Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आग्रेय गण का संस्थापक राजा अग्रसेन
के जीवन में भी इसी तरह आकस्मिक परिवर्तन आया था। बौद्ध धर्म के इतिहास पर उसका बड़ा भारी प्रभाव हुवा। राजा अग्रसेन के इस विचार-परिवर्तन से भी वैश्य-जाति के भविष्य पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा । अग्रवाल लोग अाज तक अहिंसा-व्रत का पालन करते हैं, मांस नहीं खाते; दया-धर्म को मानते हैं, यह सब राजा अग्रसेन के विचारपरिवर्तन का ही परिणाम है। ___ अठारह या साढ़े सत्तरह यज्ञों को पूर्ण कर राजा अग्रसेन कुछ समय तक और राज्य करते रहे । आगे “अग्रवैश्य बंशानुकीर्तनम्" में लिखा है
एक दिन जब राजा अग्रसेन पूजा-पाठ में लगे धे, देवी महालक्ष्मी प्रकट हुई । उसने उन्हें संबोधन करके कहा, 'अब तुम बूढ़े हो गए हो । धर्म का अनुसरण कर अब तुम्हें अपना राज्य अपने पुत्र को सुपुर्द करना चाहिए ।' अग्रसेन ने यही किया। अपने बड़े लड़के विभु को राजगद्दी पर बिठाकर वह स्वयं अपनी पत्नी के साथ बन को चले गये। दक्षिण में गोदावरी नदी के तट पर जहां ब्रह्मसर है, वहां जाकर उसने घोर तप किया और अन्त में लक्ष्मी के आदेश से अपनी स्त्री के साथ स्वर्गलोक गया। ___ राजा अग्रसेन के सम्बन्ध में जो विविध किम्बदन्तियां या कथाएं प्रचलित हैं, उनका यही सार है। हमारे संस्कृत ग्रन्थ 'उरुचरितम्' में इन्द्र और अग्रसेन के पारस्परिक संघर्ष का वर्णन नहीं किया गया। इसके विपरीत ‘अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम्' में अष्टादश यज्ञों का वर्णन बहुत संक्षेप से दिया गया है । 'उरुचरितम्' में अग्रसेन के भाई शूरसेन
For Private and Personal Use Only