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r.tatestatutettituatitiotstetstatutatutotukat.ttttes १० उत्थानिका ।
mmmmmmmmonwe .worm mmmmmamniwan .. * तान्दीमें भापाके चार पांच अन्य निर्मित हुए, परन्तु भाषाकाव्यकी -
यथार्थ उन्नति सोलहवीं शताब्दीमें कही जाती है । इस शताब्दीमें अनेक उत्तमोत्तम ग्रन्थों की रचना हुई है। अन्धपण करनेमे जाना
जाता है कि, जैनियोंके मापासाहित्यने भी इसी शताब्दीमें अच्छी भी उन्नति की है। पंडित रूपचन्दजी, पांडे हेमराजजी, वनारसीदासजी, भैया भगवतीदासजी, भूधरदासजी, द्यानतरायजी आदि श्रेष्ठ कवि भी इसी सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दीमें हुए हैं। इन दो शताब्दियोंके पश्चात् बहुतसे कवि हुए हैं और ग्रन्थोंकी रचना अभी बहुत हुई है, परन्तु उक्त कवियोंके तुल्य न तो कोई कवि
हुए और न कोई ग्रन्थ निर्मापित हुए । सच पूर्वकवियोंके अनुकऔरण करनेवाले हुए ऐसा इतिहासकारोंका मत है।
हम इस विषयमें अभी तक कुछ निश्चय नहीं कर सके हैं कि जैनियोंमें भाषासाहित्यकी नीव कवसे पड़ी और सबसे प्रथम कौन कवि हुआ। और न ऐसा कोई साधन ही दिखता है कि, जिससे आगे निश्चयकर सकेंगे। क्योंकि जैनियोंमें तो इस विषय के शोधनेवाले और आवश्यकता समझनेवाले बहुत कम निकलेंगे और अन्यभाषासाहित्यके विद्वान् वैदिकसाहित्येतर साहित्यको साहित्य ही नहीं ।
समझते । परन्तु यह निश्चय है कि, शोध होने पर जैनभाषासाहित्य । अ किसी प्रकार निम्नश्रेणीका और पश्चात्पद न गिना जावेगा। * जैनधर्मके पालनेवाले विशेषकर राजपूताना, युक्तप्रान्त, मध्य* प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्णाटक प्रान्तमें रहते हैं। हिन्दी, गुजराती, मराठी, और कानडी ये चार भाषायें इन प्रान्तोंकी मुख्य भाषायें हैं । परन्तु इन चार भाषाओं से प्रायः हिंदी ही एक ऐसी भाषा है, जिसमें जैनधर्मके संस्कृत प्राकृतग्रन्थोंका अर्थ है
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