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( ६३ ) इसी मत पर अपनी मान्यता की मुहर लगाई है । वस्तुतः इस मत से किसी आचार्य का विरोध नहीं है, सभी ने इसे पूर्णरूपेण स्वीकार किया है । सम्प्रति दृष्टि के विचार में यही मत प्रचलित भी है । इसके अनुसार मंगल, गुरु और शनि तीन-तीन स्थानों को तथा शेष ग्रह एकमात्र सप्तम स्थान को देखते हैं। मूलतः यह मत महर्षि पाराशर का है।'
दृष्टि का अर्थ देखना एवं ध्यान देना दोनों ही हैं । दृष्टि एवं प्रकाश रश्मि सरल रेखाकार धरातल में चलती है। सरल रेखा १८० अंश का कोण बनाती हुई चलती है । अतः दर्शक
और दृश्य के मध्य १८० अंश या छःराशि का अन्तर होना सिद्ध होता है। चूंकि छः राशि के अन्तर पर सप्तम भाव होता है। अतः ग्रहों की अपने स्थान से सातवें स्थान पर दृष्टि पड़ना स्वाभाविक है । सप्तम स्थान पर दृष्टि पड़ने के सम्बन्ध में कुछ विद्वान् एक और रोचक तर्क देते हैं। उनका कथन है कि सप्तम स्थान स्त्री-स्थान है या स्त्री की कुण्डली में पति-स्थान है। स्त्री-पुरूष का एक-दूसरे के प्रति आकर्षण प्रकृति का नियम है अतः स्त्री के प्रति विशेष आकर्षण होने के कारण सभी ग्रह सप्तम स्थान को देखते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति का अपने कर्तव्य की ओर ध्यान या अवधान
१. पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनिजीवकुजापुनः । विशेषतस्त्रिदशत्रिकोणश्चतुरष्टमान् ॥
लघुपारा अ० १ श्लो० ४ २. दृष्टिसूत्रं किरणसूत्रं वा सरलमार्गेण ब्रजति ।
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