Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 488
________________ - રામ્યા . વોર વહતે वाराणसी काशी विश्वनाथ के मन्दिर के कारण जगत प्रसिद्ध है। इस की यात्रा जहां भारतीय संस्कृति के खुले दर्शन करवाती है वहीं विभिन्न भाषा के लोगों से मिलाप कराती है। वहां यह नगर जैन, बौद्ध व हिन्दु इतिहास की लाखों गाथाएं लिए हुए है। वाराणसी का वर्णन मैंने पहले भी किया था। यह स्वयं तीथंकर पधारे हैं। तीथंकर सुपार्श्वनाथ, तीर्थकर पार्श्वनाथ, तीर्थकर श्रेयासनाथ, तीर्थकर चन्द्रप्रभु के ४ कल्याणक इस स्थान पर हुए। रवयं श्रमण भगवान महावीर यहां पधारे और लोगों को मुक्ति का मार्ग वताया। अब मैंने अगला स्थान देखने का मन बनाया। वह तीर्थ था अयोध्या नगरी। जैन इतिहास के अनुसार प्रभु ऋपभदेव ने स्वयं इस नगरी का निर्माण किया था। उस जमाने में इस नगरी का नाम विनिता रखा गया। अयोध्या तीर्थ की यात्रा अयोध्या नगरी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण रथान रखती है। यह नगरी सरयु नदी के किनारे स्थित है। यहां जैन धर्म के चार तीथंकरों भगवान ऋषभदेव, भगवान अजीतनाथ, भगवान सूमितनाथा व भगवान अनंतनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवल्य कल्याणक सम्पन्न हुए थे। यह तीर्थ भगवान राम की जन्म भूमि के कारण जगत प्रसिद्ध है। रामायण की अधिकांश घटनाओं का इस नगर से संबंध रहा है। इस नगर ने वहुत उतार चढाव देखे हैं। यहां हिन्दु मन्दिर काफी मात्रा में हैं। यह स्थान रत्नपूरी से २८ किलोमीटर की दूरी पर है। यह श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों मन्दिर हैं। श्वेताम्बर मन्दिर कटरा में स्थित है। जहां मूलनायक भगवान अजीतनाथ की भव्य प्रतिमा है। दिगम्बर 488

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