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अनुकंपाऽधिकार।
अनुकम्पाइज छै, सरीखो छै' पिण अनेरो नहीं। तिवारे कोई कहे ए करुणा २ तो सर्व खोटी छै। जिम कलुण रस कह्यो ते सावध छै तिम करुणा पिण सावध छ। तेहनों उत्तर-साधु ने शरीरे मर्दन करे तिहाँ पिण "कलुण पड़ियाए" कहो तो ए करुणा ने स्यूं कहीजे। तिहां टीकाकार पिण इम कह्यो। "कारुण्ये न भक्तयाया" करुणा ने भावे करी तथा भक्ति करी इम कयो। तो ए करुणा पिण भाज्ञा वारे तथा ए भक्ति पिण आज्ञा बाहिरे छ। तेहनी साधु आज्ञा न देव ते माटे। अनें करुणा में एकान्त खोटो कहे तिण रे लेखे साधु शरीरे साता करे तेह करुणा ईकरी तिण में पिण धर्म न कहिणो। अने जे धर्म कहे तो तिण रे लेखे इज “कलुण पड़ियाए" पाठ कह्यो। ते कलुण रस न हुवे। करुणा नाम अनुकम्पा नो थयो। तथा प्रश्नव्याकरण अ० १ हिंसा में "निकलुणों" ते करुणा रहित कही छै। जे करुणा ने एकान्त खोटी इज कहे तो हिंसा ने करुणा रहित क्यूं कही। अनें जिणऋषि रेणा देवी रे साहमो जोयो ते पिण रेणा देवी नी करुणाई करी। ए करुणा सावध छै । ए करुणा अनुकम्पा सावध निरवद्य जुदी छै। ते माटे बस जीव नी करुणा अनुकम्पा करी साधु बंधन बांधे छोडे तथा बांधता छोड़ता ने अनुमोद्यां प्रायश्चित्त कह्यो। ते पिण :अनुकम्पा सावध छै। ते माटे तेहनों प्रायश्चित्त को छै । निरवद्य नों तो प्रायश्चित्त आवे नहीं। साहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ३२ बोल सम्पूर्ण ।
तथा वली अनुकम्पा तो घणे ठिकाणे कही छै। जिहां वीतराग देव आज्ञा देवे से निरवद्य छ। अनें आज्ञा न देवे ते सावध छै। ते अनुकम्पा ओलखवा ने सूत्र पाठ कहे छै।
ततेणं से हरिण गमेसी देवो सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्टयाए विणिहाय मावणे दारए करयल संपुल