Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 29
________________ 12. 11. जो जीवों का भी समझता है, अजीवों को भी समझता है, (वह) जीवों और अजीवों को समझता हुआ संयम को निश्चय ही समझेगा। जव (कोई) जीव-समूह और अजीवों-इन दोनों को ही समझता है, तव (वह) सब जीवों की अनेक प्रकार की गति को समझ लेता है। 13. जब (कोई) सब जीवों की अनेक प्रकार की गति को समझता है, तव (वह) पुण्य और पाप को (तथा) बंध और मोक्ष को समझ लेता है। जव (कोई) पुण्य और पाप को (तथा) बंध और मोक्ष को समझता है, तव (वह) देव-सम्बन्धी तथा मनुष्य-सम्बन्धी भोगों को अच्छी तरह समझ लेता है । जब (कोई) देव-सम्वन्धी तथा मनुष्य-सम्वन्धी भोगों को अच्छी तरह समझ लेता है, तव (वह) (आत्म-भाव की ओर जाने के लिए) निज के (राग-द्वे पात्मक) भीतरी संयोग को (और) (सांसारिक) बाह्य (संयोग) को छोड़ देता है । " 16. जव (कोई) उत्कृष्ट प्रात्म-नियन्त्रण (और) सर्वोत्तम चरित्र का पालन करता है, तव (वह) धारण किए हुए अज्ञानरूपी मैल को (तथा) (धारण की हुई) कर्मरूपी धूल को हटा देता है। 17. जव (कोई) धारण किए हुए अज्ञानरूपी मैल को (तथा) (धारण की हुई) कर्मरूपी धूल को हटा देता है, तव (वह) सर्वव्यापी ज्ञान और दर्शन को प्राप्त कर लेता है । 15. चयनिका ] [ 7

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