Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास १७६ गोड पुरोहितं कृत्वा वेदविद्यातपोनिधिम्
अनायासेन पृथिवीं जित्वा कीर्तिमवाप्नुयात् ।।१४६ राजा अग्रसेन ने राज्य छोड़कर विभु को राज्य में अभिषिक्त किया
अथैकदा तु पूजायां लक्ष्मी तमुदीरयत् लक्ष्मी उवाच
राजन् पाहि स्वधर्म त्वं पुत्रं देहि नृपासनम् ||१५० वैशाखे पौर्णमास्यां वै विभु राज्येभिषिच्य च राजसिंहासने स्थित्वा वैश्यविप्रगणैवृतः ॥१५१ ज्ञातीन् सर्वान् अनुज्ञाप्य ययौ स: भार्यया सह पञ्च गोदावरी यत्र यत्र ब्रह्मसरः शुभम् ॥१५२
गौड़ को अपना पुरोहित बनाया, जोकि वेद विद्या तथा तपका निधि रूप था। बिना किसी श्रम के पृथिवी को जीत कर उसने कीर्ति को प्राप्त किया । १४९ - एक बार पूजा में लक्ष्मी ने उसे ( राजा अग्र को) कहा - 'हे राजन् ! तुम अपने स्वधर्म का पालन करो। पुत्र को अब राजसिंहासन प्रदान करो।' १५०
वैशाख मास की पूर्णमासी को विभु को राज्याभिषिक्त कर स्वयं वैश्यों तथा ब्राह्मणों के समूह से घिरा हुवा सब कुटुम्बी जनों से अनुमति लेकर वह अपनी पत्नी के साथ बन को चला गया, जहां पंच गोदावरी
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