Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= आस्था की ओर बढ़ते कदम के हर कदम पर दर्शन होते हैं । इस अविद्या का कारण सरकार की अव्यवस्था है । आजादी के ५० वर्ष बीत जाने पर भी यहां लोग हजारों साल पुरानी परम्परा से वाहर नहीं निकल पाये । गरीवी के साथ-साथ यह अस्पृश्यता, पशुबलि, जात-पात का पालन बड़े जोर शोर से होता है । दोपहर हो चुकी थी, यहां एक जैन मन्दिर होने की सूचना मिली, पर समय कम होने कारण हमने आगे जाने का फैसला किया । बिहार शरीफ की यात्रा के बाद हमने अगले स्टेशन की बस पकड़ी । विहार शरीफ से दो रास्ते दो तीथों को जाते हैं । पहला है पावापुरी, नालन्दा राजगिरि । दूसरा सीधा राजगिर। हमने दूसरा रास्ता चुना क्योंकि वहां से राजगिर नजदीक पड़ता था । दूसरा हम वहां कुछ दिन रुकना चाहते थे । हम बस में सवार हुए तो हमें छोटी सी रेलवे लाईन दिखाई दी । कहते हैं कि कभी अंग्रेजों ने यह लाईनं बिछाई थी, पर आज यह मार्ग बन्द है। इतिहास :
जैन शास्त्रों में यह वर्णित है कि जब अजातशत्रु कोणिक ने राज्य के लिये अपने पिता को काराग्रह में डाल दिया, फिर उसने अपने नाना चेटक के साथ वैशाली का रथ मुशल संग्राम किया । कोणिक के पिता बिम्बसार श्रेणिक थे । सारा परिवार महावीर प्रभु का भक्त था । वैशाली की राजुकमारी महारानी चेलना राजा श्रेणिक की पत्नी थी । यही कोणिक की माता थी । राजा कोणिक मगध का सम्राट और प्रभु महावीर का परम भक्त था । वह बौद्ध धर्म का सम्मान करता था, वह वह जीवन आगम्य से वह बौद्ध धर्म को मानता था । एक दिन कोणिक अपनी माता को प्रणाम करने के लिये महल में आया तो रानी चेलना ने कोणिक का प्रणाम
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