Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे = मधुपस्य । इयम् = एषा । पुष्पान्तरसेवा = परागलोभेनान्यत्पुष्पगमनम् । महतो विडम्बना=अतीवोपहासविषया खलु ।
भावार्थ-कल्पवृक्षोंके कुसुमोंकी अत्युत्कृष्ट सुगन्धका उपभोग करने से जिसकी सभी वासनाएँ तृप्त हो जानी चाहिये, ऐसा भ्रमर यदि दूसरेपुष्पसे रस लेना चाहे तो यह उसकी बिडम्बना ही है ।
टिप्पणी-महानसे महान् ऐश्वर्यका उपभोग करनेपर भी किसीकी वासना शान्त न हो और साधारण वस्तु के लिए ललचे, तो वह निन्दाका ही पात्र है । इसी भावको इस अन्योक्तिद्वारा व्यक्त किया है। यों तो देवता ही सबकी कामना पूर्ण करनेमें समर्थ हैं, फिर कल्पवृक्ष तो देवताओंकी भी कामनाएं पूरी करते हैं। उनके पुष्परसका यथेष्ट उपभोग करने पर भी यदि भ्रमर दूसरे पुष्पों की आकांक्षा करे तो उसे क्या कहा जाय । इसी भावको यद्यपि २० वें श्लोकमें कहा गया है; किन्तु वहाँ भ्रमर धन्योऽसि कहकर व्याजस्तुति की गई है और यहाँ स्पष्ट ही महती विडम्बना कहकर उसका तिरस्कार किया है, अतः पुनरुक्ति नहीं है । केवल अन्योक्ति ही मुख्य अलंकार है । आर्या छन्द है ॥२६॥ गुणज्ञ गुणोंको पहचानता हैपृष्टाः खलु परपुष्टाः परितो दृष्टाश्च विटपिनः सर्वे । माकन्द न प्रपेदे मधुपेन तवोपमा जगति ॥२७॥
अन्वय-माकन्द ! मधुपेन, परपुष्टाः, पृष्टाः, खलु, परितः, सर्वे, विटपिनश्च, दृष्टाः, जगति, तव उपमा न प्रपेदे ।
शब्दार्थ-माकन्द = हे आम्रवृक्ष | मधुपेन = भौंरेने । परपुष्टाः = कोयलोंसे । पृष्टाः = पूछा। खलु = निश्चय ही। परितः = चारों ओर । सर्वे विटपिनः च = सब वृक्षोंको भी । दृष्टाः देखा । जगति = संसारमें । तव = तुम्हारे । उपमा = सादृश्यको । न प्रपेदे=( वह ) नहीं पा सका।
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