Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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२६७ आ। मन्थः -बदरादिचूर्णम्। उत्त. २९५। चूर्णः। आचा० ३४८ मन्थः-बदरचूर्णादि। दशवै० १८० मस्त्। मदाणुभाव- मन्दानुभावः-परिपेलवरसः। भग०३५१ पिण्ड. ९०
मंदायं- मन्दम्। जीवा० १८१। मन्दं मन्दम्। जीवा० २४७) मंथू- चुन्नो। दशवै० ८६ आ।
मन्दायमिति-मन्दं मन्दम्। जम्बू. २४१ मध्यभागे मंद-मन्दः-सारुप्य, धैर्यवेगादिगुणेषु मन्दत्वात्। स्था० सक-लमूर्च्छनादिगुणोपेतं मन्दं मन्दं संचरन, अथवा २०९। मन्दः-विशिष्टबलवृद्धिकार्योपदर्शनासमर्थः। मन्दमयते-गच्छति अतिपरिघोलनात्मकत्वात् स्था० ५१९।
मन्दायम्। जम्बू. ३९। मन्दम्। राज० ३९| मंदकुमारए- मन्दकुमारकः-उत्तानशयो बालकः। प्रज्ञा० मंदायइयं- मन्दावीयं-गेयविशेषः। जम्बू. ४१२। ર૬રા.
मंदारदाम- कल्पवृक्षपुष्पमाला। उत्त० ३८२। मंदकुमारिया- मन्दकुमारिका-उत्तानशया बालिका। मंदिए- मन्दो-धर्मकार्यकरणं प्रत्यनयतः। उत्त० २९१। प्रज्ञा० २५२
मंदिर- शांतिजिनस्य प्रथमपारकस्थानम्। आव० १४६। मंदक्ख- लज्जा। निशी. ११४ अ।
मंदिरः-संनिवेशविशेषः। मंदधम्म- मन्दधर्मः-पार्श्वस्थादिः। आव०५३३।
अग्निभूतिब्राह्मणवास्तव्यनगरम्। आव०७२। मंदपुन्न- मन्दपुण्यः। आव०४२२
मंदुक्को- मन्डूकः-दर्दुरः। प्रश्न०७। मंदप्परिणाम- मन्दपरिणाम-ईषल्लक्ष्यमाणस्वरूपः मंदुय- मन्दुकः-ग्राहविशेषः। प्रश्न०७ शीतः। आचा० १५०
मंदुरा- मन्दुरा अश्वशाला। २४८१ मंदयं- मान्यं-अज्ञत्वम्। सूत्र. ११४।
मंद्यादए- मन्धादनः-मेषः। सूत्र. ९८५ मंदर-मन्दरः-मेरूः। आव० १२४१ विमलनाथजिनस्य मंनु- मन्कः -अप्रीतिकम्। बृह. ६२ अ, २२ अ। प्रथमः शिष्यः। सम० १५२। मेरूः। जीवा० १४४। मन्दरः- | मंस-मांसं-पुद्गलविशेषः। आव० ८५४। मांसं-पलम्। मेरूः। स्था०६८ मन्दरदेवयोगात् मन्दरः, मेरोः प्रथमं । प्रश्न ज्ञाता०२०९। भुजपरिसर्पः तिर्यग्योनिकः। नाम। जम्बू. ३७५। मन्दरो-नामदेवः। सूर्य ७८
जीवा०४०१ मन्दरः-मेरुपर्वतः। आव० ८२७। मन्दरः-मेरू। ज्ञाता० । मंसईत्त- मांसीयः-मांसपाकी। उत्त०५२ ६। मन्दरः-मन्दराभिधानः। उत्त ३५२।
मंसकच्छभा- ये मांसबहुलास्ते मांसकच्छपाः। प्रज्ञा० ४४। मंदरचूलिया- मेरूलिका-शिखरविशेषः। स्था० ८३। मन्द- | मंसखलं- जत्थ मंसाणि सोज्जंति। निशी० २२ । रचूलिका। आव० १२४१
मंसचक्खु- मांसचक्षुः छद्मस्थः। दशवै० १२८१ मंदलेसा- मन्दलेश्याः सूर्याः न तु मनुष्यलोके मंसरसं-मांसरसः-पानविशेषः। आव० ८२८१ निदाघसमये इव एकान्तोष्णरश्मय इत्यर्थः। सूर्य मंसलकच्छभ- मांसलकच्छतः-कच्छपविशेषः। जीवा. २८१
३६) मंदवाया- मन्दाः-शनैः सञ्चारिणः वाताः। ज्ञाता० १७१। | मंसला- मांसला-उपचितरसाः। प्रज्ञा० ३६४। मंदवासा- मन्दवर्षा-शनैर्वर्षणम्। भग० १९९।
मंसवरिसं- मांसवर्षः। आव० ७३४। उत्पातविशेषः। निशी. मंदा- मन्दः-विशिष्टबलबुद्धिकार्योपदर्शनासमर्थो भोगानु- ७०। भूतावेव च समर्थो यस्यामवस्थायां सा मन्दा। स्था० । मंससोल्लय- मांसशुल्यकं-मांसखण्डम्। उपा० ३४| ५१९। मन्दाः-मन्दायन्तीति, हिताहितविवेकनमपि मंसाइयं-मांसादिका-मांसमादौ प्रधानं यस्यां सा जन-मन्यतां नयन्तीतिकुत्वा। उत्त० २२७। यद्धा मांसादिका। आचा० ३३४॥ मन्दबुद्धित्वा-न्मन्दगमनत्वाद् स्त्रियः। उत्त० २२७ मंसि-मांसी-गन्धद्रव्यविशेषः। प्रश्न. १६२। दशदशायां तृतीया दशा। निशी. २८ आ। दशदशायां मंसुंडगं- मांसपिण्डभक्षणम्। ओघ० १८०। मांसोदकःतृतीया। स्था० ५१९। मन्दा-जन्तोस्तृतीया दशा। दशवै. | मांसखण्डः, शशकशिशुर्वा। पिण्ड० १६०|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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