Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 11
________________ R जैनग्रन्थरलाकरे krt.tutet-tketrkuttekekot.ketititrkutkukkutkok.kettrkut.kukkukkuttituter प्राकृत, मागधी, शौरसेनी आदि भाषाओंके धर्मग्रन्य इनक साक्षी हैं । देशभाषाओमें ग्रन्थरचनेका प्रारंम हमारे आचायों द्वारा ही हुआ है, यदि ऐसा कहा जावे तो कुछ अत्युक्तिकर न होगा। कर्णाटक भाषाका सबसे प्रथम व्याकरण परममट्टारक श्रीमद्भट्टाकलंकदेवने गीर्वाण भाषामें बनाया है, ऐसा पाश्चात्यपंडितोंका भी मत है । मागधीके अधिकांश व्याकरण जैनियों के ही हैं। भाषामन्योंके वनजानेसे लोगोंकी अभिरुचि फिर बढ़ने लगी और उनके स्वाध्यायसे समाजमें पुनः ज्ञानकी वृद्धि होने लगी। अभी तक यह भलीभांति निश्चय नहीं हुआ है कि, भाषाकायका ३ प्रचार कबसे हुआ ! ज्यों ज्यों शोध होती जाती है, त्यों त्यों भाषाकी प्राचीनता विदित होती जाती है। कहते हैं कि, संवत् । ७७० में अवंतीपुरीके राजा भोजके पिताने पुण्यकवि बन्दीजनको संस्कृतसाहित्य पढाया और फिर पुप्यकविने संस्कृत अलकारोंकी भाषा दोहोंमें रचना की, तवहीसे भाषाकाव्यको जड पड़ी। | इसके पश्चात् नवमी, ग्यारहवीं, वारहवीं, और तेरहवीं श t.tent.titutitutitutet-tatutetat.x.tatestetaketitianttitut-t.titutit-tatt-*-t-trtrintensity चित्तोरगढ़के महाराज खुमानसिंह सोनादियाने संवत ९०० खुमानरायसा नामक अन्यकी नानाछन्दोंमें रचना की। २ संवत् ११२४ से चन्दकवीश्वरने पृथ्वीराजरायसा बनाना प्रारंभ किया और ६९ संडोंमें एकलक्ष लोक प्रमाण अन्य संवत् ११२० से ११४९ तक पृथ्वीराजका चरित्र वर्णन किया। ३ संवत् १२२० में कुमारपालचरित्र नामका एक अन्य महाराज कुमारपालके चरित्रका बनाया गया। कहते हैं कि, इसका स्नानवाला जन था। ४ संपत् १३५७ में शारंगधरकविने हमीररायसा और मी. *रकाव्य बनाया। नरम ममममम

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