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वैयावृत्ति-अधिकारः।
कहिता जावे छै। वली इम पिण कहे . तिण गृहस्थ में धर्म हुयो। देखो धर्म पिण कहिता जावे, तिण धर्म री भगवान री पिण आज्ञा नहीं। तिण धर्म ने सरावे पिण नहीं इम पिण कहिता जाय । जाव सगलाई बोल पाछे कह्या ते कहिता पिण जावे । अनें धर्म पिण कहिता जावे। त्यांने इम पूछिये -थे धर्म पिण कहो छौ, भगवन्त री आज्ञा पिण न कहो छो, तो आ किण रो सिखायो धर्म है। ओ किसो धर्म छै। धर्म तो भगवन्ते बे प्रकार नों कह्यो। श्रुत धर्म. अने चारित्र धर्म. तिण धर्म री तो जिन आज्ञा छै। वली दोय धर्म कमा छै। गृहस्थ रो धर्म साधु रो धर्म, तिण री पिण जिन आज्ञा छै। वली धर्म रा २ भेद कह्या छ । संबर धर्म. निर्जरा धर्म। सम्बर तो आवता कर्मा ने रोके, निर्जरा आगला कर्मा ने खपाये। तिण धर्म रो पिग जिन आशा छै। सम्बर धर्म रा २० भेद छ। त्या वीसां री जिन आज्ञा छ। निर्जरा धर्म रा १२ भेद छै। त्यां वाराई भेदारी जिन आज्ञा छै। वली सम्बर निर्जरा रा ४ भेद किया शान. दर्शन. चारित्र. तप. ए च्यारुइ मोक्ष रा मार्ग छै। त्यां में तो जिन आज्ञा छै। इतरा घोलों में जिन सरावे छै। अने जे आजाण कहे जिन आज्ञा न दे शिण धर्म छ। त्यां ने फेर पूछी जे, ओ किमो धर्म छै। तिग धर्म रो नाम बतायो। जव नाम बतावा समर्थ नहीं तव झूठ बोली ने गाला रा गोला चलावी कहे- साधु रो कल्प नहीं है। तिण सं आज्ञा न देवे गिण धर्म छै। तिण ऊपर झूठ बोली में कुहेतु लगावे रिग डाहा तो जिन माज्ञा वाहिरे धर्म न मानें । अमें गृहस्थ ने धर्म छ। पिण म्हे आज्ञा नहीं द्यां छो ते म्हारे आज्ञा देण से कल्प नहीं छै। तिण सूं आज्ञा नहीं द्यां छां, इम कह तिण ने इम कहीजे। धर्म करण वाला ने धर्म हुवे तो धर्म री आज्ञा देणशाला में पाप किम होसी। अनें धर्म री आज्ञा देणवाला ने पाप होसी तो करणवाला ने धर्म किण विधि होसी। देखों विकला री श्रद्धा धर्म करण री आज्ञा देण रो कल्प नहीं इम कहे छै। पिण केवली परूया धर्म री आज्ञा देण रो तो कल्प छै। पाषंडी परूयो सावध धर्म निण री आज्ञा देण रो काल्प नहीं। निरवद्य धर्म री आज्ञा देण रो कल्प नहीं, आ बात तो मिले नहीं । धर्म री आशा न दवे ते तो महा अयोग्य धर्म छै। जिण धर्म री देवगुरु आज्ञा न दे तिण धर्म में भलियार कदेई नहीं छै। देवगुरु सर्व सायद्य योग रा त्याग क्रिया जिण दिन माठो २ सर्व छाड्यो छ। तिण छांड्या री आज्ञा पिण दे नहीं । ते विविध