Book Title: Amar Kosh
Author(s): Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 10
________________ [६] जिसका नाम 'निरुक्त' हुआ। इस बातको भी भगवान् व्यासजी स्वयं स्वीकार करते हैं 'शिपिविष्टेति चाख्यायां होनरोमा च योऽभवत् । तेनाविष्टं तु यस्किश्चिच्छिपिविष्टेति च स्मृतः ॥ 'यास्को मामृषिरण्यग्रोऽने कयज्ञेषु गीतवान् । शिपिविष्ट इति स्माद् गुह्य नामधरो झहम् ॥ स्तुस्वा मा शिपिविष्टेति शास्क ऋषिरुदारधीः । मप्रसादाददो नष्टं निरुत'मधिजग्मिवान् ॥ (महाभारत मोक्षपर्व अध्याय ३४२ श्लो० ६९-७१) 'शिपिविष्ट' शब्दका निर्वचन निरुक्तमें (अध्याय ५ खण्ड ८ पद ३७ ) में मिलता भी है। किन्तु निरुक्तनिर्माता कौन यास्क थे, यह विषयान्तर होने से इसकी विवेचनाको यहीं छोड़कर अब प्रकृतानुसरण करता हूँ। लौकिक-शब्दकोषकी रचना इसप्रकार और भी अधिक तपोबलके हास के साथ-साथ बुद्धिविकाशका भी हास होनेसे लौकिक शब्दोंका अर्थज्ञान भी जब लोगों को अतिदुरूह एवं अज्ञेय होने लगा, तब लौकिक शब्दकोषोंकी रचना हुई, किन्तु इनमें सर्वप्रथम किस कोषको रचना हुई, यह पता नहीं चलता; क्योंकि 'शब्दकल्पद्रुमकोष में ही २९ कोषोंके नाम भाये हैं । 'साहसाङ्क, कास्यायन' इत्यादि भनेक कोष ऐसे हैं, जो अब अलभ्य है, किन्तु संगृहीत प्राचीन कोषों में उनके वचन संस्कृत. साहिस्योपासकोंके उपजीम्य हो रहे हैं। इसीतरह 'उत्पलिनी' भादि भो अनेक कोषोंके वचन 'मेदिनीकोष में संगृहीत जान पड़ते हैं, किन्तु इसप्रकार अनेका. नेक कोषों के रहते हुए भी इस 'अमरकोषका ही सर्वाधिक प्रचार हुआ, इसमें ग्रन्थकारकी रचना-शैली ही प्रधान हेतु है। कुछ कोषों में केवल नामार्थक शब्दोंका हो संग्रह पाया जाता है तो कुछ कोषों में केवल साधारण शब्दोंका ही, इसपर भी इन साधारण-शब्दार्थवाचक कोषों में लिङ्गादिका विवरण नहीं है और कुछ तो ऐसे कोष हैं, जिनमें साधारण साधारण सर्वविध शब्दों को भरकर उन्हें अस्यन्त दुरूह कर दिया गया है। ऐसा कोई भी कोष नहीं, जो प्रसिद्धसम, साधारण और नानार्थक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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