Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २ : उ. १० : सू. १२५,१२७
भगवती सूत्र की अपेक्षा से, भाव की अपेक्षा से और गुण की अपेक्षा से। द्रव्य की अपेक्षा से धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। क्षेत्र की अपेक्षा से लोक-प्रमाण मात्र है। काल की अपेक्षा से कभी नहीं था ऐसा नहीं है, कभी नहीं है-ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा ऐसा नहीं है-वह अतीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा–अतः वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। भाव की अपेक्षा से अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। गुण की अपेक्षा से गमन-गुण-गति में उदासीन सहायक है। १२६. भन्ते! अधर्मास्तिकाय में कितने वर्ण हैं? कितने गन्ध हैं? कितने रस हैं? कितने स्पर्श
गौतम ! वह अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श; अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। वह संक्षेप में पाच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल की अपेक्षा से, भाव की अपेक्षा से और गुण की अपेक्षा से। द्रव्य की अपेक्षा से अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। क्षेत्र की अपेक्षा से लोक-प्रमाण मात्र है। काल की अपेक्षा से कभी नहीं था-ऐसा नही है, कभी नहीं है-ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा-ऐसा नहीं है-वह अतीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा–अतः वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय अव्यय, अवस्थित और नित्य है। भाव की अपेक्षा से अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। गुण की अपेक्षा से स्थान-गुण-स्थिति में उदासीन सहायक है। १२७. भन्ते! आकाशास्तिकाय में कितने वर्ण हैं? कितने गन्ध हैं? कितने रस हैं? कितने स्पर्श
हैं?
गौतम! वह अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श; अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोकालोक का एक अंशभूत द्रव्य है। वह संक्षेप में पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल की अपेक्षा से, भाव की अपेक्षा से और गुण की अपेक्षा से। द्रव्य की अपेक्षा से आकाशास्तिकाय एक द्रव्य है। क्षेत्र की अपेक्षा से लोकालोक-प्रमाण अनन्त है। काल की अपेक्षा से कभी नहीं था ऐसा नही है, कभी नहीं है-ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा-ऐसा नहीं है-वह अतीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा–अतः वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय अव्यय, अवस्थित और नित्य है।
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