Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay View full book textPage 7
________________ totiisttttitutekistatitisastituttiiiit जैनग्रन्धरत्नाकर wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww Hart-k-kuttitutikskiticketetitutetitutetaketictiottitutituttitutvanketstatutetik-tituttitutiya अधिक है, इस कारण उनकी मनत्तुटिलिये ही ऐमा किया। जाता है । और इसलिये हम कह मुक्त हैं कि, रक्त सभायें मापानाहित्यकी उन्नतिकलिये नहीं, किंतु एक विशेष मापामाहिपकी उन्नतिकलिये स्थापित हैं । जब तक वाणभट्ट और वाग्भट्ट सरीख उदार हृदययाले उक्त समाओंके सन्य नहीं होंग, तब तक साहित्यकी यथार्थ सेवा करने के उद्देशका पालन कदापि नहीं हो सकता। उक्त सभाओंके अतिरिक्त हिन्दीभाषाक साताहिक मासिकपत्र मी मापासाहित्यकी उन्नति करनेवाले गिन जाते है। परन्तु उनमें जितने प्रसिद्ध पत्र हैं, ये किसी एक धर्मके कट्टर अनुयायी और दूसरों के विरोधी है। अतएव उनके द्वारा भी एक विशेष भाषासाहित्यको उन्नति होती है, सामान्य भाषासाहित्यकी नहीं। यह ठीक है, कि प्रत्येक धर्मके साहित्यकी उन्नति उनी धर्मके अनुयायियोंको करना * चाहिये, और वे ही इसके यथार्थ उत्तरदाता है । परन्तु जिन । पत्रोंकी सृष्टि सर्वसामान्य राष्ट्रको उन्नतिकलिये है, और जो निरन्तर सबको एकदृष्टिसे देखनेकी डींग मारा करते हैं, उनके द्वारा किसी एक समूहकी उन्नतिमें सहायता मिळनके बदले क्षति पहुं चना क्या लटककी बात नहीं है? मूर्खताके कारण जैनियोंका एक ॐ बड़ा समूह ग्रन्थोंके मुद्रित करानेका विरोधी है, इसलिय जैनग्रन्थ प्रथम तो छपते ही नहीं, और यदि कोई जैनी साहस करके किनी तरह छपाता भी है, तो उसका यथार्थ प्रचार नहीं होता । समाचार पत्रोंजी समालोचना ग्रन्यप्रचारणमें एक विशेष कारण है, परन्तु जैनग्रन्थ समालोचनासे सर्वथा बंचित रहते हैं। क्योंकि जैनियोंक जो एक दो पत्र हैं, उनमें तो विरोधियोंकि मयने मुद्रित MARATHI PRE-Entet-t-t-tattutetriot-titutet-tatut-test-Ankrt. i tatiantet.tattattituttinuityPage Navigation
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