Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी-विलास क्षमतावाला मृग कहीं साधारण पुष्पोंकी गन्ध सहन कर सकता है ?' यही नहीं, भामिनीविलासका सारा प्रास्ताविक विलास पण्डितराजकी दर्पोक्तियोंसे भरा हुआ है । भट्टोजिदीक्षित एवं अप्ययदीक्षितके लिए तो इन्होंने कहीं-कहीं शिष्टाचारकी सीमा भी लांघ डाली है। इन दोनों मूर्धन्य विद्वानोंके ग्रंथोंका प्रबल खण्डन करनेसे ही इन्हें शान्ति नहीं मिली, स्थान-स्थानपर 'गुरुद्रोही' और 'रुय्यकके पीछे आँख मंदकर चलने वाला' आदि विशेषण इन्होंने दे डाले हैं। दिल्लीश्वरकी छत्रछायामें जिस असीम ऐश्वर्यका इन्होंने उपभोग किया है उसके सामने दूसरे राजाओं द्वारा दिया हुआ सम्मान इन्हें कुछ भी प्रतीत नहीं होता। मम्मट तथा मृतीकामध्यनिर्यन्मसृणरसझरीमाधुरीभाग्यभाजां वाचामाचार्यतायाः पदमनुभवितुं कोऽस्ति धन्यो मदन्यः ॥ (शान्तविलास २६ ) तथा दिगन्ते श्रूयन्ते मदमलिनगण्डाः करटिनः करिण्यः कारुण्यास्पदमसमशीलाः खलु मृगाः । इदानीं लोकेस्मिन्ननुपमशिखानां पुनरयं नखानां पाण्डित्यं प्रकटयतु कस्मिन्मृगपतिः। . (प्रास्ता० वि० १) १. निर्माय नूतनमुदाहरणानुरूपं काव्यं मयात्र निहितं न परस्य किंचित् । कि सेव्यते सुमनसां मनसापि गन्धः कस्तूरिकाजननशक्तिभृता मृगेण ॥ ( रसगंगाधर १।३) २. दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा मनोरथान् पूरयितुं समर्थः । अन्यैर्नृपालः परिदीयमानं शाकाय वा स्यात् लवणाय वा स्यात् ।। For Private and Personal Use Only

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