Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- વારા હી વોર વહો દમ इस तीधं रथल की रात्रि भी अनुपम थी। लगता था कि आकाश से कोई देव विमान धरती पर अभी अभी उतरा है। हम आन्ती में भाग लेने के पश्चात मन्दिरों की यात्रा पर निकल पडे। मन्दिर सभी इसी एक खण्ड में स्थित हैं। अरावली की सुन्दर पहाडी, नाग की तरह वलखाती सड़कें यात्रीयों का ध्यान वरवस खींच लेती हैं।
रात्रि को अपने कमरे में विश्राम के लिए पहुंचे। शांत वातावरण में काई ध्यान योगीयों के लिए यह अच्या स्थल है। आधी रात के बाद हम सो गए। सुवह ४ बजे उटे।
फिर मन्दिर के दर्शन किए। एक पूजा की वोली मैने ली! एक भाई ने विधिवत् पूजा करवाई। फिर राजस्थान के इस ाहर में इस मन्दिर व वाकी मन्दिरों का अवलोकन किया। राजस्थान की लम्बी यात्रा ने मुझे कई अनुभव प्रदान किए हैं। राजरथान जैन इतिहास, कला, संस्कृति व साहित्य की अमूल्य धरोहर है। राजस्थान भारत का वह भाग है जह हर शहर में किला है, किले में जैन मन्दिर है। राजस्थान के इन भागों में जैन साहित्य को पर्याप्त सुरक्षण मिला है।
राजस्थान के इस भाग में सेट भामा शाह, विमलशाह, व धरणीशाह को इस मरुधरा ने जन्म दिया है। हम राणकपूर के मन्दिरों को श्रद्धा से शीश झाका कर वापिस
आ रहे थे। हमारे मन में जहां प्रभु भक्ति का उफान चल रहा था वहीं धरणीशाह सेट की भारतीय संस्कृति को अनमोल देन को भुला पाना मुश्किल है था। वैसे एक स्वप्न साकार होता है, इस स्वप्न को पूरा करने का श्रेय शिल्पी दीपा को जाता है। इस मन्दिर की प्रतिष्टा करने वाले आचार्य सोमप्रभव सूरि जी महाराज महान रहे थे। जिन्होंने अपनी सशक्त प्रेरणा देकर इस भवन जिन मन्दिर का निर्माण कराया। सेट, शिल्पी व धर्म गुरू तीनों की भक्ति
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