Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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----- વસ્થા શી વોર વઢને જીભ यात्रा की तैयारियां व यात्रा आरम्भ :
हम यात्रा की तैयारियों में लग गये, मैंने अपने धर्मभ्राता श्री रवीन्द्र जैन से कहा, "तुम १० दिन दस की छुट्टी ले लो, हम किसी भी दिन निकल सकते हैं, स्वयं को तैयार रखना ।" एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह उसने मेरे आगे अपना शीश झुका दिया । अव सीट बुक करवाने का काम था, सीट की बुकिंग लुधियाना से होनी थी। सो यह कार्य मेरे धर्मभ्राता श्री रवीन्द्र जैन ने किया । मगध एक्सप्रेस ट्रेन हमारे लिये ठीक थी, वह ट्रेन देहली रात्रि ८.३० वजे चलकर, प्रातः ११ वजे पटना पहुंचती थी । बुकिंग हो गई थी, किन्तु सीट की सूचना अभी नहीं मिली थी । एक दिन किसी कार्यवश हम दोनों देहली गये । वहां से बुकिंग के वारे में पता किया, पहली बार कम्पयूटर पर दुकिंग देखी, हमारे नाम व सीट नंवर नजर आये तो दिल को शांति मिली । इधर सीट कन्फर्म हुई, उधर मेरे धर्मभ्राता की छुट्टी भी मन्जूर हो गई। दोनों कार्य आवश्यक थे । सो वह शुभ घड़ी आ पहुंची जब हम दोनों के माता-पिता के आशीर्वाद व आज्ञा से प्रस्थान किया । मेरे धर्मभ्रांता पहले मंडी गोविन्दगढ़ पहुंचे।
मंडी गोविन्दगढ़ से देहली की ओर प्रस्थान किया । हम कार द्वारा अन्वाला गये, वहां से देहली के लिये ट्रेन मिलनी थी । दोपहर को हम दिल्ली पहुंचे, वहां कुछ छोटे-बड़े काम थे । यात्रा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करना जरूरी था। मैंने इसलिये देहली के प्राचीन दिगम्बर जैन लाल मन्दिर जाना मुनासिव समझा। वहां पहले हमने प्रभु के दर्शन किये । यात्रा की सफलता व शुभ कामना के लिये प्रार्थना मांगी। प्रभु पार्श्वनाथ व माता पद्मावती से आशीर्वाद प्राप्त किया । इस मन्दिर की दुकान से हमने जैनतीर्थ गाईड व नक्शे खरीदे जो यात्रा के लिये अनिवार्य थे ।
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