Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे टिप्पणी-आपत्तिके समयकी थोड़ी सी सहायतासे भी जो बल मिलता है, सम्पत्तिकालकी बहुत बड़ी सहायता भी उसकी बराबरी नहीं कर सकती। इसी भावको कविने इस अन्योक्ति द्वारा व्यक्त किया है। साथ ही चारों ओरसे तिरस्कृत कविद्वारा अपने आश्रयदाताको स्तुति भी व्यक्त होती है।
ग्रीष्ममें मालीके थोड़े जलसे भी वृक्षका जो पोषण हुआ वह वर्षाकालीन मेघके अत्यन्त जलसे भी न हो सका। यह प्रतीप अलंकार है। मन्दाक्रान्ता छन्द है। "मन्दाक्रान्ता जलधिषडगैम्भौं नतौ ताद्गुरू चेत्" ( वृत्त० ) । वर्षाकाल या उससे सम्बद्ध वर्णनके लिये मन्दाक्रान्ता छन्द उपयुक्त होता है।
प्रावृट-प्रवास-उसने मन्दाक्रान्तातिराजते ।" (क्षेमेन्द्र) ॥२८॥ 'जाको राखे साइयाँ'आरामाधिपतिर्विवेकविकलो नूनं रसा नीरसा
वात्याभिः परुषीकृता दशदिशश्चण्डातपो दुःसहः । एवं धन्वनि चम्पकस्य सकले संहारहेतावपि त्वं सिञ्चन्नमृतेन तोयद कुतोप्याविष्कृतो वेधसा ॥२६॥
अन्वय-आरामाधिपतिः, विवेकविकलः, नूनं, रसा, नीरसा, दशदिशः, वात्याभिः, परुषीकृताः, चण्डातपः, दुःसहः, एवं, धन्वनि, चम्पकस्य, सकले, संहारहेतौ, अपि, तोयद, वेधसा, अमृतेन, सिञ्चन्, त्वं, कुतः, अपि, आविष्कृतः ।
शब्दार्थ-आरामाधिपतिः = बगीचे का रक्षक ( माली )। विवेकविकलः विवेकसे शून्य ( हो गया)। नूनं = निश्चय ही, रसा = पृथ्वी, नीरसा = रसहीन ( हो गई )। दशदिशः = दसों दिशाएँ । वात्याभिः = बवण्डरोंसे । परुषीकृताः = रूखे कर दिये गये। चण्डातपः = प्रचण्ड धूप । दुःसहः = असह्य ( हो गई )। एवं = इस प्रकार । धन्वनि = मरुदेशमें ।
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