Book Title: Bhedvigyan Ka Yatharth Prayog Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय श्री नेमीचन्दजी पाटनी द्वारा लिखित उनकी यह लघु कृति भेदविज्ञान का यथार्थ प्रयोग प्रकाशित करते हुए हमें अतीव प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। जैन समाज के जाने-पहचाने वयोवृद्ध विद्वान श्री पाटनी जी जहाँ एक ओर राष्ट्रीय स्तर की बड़ी-बड़ी संस्थाओं के कुशल संचालन में सिद्धहस्त हैं, वहीं आप जिनवाणी का स्वयं रसपान करने और कराने की भावना से भी ओतप्रोत रहते हैं। . . ऐसे महान व्यक्तित्व विरले ही देखने का मिलेंगे, जिन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया है, पाटनी जी उनमें अग्रणी हैं। जिस उम्र में सारा जगत अपने उद्योग-धंधों को आगे बढ़ाने में दिन-रात एक करते देखे जाते हैं, उस उम्र में आदरणीय पाटनी जी पूज्य श्री कानजी स्वामी के द्वारा प्रतिपादित तत्त्वज्ञान से प्रभावित होकर उस ज्ञान को - जन-जन तक पहुँचाने हेतु घर-परिवार की ओर से अपना लक्ष्य हटाकर उद्योग-धंधों की परवाह न करके पूज्य श्री कानजी स्वामी के मिशन में सम्मिलित हो गए और अल्प समय में अपने कुशल नेतृत्व द्वारा वहाँ महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया पाटनी जी की तत्त्वज्ञान के प्रति समर्पण की भावना बढ़ती चली गई। सन् १९६४ में स्व. सेठ पूरनचंदजी गोदिका द्वारा जयपुर में श्री टोडरमल स्मारक भवन की नींव रखी गई. तभी से आप पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के महामंत्री हैं। श्री टोडरमल स्मारक भवन का वह वट बीज, जो आज एक महान वट वृक्ष के रूप में पल्लवित हो रहा है, उसमें डॉ. भारिल्ल के अतिरिक्त पाटनी जी का ही सर्वाधिक योगदान है। प्रस्तुत प्रकाशन के पूर्व श्री पाटनी जी की और भी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 'सुखी होने का उपाय' भाग-१ से ८ तक भी हैं जो आध्यात्मिक तलस्पर्शी ज्ञान के कोश हैं। यद्यपि हिन्दी भाषा साहित्य के सौन्दर्य की दृष्टि से उक्त पुस्तकें भले खरी न उतरें परन्तु भावों की दृष्टि से जैनदर्शन के मर्म को समझने/समझाने में ये पुस्तकें पूर्ण समर्थ हैं। प्रस्तुत प्रकाशन 'भेद-विज्ञान का यथार्थ प्रयोग' पढ़कर आप सभी भेद-विज्ञान का यथार्थ स्वरूप समझें और अनन्त सुखी हों, इसी भावना के साथ - - मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्टPage Navigation
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