे फूमतिआली कंचन दोरी सार ॥ माता० ॥ ११ ॥ मारो लामकवायो सरखा संगें रमवा जशे, मनोहर सुखडली आपिश एहने हाथ ॥ भोजन वेला रम झम रम झम करतो आवशे, हूं तो धाइने भीडावीश हृदया साथ ॥ माता०॥१॥ हंस कारंडव कोकिल पोपट पारेवडी, मांही बप्पैया ने सारस चकोर ॥ मेनां मोर मेल्या छे रमकडां रमवा तणां, घम घम घुघरा वजावे त्रिशला किशोर ॥ माता०. ॥ १३ ॥ मारोवीरकुमर निशाले भणवा जायशे, साथे सज्जन कुटुंब परिवार ॥ हाथी रथ घोडा पालायें भलु शोभतुं, करी निशालगरणुं अति मनोहार माता०॥१४॥ मारा वीर समाणी कन्या सारी लावरों, मारा कुमरने परणावीश मोहोटे घेर ॥ मारो लाडकडो वर राजा घोडे बेसशे, For Private And Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारो वीर करशे सदाय लीला लहेर ॥ माता०॥ ॥ १५॥ माता त्रिशला गावे वीर कुंमरनुं हालाँ, मारो नंदन जीवजो कोडी वरीस ॥ ए तो राजराजे. सर थाशे जलो दीपतो, मारा मनना मनोरथ पूरशे जगीश || माता० ॥ १६ ॥ धन्य धन्य क्षत्रीकुंड गाम मनोहरु, जिहां वीरकुमरनो जनम गवाय ॥ राजा सिद्धारथना कुलमांहे दिनमणि, धन्य धन्य त्रिशला राणी जेहनी माय || माता० ॥ १७॥ एम सहीयर टोली भोली गावे हालस, थाशे मनना मनोरथ तेहने घेर ॥ अनुक्रमें महोदय पदवी रूपविजय पद पामशे, गाए अमिय विजय कहे थाशे लीला लहेर ॥ ॥ माता ॥१८॥ ॥ अथ श्री महावीर स्वामीनुं हालरीयुं प्रारंभः ॥ ॥ माता त्रिशला झूलावे पुत्र पालणे, मावे हालो हालो हालरुवानां गीत ॥ सोना रूपाने वली रत्ने जडियुं पालj, रेशम दोरी घुघरी वागे छम छम रीत ॥ हालो हालो हालो हालो मारा नंदने ॥१॥ जिनजी पास प्रभुथी वरस अढीशे अंतरे, होशे चो For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ वीशमो तीर्थकर जितपरिमाण ॥ केशी स्वामी मुखथी एवी वाणी सांभली, साची साची हुइ ते मारे अमृत वाण ॥ हा० ॥२॥ चौद स्वपनें होवे चक्री के जिनराज, वीता बारे चक्री नहिं हवे चक्री राज, जि. नजी पास प्रभुना श्री केशी गण धार, तेहेने वचनें जाण्या चोवीशमा जिन राज, मारी कूखें आव्या ता रण तरण झहाज, मारी कूखें आव्या त्रण्य भुवन शिरताज, मारी कूखें आव्या संघ तीरथनी लाज, हुँतो पुण्य पनोति इंद्राणी थइ आज ॥ हा ॥ ॥३॥ मुझने दोहोलो उपन्यो जे बेसुं गज अंबा डीयें, सिंहासनपर बेसं चामर छत्र धराय ॥ सह लक्षण मुझने नंदन ताहरा तेजनां, ते दिन संभारं ने आनंद अंग न माय ॥ हो० ॥४॥ करतल पगतल लक्षण एक हजारने आठ छे, तेहथी निश्चय जाण्या जिनवर श्री जगदीश ॥ नंदन जमणी जंघे लंछन सिंह बिराजतो, में पहेले सुपनें दीहो विशवा वीश ॥ ॥ हा०॥ ५॥ नंदन नवला बंधव नंदीवर्द्धनना तमें, नंदन भोजाइयोना देयर छो सुकुमाल ॥ हसशे भो For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha ३६३ जाइयो कही दीयर महारा लामका, हसशे रमशे ने वली चूंटी खणशे गाल, हसशे रमशे ने वली तुंसा देशे गाल ॥ हा० ॥६॥ नंदन नवला चेडा राजाना भाणेज छो, नंदन नवला पांचशे मामीना भाणेज छो, नंदन मामलीयाना भाणेजा सुकुताल ॥ हसशे हाथे उच्छाली कहीने नाहाना भाणेजा, आंख्यो आंजी ने वली टवकुं करशे गाल ॥ हा० ॥ ७॥ नंदन मामा मामी लावशे टोपी आंगलां, रतने जडीयां झालर मोती कशबी कोर ॥ नीलां पीलां ने वली राता सरवे जातिनां, पहेरावशे मामी महारा नंदकिशोर ॥हा॥ ॥ ८॥ नंदन मामा मामी सुखडली सहु लावसे, नंदन गजुवे भरसे लाडु मोतीचूर ॥ नंदन मुखडां जोइने लेशे मामी भामणां, नंदन मामी कहेशे जीवो सुख भरपूर ॥ हा० ॥ ९॥ नंदन नवला चेमा मामा नी साते सती, मारी भत्रीजी ने बेन तमारी नंद ॥ ते पण गुंजे भरवा लाखणसाई लावशे, तुमने जोइ जोइ होशे अधिको परमानंद ॥ हा० ॥ १० ॥ रमवा काजें लावशे लाख टकानो घूघरो, वली शृडा मेनां For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोपट ने गजराज ॥ सारस हंस कोयल तीतरने वली मोर जी, मामी लावशे रमवा नंद तमारे काज ॥ ॥ हो० ॥ ११ ॥ छप्पन कुमरी अमरी जलकलशे नव राविया, नंदन तमने अमने केलीघरनी मांहे ॥ फूल नी वृष्टि कीधी योजन एकनें मंडले, बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांहे।।हा॥१२॥तमने मेरु गिरि पर सुरपतिये नवराविया, निरखी निरखी हरखी सुकृत लाभ कमाय ॥ मुखडा उपर वारं कोटि कोटि चंद्रमा, वली तन पर वारं ग्रहगणनो समुदाय ॥ हा ॥ १३॥ नंदन नवला भणवा निशाले पण मूकशं, गजपर अं बाडी बेसाडी मोहोटे साज ॥ पसली भरशुं श्रीफल फोफल नागरवेलझुं, सुखडली लेशुं नीशालीयाने काज ॥ हा० ॥ १४ ॥ नंदन नवला मोहोटा थाशो ने परणावगुं, वहवर सरखी जोमी लावशुं राजकुमार ॥ सरखा वेवाई वेवाणुंने पधरावशें, वरवहु पोखी लेशुं जोइ जोइने देदार ॥ हा० ॥ १५ ॥ पीअर सासर माहारा बेहु पख नंदन उजला, महारी कूखें आब्या तात पनोता नंद ॥ महारे आंगण वुठा अमृत दुधे For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६५ मेहुला, महारे आंगण फलिया सुरतरु सुखना कंद ॥ हा० ॥ १६ ॥ इषि परें गायुं माता त्रिशला सुतनुं पालं, जे कोइ गाशे लेशे पुत्र तणा साम्राज ॥ बीली मोरा नगरें वरणव्युं वीरनुं हालरुं, जय जय मंगल होजो दीप विजय कविराज ॥ हा० ॥ १७ ॥ इति || श्री पार्श्वनाथ स्तवन | ॥ पारणानी देशी ॥ || माता वांमादे बोलावे जमवा पासने, जमवा वेला थइछे रमवाने चित जाय ॥ चालो तात तुमारा बहु थाये उतावला वहेला हालोने भोजनीया टाढा थाय ॥ माता० ॥ १ ॥ मातनुं वचन सुणीने जमवाने बहु प्रेमशुं, बुद्धी बाजोट ढाली बेठा थइ हुंशीयार ॥ विनय थाल अजुयाली लालन आगल मूकीयो, विवेक वाटकीयो सोभावे थाल मझार ॥ माता० ॥ ॥ १ ॥ समकित सेलमीना बोलीने गट्टा मूकीया, दाननां दाढम दाणा फोली आप्या खास || समता सिताफलनो रस पीज्यो बहु राजीया, जुक्ती जामफल प्यारा आरोगोने पास || माता० ॥ ३ ॥ मारा For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ नानडीयाने चोख्खा चित्तनां चूरमां, सुमती साकर उपर भावसु भेदूं घरत ॥ भक्ती भजीया पिरस्या पास कुमरने प्रेमशुं, अनुभव अथाणा चाखोने राखो सरत ॥ माता० ॥ ४॥ प्रभुने गुण गुंजाने ज्ञान गुंदवडा पीरस्या, प्रेमना पेंडा जमज्यो मान वधारण काज ॥ जाण पणानी जलेबी जमतां भागे भूखमी, दया दुधपाक अमीरस आरोगोने आज ॥ माता० ॥५॥ संतोष सीरोने वली पून्यनी पूरी पीरसी, संवेग साक भला छे दातार ढीली दाल ॥ मोटाइ मालपुवाने प्रभावनानां पूडला, विचार वडी वधारी जमज्यो मारा वाल ॥ माता ॥६॥ रुची रायता रुडां पवित्र पापड पीरस्यां, चतुराइ चोखा उशावी आण्या भरपूर ॥ उपर इंद्री दमन दुध तप तापे तातुकरी, प्रीत्ये पीरस्युं जमजो जगजीवन सहनूर ॥ माता ॥७॥ प्रीती पाणी पीधा प्रभावतीना हाथथी, तत्व तंबोल लीधां शियल सोपारी साथ ॥ अकल एलायची आपीने माता मुख वदे, त्रिभूवन तारी तरज्यो जगजीवन जगनाथ ॥ माता० ॥८॥ प्रभुना थाल For Private And Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६७ तणा जे गुण गावेने सांभले, भेद भेदांतर समजे ज्ञानी ते कहेवाय ॥ गुरु गुमान विजयनो शिष्य कहे शिर नामीने, सदा सोभाग्यविजय थावे गीत गाय सदाय ॥ माता०॥९॥ इति ॥ ॥ अथ श्री ज्ञान पंचमीनुं स्तवन ।। ॥ ढाल पहेली ॥ देशी रसीयानी ॥ ॥ प्रणमी हो पास जिणेसर प्रेमस्युं, आणी आणंद अंग ॥ चतुरनर || पंचमी तपनो महिमा अति घणो, केहेस्युं सुणज्योरे तेह ॥ चतुरनर ॥ भाव भलें पंचमी तप कीजीये ॥१।। एम उपदेशे हो श्री नेमीसरु, पंचमी करजोरे तेम ॥ चतु० ॥ गुणमंजरी वरदन तणी परें, आराधे फल जेम ॥ च०॥ भाव० ॥२॥ जंबुद्वीपे हो भरत मनोहरु, नयर पदम पुर खास ॥ च० ॥ राजा अजित सेन तिहां कणे, राणी यशोमती नाम ॥ च०॥ नाव ॥३॥ वरदत्त नामें कुंवर तेहनो, कोढे ब्यापीरे देह ॥ च०॥ ज्ञान विराधन कर्म जे बांधीयु, उदये आव्युरे तेह ॥ च० ॥ भा० ॥ ४ ॥ तेणें नयरे सिंहदास गृहवसे, कपुर ति For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ लका तस नारि ॥ च०॥ तस बेटी गुण मंजरी रोगणी, वचने मुंगी असार ॥०॥ भा०॥ ५॥ चउ. नांणी विजयसेन सूरीसरु, आव्या तिण पुरजांम ॥ ॥०॥ राजा शेठ प्रमुख वंदन गया, सांभली देशना ताम ॥ च० ॥ भा० ॥ ६॥ पुछे तिहां सिंहदास गुरु प्रत्ये, उपन्यो पुत्रीने रोग ॥ च० ॥ थइ मुंगी वली परणे को नही, एह स्या कर्मना भोग ॥ च० ॥ ना० ॥७॥ गुरु कहें पुरव भव तुमें सांभलो, खेटक नयर वसंत ॥ च०॥ साह जिनदेव अच्छे व्यवहारियो, सुंदरी धरणीनो कंत ॥ च० ॥भा०॥८॥ बेटा पांच थया छे तेहने, पुत्री अतीभलीच्यार ॥ च०॥ भणवा मुक्यारे पांचे पुत्रने, पण तें चपल अपार॥०॥भा०॥९॥ ॥ ढाल बीजी ॥ सीरोहीनो सेलोहो के उपर योधपूरी ॥ए देशी॥ ते सुत पांचहो के पठन करे नहीं, रमत करतांहो के दीन जाये वही ॥ सीखावें पंडितहो के छात्रने रीस करी, आवी मातानेहो के कहे सुत रुदन करी ॥१॥ मात अध्यारु हो के अमने मारे घj, काम अमारे हो के नहि जणवा तणु ॥ सुखणी माता For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६९ हो के सुतने शिव दीये, भणवा मत जाज्योहो के शुं कंठ सोस की ॥ २ ॥ तेडवा तुमने हो अध्यारं आवें, तो तस हणज्यो हो के पुनरपि जिम नावें ॥ शिख देइ एम हो के सुंदरी तेह तिहां, पाटी पोथीहो के अगनीमा नांखी दीया ॥ ३॥ ते वात सुणीनेहो जिनदेव बोलें इस्युं, फिटरे सुंदरीहो के काम करयु कीस्युं ॥ मुरख राख्या होके ए सर्व पुत्र तमें, नारी बोली होके नवी जाणुं अमे ॥ ४ ॥ मुरख मोटाहो के पुत्र थया ज्यारें, न दीये कन्याहो के कोइ तेहने त्यारे ॥ कंत कहे सुणज्योहोके ए करणी तुमची, वचन मांन्या हो के ते पहेला अमची ॥५॥ एम सुणीने हो के सुंदरी क्रोधे चढी, प्रीतम साथें हो के प्रेमदा अतीसे वढी ॥ कंतें मारी हो के तिहाथी काल करी, ए तुझ बेटी हो के थइ गुण मंजरी ॥६॥ पुरव भव एणे हो के ज्ञान विराधीयुं, पुस्तक बालीहो के जे करम बांधीयुं ॥ ऊदयें आव्यु हो के ए फल तास लह्यो ॥ ७॥ For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३७० ॥ ढाल ३ जी ॥ ललनांनी देशी ॥ ॥निज पुरव भव सांगली, गुण मंजरीने त्यांह ॥ ललनां ॥ जाति स्मरण उपन्युं, गुरुनें कह्यों उच्छांदि ॥ ललना ॥ भविका ज्ञान अभ्यासीयें ॥१॥ ए आं. कणी ॥ ज्ञान भलो गुरुजी तणो, गुणमंजरी कहे एम ॥ ल०॥ शेठ पूछे गुरुने तिहां, रोग जाये कहो केम ॥ल ॥०॥२॥ गुरु कहें एह विधि सांभलो, जे कह्यो शास्त्र मंझार ॥ल०॥ कार्तिक शुदि पंचमी दीने, पुस्तक आगल सार ॥ ल०॥ ज०॥३॥ दीवो पंच दीवट तणो, कीजीयें स्वस्तीक खास ।। ल०॥ नमो नाणस्स गणणं गणो, चोवीहार उपवास ॥ल. ॥ भ० ॥ ४॥ पडिकमणां दोय कीजीये, देववंदन त्रण वार ॥ ल० ॥ पंच बरस पंच मासनी, कीजीयें पंचमी सार ॥ ल०॥ भ०॥५॥ हवे उजमणुं पारणे, सांभलो विधिनो प्रपंच ॥ ल०॥ पुस्तक आगल मकवां, सघला वाना पंच ॥ ल०॥भ० ॥ ६ ॥ पुस्तक ठवणी पुंजणी, नवकार वाली प्रत ॥ल०॥ लेखण खमीया डाबला, पाठी कवली युगत ॥ ल० ॥ भ० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३७१ धान्य फलादिक ढोइए, कीजीयें ज्ञाननी भक्ति ॥ ल०॥ उजमणा एम कीजीये, भावशुं जेहवी शक्ति ॥लाभ०॥८॥ गुरु वाणी एम सांभली, पंचमी कीधी तेह ॥ ल०॥ गुणमंजरी मुंगी टली, निरोगी थइ देह ॥ल०॥भ० ॥९॥ ॥ ढाल चोथी ॥ ॥कपुर होवे अति उजलो रे ॥ए देशी॥ ॥ राजा पुछे साधुने रे, वरदत्त कुंवरने अंग ॥ कोढ रोग ए कीम थयो रे, मुज भाखो भगवतं ॥ सुहगुरुजी धन्य तुमारं ज्ञान ॥ १॥ ए आंकणी ॥ गुरु कहे जंबुद्धीपमा रे, भरते श्रीपुर गाम ।। वसुनामा व्यवहारीयो रे, दोय पुत्र तस नाम ॥ सह० ॥ ॥२॥ वसुसारने वसुदेव जीरे, दीक्षा लीये गुरु पास। लघुबंधव वसुदेवनेरे, पदवी दीये गुरु तास ॥ सह०॥ ॥३॥ पंचसया अणगारनेरे, आचारज वासुदेव ॥ शास्त्र भणावे खांतशुरे, नहीं आलस नित्यमेव ॥सह. ॥४॥ एक दिनसूरि संथारीयारे, पुछे पद एक साध ॥ अरथ कहे गुरु तेहनेरे, वली आव्यो बीजो साध For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ ॥ सह० ॥ ५ ॥ एम बहु मुनि पद पुछवा रे, एक आवे एक जाय ॥ श्राचारजने उंघमारे, थाये अति अंतराय ॥ सह० ॥ ६ ॥ सूरि तिहां एम चिंतवेरे, किहा मुज लाग्युं पाप || जो ए शास्त्रमें अभ्यासीयारे, तो एटलो संताप ॥ सह० ||७|| पद न कहुं हवे केहने रे, सघलुं मुकु विसार | ज्ञान उपर इम थाणीयोरे, त्रिकरण कोष अपार || सह ॥ ८॥ बार दिवस अण बोलीयारे, अक्षर न कह्यो एक || अशुन ध्यानें ते मरी रे, ए तुज सुत अविवेक || सह० || ९ || || ढाल पांचमी || मुखने मरकलडे | ए देशी || ॥ वाणी सुणी वरदत्तेजी, जाती स्मरण लघुं ॥ निज पुरव जवदीठोजी, जेम गुरुए कह्यो । वरदत्त कहे तत्र गुरुनेजी, रोग ए किम जाने || सुंदर काया होवेजी, विद्या किम यावे ॥ १ ॥ भांखे गुरु भला भावेंजी, पंचमी तप करो ॥ ज्ञान आराधो रंगेजी, उजम करो ॥ वरदते ते विधि कीधोजी, रोग दूरे गयो ॥ भुक्त भोगी राज पालीजी, अंते साधु थयो ॥ २ ॥ गुणमंजरी परणावीजी, साह जिनचंद्रने ॥ सुख भोगवी For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७३ पछी लीजी, चारित्र शुभ मने ॥ गुणमंजरी वरदतेजी, चारित्र पालीने ॥ विजय विमान पहोतांजी पाप प्रजालीने ॥३॥ भोगवी सुरसुख त्यांथीजी, चविया दोय सुरा ॥ पाम्या जंबु विदेहेंजी, मानव अवतार ॥ भोगवी राज्य उदाराजो, चारित्र लेसारा ॥ हवा केवलज्ञानीजी, पांम्या भवपारा ॥४॥ ॥ ढाल छठी । कोइलो पर्वत धुंधलोरे लोल ॥ ए देशी ॥ ॥जगदीलर नेमीसरेरे लो, भाख्यो एह संबंध रे ॥ सोनागी लाल ॥ बारें परखदा आगलेरे लो, ए सघलो प्रबंध रे ॥ सोभा०॥ नेमीसर जिन जय करु रे लो॥१॥ ए आंकणी । पंचमी तप करवा भणीरे लो, उत्सुक थया बहु लोक रे ॥सो ॥ महा पुरुषनी देशना रेलो, ते केम होवें फोक रे ॥सो०॥ नेमी० ॥२॥ कार्तिक सुदि जे पंचमी रे लो, सोनाग्य पंचमी नामरे ॥ सो०॥ सौभाग्य लहीये एहथीरे लो, फलें मन वंछित कामरे ॥ सो० ॥ नेमी० ॥३॥ समुविजय कुल सेहरो रे लो, ब्रह्मचारी सीरदाररे ॥ सो० ॥ मो. हनगारी माननी रे लो, रुडी राजुल नारी रे ॥सो०॥ For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ ॥नेमी०॥४॥ ते नवी परणी सुदरीरे लो, तो पण राख्यो जेणे रंग रे ॥ सो० ॥ मुगति महेलमां बेहुं मल्यारे लो, अविचल जोड अभंग रे ॥ सो० ॥ नेमी० ॥५॥ तेणे ए माहातप भाखीयो रे लो, पांचमनो परगटरे ॥ सो० ॥ जे शांभलशे भावशुं रे लो, श्री संघनें गहिगट्टरे ॥ सो० ॥ नेमी० ॥६॥ कलश ॥ एम सयल सुखकर, सकल दुःखहर, गाइयो नेमासरो ॥ तप गच्छ राजा, वन दिवाजा, विजयाणंद सूरीसरो ॥ तस चरण पदम, पराग मधुकर, कोविंद कुंवरविजय गणी॥ तस शिष्य पंचमी, स्तवन जांखे, गुणविजयज रंगे मुणी ॥७॥ इति श्री ज्ञान पंचमीनु छ ढालनु स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री अष्टमी- स्तवन ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ तुने गोकुल बोलावे कान, गोविंद गोरीरे ॥ ए देशी ॥ : ॥ श्री राजगृही शुभ ठाम, अधिक दिवाजे २॥ विचरंता वीर जिणंद. अतिशय बाजेरे॥१॥चोत्रीश अने पांत्रीश, वाणी गुण लावेरे।। पाउधारया वधामणी जाय, श्रेणीक आवे रे ॥१॥ तिहां चोशन सुरपति आवीने, For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७५ त्रिगडूं बनावरे ॥ तेमां बेसीने उपदेश, प्रभुजी सुणावे रे ॥३॥ सुरनरने तिर्यच, निज निज भाषारे ॥ तिहां समजीने भवतीर, पामे सुख खासारे ॥ ४॥ तिहां इंद्रभूति गणधार, श्री गुरु वीरनेरे ॥ पूछे अष्टमीनो महीमाय, कहो प्रभु अमने रे ॥ ५॥ तव भांखे वीर जिणंद, सुणो सहु प्राणी रे ॥आठम दिन जिननां कल्याण, धरो चित आणीरे ॥६॥ ॥ ढाल बीजी ॥ वालाजीनी वाटडी अमे जोतां रे ॥ ए देशी ॥ ॥श्री ऋषभर्नु जन्म कल्याणरे, वली चारित्र लघु जले वानरे, त्रीजा संभव निरवाण ॥ नविजन अष्टमी तिथि सेवोरे।। ए छे शिववधू मलवानो मेवो॥ भविजन अष्ट० ॥१॥ ए आंकणी ।। श्री अजित सुमति जिन जनम्यारे, अभिनंदन शिवपद पाम्यारे, जिन सातमां शिव विसराम्या ॥ भवि० ॥२॥ वीशमां मुनिसुव्रत स्वामीरे, तेहनो जन्म मोक्ष गुण धामी रे, एकवीशमां शिव विसरामी ॥भवि०॥ ॥३॥ पार्श्वजिन मोक्ष महंतारे, इत्यादिक जिन गुणवंतारे, कल्याणक मोक्ष महंता ॥ भवि०॥४॥श्री वीर जिणंदनी वाणी For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ रे, निसुणी समज्या भवि प्राणी रे, आठम दिन अति गुण खाणी । भवि० ॥ ५॥ आठ कर्म ते दुर पलाय रे, एथी अम सिद्धि अडबुद्धि थाय रे, ते कारण सींचो चित्त लाय ॥भवि०॥६॥ श्री उदयसागर सूरी रायारे, गुरु शिष्य विवेकें ध्यायारे, तस न्यायसागर जय थाया ॥ नवि०॥७॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री एकादशीनुं स्तवन । ॥ ढाल १ ली || चंद्राउलानी देशी ॥ ॥ द्वारिका नगरी समोसा रे, बावीशमा जि. णचंद ॥ बेकर जोडी भावशुंरे, पूछे कृष्ण नरिंद ॥ ॥त्रुटक ॥ पूछे कृष्ण नरिंद विवेके, स्वामी अग्यारश मानी अनेके ॥ एह तणो कारण मुज भाखो, महिमा तिथिनो यथारथ दाखो ॥ जी जिणंदजी जीरे ॥१॥ ( महिमा सुणवा तास भविक मन उबसेरे, अगीया. रश दिन सार सदा हश्यडे वसेरे ) ए आंकणी ॥ नेम कहे केशव सुणो रे, पवे वहुं छे तेण ॥ कल्या. णक जिननां कह्यां रे, दोढशो एणे दिन जेण || ॥ त्रुटक ॥ दोढशो एणे दिन सुत्र प्रसिद्धा, कल्या For Private And Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३७७ णक दश खेत्रनां ली। अतित अनागतने वर्तमान, सर्व मली दोढसय तस नाम ॥ जो जिण॥२॥ कल्पवृक्ष तरुमां वडोरे, देव मांहे अरिहंताचक्रवर्ति नृपमां वडोरे, तिथिमा तिम ए इंत॥त्रु॥तिथिमा तम एहुंत वडोरे, भेद कर्म शुभटनो घेरो ॥ मौन आराध्यु शिवपद आपे, संकट वेल तणां मूल कापे ॥ जी० ॥३॥ अहोरत्तो पोसह करी रे, मौन तप उपवास ॥ अगीयार वर्ष आराधियेरे, वली अग्यारह मास ॥ त्रु० ॥ बली अगीयारह मास जे साधे, मनवच कायानी शुद्धे आराधे ॥ मव भवे ते नर सुखीया थाशे, सुव्रत शेठ परें गवरासे ॥ जी० ॥ ४॥ कृष्ण कहे सुव्रत किश्योरे, केम पाम्यो सुखशात ॥ नेम कहे केशव सुणोरे, सुत्रतना अवदात ॥ त्रु० ॥ सुव्रतना अवदात वखाणं, धातकी खंडे विजय पुर जाणुं ॥ पुहविपाल तिहा राज विराजे, चंद्रावती राणी तस छाजे ॥ जी०॥५॥ वास वसे व्यवहारीओ रे, सुर नाम तिहां एक ॥ सदगुरु मुखें एक दिन ग्रहे रे, अगीआरसि सुविवेक ॥ ॥ ७० ॥ अगीआरसी सुविवेके लीधी, रुडी उजमणा For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir રૂ૭૮ विधि कीधी ॥ पेट शुलथी मरण लहीने, पोहतो अगीयारमें स्वर्ग वहीने ॥ जी०॥६॥ एकवीश सागर तणुं रे ॥ पाली निरुपम आय || उपन्यो जिहां ते कहुं रे, सुणजो यादवराय ॥ ७० ॥ सुणजो यादवराय एक चित्तें, सौरीपुरे वसे शेठ समृद्धि दत्ते । प्रीतिमती तस घरणीने पेटे, पुत्रपणे उपन्यो पुण्य भेटे । ॥ जी० ॥ ७ ॥ जन्म समय प्रगट हुओ रे. भूमिथी सबल निधान ॥ उचित जाणी तस थापीओ रे, सुव्रत नाम प्रधान ॥ ७० ॥ सुबत नाम ठव्यो माय तांये, वाध्यो कुमर कलानिधि थाय ॥ कन्या अगीयार वो समजोडी, अगीयार हुए घर सोवन कोमी ॥ ॥ जी० ॥ ८॥ विलसे सुख संसारनां रे, दो गुंदक सुर तेम ॥ अन्य दिवस सुहगुरु मुखेंरे, देशना तेणे सुणी एम ॥त्रु०॥ देशना ते सुणी पर्व महातम, बीज प्रमुख तिथिनी अति उत्तम ॥ सांभलीने उहा. पोह करते, जाति स्मरण ला गुणवंते ॥ जी० ॥९॥ करजोडी सवत भणेरे, वर्ष दिवस मांहे सार ॥ दिवस एक मुज दाखीयें रे, जेहथी होये भवपार ॥ त्रु.॥ For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७९ जेहथी होये भवपार ते दाखो, गुरु कहे मौन एकादशी राखो ॥ तहत्ति करी विधिशुं आराधे, मागशिर सुदि एकादशी साधे ॥ जी० ॥ १० ॥ शेठने सुखीयो देखीनेरे, जन कहे ए धर्मसार ॥ प्रेम सहित आराधतां रे, कांतिविजय जयकार ॥ ० ॥ कांतिविजय जयकार सदाइ, नित नित संपदा होये सवाइ ॥ एह तिथी सकल तणे मन भाइ, पहेली ढाल कही सुख दाइ ॥ जी० ॥ ११॥ ॥ ढाल वीजी ॥ एकवीसानी देशी ॥ ॥ एक दिवसेंरे, शेठ सुव्रत पोसह धरे ॥ सह. कुटुंबे रे, रयणी समय काउसग करे ॥ तव आव्यारे, चोर लेवा धन आंगणे ॥ कशी बांधेरे, गांठडी धननी ततक्षणे ॥ १॥ त्रुटक ॥ ततक्षण बांधे द्रव्य बहुद्यु, शिर उपाडी संचरे ॥ तव देवशासन तीहां थंभ्या, चित्त अति चिंता करे ॥दीठा प्रभाते कोटवाले, बांधी सोप्या रायने ॥ वध हुकुम दीधो राय तव तिहां, शेठ आव्या धायने ॥ २ ॥ नृप आगेरे, शेठे मूकी बहु भेटणुं ॥ छोडाव्युरे, चोर सहुनुं बंधणुं । जग For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० वाध्योरे महिमा श्री जिनधर्मनो ॥ केइ छांमेरे; मारंग मिथ्या भरमनो ॥३॥ त्रुटक ॥ मिथ्यात्व मारग तजीय पुरीजन, जैन धर्म अंगी करे | एक दीवसें धग धग करती उद्जट, अग्नी लाग्यो तिण पुरें ॥ बाले ते सुंदर हाट मंदिर, लोक नाठा धसमसी ॥ सहकुटुंब पौषध सहित तिणे दिन, शेठ बेठा समर सी ॥ ४ ॥ जन बोलेरे, शेठ सल्लूणा सांभलो ॥ हठ न करोर, नासो अग्निमां कां बलो || शेठ चिंतेरे, परीसह एह सहशुं सही || व्रत खंडणारे, एणे अवसर करशुं नहीं ॥५॥ ० ॥ नही युक्त मुजने व्रत विलो पन, रह्यो एम दृढता ग्रही ॥ पुर बल्युं सघलुं शेठना घर, हाट त्यां उगरयां सही । पुरलोक चरिज देखी सबलुं, अति प्रशंशे दृढपणुं || हवे शेठ संग्रह करे रूमो, उजम करवा तणुं ॥ ६ ॥ मुगता फलरे, मणि " माणिकने हीरला || पीरोजारे, विद्रुक गोलक अति जला ॥ स्वर्णादिकरे, सप्तधातु मेले रली ॥ खीरोदकरे, प्रमुख विविध अंबर वली ॥ ७ ॥ ० ॥ वली धानने पकवान बहु विध, फूल फल मन उजले ॥ For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८१ अग्यार संख्या एक एकनी, ववे श्री जिन आगले ॥ जिन भक्ति मंडे दुरीत खंडे, लाभ लहे नरभव तणो || महिमा वधारे सुविधि धारे, तप सुधारे आपणुं ॥ ८ ॥साते खेत्रे, खरचे धन मन उलसी ॥ संघ पूजारे, साहमी भक्ति करे हसी ॥ दीये मुनिने रे, ज्ञानोपकरण शुभमति ॥ अगीयारसी. एम उजवी तेणे सुते ||| | ० || तेणे सुनते एक दिवस बंधा, सूरी जयशेखर गुरु ॥ सुणी धर्म अनुमति मागीसुतनी, लीये संजम सुख करू || अग्यार तरुणी ग्र हिय संयम, तप तपी अति निर्मलं ॥ लही नाण केवल मुक्ति पोहोता, लघुं सुख घन उजलुं ॥ १० ॥ दोय सय छठरे, एकशो अठम साररे || खटमा सारे एक चोमासी चाररे ॥ इत्यादिकरे, सुत्रत मुनिवर तप करे | अग्यारशीरे, तिथि सेवे मुनि मन खरे ॥ ॥ ११ ॥ ० ॥ मन खरे पाले शुद्ध संयम, एक दिन एक ऋषि त ॥ थइ उदर पीडा तेणे दीवसें, अच्छे सुन्नत व्रत पणे || एक देव वयरी पूर्व भवनो, चला-ववा आव्यो तिहां ॥ मुनिराय सुव्रत तणे छांगें, वे - For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३.२ दना कीधी जिहां ॥१२॥ समता धररे, निश्चल मेरु परें रह्यो । सुर परिसहरे, निश्चल थइने सांसह्यो । नवी लोपेरे, मान सुव्रत मुनिराजियो ॥ औषध पण रे, सुरें दाखव्यो पण नवि कियो ॥१३॥ त्रु०॥ नवि कियो औषध रोग हेते, असुर अति कोपें चढयो । पाटु प्रहारें हणे त्यारे, मिथ्या मति पापें मढयो । ऋषी क्षपक श्रेणी चढिय केवल, नाण लही मुगति गयो ॥ एम ढाल बीजी कांति भणतां, सकल सुख मंगल थयो ॥ १४ ॥ ॥ ढाल बीजो ॥ सोता हो प्रीधा सीतारा परभात ॥ देशी ॥ ॥ भाखी हो जिन भाखी नेमि जिणंद,एणीपरे हो जिन एणीपरे सुव्रतनी कथाजी ॥ सदहे हो जिन सदहे कृष्ण नरिंद, छेदन हो जिन छेदन भव भयनी व्यथाजी ॥१॥ पर्खदा हो जिन पर्खदा. लोक तिवार, भावें हो तिहां भावें अगीयारस उच्चरेजी ॥ एहथी हो एम एहथी नविक अपार, सहेजे भव हो भव सहेजें सायर तरयाजी ॥२॥ तारक हो जिन तारक भवथी तार, मुजने हो प्रभु मुज निर्गुणने हित करी जी ॥ For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८३ साची हो जिन साची चित्त अवधार. कीधी हो में कीधी ताहरी चाकरीजी ॥३॥ तरशुं हो जिन तरशुं जो तपसाधि, तुमची हो प्रभु तुमची तिहां मोटिम कीसीजी ॥ देस हो जिनदेइसतुंहिं. समाधि, एवडी हो प्रभु एवडी कांइ गाढिम इसीजी ॥ ४ ॥ छेहेडो हो जिन छेहेडो साह्यो आज. मोहोटी हो प्रभु मो. होटी में आशा करीजी ॥ दीधा हो विण दीधा विण माहाराज, छूटीस हो किम छूटीस किम विण दुःख हरीजी ॥५॥ भव भवहो जिन भव भवें सरणु, तुऊ, होजो हो जिन होजो कहूं केतुं वलीजी ॥ देजो हो जिन देजो सेवा मुज, रंगे हो जिन रंगे प्रणभुं लली ललीजी ॥६॥ त्रीजी हो, एह त्रीजी पुरी ढाल, प्रेमें हो जिन प्रेमें कांतिविजय कहेजी ॥ नमतां हो जिन नमतां नेमि दयाल मंगल हो घर मंगल माला मह महेजी ॥७॥ ॥ कलश ॥ एम सकल सुखकर, दुरित दुःखहर, भविक तरु नवजल धरु ॥ भव ताप वारक, जगत तारक, जयो जिनपति जगगुरु ॥१॥ सत्तर सय ओग For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ णोत्तरे, रहि डभोई चोमास ए ॥ सुदि मास मृगसिर, तिथि इग्यारश, रच्या गुण सुविलास ए ॥२॥ थय थुइ मंगल, कोडी भवना, पापरज दूरे हरे ॥ जयवाद आपे, कीर्ति थापे, सुजस दिसो दिसी विस्तरे ॥३॥ तपगछ नायक, विजय प्रभ गुरु, शिष्य प्रेमविजय तणो ॥ कहे कांति सुणतां, भविक भणतां, लह्यो मंगल अति घणो (पामीये मंगल अति घणों) ॥ ४ ॥ इति मौन एकादशी स्तवन संपूर्ण ॥ श्रीमहावीर स्वामिनापंचकल्याणकनुं बार ढाल-स्तवन ॥ ढाल पेहेली ।। प्रभु चित धरीने अवधारो मुज वात ।। ए देशी॥ ॥सरसती भगवती दीउ मति चंगी, सरस सुरंगी वाण॥तुज पसाय माय चित्त धरीने, जिनगुणरयणनी खाण ॥१॥ गिरुवा गुण वीरजी, गायशुं त्रिभुवनराय ॥ जसनामे घर मंगल माला, तस घर बहु सुख थाय गि॥२॥ जंबुद्वीप भरत क्षेत्रमाहे, नयर माहणकुंड ग्राम ॥ ऋषनदत्त वरप्रिय बसे तिहां, देवानंदा तस प्रियानाम गि०॥३॥ सुरविमान वर पुप्फो. त्तरथी, चवि प्रभु लीये अवतार ॥ तव ते माहणी For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५ रयणी मध्ये, सुपन लहे दसचार || गि०|| ४ || घुरे मयगल मलपतो देखे, बीजे वृषभ विशाल ॥ त्रीजे केशरी चोथे लक्ष्मी, पांचमे कुसुमनी माल ॥ गि०॥५॥ चंद सूरज ध्वज कलश पदमसर, देखे ए देवविमान || रयणरेल रयणायर राजे, चौदमे अग्नि प्रधान ॥ गिο|| || ६ || आनंद भर जागी सा सुंदरी, कंतने कहे परभात ॥ सुखीय विप्र कहे तुम सुत होशे, त्रिभुवन मांहे विख्यात ॥ गि० ॥ ७ ॥ अति अभिमान कियो मरीयंच भवे, भवि जुओ कर्म विचार ॥ तात सुतावर तहां थया कुंवर, वली नीच कुले अवतार ॥ गि० ॥ ८ ॥ इणे अवसर इंद्रासन डोले, नाणे करी हरि जोय || माहणी कुखे जग गुरु पेखे, नमी कहे अघटतुं होय ॥ ० ॥ ९ ॥ ततक्षण हरिणगमेषी तेडावी, मोकलीओ तेणे वाय ॥ माहणी गर्भ अने त्रिशलानो, बिहुं बदली सुर जाय ॥ गि० ॥ १० ॥ वळी निशिभर ते देवानंदा, देखे ए सुपन असार ॥ जाणे ए सुपन त्रिशलाकर चढिया, जइ कहे निज भरतार ॥ गि० ॥ ११ ॥ कंत कहे तुं दुःख हर सुंदरी, मुज २५ For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ मन अचिरज एह ॥ मरुथलमांहे कल्पद्रुम दीठो, आज संशय टल्या तेह ॥ गि० ॥ १२ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥ नयर क्षत्रिय कुंड नरपति, सिद्धारथ भलोए || आण न खंडे तस कोयके, जग जस निरमलोए ॥ तस पटराणी त्रिशला सती कुखे जगपति ए ॥ परम हर्ष हियडे घरी, ठविया सुरपति ए ॥ १ ॥ सुख सजाये पोढी देवी तो, चउद सुपन लहे ए ॥ जागती जिन गुण समरती, हरखती गह गहे ए | राजहंस गति चालती, पीउ कने आवती ए ॥ प्रह उगमते सूरके, वीनवे निजपति ए ॥ २ ॥ सुणीय वात राय रंजीओ, पंडित तेडीया ए ॥ तेगे शुभ सुपन विचारखा, पुस्तक छोडीयां ए ॥ बोले मधुरी वाणके, गुणनिधि सुत होसे ए ॥ सुख संपति घरे वाघशे, संकट भांजशे ए ॥ ३ ॥ पंडितने रायतुसीया, लच्छी दीए घणी ॥ कहे एह वाणी सफल होजो, अमने तुम तणी ए ॥ निजपद पंडित संवर्या राय सुखे रहेए ॥ देवी उदर गर्भ वाघतो, शुभ दोहला लहे ॥ For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८७ ॥४॥ मातभक्ति जिनपति करे, गर्भ हाले नहि ए॥ सात मास वोली गया, माय चिंता लही ए ॥ सही अरने कहे सांभलो, कोणे मारो गर्भ हयों ए ॥ हुं भोळी जाणुं नही, फोगट प्रगट कयों ए ॥५॥ सखी कहे अरिहंत समरतां, दुःख दोहग टले ए॥ तवजिन ज्ञान प्रयुंजीयु, गर्भथी सळसळे ए ॥ माता पिता परिवार, दुःख निवारियुं ए॥ संयम न लेउं माय ताय छतां, जिन निरधारियु ए ॥ ६ ॥ अणुदीठे मोह एवडो, किम ओि खमे ए॥ नव मसवाडा उपरे, दिन साडासातमें ए ॥ चैत्रशुकल दिन तेरशे, श्री जिन जनमिया ए । सिद्धारथ भूपति भला, ओच्छव तव कीया ए ॥७॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ वस्तु-पुत्र जन्म्यो पुत्र जन्म्यो , जगत सणगार ॥ सिद्धारथ नृप कुल तिलो, कुल मंडल कुलतणो दीवो ॥ श्री जिनधर्म पसाउले, त्रिशला देवी सुत चिरंजीवो ॥ एम आशिष दीए भली, आवी छप्पन For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३८८ कुमार, सुति कर्म करे ते सही, सोहे जीसी हरिनी नार ॥१॥ ॥ ढाल चोथी ॥ नमणीनी देशी ॥ ॥ चल्युरे सिंघासन इंद्र, ज्ञाने निरखतां ए ॥ जाणी जनम जिणंद, इंद्र तव हरखतां ए ॥१॥ आसनथी रे उठेव, भक्तिए थुणे ए ॥ वाजे सुघोषा घंट, सघळे रणझणे ए ॥ २ ॥ इंद्र भुवनपति वीश, व्यंतरतणा ए ॥ बत्रीश रवि शशि दोय, दश हरि कल्पना ए ॥३॥ चोसठ इंद्र आणंद, प्रणमी कहे ए ॥ रत्न गर्दा जिन मात, दुजी एसी नहीं ए ॥ ॥४॥ जन्म महोच्छवे देव, सविहु आविया ए॥ माय देइ निद्रा मंत्र, सुत लेइ मेरु गया ए ॥५॥ कंचन मणि भंगार, गंधोदके भर्या ए ॥ किम सहशे लघुवीर, हरि संशय धर्या ए ॥६॥ वेहेशे नीर प्रवाह, केम ते नामिये ए॥ न करे नमण सनात, जाण्यु स्वामीये ए ॥ ७ ॥ चरण अंगुठे मेरु, चांपी नाचीयो ए॥ मुज शिर पग भगवंत,एम कही माची. यो ए ।॥ ८॥ उलटया सायर सात, सरवे जळहळ्या For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३८९ ए ॥ पायाले नागेंद्र, सघळा सळसळ्या ए॥ ९॥ गिरिवर त्रूटे टुंक, गम गमी पमे ए ॥ तीन भुवनना लोक, सघळे लडथडे ए ॥१०॥ अनंत बल अरिहंत, सुरपतिए का ए ॥ हुँ मूरख सहि मूढ, एटझुं नवि लडं ए ॥११॥ प्रदक्षिणा देइ खामेय, ओडव करे ए ॥ नाचे सुर गाये गीत, पुण्य पोते भरे ए ॥१२॥ इणे सुखे स्वर्गनी लील, तृण सरखीगणे ए ॥ जिन मुकी मायने पास, पद गया आपणे ए ॥१३॥ माय जागी जूए पुत्र, सुरवरे पूजीओ ए ॥ कुंडल दोय देवदुष्य, अमीय अंगुठे दीयो ए ॥१४॥ जन्म महोचव राय, ऋद्धिये वाधियो ए ॥ सज्जन संतोषी नाम, वर्द्धमान थापीयो ए ॥१५॥ ॥ ढाल पांचमी | प्रभु पासनु मुखड जोवा ए देशी ॥ . ॥प्रभु कल्पतरु सम वाधे, गुण महिमा पार न लाधे ॥ रूपे अद्भुत अनुपम अकल, अंगे लक्षण विद्या सकल ॥१॥ मुख चंद्र कमल दल नयण, सास सुरभि गंध मीठां वयण॥ हेम वरणे प्रभु तनु शोभावे, अति निर्मल विण नवरावे ॥२॥ तप तेजे सुरज सोहे, For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० जोतां सुर नरनां मन मोहे ॥ प्रभु रमे राजकुंवर शुं वनमा, मायतायने आनंद मनमां ॥३॥ बल अतुल वृषनगति वीर, इंद्रे सभामा कह्यो जिनधीर ॥ एक सुर मूढ वात न माने, आव्यो परखवा वन रमवाने ॥४॥ अहि थइ वृक्ष आमलीये राख्यो, प्रभु हाथे झाली दूरे नाख्यो ॥ वळी बालक थइ आवी रमिओ, हारी वीरने खांधे लइ गमिओ॥ ५॥ मायताय दुःख धरी कहे मित्र, कोइ वर्द्धमानने लइ गयो शत्रु ॥जातो सुर वाध्यो गगने मिथ्याती, वीरे मुष्टीये हण्यो पडयो धरती ॥ ६॥ पाय नमी नाम दीधुं महावीर, जेहवो इंद्र कह्यो तेवो धीर ॥ सुर वळिओ प्रभु आ व्या रंगे, माय तायने उलट अंगे ॥७॥ ॥ ढाल छठी ॥ वस्तु-राय उठव राय उव्व करे मनरंग, ले. खकशाळाए सुत ठवे ॥ वीर ज्ञान राजा न जाणे, तव सौधर्म इंद आविया, पूछे ग्रंथ स्वामी वखाणे ॥ व्याकरण जैन तिहां कीओ, आनंद्यो सुरराय ॥ वचन वदे प्रनु भारती, पंडयो विस्मय थाय ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९१ || ढाल सातमी ॥ यौवन वय जब आविया ए, राय कन्या जशोदा परणाविया ए ॥ विवाह महोच्छव शुभ किया ए, सर्वे सुख संसारना विलसियाए || १ || अनुक्रमे हुइ एक कुंअरी ए, त्रीश वर्ष जिनराज लीला करी ए ॥ मात पिता सद्गति गया ए, पछे वीर वैरागे पूरिया ए ॥२॥ मयणरायसेन जीतीओए, वीरे अथीर संसार मन चिंतियो ए ॥ राजरमणी ऋद्धि परिहरीए, कुटुंबने लेशुं संयम सिरीए ||३|| ॥ ढाल आठमी ॥ ॥ पितरीओ सुपासरे, भाइ नंदि वर्धन ॥ कहे वच्छ एम न कीजीये ए ॥१॥ आगे माय ताय विछोहरे, तुं वळी व्रत लीये ॥ चांदे खार न दीजीए ॥२॥ नीर विना जीम मच्छरे, वीर विना तिम ॥ टलवलतुं इम सहु कहे ए ॥ ३ ॥ कृपावंत भगवंतरे, एह विना वळी ॥ वरस वे जाजेरां रह्यां ए ॥४॥ फासु लीए अन्नपानरे, पर घर नवि जमे ॥ चित चारित्र भावे रमे ए ॥ ५ ॥ न करे राजनी चिंतरे, लोकांति सुर For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ क ॥ श्रावी कहे संयम समे ए ॥६॥ बूज बूज भगवंत रे, बोडी विषय सुख ॥ ए संसार वधारणो ए ॥७॥ ॥ ढाल नवमी ॥ ॥ आले आले त्रिशलानो कुंअर, राजा सिद्धारथनो नंदन, दान संवत्सरी ए ॥ एक कोडी आठ लाख दिन प्रत्ये ए,कनक रयण रुपा मोतीतो, मूठी भरी भरीए ॥आले० ॥१॥ घण कण गज रथ घोडला ए, गाम नयर पुर देश तो, मनवंछित वळीए॥ निर्धनने धनवंत किया ए, तस घर न ओलखे नारितो, समकरे वळी वळीए ॥ आले. ॥२॥ दुःख दारिद्र टाल्या जगतणांए, मेघपरे वरसीदान तो, पृ. थ्वी अऋण करीए ॥ बहु नरनारी ओच्छव जूएए, सुरनर करे मंडाणतो, जिन दीक्षा वरीए ॥ आले. ॥३॥ विहार करम जगगुरु कीओए, केडे आव्यो माहण मित्रतो, नारी संतापियो ए ॥ जिन याचक हूं वीसर्योए, प्रभु खंधथकी देवदुष्यतो, पट खंग करी दीओए, ॥ आले॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ॥ ढाल दसमी ॥ ॥ जस घर होये प्रभु पार[, सुर तिहां कंचन वरसे अति घणुं ॥ आंगणुं दीपे तेजे तेह तणुं ए॥ देव दुटुभि वाजे ए, तेणे नादे अंबर गाजे ए॥छाजे ए, त्रिभुवनमांहे सोहामणुं ए ॥१॥ त्रुटक ॥ सोहामणुं प्रभु तप तपे, बहु देश विदेश विचरता, भवि जीवने उपदेश देता, साते इति शमावता॥षट् मास वन काउस्सग्ग रही, जिन कर्म कठीन दहे सही ॥ गोबाल गौ भळावी गया, वीर मुखे बोले नहि ॥२॥ ॥ ढाल ॥ गोरु सवि दह दिसे गया, तेणे आवी का मुनि किहां गया ॥ ऋषि राया उपर मुरख कोपियाए, चरण उपर रांधी खीर ॥ तेणे उपसर्गे न चल्या धीर, महावीर ॥ श्रवणे खीला गेकीया ए ॥३॥ ॥ त्रुटक ॥ ठोकीया खीला दुःखे पील्या, को न लहे तेम करी गया ॥ जिनराजने मन शत्रु मित्र सरखा, मेरुपरे ध्याने रह्या ॥ उनही वरसे मेघ बारे, वीजली जबुके धणी ॥ बेहु चरण उपर डाभ उग्यो, इम सहे For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar त्रिभुवन धणी ॥ ४॥ ढाल ॥ एक दिन ध्यान पुरु करी, प्रजु नयरिये पोहोता गोचरी ॥ तिहां वैद्य, श्रवणे खीला जाणीआए ॥ पारणुं करी काउस्सग्गे रह्या, तिहां वैये संच भेळा कीआ॥ बांधीया, वृक्ष दोर खीला ताणिया ए ॥ ५॥ त्रुटक ॥ ताणी काढ्या दोर खीला, वीर वेदन थइ घणी ॥ आकंद करतां गिरि थयो शत खंड, जुओ गति कर्मह तणी ॥ बांधेरे जीवडो कर्म हसतां, रोवतां छूटे नहि ॥ धन्य धन्य मुनिवर रहे समचित्त, कर्म एम बेटे सहि ।। ॥ ढाल अगीआरमी ॥ ॥ जुओ जुओ करमे शुं कीधुं रे, अन्न वर्ष ऋषभे न लीधुं रे ॥ कर्म वश म करो कोइ खेद रे, मल्लीनाथ पाम्या स्त्री वेद रे ॥१॥ कर्म चक्री ब्रह्मदत्त नडियो रे, सुभूम नरकमांहे पडियो रे ॥ भरत बाहुबल शुं भडीयो रे चक्री हार्यो रायजस चडीयो रे ॥२॥ सनतकुमारे सह्या रोग रे, नल दमयंती वियोगरे ॥ वासुदेव जरा कुमर मायों रे, बलदेव मोह For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar नीएं धार्यो रे ॥३॥ भाइ शब मस्तके वहीयो रे, प्रतिबोध सुर मुखे लहीयो रे ॥ श्रेणिक नरके ए पोहोतो रे, वन गया दशरथ पुत्तो रे ॥ ४ ॥ सत्यवंत हरिचंद धीर रे, डुंब घरे शिर वा नीर रे ॥ कुबेर दत्तने कुयोग रे, बेहेन वली माता शुं भोग रे ॥५॥ पर हथ्थे चंदन बाल रे, चढिओ सुभद्राने आल रे ॥ मयण रेहा मृगांकलेखा रे, दुःख भोगविया ते अ. नेका रे ॥६॥ करमे चंद्र कलंक्यो रे, राय रंक कोइ न मुकयो रे ॥ इंद्र अहल्या शुं लुब्धो रे, रयणादेवी रवि माउ कीधो रे ॥७॥ इश्वर नारीये नचाव्यो रे, ब्रह्मा ध्यानथी चूकाव्यो रे ॥ अइ अइ करम प्रधान रे, जीत्या जीत्या श्री वर्द्धमान रे ॥ ८॥ ___॥ ढाल १२ मी ॥ दीन सकळ मनोहर ॥ ए देशी ॥ ॥ इम कर्म हण्या सवि, धीर पुरुष महावीर ।। बार वर्ष तप्यो तप, ते सघलो विणनीर ॥ शालि वृक्ष तळे प्रभु, पाभ्या केवल ज्ञान ॥ समोसरण रचे सुर, देशना दे जिन भाण ॥१॥ अपापा नयरी, यज्ञ करे विप्र जेह ॥ सर्वे ब्रजवी दिख्या, वीरने वंदे तेह For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ૨૯૬ ॥ गौतम ऋषि आदे, चारशें चार हजार ॥ सहस्स चौद मुनीसर, गणधर वर ग्यार ॥२॥ चंदन वाला मुख, साधवी सहस छत्रीश ॥ दोढ लाख सहस नव, श्रावक दे आशिष ॥ त्रण लाख श्राविका, अधिकी सहस अढार ॥ संघ चतुर्विध थाप्यो, धन्य धन्य जिन परिवार ॥ ३ ॥ प्रभु अशोक तरु तळे, त्रिगडे करे वखाण ।। सुणे बारे परखदा, योजन वाणी प्रमाण ॥त्रण छत्र सोहे शिर, चामर ढाळे इंद्र ॥ नाटक बद्ध बत्रीश, चोत्रीश अतिशय जिणंद ॥४॥ फूल पगर नरे सुर, वाजे दुंदुभि नाद ॥ नमे सकळ सुरासुर, छांडी सवि परमाद ॥चिहु रुपे सोहे, धर्म प्रकाशे चार ॥चोवीशमो जिनवर,आपे भवनो पार ॥५॥प्रभु वर्ष बोहोंतेर,पाली निर्मल आय ॥ त्रिभुवन उपगारी,तरण तारण जिनराय ॥कार्तिक मासे दिन,दीवाली निरवाण ॥ प्रभु मुक्ते पोहोता, पामे नित्य कल्याण ॥६॥ ॥ कलश ॥ इम वीर जिनवर, सयल सुखकर, नामे नव निधि संपजे ॥ घर ऋद्धि वृद्धि सुसिद्धि पामे, एकमना जे नर भजे ॥ तपगच्छ ठाकुर, गुण For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh वैरागर, हीरविजय सुरीश्वरो ॥ हंसराज वंदे, मन आणंदे, कहे धन्य मुज ए गुरो ॥१॥ ॥ अथ दीवाली कल्पनुं स्तवन । ॥ श्री श्रमण संघ तिलकोपमं गौतम, सुगति प्रणिपत्य पादारविंदं । इन्द्रभूति प्रभवमंहसो मोचकं, कृत कुशल कोटि कल्याण कंदं ॥१॥ ॥ ढाल १ ली ॥ राग राभगिरि ॥ ॥ मुनि मन रंजणो, सयल दुःख भंजणो, वीर वर्धमानो जीणंदो॥मुगति गति जीम लही, तिम कहूं सुण सही, जीम होएं हर्ष हइडे आणंदो ॥ मु०॥१॥ करीय उद्घोषणा देशपुर पाटणे, मेघ जीम दान जल वहल वरसी ॥ धण कणग मोतिया झगमगे जोतिया, जीन देइ दान श्म एक वरसी ॥ मु०॥२॥ दोय विण तोय उपवास आदे करी, मागसिर कृष्ण दशमी दिहाडे ॥ सिद्धि साम्हा थश् वीर दीक्षा लेश, पा संताप मल दूर काढे ॥ मुं० ॥३॥ बहुल बंभण घरे पारj सांमिएं. पुण्य परमान्न मध्यान्ह किधुं ॥ भुवन गुरु पारणा पुन्यथी बंभणे, आप अवतार फल For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ३९८ सयल लिधुं । मु०॥४॥ कर्मचंडाल गोसाल संगम सुरो, जीणे जीन उपरे घात मंडयो ॥ एवडो वयर तें पापिया सें कयों, कर्म कोडि तुहिज सबल दंडयो ।मु०॥ ५॥ सहज गुण रोषिओ नामे चंडकोषिओ, जीनपदे स्वान जिम जेह विलगो ॥ तेहने वुझवि उद्धों जगपति, किधलो पापथी आर्तहें अलगो ॥ मु०॥६॥ वेदयामा त्रियाम लगें खेदियो, भेदियो तुझ नवि ध्यान कुंभो ॥ शूलपाणि अन्नाणि अहो बुझव्यो, तुझ कृपा पार पामे न संभो ॥ मु० ॥७॥ संगमे पिडीओ प्रभु सजल लोयणे, चिंतवे छटश्ये किम एहो ॥ तास उपरें दया एवमि शी करी, सापराधे जने सबल नेहो ॥ मु०॥ ॥ इम उपसर्ग सहेतां तरणि मित वरस, सार्द्ध उपर अधिक पक्ष एके ॥ वीर केवल लडं कर्म दुःख सवि दह्यु, गहगह्यं सुर निकर नर अनेके ॥ मु० ॥ ९ ॥ इंद्रभुति प्रमुख सहस चउदश मुनि, साहुणी सहस छत्रीस विहसी ॥ ओगणसठ सहस एक लाख श्रद्धालुआ, श्राविका त्रिलख अठार सहसी ॥ मु०॥१०॥ इम अखिल साधु For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९९ परिवारशुं परवरयो, जलधि जंगम जीयो गुहिर गाजे ॥ विचरता देश परदेश निय देशना, उपदिशे सयल संदेह भांजे ॥ मु०॥ ११ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ विवाहलानी देशौ ॥ ॥ हवे निय आय अंतीम समे, जाणिय श्री जिनरायरे ॥ नयरी अपापाएं आवीया ॥ राय समाजने ठायरे॥हस्तिपालगराये दीठला, आवियडा अंगण बार।नयण कमल दोय विहसीआ, हरसीला हडा मझाररे ॥ १॥ भले भले प्रभुजी पधारीया, पावस पावन किधारे ॥जनम सफल आज अम तणो, अम्ह घरे पाउलां दीधारे ॥ राणी राय जिन प्रणमीया, मोटे मोतियमे वधाविरे ॥ जिन सनमुख कर जोडीय, बेठला आगले आविरे ॥२॥ धन अवतार अमारडो, धन दिन आजुनो एहोरे । सुरतरु आंगणे मोरिओ, मोतियडे वुठलो मेहोरे ॥ आ इयु अमारमे एवडो, पूरव पुन्यनो नेहोरे ॥ हैडलो हेजे हरसिओ, जो जिन मलिओ संजोगोरे ॥३॥ अति आदर अवधारिए, चरम चोसासलु रहियारे ॥ राय राणि सुर For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नर सवे, हियडला माहे गहगहियारे || जमृतथी अति मीठडी, सांभली देशना जिननीरे ॥ पाप सं. ताप परो थयो, शाता थइ तन मननीरे ॥ ४ ॥ इंद्र आवे आवे चंद्रमा, आवे नरनारीना वृंदरे ॥ त्रिण प्रदक्षणा देश् करी, नाटिक नव नवे छंदोरे ॥ जिन मुख वयणनी गोठडी, तिहां हाये अति घणी मीठीरे ॥ ते नर तेहज वरणवे, जीणे निज नयणले दीठीरे ॥५॥ इम आणंदे अतिक्रम्या, श्रावण भाद्रवो आसोरे ॥ कौंतिक कोडिला अनुक्रमे, आवियडो कार्तिक मासोरे ॥ पाखि पर्व पन्होतयं, पोहतळ पुन्य प्रवाहिरे ॥ राय अढार तिहां मिल्या, पोसह लेवा उछांहिरे ॥ ६ ॥ त्रिभोवन जन सवि तिहां मिल्या, श्री जिन वंदन कामोरे ॥ सहेज संकिरण तिहां थयो, तिल पढवा नहि ठामोरे ॥ गोयम स्वामि समोवडी, स्वामि सुधर्मा तिहां बेठारे ॥ धन धन ते जिणे आपणे, लोयणे जिनवर दिठारे ॥णा पूरण पुन्यना ओषध, पोषध बत वेगे लिधां रे ॥ कार्तिक काली चउदशे, जिन मुखे पचखाण किधारे ।। राय अढार प्रमुख For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१ घणे, जिन पगे वांदणां दिधारे॥जिन वचनामृत तिहां घणे, भवियणे घट घट पीधारे ॥८॥ ॥ ढाल ३ जी राग मारु. ॥श्री जगदीश दयालु दुःख कोडि तुज जोडी ॥ जगमारे जगमा रै कहिए केहने वीरजीरे ॥१॥ जग जगने कुण देशे एहवी देशनारे, जाणि निज निरवाण ॥ नवरसरे नवरसरे सोल पहोर दिये देशनारे ॥२॥ प्रबल पुन्य फल संसुचक सोहामणारे, अज्जयां दणपन्न ॥ कहियां रे कहियांरे म. हियां सुख सांभली होएरे ॥ ३ ॥ प्रबल पाप फल अइझयणां तिम तेटलारे, अण पुछयां छत्रीस ॥ सुणतारे सुणतां रे भणतां सवि सुख संपजेरे ॥ ४ ॥ पुण्य पाल राजा तिहां धर्म कथांतरेरे, कहो प्रभु प्रत्यक्ष देव ॥ मुजनेरे मुजनेरे सुपन अर्थ सवि साचलोरे ॥ ५॥ गजवानर २ खीर ३द्रुम ४ वायस ५सिंह ६ घडोरे, ७कमलबीज ८ इम आठ॥देखिरेदेखिरे सुपन समय मुझ मन हुओ रे ॥६॥ उखर बिज कमल अस्थांनके सिंह-रे, जीव रहित शरीर ॥ सोवनरे सोवनरे कुंभ मलिन ए शुं घटेरे ॥७॥ वीर भणे भुपाल सुणो मन For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪૦૨ थीर करीरे, सुमिण अर्थ सुविचार ॥ हैडे रे हैडेरे धरज्यो धर्म धुरंधरुरे ॥८॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ ॥श्रावक सिंधुर सारिखा, जीनमतना रागी, त्यागी सह गुरु देवधर्म, तत्वे मति जागि ॥ विनय विवेक विचारवंत, प्रवचन गुण पूरा, एहवा श्रावक होयसे, मतिमंत सनुरा ॥१॥ लालचे लागा थोडिलें, सुखें राचि रहिया, घरवासे आशा अमर, परमारथ दहिया ॥ व्रत वैराग थकि नहि, कोइ लेशे प्राये, गज सुपने फल एह, नेह नवि माहोमांहे ॥२॥ वानर चंचव चपल जाति, सरखा मनि मोटा ॥ आगल होस्ये लालचि, लोभी मन खोटा ॥ आचारज, ते आचारहिण, प्रायें परमादि ॥धर्म भेद करस्ये घणा, सहज स्वारथ वादि ।।३॥ का गुणवत महत सत, मोहन मुनि रुडा ॥ मुख मीठा मायाविया, मनमोहे कुडा ॥ करस्ये माहोमांहे वाद, पर वादें नासें ॥ बीजा सुपन तणो विचार, इम वीर प्रकाशे ॥ ४॥ कल्पवृक्ष सरिखा होस्ये, दातार भलेरा ॥ देव धर्म गुरु वासना, वरि वारिना वेरा ॥ सरल वृक्ष सविने दीए, मनमां For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ गह गहता ॥ दाता दुर्लभ वृक्ष राज, फल फुले त्रहता ॥५॥ कपटी जिनमत लिंगिया, वळी बबूल सरिखा ॥ खीर वृक्ष आडा थया, जीम कंटक तिखा ॥ दान देयंता वारसी. अन्य पावन पात्री ॥ त्रिजा सुपन विचार कह्यो, जिनधर्म विधात्री ॥६॥ सिंह कलेवर सारिखो, जिन शासन सबलो ॥ अति दुर्दात अगाह निय, जिनवायक जमलो ॥ परशासन सावज अज, ते देखी कंपे ॥ चउथा सुपन विचार इम, जिनमुखथी जंपे॥णागच्छ गंगाजल सारीखो, मूंकी मति हिणा ॥ मुनि मन राचे छिबरे, जीम वायस दीणा ॥ वंचक आचारज अनेक, तिणे भुलविया॥ ते धर्मातर आदरे, जडमति बहु भवियां ॥८॥ पंचम सुपन विचार एह, सुंणीयो राजाने ॥ छठे सोवन कुंभ दीठ, मइलो सुंणि कांने ॥ को को मुनि दरसण चारित्र, ग्यान पूरण देहा ॥ पाले पंचाचार चारू, छंडि निज गेहा ॥९॥ को कपटी चारित्र वेश, लेइ विप्रतारे ॥ मश्लो सो. वन कुंभ जीम. पिंम पापे भारे ॥ छठा सुपन विचार एह, सातमे इंदिवर ॥ उकरने उतपति थइ, ते शुकहो For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૦૩ जिणवर ॥ १० ॥ पुण्यवंत प्राणि हुस्ये, प्राहिं मध्यम जाति ॥ दाता भोक्ता ऋद्धिवंत, निर्मल अवदात || साधु असाधु जति वदे, तव सरीखा किजे ॥ ते बहु भद्रक भविणे, स्यो उलंभो दीजे ॥११॥ राजा मंत्रिपरे सु साधु, आपोपुं गोपी ॥ चारित्र सुधु राखस्ये, सवि पाप विलोपि ॥ सप्तम सुपन विचार वीर, जिनवरे इम कहियो || अष्टम सुपन तग्गो विचार, सुणि मन गहग हिओ ॥ १२ ॥ न लहे जिनमतमात्र जेह, तेह पात्र न कहिएं ॥ दिधानुं परभव पुण्य फल, कांइ न लहिये || पात्र अपात्र विचार भेद, भोला नवि लस्ये ॥ पुण्य अर्थे ते अर्थ आथ, कुपात्रे देहस्ये ॥ ॥ १३ ॥ उखर भूमि दृष्ट बिज, तेहनो फल कहिएं ॥ अष्टम सुपन विचार ईम, राजा मन ग्रहियें || एह अनागत सवि सरुप, जाणि तेणे काले ॥ दीक्षा लीधी वीर पास, राजा पुन्यपाले ॥ १४ ॥ || ढाल पांचमी राग गोडी ॥ ॥ इंद्रभूति अवसर लहि रे, पुछे कहो जिनराय ॥ इयं आगल हवे होयस्येरे, तारण तरण जीहाजोरे For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir s ॥ कहे जीन वीरजी ॥ १ ॥ मुज निर्वाण समय थकीरे, त्रिह वरसे नव मास || माठेरो तिहा बेसश्येरे, पंचम काल निरासोरे ॥ कहे० ॥२॥बारे बरसे मुऊ थकिरे, गौतम तुज निरवाण ॥ सोहम वीशे पामशेरे, वरसे अखय सुख ठांणोरे ॥ कहे ० || ३ || चउसठ वरसे मुज थकीरे, जंबूने निरवाण || आथमसे आदित्य थकिरे, अधिकं केवलनांणो रे ॥ कहे० ॥ ४ ॥ मन पज्जव परमावधिरे, क्षपकोपशम मन आंण ॥ संयम त्रिण जिन कल्पनीरे, पुलागाहारग हांणरे || कहे० ॥ ५ ॥ सिजंभव अठाणवेरे, करस्ये दस वैआलिय || चउद पूर्वि भद्र बाहूथीरे, थास्ये सयल विलिओ रे || कहे० ||६|| दोयशत पन्नरे मुज थकिरे, प्रथम संघयण संठाण ॥ पूर्वणुं उगते नवि हूस्येरे, महाप्राण नवि जांगोरे || कहे ? ||७|| चउत्रयपने मुज थकिरे, होस्ये कालिक सूर ॥ करस्ये चउथी पजुसणेरे, वरगुण रयणनो पूरोरे ॥ कहे ० ||८|| मुजथी पण चोराशियेरे, होस्ये वयर कुंमार || दस पूर्वि अधिकालिओरे, रहस्ये तिहां निरधारोरे ॥ कहे ० ॥ ९ ॥ मुज निर्वाण थकि For Private And Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ छसेंरे, विस पछी वनवास ॥ मुकी करसे नगरमारे, आर्य रक्षित मुनि वासोरे ॥ कहे० ॥ १० ॥ सहसें वरसें मुज थकिरे, चउद पूरव विछेद ॥जोतिष अण मिलता हूसेरे, बहूल मतांतर भेदोरे ॥ कहे ॥११॥ विक्रमी पंच पंच्याशिएंरे, होस्ये हरिभद्र सूरि ॥ जिन शासन अजुवालसेरे, जेहथी दूरियां सवि दू. रोरे ॥ कहे० ॥ १२ ॥ द्वादश सत्त सत्तर समेरे, मु. झथी मनि सुर हिर ॥ बप्पभट्ट सरि होयसेरे, ते जिन शासन वीररे ॥ कहे०॥१३॥ मझ प्रतिबिंब भरावस्येरे, आमराय भूपाल ॥ सार्द्ध त्रिकोटी सोवन तणोरे, तास वयणथी विशालोरे ॥ कहे० ॥ १४ ॥ षोडस शत ओगणोतरेरे, वरसे मुझथी मुणिंद ॥ हेमसूरि गुरु होयस्ये रे, शासन गयण दिणंदोरे ॥ कहे. ॥ १५॥ हेमसूरि पडिबोहीस रे, कुमारपाल भूपाल ॥ जीन मंडित करस्ये महीरे, जिन शासन प्रतिपालोरे ॥ कहे० ॥ १६ ॥ गौतम नबळा समयथीरे, मुझ शासन मन मेल ॥ माहोमांहे नवि होस्येरे, मच्छ गला गल केलोरे ॥ कहे० ॥ १७ ॥ मुनि मोटा मायावियारे, For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेढीगारा विशेष ॥ आप सवारथ वसी थयारे, ए विटंबश्ये वेषोरे ॥ कहे० ॥१८॥ लोभि लखपति होयस्येरे, जम सरिखा भूपाल ।। सजन विरोधि जन हुसेरे, नवि लज्जालु दयालो रे ।। कहे० ॥ १९॥ नि. लोभि निरमाइयारे, सुधा चारित्रवंत ॥ थोडा मुनि महियले हसेरे, सुण गौतम गुणवंतरे ॥ कहे० ॥२०॥ गुरु भगति शिष्य थोडलारे, श्रावक भगति विहीण ॥ मात पिताना सुत नहीरे, ते महिलाना आधिनोरे ।। कहे० ॥ २१ ॥ दुपसह सरि फलगुसिरीरे, नायल श्रावक जाण ॥ सञ्चसिरि तिम श्राविकारे अं. तिम संघ वखाण्यारे ॥ कहे० ॥ २२ ॥ वरस सहस एकवीसतेरे, जिन शासन विख्यात ॥ अविचल धर्म चलावशेरे, गौतम आगम वातोरे ॥ कहे० ॥२३॥ दूषमे दूषमा कालनीरे, ते कहिये शी वात ॥ कायर कंपे हैडलोरे, जे सुणतां अवदातोरे ॥ कहे ॥२४॥ ॥ ढाल ६ ॥ पिउडो घरे आवे-ए देशी ॥ मुऊसुं अविहम नेह बांध्यो, हेज हैडा रंगे ॥ दृढ मोह बंधण सबल बांध्यो, वज्र जिम अनंग ॥ For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ अलगा थया मुज थकि एहने, उपजसेरे केवल निय अंगके ॥ गौतमरे गुणवंता ॥ १॥ अवसर जाणि जिनवरे, पुछिया गोयम स्वाम ॥ दोहग दुखिया जी. वने, आरिये आपण काम ॥ देव सर्मा बंभणो, जइ बुझवोरे, ओणे ढुंकमे गामके ॥ गौ०॥ २॥ सांभली वयण जिणंदमुं, आणंद अंग न माय ॥ गौतम बे कर जोडि, प्रणम्या वीर जिनना पाय ॥ पांगरया पूरव प्रीतथी, चपनांणिरे मनमां निरमायके ॥ गौ०॥३॥ गौतम गुरु तिहां आविया, वंदाविओ ते विप्र ॥ उ. पदेश अमृत दीधलो, पीपलो, तिणे क्षिप्र ॥ धसमस करतां बंभणे, बारि वागीरे थइ वेदन विपके ॥ गौ० ॥४॥ गौतम गुरुना वयणलां, नवि धर्या तिणे कान॥ ते मरी तस शिर कृमि थयो, कामनीने एक तान ॥ उठिया गोयम जाणिओ, तस चरीयोरे पोताने ज्ञान के ॥ गौ०॥५॥ ॥ ढाल सातमी ॥ राग रामगिरि ॥ ॥ चोसठ मणनां ते मोति झगमगेरे, गाजे गुहिर गंभिर सिरेरे । पुरां तेत्रीस सागर पूरवे रे, नादे For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०९ लिणा लवसन्तमिया सूर रे ॥ वीरजी वखाणे रे जग जन मोहियोरे ॥ १ ॥ अमृतथी अधिक मीठी वाणी रे, सुणतां सुखडो जे मनडे संपजेरे || ते लहेस्ये जे पोहोचस्ये निर्वाणरे || वी० ॥ १ ॥ वाणि पमछंदे सुर पडिबोहीयारे, सुणतां पामे सुख संपत्तिनी कोमरे || बिजा अडल उलटथी घेणारे, आवी बेठा आगल बे करजोड रे ॥ वी० ॥ ३ ॥ सोहम इंदो शासन मोहीयोरे, पूछे परमेश्वरने तुम आयरे ॥ बे घडि वधारो स्वाति थकी परहुं रे, तो जस्मग्रह सघलो दूरे जाय रे ॥ वी० ॥ ४ ॥ शासन शोभा अधिक वाघश्ये रे, सुखीआ होशे मुनिवरना वृंदरे || संघ सयलने सवि सुख संपदारे, होशे दिन दिनथी परमानंदरे ॥ वी० ॥ ५ ॥ इदा न कदा रे कहिए केहनुं रे, केणे सांध्यं नवि जाए आयरे || जावि पदारथ भावे निपजे रे, जे जिम सरज्यो ते तिम थायरे ॥ वी० ॥ ६ ॥ सोल पहोरनी देता देशनारे, परधानकनामा रुडो अकायरे ॥ कहेतां काति वदि कहुं परगडिरे, वीरजी पोहोता पंचमी गति रयपरे ॥ वी० ॥ ७ ॥ ज्ञान For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४१० दीवोरे जब दुरे थयो रे, तव किधि देवे दीवानी श्रेणिरे ॥ तिमरे चिहुं वरणे दीवा किधलारे, दिवाली कहिये छे कारण तेणरे ॥ वी० ॥ ८॥ आंसु परिपूरण नयण आखंडलो रे, मूकि चंदननी चेहमां अंगरे॥ दिधो देवे दहन सघले मिलिजी रे, हा धिग धिग संसार विरंगरे॥वी०॥९॥ ॥ ढाल आठभी ॥ राग विराग ॥ ॥वंदेसु वेगे जइ वीरो, इम गौतम गहगहता ॥ मारगे आवतां सांजलिडं, वीर मुगति माहे पोहतारे ॥ जिनजी तुं निसनेही मोटो, अविहम प्रेम हतो तुज उपरे, ते तें किधो खोटोरे ॥ जीनजी० ॥ ॥१॥ है है वीर कर्यो अणघटतो, मुज मोकलिओ गामे ॥ अंतकाले बेठां तुज पासे, हूं स्ये नावत काम रे। जी० २ ॥ चौद सहस मुज सरिखा ताहरे, तुज सरिखो मुज तुंहि ॥ विश्वासी वीरे छेतरीओ, ते इया अवगुण मुहिरे ॥ जी० ॥३॥ को केहने छेहमे नवि वलगे, जो मिलतो होए सबलो ॥ मिलतास्युं जेणे चित्त चोयों, ते तिणे को निबलो रे ॥ जी०॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निठुर हैडा नेह न किजे, निसनेही नर निरखी ।। हैडा हेजे मिले जिहां हरखी, ते प्रीतलडि सरीखिरे ॥जी॥५॥ तें मुझने मनडो नवि दीधो, मुज मनमो तें लीधो ॥ आप सवारथ सघलो किधो, मुगति जइने सिद्धोरे ॥ जो०॥६॥ आज लगे तुज मुजसुं अंतर, सपनंतर नवि हुँतो । हैडा हेजे हियालि छंडी, मुजने मुक्यो रोवंतो रे ॥जी॥७॥ को केहशुं बहु प्रेम म करश्यो, प्रेम विटंबण विरुइ ॥ प्रेमे परवश जे दुःख पामे, ते कथा घणुं गिरुइरे ॥ जी० ॥ ७ ॥ निसनेही सुखिया रहे सघले, स सनेही दुःख देखे ॥ तेल दुग्ध परे परनी पीडा, पामे नेह विशेषेरे ॥ जी० ॥ ए । समवसरण कहिएं हवे होसे, कहो कुंण नयणे जोशे ॥ दया धेनुं पुरी कुंण दोहस्ये, वृष दधि कुंण विलोसेरे ॥ जी० ॥ १०॥ इण मारग जे वाल्हा जावे, ते पाछा नवि आवे ॥ मुज हैडो दुःखडे न समाए, ते कहो कुण समावेरे ॥ जी०॥ ११॥ यो दरिसण वीरा वा'लाने, जे दरिसणना तरस्या ॥ जो सुहणे केवारे देखसुं, तो दुःख दूरे करशुं रे ॥ जी० For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १२ ॥ पुण्य कथा हवे कुण केलवशे, कुंण वाल्हा मेलवशे ॥ मुज मनडो हवे कुंग खेलवशे, कुमति जिम तिम लवशेरे॥ जी०॥ १३॥ कुण पुढ्यानो उत्तर देशे, कुण संदेह भांजशे ॥ संघ कमळ वन किम विकससे, दुं छद्मस्था वेसेरे ॥ जी० ॥ १४ ॥ हुं परापुर वसुं अजाण, में जिन वात न जाणि ॥ मोह करे सवि जग अनाणी, एहवी जीनजीनी वाणीरे ॥जी० ॥१५॥ एहवे जिन वयणे मन वाप्यो, मोह सबल बल काप्यो ॥ इण भावे केवल सुख आप्यो, इंद्रे जिनपद थाप्योरे । जी० ॥१६॥ इंद्रे जुहारया भट्टारक, जुहार जट्टारक तेणे ॥ पर्व पन्होतुं जगमां वाप्यु, ते किजे सवि केणरे ॥ जी० ॥१७॥ राजा नंदिवर्द्धन नुतरीयो, नाइ बहिनर बीजे ॥ ते भावड बीज हुइ जग सघले, बेहेन बहपरे किजेरे ॥ जी०॥ १० ॥ ॥ ढाल ९ मी ॥ विवाहलानी ॥ परिहरीए नवरंग फालडीए, मांडि भृगमद केसर भालडीए ॥ झव झबके श्रवणे झालडीए, करी कंठे मुगताफल मालडीए ॥१॥ घर घर मंगल माल For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ डीए, जपे गोयम गुण जपमालडीए || पहोतलो परव दीवालडीए, रमे रस भर रामत बालडीए ||२|| शोक संताप सवि कापीओए, इंद्रे गांयम वीरपदे थापीओए ॥ नारी कहे सांजल कंतडाए, जपो गोयम नाम एकंतडाए || ३ || ल्यो लख लाभ लखेशरी ए, यो मंगल कोडी कोडेशरी ए ॥ जाप जपो थइ सुतपेसरी ए, जीम पामीए ऋद्धि परमेसरी || ४ || लहिएं दिवालडी दाडलो ए, एतो पुण्यनो टबको टालुओए । सुकृत सिरि दृढ करो पालडीए, जिम घर होय नित्य दिवालडीए ॥ ५ ॥ ॥ दाल दशमी ॥ हवे मुनिसुव्रत सीसोरे, जेहनी सबल जगीसो ॥ ते गुरु गजपुरे आव्यारे, वादी सवि हार मनाव्या ||१|| पावस चउमासुं रहियेरे, भवियण हइडे गहगहीयारे ॥ नमुचि चक्रवर्त्ति पद्मरे, जसु हियडे नविहु छद्म ॥२॥ नमुचि तस नामे प्रधानरे, राजा दिये बहु मान || ति तिहां रिजवी रायरे, मागि मोटो पसाय ॥ ३ ॥ लियो पट खं राजरे, सात दिवस मांडि For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४१४ आज ॥ पूर्व मुनिसुं विरोध्योरे, ते किणे नवि प्रतिवोध्यो ॥४॥ ते मुनि सुं कहे बंडोरे, मुज धरति सवि छंडो । विनवित्रो मुनि मोटो रे,नवि माने कर्मि खोटो ॥५॥ साठसयां वर्ष तप तपिओरे, जे जिन किरीयानो खपीओ ॥ नामे विष्णु कुमाररे, सयल लब्धिनो भंडार ॥६॥ उठ क्रम भुमि लेवारे, जोवा भाइनी सेवा ॥ ल्यूं त्रिपदि भूमि दानरे, नले जले आव्या भगवान ॥७॥ इणे वयणे धडहडीओरे, ते मुनि बहु कोपे चढिओ ॥ किधो अदभूत रुपरे, जोयण लाख सरुप ॥८॥ प्रथम चरण पूर्वे दीधोरे, बिजो पश्चिमे किधो ॥ त्रिजो तस पुंठे थाप्योरे, नमुंचि पाताले चांप्यो॥ ॥९॥थरहरीओ त्रिभूवनरे, सलभलिओ सवि जन ॥ सलसलिओ सुर दिन्नरे, पडयो नवि सांभलिए कन्न ॥ १०॥ ए उत्पात अत्यंतरे, दूरि करो भगवंत ॥ है है श्यु हवे थाशे रे, बोले बहु एक सासे ॥११॥ करणे किन्नर देवा रे, कडुया क्रोध समेवा ॥ मधुर मधुर गाएं गीतरे, बे कर जोडी विनीत ॥१२॥ विनय थकी वेगे वलिओ रे, ए जिन शासन बलिओ ॥ दानव For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar देवे खमाव्यो रे, नर नारीए वधाव्यो ॥ १३ ॥ गावलडी भेस भडकीरे, जे देखी दुरे तमकी ॥ ते जतने ग्रहि छे रे, आरति उतारि मेरइऐ ॥ १४ ॥ नवले अवतारे आव्या रे, जीवित फल लहि फाव्या ॥ शेव सुंहालि कंसार रे, फल ल्यूं नवे अवतार ॥१५॥ छगण तणो घरबार रे, नमुंांच लख्युं घर नारे ॥ ते जीम जीम खेरु थाय रे, तिम तिम दुख दूरे जाय ॥ १६ ॥ मंदिर मंडाण मांडया रे, दालिद्र दुःख दुरे छांडया ॥ काति सुदि पडवे पखेरे, इम ए आदरीओ सर्वे ॥१७॥ पुण्ये नरजव पामि रे, धर्म पुन्य करो निरधामी ॥ पुन्ये ऋद्धि रसालि रे, नित नित पुन्ये दिवाली ॥१८॥ ॥कलश ॥ जिन तुं निरंजण सजल रंजण, दुख भंजन देवता ॥ यो सुख सामि मुगति गामि, वीर तुज पाय सेवता, तपगच्छ गयण दिणंद दहदिसे, दीपतो जग जाणिए ॥ श्री हीरविजय सुरिंद सहगुरु, तास पाट वखाणीये ॥१॥ श्री विजयसेन सुरीस सहगुरु, वि. जयदेव सूरिसरु ॥ जे जपे अहनिश नाम जेहनो, For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्द्धमान जिणेश्वरू ॥ निर्वाण स्तवन महिमा भवन, वीर जिननो जे भणे॥ ते लहे लिलालब्धि लच्छी, श्री गुण हर्ष वधामणे ॥२॥ इति श्री वीर निर्वाण महिमा दीपालिका स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ श्री महावीर स्वामीतुं स्तवन ॥ ॥ माता मारुदेवीना नंद ॥ ए देशी ॥ ॥ मेतो हजुर रेहेशुंजी, माहारारे साहेबजी मेतो नजीक रहेगुंजी ॥ ए आंकणी ॥ साहेबनी से. वामां रहीशुं, करशुं सुख दुःख वात ॥ आण वहीने शिवसुख लेइशें, देइशुं दुरगती बार ॥ मेतो० ॥१॥ सिद्धारथ राजानो नंदन, त्रिशला देवी माय ॥ चोवीशमां जिनना गुण गाता, करशुं निर्मल गात्र ॥ ॥ मेतो० ॥२॥ च्यार पांच सात आठ हणीने, नवशु धरशुं नेह ॥ दश पोताना दोस्त करीने, एकने देशु छेह ॥ मेतो० ॥ ३ ॥ छने छंडी दोने मंडी, बोलावीशुं बार ॥ पंधर जणाना पाशमां न पडद्यु, तेरने देश्शु मार ॥ मेतो० ॥ ४ ॥ त्रण पांच सत्तावीश धरशु, बेतालीश सुविशेष ॥ तेत्रीशने चोराशी For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टाली, करणं आतम शुद्ध । मेतो० ॥ ५॥ सत्तर पाळी अढार अजुवाली, जीतीशुं बावीश ॥ तेवीसे ने दुर करीने, चित्त धरसुं चोवीश ॥ मेतो० ॥ ६ ॥ च्यारमाथी बे परीहरसुं, बेनो आदर करशुं ॥ ए साहेबनी आणवहीने, जव सायरथी तरशुं ॥मेतो॥ ॥७॥ अंग विनानो संगज करीये, तरीये भवजळ तीर ॥ उदयरत्न कहे त्रिशला नंदन, जय जय श्री महावीर ॥ मेतो हजुर० ॥ ८॥ इति ॥ ॥जिनपूजा स्तवन--देशी भविकानी । ॥ श्रीजिनबिंब जुहारो, आतम परम आधारो रे भविकाश्री० ॥ जिनप्रतिमा जिन सरखी जाणो, नकरो शंका कांइ ॥ आगम वाणीने अनुसारे, राखो प्रीत सवाइरे ॥भश्री॥॥ जे जिन बींब स्वरुप न जाणे, ते कहीये किम जाण ॥ भूल्या तेह अज्ञाने भरीया, नहीं तिहां तत्व पिछाणरे ॥ भ० श्री० ॥२॥ अंबड श्रावक श्रेणीकराजा, रावण प्रमुख अनेक ।। विविध परे जिन भक्ती करतां, पाम्या धर्म विवेकरे ॥भ० ॥ ३॥ जिन प्रतिमा जिन भक्ती करता, होय For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ निश्चे उपकार ॥ परमार्थ गुण प्रगटे पूरण, जुवो आद्रकुमाररे ॥०॥४॥ जिनप्रतिमा आकारे जलचर, छे बहु जलधी मझार ॥ ते देखी बहुला मच्छादिक, पाम्या प्रीत्ये भव पाररे ॥ भ० ॥५॥ पंचमें अंगे जिन पूजानो, प्रगटपणे अधिकार ॥ सुरीयाने सुर जिन पूज्या ते, रायपसेणी मझाररे ॥भ० श्री०॥६॥ दशमें अंगे हिसा दाखी, यज्ञ पूजा जिनराज ॥ एहवा आगम अर्थ मरोडी, करे तेह अकाजरे भ०॥७॥ समकितधारी सतीय द्रुपदी, जिन पूज्या मनरंगे । जुवो एहनो अर्थ विचारी, छठे ज्ञाता अंगेरे ॥ भ० ॥८॥ विजयदेवे जिनपूजा कीधी, मन वच काया वस राखी ॥ द्रव्य भाव बेहु भेदे जाणो, जीवाभीगम छे साखी रे ॥ भ० ॥ ॥ इत्यादिक बहु आगम साखे, कोइ संका मत करज्यो । जिन प्रतिमा देखी नित्य नवलो, प्रेम घणो चित्त धरज्योरे ॥ ज०॥ १० ॥ श्रीचिंतामणी पार्श्वपसाये, श्रद्धा होज्यो सदा ॥ श्रीजिनलाभ गुरु उपदेशे, श्रीजिन चंद्र सवाइरे ॥ भवि०॥ ॥ ११ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ श्री पीस्तालीस आगमनुं स्तवन ।। ॥ भवी तुमे बंदोरे सुरीश्वर गच्छराया ॥ ए देशी॥ ॥ भवि तुमे वंदोरे, ए आगम सुखकारी ॥ पाप निकंदोरे, प्रभू वाणि दिलधारि ॥ ए आंकणी॥ शासन नायक वीर जिणेसर, आसन्न जे उपगारी ॥ प्रभु मुख त्रिपदी पांमी गणधर, गौतमनी बलिहारी ॥ भवि० ॥१॥ प्रथम अंग श्री आचारंगे, मुनि आचार वखाएयो।सहस अढार ते पदनी संख्या. ठाण बमणा सह जांणो ॥ भवि०॥२॥ सुगडांग ठाणंगने समवायंग. पंचमोभगवति अंग ॥ लाख बिहने सहस अग्यासी, पद रुडां अति चंग ॥ भवि० ॥३॥ ज्ञाता धर्म कथा अंग छठ, कथा उठ कोड ते जाणो ॥ पंचमे आरे दूषमां कालमां, कथा ओगणीस वखाणो ॥ नवि० ॥ ४ ॥ उपासग ते सातमो जांणो, दश श्रावक अधिकार ॥ ते सांभळतां कुमति बुइया, जिनपडिमां जयकार भवि० ॥ ५ ॥ अंतगम दशांगने अनुत्तर उवाई, प्रश्न व्याकरण वखांणो॥शुज अशुभ फल कर्म विपाक ए, अंग इग्यार प्रमाणो ॥ भवि० For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० ॥ ६ ॥ उवाइ उपांगने रायपसेणी, जीवाभिगम मन आंणो ॥ पन्नवणांने जंबु पन्नति, चंदपन्नति एम जांणो ॥ भवि ॥ ७॥ सूर्यपन्नती निरयावलि तिम, कप्पिया कप्प वृत्तिक ॥ बार उपांग एणीपरें बोल्या, पुफिया पुष्फतिक भवि० ॥ ७ ॥ चउसरण पयन्नो पहेलो, आउर पञ्चख्खाण ते बीजो ॥ महापञ्चख्खाणने भत्तपरिज्ञा, तंफूलं वियालि मन रीझो ॥नवि०॥ ॥९॥ चंदा विजयने गणि विज्झातिम,मरण समाधि वखाणो ॥ संथारा पयन्नो नवमो, गहाचार दस जांणो ॥ भवि०॥ १० ॥ दश वैकालिक मुल सूत्र ए, यावश्यक ओध नियुक्ति ॥ उत्तराध्ययने ते चोथो जांणो, श्री वीर प्रभुनी ओक्ति ॥ भवि० ॥ ११॥ निशिथ छेद ते पेहलो जांणो, बृहत कल्प विवहार ॥ पंच कल्पनें जितकल्प तिम, महानिशिथ मनोहार भवि० ॥ १२ ॥ नंदी अनुयोग आगम पिस्तालीस, संप्रती काले जाणो ॥ जिन उत्तम पदरुप निहाली, शिवलदमी घरआणो ॥ भवि तुमे वंदोरे बागम सुखकारी ॥ १३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४२१ पार्श्वनाथनुं स्तवन. ॐ नमो पार्श्व प्रभु पंकजे, विश्व चिंतामणी रत्नरे ॥ ॐ ही धरणेंद्र पद्मावती, वैरुटया करो मुज यत्नरे ॥ ॐ नमो ॥१॥ ॐ नमो अबमोहे शांति तुष्टि महापुष्टि, ध्रतिकिर्ती कान्ती विद्याइरे ॥ ॐ ही अक्षर शब्दथी, आधी व्याधी सवी जायरे ॥ ॐ नमो ॥२॥ॐ असीया उसाय नमोनमः, तुंही त्रैलोक्यनो नाथरे ॥ चौसठ इंद्र टोळेमळी, सेवे जोडी प्रभुने हाथरे। ॐ नमो ॥३॥ ॐ ही श्री प्रभु पार्श्वजी, मुलना मंत्रनुं ए बीजरे ॥५॥ पार्श्वथी दुरीत दुरेटले, आवी मीले सवी चीजरे ॥ॐ नमो ॥४॥ॐ अजिता विज्यातथा अपराजीता, विजया जया देवीरे।।दश दीशी पालग्रही यक्षय, विद्यादेवी प्रसन्न होय सेवीरे॥ ॐ नमो॥५॥ गोडी प्रभु पार्श्व चिंतामणी, स्थंनणी अहीं छतो देवरे॥ जग वलभ जगमां तुं जागतो, अंतरीक्ष ऐवंती करूं सेवरे॥ॐ नमो॥६॥श्री संखेश्वर मंडणो, पार्श्वजीन प्राण तरु कल्परे ॥ वारजो दुष्टना वृंदने, सुजस सौभाग्य सुख कल्परे ॥ ॐ नमो पार्श्वप्रभु पंकजे ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजीन स्तवन. सेवा शांतिजिणंदनी, किजे अतिसार बेलो || अहो कि अतिसार बेलो || पद पंकज प्रणमे मुदा, जेहना नरनारि बेलो || अहो जेहना नरनारि बेलो ॥ १ ॥ एक दिवस सुर लोकमे, मेघरथ राजानीबेलो, ॥ अ० ॥ इंद्रे किधि वरणता, ए मोटो उपगारी बेलो ॥ ||०|| ||२|| ते वेला सुर बोलियो, मिथ्या मतद्यारि बेलो ॥ अ० ॥द्यान तणो ए किडलो, मल मूत्र भंडारि बेलो ॥ अ० ॥ ॥३॥ इण मांहे कहो किहां थकि, वाणि सारि बेलो ॥ अ० ॥ उत्तर वैकिय रुपे करी, वृद्ध रुप विचारि बेलो ॥ अ० ॥ ४ ॥ किधा दोय पंखीतणा, चाल्या तिणवारि बेलो || अ० घ्यान धरि बेठो तिहां, नरपति निरधारि बेलो ॥ अ० ॥ ५ ॥ राख राख करतो पड्यो, पारेवो तिण वारि बेलो ॥ अ० ॥ राजाराणी रितसुं, लिधो छुचकारि बेलो ॥ अ० ॥ ६ ॥ भय मत करजे बापडा, कोइ नसके मारि बेलो ॥ अ० || पापि पूंठे आवियो, होलावो हलकारि बेलो ॥ अ० ॥७॥ भक्षणे दिजे माहरो, तोखाउं विदारि बेलो ॥ अ० ॥ राजा पुछे रे For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४२३ पसु, हिंसा नरगदारि बेलो ॥ अ०॥ ८॥ जिवदया व्रत पालिने, सरणा साधारि बेलो॥१०॥ भोजन आपु तुज भणि, मिठा सुखकारि बेलो । अ० ॥९॥ एह सुणि जव बोलियो, पंखि तिणवारि बेलो ॥ अ० ।। मंस विना खावू नहि, नृप जात हमारि बेलो ॥०॥ ॥१०॥ एह बरोबर तुजने, मंस आपु अनेरी बेलो॥ ॥अ०॥ तेह कहे एहने भखु, नहितो तुम्हारो बेलो ॥ अ० ॥ ११ ॥ वयणा सुणी राजा तिहां, निज बूध विचारि बेलो ॥ अ०॥त्राजवे घालि तो लियो, पारेवो तिणवारि बेलो ॥ अ०॥१२॥राजा आप ते भणी. निज अंग विदारि बेलो । अ०॥ सरणागत वच्छलगुणो, परने सुखकारि बेलो॥ अ० ॥१३॥ जिम जिम मेहले मंसने नरपति सतधारि बेलो ॥ अ०॥ तोहि लोल आवे नहि, देव मायाधरि बेलो ॥ अ० ॥ १४ ॥ श्म चिंति राजातिसे, मनमांहे विचारि बेलो। अ०॥ निज तनु सरवे तो लियो, अनुकंपा धारि बेलो ॥ ॥ अ० ॥ १५ ॥ भे नवि आण्यो चितमां, राय दुख लगारि बेलो ॥ अ०॥ ते वेला सुर बोलियो, सुरभाषा For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કરણ सारि बेलो ॥ अ०॥ १६ ॥ इंद्रे वखाण्यो तेहवो, दिठो उपागरि बेलो ॥ अ० ॥ आज पछि हूं ताहरो, सुर आज्ञाकारि बेलो॥ अ०॥ १७॥जीव दयावत पालिने, निज काया सुधारि बेलो ॥ अ०॥ राजा पोहतो मं. दिरे, निज पोसह पारि बेलो ॥अ० ॥ १८ ॥ बारमे जावे लाधो सहि, दोय पदवि सारि बेलो ॥ अ० ॥ तिर्थकर थयो सोलमो, पांचमो चक्रधारि बेलो ॥अ॥ ॥१९॥ शांति जीनेसर विनति, चितमे अवधारि बेलो ॥ अ० ॥ शांति विजय कहे थांयजो, संघ मंगलकारि बेलो ॥ अहो० ॥२०॥ इति शांतिजीन स्तवनम् ॥ सिद्ध दंडोका स्तवन, ॥ दूहा ॥ श्री रिसहेसर पाय नमि, पामि सु गुरु पसाय ॥ सिद्ध तणा गुण गाय वा, मुज मन हरख न माय ॥१॥ तिर्थ माहे जिम सिद्धगिरि, देवमांहे अरिहंत ॥पदमाहे सिवपद मोटकुं, रुषभनो वंस कहंत ॥२॥ जेना वंसमा पाटवि, बहूला मोक्षमा जाय ॥ अथवा अनुत्तर पद लहे, एक जवि ते कहाय ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२५ ॥ ढाल ॥१॥ भाइ हवे माल पेरावो ॥ ए. देशी ॥ श्री रुषभजी केवल पाम्या, सुरनर आवि सिर नाम्या ॥ भिन्न मुहरते सिवपद लहियो, मरुदेवाए मारग वहियो ॥४॥ आदित्य जसा प्रमुख जे राय, ते रुषभ वंसि केहवाय ॥ चौदलाख त्रिखंडना स्वामि, पाम्या सिवतस नमु सिरनामि ॥५॥ पछे पाट जे एक उत्पन्न, सर्वारथ सिद्ध निपन्न | चौदलाख पाट सिवजाय, पछे सर्वारथ सुर थाय ॥६॥ चौदलाख ने अंतरे एम, जिहां लगे सुरधर जयो प्रेम ॥ ते एकेका असंख्याता थाय, पछे चौदलाख सिव जाय ॥ ७ ॥ पछे पाट बेसर्वारथे, पछे चौदलाख सिव जाते ॥ इम ते बेबे असंख्याता, इम त्रिण त्रिण विख्याता ॥८॥ च्यार च्यार असंख्याता कहिये, इम जाव पंचासे लहिये ॥ निजरत्न त्रयिना भोगि, थया रुपातित अजोगि ॥ ९ ॥ ॥ ढाल ॥ २ ॥ ॥सर्वारथ सिधे, चौद लाख हवे पाट ॥ पछे शिवए जाए, नहि त्रिजी तिहां वाट ॥१०॥ इम For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ सिव एकेका, असंख्याता थाय॥ पछे चौद लाख सुर, सर्वे सीवमां जाय ॥ ११ ॥ इम बे बे करतां, थया असंख्याता जेह ॥ इत्यादिक जावत, होय पंचास सिव तेह ॥ १२ ॥ इंम पंचास पंचास, थाए असंख्याति रासि ॥ लोका लोक भाषक, केवलज्ञान विलास ॥ ॥ १३ ॥ हवे पाट लाख दोय, मोक्ष तथा सुर थाय ।। इंम त्रण चार लाख, उभये सरिखा थाय ॥ १४ ॥ इंम लाख असंख्याता, सुर निर्वाण असंख्याता ॥ सुर शब्दे जाणो, अनुत्तर में भाख्या ॥१५॥ ॥ ढाल ॥ त्रीजी ॥ भरत नृप भावसुं ॥ ए देशो ॥ ॥ एक सिवे दोय देवता ए, त्रण सिव च्यार सिव थाय ॥ उत्तम वंस एहनो ए, पण शिव सुर खट जाय ॥ १६॥ नमो सिद्ध भावसुं ए ॥ एक वद्यते इंम किजीएए, मोक्ष सर्वारथ देव ।। थाए वे असंख्याता ए, जीहां लगे करो नित मेव ॥न०॥११॥ हवे एक सिव त्रण देवता ए, पण सिव सग सुर तामाकरो बे बे पाधता ए, जाव असंख्य दोय ठाम ॥न०॥१८॥ पछे एक सिव च्यार देवता ए, सात For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२७ सिवे दश देव || करो त्रण वाद्यता ए, असंख्या होय दोय हेव ॥ न० ॥ १९ ॥ हवे विष मोक्ष रश्रेणि छे ए, सुणो स्वरुप तुमे तास ॥ मांगिए पाटलो ए, थापना करिए खास ॥ न० ॥ २० ॥ हेठलो उपर जाणिइ ए, गडाओगणत्रिस सार || अनुक्रमे मांडिये ए, नथी खेप आदि ठार ॥ न० ॥ २१ ॥ डूंग पण नव तेर सत्तर साए, बाविस खट अड बार || चौद अठाविस वली ए, छबीस पचविस सार ॥ न० ॥ २२ ॥ एकादस त्रेविस वलि ए सडतालिस सित्तेर ॥ सित्तोतेर इग दुग ए, सित्यासि इकोतेर ॥ न० ॥ २३ ॥ बासठ अगणोत्तर भला ए, चोविस छैतालिस ॥ वलि सत मुकिइ ए, तिम भेलो छव्वीस ॥ न० ॥ २४ ॥ इम भेल्याथि एकांतरे ए, मोक्ष सर्वारथ जाय ॥ अनुक्रमे लिजीइ ए, निज गुण भोक्ता थाय ॥ न० ॥ ।। २५ ।। ॥ ढाल || चोथी | एकविसानि ॥ ॥ इम करतारे त्रण सिवे पांच देवता, अडसी - धेरे बार विमानने सेवता ॥ इम जावतरे स उत्तर For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ४२८ सुर थया, ओगणत्रिसरे पाटनते सिवमागया ॥२६॥ त्रुटक ॥ गया सिवमा एम मांडो, ओगणत्रिस उरध अधे ॥ अंक नेलो पूर्वनि परे, देव सिव मारग सधे ॥ २७ ॥ इम जाणोरे अंक अंत आवे हवे, तेह डंडि. कारे आगलमा आदिग्वे ॥पेहले अंकेरे पेहलि दंडिका सिध करो, बीजी दंडिकारे प्रथम अंक सरमा धेरा ॥२८॥ त्रुटक ॥ धरो सुरमा एह अनुक्रमे, धारो गुरु पासे रहि ॥ अजीत स्वामितातजावत, उपजे तिहां लगे कहि ॥ २९॥ असंख्यातिरे कोडि लाख इंम दंडिका, सिधने वलिरे सर्वारथ अखमिका॥इंम प्रकरणरे सिध दंडिकामा कां, नंदिसत्र निरे वृत्ति माहे पण इम लघु ॥ ३०॥ त्रुटक० ॥ इंम लघुवृत्ति गुरु पासे, पामि अर्थ में भाखीओ. स्वपरने परकास हेते, स्तवन करी चित राखीओ ॥३१॥ सास्वता सुखरे ज्ञान दर्शन माहि रहे, फरि भवमारे सिध थया ते नवि भमे ॥ जेहनु सुखरे मुखथी कहिए केटलु, उपमा विणरे सुं कहि दार्खा केटलं ॥३२॥ एटलु अजर अमर निर्मम, जास ज्योति प्रगट थ६॥ सिद्ध परम समृद्धि For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કરશે पाम्या, भव उपाधि दूर गइ ॥३३ ।। राग धन्यासी ॥ गायो गायोरे मे सिद्ध स्वरुपी गायो, सिद्ध तणि गुण स्तवना करतां आणंद अंग न मायो ॥ नवि देहे नवि गेहे जेहे, त्रण भूवन पठरायोरे ॥मे०॥३४॥ सिद्ध तणि स्तवना करतां मानु, आपहि सिद्ध सुख पाया ॥ समकित वंतनि सरधा माहि, मुनिवर पिण जस ध्यायारे ॥ मे० ॥ ३५ ॥ केवल ज्ञानि खिण खिण निरखे, ते सुख मुज मन भाया ॥ द्यो सुख मुजने ते परमातम पुद्गलातित ठरायारे ॥ मे० ॥ ।। ३६ ॥ खेमाविजय जीन पास प्रभावे, गुरु उत्तम सुखदाया॥ संवत सत अष्टादस चउदे, हरखे कीलोल भरायारे ॥ मे० ॥ ३७॥ श्री विजे धर्म सुरिसर राजे, सुरत चोमासुं ठाया ॥ श्री उत्तम गुरुकेरो गावे, पद्मविजय जिनरायारे । मे० ॥ ३० ॥ इति सिद्धदंमि का स्तवन संपूर्ण. ॥ ॥श्री नेमिनाथनी लावणी चोक पहेलो. ॥ ॥ श्री नेमि निरंजन बालपणे ब्रह्मचारी ॥प्र०॥ मुख पुनमको चंद, अतुल बलधारी ॥ ए आंकणी ॥ For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar लिये बराबरीके मित्र, अति सुरसाला ॥ रसरंगे आवे जदुपति आयुध शाला ॥ कहे मित्र सुणो प्रभु ए छे शंख उदारा, नहि गिरधर पाखें और बजावन हारा ॥ करकमलें लेकर शंख बजाओ भारी ॥ प्रभु० ॥१॥ सुणी शंखशब्दकी धुनि अति विकराल, खलभलिया शेषने फणी सप्तपाताल ॥ चित्त चमका मनमें भवनपतिका इश. थरहर थरक्यां त्यां व्यंतर पति बत्रीश। मूकी निजठामने नासंती सुरनारी ॥ प्रभु० ॥२॥ शागर गडया गिरिवर ने डंगर डोल्या मोटा, त्रोडी बंधनने नाठा गजरथ घोडा ॥ उछलियां सायर नीर चम्यां कल्लोले, भांगी तरुवरनी डाल थयां डम डोले ॥ त्रुटा वर मोतिहार, झबुकी नारी ॥ प्रभु० ॥३॥ शशी सूरज तारा त्रैमानिकना स्वामी ॥ सह करे प्रसंसा अहो प्रभ अंतर जामी ॥ प्रभ चक फेरवी. कियो धनुष टंकारे ॥ गिरधरनी गदा लेइ करमा नेम कुमारे, ॥ कहे माणक मुनि वर चिंता थइ मुरारी ॥ प्रभु०॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। श्री नेमिनाथनी लावणी चोक बीजो. ॥ ॥ गुणवंता श्री जिनराय सभायें आवे ॥ प्रणाम करी हरि हेत धरी बोलावे ॥ मन मोहन प्राण आधार, दरसन मुज दीजें ॥ हो बंधव आपण बलनी परीक्षा कीजें ॥ तुमें वाळो अमचो हाथ, वदे गोपाला ॥ प्रभु हरिनो वाळे हाथ, कमळ ज्युं नाळा ॥ श्री नेमतणुं बल देखी, अचरिज पावे ॥ प्रणाम० ॥ ॥१॥ प्रभु लंबावे निज हाथ, सकल गुण खाणी ॥ तिहां करे खराखर जोर, ते सारंग पाणी ॥ न नमे तिलमात्र लगार, टिकायो भारी ॥ जाणे हिंमोळे हिंचतो, होय गिरधारी ॥ देखी बल अदभुत तेज, चमक्यो आवो ॥ प्रणाम० ॥ २ ॥ हरि बोले मधुरी वाणी, भय मन आणी ॥ भांखे हलधरने अम, नेम बल जाणी ॥ हो बांधव महारा नेम, शक्ति अति मोटी ॥ में दीठी नजर हजुर, वात नहिं खोटी ॥ ए राजतणां ते काज, में बला कहावे ॥ प्रणाम ॥ ॥३॥ ए महाबलियो बलवंत छे बाले वेशे ॥ मुझ राज उलाली एक पलकमें लेशे ॥ इम करतो मन For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar आलोच, महीनो दाणी ॥ इणे अवसर बोले देव, गगनमें वाणी ॥ कहे माणेक प्रभु संयम, लेशे भावे, ॥ प्रणाम०॥४॥ ॥ श्री नेमिनाथनी लावणी चोक त्रीजो॥ ॥ हरख्यो हरि निजचित्त सभामां आवे, कहे रुकमणीने नेम विवाह मनावे ॥ ए आंकणी ॥ अति सुंदर बाळा भरजोबन मदमाती, दीपे शशीवयणी सहस बत्रीस सोहाती ॥ जीनजीनो झाली हाथ हरिजी लावे, निज मंदिर सुंदर अंते उरमें आवे, बोले पटराणी आठ देवरने भावें ॥ कहे० ॥ १ ॥ कोइ छाटे अबिर गुलाल केसरनां पाणी, कोइ घाले गलामां हार पुष्पना आणी ॥ राधा ने रुकमणी बोले मधुरी वाणी, हो देवर महारा परणी जे एक नारी ॥ तुम जादवकुल शणगार समान सोहावे ॥ कहे ॥२॥ मुख मचकोडीने प्रभुनो पाळव झाले, शामळिया सुंदरी एक विना किम चाले ॥ बहु मली कृष्णनी नार वरणवी केती, नकरोजी बालक बुद्ध, ओलंभा देती ॥ वनितानां सुणी वचन मुख मल For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काचे ॥ कहे० ॥३॥ बाळा सहु बोली मुखमलपंतु जाणी, मान्योजी मान्यो नेम परणशे राणी॥श्री समुद्रविजयने कृष्णजी एम कहेता, सह करे विवाहनी बात आपण नथी लेता ॥ कहे माणक प्रभुने पदमणी परणावे ॥ कहे ॥४॥ ॥श्री नेमिनाथनी लावणी चोक चोथो ॥ ॥ मल्यो जादव केरो वृंद छपन कुल कोमे; प्रभु करी शणगार ने नेम चड्या वरघोमे ॥ ए आंकणी ॥ तिहां भेरी नफेरी पंच शब्द वजडावे, मिली बाला कोकिल कंठे मंगल गावे ॥ कोइ हाथी घोडे बेठा रथ सुख पालें। पायक अडतालीश करोड, ते आगल चाले ॥ मल्या दशे दसार हलधर, हरिजी जोडे । प्रभु करि सणगारने, नेम चडया वरघोमे ॥ १॥ वाजे तंबाबु जरी फरके नीशान, बहु साजन महाजन जोर चलावे जान ॥ एम करतां प्रभुजी जयसेन घेर आवे, देखी मुख नाथनुं राजुल मन सुख पावे ॥ तब करते पशुअ पोकार लाखो करोडे ॥प्रमु०॥२॥ छोडीने पशुनो वृंद रथडो वाले, घर आवी प्रभुजी For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ दानसंवत्सरी थाले।सुणी वातने राजुल मूर्छा धरणी ढळती, हे नाथ शुं की, कोमी विलापो करती ॥ लइ संयम दंपती करम कठिनने तोडे ॥ प्रभु०॥३॥अब उपर्नु केवलज्ञान मुगतिमां जावे, प्रभु सिद्ध बुद्ध अजरामर पदवी पावे ॥ गुरु रुप कीरति गुण गाते रंग सवाया, मेसाणे रही चौमास श्री जिन गुण गाया ॥ मुनि माणक लावणी गावे मनने कोमे ॥प्रभु करी० ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ पन्नर तिथिनो थोयो । प्रतिपदा स्तुति. ॥ मंगल आठ करी जस आगल || ए देसी ॥ ॥ एक मिथ्यात्व असंजम अविरति, दर करी शीव वसीयाजी ॥ संजमसंवर विरति तणा गुण, क्षायिक समकित रसीयाजी ॥ कुंथु जिणंद सत्तरमा जिनवर, जे छट्ठा नरदेवाजी ॥ पडवा दिन ते शिवगति पहोता, सेवं ते नित्य मेवाजी ॥१॥ एक कल्याणक संप्रति जिननु, इम दशर्नु परिमाणजी ॥ दस क्षेत्रे मळी त्रण चोवीसी, तेहनां त्रण कल्याणकजी ॥ पड For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वानो दिन अनोपम जाणी, समकित गुण आराधोजी। सकल जिणेसर ध्यान धरीने, मनवंछीत फल साधोजी ॥२॥ एक कृपारस अनुभव संयुत, आगम रयणनी खा. णजी ॥ भविक लोक उपकार करवा,भाखेश्री जिनवारणीजी ॥ जिम मीडां लेखे नवि आवे, एकादिक विj अंकजी ॥ तिम समकित विण पक्ष न लेखे, प्रतिपद सम सुविवेकजी ॥ ३ ॥ कुंथु जिनेसर सांनिध्यकारी, सेवे गंधर्व यक्षजी ॥ वंछित पूरे संकट चूरे, देवी बाला प्रत्यक्षजी ॥ संवेगी गुणवंत महायश, संयम रंग रंगीलाजी ॥ श्री ज्ञान विमल कहे श्री जिननामे, नित नित होवे लीलाजी ॥ ४॥ ॥ अथ वीजनी स्तुति ॥ __॥ बीज दीने धर्मनुं बीज आराधीए, शीतल जिनतणी सिद्धिगति साघीए ॥ श्रीवत्स लंछन कंचन सम तनु, दढरथ नृप सुत देह नेउ घणुं ॥१॥ अर अभिनंदन सुमति वासुपूज्यना, च्यवन जनम ज्ञान ज थया एहना ॥ पंच कल्याणक बीज दिने जाणीए, कालत्रण चोवीसी मन आणीए ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ धर्म बिहु भेदे जिनवर नाखीयो, साधु श्रावक तणो भविक चित्त वासीयो || ए समकित तणो सार छे मूलगु, अहर्निश आगम ज्ञान ने बोलगु ॥३॥ मनुज सुर शासन सांनिध्य कारकु, श्री अशोकनिधि विघ्न भय वारकु । शीतल स्वामीना ध्यानथी सुख लहे, धीर गुरु सीस ज्ञान विमल कवि श्म कहे ॥४॥ ॥अथ त्रीजनी स्तुति ॥ ॥ संखेसर पासजी पुजीये ॥ ए देशी ॥ ॥श्रेयांस जिणेसर शिव गया, ते त्रीज दीने निरमल थया॥ ऐशी धनु सोवन वन काय, भव भव ते साहिब जिनराय ॥१॥ विमल कुंथु धर्म सुविधि जिना,जस जन्म ज्ञान मनुज्ञान धना ॥वर्तमान कल्याणक खट थया, जिनजी दीन दिन करजो मया ॥२॥ त्रिण तत्व जिहां किण उपदिश्यां, ते प्रवचन वयणां चित्त वश्यां ।। त्रिण गुप्तिगुप्ता मुनिवरा, ते प्रवचन वांचे श्रुत धरा ॥३॥ इम सुर मानवी कर करा, जे समकित दृष्टि सुरवरा ॥ त्रिकरण शुध समकित तणी, नय लीला होजो अति घणी ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achana Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३७ ॥ अथ चोथनी स्तुति ॥ ॥ श्रावण सुद दिन पचाए ॥ ए देशी ॥ सर्वार्थ सिद्धथी चविए. मरुदेवी उयरे उपन्नतो। युगल धर्म श्रीऋषभजीए, चोथ तणो दिन धन्नतो ॥ १ ॥ मल्लि पास अभिनंदन ए, चविया वली पास नाण तो॥ विमल दीक्षा इम खट थया ए, संप्रति जिन कल्याण तो ॥२॥चार निक्षेपे स्थापना ए, चउ विह देव निकाय तो ॥ चनुमुख चनविध देशना ए, भाखे सूत्र समुदाय तो ॥३॥ गौमुख यद चक्केसरीए, शासननी रखवाल तो ॥ सुमति संयोग सुवासना ए, नय धरि नेह निहालतो ॥४॥ ॥ अथ पांचमनी स्तुति ॥ ॥ श्री शत्रुजय गिरि तीरथ सार ॥ ए देशी ॥ ॥ धर्म जिणंद परम पद पाया, सुव्रता नामे राणी जाया, सुरनर मनडे भाया ॥ पण चालीस धनुषनी काया, पंचमि दीन ते ध्याने ध्याया, तवमें नवनिधि पाया ॥१॥ नेमि सुविधिना जनम कहीजे, अजित अनंत संभव सहु लीजे, दीक्षा कुंथु ग्रहीजे ॥ For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४३८ चंद्र च्यवन संभवनाण सुणीजे, त्रिहु चोवीसी इम जाणीजे, सहु जिनवर प्रणमीजे ॥२॥ पंच प्रकारे आगम साखे, जिनवर चंद सुधा रस चाखे, भावजन हैयडे राखे ॥ पंचज्ञान तणो विधि दाखे, पंचमी गतिनो मारग भाखे, जेहथी सी दुख नासे ॥३॥ जिनभक्ति प्रज्ञप्ति देवी, धर्मनाथ जिनपद प्रणमेवि, किन्नर सुर संसेवि ॥ बोधिबीज शुभ दष्टि लहेवि, सदामति देवी नयविमल, दुश्मन विघ्न हरेवि ॥ ४ ॥ ॥ अथ छट्ठनी स्तुती ॥ ॥ शंखेसर पासजी पुजीये ॥ ए देशी ॥ ॥श्री नेमि जिणेसर लहे दीक्षा, छट्ठ दिवसे सुविधि चरण शिदा ॥ एककाजाल एक शशिकर गोरा, नित समरु जिम जलधर मोरा ॥१॥ पद्मप्रभु शीतल वीरजीना, श्रेयांस जिणंद लहे तिहां चवना ॥ विमल सुपासज्ञान जेम होइ, कल्याणक संप्रति जिन जोइ ॥२॥ जिहां जयणा खट विधकाय तणी, खट व्रत संप्रति मुनिराय तणी ॥ जे आगम माहे जाणीये, ते अनोपम चितमां आणीए ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे समकित दष्टि भावियां, संवेग सुधारस सेवीया॥ नय विमल कहे ते अनुसरो, अनुभव रस साथे प्रीतिधरो ॥४॥ । अथ सातमनी स्तुति ॥ ॥चंद्रप्रभु जिन ज्ञान पाम्या, वळी लह्या भव. पार ॥ महसेननप कुल कमल दिनकर, लखमणा मात मल्हार ॥ शशिअंक ससिसमगौर देहे, जगत जन सिणगार ॥ सप्तमी दीने तेह नमतां, हुवे नित्य जयकार ॥१॥ धर्म शांति अनंत जिनवर, विमलनाथ सुपास ॥ च्यवन जन्मने शिवपद, पामीया दोइ खास ॥ एम वर्तमान जिणंद केरा, थया सात कल्याण ॥ ते सातम दीन सात सुखनु, हेतु लहीए जाण ॥२॥ जिहां सात नयनुं रुप लहीये, सप्तभंगी नाव ॥ जे सात प्रकृतिना क्षय कर्याथी, लहे क्षायिक भाव ॥ ते जिनवर आगम सकल अनुभव, लहो लीलविलास ॥ जिम सात नरकनुं आयु छेदी, सातभय होवे नास ॥३॥ श्री चंद्रप्रभ जिनराय शासन, विजयदेव विशेष ॥ तसदेवी ज्वाला करे सांनिध, भविक जन For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ४४० सुविशेष ॥ दुख दुरित इति समंत सघले, विघन कोडी हरंत ॥ जिनराय ध्याने तनेतन नय लीना, ज्ञान विमल गुणवंत ॥ ४॥ ॥ अथ आठमनी स्तुति ॥ ॥ प्रह उठी बंदु ॥ ए देसी ॥ ॥अभिनंदन जिनवर परमानंद पद पामे ॥ वली तीम नेमिसर, जन्म लही शिव कामे ॥ तिम मोक्ष च्यवन बेहु, पास देव सुपास, आठमने दिवसे सुमति जन्म सुप्रकाश ॥ १॥ वली जन्मने दिक्षा, ऋषभ तणा जिहां होय ॥ सुव्रत जिन जन्म्या. संभव च्यवनुं जोय ॥ कळी जन्म अजितनो, इम इग्यार कल्याण ॥ संप्रति जिनवरना,आठमने दिन जाण॥२॥ जहां प्रवचन माता, आठम तणो विस्तार ॥ अडभंगीए जाणो, सवि जग जीव विचार ॥ ते आगम आदर, आणीने आराधो । आठमने दिवसे, आठ अक्षय सुख साधो ॥३॥शासन रखवाली, विद्यादेवी सोल ॥ समकितनी सानिध्य, करती छाकम छोल ॥ अनुभव रसलीला, आपे सुजश जगीस ॥ कवि धीरविमलनो, ज्ञान विमल कहे शास. ॥ ४॥ For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir :४४१ ॥ अथ नोमनी स्तुति ॥ ॥ सुव्रत सुविधि सुमति शिव पाम्या, अजित सुमति नमि संयम पाम्या ॥ कुंथु वासुपूज्य सुविधि चविया, नवमी दिन ते सुरवर नमिया ॥ १ ॥ शांति जिणंद थया जिहाज्ञानी, वर्तमान जिनवर शुभध्यानी ॥ दश कल्याणक नवमी दिवसे, सवि जिनवर प्रणमुं मन हरखे ॥ २ ॥ जिहां नव तत्व विचार कहीजे, नवविध ब्रह्म आचार लहीजे ॥ ते आगम सुणतां सुख लहीए, नवविध परिग्रह विरती कहीए ॥ ३॥ समकित दृष्टि सुरसंदोहा, आपे सुमति विलास सस मोहा ॥ श्री ज्ञानविमल कहे जिननामे, दिन दिन दोलत अधिकी पामे. ॥ ४॥ ॥ अथ दशमनी स्तुति ॥ ॥ कनक तिलक भाले ॥ ए देशी ॥ __ अरनमि जिणंदा, टालिया दुखदंदा ॥ प्रभुपास जिणंदा, जन्मे पूज्या महिंदा ॥ दशमी दीन अमंदा, नंदमा कंद कंदा॥ भविजन अरबंदा. शासने जे दिणंदा ॥१॥ अर जन्म सुहावे, वीरचारित्र पावे ॥ For Private And Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४४२ अनुभव रस लावे, केवलज्ञान थावे ॥ खट जिनवर कल्याण, संप्रति जे प्रमाण ॥ सवि जिनवर भाण, श्रीनिवासादि ठाण ॥ २॥ दशविध आचार, ज्ञान मां हे विचार ॥ दश सत्यप्रकार, पच्चखाणादि चार ॥ मुनिदशगणधार, भाखीया जिहाँ उदार ॥ ते प्रवचनसार, ज्ञानना जे आगार ॥३॥ दसदिशि सुरपाला, जे महा लोकपाला ॥सुरनर महिपाला, शुद्धदृष्टि कृपाला॥ ज्ञानविमल विशाला, ज्ञान लच्छीमयाला॥ जय मंगलमाला, पायनमे सुखाला ॥ ४ ॥ ॥ अथ अगीआरसनी स्तुति ॥ ॥ स्नातस्या प्रतिमस्य ॥ ए देशी ।। ॥ मल्लिदेवसु जन्मसंयम, महाज्ञानं लह्या जे दीन ॥ स एकादशी वासरः शुभकर कल्याणमालालयः ॥वैदेहेश्वरकुंभगूढजलधिप्रौल्हासने चंद्रमाः, माता यस्य प्रभावती भगवती कुंभध्वजो व्याजतः ॥ १॥ ज्ञानं श्री ऋषभाजितस्य, मतिप्रादुर्भव सन्निमे ॥ पार्श्वर चरणच मोक्षमगमत्, पद्मप्रभाख्य प्रभु ॥ इत्येतदशकं चयत्र दिवसे, कल्याणकाना शुभं ॥जातं संप्रति वर्त For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३ मानजिन, पादधुर्महामंगलम् ॥ २॥ सांगोपांग मनंतपर्यवगुणोपेतं सदोपासके ॥ एकादश्य प्रतिमाश्च यगदिता, श्रद्धावतां तीर्थपे, सिद्धांतनिधि भूपतिविजयते, विभ्रत्सदै एकादशा चारांगादिमयं वपुर्विलसितं, भक्त्या नुतं भावतः ॥ ३ ॥ वैरोया विदधाति मंगलनति, सद्दर्शनोनामिह ॥ श्री मत्मक्ति जिनेश शासनसूर, कुबेरनामा पुनः ॥ दिग्पालगृहयक्षदक्षनिवहा, सर्वेपि ये देवता॥ते सर्वे विदधातु सौख्यमतुलं,ज्ञानास्मनां सूरिणां ॥४॥ ॥ अथ बारसनी स्तुति ॥ ॥ श्रेयः श्रीयां मंगल केलिसद्म ॥ देशी ॥ ॥ जे द्वादशीने दिने ज्ञान पाम्या, अरसुव्रत स्वामि सुरेंद्र नाम्या ॥ मल्ली लहे सिद्धि संसार छोडी, विमल च्यवन वंदु बिहुं हाथ जोमी ॥ १ ॥ पद्म प्रभु शीतलचंद्र जाया, सुपास श्रेयांस चवे नेमिराया ॥ अभिनंदन शीतल चरण जान, इम तेर कल्याणक वर्तमान, त्रिकाल पूजिने करं प्रणाम ॥२॥ निक्षु तीजे प्रतिमा छे बार; ते द्वादशांगी रचना विचार For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ४४४ ॥ उपांग बारह अनुयोगद्वार, छ छेद पयन्नादस मूल. चार ॥ ३ ॥ श्री संघरक्षा करे देव भक्त्या , सुरासुर देवपद प्रशक्त्या ॥ सदा दिओ सुंदर बोध बीजं, सधर्म पाखे न किमे पतिजं ॥४॥ ॥ अथ तेरसनी स्तुति ॥ ॥ थी शत्रुजय गिरि तीरथ सार ॥ ए देसी ॥ ॥ पढम जिणेसर शिवपद पावे, तेरसे अनुभव ओपम आवे, सकल समिहित लावे ॥ शांतिनाथ वळी मोक्ष सिधावे, दर्शन ज्ञान अनंत सुखपावे, सिद्ध स्वरूपी थावे ॥ नाभिराय मरुदेवी मात, ऋषभदेवना जे विख्यात, कंचन कोमल गात ॥ विश्वसेन नृप अचिरा मात, सेवो शांति जगतना तात, जेहना शुभ अवदात ॥ १॥ पद्मचंद्र श्रेयांस जिनेशा, धर्म सुपास जे जग जन इशा, संयम ले शुभ लेशा ॥ वीर अनंतने शांति महीशा, जन्म थया एहना सुजगीसा, टाल्या सकल कलेसा ॥ वर्तमान कल्याणक हिसा, तेरस दीने सवि अमर महिसा, प्रणमे जेनी सदिशा ॥ सकल जिनेसर भवन दिनेसा, मदन मान For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha निर्मदन महिशा, ते सेवो वीसवावीसा ॥ २ ॥ तेर काठियाने जे गाळे, तेर क्रियाना स्थानक टाळे, ते आगम अजुवाले ॥ तेर संयोगीना गुण जाणे, ते पामीने झाएझाण, तेहने केवल नाण ॥ भक्तिमान बहुमान भणीजे, आशातना तेहनी टालीजे, जिनमुख तेर पद लीजे ॥ चार गुणी ते तेर कहीजे, बावन भेद विनय भणीजे, जिम संसार तरीजे ॥ ३ ॥ चकेसरी देवी गोमुख धरणी, समकित धारी सानिध्य करणी, ऋषभ चरित्र अनुसरणी || गोमुख सुरनो मनडो हरणी, निर्वाणी देवी जय करणी, गरुम यक्ष सुर धरणी ॥ सामिना गुण बोले वर्णी, दुश्मन दुर करण रवि भरणी ।। संप्रति सुविस्तरणी, कीर्ति कमला उज्वल करणी, रोग सोग संकट उद्धरणी, ज्ञान विमल दुःख हरणी ॥ ४॥ ॥ अथ चौदशनी स्तुति ॥ ॥ वासुपूज्य जिनेसर शिव लह्या, ते रक्त कमलने वाने कह्या ॥ वासुपूज्य नृपति सुमात जया, चंपा नगरीये जन्म थया ॥ चौदशी दिवसे जे सिद्ध For Private And Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ गया, जस लंछन रुपे महीष थया ॥ ते अजर अमर निकलंक भया, तस पाय नमी कृत्य कृत्य थया ॥१॥ श्रीशीतल संभव शांति वासुपूज्यजिना, अभिनंदन कुंथु अनंत जिना ॥ संजम लीए शुभ भावना, केइ पंचम नाण लहे धना ॥ कल्याणक आठ सोहामणा, नित नित तस लीजे भामणा ॥ सविगुण मणि रयणा रोहिणी, पुरवी सवि मननी कामना ।।२॥ तिहां चउ. दस भेद जीव तणा, जगभेद कह्या छे अति घणा ॥ गुणठाणां चउद तीहां भण्या, चउदस पूर्वनी वर्णना ॥ नवि कीजे शंका दषणा, अतिचार तणी तिहां धारणा ॥ प्रवचन रस कीजे वारणा, एह छे भवजल तारणा ॥ ३ ॥ शासन देवी समकित चंडा, दिए दु. गति दुर्जनने दंमा ॥ अकलंक कला धरी सम तुंडा, जस जिह्वा अमृतरस कुंमा । जसकर जपमाला कोहंडा, सुरनाम कुमार लेनदंडा ॥ जिम आगले अवर छे एरंडा ॥ ज्ञानविमल सदा सुख अखंडा ॥४॥ ॥ अथ पुनमनी स्तुति ॥ ॥श्री जिनपति संभव ल्ये संजम तिहां, श्री For Private And Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४४७ मुनिसुव्रतनमि च्यवनुं तिहां ॥ सकल निर्मलचंद्र तणी विभा, विशदपक्ष तणो शिर पूर्णीमा ॥१॥धमनाथ जिन केवल पामीश्रा, पद्मप्रन जिन नाण सधामिया, ॥ इम कल्याणक संप्रति जिन तणा, थया पुनिम दिवसे सोहामणा ॥ २ ॥ पन्नर योग तणे विरहे लह्या, पन्नर भेदे सिद्ध जिहां कह्या ।। पन्नर बंधन प्रमुख विचारणा, जिनवर आगम ते सुणी ए जना ॥ ३ ॥ सकल सिद्धि समिहित दायका, सुरवर जिन शासन नायका ॥ वधुकरो हल कीर्तिकला घणी, ज्ञान विमल जिननाम, तणो गुणी॥ ४ ॥ इति पुनमनी स्तुति. ॥ ॥ अथ अमावास्यानी स्तुति ॥ ॥ चोपाईनी ॥ ए देशी ॥ ॥ अमावास्यां तो थर उजली, वीरतणे निर्वाणे मिली ॥ दिवाली दिन तीहांथी होत, राय अढार करे उद्योत ॥ १ ॥ श्रीश्रेयांस नेमिलहे ज्ञान, वासुपूज्य ग्रहे संयम ध्यान ॥ संप्रति जिननां थयां कल्याण, अमावास्या दिवसे गुणखाण ॥२॥ काल For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ अनादि मिथ्यात्व निवास, पूरण संज्ञा कहीए तास ॥ आगम ज्ञान लह्यो जेणीवार, कृष्णपक्षी जीत्यो तेणीवार ॥ ३ ॥ मातंगयद सिद्धाइ देवी, सांनिध्यकारी कीजे स्वयमेवि ॥ कवि ज्ञानविमल कहे शुभचित, मंगल लीला करो नित नित ॥ ४॥ ॥अथ पन्नर तीथीनी थोयो । ॥ दीन सकल मनोहर ॥ ए देशी ॥ ॥सासयने असासय, चैत्यतणा बिहु भेद ॥ थापन स्वरुपे, रूपातित बेहु भेद ॥ बिहु पक्षे ध्यावो, जिम होये भव छेद ॥ अविचल सुखपामे, नासे सघला खेद ॥ १ ॥ उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, काल बे भेद प्रमाण ॥ त्रिजेने चोथे, आरे जीनवर भाण ॥ उकृष्टा काले, सत्तरिसय जिनराज ॥ तिम वीस जघन्यथी, वदे सारो काल ॥ २ ॥ बिहुँ भेद भाख्या, जिव सकल जगमाहे । एक कृष्णपक्षी एक, शुक्लपही पणमाहे ॥ वली द्रव्य कह्या छे. जीव अजीव विचार । ते आगम जाणो, निश्चयने व्यवहार ॥३॥ संजमधर नुनिवर, श्रावक जे गुणवंत । बिहु पक्षना For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४९ सानिध्य, कारक समकितवंत ॥ जे शासन सुरनर, विघ्न कोडी हरंत ॥ श्री ज्ञान विमलसरि, लीला लब्धि लहंत ॥४॥ इति पन्नरतिथीनी थोयो संपूर्ण ॥ ॥ अथ मौन अगिआरसनी थोय ॥ ॥ गौतम बोले ग्रंथ संभाळी, वर्धमान आगल रढीयाली, वाणी अतिहि रसाली ॥ मौन अगीआरस महिमा भाली, किणे कीधी ने कहो किणे पाली, प्रश्न करे टंकशालि ॥ कहोने स्वामी परव पंचालि, महिमा अधिक अधिक सुविसाली, कुण कहे कहो भ्रम टाली ॥ वीर कहे मागसर अजुआली, दोढसो कल्याणक निहाळी, अगीआरस कृष्णे पाली ॥१॥ नेमनाथने वारे जाणं, कानुडो त्रण खंगनो राणो, वासुदेव सपराणो ॥ परिग्रहने आरंभ भराणो, एकदिन आतिम किधो शाणो, जिन वंदन उजाणो ॥ नेमनाथने कहे हित आणो, वरसे वारु दिवस वखाणो, पाली थाउं हुं शिवराणो ॥ अतित अनागतने वर्तमान, नेउ जिननां हुआं कल्याण, अवर न एह समान ॥ २ ॥ आगम आराधो भवि प्राणी, जेहमां तीर्थकरनी For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४५० वाणी, गणधर देव कहाणी ॥ दोढसो कल्याणकनी खाणी, एक अगिआरसनो दिन जाणी, इम कहे के. वल नाणी ॥ पुन्य पापतणी जेह कहाणी, सांभळतां सुख लेख लखाणी, तेहनी स्वर्ग निसाणी ॥ विद्या पूर्वग्रंथे विरचाणी, अंग उपांग जे सुत्रे गुंथाणी, सु. णतां दिये शीवराणी ॥ ३ ॥ जिन शासनमा जे अ. धिकारी, देव देवी जे समकित धारी, सांनिध्य करो संभारी ॥ धर्म करे तस उपर प्यारी, निश्चल धर्म करे सुविचारी, तेछे परउपगारी ॥ वीड मंडण महावीर जुहारी, पाप पखालं जिनने जुहारी, लाभविजय हितकारी ॥ मातंग जक्ष सिधाइ सारी, ओलग सारे सुर अधिकारी, श्री संघनां विघन निवारी ॥ ४॥ इति मौन अगिआरसनी थोय. ॥ ॥ अथ सिद्धाचलनी थोय ॥ ॥ सकल मंगल लीला मुनि ध्यान, परनव घृ. तनुं दिधुं दान, भविजन एह प्रधान ॥ मरुदेवाए जनमज दीधो, इंद्र सेलडी आगल कीधो, वंस इकाग ते सीधो ॥ सुनंदा सुमंगला राणी, पूरव प्रीत For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जली पटराणी, परणावे इंद्र इंद्राणी ॥ सुख विलसे रस अमीरस गुजे, पूरवनवाणुं वार शेजृजे. प्रभु जइ पगले पूजे ॥१॥ आदि नहीं अंतर कोइ एहनो, केम वर्णवीजे सखी गुण एनो, मोटो महिमा तेनो । अनंता तीर्थकर इण गिरि आवे, विहरमान व्याख्यान सुणावे, दिलभरी दिल समजावे ॥ सकल तीर्थन एहीज ठाम, सर्वे धर्मनुं एहीज ध्यान, ए मुज आतमराम ॥ रे रे मूरख मनसुं मुजे, पूजीये देव घणा शत्रुजे, ज्ञाननी सुखडी गुजे ॥२॥ सोवन डुंगर टुंक रुपानी, अनोपम माणेक टुंक सोनानी, दीसे देरां दधानी ॥ एक टुंके मुनि अणसण करता, एक टुंके मुनिव्रत तप करता, एक टुंके उतरता ।। सुरजकुंड जलधिप लगावो, महीपालनो कोट गमावो, तेने ते समुद्र निपावो ॥ सवालाख शेजय महातम, पापतणी तिहां न रहे रातम, सुणतां पवित्र थाय आतम ॥ ३॥ रमणिक भुइरु गढ रढीयालो, नवखंड कुमर तीर्थ निहालो, भविजन पाप पखालो ॥ चोखाखाणने वाघण पोळ, चंदन तलावडी ओलखाजोर, कंचन भरोरे अंधोल ॥ मोद बारीनो For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४५२ जगजस मोटो, सिकसिला उपर जश् लोटो, समकीत सुखडी बोटो ॥ सोना गभारे सोवन जाली, झारो जिननी मूर्ति रसाली, चक्केसरी रखवाली. ॥ ४॥ इति श्री सीद्धाचलजीनी थोय संपुर्ण ॥ ॥ अथ आठमनी थोय. ।।। ॥ अट्ठम जिनचंद्रप्रभ नमीए, अट्ठम . महामद दुरे दमीए, दुर्गतिमाहे नव जीए ॥ महसेन नंद जिनगुण रमीए, अष्ट महाभय भाव विसमीये. दुख दोहग निगर्माए ॥ अष्ट मंगल जस आगलराजे, चंद्र लंछन जस चरणे छाजे, जग जस पम्हो वाजे ॥ अष्ट कर्म भड संकट जाजे, प्रतिहार्य आठ विराजे, अष्टमी दिन तप ताजे ॥ १॥ अष्टापद जिनवरनां वृंद, जेहने प्रणमे असुर सुरिंद, जस गुण गाये नरिंद ॥ वंछित पूर्ण सुरतरु कंद, भाव भक्ति बंदु जिनचंद, जिम पामु आणंद ॥ अतित अनागत ने वर्तमान, त्रण चोवीसी बहुतेर मान, तेहy धरीये ध्यान ॥ प्रह उठी नित्य कीजे गान, दिन दिन वाधे अति घणुं वान, अष्टमी दीन सुप्रधान ॥ २॥ सुखदाई For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ जिनवरनी वाणी, भाव सहित अति उलट आणी, ते नीसुणी शुल प्राणी ॥ मद मच्छर हरवे सपराणी, सरस सुकोमल सुधा समाणी, अभिनव गुण मणि खाणी॥ चौद पूर्वने अंग अगियार, दश पयन्ना उपांग बार, छ छेदे मुल सत्र चार ॥ नंदीने अनुयोग द्वार. ए सवि समयतणुं अधिकार, अठमी दिन सुविचार ॥३॥ चंद्रप्रभ जिन सेवक जक्ष, विजयनामे ते प्रत्यक्ष समकित धारी दक्ष ॥ चउविह संघ तणा जे लक्ष, तस कामित देवे सुवृदा, वारे विघ्न विपक्ष ॥ अष्टमहासिद्धि भोग अपार, अष्टदिशे कीरति विस्तार, सकल सुजन परिवार ॥ अशरण अबला दीन आधार, राज रत्नवाचक सुखकार, अष्टमी पोसह सार॥४॥ इति आठमनी थोय. ॥ पजुसणनी थोय.॥ ॥ पर्व पजुसण पुन्ये कीजे, सत्तरभेदी जिन पूजा रचीजे, वाजिंत्र नाद सणीजे ॥ परभावना श्रीफलनी कीजे, याचक जनने दानज दीजे, जीव अमारी करीजे ॥ मनुज जनम फल लाहो लीजे, चोथ छह अट्टइ For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ तप कीजे, स्वामीवच्छल कीजे॥इम अटाइमहोच्छव कीजे, कल्पसूत्र घर पधरावीजे, आदिनाथ पूजीजे ॥१॥ वमाकल्प दीने धुरी मंडाण, दश कल्प आचार परमाण, नागकेतु वखाण ॥ पछे कीजे सूत्र मंडाण, नमुथ्थुणं होय प्रथम वखाण, मेघकुमार अही ठाण ॥ दश अछेरानो अधिकार, इंद्र आदेशे गर्भापहार, देखे सुपन उदार ॥ चोथे सुपने बीजो सार, सुपनपाठक आव्या दरबार, इम त्रीजुं जयकार ॥२॥ चोथे वीर जनम वखाण, दिशि कुमरी सवि इंद्रने जाण, दिव्य पंच वखाण ॥ पारणे परिसह तपने नाण, गणधर वाद चोमासी परमाण, तिम पाम्या निरवाण ॥ ए छठे वखाणे कहीए, तेलाधर दिवसे ए लहीए, वीरचरित्र एम सुणीए ॥ पास नेमि जिन अंतर सात, आठमे ऋषभ थेरा अवदात, सुणतां होये सुखशात ॥३॥ संवच्छरी दिन सहु नरनारी, बारसें सुत्रने समाचारी, निसुणे अट्ठमधारी ॥ सुणीए गुरु पट्टावली सारी, चैत्र परवाडी अति मनोहारी, नावे देव जुहारी ॥ साहमी साहमणी खामणा कीजे, समता रसमांही For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४५५ झीलीजे, दान संवच्छरी दीजे ॥ इम चक्केसरी सानिध कीजे, ज्ञान विमलसूरी जग जाणीजे, सुजस महोदय कीजे. ॥ ४ ॥ इति श्री पर्युषणापर्व स्तुति समाप्त ॥ ॥ अथ श्री नवपद् ओळीनी थोय ॥ ___अंग देश चंपापुर वासी, मयणांसु श्रीपाल खासी, समकित सु मन वासी ॥ आदि जिणेसरनी उल्लासी, भाव पूजा कीधी मन आसी, भावधरी वीसवासी ॥ गलित कोड गयो तिणे नासी, सुविधिसु सिद्धचक्र उपासी, थयो स्वर्ग निवासी॥आसो चैत्रनी पूरण मासी, प्रेम पूजा भक्ति विकासी, आदि पुरुष अविनाशी ॥१॥ केसर चंदन मृगमद घोळी, हरखेसु भरी हेम कचोली, शुद्ध जले अघोली॥ नव आंबेलनी कीजे ओली, आसो शुद सातमथी खोली, पूजो श्री जिन टोली ॥ चिहुं गतिनी महा आपद चोली, दुरगतिना दुःख दूरे ढोली, कर्म निकाचित रोली ॥ क्रोध कषाय तणा मद लोली, जिम शिव रमणी भरम नोळी, पामो सुखनी ओळी॥२॥आसो सुदी सातम सुविचारी, चैत्री पण चित्तशुं निरधारी, नव For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ : आंबेलनी सारी ॥ ओली कीजे आळस वारी, पुनिम लगे सचित परिहारी, देहरे देव जुहारी॥ पडिकमणा बे कीजे धारी, सिद्धचक्र पूजो सुखकारी, श्री सिद्धांत मजारी ॥ श्री जिन भाषित पर उपकारी, नवपद जाप जपो नरनारी, जिम लहो मुक्तिनी बारी ॥३॥ श्याम भ्रमर सम वेणी काली, अति सुंदर सोहे सुकमाली, जाणो राज मराली ॥ जलहल चक्र धरे रुपाली, श्री. जिन शासननी रखवाली, चक्रेश्वरी में भाली ॥ जे ओली करे उजमाली, तेहनां विघन हरे सा बाली, सेवक जिन संभाली ॥ उदय रत्न कहे आसन वाळी, जे जिन नाम जपे जपमाली, ते घर नित्य दिवाली॥४॥ ॥ थंभण पार्थनाथनी स्तुति ॥ ॥ स्थंभण पुरवर पास जिणंदो, अश्वसेन कुल कमल दिणंदो, आमोली अभव कंदो॥ मोहराय शिर पाडे दंडो, तिहुअण जास प्रताप अखंडो, भविअण मन आणंदो । भव भय भीम भलि परे चूरे, मन वंछित सवि संपद पुरे, प्रभुकर मोरी सारो ॥ वरुणज कहीए पश्चीम स्वामी, जिणे आराध्यो तुं शीरनामी, For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७ वछर लक्ष ग्यारो ॥१॥ एसी सहस संबच्छर भूतल, सेव्यो स्वामी हीयडे निरमल, वासग विसह स्वामी ॥ पछे पूज्यो ते परमेश्वर, सातमास नव दिवस निरंतर, दशरथ नंदन रामो ।। केतो ए काल प्रथम हरी ध्यायो, द्वारिका नगरी पाछल आयो, पूज्यो देव मो. रायो ॥ द्वारिका दाह जल रहीओ, सागरदत्त शेठे संग्रहीओ, कांति नगर मोझारो ॥२॥ नागार्जुन जोगी ते लीयो, सेढी तट तेहनो रस सीधो, तुं वीण अवर न वीरो ॥ उवट नदीय वहे वरसाले, तुम उपर घणा वेबु वाले, गाय झरे सीर खीरो ॥ अभयदेव सूरी तिहां जाण्यो, भूय भीतरथी उपर आण्यो, ते तस दीधी देहो ॥ थंभण पुरवर प्रसादे बेठो, नयणानंदण जग सहु दीठो, निला वन जिम मेहो ॥३॥ गुजरधर जव जवणि धस कीय, खंभनगर तें तैयअलंकीय, पुहविरो प्रगट प्रमाणो ॥ आद तुमारी जग कुण जाणे, मतवीण माणस कासुंअ वखाणे, डंपीण सहज अयाणो ॥ कामधेनुं तिहां पत्तधरंगण, करयल चढीयो कर चिंतामण, फलीयो अमर वीसालो ॥ देव दयालु For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar जावठ नंजण, जे तुठे संपत पुर मंडण, श्री पार्श्वनाथ चोसालो ॥ ४॥ ॥ अथ नंदिश्वर स्तुति ।। ॥ सजयति सतामीशः शांतिर्यदजिनतामरः । प्रकट मुकुटोटंकी रत्नांकुरप्रकरोरुवत् ध्वज पृषदनु. च्छायः शंकेय दास्य लघूकृत स्तरुणाकिरणोपेतः को. पान् मृगांकगणोमरुणः ॥ १॥ शिवपथ कथां तथ्यातीर्थाधिपाः प्रथयंतु नः पृथुलदवथु द्राक्कुर्वतु श्लथांच भवव्यथां मणि घृणि मिषाद्येषा माज्जुः पतंति पदोरदो विमलमनसांचेतांसि श्रीजिनाः प्रजयंतुते ॥२॥ जिनपतिमतक्षोणिगाथ प्रकाशयनाथता मयि मयि शुचिः स्वर्गोपांगी सुवर्णमणी निधिः विदित चरितो. ऽस्तोके श्लोकः सदर्थकदर्थितः प्रतिजटगटः स्तुत्यिस्तुत्यानु शासन दर्शनः ॥ ३ ॥ गरुडसुकृतित्राणो दृतोवंशात्वयारुण, तरहशादृष्टः कालःप्रकंपदरा तुरः पद बलगता शक्तो युक्तं सदंड धरोधुना विनचित मिमधन्यं मन्यं जन सुखीनं कुरु॥४॥इति श्रीशांतिनाथस्तुतिः॥ For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९ ॥ अथ पार्श्वनाथ स्तुतिः ॥ ॥ कृतजलधरधाराधोरणीरुद्धदेहो जयति जयति कायोत्सर्ग काले सपार्श्वः ।किमु शमरसमग्रो नूनमाकंठमेतां जनयति जनशंकां कांतिकांतांगलक्ष्मीः||१||त्रिदशरचितहेमां भोजबद्धप्रचारा,विहरणभुवि येषां सुचयं. त्यहिपद्माः॥विमलकमलजालं निर्जत तेन चास्मान्महति शिरसि सोऽयंजैन वर्गः पुनातु ॥२॥ समवसरणभूमों यानि शम्यामरेंद्रादधति पुलकजालंचित्र वित्तस्वचिताः। उपशमरससारासारधारच्छटाभिः प्रकटितपुलका किं जैनगीः सापुनातु ॥३॥नमदमरपुरंध्रीभूरिभालाग्रजानन्मृगमदपद दंभात्पादपीठे दधौ या नतजनपठनावच्छेदि कर्माभ बध्वा विनयिनि मयि सा गीर्जाडयजालं च्छिनत्तु ॥ ४ ॥ इति पार्श्वनाथ स्तुतिः ॥ ॥ अथ महावीर स्तुतिः ॥ ॥मुद्रोन्निद्रयोगीन्द्र हृद्ध्यायमानं परिध्वस्तमानं सुरैगीयमानं लसन्मानवामानवामा न मानं, भजे वर्द्धमानं भजे वर्डमान॥१॥जिनाधीश लेखानताशेषलेखा, नतद्वेषदोषप्रदोषांशुलेखा ।। स्मृतायेन तं निःप्रतीपं For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतीत्य कलं कोमलं कोमलं कोप्यलं स्यात् ॥ २ ॥ महावीरवाणीगुणोवण्यों वर्णः सकणेन नाकर्णितो येन तूर्ण । सधूर्णन्महामाययां मन्यते सारसंसारसंसारसंसारसारं ॥३॥ सुधर्मा सुराणामधीशः शचीनां शुचिप्रेधनर्मादि सौख्यं विहाय। जिनाधीशा विधौ यः प्रसक्तो सुदेवः सदेवः सदेवः सदैव ॥ ४ ॥ इति श्री महावीर स्तुतिः ॥ ॥श्री नंदीश्वर स्तुतिः ॥ ॥ दीवे नंदीसरभ्मी चउदिशि चउरी अंजणा भानगिंदा, तेहितो वाविमझो दहिमुहगिरिणो सयवण्णातवेव दुण्हं दोएहं पितेसिं रुहम रइकला अंतराले यदोदो, बावण्णातत्थतित्थे सुरवर भवणा ते सुवंदे जिणिंदे ॥ १॥ मेरुणं पंचगंमी कुरु तरु सुतहा नागदं तेसुयारे, वेयढे सुचनंदिसरवरिचनगं सासया सुप्यसिद्धा । वख्खारेसु नगेसु कुलगिरि उवरि कुंमले माणुसाणं सेले सीमाकरेजे जिण भवणठिया ते जिणेसा जयंतु ॥२॥जेतीयाणा गयंमी भवजलहि तरी सन्निहंवट्टमाणे, काले तित्थंकरे हि अमिय रससम For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६१ भासियं अच्छओतं नव्वाणं मुख्खहेउं गणहररइयं सुत्तउबारसंगं॥ सुत्त अनाणधंतं हरउ मह सया सासयं सव्वलोए ॥३॥ सोहंम्मि दाइणो जे तियस गणजुआ पंचहा जोइसीया, बत्तीसं वितरिंदा सुर भवणठिया देवदेविहं जुत्ता पायालिंदाई वीसं चमरपभिणो धम्म कज्जु जयस्स, सव्वेसंघस्स विग्ध मणसि सुमिरिया सुपसन्ना हरंतु ॥ ४ ।। नंदीश्वरद्वीपमहीपरत्नालंकारसारा जिन चैत्यवाराः प्रमोद मेद विहृदेति. नूताः कुर्युः प्रसादं जिन दर्शनेन ॥ १ ॥ इति श्री नंदीश्वर स्तुति ॥ ॥ अथ श्रीशोभनमुनिकता चतुर्विशतिजिनस्तुतिः ।। ॥ अथ ऋषभजिनस्तुतिः ॥ ॥भव्याम्भोजविवोधनकतरणे विस्तारिकर्मावली रम्भासामज नाभिनन्दन महानष्टापदाभासुरैः। भक्तया वन्दितपादपद्मविदुषां संपादय प्रोज्ञितारम्भासाग जनाभिनन्दनमहा नष्टापदाभासुरैः ॥ १॥ त वः पान्तु जिनोत्तमाःक्षतरुजो नाचिक्षिपुर्यन्मनोदारा वित्रमरोचिताः सुमनसो मन्दारवा राजिताः। यत्पादौ For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ च सुरोज्झिताःसुरभयाञ्चक्रुःपतन्त्योऽम्बरादाराविन्रमरोचिताः सुमनसो मन्दारवाराजिता ॥ २ ॥ शान्ति वस्तनुतान्मिथोऽनुगमनाद्यन्नैगमाद्यैर्नयैरक्षोभं जनेहऽतुलां बितमदोदीर्णाङ्गजालं कृतम् । तत्पूज्यैर्जगतां जिनैः प्रवचनं हप्यत्कुवाद्यावलीरक्षोभञ्जनहेतुलास्टितमदो दीर्णाङ्गजालंकृतम् ॥ ३ ॥ शीतांशुविषि यत्र नित्यमदधद्रन्धाढ्यधूलीकणा, नालीकेसरलालसा समुदिताशुभ्रामरीभासितां। पायद्वः श्रुतदेवता निदधती तत्राब्जकान्ती क्रमौ, नालीकेसरलालसा समुदिता शुभ्रामरीजासिता ॥ ४ ॥ ॥ अथाजितनाथस्तुतिः ॥ ॥ तमजितमभिनौमि यो विराजद्वनघनमेरुपरा गमस्तकान्तम् । निजजननमहोत्सवेऽधितष्ठावनधनमेरु परागमस्तकान्तम् ॥१॥ स्तुत जिननिवह तमर्तितताध्वनदसुरामरवेण वस्तुवन्ति । यममरपतयः प्रगाय पार्श्वध्वनदसुरामरवेणव स्तुवन्ति ॥२॥ प्रवितर वसति त्रिलोकबन्धो गम नययोगततान्तिमे पदे हे। नूनमत विततापवर्गवीथीगमनययो गततान्ति मेऽपदेहे ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ सितशकुनिगताशु मानसीहात्तततिमिरंमहभा सुराजिताशम् । वितरतु दधती पविं क्षतोद्यत्तततिमिरं मद. भासुराजिता शम् ॥४॥ ॥ अथ संभवजिनस्तुतिः ॥ ॥ निर्भिन्नशत्रुभवभय शं भवकान्तारतार तार ममारम् । वितर त्रातजगत्रय शंभव कान्तारतारममारम् ॥ १॥ आश्रयतु तव प्रणतं विभयापरमारमारमानमदमरैः।। स्तुतरहित जिनकदम्बक विभयापरमार मारमानभमैरः ॥ २ ॥ जिनराज्या रचितं स्तादसमाननयानयानया यतमानम् । शिवशर्मणे मतं ढधढसमाननयानयानया यतमानम् ॥३॥शृङ्खलनृत्कनकनिभा यातामसमानमानमानवमहिताम् । श्रीवज्रशृङ्खलां कजयातामसमानमानमानवमहिताम् ॥४॥ ॥ अथाभिनन्दनजिनस्तुतिः ॥ त्वमशुभान्यजिनन्दन नन्दिता सुरवधूनयनः परमोदरः । स्मरकरीन्द्रविदारणकेसरि न्सुरवधूनयनः परमोदरः॥१॥ जिनवराः प्रयतध्वमितामया मम तमोहरणाय महारिणः। प्रदधतो भुवि विश्वजनीनता For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ममतमोहरणा यमहारिणः ॥ २॥ असमतां मृतिजात्यहिताय यो जिनवरागमनो भवमायतम् । प्रलघुतां नय निर्मथितोद्धता जिनवरागमनोभवमायतम् ॥३॥ विशिखशङखजुषानुपास्तस त्सुरभियाततनुन महारिणा ॥ परिगतां विशदामिह रोहिणी सुरभियाततर्नु महारिणा ॥४॥ ॥ अथ सुमतिजिन स्तुति. ॥ मदमदनरहित नरहित सुमते सुमतेन कनकतोरतारे।दम दमपालय पालय दरादरातिक्ष तिक्षपातपातः ॥१॥ विधुताराः विधुताराः सदा सदाना जिनाजिता. घाताघाः। तनुतापातनुतापा हितमा हितमानवविभवा विभवाः ॥ २॥ मतिमति जिनराजि नराहितेहिते रुचित्तरुचि तमोहे मोहे । मतमत नूनं नूनं स्मरा स्मरा धीरधीरसुमतः सुमतः॥३॥ नगदामानगदा मामहो महो राजि राजितरसातरसा । घनघनकाली काली बतावतादूनदूनसत्रासत्रा ॥ ४ ॥ ॥ अथ पद्मप्रभजिनस्तुति ॥ पादद्वयी दलितपद्ममृदुः प्रमोद मुन्मुद्रतामर For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदामलतान्तपात्री। पाद्मप्रभी प्रविदधातु सतां वितीर्ण मुन्मुद्रतामरसदा मलतान्तपात्री ॥१॥ सा मे मति वितनुताजिनपङ्क्तिरस्त मुद्रा गतामरसभासुरमध्यगाद्याम् । रत्नांशुभिर्विदधती गगनान्तराल मुद्रागतामरसमासुरमध्यगाद्याम् ॥ २॥ श्रान्तिच्छिदं जिनवरागमश्रयार्थ माराम मानम लसन्तमसंगमानाम् । धामाग्रिमं भवसरित्पतिसेतुमस्त माराममानमलसंतमसंगमानाम् ॥३॥ गान्धारि वज्रमुसले जयतः समीर पाता. लसत्कुवलयावलिनीलभे ते । र्कीतीः करप्रणयिनी तव ये निरुद्ध पातालसत्कुवलया वलिनी लभते ॥४॥ ॥ अथ सुपार्थजिनस्तुतिः ॥ कृतनति कृतवान्यो जन्तुजातं निरस्त, स्मरपरमदमायामानवाधायशस्तम्। सुचिरमविचलत्वं चित्तवृत्तेः सुपार्श्व स्मर पस्मदमाया मानवाधाय शस्तम् ॥ १ ॥ व्रजतु जिनततिःसा गोचरं चित्तवृत्तेः सदमरसहिताया वोऽधिका मानवानाम् । पदमुपरि दधाना वारिजाना व्यहार्षी त्सदमरसहिता या बोधिकामा नवानाम् ॥२॥ दिशापशमसौख्यं संयतानां सदैवा रु जिनमतमुदारं For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar काममायामहारि । जननमरणरीणान्वासयन्सिद्धवासे ऽरुजि नमतमुदारं काममायामहारि ॥ ३ ॥ दधति रविसपत्नं रत्नमाभास्तभाखन्नवधनतरवरिं वारणारावरीणाम् । गतवति विकरत्याली महामानसीष्टा नव धनतरवारिं वारणारावरीणाम् ॥ ४ ॥ ॥ अथ चन्द्रप्रभजिनस्तुति ॥ तुभ्यं चन्द्रप्रभ जिन नमस्तामसोज्जृम्भितानां हाने कान्तानलसम दयावन्दितायासमान। विद्वत्पतया प्रकटितपृथुस्पष्टदृष्टान्तहेतूहानेकान्तानलसमदया वन्दितायासमान ॥१॥जीयाद्राजिर्जनितजननज्यानिहानिर्जिनानां सत्यागारं जयदभितस्कृसारविन्दावता. रम् । भव्योद्भत्या भुवि कृतवती या वहद्धर्मचक्र सत्यागा रञ्जयददमितरुक्सा रवि दावतारम् ॥ २॥ सिद्धान्तः स्तादहितहतयेऽख्यापयद्यं जिनेन्द्रः सदाजीवः स कविधिषणापादने कोपमानः । दक्षः साक्षा. च्छ्रवणचुलकैर्य च मोदाद्विहायः सद्राजीवः सकविधिषणापादनेकोपमानः ॥ ३॥ वज्र कुश्यङ्कुलिशशत्वं For Private And Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ विधत्स्व प्रयत्नं स्वायत्यागे तनुमदवने हेमतारातिमत्ते । अध्यारूढे शशधरकर श्वेतभासि द्विपेन्द्रे स्वायत्यागेऽतनुमदवने हे ऽमतारातिमत्ते ॥ ४ ॥ ॥ अथ सुविधिजिनस्तुति॥ ॥तवाभिवृद्धिं सुविधिविधेयात्स भासुरालीनतपा दयावान यो योगिपङ्क्तया प्रणतो नमः सत्सभासुराली नतपादयावन् ॥१॥ या जन्तुजाताय हितानि राजी साराजिनानामलपद्ममालमादिश्यान्मुदं पादयुगं दधाना साराजिनानामलपद्ममालम्॥२॥ जिनेन्द्र भृङ्गैः प्रसभंः गभीराशु भारती शस्यतमस्तवेन । निर्नाशयन्ती मम शर्म दिश्यात् शुभारतीशस्य तमस्तवेन ॥३॥ दिश्यात्तवाशु ज्वलनायुधाल्पमध्या सिताकं प्रवरालकस्य । अस्तेन्दुरास्यस्य रुचोरुपृष्ठमध्यासिताकम्प्रवरालकस्य ॥४॥ ॥अथ शीतलजिनस्तुतिः ॥ जयति शीतलतीर्थकृतः सदा चलनतामरस सदलं धनम् ।नवकमम्बुरुहां पथि संस्पृशञ्चलनतामरसंसदलंघनम् ॥ १॥ स्मरजिनान्परिनुन्नजरारजोजन For Private And Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नतानवतोद यमानतः । परमनिर्वृतिशर्मकृतो यतो जन नतानवतोऽदयमानतः ॥ २॥ जयति कल्पितकल्पतरूपमं मतमसारतरागमदारिणा । प्रथितमत्र जिनेन मनीषिणामतमसा रतरागमदारिणा ॥ ३ ॥ घनरुचिर्जयताद्भुवि मानवी गुरुतरा विहतामरसंगता ।कृतकरास्त्रवरे फलपत्रभागुरुत्तरा विहतामरसं गता। ॥ अथ श्रेयांसजिनस्तुतिः॥ कुसुमधनुषा यस्मादन्यं न मोहवशं व्यधुः कमलसदृशां गीतारावा बलादयि तापितम् । प्रणमततमां द्राक्श्रेयांसं न चाहृत यन्मनः कमलसदृशाङ्गी तारा वाबलदयितापि तम् ॥ १॥ जिनवरततिजींवालीनामकारणवत्सलासमदमहितामारादिष्टा समानवराजया। नमदमृतभुक्पतया नुता तनोतु मतिं ममासमदमहितामारादिष्टा समानवराजया ॥ २ ॥ भवजलनिधिनाम्यजन्तुबजायतपोत हे तनुमतिमतां सन्नाशानां सदा नरसंपदम् । समभिलषतामहन्नाथागमानतभूपति तनुमति मतां सन्नाशानां सदानरसं पदम् ॥३॥ वृतपविफलाक्षालीघण्टैः करैः कृतबोधित प्रज For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यतिमहा कालीमाधिपङ्कजराजिभिः । निजतनुलतामध्यसीनां दधत्यपरिक्षतां प्रजयति महाकाली माधिपं कजराजिभिः ॥ ४॥ ॥ अथ वासुपूज्यजिनस्तुतिः ॥ । ॥ पूज्यश्रीवासुपूज्यावृजिन जिनपते नूतनादित्यकान्तेऽमायासंसारवासावन वर तरसाली नवालानबाहो । आनभ्रा त्रायतां श्रीप्रभवभयाद्विभ्रतीभक्तिभाजामायासंसारवासावनवरतरसालीनवालानबाहो ॥ ॥ १ ॥ पुतो यत्पादपांशुः शिरसि सुरततेराचरच्चूर्णशोभा या तापत्रासमाना प्रतिमदमवतीहार ताराजयन्ती । कीर्ते कान्त्याततिः साप्रविकिरतुतरां जैनराजीरजस्ते।यातापत्रासमानाप्रतिमदमवती हारताराजयन्ती ॥ २ ॥ नित्यं हेतूपपत्तिप्रतिहतकुमतप्रोद्धतध्वान्तबन्धापापायासद्यमानामदन तव सुधासारइद्धा हितानि ॥ वाणी निर्वाणमार्गप्रणयिपरिगता तीर्थनाथक्रियान्म।पापायासाद्यमानामदनत वसुधासार हृद्याहितानि ॥ ३ ॥ रक्षः क्षुद्रग्रहादिप्रतिहतिशमनी वा हितश्वेतभास्वत्सन्नालीकासदाप्तापरिकरमुदितासा For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० दमाला भवन्तम् ॥ शुभ्रा श्रीशान्तिदेवी जगत्ति जनयतात् कुण्डिका भाति यस्याः सन्नालीका सदाप्ता परिकरमुदिता सा दमाला भवन्तम् ॥ ४ ॥ अथ विमलनिनस्तुतिः ॥ अपापदमलं धनं शमितमानमानो हितं नतामरसनासुरं विमलमालयामोदितम् । अपापदमलंघनं शमितमानमामोहितं न तामरसभासुरं विमलमालयामोदितम् ॥ १ ॥ सदानवसुराजिता असमरा जिना भीरदाः क्रियासु रुचितासुं ते सकलभा रतीरा यताः । सदानवसुराजिता अमराजिनाभीरदा क्रियासु रुचितासु ते सकलभारतीरा यताः ॥ २ ॥ सदा यतिगुरोरहो नमत मानबैराञ्चितं मतं वरदमेनसा रहितमायताभावतः । सदायति गुरोरहा न मतमानबरं चितं मतं वरदमेन सारहितमायता भावतः ॥ ३ ॥ प्रभाजि तनुतामलं परमचापला रोहिणी सुधावसुरभीमना मयि सभाक्षमालेहितम् । प्रभाजितनुतामलं परमचापलारोहिणी सुधावसुरभीमनामयिसना क्षमाले हितम् ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar अथ अनन्तजिनस्तुतिः ॥ सकलधौतसहासमेरवस्तव दिशन्वभिषेकजलप्लवाः । मतमनन्तजिनः स्नपितोवसत्सकलधौतसहासनमेरवः ॥ १॥ मम रतामरसेवित ते क्षणप्रद निहन्तु जिनेन्द्रकदम्बक । वरद पादयुगं गतमज्ञताममरतामरसे विततेक्षण ॥ २ ॥ परमतापदमानसजन्मनः प्रियपदं भवतो भवतोऽवतात् । जिनपतेमेतमस्तजगत्रयीपरमतापदमानसजन्मनः ॥ ३ ॥ रसितमुञ्चतुरङ्गमनायकं, दिशतु काञ्चनकान्तिरितच्युर्ता । घृतधनुः फलकासिशरा करै रसितमुच्चतुरं गमनाय कम् ॥४॥ __ अय श्रीधर्मजिनस्तुतिः नमः श्रीधर्म निष्कौदयाय महितायते । मामरेन्द्रनागेन्द्रर्दयायमहिताय ते ॥ १॥ जीयाज्जिनौधो ध्वान्तान्तं ततान लसमानया । भामण्डलत्विषायः सततानलसमानया ॥ २॥ भारति द्राग्जिनेन्द्राणां नवनौरक्षतारिके। संसाराम्भोनिधावस्मानवनौ रक्ष तारिके ॥ ३ ॥ केकिस्था वः क्रियाच्छक्तिकरा For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाभानयाचिता । पज्ञप्तितनाम्भोजकरालाभा नयाचिता ॥४॥ अथ शान्तिनाजिनस्तुतिः । राजन्त्या नवपद्मरागरुचिरैः पादैर्जिताऽष्टापदाद्रेकोपद्रुत जातरूपविभया तन्वार्य धीर क्षमामाविभ्रत्यामरसेव्यया जिनपते श्रीशान्तिनाथास्मरोद्रेकोपद्रुत जातरूप विभयातन्वार्यधी रक्ष माम् ॥ १॥ ते जीयासुरविद्विषो जिनवृषा मालां दघाना रजोराज्या मेदुरपारिजातसुमनः संतानकान्ता चिताः ॥ की, कुन्दसमत्विषेषदपि ये न प्राप्तलोकत्रयीराज्या मेदुरपारिजातसुमनः सतानकान्ताश्चिताः ॥२॥ जैनेन्द्रं मतमातनोतु सततं सम्यग्दशां सद्गुणालीलानं गमहारि भिन्नमदंन तापापहृद्यामरम् । दुर्निर्मेद निरन्तरान्तरतमोनिाशि पर्युल्लसखीभृङ्गमहारिभिन्नमदन्तापापहृद्यमरम् ॥३॥ दण्डच्छत्रकमण्डलूनि कलयन्स ब्रह्मशान्तिःक्रियात्सत्यज्यानिशमीक्षणेनशमिनोमुक्ताक्षमालिहितः । तप्ताष्टापदपिण्डपिङ्गलरुचिर्योऽधारमन्मूढतां संत्यज्यानिशमीक्षणेन शमिनो मुक्ताक्षमालीहितम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७३ ॥ अथ कुन्थुनाथजिनस्तुतिः ।। भवतु मम मनः श्रीकुन्थुनाथाय तस्मायमितशमितमोहायामितापापहृद्यः सकलभरतभर्ताभूजिनोऽप्यक्षपाशायमितशमित मोहायामितापायहृद्यः ॥१॥ सकलजिनपतिभ्यः। पावनेम्यो नमः सन्नयनरवरदेभ्यः सारवादस्तुतेभ्यः । समधिगतनुतिभ्यो देववृन्दाद्गरीयोनयन रवरदेभ्यः सारवादस्तु तेभ्यः ॥२॥ स्मरत विगतमुदं जैनचन्द्रं चकासत्कविपदगमभङ्ग हेतुदन्तं कृतान्तम् ॥ ३ ॥ प्रचलदचिररोचिश्चारुगात्रे समुद्यत्सदसिफलकरामेऽ भीमहासेऽरिभीते । सपदि पुरुषदत्ते ते भवन्तु प्रसादाः सदसि फलफरा मेऽभीगहासेरिभीते ॥४॥ ____ अथ श्रीअरनाथजिनस्तुतिः। ___व्यमुचञ्चक्रवर्तिलक्ष्मीमिह तणमिव यः क्षणेन तं सन्नमदमरमानसंसारमनेकपराजितामरम् । द्रुतकलधौतकान्तमानमतानन्दितभूरिभक्तिभाक्संदनमरमा नसंसारमनेकपराजितामरम् ॥ १॥ स्तौति समन्ततः स्म समवसण भूमौ यं सुरापलिः सकलकलाकलाप For Private And Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलितापमदारुणकरमपापदम् । तं जिनराजविसरम्जासितजन्मजरं नमाम्यहं सकलकला कलापकलितापमदारुणकरमपापधम् ॥२॥ भीममहाभवाब्धिभवभीतिविभेदि परास्तविस्फुरत्परमतमोहमानमतनूनमलं घनमघवतेऽहितम् । जिनपतिमतमपारमा मरनिर्वतिशर्मकारणं परमतमोहमानमतनुनमलंघनमघवते हितम् ॥३॥ यात्र विचित्रवर्णविनतात्मजपृष्ठमधिष्ठिता हुतात्समतनुभागविकृतधीरसमदवैरिव धामहारिभिः । तडिदिव भाति सांध्यधनमूर्धनि चक्रधरास्तुसामुदेऽ समतनुभागवि कृतधीरसमदवैरिवधा महारिभिः ॥४॥ अथ मल्लिनाथजिनस्तुतिः।। नुदंस्तनुं प्रवितर मल्लिनाथ मे प्रियङ्गरोचिररुचिरोचितां वरम् । विडम्बयन्वररुचिमण्डलोज्ज्वलः । प्रिये गुरोऽचिररुचिरोचिताम्बरम् ॥ १ ॥ जवाद्गतं जगदवतो वपुर्व्यथाकदम्बकैरवशतपत्रसंपदम् । जिनोत्तमान्स्तुत दधतः स्त्रजं. स्फुरत्कदम्बकैरवशतपत्रसंपदम् ॥ २॥ स सपदं दिशतु जिनोत्तमागमः, शमावहन्नतनुमोहरोऽदिते । स चित्तभूः क्षत इह येन For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar यस्तपः-, शमा वहन्नतनुतमोहरोदिते ॥ ३॥ द्विपं गतो हृदि रमतां दमश्रिया, प्रभाति मे चकितहरिद्विपं नगे। वटाह्वये कूतवरसतिश्च यक्षराटू, प्रभाति मेचकितहरिद्विपन्नगे ॥४॥ ॥ अथ मुनिसुव्रतजिनस्तुतिः ॥ ___॥ जिनमुनिसुव्रतः समवताजनतावनतः, समुदितमानवा धनमलोभमतो भवतः । अवनिविकीर्णमादिषत यस्य निरस्तमनः समुदितमानबाधनमलो भवतो भवतः ॥१॥ प्रणमततं जिनव्रजमपारविसारिरजो, दलकमलानना महिमधाम भयासमरुक ॥ यमतितरां सुरेन्द्रवरयोषिदिला-मिलनोदलकमला ननाम हिमधामभया समरुक् ॥ २ ॥ त्वमवनताजिनोत्तमकृतान्त भवाद्विदुषोऽव सदनानुमासंगमन याततमोदयितः । शिवसुखसाधकं खभिदधत्सुधियां चरणं, वसदनु मानसं गमनयातत मोदयितः ॥३॥ अधिगतगोधिका कनकरुक्तव गौर्युचिताङ्कमलकराजिमतामरसभास्यतुलोपकृतम् । मृगमदपत्रभङ्ग तिलकैर्वदनं दधती, कमलकरा जितामरसभास्यतु लोपकृतम् ॥ ४॥ For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ ॥ अथ नमिनाथजिनस्तुतिः ॥ ॥ स्फुरद्विद्युत्कान्ते प्रविकिर वितन्वन्ति सततं ममायासं चारो दितमद नमेऽघानि लपितः । नमद्भव्यश्रेणीभवभयभिदां हृद्यवचसा-ममायासंचारोदितमदनमेघानिल पितः ॥१॥ नखांशुश्रेणीभिः कपिशितनमन्नाकिमुकुटः, सदा नोदी नानामयमलमदारेरित तमः । प्रचक्रे विश्वं यः स जयति जिनाघीशनिवहः, सदा नो दीनानामयमलमदारोरततमः॥२॥ जलव्यालव्याघ्रज्वलनगजरुग्वन्धनयुधो, गुरुर्खाहोऽपातापदधनगरीयानसुमतः । कृतान्तस्त्रासीष्ट स्फुटविकटहेतुप्रमितिभा-गुरुर्वाहो पाता पदघनगरीयानसुमतः ॥३॥ विपक्षव्यूहं वो दलयतु गदाक्षावलिधरासमा नालीकालीविशदचलना नालिकवरम् । समध्यासीनाम्भोभृतघननिमाम्भोधितनया - समानाली कालीविशदचलनानालिकवरम् ॥ ४ ॥ ॥ अथ नेमिनाथजिनस्तुति ॥ ॥ चिक्षेपोर्जितराजकं रणमुखे यो लक्षसंख्यं क्षणाशदक्षामं जन भासमानमहसंराजीमतीतापदम् । For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं नेमि नम नम्रनिर्वृतिकरं चक्रे यदुनां च यो, दक्षामंडानभासमानमहसं राजीमतीतापदम् ॥१॥ प्राब्राजीजितराजका रज व ज्यायोऽपि राज्यं जवाया संसारमहोदधावपिहिता शास्त्रीविहायोदितम् । यस्याः सर्वत एव सा हरतु नो राजी जिनानां भवायासं सारमहोदधावपिहिता शास्त्रीविहायोदितम् ॥ ॥२॥ कुर्वाणाणुपदार्थदर्शनवशाद्भास्वत्प्रभायात्रपामानत्या जनकृत्तमोहरत मे शस्तादरिद्रोहिका । अक्षोभ्या तव भारती जिनपते प्रोन्मादिनांवादिनां मानत्याजनकृत्तमोहरतमे शस्तादरिद्रोहिका ॥३॥ हस्तालम्बितचूतबुतकायस्याजनोऽभ्यागमम्बिलतिद्विश्वासे वितता म्रपादपरतावाचा रिपुत्रासकृत् । सा भूतिं वितनोतु नोऽर्जुनरुचिः सिंहेऽधिरूढोल्लसद्विश्वासे वितताम्रपादपरताम्बा चारिपुत्रासकृत् ॥ ४ ॥ ॥ अथ पार्श्वनाथ जिनस्तुतिः ॥ ॥ मालामालानबाहुर्दधददधदरं यामुदारा मुदाराल्लीनालीनाभिहालीमधुरमधूरसांसू चितोमाचितो मा। पातात्पातास पाश्वोरुचिररुचिरदोदेवराजीवराजी, For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रापत्रा यदीया तनुरतनुरवो नन्दकोनोदको नो॥ ॥१॥ राजी राजीववका तरलतरलसत्केतुरङ्गत्तुरङ्गव्यालव्यालग्नयोधाचितरचितरणेभीतिहयातिहृद्या । सारा साराजिनानामलममलमेतबोंधिका माधिकामा, दव्या दव्याधिकालाननजननजरात्रासमानासमाना ॥२॥ सद्यो सद्योगभिदागमलगमलयाजैनराजीनराजी नूता नूतार्थधात्रीह ततहततमः पातकापातकामा । शास्त्री शास्त्री नराणां हृदयहृदयशोरोधिकाबाधिका वादेया, देयान्मुदं ते मनुजमनुजरां त्याजयन्ती जयन्ती ॥३॥ याता या तारतेजाः सदसि सदसिभृत्कालकान्ताल. कान्ता, पारिं पारिन्द्रराजं सुरवसुरवधूजितारं जितारम । सात्रासात्रायतांत्वामविषमविभृद्भषणाभीषणा, भीही नाहीनान्यपत्री कुवलयवलयश्यामदेहामदेहा ॥ ४ ॥ ॥ अथ महावीरजिनस्तुतिः ॥ नमदमराशरोरुहस्त्रस्तसामोद निर्निद्रमन्दारमा लारजोरञ्जितांई धरित्रीकृतावन वरतम संगमोदारतारोदितानङ्गनार्यावलीलापदेहेक्षितामोहिताक्षोभवान् । मम वितरतु वीर निर्वाणशर्माणि जातावतारो धरा For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४७९ धोशसिझार्थधानि, क्षमालंकृतावनवरतमसङ्गमोदारता रोदितानङ्गनार्याव लीलापदे हे क्षितामो हिताक्षोभवान् ॥ १॥ समवसरणमंत्र यस्याः स्फुरत्केतुचक्रानकानेकपनेन्दुरुक्चामरोत्सर्पिसालत्रयी सदवनमदशोकपृथ्वीक्षणप्रायशोभा-तपत्रप्रभागुवराराट परेताहितारोचितम् । प्रवितरतु समीहितं सार्हतां संहतिर्भक्तिभाजां भवाम्भोधिसभ्रान्तभव्यावलीसेविता सदवनमदशोकपृथ्वीक्षणप्रा यशोभातपत्रप्रनागुवराराट् पेरताहितारोचितम् ॥२॥ परमततिमिरोग्रभानुप्रभाभूरिभडैर्गभीराभृशं विश्ववयें निकाय्ये वितीर्यात्तरामहति मतिमते हि ते शस्यमानस्य वासं सदा तन्वतीतापदानन्दधानस्य सामानिनः । जननमृतितरङ्गनिष्पार संसारनीराकरान्तर्निमज्जजनोत्तारनौ रतीतीर्थकृत्महति मतिमतेहितेशस्य मानस्य वा संसदातन्वती तापदानं दधानस्य सा मान नः॥ ३ ॥ सरभसनतनाकिनारीजनोरोजपीठी लूठत्तारहारस्फुरद्रश्मिसारक्रमाम्भोत्रहे परमवसुतराङ्गजा रावसन्नाशिताराति भाराजिते भासिनी हारताराबलक्षेमदा । क्षणरुचिरु For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० चिरोरुचञ्चरसटासंकटोत्कृष्टकण्ठोद्भटे संस्थिते भव्यलोकं त्वमम्बाम्बिके परमव सुतरां गजारावसन्ना शितारातिभा राजिते भासिनी हारताराबलक्षेऽमदा ॥४॥ इति चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः सम्पुर्णाः ॥ श्री ऋषभदेवजीनी स्तुति ॥ ॥प्रह उठी वंदु, ऋषभदेव गुणवंत ॥ प्रभु बेठा सोहीये, समवसरण भगवंत ॥त्रण छत्र विराजे, चामर ढाले इंद्र ॥ जिनना गुण गावे, सुरनर नारीना बंद ॥१॥ बार परखदा बेसे, इंड इंशाणी राय ॥ नव कमल रचे सुर, जिहां ठविया प्रभु पाय ॥ देव दुदभी वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुँत ॥एवा जिन चोवीसे, पूजो भवि एक चित्त ॥२॥ जिनजोजन भूमी, वाणीनो विस्तार ॥ प्रभु अरथ प्रकाशे, रचना गणधर सार ॥ सो आगम सुणतां, छेदीजे गती चार ॥ जिन वचन वखाणी, लहीये भवनो पार ॥ ३ ॥ जक्ष गोमुख गीरवो, जिननी भगती करेव ॥ तिहां देवी चकेसरी, विघन कोड हरे व ॥ श्री तपगच्छ नायक, For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ विजयसेन सुरिराय ॥ तस केरो श्रावक, ऋषभदास गुण गाय ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ बीजो थोय जोडो॥ ॥ त्र्याशीलाख पुरव घरवासें, वसीया परिकर युक्ता जी ॥ जनम थकी पण देवतरु फल, क्षीरोदधि जल भोक्ता जी ॥ मई सुअ ओहि नाणे संयुत्त, नयण वयण कज चंदा जी ॥ चार सहस\ दीक्षा शिक्षा, स्वामी, ऋषभ जिणंदा जी ॥ २॥ मनपर्यव तव नाण उपन्यु, संयत लिंग सहावा जी ॥ अढिय द्वीपमां सन्नी पंचेंद्रिय, जाणे मनोगत भावा जी ॥ द्रव्य अनंता सूक्ष्म तीर्छा, अढारशे खित्त गया जी॥ पलिये असंखम भाग त्रिकालिक, द्रव्य असंख्य परजाया जी ॥२॥ ऋषभ जिणेसर केवल पामी, रयण सिंहासण ठाया जी॥अनभिलप्प अभिलप्प अनंता,भाग अनंत उच्चराया जी ॥ तास अनंतमे भागे धारी, जाग अनंते सूत्र जी ॥ गणधर रचियां आगम पुजी, करीये जनम पवित्र जी ॥ ३ ॥ गोमुख जक्ष चक्केसरी देवी, समकित शुद्ध सोहावे जी ॥ आदि देवनी सेव For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ करती, शासन शोभ चढावेजी ॥ श्रद्धा संयुत जे व्रतधारी, विघन तास निवारे जी ॥ श्री शुभ वीरविजय प्रभु भगते, समरे नित्य सवारे जी॥४॥ इति॥ ॥ श्री अजितनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ विश्वनायक लायक, जितशत्रु विजयानंद ॥ पयजग नित पणमे, देव अने दोविंद ॥ भाव लहिरी गहिरं। सव, मन धरीये अमंद ॥ श्री सूरत सहिरे, वंदो अजित जिणंद ॥ १ ॥ आठ प्रातोहारज, अतिशय वलि चौतीस ॥ दिल रंजण देसन, तेहना गुण पेंतीस ॥अगणित रिद्ध धारी, आचारीमा ईस ॥ एह गुणना धारक, वांदु जिन चोवीश ॥ २ ॥ शुद्ध अरथ अनोपम, जिन नाषित सिद्धांत ॥ स्याद्वाद नयादिक, हेतु युक्त नवि भ्रांत ॥ पाप करदम पाणी, सदगतिनी सहिनाणी ॥ सुणिये नित भविका, आगम केरी वाणी ॥ ३ ॥ सासणनी साची, देवी सानिध्य कारी ॥ दुःख कष्ट निवारण, सेविजे सुखकारी ॥ साचे मन समरे, ते सुख लाभ अपारी ॥ जिनलाभ पयंपे, होज्यो जय जयकारी ॥ ४ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८३ ॥ श्री शीतलनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ सुख समकित दायक, कामित सुरतरु कंद ॥ दृढरथ नृप राणी, नंदा केरो नंद ।। भद्दलपुर स्वामी, फेमे भवना फंद ॥ चित्त चोखे नमिये, श्री शीतल जिनचंद ॥१॥ अतित अनागत, हुआ होस्ये अनंत ॥ संप्रति काले जे, क्षेत्रविदेह विचरंत || त्रिहं भवने ठयणा, सासय असासय संत ॥ ते सघला त्रिकरण, प्रणमुं श्री अरिहंत ॥ २॥ कालिक उक्ता. लिक, अंग अनंग पविट । नय भंग निक्षेपा, स्यादवाद मित सिठ ॥ भविजन उपगारी, नारी जिन उपदेश ॥ श्रुत श्रवणे सुणतां, नाले कोडि कलेस ॥ ॥३॥ ब्रह्म जक्ष अशोका, शासन सुरि सुविचार ॥ संघ सानिध कारी, निरमल समकित धार ॥ चिंता दुःख चूरे, पुरे मनह जगीस ॥ ध्यान तेहनो धरीये, कहें जिन लाभ सूरीस ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥श्री शांतिनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ शांतिजिनेसर समरिये ॥ ए देशी ॥ ॥ शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे ॥ For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ सुमतिने घरे पारणं, भवपार उतारे ॥ विचरंता अवनी तले, तप उग्रविहारे ॥ ज्ञान ध्यान एक तानथी, तिर्यचने तारे ॥ १ ॥ पास वीर वासुपुज्यने, नेम मल्ली कुमारी ॥ राज्य विहणा ए थया, आपे व्रतधारी ॥ शांति नाथ प्रमुखा सवि, लही राज्य निवारी ॥ मल्ली नेम परण्या नहीं, बीजा घरबारी ॥ ॥२॥ कनक कमल पगलां ठवे, जग शांति करीजे ॥ रयण सिंहासने बेसीने, भली देशना दीजे ॥ योगावंचक प्राणीयां, फल लेतां रीझे ॥ पुष्करावर्तना मेघमां, मगसेल न भींजे ॥ ३ ॥ क्रोडवदन शुकरासढो, श्याम रूपे चार ॥ हाथ बीजोरु कमल छे. दक्षिण कर सार ॥ जक्ष गरुड वाम पाणीये, नकु, लाक्ष वखाणे ॥ निर्वाणीनी वात तो, कवि वीर ते जाणे ॥ ४ ॥ इति ।। ॥ बीजो थोय जोडो॥ ॥ श्री शांति जिणेसर समरिये, जेहनी अचिरा माय || विश्वसेन कुल उपना, भृग लंछन पाय ॥ गजपुर नयरीनो धणी, सोवन वणी काय ॥ धनुष For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८५ चालीश जस देहमी, वरष लाखनुं आय ॥१॥ शांति जिनेशर सोलमा, चक्री पंचम जाणुं ॥ कुंथुनाथ चक्री छठ्ठा, अरनाथ वखाणुं ॥ ए त्रणे चक्री सही, देखी आणंदुं ॥ संयम लेइ मुगतें गया, नित्य उठी वंदं ॥ शांति जिनेसर केवली, बेठा धर्म प्रकाशे ॥ दान शीयल तप भावना, नर सोहे अभ्यासें ॥ एह वचन जिनजी तणां, जिणे हियडे धरियां ॥ सुणतां शिवगति निर्मली, दीसे केवल वरिया ॥ ३ ॥ समेत शिखर गिरि उपरे, जइने अणसण कीg ॥ काउसग्ग मुद्रायें रह्या, तिगें मुगतिज लीधुं ॥ गरुड यक्ष समरु सदा, देवी निर्वाणी ॥ भविक जीव तुमे सांभलो, रिखभदासनी वाणी ॥ ३॥ इति ॥ ॥ अथ श्री नेमनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ कनक तिलकभाले ॥ ए देशी ॥ ॥ दुरित भय निवारं, मोह विध्वंसकारं ॥ गुणबत मविकारं, प्राप्तसिद्धि मुदारं ।। जिनवर जयकारं, कर्म संक्वेश हारं, भवजल निधितारं, नौमि नेमिकुमारम् ॥ १ ॥ अड जिनवर माता, सिद्धि सौधे प्रया For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता ॥ अड जिनवर माता, स्वर्ग त्रीजे विख्याता ।। अड जिनवर माता, प्राप्त माहेंद्र स्याता ॥ भव जय जिन त्राता, संतने सिद्धि दाता ॥२॥ ऋषभ जनक जावे, नागसुर भाव पावे ॥ इशान सग कहावे, शेष कांता सभावे ॥ पदमासन सुहावे, नेम आयंत पावे ॥ शेष काउस्सग्ग भावे, सिद्धिसूत्रे पठावे ॥३॥ वाहन पुरुष जाणी, कृष्ण वणे प्रमाणी ॥ गोमेधने षट पाणी, सिंह बेठी वराणी ॥ तन कनक समाणी, अंबिका चार पाणी ॥ नेम भगति भराणी, वीरविजये वखाणी ॥४॥ ॥ बीजो थोय जोडो॥ । गिरनार विभूषण, निर्दूषण सुखकार ॥ श्री नेमि जिनेसर, अलवेसर आधार ॥ प्रभु वंछित पूरे, दुःख चूरे निरधार ॥ बहु भावे वंदो, राजिमती भरतार ॥१॥ वैमानीक प्रभु दश, भुवनाधीश वरवीश ॥ ज्योतिषी पतिदोय, व्यंतर पति बत्रीश ॥ इय चउसठि इंद्रे, पूज्या जिन चोवीश॥ ते जिननी आणा, शिरवहुं हुं निशदीश ॥ २ ॥ त्रिभुवन जिनवंदन, हु For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७ आनंदन जिन वाणी ॥ सिंहासन बेसी, उपदेशी हित आणी । जेह मांहे वखाणी, जीवदया सुणो प्राणी ॥ ते वाणी आराधी, वरीये शिब पटराणी ॥ ३ ॥ संघ सान्निध्य कारी, जय कारी वरदाई ॥ शासन रखवाली, विघन हरे अंबाई ॥ बावीशमा जिननी, सेवा करो चित्त लाई, बुध प्रीतिविजय कहे, सुख संपद में पाई ॥४॥ ॥ अथ श्री पार्श्वनाथजीनी थोय जोडो॥ ॥ प्रणमुं नित्य पास चिंतामणि, सोहे तस सप्त फणमणि ॥ तस महिमा मही मांहेज घणी, सुप्रसन्न सदा मुझ जगत धणी ॥१॥ वंदुं हुं अतीत अनागता, वोश विहरमान चारे शाश्वता ॥ संपई जिनवर सवि वंदीयें, मनमोहन देखी आणंदीयें।। २॥ भरपूरें गाजे मेहलो, सांजळतां अधिक स्नेहलो ॥ एवो आगम जिनवर नांखियो, सहु गणधर माल परकाशियो ॥ ३॥ श्री पास चरण सेवो सदा, जेहथी लहियें सुख संपदा ॥ दया कुशल कहे सो भगवइ, संघ विघन हरो पउमावइ ॥ ४॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪૮૮ ॥ बीजो थोय जोडो॥ ॥ सुविधि सेवा ॥ ए देशी॥ ॥ पास जिणंदा वामा नंदा, जब गरमें फली ॥ सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवा मली। जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये ॥ नेमी राजी चित्त विराजी, विलोकित व्रतलीये ॥१॥ वीर एकाकी चार हजारे, दीक्षा धुर जिनपति ॥ पासने महि त्रयशत साथे, बीजा सहसे व्रती ॥ षट शत साथे संयम धरता,वासुपूज्य जग धणीअनुपम लीला ज्ञान रसीला, देजो मुझने घणी ॥२॥जिनमुख दीठी वाणी मीठी, सुरतरु वेलडी ॥ द्राख विहासे गई वनवासे, पीले रस सेलडी ॥ साकर सेंती तरणा लेती, मुखे पशु चावती ॥ अमृत मीटुं स्वर्गे दी, सुरवधू गावती ॥३॥ गजमुख दक्षौ वामन यक्षौ, मस्तके फणावली ॥ चार ते बांही कच्छप वाही, काया जस शामली ॥ चउकर प्रौढा नागारूढा, देवी पद्मावती ॥ सोवन कांति प्रभु गुण गाती, वीर घरे आवती॥ ॥४॥ इति ॥ १ त्रणशे. २ काचवाना वाहन वाळा. For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९ ॥ अथ श्री महावीर स्वामी जिन स्तुति ॥ ॥ गौतम बोले ग्रंथ संभाली ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर जगत्पति जन्मज थावे, नंदन निश्रित शिखर रहावे, आठ कुमारी गावे ॥ अड गजदंता हेठे वसावे, रुचक गिरिथी छत्रीश जावे, द्वीप रुचक चउ भावे ॥ छप्पन दिगकुमरी हुलरावे, सूती करम करी निज घर पावे, शक्र सुघोषा वजावे ।। सिंहनाद करी ज्योतिषी आवे, भवन व्यंतर शंख पडहे मिलावे, सुरगिरि जन्म मल्हावे ॥ १ ॥ ऋषभ तेर शशि सात कहीजे, शांतिनाथ भव बार सुणीजे, मुनिसुत्रत नव कीजे ॥ नव नेमीश्वर नमन करीजे, पास प्रभुना दश समरीजे, वीर सत्तावीश लीजे ॥ अजितादिक जिन शेष रही जे, त्रण्य त्रण्य नव सघले वीजे, भव समकितथी गणीजे ॥ जिन नामबंध निकाचित कीजे, त्रीजे भव तप खंती धरीजे, जिनपद उदये सीझे ॥ ॥२॥ आचारांग आदे अंग अग्यार, उववाई आदे उपांग ते बार, दश पयन्ना सार ॥ छ छेद सूत्र विचित्र १ सुवावड. For Private And Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० प्रकार, उपगारी मुलसूत्र ते चार, नंदी अनुयोग हार॥ ए पीस्तालीश आगम सार, सुणतां लहीये तत्व उदार, वस्तु स्वभाव विचार ॥ विषय भुजंगिनी विष अपहार, ए समो मंत्र न को संसार, वीर शासन जयकार ॥ ॥३॥ नकुल बीजोल दोय कर झाली, मातंग सुर शाम कंती 'तेजाली, वाहन गज शुंढाली ॥ सिंह उपर बेठी रढीयाली, सिद्धायिका देवी लटकाली, हरितामा चार भुजाली ॥ पुस्तक अभया जिमणे झाली, मातु लिंगने वीणा रसाली, वाम भुजा नहिं खाली ॥ शुभगुरु गुण प्रभु ध्यान घटाली, अनुभव नेहशुं देती ताली, वीर वचन टंकशाली ॥ ४ ॥ इति॥ || अथ श्रीसीमंधर जिन स्तुति ॥ ॥ सीमंधर स्वामी निर्मला. तुम ज्ञान उपर्नु केवला ॥ सीमंधर स्वामी तार तार, मुज आवागमन निवार वार ॥ १॥ सीतेरशो जिनवर बंदीयें, जस नामें पाप निकंदीयें ॥ सांप्रत जिन सोहे वीश सार, १ तेजस्वी. For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achana Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९१ ते भवियण वंदो वारं वार ॥२॥ जिनवाणी साकर सेलडी, पीतां जाणे अमृत वेलडी ॥ जिन आगम सागर सेवतां, लहो विद्या रयण सोहावता ॥३॥ सीमंधर जिनपद अनुसरी, श्रीसंघ प्रत्ये बहु सुख करी ॥ कनका नासा शासन सरि, द्यो वंछित देवी पतंजरी ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ चैत्री पुनमनी स्तुति ॥ ॥ विमला चल भूषण, ऋषभ जिनेश्वर देव ॥ तस आण लहीने, ऋषभसेन गणदेव ॥ ते तीरथमां मुख्य, परणी शिववहु सार ॥ चैत्री पुनम दिन, आणी हर्ष अपार ॥१॥ विमलाचल महिमा, जिनवर कोडी अनंत ॥ उपदेशे पंडित, परिषद मांहि अनंत ॥ ते जिनवर देजो, मंगल माला ऋद्धि ॥ चैत्री पूनम तप, आराधकने सिद्धि ॥ २॥अष्टापद पमुहा, तीरथ कोडी अनेक ॥ तेहमां ए राजा, एम कहे आगम छेक ॥ ते आगम निसुणो, आणी हृदय विवेक ॥ चैत्री पूनम दिन, जिम होय पुण्य विवेक ॥३॥ चकेसरी देवी, जिनशासन रखवाली ॥ सिंहासन बेठी, सिंहलंकी For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ लटकाली ॥ चैत्री पुनम तप, विघ्न हरजो माय ॥ श्री विजयराज सूरि, दान मान वरदाय ॥ ४॥ इति ॥ ॥ अथ अध्यात्म स्तुति ॥ ॥उठी सवारे सामायिक लीधुं, पण बार| नवि दीधुंजी ॥ कालो कुतरो घरमां पेठो, घी सघर्तु तेणे पीधुं जी ॥ उठो वहुअर आलस मुकी, ए घर आप संभालो जी ॥ निज पतिने कही वीरजिन पुजो, समकितने अजुवालो जी ॥१॥ बले बोलाडे जडप जडपावी. उत्रोड सर्वे फोडी जी ॥ चंचल छैयां वारयां न रहे, त्राक नांगी माळं त्रोडी जी ॥ तेह विना रेटियो नवि चाले, मौन भलो केने कहीयेजी॥ ऋषभादिक चोवीश तीर्थकर, जपीयें तो सुख लहीयें जी ॥२॥ घर वाशीदूं करोने वहअर, टालो ओजीशालं जी । चोरटो एक करे छे हेरु, ओरडे द्योने तालू जी ॥ लबके प्रहुणा चार आव्या छे, ते उभा नवि राखो जी ॥ शिवपद सुख अनंतां लहीयें, जो जिनवाणी चाखोजी ॥ ३॥ घरनो खुणो कोल खणे छे, वहु तुमें मनमा लावोजी ॥ पोहोळे पलंगे प्रीतम For Private And Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३ पोढया, प्रेम धरीने जगावो जी ॥ भावप्रभ सूरि कहे नहीं ए कथली, अध्यात्म उपयोगी जी ॥ सिद्धाइका देवी सान्निध्य करेवी, साधे ते शिवपद भोगी जी ॥ ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ बीजनी स्तुति ॥ ॥जंबु द्वीपे अहनीश द्वीपे, दोय सूरज दोय चंदाजी ॥ तास विमाने श्री ऋषभादिक, शाश्वता जिनचंदाजी ॥ तेह भणी उगते शसी निरखी, प्रणमे भवि जिन वंदाजी ॥ बीज आराधो धर्मनी बीजे, पूजी शांति जिणंदाजी ॥१॥ द्रव्य भाव दोय भेदे पूजो, चोवीशे जीन चंदाजी ॥ बंधन दोय करीने दुरे, पाम्या परमाणंदा जी ॥ दृष्ट ध्यान दोय मत मतांगज, भेदन मत महेंदाजी ॥ बीजतणे दीन जे आराधे, जेम जगमांहे चीरनंदाजी ॥२॥ दुवीध धर्म जीनराज प्रकाशे, समोवसरण मंडाणजी ॥ निश्चय ने व्यवहार बेहसुं, आगम मधुरी वाणी जी ॥ नरक तिर्यंच गती दोय न होय, बीज ते आराधे जी ॥ दुविध दया तस थावर केरी, करता शिवसुख साधेजी For Private And Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ ॥३॥बीज चंद पर भुषण भुषीत, दीपे ललवट चंदाजी ॥ गरुड जक्ष नारी सुखकारी, निरवाणी सुख कंदाजी॥ बीज तणो तप करता भवीने, समकीत सानिध्य कारीजी ॥ धीरवीमल कवी शिष्य कहे सीख, संघना वीघन निवारी जी ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ पंचमीना स्तुति ॥ ॥ उत्तरदिशि अनुत्तरथी चवीया, सौरीपुर अवतरीयाजी ॥ समुद्र विजय नृप परणी धरणी, उयरे गुण गण तरीयाजी ॥ श्रुचि शित पंचमी पंच रूपधर, प्रमुदित शचिपचि आबेजी ॥ पंच वरण कलसे कनकाचल, शिखरे प्रभु न्हवरावे जी ॥१॥ पंच कल्याणक चोवीश जिनना, दश खेत्रे सय बारजी ॥ अविरति बार तजीने आदरे, पंच महाव्रत भारजी ॥ पंचाचारे सोभित विचरे, पंचानन उपमान जी ॥ पंच प्रमाद मतंगज भेदी, पाम्या पंचम ज्ञानजी॥ ॥२॥ सुत्र (१) नियुक्ति (२) टीका (३) चुरणी, (४) भाष्य (५) पंचांगी प्रमाणजी ॥ सांप्रत षट लखी गुणचालीश, सहस त्रणसय षष्टि मानजी ॥ For Private And Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४९५ तस अनुसारे गीतारथ कृत, वृत्यादिक विस्तारजी ॥ पंच प्रकारे सज्झाय करें मुनि. पाले पण व्यवहारजी ॥ ३ ॥ देश विरति पंचम गुण ठाणे, पंच पकारे तरीयाजी ॥ मानव गति चौदश गुणठाणा, पंचदश भुमिज वरियाजी ॥ पंचवीस नंदें सुर भाख्या, साचा समकीत धारीजी ॥ शक्ती अनुसार सघला करज्यो, जिनशासन रखवाली जी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ ज्ञानपंचमीनी स्तुति ॥ ॥ श्री तीर्थकर वीर जिणंदा, सिद्धारथ कुल गगन दिणंदा, त्रिशला राणी नंदा ॥ कहे ज्ञानपंचमी दिन सुखकंदा, मति श्रुतावरणी मटे भव फंदा, अ. नाण कुंभी मयंदा ॥ दूग चउ भेद अहावीश वृंदा, समकित मतिथी उल्लसे आनंदा, छेदे दरमति दंदा ॥ चउद नेदे धारो श्रुत चंदा, ज्ञानी दोयना पद अरविंदा, पुजो नाव अमंदा ॥ १ ॥ अवतरिया सवि जगदाधार, अवधिनाण सहित निरधार, पामे परम करार ॥ मागशिर शुदि पंचमी दिन सार, श्रावण शुदि पंचमी सुभवार, सुविधि नेम For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ अवतार ॥ चैत्र वदि पंचमी घणी श्रीकार, चंद्रप्रभ च्यवन मंगल विस्तार, वो जय जयकार ॥त्रीजा ज्ञान दर्शन भंमार, देखे प्रगट द्रव्यादिक चार, पुण्य अनंत अधिकार ॥ ॥ वैशाख वदि पंचमी मन आणी, कुथुनाथ संयम गुणठाणी, थया मनः पर्यव नाणी ॥ दीक्षा महोत्सव अवसर जाणी, आवे सुरपति घणी इंद्राणी, वंदे उलट आणी ॥ विचरे पावन करता जग प्राणी, अध्यात्म गुण श्रेणी वखाणी, स्वरुप रमण सही नाणी ।। अप्रमादि ऋद्धिवंता प्राणी, नमो नाणी ते आगम वाणी, सांभळी लहो शिवराणी ॥३॥ कार्तिक वदि पंचमी दिन आवे, केवळ ज्ञान संजव जिन पावे, प्रभुता पूरण थावे ॥अजित संभव जिन अनंत सोहावे, चैत्र शुदि पंचमी मुक्ति कहावे, जेष्ट शुदि ते तिथि दावे ॥ धर्मनाथ परमानंद पद पावे, शासन सूरि पंचमी वधावे, गीत सरस केई गावे ॥ संघ सकल भणी कुशल बनावे, ज्ञान भक्ति बहु मान जणावे, विजय लक्ष्मी सूरि पावे ॥ ४ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९७ ॥ अथ अष्टमीनी स्तुति ॥ ॥ अष्टमी वासर मज्झिम रयणी, आठ जाति दिशि कुमरी जी ॥ जन्म घरे आर्वे गहगहती, निज निज कारज समरी जी, अढार कोडा कोडि सागर अंतर, तुझ तोलें कूण आवे जी ॥ ऋषभ जगत गुरु दायक जननी, इम कही गीत सुणावे जी ॥१॥ आठ करम मद पुरण जाणी, कलसा आठ प्रकार जी ॥ आठ इंद्राणी नायक अनुक्रमे, आठना वर्ग उदार जी ॥ अष्ट प्रकारी पुजा करीने मंगल आठ आलेखे जी ॥ दाहीण उत्तर दश जिनवरनो, जन्म महोत्सव लेखे जी ॥ २॥ प्रवचन माता आठ आराधो, आठ प्रमादने बांधो जी ॥ आठ आचार वि. भुषित आगम, भणतां शिवसुख साधो जी॥ आठमें गुणठाणे चढी अनुक्रमें, क्षेपक श्रेणि मंडाण जी ॥ अाठमें अंगे अंतगड केवली, परिपामो निर्वाण जी ॥३॥ वैमानक (१) ज्योतिक (२) भुवनाधिप, (३) व्यंतरपति ( ४ ) सुरनारीजी ॥ हुद्रादिक अडदोष निवारी, अडगुण समाकत धारी जी ॥ 3२ For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आग्में द्वीपे अठाई महोबव, करता भक्ति विशाल जी ॥ खीमाविजय जिनवरनी ठवणा, चोसठि सय. अडयाल जी॥४॥ इति ॥ ॥ अथ एकादशानी स्तुति ॥ . नेमसिरने श्रीनारायण, प्रश्न करे पाय वंदी जी ॥ सकल पर्वमा जेह महाफल, ते मुज कहो आणंदी जी ॥ जिन कहे जे एक मौन एकादशी, वर्षो वर्ष आराधे जी ॥ चउविहार उपवास पोसहशु, ते शिव संपद साधेजी ॥ १ ॥ दश क्षेत्रे पांच पांच कल्याणक, सर्व मली पंचास जी ॥ त्रिहुं काळं ते त्रिगुणाकरता, थाये दोढसो विलास जी ॥ मागसिर शुदि एकादशीने दिने, ते जपमाली गणियें जी ॥ संपदा सघळी सन्मुख थाये, आपदा सवि अविगणियें जी ॥२॥ प्रतिमा ज्ञान पूजा उपगरणा, प्रत्येकें अगीयारजी ॥ फल पक्वान्न मेवा, बहु ढोवा, स्वामी वत्सल सार जी ॥ गुरु वचने एम मौन एकादशी, उजमगुंजे करशे जी ॥ सुव्रत श्रेष्टी तणी परे ते नर, शिवकमला सुख वरशे जी ॥ ३ ॥ देव देवी जे For Private And Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ सम्यक दृष्टि, शासन सान्निध्य कारी जी ॥ संघना सकल समीहित पुरो, दोहग दुःख निवारी जी ॥ एकादशी तप आराधकने, मन कामित सुख आपोजी ॥ हंस कहे श्री जिन आणामां, मन भवि स्थिर करी थापो जी ॥ ४॥ इति ॥ ॥ श्री ऋषभदेवजीनी स्तुति ॥ ॥ कनक तिलक भालें, हार हीए निहालें ॥ ऋषभ पाय पखालें, पापना पंक टालें ॥ अरचित वरमाले, फुटरी फुलमाले ॥ नरभव अजु आले, रागर्ने रोस टालें ॥१॥ दुरति दुर दुकाला, पुन्य पाणी सुगाला ॥ जस गुणवर बाला, रंगे गाए रसाला ॥ भविक नर त्रिकाला, भावे वंदु मयाला ॥ जय जि. नवर माला, न्याय लच्छि विशाला ॥ २॥ अमीबरस समांणी, देवे देवें वखाणी॥ वर गुण मणी खांणी, पाप वल्लि कृपाणि ॥ सुण सुणरे प्राणी, पुन्यकि पटराणि ॥ जय जिनवर वाणि, सेवीये सार जाणी॥ ॥३॥ रमझम झमकारा, नेउरीचा उदारा ॥ कटि तटि खलकारा, मेखला चा अपारा ॥ अमल कमल For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० सारा, देह गोखीर धारा ॥ सरस्वति जयकारा, होनमे नांण धारा ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ श्री शांतिजिन स्तुति ॥ ॥ सकल सुखाकर, प्रणमित नागर, सागर परें गंभीरोजी ॥ सुकृत लतावन, सीचन घनसम ॥ भविजन मनतरु कीरोजी ॥ सुरनर किन्नर, असुर वि. द्याधर, वंदित पद अरविंदजी ॥ शिवसुख कारण, शुन परिणामें, सेवो शांति जिणंदजी ॥ १ ॥ सयल जिनेसर, भुवन दिणेसर, अलवेसर अरिहंताजी ॥ भविजन कुमुद, संबोधन शशिसम, भय भंजन भगवंताजी ॥ अष्ट करम अरि, दल अति गंजन, रंजन मुनिजन चित्ताजी ॥ मन शुढे जे, जिननें आराधे, तेहने शिवसुख दित्ताजी ॥ २॥ सुविहित मुनिजन, मान सरोवर, सेवित राज मरालोजी ॥ कलिमल सकल, निवारण जलधर, निर्मल सूत्र रसालोजी ॥ आगम अकल, सुपद पदें शोभित, उंडा अर्थ अगाधो जी॥ प्रवचन वचना, तणी जे रचना, भविजन भावें आराधोजी ॥३॥ विमल कमल दल, निर्मल For Private And Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोयण, उल्लसित उरें ललितांगीजी ॥ ब्रह्माणी देवी निरवाणी, विघ्न हरण कणयंगीजी ॥ मुनिवर मेघ, रत्नपद अनुचर, अमर रत्न अनुभावेजी ॥ निरवाणी, देवी प्रभावें, उदय सदा सुख पावेंजी ॥४॥ ॥ श्री नेमनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ श्रावण शुदी दीन पंचमीए । ए देशी ॥ ॥ जादव कुल श्री नंद समाए, नेमीसर ए देवतो ॥ कृष्ण आदेशे चालीया ए, वरवा राजुल नारतो ॥ अनुक्रमे त्यां आवीया ए, उग्रसेन दरबार तो ॥ इंद्र इंद्राणी नाचता ए, नाटक थाय तेणी वार तो ॥ १॥ तोरण पासे आवीया ए, पशुओनो पोकार तो ॥ सांभली मुख मरोडीयु ए, राजुल मन उचाटतो।। आदीनाथ आदी तीर्थकर ए, परण्या छे बहु नार तो ॥ तेणे कारण तुमे कांइ डरोए, परणो राजुल नारतो ॥ २ ॥ रथ फेरी संजम लीयो ए, चढीया गढ गीरनार तो ॥ नेमीश्वर काउसग रह्या ए पाम्या केवळसार तो ॥ सोळ पहोर दीये देशना ए, आपी अखंडा धारतो ॥ भविक जीव प्रतिबो For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ५०२ धीया ए, बुझी राजुल नार तो ॥ ३ ॥ अथीर जाणी संयम लीयो ए, अंबा जय जयकार तो ॥ पाये झांझर झम झमेए, नाचे नेम दरबार तो ॥ श्याम वर्णना नेमजीए, शंख लंछन श्रीकार तो ॥ कवी नमी कहे रायने ए, परण्या, शिव सुंदरी नार तो ॥ ४ ॥ ॥ श्री पार्श्वनाथजीनी स्तुति. ॥ ॥श्री पास जिनेसर, पुजा करुं त्रण काल॥ मुज शिवपुर आपो, टालो पापनी जाल ॥ जिन दरसण दीठे, पोचे मननी आस ॥ राय राणा सेवे, सुरपती थाये दास ॥ १ ॥ विमलाचल आबु, गढ गिरनारे नेम, अष्टापद समेत शिखर, पांचे तीरथ एम ॥ सूर असूर विद्याधर, नर नारीनी कोड ॥ भली जुगते वांदू ध्यावु बेकर जोम ॥२॥ साकरथी मीठी, श्री जिन केरी वाणी ॥ वह अरथ विचारी, गुंथी गणधर जांणी ॥ तेह वचन सुणीने, मुज मन हर्ष अपार ॥ भव सायर तारो, वारो दुर्गती वार ॥३॥ काने कुंडल झलके, कंठे नवसर हार ॥ पदमावती देवी, सोहे For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ सवि शिणगार ।। जिन शासन केरा, सघला विघन निवार॥ पुण्य रसने जिनजी, सुख संपति हितकार ॥४॥ ॥ श्री महावीर स्वामीनी स्तुति ॥ मूरति मनमोहन, कंचन कोमल काय ॥ सिद्धा. रथ नंदन. त्रिशला देवी सुमाय ॥ मृगनायक लंछन, सात हाथ तनु मान ॥ दिन दिन सुखदायक, स्वामी श्री वर्द्धमान ॥ १॥ सुर नर वर किन्नर, वंदित पद अरिविंद॥कामित भर पूरण, अभिनव सुरतरु कंद ॥ भवियणनें तारे, प्रवहण सम निसिदीस ॥ चोवीसे जिनवर, पणमुं विसवा वीस ॥२॥ अरथे करी आगम, भाख्या श्री भगवंत ॥ गणधर ते गुंथ्या, गुण निधि ग्यान अनंत॥ सुरगुरु पण महिमा, कही नशके एकंत॥ समरु सुखदायक, मनसुध सूत्र सिद्धांत ॥३॥ सिद्धाइका देवी, वारे विघन विशेष ॥ सहु संकट चूरे, पूरे आस अशेष ॥ अहनिसि कर जोडी, सेवे सुर नर इंद॥जंपई गुण गण इम, श्री जिन लाभ सूरिंद ॥ ४ ॥ इति । ॥ अथ सीमंधर जिन स्तुति ।। ॥ श्री सीमंधर, मुजने वाला, आज सफल For Private And Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ सुविहाणुंजी॥ त्रिगडे तेजें, तपता जिनवर, मुज तुठा हुं जाणुंजी ॥ केवल कमला, केलि करंतो, कुल मंडण कुल दीवोजी ॥ लाख चोरासी, पूरव आयु, रुकमिणी वर घणुं जीवोजी ॥१॥ संपतिकाले, वीश तीर्थकर, उदया अभिनव चंदाजी ॥ केइ केवली केइ, बालक परण्या, केइ महीपती सुख कंदाजी, ॥ श्री सीमंधर, आदि अनोपम, महाविदेह खेत्रे जिणंदाजी ॥ सुर नर कोडा, कोडी मली वली, जोवे मुख अरविंदाजी ॥ २॥ सीमंधर मुख, त्रिगडु जोवा हुं अलजायो वाणीजी ॥ आमा डुंगर, आवी न शकुं, वाट विषम अरु पाणीजी ॥ रंग भरि राग, धरी पाय लायं, सूत्र अर्थ मन सारोजी ॥ अमृत रसथी, अधिक वखाणी, जीवदया चित धारोजी ॥ ३ ॥ पंचांगुलीमें, प्रत्यक्ष दीठी, हूं जाणुं जग माताजी ॥ पेहेरण चरणा, चोली पटोली, अंधर बिराजे राताजी ॥ स्वर्ग भुवन, सिंघासण बेठी, तुहिज देवी विख्याताजी ॥ सीमधर, शासन रखवाली, शांति कुशल सुख दाताजी ॥४॥ इति । For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री सिद्धाचलजीनी स्तुति ॥ ॥ आगें पूरव, वार नवाणुं, आदि जिनेसर आयाजी ॥ शत्रुजय लाभ, अनंतो जाणी, वंदुं तेहना पायाजी ॥ जगबंधव जग, तारण ए गिरि, दीठां दुर्गति वारे जी ॥ यात्रा करंता, छहरी पाले, काज पोतानां सारे जी ॥ १॥ शत्रुजय, अष्टापद, नंदीसर, उज्जवल अर्बुद आदे जी ॥ सयल तीरथने, समेत शिखर गिरि, सफल जन्म जे वांद जी ॥ अतीत अनागत, ने वर्तमानह, जिनवर हुआ न होसेजी ॥ जे जन तीर्थ, एणीपरे वांदे, तेहने शिवपद थासेजी ॥२॥ सीमंधर जिन, सुरपति आगें, शत्रुजय महिमा दाख्योजी ॥ वांदुं आगम, गणधर गूंथ्युं, जेणें ए तीरथ भांख्योजी ॥ सिद्ध अनंता, एणे गिरि हुआ, धन आगम एम बोलेजी ॥ सकल तीरथमां राजा कहियें, नहीं कोई शत्रुजय तोलेजी ॥ ३ ॥ कवडयक्ष, गौमुख चक्केसरी, शत्रुजय सान्निध्य कारीजी ॥ सकल मनोरथ संघना पूरे, वंछित समकित धारीजी ॥ श्री विमलाचल, जग जयंवता, सबल शक्ति तुमा For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ रीजी, देजो देवा, शत्रुजय सेवा,कार्य सिद्धि अमारीजी ॥४॥ इति ॥ अथ दीवाळीनी स्तुति ॥ ॥ शासन नायक श्री महावीर, सात हाथ हेमवरण शरीर,हरि लंछन जिनधीर॥जेहनो गौतम स्वामी वजीर, मदन सुभट गंजन वमवीर, सायर परे गंभीर ॥ कार्तिक अमावास्याए निर्वाण, द्रव्य उद्योत करइ नृपजाण, दीपक श्रेणि मंडाण ॥ दीवाली प्रगटयुं अनिधान, पढिम रजनीए गौतम ज्ञान, वर्द्धमान धरु ध्यान ॥ १ ॥ चउवीस ए जिनवर सुखकार, पर्व दीवाली अति मनोहार, सकल पर्व शिणगार ॥ मेराइआं करेइ अधिकारी, महावीर सर्वज्ञाय पद सार, जपीये दोय हजार ॥ मझीम रजनी देव वंदीजे, महावीर पारंगनाथ नमीजे, तस सहस दोय गुणीजे ॥ वली गौतम सर्वज्ञाय नमीजे, पर्व दीवाली इणीपरी कीजे, मानव भव फल लीजे ॥ २ ॥ अंग ग्यार उपांगजबार, पयन्ना दस छ छेद मूल च्यार, नंदी अनुयोग छार ॥ छ लाखने छत्रीस हजार, चउद पूरव विरचे For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधार, त्रिपदीना विस्तार ॥ वीर पंचम कल्याणक जेह, कल्प सूत्र मांहि भाख्युं तेह, दीपोछव गुण गेह॥ उपवास छठ अठम करे जेह, सहस लाख कोडी फल लहे तेह, श्री जिन वाणी एह ॥ ३ ॥ वीर निर्वाण समय सुर जाणी, आवे इन्द्र अने इन्द्राणी, भाव अधिक मन आणी ॥ हाथ ग्रही दीवी निसि जाणी, मेराश्या मुख बोले वाणी, दीवाली कहेवाणी ॥ इणि परे दीपोछव कर ओ प्राणी, सकल सुमंगल कारण जाणी, लाभ विमल गुणखाणी ॥ वदति रत्न. विमल ब्रह्माणी, कमल कमंगल वीणा पाणी, यो सरसती वरवाणी ॥ ४ ॥ इति संपूर्णम् ॥ ॥श्री सिद्धचक्रनी थोयो॥ ॥ सिद्धचक्र सेवो सुविचार, आणी हैडे हर्ष अपार, जेम लहो सुख श्रीकार ॥ मन शुद्धे नव ओळी कीजे, अहोनिश नवपद ध्यान धरीजे, जिनवर पूजा कीजे ॥ पडिकमणां दोय टंकना कीजे, आठ थोये देव वांदीजे, भूमि संथारो कीजे ॥ मृषा For Private And Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ ५०८ तणो कीजे परिहार, अंगे शील धरीजे सार, दीजे दान अपार. ॥१॥ ॥ अरिहंत सिद्ध आचार्य नमीजे, वाचक सर्व साधु वंदीजे, दर्शन ज्ञान थुणीजे ॥ चारित्र तपर्नु ध्यान धरीजे, अहोनिश नवपद गुणणुं गणीजे, नव आयंबिल पण कीजे ॥ निश्चळ राखीने मन श, जपो पद एक एकने इश, नवकारवाळी वीश ॥ छेल्ले आयंबिले पण कीजे, सत्तरभेदी जिनपूजा रचीजे, मानव भवफळ लीजे, ॥२॥ ॥ सातशे कुष्टीना रोग, नाठा न्हवण लइ सं. योग, दूर हुवा कर्मना भोग ॥ कुष्ठ अढारे दूरे जाय, दुःख दारिद्र सवी दूर पलाय, मनवंठित फळ थाय ॥ निर्धनीयाने दे बहु धन, अपुत्रीयाने पुत्र रतन, जो सेवे शुद्ध मन ॥ नवकार समो नहि कोइ मंत्र, सिद्ध. चक्र समो नहि कोड जंत्र, सेवो भवीयण एकंत ॥३॥ जो सेव्यो मयणा श्रीपाळ, उंबर रोग गयो ततकाळ, पाम्या मंगळमाळ ॥ श्रीपाळ पेरे जे आराधे, तस घर दिन दिन दोलत वाघे, अंते शिवसुख साधे For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९ ॥ विमलेश्वर जक्ष सेवा ( सांनिध्य ) सारे, आपदा कष्ट सवी दुर निवारे, दोलत लक्ष्मी वधारे ॥ मेघविजय कवि रायनो शीश, हैडे भाव धरी जगीश, विनय विजय निशदिश ॥४॥ ॥श्री पर्यषणनी थोय ।। ॥ वरस दिवसमां अषाड चोमासुं, तेहमा वली भादरवो मास, आठ दिवस अति खास ॥ पर्व पज्जुसण करो उल्हास, अट्ठाइधरनो करवो उपवास, पोसह लीजे गुरु पास ॥ वडा कल्पनो छ8 करीजे, तेह तणो वखाण सुणीजे, चौद सुपन वांचीजे ॥ पडवेने दिन जन्म वंचाय, ओबव महोबव मंगल गवाय, वीर जिणेसरराय ॥ १॥ बीज दिने दीक्षा अधिकार, सांज समय निरवाण विचार, वीर तणो परिवार ॥ त्रीज दिने श्रीपार्श्व विख्यात, वली नेमीसरनो अवदात, वली नवभवनी वात ॥ चोविशे जिन अंतर तेवीश, आदि जिनेश्वर श्रीजगदीश, तास वखाण सुणीश ।। धवल मंगल गीत गहूंली करीए, वली प्रभावना नित अनुसरीए, अट्ठम तप जय वरीए ॥२॥ आठ दिवस For Private And Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लगे अमर पळावो, तेह तणो पडहो वजडावो, ध्यान धरम मन भावो ॥ संवत्सरी दिन सार कहेवाय, संघ चतुर्विध भेलो थाय, बारसे सूत्र सुणाय ॥ थिरावली ने समाचारी, पटावली प्रमाद निवारी, सांभलजो नरनारी ॥ आगम सूत्रने प्रणमीश, कल्पसूत्रशुं प्रेम धरीश, शास्त्र सर्वे सुणीश ॥ ३ ॥ सत्तर भेदी जिन पूजा रचावो, नाटक केरा खेल मचावो ॥ विधिशें स्नान भणावो, आडंबरशुं देहरे जइए, संवत्सरी पडिकमणुं करीए, संघ सर्वने खमीए ॥पारणे साहमिवबल कीजे, यथाशक्तिए दानज दीजे, पुन्य भंडार भरीजे॥ श्री विजयदेम सूरि गणधार, जसवन्तसागर गुरु उदार, जिणंदसागर जयकार ॥ ४॥ ॥ अथ रोहीणी तपनी स्तुति ॥ वासुपूज्य जिणेसर, पुजो मनने रंग ॥ रोहीणी नक्षत्रे, उपवास करो अतिचंग ॥ सात वरस ए उपर, सात मास परीमाण ॥ एतप रोहिणीनो, आपे मानज ठाम ॥१॥ श्रीवासुपूज जिनंगज, बरपति मघवा नाम ॥ तस पनि लक्ष्मी, तस तनया आजिराम ॥ For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh रोहणी जोवनवंति, परणी राय अशोक ॥ एम सयल जिणेसर, भाख बुझवा लोक ॥२॥ सुंदरी एक रडति, देखी पुछे नारी ॥ कुण नाटिक होवे, नृप कहे तुझ मद भारी ॥ राये नाख्यो धरति, अंगज तोये प्रसन्न ॥ एम आगम वाणिं, निसुणो ते धन धन्न ॥३॥ तप शासन देवी, धरयुं सिंघासण तास ॥ राजाने राणा, मन हुवो हरख उल्लास ॥ रोहणि तप कारक, इम लहो चित्त अजंग ॥ बुध हंस विजय शिष्य, धीरने सुख संजोग ॥४॥ इति ।। ॥ अथ श्री शांतिजिन स्तुति ॥ ॥ गजपुर अवतारा, विश्वसेन कुमारा ॥ अवनितले उदारा, चक्कवी लछी धारा ॥ प्रति दिवस सवाया, सेवियें शाति सारा ॥ भवजलधि अपारा, पामायें जेम पारा ॥१॥ जिनगुण जस मल्लि, वासना विश्व वल्लि ॥ मन सदन च सल्लि, मानवंती निसल्लि ॥ सकल कुशल वल्लि, फूलडे वेग फूली ॥ दुरगति तस दूल्लि, तासदा श्री बहुली ॥ २॥ जिन कथित विशाला, सूत्रश्रेणी रसाला ॥ सकल सुख सुखाला, For Private And Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेलवा मुक्ति बाला ॥ प्रवचन पदमाला, दृतिकाए दयाला ॥ उरधरी सुकमाला, मूकीयें मोहजाला ॥ ॥३॥ अति चपल वखाणी, सुत्रमा जे प्रमाणी ॥ भगवति ब्रह्माणी, विघ्नहंता निर्वाणी ॥ जिनपद लपटाणी, कोडी कल्याण खाणी ॥ उदयरत्ने जाणी, सुखदाता सयाणी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ श्री अरनाथ जिनस्तुति ।। द्रुत विलंबित छंद ।। ॥ अर जिनाय सुसाधु सुरेसुरा, नमी नरेसर खेचर भूचरा ॥ गणि विराजित जेह जिनेश्वरा, भुजग किन्नर सेवित भूधरा ॥ १॥ दोष अष्टादश दलित जे दुर्द्धरा, जगत पावन सर्व तीर्थकरा ॥ मदन मंजन गंजन जे जरा, अनंत तेह नमो अजरामरा ॥ २ ॥ विश्व प्रकाशक केवल भाषिता, दुर्गति पंथ पड़े तस राखिता ॥ तेह पीस्तालीश सूत्र संसारियें, दुरित पडल दूरे जिम वारीये ॥३॥ पीन पयोधर धारनी धारणी, विघ्नशासन वार निवारिणी ॥ परम उदय पद संपद कारणी, मंगल वेल जे सिंचत सारणी ॥ ॥४॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ श्री नेमनाथ जिन स्तुति ।। ॥ श्री गिरनारे जे गुण नीलो, ते तरण तारण त्रिभोवन तिलो ॥ नेमीशर नमिये ते सदा, सेव्यो आपे सुख संपदा ॥ १ ॥ इंद्रादिक देव जेहने नमे, दर्शन दीठे दुःख उपशमे ॥ जे अतीत अनागत वर्तमान, ते जिनवर वदूं वर परधान ॥ २ ॥ अरिहंतें वाणी उच्चरी, गणधरे ते रचना करी ॥ पीस्तालीश आगम जाणीयें, अर्थ तेहना चित्तें आणीयें ॥ ३ ॥ गढ गिरनारनी अधिष्टायिका, जिनशासनी रखवालिका ॥ समरूं सा देवी अंबिका, कवि उदय रत्न सुखदाइका ॥ ४ ॥ इात ॥ ॥ अथ श्री नेमनाथ जिन स्तुति ।। ॥श्री गिरनार शिखर सिणगार, राजीमती हीयडानोहार, जिनवर नेमकुमार ॥ पुर्णकरुणा रस भंडार, उगार्यो पशुआं अंबार, समुद्र विजय मल्हार ॥ मोर करे मधुरां किंगार, विचे विचे कोयलनो टहुँकार, सहसे गमे सहकार ॥ सहसा वनमा हुआ अणगार, प्रभुजी पाम्या केवलसार, पोहोता मुगति मझार ॥१॥ श्री शत्रुजय तीरथ सार, आबु अष्टा 33 For Private And Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद गीरनार, चित्रकोट वैभार ॥ सोवन गीरी समेत श्रीकार, नंदी सर वरद्वीप उदार, जिहां बावन विहार ॥ कुंमल रुचकने इष्युकार, शाश्वता अशाश्वता चैत्यविचार, अवर अनेक प्रकार ॥ कुमति वचन मभूल गमार, तीर्थ भेटे लाभ अपार, भवियण भावे जोहार ॥२॥ प्रगट छठे अंगे कहांणी, द्रुपदी पांडवनी पटराणी, पुजा जिन पढमांणी ॥ विधसुं कीधी उलटे आणी, नारद मिथ्यादृष्टि अन्नांणी, छांडया अविरती जांणी ॥ श्रावक कुलनी ए सहिनाणी, समकीत आला आदाणी, सातमे अंग वखांणी ॥ पुजनीक प्रतिमां कहांणी, एम अनेक आगमनी वांणी, ते सुणजो भवि प्राणी ॥३॥ कटी कटी मेखल घुघरी आली, पाए रमझम नेउर वाली, उज्वल गीरी रखवाली ॥ अधर लाल जीस्यो परवाली, कनकवान काया शुकमाली. काटि लहके अंबाडाली ॥ वयरीने जागे विकराली, संघ विघन हरे उजमाली, अंबाइ देवी मयाली ॥ महिमाए दिस दिस उजुआली, गुरु श्री संघविजय संभाली, दिन दिन नित दीवाली ॥४॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ श्री शंखेश्वर पार्थजिन स्तुति ॥ ॥ कल्याण कारक, दुःख निवारक, सकल सुख आवास ॥ संसार तारक, मदन मारक, श्री शंखेश्वर पास ॥ अश्वसेन नंदन, भविया नंदन, विश्ववंदन देव ॥ भवभीत भंजन, कमठ गंजन, नमाजे नित्य मेव ॥ १॥ त्रयलोक दीपक, मोह झीपक, शिव सरोवर हंस ॥ मुनि ध्यान मंमन, दुरित खंमन, भुवन शिर अवतंस ॥ द्रव्य भाव थापन, नाम भेदी, जक्ष निखेपा चार ॥ ते देव देवा, मुक्ति लेवा, नमो नित्य सुखकार ॥२॥ षट द्रव्य गुण, परजाय नयगम, भेद विसद वखाणी ॥ संसार पारा, वार तरणी, कुमति कंद कृपाणी ॥ मिथ्यात भूधर, शिखर भेदन, वन सम जेह जाणी ॥ अति नगति आणी, भवि प्राणी, सुणो ते जिनवाणी ॥ ३ ॥ जश वदन सारद, चंद सुंदर, सुधा सदन विशाल ॥ निकलंक सकल, कलंक तमहर, अंग अति सुकुमाल ॥ पद्मावती सा, भगवती सवी, विघ्न हरण सुजाणी ॥ श्री संघने, कल्याण का. रणी, हंस कहे हित आणी ॥ ४ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ५१६ ॥ अथ सीमंधर प्रमुख विचरता जिननी स्तुति ।। ॥श्री सीमंधर सेवित सुरवर, जिनवर जग जयकारीजी ॥ धनुष्य पांचशे कंचन वरणी, मूरति मोहन गारीजी ॥ विचरता प्रभु माहाविदेहें, भवि जिनने हिकारीजी ॥ प्रह उठी नित्य नाम जपीजें, हृदय कमलमां धारीजी ॥१॥ सीमंधर युग बाहु सुबाहु, सुजात स्वयंप्रभ नामजी ॥ अनंत सूर विशाल वज्रधर, चंद्रानन अभिरामजी ॥ चंद्र भुजंग इश्वर नेमि प्रभ, वीरसेन गुणधामजी ॥ महाजद्रने देवयशा वली, अजित करुं प्रणामजी ॥२॥ प्रभुमुख वाणी बहु गुण खाणी, मीठी अमीय समाणीजी ॥ सूत्र अने अर्थे गुंथाणी, गणधरथी वीर वाणीजी ॥ केवळनाणी बीज वखाणी, शिवपुरनी नीशाणीजी ॥ उलट आणी दिलमांहे जाणी, व्रत करो भवि प्राणीजी ॥३॥ पहेरी पटोली चरणां चोली, चाली चाल मरालीजी ॥ अति रूपाली अधर प्रवाली, आंखडली अणीयालीजी ॥ विघ्न निवारी सान्निध्यकारी, शासननी रखवालीजी ॥ धीरविमल कविरायनो सेवक, बोले नय निहालीजी ॥ ४ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ बीजनी स्तुति ॥ ॥ महामंडणं पुन्नसोवन्नदेहं, जणाणंदणं केवलनाण गेहं ॥ महानंद लच्छी बहू बुद्धिरायं, सुसेवामि सीमंधरं तित्थरायं ॥१॥ पुरा तारगा जेह जीवाण जाया, भविस्संति ते सव भव्वाण ताया ॥ तहा संपयं जे जिणा वट्ट माणा, सुहं दितु ते मे तिलोयप्पहाणा ॥२॥ दुरुत्तार संसार कुव्वार पोयं, कलंका वली पंक पख्खाल तोयं ॥ मणोवंछियत्थे सुमंदारकप्पं, जिणंदा गमं वंदिमो सुमहप्पं ॥ ३ ॥ विकोसे जिणंदाणणं भोजलीणा, कलारूव लावण्ण सोहग्ग पीणा ॥ वहं तस्स चित्तमि णिच्चं पिझाणं, सिरी भारई देहि मे सुद्धनाणं ॥ ४ ॥ ॥ अथ पंचमीनी स्तुति ॥ ॥नेमि जिनेसर, प्रभु परमेसर, वंदो मन उहासजी ॥ श्रावण शुदी, पंचमी दिन जनम्या, हुओ त्रिजग प्रकाशजी ॥ जन्म महोत्सव, करवा सुरपति, पांचरूप करी आवेजी ॥मेरु शिखरपर, ओच्छव करीने, विबुध सयल सुख पावेजी ॥ १ ॥ श्री शत्रुजय, गिरनार वंचू, कंचन गिरि वैभारजी ॥ समेत शिखर, अ. For Private And Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ष्टापद आबू, तारंग गिरिने जुहारजी॥ श्रीफल वर्द्धि, पास मंडोवर, शंखेसर प्रभु देवजी ॥सयल तीरथर्नु, ध्यान धरीजें, अहनिश कीजे सेवजी ॥२॥ वरदत्तने, गुणमंजरी परबंध, नेमि जिनेसर दाख्योजी ॥ पंचमी तप करतां, सुख पाम्या, सुत्र सकलमा नांख्योजी ॥ नमोनाणस्स इम, गणणुं गणिये, विधि सहित तप कीजेंजी ॥ उलट धरी, उजमणुं करतां, पंचमी गति सुख लीजेंजी ॥ ३ ॥ पंचमी, तप, जे नर करशे, सान्निध्य करे अंबाइजी ॥ दोलतदाई, अधिक सवाइ देवीये ठकराइजी॥ तप गच्छ अंबर. दिनकर सरिखो श्री विजयसिंह सरीशजी ॥ वीरविजय, पंमित कविराजा, विबुध सदा सुजगीशजी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ अष्टमी स्तुतिः ॥ ॥चउवीसे जिनवर, प्रणमुं हुं नितमेव।। आठम दिन करिये, चंद्रप्रभुनी सेव ॥ मूरति मन मोहे, जाणे पूनिम चंद ॥ दीगं दुःख जाये, पामे परमानंद ॥१॥ मिलि चोसठ इंद्र, पूजे प्रभुजीना पाय ॥ इंद्राणी अपच्छरा, कर जोडी गुण गाय ॥ नंदीश्वर द्वी. For Private And Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिलि सुरवरनी कोड ॥ अठाहीमहोच्छव, करता होडा होड ॥२॥ शेजूंजा शिखरे, जाणी लाभ अपार॥ चउमासे रहिया, गणधर मुनि परिवार || भवियणने तारे, देई धरम उपदेश ॥ दूध साकरथी पण, वाणी अधिक विशेष ॥३॥ पोसो पडिकमj, करिये व्रत पञ्चक्खाण॥आठम तप करतां, आठ करमनी हाण ॥ आठ मंगल थाये, दिन दिन कोडि कल्याण ॥ जिन सुखसूरि कहे, इम जीवत जनम प्रमाण ॥४॥इति ॥ ॥ अथ एकादशीनी स्तुतिः ॥ ॥ माधव उज्वल एकादशी, गणधर पद थापत चित्तवसी ॥ चउ सहस्स अधिक सय च्यार रीसी, कीया त्रिशला नंदन समरुसी ॥१॥ उप्पिणी अंतिम जिनवरा, अवसप्पिणी आदिम गुण भरा ॥ दशमी दिन केवल श्रीवरा, दश खेत्रे विचरे तिथंकरा ॥२॥ प्रभु वदन पदम द्रह नीसरी, जग पावन त्रिपदी सुरसरी ॥ पसरी गणधर हृदे पाप हरी, मुनि माहंत कीलें रंग भरी ॥ ३ ॥ महावीर पदंबुज मधुकरी, रणकणति याए नेउरी॥ सिद्धाई सहं शांतिकरी, जिनविजयसुं भक्ति अलंकरी ॥४॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ५२० ॥ अथ वीशस्थानक तपनी स्तुति ॥ ॥ पूछे गौतम वीरजिणंदा, समवसरण बेठा सुखकंदा, पूजित अमर सुरिंदा ॥ केम निकाचे पद जिनचंदा, किण विध तप करतां भव फंदा, टाले दुरितह दंदा ॥ तव भांखे प्रभुजी गत निंदा, सुण गौतम वसुभूति निंदा, निर्मल तप अरविंदा ॥ वी. शस्थानक तप करत महिंदा, जेम तारक समुदाई चंदा, तेम ए सवी तप इंदा ॥१॥ प्रथम पदें अरिहंत नमीजें, बीजे सिद्ध पवयण पद त्रीजे, आचारज थेर ठवीजे ॥ उपाध्यायने साधु ग्रहीजे, नाण दंसण पद विनय वहीजें, अगीयारमे चारित्र लीजें ॥ बंभवय धारीणं गणीजें, किरियाणं तवस्स करीजें, गोयम जिणाणं लहीजें ॥ चारित्र नाण सुअ तिथ्थस कीजें, त्रीजे भव तप करत सुणीजें, ए सविजिन तप लीजें ॥२॥ आदि नमो पद सघले ठवीस, बार पन्नर बार वली छत्रीस, दस पणवीस सगवीस ॥ पांचने सडसठ तेर गणीस, सत्तर नवकिरिया पण वीश, बार अठावीस चौवीस ॥ सीत्तर गवन पीस्तालीश, पांच लोगस्स काउस्सग्ग रहीश, नोकारवाली वीश ॥ एक For Private And Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ५२१ एक पदें उपवासज वीश, मास खटें एक ओली करीश, एम सिद्धांत जगीश ॥३॥ शक्ति एकासगुं तिविहार, छट्ट अट्ठम मास खमण उदार, पडिकमणा दोय वार ॥ इत्यादिक विधि गुरुगमधार, एक पद आराधन भवपार, उजमणुं विविध प्रकार ॥ मातंग जक्ष करे मनोहार, देवी सिद्धाइ शासन रखवाल, संघ विघन अपहार ॥ खिमाविजय जस उपर प्यार, शुभ भवियण धरमी आधार, वीरविजय जयकार ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ दश त्रीकनी स्तुति ॥ ॥ निसिही त्रण प्रदाक्षिणा त्रिणे, प्रणाम त्रिण करीजेजी ॥ त्रण प्रकारी पूजा करीने, अवस्था त्रिण धरीजेजी ॥ त्रण दिशि वर्जि जिनजोवो, भूमि त्रण पूजीजेजी ॥ बालंबन मुद्रा त्रण प्रणिधान, चैत्यवंदन त्रण कीजेजी ॥ १॥ पहेले भावजिन बीजे द्रव्य जिन, त्रीजे एक चैत्य धारोजी ॥ चोथे नाम जिन पांचमे, सर्व लोक चैत्य जूहारोजी ॥ विहरमान छठे जिन वंदो, सातमे नाण निहालोजी ॥ सिद्ध वीर उर्जित अष्टापद, शासन सुर संभालोजी ॥२॥ शक्रस्तवमां For Private And Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ दोय प्रकार, अरिहंत चेइआणुं बीजेजी ॥ चोविस स्थामां दोय प्रकार, स्तुत स्तव दोय लीजेजी। सिद्ध स्तवमां पांच प्रकार, ए बारे अधिकारोजी ॥ जित नियुक्तिमाहे भांख्या, तेहमा ए विस्तारोजी ॥३॥ तंबोल पाण भोयण वाहण, मेहण एक चित्त धारोजी॥ थुक सलेषम बमी लधुनिती, जुवटे रम, वारोजी ॥ ए दश आशातना महोटी, वजों जिनवर द्वारोजी ॥ क्षमा विजय जिन एणीपरे जंपे, शासन सुर संभालोजी ॥४॥ इति ॥ अथ ज्ञानपंचमी स्तुति. ॥श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपतिकृतप्राज्य जन्माभिषेक । श्चत्पंचाक्षमत्तद्विरदमदभिदा पंच वक्त्रोपमानः ॥ निर्मुक्तः पंचदेह्याः परमसुखमयप्रास्तकर्मप्रपंचः। कल्याणं पंचमीसत्तपसि वितनुतां पंचमज्ञानवान् वः ॥१॥ संप्रीणन् सच्चकोरान् शिवतिलकसमः कौशिकानंदमूर्तिः ॥ पुण्याब्धिप्रीतिदायी सितरुचिरिव यः स्वीयगोभिस्तमांसि॥ सांद्राणि ध्वंसमानः सकल. कुवलयोल्लासमुच्चैश्चकार । ज्ञानं पुष्याजिनौघः सतपसि भविनां पंचमीवासरस्य ॥२॥ पीत्वा नानाभिधार्था For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ मृतरसमसमं यांति यांस्यंति जग्मुार्जीवा यस्मादनेके विधिवदमरतां प्राज्यनिर्वाणपुर्य्याम् ॥ यात्वा देवाधि. देवागमदशमसुधाकुंडमानंदहेतु । स्तत्पंचम्यास्तपस्यु. द्यतविशदधियां भाविनामस्तु नित्यं ॥ ३॥ स्वर्णालंकारवल्गन्मणिकिरणगणध्वस्त नित्यांधकारा ॥ हूं. कारारावदूरीकृतसुकृतजनवातविघ्नप्रचारा ॥ देवीश्री अंबिकाख्या जिनवरचरणांभोजमुंगीसमाना ॥ पंचम्यन्हस्तपोथै वितरतु कुशलं, धीमतां सावधाना ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ मौनेकादशी स्तुतिः ॥ ॥ अरस्य प्रव्रज्या नमिजिनपतेर्ज्ञानमतुलं, तथा मलेर्जन्म व्रतमपमलं केवलमलं ॥ वलक्षैकादश्या स हसि लसदुद्दाममहसि, क्षितौ कल्याणानां क्षपतु विपदः पंचकमदः ॥ १ ॥ सुपवेंद्रश्रेण्यागमनगमनैभूमिक्लयं, सदा स्वर्गत्येवाहमहमिकया यत्र सलयं ॥ जिनानामप्यापुः क्षणमतिसुखं नारकसदः, क्षिती० ॥२॥ जिना एवं यानि प्रणिजगदुरात्मीयसमये, फलं यत्क र्तृणामिति च विदितं शुद्धसमये ॥ अनिष्टारिष्टानां क्षितिरनुनवेयुर्बहुमुदः, दि० ॥ ३ ।। सुरा सेंद्राः सर्वे For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ सकल जिनचंद्रप्रमुदिता, स्तथाच ज्योतिष्काखिलभवननाथाः समुदिताः॥ तपो यत्कर्तृणा विदधति सुखं विस्मित हृदः, क्षितौ०॥४॥ इति ॥ ॥ अथ दीपमालिका स्तुति ॥ ॥ पापायां पुरिचारुषष्ठतपसा पर्यंकपयाँसनः, क्षमा पालप्रभुहस्तपालविपुलश्रीशुक्लशालामनु ॥ गोसे कार्तिकदर्शनानकरण तुर्यारकांते शुभे, स्वातौ यः शिवमाप पापरहितं संस्तौमि वीरप्रभुम् ॥ १॥ यङ्ग र्भागमनोद्भवव्रतवरज्ञानाक्षराप्तिक्षणे, संभूयाशु सुपर्वसंततिरहो चके महस्तत् क्षणात् ॥श्रीमन्नाभिभवादिवीरचरमास्ते श्रीजिनाधीश्वराः, संघायानघचेतसे वि. दधतां श्रेयांस्यनेनांसि च ॥२॥ अर्थात्पूर्वमिदं जगाद जिनपः श्रीवर्द्धमानाभिध, स्तत्पश्चाद्गणनायका विरचयांचकृतरां सुत्रतः॥ श्रीमत्तीर्थसमर्थनैकसमये सम्यगदृशां भूस्पृशां, भूयाद्भावुककारकप्रवचनं चेतश्चमकारि यत् ॥३॥ श्रीतीर्थाधिप तीर्थभावनपरा सिद्धायिका देवता,चंचच्चक्रधरा सुरासुरनता पायादपायादसौ ॥ अर्हन् श्रीजिनचंगीस्सुमतिनो भव्यात्मनः प्राणिनौ, याचक्रेऽवमकष्टहस्तिनिधने शार्दूलविक्रीडितं ॥४॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0-1-0 - जाहेर खबर.. अमारी पासेथी नीचेनां गुजराती तथा शास्त्री पुस्तको मळशे. पंचतिक्रमण ( नव स्मरण तथा जीव विचारादि चार प्रकरणोना अर्थ साथे.) जेनी दस आवृत्तिओ खपी जवाथी हालमांज अगीआरमा आवृत्ति बहार पाडवामां आवी छे.. की.१-८-० देवसोराइ प्रतिक्रमण अर्थ साथे पाक पुंटु -8-0 जीवविचारादि चार प्रकरण ,, -6-0 सामायकः सूत्र अर्थ साथे पूजा संग्रह पांच भाग मेगा प्राचीन स्तवन मंद्रह गजराती 1-0-0 स्तोत्र संग्रह जैनवार्षिकर्मनुस्तक आवनि जी. 2-0-0 देवसीराइ शास्त्री मूल माटा अक्षर का. गुजराती मूल की. रत्नाकर पच्चीसी 0-2-0 नव्वाणु प्रकारनी पूजा अर्थ साशे दीवाली कल्प भाषांतर आगमना छुटा बोल नधस्मरण स्तोत्रो सहित पाकीट साइश 0-4-0 ते सिवाय सघळी जातना जैनधर्मना पुस्तको तथा भीमशी माणेक वीगेरेना पुस्तको पण अगारो पासेयो मळशे. मळवार्नु ठेकाणु मास्तर उमेदचंद रायचंद. पांजरापोळ अमदावाद. 0-4-0 KARA 3-8 0-6-0 For Private And Personal Use Only