Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १० : उ. ५ : सू. ९०-९७ ९०. भंते! ज्योतिषराज ज्योतिषेन्द्र चन्द्र की पृच्छा।
आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे–चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली प्रभंकरा। इस प्रकार जैसे जीवाजीवाभिगम (३/९९८-१०३६) में ज्योतिष्क-उद्देशक की वक्तव्यता। इसी प्रकार सूर्य की चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं-सूर्यप्रभा, आतपा, अर्चिमाली, प्रभंकरा। शेष पूर्ववत् यावत् परिवार की ऋद्धि का उपभोग करते हैं, मैथुन-रूप भोग का नहीं। ९१. भंते! महाग्रह इंगाल के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं-पृच्छा।
आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है। शेष चन्द्र की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-अंगारावतंसक विमान, अंगारक सिंहासन पर, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार विकालक की वक्तव्यता। इसी प्रकार अठासी महाग्रहों की वक्तव्यता यावत् भावकेतु की वक्तव्यता, इतना विशेष है-अवतंसक और सिंहासन सदृश नाम वाले हैं, शेष पूर्ववत्। ९२. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र की पृच्छा।
आर्य! आठ अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे पद्मा, शिवा, शची, अंजू, अमला, अप्सरा, नवमिका, रोहिणी। उनमें प्रत्येक देवी के सोलह-सोलह हजार देवी का परिवार प्रज्ञप्त है। ९३. क्या एक देवी अन्य सोलह हजार देवी-परिवार की विक्रिया करने में समर्थ है? हां, है। इसी प्रकार पूर्व-अपर-सहित एक लाख अट्ठाइस हजार देवियों की वक्तव्यता। यह है
अंतःपुर की वक्तव्यता। ९४. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र सौधर्म-कल्प में, सौधर्मावतंसक विमान में, सुधर्मा सभा में शक्र सिंहासन पर अंतःपुर के साथ दिव्य भोगार्ह भोगों को भोगते हुए विहरण करने में समर्थ हैं? चमर की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-परिवार की मोक-उद्देशक (भ. ३/४) की भांति
वक्तव्यता। ९५. देवराज देवेन्द्र शक्र के लोकपाल महाराज सोम के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं-पृच्छा।
आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रोहिणी, मदना, चित्रा, सोमा। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है। शेष चमर-लोकपाल की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-स्वयंप्रभ विमान, सभा सुधर्मा, सोम सिंहासन। शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् वैश्रमण
की वक्तव्यता, इतना विशेष है-विमान तृतीय शतक (३/२५०-५१) की भांति वक्तव्य है। ९६. भंते! ईशान की पृच्छा।
आर्यो! आठ अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कृष्णा, कृष्णरात्रि, रामा, राम-रक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुंधरा। उनमें प्रत्येक देवी के सोलह-सोलह हजार देवी का परिवार है,
शेष शक्र की भांति वक्तव्यता। ९७. भंते! देवराज देवेन्द्र ईशान के लोकपाल महाराजा सोम के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त है-पृच्छा । आर्य! चार अग्रमहिपियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पृथ्वी, रात्रि, रतनी, विद्युत्। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष शक्र के लोकपाल की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार
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