________________
भ्रम विध्वंसनम् ।
आयुषो बांधतो । सम्यग्दृष्टि हुवे तो मनुष्य मरी मनुष्य हुवे नहीं। भगवती शतक ३ उद्देश्य १ कह्यो–सम्यग्दृष्टि मनुष्य तिर्यञ्च एक वैमानिक टाल और आयुषो बांधे नहीं अने इण सुमुखे मनुष्य नो आयुषो बांध्यो। ते भणी ए प्रथम गुण ठाणे हुन्तो ते दान ने-भगवन्त शुद्ध कह्यो छै। दातार शुद्ध, ते सुमुख ना तीन करण अनैं मन वचन कायाना ३ योग शुद्ध कह्या तो तिण ने अशुद्ध किम कहीजे ए करणी आशा बाहिरे किम कहीजे । ए शुद्ध करणी आज्ञा बाहिरे कहे ते आज्ञा बाहिरे जाणवा। केइ एक अज्ञानी कहै सुमुख गाथापति साधु ने देखतां सम्यग्दृष्टि पामी । ते सम्पग्दृष्टि सूं परीत संसार कियो। ते सम्यग्दृष्टि अन्तमुहूर्त में वमीने मनुष्य नो आयुषो बांध्यो । इम अयुक्ति लगावे ते एकान्त झूठ रा बोलण हार छै। इहां तो सम्यग्दृष्टि नो नाम कांइ चाल्यो नहि । इहां तो पाधरो कह्यो। सुपात्र दाने करी परीत संसार करी. मनुष्य नो आयुषो बाध्यो। पिण इम न कह्यो सम्यग्दृष्टि करी परीत संसार करि पछे सम्यग्दृष्टि वमी ने मनुष्य नो आयुषो वांध्यो। एतो मन सू गाला रा गोला चलाधै छै। सूत्र में तो सम्यग्दृष्टि रो नाम पिण चाल्यो नहिं तो पिण भारी कर्मा आपरा मन सूं इज खोरा मतरी टेक सूं सम्यग्दृष्टि 'पमावै अने वली वमा छ। ते न्यायवादी हलुककर्मी तो माने नहीं एतो प्रत्यक्ष उघाड़ो झट छै। ते उत्तम तो न माने । ए तो सुमुखे शुद्ध दाने करि परीत संसार करी मनुष्य नो आयुषो बांध्यों ते करणी शुद्ध छै आज्ञा माहि छै। अशुद्ध करणी सूं तो परीत संसार हुवे नहीं । अशुद्ध करणी सूं तो संसार बधे छै। साहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २ बोल सम्पूर्ण ।
वली मेधकुमार रो जीव पाछिले भवे हाथी, सूसला री दया पाली परीतसंसार मिथ्यात्वी थके. कियो । ते पाठ लिखिये हैं।
___तएणं तुम मेहा ! ताए पाणाणुकंपयाऐ ४ संसार परित्तीकए मणुस्साउए निवद्धे ।
(शाता अध्ययन १)