Book Title: Amar Kosh
Author(s): Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 14
________________ [ १३ ] अमरकोषके नाम अन्धकारके नाम के आधारपर । 'अमरकोष', अन्धकारकृत भन्वर्थ (सार्थक ) नाम-करणके 'समाहत्यान्यतन्त्राणि संक्षिप्त प्रतिसंस्कृतैः। सम्पूर्णमुच्यते वगै मलिङ्गानुशासनम्' (१२) तथा अन्य के तीनों काण्डों के अन्त में 'इत्यमरसिंहचौ 'नामलिलानुशासने।। इस वचन के आधारपर 'नामलिङ्गानुशासन' और ग्रन्थमें तीन काण्ड हानेसे 'त्रिकाण्ड' --- तीन नाम हैं। देवभाषाशब्दसंग्रह होने से कोई कोई इसे 'देवकोष' भी कहते हैं। अमरकोषकी टीकाये 'असर कोष'की उपयोगिता ग्रन्थरचनाके बाद अतिप्राचीन विद्वानोंसे लेकर भाधुनिक विद्वानों के द्वारा की गयी उसकी टीकाओं से भी सिद्ध होती है । इसपर प्राचीन विद्वानों की निम्न टीकायें हैं, व्याख्याप्रदीप अच्युतोपाध्याय । २ क्रियाकलाप आशाधर । ३ काशिका काशीनाथ । ४ 'अमरकोषोद्धाटन भट्टक्षीरस्वामी। १. देवराज 'यज्या'ने निघाटुपर भाष्य लिखने में भोज और वीरस्वामीके नाम लिये हैं । भोजकाल ई० सन् १०१८-१०६० है, सी० स्वा० का समय ११ वीं शताब्दीका अन्तिम भाग है। इन्होंने ई० सन् ८८०-९१. कालके राजशेखरका नाम अपनी टीकामें लिया है। 'गणराजमहोदधि में वर्द्धमानने पी० स्वा० का नाम लिया है, जो ई० सन् ११४० में हुए थे। क्षी० स्वा० ने उपाध्याय, गौड़, श्रीभोज, ध्याडि, भागुरि, मालाकार, और कास्य (कात्यायन) आदि कई विद्वानों वचन अपने ग्रन्थमें उद्धृत किये हैं। ये बहुत जगह 'अमरकोषोद्धाटन' नामक 'अमरकोष'की टीकामें ग्रन्थकारके शब्दों का विवेचन भी किये हैं। जैसे-'स्त्री दाराधैर्यद्विशेष्यं. (१२) 'अन्न स्त्री दाराधम्' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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