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भ्रम विध्वंसनम् ।
ते जीब ना परिणाम ते माटे जीव परिणामी छै ।
द्रव्य वेद मोहनी री प्रकृति ते
तो
।
पुद्गल ਡੈ । ते जीव परिणामी में नहीं ॥१०॥ इहां तो गति परिणामी ते भावे गति में जीव कही. भाव इन्द्रिय भाव कषाय, भाव योग. भाव वेद. ए सर्व जीव ना परिणाम छे । प कषाय परिणामी ते कषाय आश्रव छै । योग परिणामी ते योग आश्रव छै । ते माटे काय आश्रव. योग आश्रव. ते जीव छै । इहां कोई कहे भाव कषाय भाव योग तो इहां नहीं. समचे कषाय परिणामी, योग परिणामी, कह्या छै । इम कहे तेहनों उत्तर - - इहाँ तो लेश्या पिण समचे कही छै । ए द्रव्य लेश्या छै के भाव लेश्या छै द्रव्य लेश्या तो पुद्गल अष्टस्पर्शी भगवती श० १२ उ० ५ कही छै । ते तो जीव परिणामी में आवे नहीं । ते भणी ए भाव लेश्या छै । वली गति इन्द्रिय वेद परिणामी ए पिण समचे कह्या - पिण द्रव्य गति. द्रव्य इन्द्रिय द्रव्य वेद. तो पुद्गल छै, ते पिण जीव परिणामी नहीं । तिम कषाय परिणामी, योग : परिणामी कह्या ते भाव कषाय, अने भाव योग छै । अनें कषाय परिणामी योग परिणामी नें अजीब कहे तो तिणरे लेखे उपयोग परिणामी ज्ञान परिणामी दर्शन परिणामी, चारित्र परिणामी, पिण अजीव कहिणा । अनें योग. उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, परिणामी नें जीव कहे तो कषाय परिणामी योग परिणामी, नें पिण जीव कहिणा । श्री तीर्थङ्करे तो ए दसूंइ जीव परिणामी का | ते माटे ए दसूं जीव है । तथा वली अजीव परिणामी रा दश भेदा में वर्ण, गन्ध रस. स्पर्श. परिणामी कद्या. त्याने अजीव कहे तो काय परिणामी, योग परिणामी, नें जीव परिणामी कला, त्यांत जीव कहिणा । अनें जीव परिणामी ने जीवन कहे तो तिरे लेखे अजीव परिणामी नें अजीव न कहिणा । ए तो प्रत्यक्ष जीव परिणामी १० भेद जीव छै । इण न्याय कषाय आश्रव. योग आश्रव ने जीव कही जे । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ६ बोल सम्पूर्ण |
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तथा भगवती श० २२ ३० १० आठ आत्मा कही । तिहां पिण कवाय आत्मा. योग आत्मा. कही है। ते पाठ लिखिये छै ।