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( ८३ ) भाष्य : श्लोक ७२-७४ में लग्नेश और कार्येश का योग तथा इन पर चन्द्रमा की दृष्टि होने से कार्यसिद्धिदायक राजयोगों का विचार किया गया है। यहां लाभ सम्बन्धी प्रश्न में इसी तथ्य के आधार पर लाभ योग का विवेचन किया जा रहा है।
लग्नेश प्रश्नकर्ता का प्रतिनिधि होने के कारण लाभ लेने वाला है तथा लाभेश लाभ भाव का प्रतिनिधि होने के कारण लाभ देने वाला ग्रह कहा गया है। लाभ सम्बन्धी प्रश्न में यह कार्यभाव का प्रतिनिधि होने के कारण कार्येश भी है। अतः लग्नेश के साथ लाभेश (कार्येश) का योग होने पर तथा लाभभाव (कार्यभाव) पर चन्द्रमा की दृष्टि होने पर अवश्य लाभ होने का योग बनेगा।
लग्नेश एवं लाभेश के योग का अभिप्राय इन दोनों में स्थान-सम्बन्ध या युति-सम्बन्ध होने से है। यह सम्बन्ध ३ स्थितियों में बन सकता है : १. यदि लग्नेश लाभ स्थान में
और लाभेश लग्न में स्थित हो, २. लग्नेश और लाभेश दोनों लाभ स्थान में स्थित हों अथवा ३. लग्नेश और लाभेश दोनों लग्न में स्थित हों। इन तीन प्रकार के योगों में किसी एक प्रकार का योग लग्नेश और लाभेश में बनता हो तथा चन्द्रमा का लाभ स्थान से दृष्टि सम्बन्ध हो तो पूर्ण लाभ मानना चाहिए। दैवज्ञ श्री रामकृष्ण ने भी अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रश्न चण्डेश्वर में ऐसा ही विवेचन किया है। ___ समस्त योगों में चन्द्रमा की दृष्टि का विशेष महत्त्व है। क्योंकि चन्द्रमा कार्यसिद्धि का बीज है। यही व्यक्ति के मनोबल और मनोयोग का भी परिचायक है । अतः इसकी दृष्टि के बिना सभी योग निष्फल हो जाते हैं।
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