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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उरःक्षत चतुर्थों भागः (१३) उरःक्षताधिकारः रस-प्रकरणम् कषाय-प्रकरणम्. ५९०० रोहिषादि काथः उरःक्षत सम्बन्धी रक्त ष्ठीवन ६०८५ रसराजः उरःक्षत नाशक, काम चूर्ण-प्रकरणम् ६६३६ लाक्षादि चूर्णम् उरक्षित, रक्तवमन वर्द्धक (१४) कर्णरोगाधिकारः कपाय-प्रकरणम् ६७८१ वरुणादि तैलम् पूतिकर्ण रोग ५८५९ रसोनरस:- ___ कर्ण पीड़ा पर ६७८३ वंशावलेखादि,, कर्णशूल स्नुही रसश्च सरल योग ६८०५ विषगर्भ तैलम् दुःसाध्य कर्ण शूलको ६२०५ लशुनादिस्वरसः कर्णशूल शीघ्र नष्ट करता है। ६८१९ वृहत्किङ्किणी पूतिकर्ण, कर्णस्राव, घृत-प्रकरणम् तैलम् कर्णनाद, कानकी ५७९१ यष्टिमधुकादि पित्तज कर्णशूल खुजली, कर्ण शोथ, भयंकर वधिरता घृतम् लेप-प्रकरणम् ५४१५ मुशल्यादि लेपः कर्णपाली वर्द्धक - तैलप्रकरणम् ५८०३ यष्टयादि तैलम् कर्णशूल, दाह रस-प्रकरणम् ६२७८ लघुक्षार , बधिरता, कर्णशूल, ७०७९ विषयोगः कर्णस्राव, शूल और कर्णकृमि कर्णस्राव कण्डूको शीघ्र नष्ट ६२८४ लशुनाद्यं ,, वधिरता करता है। ६२९१ लाङ्गल्याद्य, कर्णस्राव, कर्णकृमि, मिश्र-प्रकरणम् और कानके दुष्ट नाड़ी ५७११ मूत्र योगः कर्णशूल ब्राको शीघ्र नष्ट ६१७८ रसाञ्जनादि स्रावयुक्त पुराना करता है। योगः पूति-कर्ण रोग For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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